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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

'Vivify India ! ~ 'भारत को पुनरुज्जीवित करो !' भारत के युवाओं को विवेकानंद का संदेश~ [ 'Vivify India ! ~ Message of Vivekananda to the youth of India ]

[Speech given by Shri Navniharan Mukhopadhyay, Founder Secretary of Mahamandal on 30th December 2011: महामण्डल के संस्थापक सचिव श्री नवनीहरन मुखोपाध्याय द्वारा 30 दिसंबर 2011 को दिया गया भाषण ] 

ॐ सहनाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै ।तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हरिः ॐ तत सत ।।

nabani da : प्रेमोन्मत्त नेता कभी निराश नहीं होता !    

[प्रेमोन्मत्त नेता (ecstatic-भावविभोर) वीर बालक 'कैसाबियांका ' (Casabianca) की कर्तव्य निष्ठा : अंग्रेजी कविता में वर्णित वीर बालक की गाथा के जैसा हमें भी कर्तव्यनिष्ठ होना होगा; कवि कहता है -'The boy stood on the burning deck, Whence all but he had fled.' जहाज में आग लग गई है, लेकिन उस वीर बालक के पिता ने जिस पद का दायित्व सँभालने की आज्ञा दी है , उसे उस पद के दायित्व का पालन करना ही होगा। उसे यह पता नहीं था कि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी हुई, इसलिए उसको जहाँ पर खड़े रहने को कहा गया है- उसको वहीं पर खड़ा रहना होगा।  आग के डर से भागना नहीं होगा।  यदि हम ऐसा कर लिये (अपने कर्तव्य से ऐसा उन्मत्तप्रेम कर लिए), तो इस में ही महा-आनन्द है ! -(जीवन नदी के हर मोड़ पर ~ 41]   

nabani da : क्या बोलूँ, जो सोचा था वह बात तो अभी मन में नहीं है। मेरे शरीर की ओर देखने से मेरे उम्र का सही अंदाज लगा पाना किसी के लिए भी मुश्किल है। मैं अपने जीवन का इक्यासीवां वर्ष  पूरा करने जा रहा हूँ। मेरे जीवन के 81 वें वर्ष  को मैं समाप्त करने जा रहा हूँ, और मैंने बहुत कम उम्र से (17-18 से) ही बहुत मेहनत की है। जब मैं बहुत कम उम्र का था, तरुण ही था , तभी मुझे बहुत परिश्रम करना  पड़ता था। मुझे पारिवारिक परिस्थतियों के कारण 17 वर्ष की उम्र में ही नौकरी करनी पड़ी, नौकरी से अपने परिवार की और दूसरों की आर्थिक मदत के साथ-साथ किसी तरह पढाई भी करना था। दिन में नौकरी करने के कारण रात्रि -कॉलेज से शिक्षा ग्रहण करनी पड़ी, और इसी प्रकार जीवन आगे बढ़ता गया। लेकिन मैं हर हाल में हमेशा बहुत प्रसन्न  रहता था, मैं कभी उदास नहीं होता था। `Depression ' उदासी या निराशा क्या चीज है ? मुझे अपने जीवन में उसका कोई अनुभव नहीं है !  मेरा मन हर समय उत्साह और जोश से भरा रहता है, और (युवा आन्दोलन का नेतृत्व के लिए) यह बहुत आवश्यक है। 

  [I am going to finish eighty-first year of my life. 81, I am going to finish, and I have worked very hard from very lower age. when I was very young, I had to work very hard. I entered into service at the age of seventeen, then some how putting on education, family affairs, helping others, studying etc and it all went on...but I was always very happy, I was never depressed. What is depression I have no experience in my life; full of enthusiasm all the time, and that is very necessary. ]

nabani da :  महामण्डल के आविर्भूत होने की पृष्ठभूमि : 

मैं यह दावा नहीं करता कि मैंने कुछ बहुत बड़ा  काम कर लिया है; लेकिन किसी प्रकार , " श्री रामकृष्ण देव की इच्छा , श्री श्री माँ सारदा देवी का आशीर्वाद और स्वामी विवेकानन्द का उत्साह (एन्थूज़ीऐज़म) -- इन तीन भावों के सम्मिलित होने से ही इस संगठन ' अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल ' की सृष्टि हुई है!" मुझे स्वयं इस युवा -प्रशिक्षण शिविर को देखकर आश्चर्य हो रहा है,  कि यहाँ मुझसे यहाँ यह पूछा जा रहा है कि युवाओं के लिए ऐसे उपयोगी शिविर का प्रारम्भ कैसे हुआ ?  

[I have not done, very much, something very big, but somehow " The will of  Sri Ramakrishna, the blessings of the Holy Mother and enthusiasm of Swami Vivekananda mingled to form this organization ." it seems me at least this matter,.... It is surprising to see this youth-training camp, that here I am being asked that how such a useful camp for the youth started? and I am surprised already in this camp, I had to relate how it started ?]

nabani da: सम्पूर्ण पृथ्वी को आर्य बनाओ ! 

