(महामण्डल समाचार) : स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रतिपादित मनुष्य-निर्माण एवं चरित्र-निर्माणकारी शिक्षा का प्रचार प्रसार करने हेतु विगत ९ जुलाई २०१७, रविवार (गुरु-पूर्णिमा) के दिन 'विवेकानन्द प्राइवेट आई० टी० आई' कोर्रा रोड, जबरा, हज़ारीबाग (झारखण्ड) में अखिलभारत विवेकानन्द युवा महामण्डल के द्वारा एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में स्थानीय एवं दूर दूर से आये विवेकानन्द युवा महामण्डल की शिक्षाओं से प्रभावित होकर लगभग १२२ तरुण प्रशिक्षुओं ने शैक्षणिक वातावरण के अलोक में भाग लिया।
शहर के अन्य गणमान्य लोगों के आलावा इस शिविर में जमशेदपुर से आये अपूर्व दास, झुमरीतिलैया से आये महामण्डल के विजय कुमार सिंह, अजय अग्रवाल, अजय पाण्डेय, सुदीप विश्वास, विष्णुदेव यादव, गया से धनेश्वर पण्डित, जय प्रकाश मेहता, अमित कुमार, एवं हज़ारीबाग के गजानन्द पाठक की सराहनीय भूमिका रही। इस शिविर में विवेकानन्द एवं अन्य महापुरुषों से सन्दर्भित पुस्तकों का एक बुक-स्टॉल भी लगाया गया।
कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत संघ-मन्त्र एवं महामण्डल गान स्वदेश-मन्त्र के साथ हुई। स्वागत भाषण दिया गजानन्द पाठक ने..."अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल युवाओं के अन्दर आत्मविश्वास पैदा करने का कार्य करता है। उसको अपने अन्दर की शक्ति को पहचानने की एक दिशा देता है, कैसे वह अपने अन्दर की शक्ति को पहचान सकता है। उसके अन्दर जो अनन्त शक्ति छिपी हुई है,स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं के आधार पर उन्हें यह बताया जाता है कि तुम्हारे अन्दर एक दिव्यत्व भरा हुआ है, एक आध्यात्मिक शक्ति भरी हुई है। जिसके माध्यम से तुम अपना जीवन बना सकते हो, अपने जीवन की सारी समस्याओं का समाधान कर सकते हो। अपने रोजगार के साधन के साथ-साथ परिवार, समाज और देश के कल्याण के लिये भी अपने जीवन को आगे बढ़ा सकते हो (देश की सेवा में अपने जीवन को समर्पित कर सकते हो)!"
झुमरीतिलैया के विवेकानन्द युवा महामण्डल के अध्यक्ष विजय कुमार सिंह अपने विचारों के साथ...." बिना चरित्र के अगर कोई मनुष्य होगा तो वह पशु के सामान होगा। इसीलिये सबसे पहले चरित्रवान मनुष्यों का निर्माण करना ये महामण्डल का उपाय है। और हमारे आदर्श हैं स्वामी विवेकानन्द। वे भारत के राष्ट्रीय युवा आदर्श हैं। १९८४ में ही भारत सरकार ने स्वामी विवेकानन्द को युवा आदर्श घोषित किया है। चरित्र-गठन के लिये एक साँचा की आवश्यकता होती है। युवाओं के रोल-मॉडल हैं, हमारे आदर्श हैं विवेकानन्द, उनके साँचे में अपने जीवन को हमलोगों को गढ़ना है।
हमारा आदर्श वाक्य है -"BE AND MAKE "; यह महावक्य भी स्वामी जी का दिया हुआ निर्देश है ! जैसे वेदान्त महावाक्यों के बड़े गहरे अर्थ होते हैं, वेदान्त के चार महावाक्य हैं -"अहंब्रह्मास्मि", "तत्त्वमसि" इत्यादि; ठीक वैसे ही स्वामी विवेकानन्द द्वारा कथित इस महावाक्य "बनो और बनाओ" का भी बहुत गहरा अर्थ है।
"BE AND MAKE " का गहरा महत्व यह है कि हमलोग केवल साढ़े-तीन हाथ के शरीर मात्र ही नहीं हैं।जैसे हमलोग केवल सॉलिड को देख पाते हैं,स्थूल देख पाते हैं; लेकिन सूक्ष्म को नहीं देख पाते हैं। हमलोगों ने फिजिक्स में पढ़ा है कि पदार्थ की तीन अवस्थायें होती हैं -ठोस,तरल और गैस। बर्फ को हमलोग देख सकते हैं, मुट्ठी में पकड़ सकते हैं। पानी को भी देख सकते हैं, किन्तु मुट्ठी में नहीं पकड़ सकते। किन्तु गैस या वायु को न तो हमलोग देख सकते हैं और न मुट्ठी में पकड़ ही सकते हैं। फिर भी कोई यह नहीं कह सकता कि हवा नहीं होती है ?