आप लोगों को शायद यह मालूम नहीं होगा कि जिस समय मैं नौकरी करते हुए नाईट कॉलेज में पढ़ाई भी कर रहा था , उसी समय एक बार स्वामी रंगनाथानन्दजी के मुख से सुना कि रामकृष्ण मठ के कुछ वरिष्ठ संन्यासी उनके साथ केवल मेरे पितामह (grandfather दादाजी) से मिलने के लिए हमारे घर (भुवन-भवन, खड़दह) आना चाहते हैं। क्योंकि जब स्वामी विवेकानन्द 1897 में विश्वविजयी होकर अमेरिका से भारत लौटे थे तब वे दक्षिणेश्वर-पंचवटी आदि दर्शन करने गए थे, और वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने उनसे अनुरोध किया था कि स्वामीजी हमें भी कुछ उपदेश दीजिये, हमसे भी कुछ कहिये। तब दक्षिणेश्वर के पंचवटी में स्वामीजी ने 5-7 मिनट का छोटा सा उपदेश दिया था। और संयोग से वहाँ उपस्थित मेरे पितामह को भी विवेकानन्द को देखने और उनका भाषण सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
 गोलपार्क रामकृष्ण मठ-मिशन के असिस्टेन्ट सेक्रेटरी स्वामी भाष्यानन्द जी का ट्रांसफर शिकागो हो रहा था, उन्होंने कहा " मैं अमेरिका जाने वाला हूँ, मुझको शिकागो भेजा जा रहा है। लेकिन एक बात है कि मैंने अभी तक किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं देखा है, जिसने स्वामी विवेकानन्द को साक्षात् देखा हो। मैंने सुना है कि तुम्हारे पितामह ने स्वामीजी को देखा है , इसीलिये मैं तुम्हारे पितामह से मिलने तुम्हारे घर पर आऊँगा। "
 वे यह जानना चाहते थे कि स्वामी जी ठीक कितनी देर तक उपदेश दिए होंगे , क्योंकि पर पितामह उस समय वहाँ उपस्थित थे -वे चाहते थे कि उनसे मिलकर सही समय जान लिया जाये। .... इसके बाद मेरे घर जाने का एक दिन तय हो गया। उस दिन मेरे घर पर कौन -कौन साधु गए थे , उन सब का नाम मुझे याद नहीं है। किन्तु, 8 -10 संन्यासी  लोग तो आये ही थे। स्वामी रंगनाथानन्द जी भी आये थे। भाष्यानन्द जी गोलपार्क से ट्रांसफर होकर शिकागो जा रहे थे , इसलिए उनकी जगह पर असिस्टेंट सेक्रेटरी होकर लंदन से स्वामी अनन्यानन्द जी आ गए थे। तो वे , भाष्यानन्द जी , स्वामी निरामयानन्द जी इत्यादि कई वरिष्ठ संन्यासी दो तीन गाड़ियों में बैठकर खड़दह आये थे। (जीवन नदी के हर मोड़ पर ~50, पृष्ठ -159 ]  
[ it comes to my mind and before I tell you, perhaps all of you have not heard, for some period; when I was in service, some sanyasins of the Ramakrishna order,led by Swami Ranganathanandaji, wanted to go to our house, just to meet my grand father, who had the good fortune to be present, when Swamiji after returning to India, went to Dakshineshvar, and their he was requested by everyone- Swamiji tell us something, tell us something. Swamiji spoke for five to seven minutes, it might be, they can find out the exact time, because that matter is with me, so they went. Swami Ranganathanandaji and a few others swamis; Swami Ananyanandaji, who is lying very sick at Belur-math for along time, years have passed. there was one swami....' ] 

nabani da : रंगनाथानन्द जी को सुनने पहले गोलपार्क  जाते थे, अद्वैत आश्रम नहीं।  
 
हमारे देश की संस्कृति में घर पर पधारे हुए संन्यासियों की अभ्यर्थना जिस रीति से की जाती है , उसके अनुसार प्रवेशद्वार पर उन सभी के चरणों को पखारा -पोंछा गया। फिर मेरे पितामह ने प्रत्येक साधु के गले में फूलों की माला पहना दी। उसके बाद पितामह के साथ वर्तमान शिक्षा-प्रणाली आदि विषयों पर चर्चा होने लगी।  उनकी बैठक बहुत देर तक चली , फिर  साथ बैठकर भोजन ग्रहण किया। भोजनोपरान्त वापस लौटने के समय मुझे यह ज्ञात हुआ कि कौन साधु कहाँ से आये थे। ज्ञात हुआ कि उनमें दो साधु 'अद्वैत आश्रम' से भी आये थे। उनमें से एक संन्यासी स्वामी स्मरणानन्द जी (जयराम महाराज ) वर्तमान में 'रामकृष्ण मठ एवं मीशन के वर्तमान उपाध्यक्ष (2010 में ),  अभी (2022 में) अध्यक्ष भी आये थे।  उस समय मैं उनको नहीं पहचानता था। उनके साथ मेरा परिचय नहीं हुआ था। जाने के समय जयराम महाराज ने कहा, " नवनी बाबू आप अद्वैत आश्रम क्यों नहीं आते हैं ? मैंने कहा , ' महाराज , बहुत से स्थानों में जाना सम्भव नहीं हो पाता । मैं तो पहले गोलपार्क भी नहीं जाता था। अभी रंगनाथानन्दजी के व्याख्यानों को सुनने के लिए वहाँ जाता हूँ और अन्यान्य स्थानों में भी कभी -कभी गया हूँ। " 
nabani da : 1967 में 'colonial mindset' (परानुकरण- परमुखापेक्षा) के प्रति युवा -विक्षोभ चरम पर पहुँचा ! 
 [वास्तव में अद्वैत आश्रम, मायावती तो पूर्वजन्म में कैप्टन सेवियर के रूप में  नवनीदा के द्वारा ही स्थापित किया गया था !]
 
 कुछ दिनों बाद स्वामी अनन्यानन्द जी (गोविन्द महाराज) भी गोलपार्क से ट्रांसफर होकर अद्वैत आश्रम चले आये। और बाद में मैंने भी अद्वैत आश्रम में आना-जाना शुरू कर दिया। फलस्वरूप , प्रतिदिन गोलपार्क नहीं जा पाता था। ऑफिस के बाद रोज अद्वैत आश्रम ही जाया करता था , वह निकट भी पड़ता था। आते-जाते ऐसा हो गया कि वहाँ पहुँचते ही पहले मुझे तीसरे तल्ले पर ले जाकर कुछ चाय -नाश्ता आदि करवाते थे। चाय पीकर शाम के समय जयराम महाराज और स्वामी अनन्यानन्द जी - दोनों व्यक्ति टहलने के लिए थोड़ा बाहर जाते थे। वे लोग अद्वैत आश्रम से निकल कर पार्क सर्कस तक घूम आते थे ; मैं भी उनके साथ जाया करता था। उन दिनों (1967 ई० के आसपास) विशेषकर कोलकाता में एवं अन्य कई प्रांतों के युवाओं के भीतर एक प्रकार की छटपटाहट, विक्षोभ का भाव दृष्टिगोचर होने लगा था। जैसे उनके भीतर-भीतर  मानों कुछ उबल रहा हो। एक विशेष प्रकार का अस्थैर्य (Student Unrest) जैसे भीतर ही भीतर  कोई चीज उन्हें कचोटे जा रही थी। अब वे किसी की भी बात मान लेने को तैयार नहीं थे , कुछ भी सुनना नहीं चाहते थे। "
तो ये सब हालात थे,  और मैंने अद्वैत आश्रम जाना शुरू कर दिया था। और जाते जाते जाते जाते, एक रोज वहाँ के दो महाराज, जयराम महाराज और अनन्यानन्दजी महाराज, हमको बोलते थे हमलोग थोडा टहलने के लिए जाते हैं, अद्वैत आश्रम से आप भी क्यों नहीं आते है, ऑफिस के बाद यहाँ ? तो ऑफिस का काम खत्म होने के बाद मैं वहाँ जाने लगा।  हम तीनों वहाँ से निकल कर के, इंटाली में एक पार्क है, थोड़ी दूर में, बहुत समय नहीं लगता था, पाँच-सात मिनट मैक्सिमम.. ऐसा होगा, सात-आठ मिनट या अधिक अधिक से दस मिनट हो सकता है, और लौट कर आना।  हाँ, तो एक रोज जब हमलोग जा रहे थे, तो एक लड़का फुटपाथ के किनारे कहीं खड़ा था, वहाँ और भी बहुत से लड़के खड़े थे। वहाँ खड़े युवाओं के झुण्ड में से एक लड़का थोड़ा अधिक हुआ खीझा हुआ लग रहा था। उस लड़के ने स्वामी अनन्यानन्द और जयराम महाराज की ओर ऊँगली दिखाते हुए कहा ..देखो, देखो इन लोगों ने दूसरों के पैसों को खा-खा कर अपना शरीर कैसा तंदरुस्त बना लिया है ! [it was almost rush,.. he just,.. that boy, he was a boy, he showed his finger to these swamijis - at Jayram maharaj and Ananyanandaji, see see how the money from other people they eat so much.. that such ( huge) bodies they have now!]  
nabani da : Statue of Equality Sri Ramakrishna
अँ ? देखो तुम लोग भी हँसे...हंसी..तो, तो,.. साधू लोग भी थोड़ा थोड़ा हँसने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह हँसी उतनी स्वाभाविक रूप से नहीं निकली है, उनकी भाव-भंगिमा को देखने से मुझे समझ में आया कि, उनको बहुत बुरा महसूस हो रहा था; मुझे भी बहुत खराब लगा था। 
 तो अनन्यानन्दजी ने मुझसे कहा-' नवनी बाबु देखते हैं, इन युवकों की क्या स्थिति हो रही है, इन लडकों में भी सुधार हो सके, इसके लिए क्या आप कुछ उपाय सोच सकते हैं ?' Remoulding of their character, remoulding,  of their mind,..में कुछ सुधार हो सकता है ? ये जो युवकगण कुमार्ग पर चले जा रहे हैं ,अजीब ढंग के होते जा रहे हैं , उनलोगों के भीतर अनुशासन नाम की कोई चीज है ही नहीं , उनके व्यवहार में थोड़ी भी विनम्रता नहीं झलकती -मालूम पड़ता है जैसे वे परिवर्तन की हड़बड़ी में सबकुछ तोड़-फोड़ कर परिवर्तन लाना चाहते हैं, इन लोगों के लिए कुछ करना अब अनिवार्य हो गया है।  अंग्रेजो द्वारा लिखित विकृत इतिहास को पढ़ने से  युवाओं में जो पूर्वाग्रह ग्रस्त औपनिवेशिक मानसिकता 'colonial mindset'  बैठ गयी है, उनके मन की सोचने -समझने की क्षमता और विचारों की दिशा को बदल कर क्या उन्हें 'रामकृष्ण -विवेकानन्द वेदान्त शिक्षक -प्रशिक्षण परम्परा' में पुनः प्रशिक्षित किया जा सकता है ? ... थोड़ा चिन्तन कर के बताइए जिससे इन लड़कों में थोड़ा परिवर्तन हो सके,... उनके चरित्र को फिर से 'मनुष्य' की साँचे में (समता की मूर्ति श्रीरामकृष्ण ,साम्यभाव में स्थित प्रथम युवा नेता के साँचे में) ढाला जा सके। "