विवेकानन्द के गुरु भगवान श्रीरामकृष्णदेव कहते थे, " जिस प्रकार पानी जमकर बर्फ बन जाता है, उसी प्रकार निराकार, अखण्ड, सच्चिदानन्द ब्रह्म ही साकार रूप धारण कर लेता है। जैसे बर्फ पानी से ही पैदा होती है, पानी में ही रहती है, और पानी में ही मिल जाती है; वैसे ही ईश्वर का सगुण-साकार रूप भी निर्गुण-निराकार ब्रह्म से ही उत्पन्न होता है, उसी में अवस्थित रहता है तथा उसी में विलीन हो जाता है।" (अमृतवाणी/साकार और निराकार/२३०)
उसी प्रकार हमारे तीन कम्पोनेंट्स हैं - शरीर, मन और हृदय। शरीर स्थूल होता है, इसलिये हमलोग उसको देख पाते हैं, मन अत्यन्त सूक्ष्म वस्तु है इसलिये उसको देख नहीं पाते, किन्तु अनुभव करते हैं कि मेरा मन है। सभी लोग नवयुवकों को उपदेश देते हैं कि मन लगा कर पढ़ो ! किन्तु कोई यह नहीं सिखलाता कि किसी इच्छित विषय में मन को लगाया कैसे जाता है ? शिक्षा (युवा-प्रशिक्षण) का प्रथम कार्य यह है कि वह प्रत्येक नवयुवक को उसके मन की बनावट और मन को एकाग्र करने की पद्धति से उसका परिचय करा सके। और यह तभी सम्भव है, जब शिक्षा हमें मन को (सूक्ष्म वस्तु को) देखने की प्रक्रिया की सम्यक जानकारी प्रदान करे।
और हृदय, हार्ट हम लोग बोलते हैं; यह उससे भी सूक्ष्म वस्तु है- वास्तव में वो आत्मा है। लेकिन अभी हमलोग उसको समझ नहीं पायेंगे; इसीलिये स्वामी जी उसको हार्ट बोले क्योंकि अनुभव करने या फील करने की शक्ति हृदय में होती है। अतः मनुष्य-निर्माण की प्रक्रिया को सरल करते हुए स्वामी जी ने कहा - 3'H'; हैण्ड -हेड एण्ड हार्ट् का डेवलपमेन्ट करो -मनुष्य विकसित हो जायेगा, मनुष्य निकलेगा, मनुष्य प्रगट हो जायेगा। वह 'मनुष्य' जो 'ब्रह्म' को-अर्थात अपने बनाने वाले को भी जान सकता है !
विवेकानन्द के गुरु भगवान श्रीरामकृष्णदेव कहते थे, " जिस प्रकार पानी जमकर बर्फ बन जाता है, उसी प्रकार निराकार, अखण्ड, सच्चिदानन्द ब्रह्म ही साकार रूप धारण कर लेता है। जैसे बर्फ पानी से ही पैदा होती है, पानी में ही रहती है, और पानी में ही मिल जाती है; वैसे ही ईश्वर का सगुण-साकार रूप भी निर्गुण-निराकार ब्रह्म से ही उत्पन्न होता है, उसी में अवस्थित रहता है तथा उसी में विलीन हो जाता है।" (अमृतवाणी/साकार और निराकार/२३०)
उसी प्रकार हमारे तीन कम्पोनेंट्स हैं - शरीर, मन और हृदय। शरीर स्थूल होता है, इसलिये हमलोग उसको देख पाते हैं, मन अत्यन्त सूक्ष्म वस्तु है इसलिये उसको देख नहीं पाते, किन्तु अनुभव करते हैं कि मेरा मन है। सभी लोग नवयुवकों को उपदेश देते हैं कि मन लगा कर पढ़ो ! किन्तु कोई यह नहीं सिखलाता कि किसी इच्छित विषय में मन को लगाया कैसे जाता है ? शिक्षा (युवा-प्रशिक्षण) का प्रथम कार्य यह है कि वह प्रत्येक नवयुवक को उसके मन की बनावट और मन को एकाग्र करने की पद्धति से उसका परिचय करा सके। और यह तभी सम्भव है, जब शिक्षा हमें मन को (सूक्ष्म वस्तु को) देखने की प्रक्रिया की सम्यक जानकारी प्रदान करे।
और हृदय, हार्ट हम लोग बोलते हैं; यह उससे भी सूक्ष्म वस्तु है- वास्तव में वो आत्मा है। लेकिन अभी हमलोग उसको समझ नहीं पायेंगे; इसीलिये स्वामी जी उसको हार्ट बोले क्योंकि अनुभव करने या फील करने की शक्ति हृदय में होती है। अतः मनुष्य-निर्माण की प्रक्रिया को सरल करते हुए स्वामी जी ने कहा - 3'H'; हैण्ड -हेड एण्ड हार्ट् का डेवलपमेन्ट करो -मनुष्य विकसित हो जायेगा, मनुष्य निकलेगा, मनुष्य प्रगट हो जायेगा। वह 'मनुष्य' जो 'ब्रह्म' को-अर्थात अपने बनाने वाले को भी जान सकता है !
आधुनिक युग में 'ब्रह्म' के अवतार, जगतगुरु भगवान श्रीरामकृष्णदेव कहते थे - " वह मनुष्य धन्य है जिसका शरीर, मन और हृदय (3'H') तीनों ही समान रूप से विकसित हुए हैं। सभी परिस्थितियों में वह सरलता के साथ उत्तीर्ण हो जाता है। उसके हृदय (Heart) में भगवान के प्रति सरल विश्वास और दृढ़ श्रद्धा-भक्ति होती है; साथ ही उसके आचार-व्यवहार में भी कहीं कोई कमी नहीं होती। माता-पिता और गुरुजनों के सम्मुख वह वह विनयी और आज्ञाकारी होता है। पड़ोसियों के प्रति वह दया और सहानुभूति रखता है। आत्मीय-स्वजन और मित्रों को वह अतिशय प्रिय प्रतीत होता है, क्योंकि उसके हाथ (Hand) सदैव मदद करने को तैयार रहते हैं। सांसारिक व्यवहार के समय वह पूरा-पूरा व्यवसायी होता है, विद्वान् पण्डितों की सभा में वह सर्वश्रेष्ठ विद्वान् सिद्ध होता है। वाद-विवाद में अकाट्य युक्तियों द्वारा वह अपनी तीक्ष्ण बुद्धि (Head) का परिचय देता है। पत्नी के सामने वह मानो साक्षात् मदन-देवता होता है। इस तरह का मनुष्य वास्तव में सर्वगुण-सम्पन्न (ऑल अराउन्डर) होता है ! " अमृतवाणी /८०]
इसलिये महामण्डल का उद्देश्य है -भारत का कल्याण, उपाय है -चरित्र-निर्माण, आदर्श हैं -स्वामी विवेकानन्द, आदर्श वाक्य है -"BE AND MAKE" और हमारा अभियान मन्त्र है - " चरैवेति चरैवेति !" . ये ऐक्चुअली ऐतरेय ब्राह्मण का एक मंत्र है। जिसमें कहा गया है, कि जो युग परिवर्तन होता है वह व्यक्ति के विचारों में (विचार जगत में) होता है। "
जानिबिघा, गया से आये धनेश्वर पण्डित ने भी अपने विचार कुछ यूँ व्यक्त किये - " मेरा गाँव पहले बिल्कुल नक्सल प्रभावित था, पूरा मतलब ग्रसित था। लोगों को आने-जाने के लिये सुविधा भी नहीं था, वहाँ रोड भी नहीं था। इसलिये मैंने बचपन से सोंचा कि झुमरीतिलैया जाकर कुछ पढ़लिख कर गाँव के लिये कुछ अच्छा किया जाय। वहीँ झुमरीतिलैया के युवा प्रशिक्षण शिविर में स्वामी विवेकानन्द का जो भी शिक्षा वहाँ पहले से प्रचलित है, उसका ज्ञान और ये चीज मिला। (मनुष्यत्व-उन्मेषकारी और चरित्र-निर्माणकारी शिक्षा पद्धति है उससे परिचय हुआ।) तो सोंचा कि स्वामी विवेकानन्द की मार्गों को शिक्षाओं को अपने गाँव में कैसे बताया जाये ?