[(Youth Unrest) -मनुष्य बनने और बनाने के अभियान (आन्दोलन,'चरैवेति-चरैवेति ) का नेतृत्व संन्यासियों (निवृत्ति मार्गी-प्र०दा,बिजन -बिहारी,अरु०।.... के माध्यम से नहीं प्रवृत्ति मार्गी अदृश्य नेता (र० दा,अरविन्द दत्ता) दृश्य नेता (वि०दा०) के माध्यम से होने वाला है ! जीवननदी के हर मोड़ पर- 42 -पृष्ठ 122 -124 :]          
nabani da : युवा-प्रशिक्षण कार्य संन्यासियों के माध्यम से होना क्यों सम्भव नहीं ?
        तुरन्त फिर दोनों (गोविन्द महाराज और जयराम महाराज) सम्मिलित रूप से कहने लगे - " किन्तु यह कार्य सन्यासियों के माध्यम से होने वाला नहीं है ! " क्योंकि जैसे ही संन्यासी लोग युवाओं के बीच किसी योजना को क्रियान्वित करने जायेंगे (उनके मुण्डित मस्तक और वेशभूषा आदि को देखकर) सामान्य युवाओं के मन में हमलोगों द्वारा बचपन में सुनी हुई 'दो छोटे भाई और ट्यूटर की कहानी'  के समान पहले से ही कुछ शंकायें उठने लगेंगी ! ... ट्यूटर जब पढ़ाने गए तो बच्चों से बातचीत करते हुए कहा -'वाह  तुम्हारा बरामदा तो काफी बड़ा है ! छत की ओर इशारा करते हुए कहा ' बताओ तो इसमें कितने बीम (balk- शहतीर)  और कड़ियाँ लगी हैं ? एक भाई दूसरे भाई को कुहनी मारते हुए कहता है (दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे) - "अरे भैया कुछ समझे ? ये मास्टर साहेब तो हमें गणित सिखाएंगे रे !! उसी प्रकार संन्यासियों को देखकर ही युवाओं के मन में शंका उठेगी कि पता नहीं इन मुण्डित मस्तक संन्यासियों का असली उद्देश्य क्या है ? संन्यासियों के पास जाने से ही वे हमलोगों को भी संन्यासी बना देंगे या कहीं और कुछ तो नहीं बना देंगे? अतः युवक लोग उनके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में सम्मिलित ही नहीं होना चाहेंगे। इसीलिए यह कार्य संन्यासियों के माध्यम से होने वाला नहीं है। संन्यासी नहीं कुछ सद्गृहस्थ लोग यदि सामने आएं और इस कार्य को करने का बीड़ा उठा लें -तभी उसका कुछ फल हो सकता है। यही है इस 'एक नया युवा-आंदोलन' रूपी युवा -महामण्डल के आविर्भूत होने की पृष्ठभूमि ! " ('जीवननदी के हर मोड़ पर '43'  - 'इस युवा संगठन के आविर्भूत होने की पृष्ठभूमि' पृष्ठ 126)  
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            nabani da : घर में विवेकानन्द का वह चित्र जिसके ह्रदय में ठाकुर हैं ? अभी कहाँ है ? 
मैं रात को घर वापस गया, कागज की एक शीट ली, और `Artist : Sudhir Mirage ' द्वारा बनाई गयी स्वामी विवेकानन्द के चित्र' के सामने बैठकर एक ऐसे युवा संगठन की परिकल्पना को कागज पर उतार लिया;  ~ जो सम्पूर्ण भारत में 'स्वामी विवेकानन्द - कैप्टन सेवियर - ` Be and Make और चरैवेति -चरैवेति'  वेदान्त लीडरशिप ट्रेनिंग परम्परा ' में  स्वामी विवेकानन्द की 'Man-making and Character-building education ' (मनुष्य-निर्माण और चरित्र-निर्माणकारी शिक्षा) का प्रचार -प्रसार करने के लिए `अखिल भारत युवा प्रशिक्षण शिविर ' आयोजित करने में सक्षम होगी। पहले - बस एक छोटी सी योजना को कागज पर उतार लिया कि , कैसे एक युवा संगठन है, जो पूरे भारत में काम करेगा ...?
[युवा संगठन की शिविर योजना को कागज पर उतार लेने की घटना का जिक्र -जीवन नदी के हर मोड़ पर' पुस्तक में भी नहीं है। मैं जब दादा के शरीर त्यागने के बाद 'भुवन भवन', खड़दह, स्थित दादा के कमरे में गया था तब पहली बार मैंने स्वामीजी के प्रेरणा दायी इस चित्र 👇 को लगा हुआ देखा था ]   


  
`Artist : Sudhir Mirage ' द्वारा रचित विवेकानन्द का चित्र 

 फिर आपस में निर्णय लिया गया कि विभिन्न स्थानों में श्रीरामकृष्ण-विवेकानन्द भावधारा के ऊपर कई छोटे -छोटे संगठन कार्य कर रहे हैं , उनमें से जो लोग यहाँ (अद्वैत आश्रम) में आना-जाना करते हैं , उनमें से कुछ लोगों को बुलाकर अद्वैत आश्रम में एक मीटिंग आयोजित किया जाए ; और उस बैठक में यह विचार किया जाये कि युवाओं को साथ लेकर इस योजना को कैसे क्रियान्वित किया जा सकता हैं ?    

उस प्रथम बैठक में कितने लोग आये थे , मुझे ठीक से याद नहीं है -फिर भी कुल 12 -14 व्यक्ति से अधिक नहीं रहे होंगे। आपस में विचार-विमर्श हुआ , बैठक में मैंने भी अपनी कार्य योजना को उनके समक्ष  रखा। वे सभी लोग मेरे लिए अपरिचित थे और मैं भी उनके लिए अपरिचित था।  उनमें से कोई भी व्यक्ति मुझको नहीं पहचानता था, लेकिन सभी ने एक स्वर में कहा कि आपने अभी जो कहा (आपकी परिकल्पना) वह तो बहुत अच्छा और उपयोगी है। एक इससे भी बड़ी बैठक बुलवाई जाये , और उस आगामी मीटिंग को आहूत करने के लिए वे लोग बोले , हमलोग आपको ही कन्वेनर बनाते हैं। कन्वेनर बनकर फिर से एक नोटिस देकर पुनः कुछ और लोगों को बुलाया गया। दुबारा एक मीटिंग हुई, उसमें भी कितने लोग उपस्थित थे मुझे ठीक से याद नहीं, किन्तु शायद पच्चीस-तीस लोग तो रहे ही होंगे। 
 ..... और उनकी अद्वैत आश्रम में जो प्रथम बैठक (??) थी, उसमें जो लोग उपस्थित थे, उसमें से एक लड़का दीपक रंजन सरकार (दीपक दा)  की ओर इशारा करते हुए--- यहाँ अभी (2011 के वार्षिक शिविर में) उपस्थित है। वह उस समय अद्वैत आश्रम के निकट एक कॉलेज में पढ़ रहा था (या अद्वैत आश्रम के निकट उनका घर था ?), इसलिए वह अद्वैत आश्रम में आया -जाया करता था, वह मौजूद था और एक या दो अन्य लोग, वे भी रामकृष्ण मठ और मिशन में जाते थे, वे वहां मौजूद थे।  इसलिए उन सभी लोगों ने कहा- " जिस प्रकार स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रतिपादित 'मनुष्य -निर्माण और चरित्र-निर्माणकारी शिक्षा' की पृष्ठभूमि में ठाकुर हैं, माँ हैं- (जिस प्रकार दक्षिणेश्वर, काशीपुर उद्यान बाड़ी  में गुरुगृह वास या 'गुरु-परम्परा ' में दिया गया श्रीरामकृष्ण देव का प्रशिक्षण और ठाकुर के सन्तान शिष्यों के भोजन प्रबंधन के साथ माँ सारदा देवी का आशीर्वाद है !) ठीक उन्हीं भावों की बुनियाद पर, युवाओं के जीवन को गठित करना अनिवार्य है। और इसी कार्य को पूरा करने के लिए यह संस्था गठित की जाएगी। और अगर आप इस संगठन का नेतृत्व करते हैं, तो आपको ही पूरा प्रभार लेना होगा, योजना आदि बनाना होगा । हम लोग आपकी यथासंभव मदद करेंगे, यदि आप तैयार हैं , तो चलिए एक संगठन शुरू करते हैं।" 
[ Remoulding of their character, remoulding  of their mind,..हो सकता है ? I went back home at night,took a sheet of paper, and before the port rate of Swami Vivekananda - just a short planing, how to have a youth organization, which will work throughout India...? हाँ, and then we came, and their was a meeting at Adwaita Ashram, the persons who were present their one {pointing to Dipak da, the Dipak Ranjan Sarkar}  is hereHe was studying in a college now, so he used to come to Adwait Ashram, he was present and one or two other people, they also used to go to Ramakrishna Math and Mission, they were present there, so they all said-" If you take the lead, you have to take the charge, the planing etc. you have to do, we will help you as far as we can, so let us start one organization." They did not know many things, so gradually the registration of the Organization,..... 