अशिक्षित आदमी है, वहाँ के लोग तो पढ़े-लिखे भी नहीं हैं; तब १९९५ में मैंने एक स्कूल की स्थापना की जिसका नाम था-'विवेकानन्द ज्ञान मन्दिर।' उसके बाद जो है, लगभग २०० लड़का सेकेण्ड डे से आना शुरू किये। पूरे एरिया में पूरे पंचायत में सब उसका नाम जान गया। और स्वामी विवेकानन्द का नाम घर घर में फोटो, घर घर में उनकी पूजा और घर घर में उनके प्रति लोगों की चाहत बढ़ गयी।
और इस तरह जो है, अभी प्रत्येक वर्ष लगभग सौ-सवा सौ छात्र-छात्रायें मैट्रिक के परीक्षा में बैठते हैं। इसमें ८० से ९० परसेंट रिजल्ट अच्छा होता है। इसबार का रिजल्ट ९९ परसेंट सही गया। ६० परसेंट फर्स्ट डिवीजन और ४० परसेंट सेकण्ड डिवीजन में पास हुए हैं। १९९५ से अभी तक देखा गया है कि गाँव की ५-६ लड़कियाँ जो वहाँ पढ़ी हैं, शिक्षामित्र में नौकरी पा गयी हैं। मिल्ट्री में १०-२० लड़के गए हैं। मतलब प्रत्येक वर्ष ४-५ लड़के रेलवे में या अन्य जगह नौकरी पा जाते हैं। किन्तु नौकरी करने के बाद भी जो स्वामी जी का भाव है, उसे नहीं छोड़ते हैं, और स्कूल में आकर फ्री में पढ़ाते हैं। स्कूल में आकर धन्य भाव से सहयोग देते हैं। बहुत से कार्यों में हमलोगों को सहयोग देते हैं। आप समझिये कि २०-२५ साल पहले तक कोई नहीं जानता था कि स्वामी विवेकानन्द क्या हैं। और अभी घर घर में पूरा गया डिस्ट्रिक्ट में इस स्कूल का नाम लोग जान गया है।" इस आयोजन में अजय पाण्डेय के द्वारा भजन-गीत भी प्रस्तुत किये गए-"हमारे विचार में सब जीव एक हैं, ऐक्य विधान के मंत्र को गाकर देवगन तुम्हें हम आहुति प्रदान करेंगे।" जिसे लोगों ने खूब सराहा।
नेशनल यूथ अवार्ड से सम्मानित जय प्रकाश मेहता ने महामण्डल की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा -" जानिबिघा एम्० सी०सी० का गढ़ बन गया था। सारे लोग का जीना दूभर हो गया, मतलब वह गाँव उन लोगों के कैम्प में तब्दील हो गया था। विवेकानन्द मन्दिर स्कूल के थ्रू से जब काम शुरू हो गया, काम भी बहुत अच्छा हुआ। उस समय वहाँ की डी०एम० थीं राजबाला वर्मा, (जो अभी झारखण्ड की चीफ सेक्रेटरी हैं?) हमलोगों ने सप्ताह में दो दिन बच्चों को स्कूल में नहलाने-धुलाने का रूटीन काम शुरू किया। बच्चों से हमलोग फ़ीस के रूप में पैसा नहीं गोबर से बना हुआ गोईंठा और अनाज में कुछ भी ले लेते थे। तो यह सब काम देखकर वहाँ की डी०एम० हमलोगों के साथ पैदल चलकर के पूरे गाँव में घूमी और स्कूल के प्रभाव को देखी तो उन्होंने ने उस गाँव पर पुलिसिया कार्रवाई करना बन्द कर दिया। उन्होंने कहा कि पुलिस कार्रवाई की जरूरत नहीं है, ये लोग जो अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल की तरफ से गाँव में जो स्कूल चलाने का काम कर रहे हैं, उसी से यहाँ शान्ति आयेगी।
अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल के संस्थापक श्री नवनीहरन मुखोपाध्याय की अनुसंशा पर "राष्ट्रीय युवा पुरुष्कार" से मुझे सम्मानित किया गया। किन्तु हमारा उद्देश्य पुरुष्कार लेना नहीं है, वास्तव में गुमनाम होकर के काम करना है। जो काम किया जाय उसके पीछे नाम-यश पाने का उद्देश्य न रहे, लेकिन राष्ट्र को समर्पित काम होता रहे। जो बोला जाता है, सही रूट में या जड़ पर पानी देना चाहिये पत्तों पर नहीं। और चरित्रवान मनुष्यों का निर्माण करना ही भारत कल्याण के जड़ पर कार्य करना है। [ समाज-सेवा हमलोगों के लिये 'हृदयवान मनुष्य' (ब्रह्मविद मनुष्य) बनने का उपाय है, इसलिये इस समाज-सेवा "BE AND MAKE" शिक्षा पद्धति का प्रचार-प्रसार करने का उद्देश्य हमारे अपने हृदय को विकसित करके स्वयं यथार्थ मनुष्य बन जाना है!]"
जानिबिघा, गया से आये अमित कुमार ने भी महामण्डल के आदर्शों की सराहना करते हुए कहा - " बोला गया कि भारत के कल्याण का जो भी कर्तव्य है, वह राष्ट्र के युवाओं पर टिका हुआ है। किसी राजनितिक कार्यकर्ता ***को सम्बोधित करते हुए स्वामी विवेकानन्द ने कहा कहा था, "My politics is God !"अगर तुमलोगों को देश की आजादी चाहिये तो मैं केवल आठ दिन में दिला सकता हूँ। लेकिन उस आजादी की रक्षा करने वाले मनुष्य कहाँ हैं, उसे सम्भाल कर रखने वाले मनुष्य कहाँ हैं ? इसलिये पहले चरित्रवान मनुष्यों का निर्माण करो।
और ये काम केवल युवाओं से ही होना सम्भव है। क्योंकि आज का जो जेनेरेशन है, युवाओं की जो पीढ़ी है उसी की आबादी देश में सर्वाधिक है, इसीलिये चरित्र-निर्माण का काम भी युवाओं के ऊपर टिका हुआ है। क्योंकि युवाओं के अन्दर वो जोश होती है, करने की वो क्षमता होती है ,जो किसी भी काम को क्षण भर में कर सकती है।
लेकिन वैसा नेता नहीं होना चाहिये जो हमारे काम को ईमानदारी पूर्वक कर नहीं पाये, अपने देश को सही ढंग से जो सम्भाल नहीं पाये, वैसे नेता नहीं चाहिये। भले ही वह अपने देश का कमान सम्भाल लिया हो, जिला का कमान सम्भाल लिया हो या राज्य का कमान संभाल लिया हो, वो अपने देश और समाज की सेवा सही ढंग से नहीं कर सकते हैं।
***स्वामी विवेकानन्द ने ९ सितम्बर १८९५ को अलासिंगा पेरुमल को लिखित एक पत्र में कहा था- " कायर तथा मूर्खतापूर्ण राजनितिक बकवासों के साथ मैं अपना कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहता। किसी प्रकार की राजनीति में मुझे विश्वास नहीं है। ईश्वर तथा सत्य ही जगत में एकमात्र राजनीति है, बाकी सब कूड़ा-करकट है। " ४/३४६
(I have nothing to do with cowards or political nonsense. I do not believe in any politics. God and Truth are the only politics in the world, everything else is trash.)