विवेकानन्द युवा महामण्डल के अभी तीन सौ पंद्रह केंद्र कार्यरत हैं :...  तो वहाँ उस मीटिंग में बात हुई, कि उस संस्था का नाम क्या होगा ?  इस संगठन का नाम क्या होगा ? जब यह प्रश्न मुझसे पूछा गया तो मैंने कहा , देखिये नाम के विषय में मुझे ज्यादा कुछ कहना नहीं है कि यह नाम रखना पड़ेगा या वह नाम रखना होगा ~ 'गोलाप जे नाम डाको , गन्ध वितरे !' (गुलाब को जिस नाम से पुकारें , वह तो सुगंध ही बिखेरता है !) फिर भी , मेरा केवल यही कहना है कि इस संघ के नाम में 'विवेकानन्द ' और रहना आवश्यक है। and because that it is an youth organization, this youth, this is for the youth... और चुंकि यह एक युवा संगठन है, और इन युवाओं के लिए है, इसलिए इसके नाम में 'विवेकानन्द' और 'युवा' इन दोनों बातों का उल्लेख इसमें स्पष्ट रूप से रहना चाहिए। अर्थात 'विवेकानन्द युवा ' --इतना रहना आवश्यक है। किसी व्यक्ति ने कहा - यदि इसको 'महामण्डल ' कहा जाय ? मैंने कहा , कहा जा सकता है। इसीलिए संस्था का नाम रखा गया- `विवेकानन्द युवा महामण्डल। '  
उसके बाद चर्चा होने लगी कि इस संगठन की परिधि कहाँ तक होगी ? यह संस्था कितने प्रान्तों में कार्य करेगी ? मैंने कहा कि, " देखून जदि एई काज करते हय, एकटा बड़ काजेई हात दिते जाउया हछे बले मने हय- एटा एकटा शुधू कलकाता वा शुधू पश्चिमबंगे करले फल हबे ना ! एटा सारा भारतवर्षे हउय़ा दरकार ! "  - देखिये, यदि हमलोग सचमुच ही इस कार्य को पुरा करने का बीड़ा उठा रहे हैं, तब तो मुझे यही अनुभव होता है कि, हमलोग किसी बहुत बड़े ( महान ) कार्य में हाथ डालने जा रहे हैं, अतः इस संस्था को केवल कलकाता य़ा केवल पश्चमी बंगाल तक ही सीमित कर देने से कोई विशेष फल नहीं होगा, इस कार्य को सम्पूर्ण भारतवर्ष में फैला देना आवश्यक है ! "और चूँकि इसका area of work होगा all of India, so सबों ने कहा कि क्या नाम में  ' अखिल भारत ' रखा जाय? मैंने कहा रखिये। इसी लिये बहुत बड़ा नाम रखा गया-" अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल " नाम के पीछे का इतिहास इतना ही है।    
और इस प्रकार कंसटीच्युशन बनाना, तथा इस युवा-संगठन के गठित होने का समाचार कैसे कैसे दूसरों के पास पहुँचाना, वह सब मैं करने लगा। जहाँ जहाँ परिचित लोग थे, सभी को पत्र के द्वारा इसका संवाद भेजने लगा, देखिये ऐसे ऐसे उद्देश्य को रख कर एक संगठन बना है। महामण्डल गठित हो जाने के बाद जब स्वामीजी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में एक शोभा-यात्रा (जुलुस) की समाप्ति के बाद 'सार्वजनिक सभा ' आयोजित करने की बात उठी। तब किसी ने कहा , उस अवसर पर लेक्चर देने के लिए किस विशिष्ट व्यक्ति को आमंत्रित किया जाय ? तब दो-चार लोगों के नाम सामने आये , परन्तु  परन्तु बहुत से लोगों को वे नाम जँचे नहीं।  तब मैंने कहा, क्या रमेश मजुमदार महाशय यदि व्याख्यान दें तो ठीक होगा ? सभी खुश हो गये- अरे अरे रमेश मजुमदार महाशय के बोलने से नहीं होगा ? ठीक है, तो मैं उनको कहूँगा।  वे आयेंगे क्या ?  मैंने कहा, मैं उम्मीद रखता हूँ कि उनको अनुरोध करने से वे आयेंगे। 
nabani da :" Nabani, bring Swami Vivekananda to maidan ! "
 मेश मजुमदार महाशय [Great historian Dr. R.C. Majumdar (1888 - 1980)]  को एक फोन किया।  उधर से बोले, ' नवनी, क्या समाचार ? 'मैंने बताया, हमलोगों का स्वामी विवेकानन्द के नाम पर युवाओं के लिये  इस प्रकार का एक संघ स्थापित किया है, हमलोग मैदान ( कलकाता का मयदान - धरम-तल्ला) में स्वामीजी का जन्मदिन मनाना चाहते हैं, वहाँ पर एक सभा होगी; क्या आप उस सभा में बोलने के लिये आयेंगे ?" हाँ, निश्चय ही आऊंगा ! कब होने वाला है ? " मैंने तारीख बतला दिया। उन्होंने फिर पूछा - " मयदान में कहाँ पर होगा ?  मैंने कहा ठीक मनुमेंट (शहीद मीनार)   के नीचे।  तो फिर आपको लाने के लिये मैं किसी को भेज दूंगा ? वे बोले, ' नहीं, नहीं, किसीको भेजने की जरुरत नहीं है, ठीक मनुमेंट के नीचे  ही तो ?  मैं खुद वहाँ पहुँच जाऊंगा! '  वे स्वयम वहाँ आये और व्याख्यान देकर चले गये- इसी तरह का परिचय था। किन्तु स्वामीजी के जन्मदिन पर मैदान ( धरमतल्ला मैदान ) में सार्वजनकि सभा आयोजित करने का अनोखा विचार (हसरत, अरमान) सबसे पहले स्वामी रंगनाथानान्दजी के मन में आया था। 
एक दिन उन्होंने मुझसे कहा- " Nabani, bring Swami Vivekananda to maidan ! "  वहाँ पर केवल राजनीतिक मीटिंग होते हुए ही लोगों ने देखा है, तुम वहाँ पर स्वामीजी को ले आओ ! वहाँ उपस्थित जनसमुदाय के बीच स्वामीजी की वाणी को सुनाओ ! तब से शुरू होकर आज तक, कितने ही वर्ष बीत चुके हैं- वह 'आम-सभा' जिसमे उपस्थित व्यक्ति सचमुच लाभ उठा सकते हैं, वहाँ होता चला आ रहा है। किन्तु हाल-फ़िलहाल में, एक-दो वर्षों से, वह सभा धरमतल्ला में न होकर हेदुआ पार्क में (स्वामीजी के घर के निकट ) आयोजित होती है
mohammad ali park-फॉरेन एक्सचेंज , जालान एक्सपोर्टर : फंड कलेक्शन   
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nabani da : महामण्डल की कार्यकारिणी समिति और उद्देश्य -कार्यक्रम:  महामण्डल के प्रथम अध्यक्ष बने विशिष्ट शिक्षाविद और दर्शन के प्राध्यापक अमियदा (श्री अमिय कुमार मजूमदार)। [बंगला पेज - 83/ हिन्दी पेज -130,परिच्छेद 44]     
अब सभी लोगों ने कहा इसके बाद जो भी योजना बनानी हो , या जो कुछ कार्यक्रम करना है उसका निर्णय आप ही करें। उस समय कार्यकारिणी की नियमित बैठकें आदि नहीं होती थीं। अब मेरे मन में निरंतर आगे की परिकल्पना के विचार उठने लगे। पहले मन में प्रश्न उठा कि महामण्डल के आदर्श-पुरुष (Ideal) कौन होंगे ? स्वाभाविक उत्तर है कि युवा महामण्डल के आदर्श-पुरुष (साँचा य़ा Role -Model) तो चिर-युवा स्वामी विवेकानन्द ही हो सकते हैं ! क्योंकि स्वामी विवेकाननन्द की (मनुष्य-निर्माण और चरित्रनिर्माणकारी) विचारधारा की बुनियाद पर ही युवाओं के बीच इस प्रकार का कार्य करना होगा, जिससे उनके भीतर सुमति (सदबुद्धि) वापस आजाय, य़ा युवा-वर्ग सुमति ( आत्मश्रद्धा ) प्राप्त करने में सक्षम हो जाएँ ! इस युवा-संगठन का मूल कार्य तो यही है। इसीलिये उस नव आविर्भूत युवा संगठन के आदर्श हैं  - स्वामी विवेकानन्द!  और (महामण्डल का  कार्यक्षेत्र य़ा)  कार्य की परिधि है - सारा भारतवर्ष
प्रश्न उठा यह संगठन किस प्रकार अपना कार्य करेगा ? स्वामीजी बार बार यही कहते थे कि, `Man-making and Character Building Education'- सभी युवाओं को देनी होगी ! क्योंकि प्रचलित शिक्षा व्यवस्था में युवाओं को चरित्र-निर्माण की पद्धति नहीं सिखाई जाती है। आज (मोदी जी के पूर्व का स्वतंत्र भारत) भी देश में ऐसी कोई राष्ट्रीय शिक्षा नीति नहीं है जिसमे - मनुष्य-निर्माण एवं चरित्र-गठन कराने की शिक्षा देने की व्यवस्था हो, और पहले (गुलामी की मानसिकता, औपनिवेशिक मानसिकता या 'Colonial Mindset'  से ग्रस्त भारत में) तो खैर ऐसी शिक्षा देने का सवाल ही नहीं था। 
उसके भी और पहले जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्कूल में पढ़ते थे , या उन्हीं के जैसे अन्य राष्ट्रभक्त छात्र लोग स्कूल में पढ़ते थे, जो भारत माता के कल्याण के लिए अपने प्राणो को भी न्योछावर कर देने को प्रस्तुत रहते थे।  उस समय के शिक्षक और उनके द्वारा दी गयी शिक्षा  की तो -बात ही अलग थी। उनके समय के शिक्षक एक अलग प्रकार की शिक्षा (देशभक्ति की प्रेरणा) ही उनलोगों को देते थे।   किन्तु यह चीज (3 'H '- विकास की शिक्षा) तो उनके समय में भी नहीं थी ! बीसवीं सदी के साठवें -सत्तरवें दशक तक भी इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था का कोई उल्लेख नहीं था।  
तब मुझे ही युवा प्रशिक्षण शिविर के पाठ्यक्रम निर्धारित करने का चिन्तन (विवेकानन्द साहित्य का मन्थन कर) करना पड़ा।  और  स्वामीजी द्वारा प्रदत्त मनुष्य-निर्माण एवं चरित्र-गठन की पद्धति [ 'Be and Make', चरैवेति-चरैवेति इत्यादि] को ढूंढ़ कर महामण्डल की कार्यपद्धति के रूप में निर्धारित कर लिया गया। फिर यह तय हुआ कि "  स्वामी विवेकानन्द निर्देशित शिक्षा-प्रणाली " के अनुसार ' चरित्र-गठन ' एवं ' मनुष्य- निर्माण ' के कार्य को सारे भारतवर्ष में फैला देना,  ही इस संघ का कार्य  होगा ! 