इसलिये अपने देश का कोई सही रूप में कल्याण करना चाहे, या अपने देश में से भ्रष्टाचार को हटाना चाहे, तो उसके लिये हमें भ्रष्ट नेताओं की नहीं, चरित्रवान नेताओं की आवश्यकता है। युवाओं में से ही कुछ सही नेतृत्व देने वाले नेताओं का (लोकशिक्षकों का) निर्माण करना होगा। इस संस्था में हम बचपन से , लगभग १५ वर्षों से जुड़े हुए हैं। यहाँ हमलोगों को यही सीख मिलती है कि जो हमारे युवा लोग हैं, उन्हें देश के कल्याण के लिये इस मनुष्य निर्माण और चरित्र-निर्माणकारी आन्दोलन का कमान भी संभाल लेना होगा। "
इसके बाद अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल के द्वारा आयोजित एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर पूर्णाहुति के साथ सम्पन्न हुआ कि स्वामी विवेकानन्द के द्वारा बताये गए रास्ते पर चलकर देश के युवा विश्व भर में अपनी अलग पहचान बनायेंगे :
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥***
इस मंत्र का सरल अर्थ है कि वह (परब्रह्म) पूर्ण है। यह (कार्यब्रह्म-जगत) भी पूर्ण है। पूर्ण में से पूर्ण ही उत्पन्न होता है। और यदि [प्रलयकाल मे] पूर्ण [कार्यब्रह्म] में से पूर्ण को निकाल लें (अपने मे लीन कर लें), तो भी पूर्ण [परब्रह्म] ही शेष बचता है। त्रिविध ताप की शांति हो। ***
[***इस मन्त्र में निर्गुण और सगुण दोनों ही सिद्धांतो का, विचारधाराओं का अद्भुत मेल है। 'पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते' वास्तव में कोर्डिनेट ज्योमेट्री का एक सिद्धान्त है, जिसमें कहा गया है कि अनन्त में से अनन्त को घटा देने पर लास्ट में अनन्त ही शेष रहता है। अर्थात 'ब्रह्म' आदि, मध्य और अन्त, सभी काल में पूर्ण है। ब्रह्म की सत्ता अखण्ड है। जैसे १ पर इस निर्गुण शून्य को रख देने से १० संख्या स्वतः बन जाती है। किन्तु इस '१' के अभाव में समस्त सृष्टि '०' शून्य है। मृत है, प्रलायावास्था में है, मूल्यहीन है ; तथा '१' के साथ रहने पर वही मूल्यवान है, सजीव है। इस लिये '१०' नाम-रूपमय सृष्टि का वाचक है। इस १० में सम्मिलित '१' ब्रह्म और आत्मा दोनों का प्रतिधित्व करता है। सब कुछ अपने अन्दर समेट कर एक '१' रहा भी, और नहीं भी रहा, वह अनेक '१०' बन गया, जगत बन गया, सृष्टि बन गया। सृष्टि के प्रारम्भ में वह 'ब्रह्म' अकेला था, सृष्टि रचना के बाद भी, ब्रह्म ही आनन्द रूप है।]
आप सुन रहे थे अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल द्वारा एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर पर आधारित
रेडिओ रिपोर्ट। वाचन एवं संकलन था परमेन्द्र कुमार मिश्रा का, प्रस्तुति मन्मथ नाथ मिश्र की,और इस कार्यक्रम के संयोजक थे डॉक्टर अकलू चौधरी। आकाशवाणी का ये हज़ारीबाग केन्द्र है fm १०२.१ मेगा हर्ज पर।
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