अब इसका एक Leaflet (बंगला /अंग्रेजी पत्रक) लिखा गया और  उसको छपवा कर परिचित लोगों के बीच वितरित कर दिया गया। उसी  Leaflet का  प्रथम हिन्दी प्रारूप 1988 में तैयार किया गया ! और बिहार -झारखण्ड के सभी विद्यालयों , विश्वविद्यालयों में वह पत्रक, शिविर-नियमावली, आवेदन -प्रपत्र आदि को पोस्ट के द्वारा भेज दिया गया।}  
फिर 'महामण्डल का आदर्श और उद्देश्य' शीर्षक देकर एक छोटी सी पुस्तिका तैयार की गयी। ये सभी कार्य ऑफिस के टेबल पर बैठ कर ही करने पड़ते थे। बहुत से लोग पूछते थे- आप ऑफिस के कार्य कैसे निबटाते हैं ?  ऑफिस के काम की मैंने कभी उपेक्षा नहीं की है, उस समय तक नौकरी करते हुए मुझे कई वर्ष हो चुके थे।  क्योंकि बहुत कम उम्र में ही मुझे नौकरी में आना पड़ा था, एवं विभिन्न स्तर पर मैंने कार्य किया है। उस समय जितने कार्यों का दायित्व मेरे ऊपर था, उन समस्त कार्यों का उचित ढंग से निष्पादन करने में एक पुरा दिन लग जाना तो दूर रहा, सारे कार्य दिन के एक-चौथाई समय में ही समाप्त हो जाते थे। 
इसीलिए कह सकता हूँ कि ऑफिस के काम के प्रति कोई लापरवाही दिखाए बिना, ऑफिस के टेबल पर बैठ कर ही मनःसंयोग, चरित्र-गठन, चरित्र के गुण आदि कई महामण्डल पुस्तिकाएँ लिखी गयीं हैं। घर में वापस लौटने के बाद, रात्रि में भी काम करना पड़ता था, कभी कभी तो देर रात (डेढ़-दो बजे तक भी) तक काम करना पड़ता था।  
nabani da:`गुरुगृह-वास शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा' में युवा प्रशिक्षण शिविर की आयोजन पद्धति :  
अब प्रश्न उठा कि स्वामीजी की शिक्षा पद्धति- के अनुसार युवाओं को 'मनुष्य बनने और बनाने' की शिक्षा कैसे दी जाएगी ? हमलोग भी कोई स्कूल या कॉलेज तो नहीं खोलेंगे?.... तब यह निर्णय लिया गया कि `महामंडल ' के तत्वाधान में ~ अर्थात ' गुरुगृह-वास शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा'  में समय-समय पर 'युवा प्रशिक्षण शिविर' आयोजित किये जायेंगे! इसके लिये पहले युवाओं का आह्वान करके प्रशिक्षण शिविर परिसर में एकत्र करके रखा जायेगा।`We shall send clarion call to the youth' ~  अर्थात हमलोग स्वामी विवेकानन्द की उस छवि को, जिसमें ध्यानस्थ स्वामीजी के ह्रदय में ठाकुर विराजमान हैं, को - अपने सामने रखकर, युवाओं का आह्वान करेंगे ! और प्रशिक्षण स्थल पर ही छात्रों और शिक्षकों के लिए एक साथ रहने और खाने की सुन्दर व्यवस्था की जाएगी।  
फिर प्रातः काल (सूर्योदय के समय महामण्डल ध्वज स्थल के सामने बने) उपासना स्थल (जिसे-Auditorium- सभागार -कहा जायेगा) के व्यासपीठ के सामने युवाओं को एकत्रित कर;  निम्नलिखित विषयों, यथा `चरित्र का निर्माण कैसे करें?',`चरित्र कहते किसे हैं ?', 'मनुष्य' तो हूँ ही, फिर मनुष्य बनना किसे कहते हैं? मानुष कि कोरे होवा जाये ? अर्थात मनुष्य किस प्रकार बना जाता है ? केवल `मनुष्य का ढाँचा' रखने वाला कोई व्यक्ति यथार्थ मनुष्य कैसे बन सकता है? [क्या भेंड़-गति को प्राप्त सिंह-शावक को प्रशिक्षण के द्वारा वेदान्त केसरी में रूपांतरित किया जा सकता है? मनुष्य-निर्माण की पद्धति आखिर है क्या? क्या प्रशिक्षण के द्वारा किसी पशु-मानव (घोरस्वार्थी व्यक्ति) को धीरे-धीरे `मनुष्य' में (पूर्णतः निःस्वार्थी मनुष्य में) रूपांतरित किया जा सकता है? पूर्णतः निःस्वार्थपर मनुष्य या ब्रह्मविद नेता बनने और बनाने की पद्धति क्या है?] कोई व्यक्ति  यदि  सच्चा मनुष्य (ब्रह्मविद महात्मा, भ्रममुक्त नेता इस जीवनमुक्त शिक्षक) बन गया तो वह समाज के लिए क्या कर सकता  है? सर्वोत्तम समाज-सेवा  किस प्रकार की जाती है ? -......इसी प्रकार सूर्योदय से लेकर रात्रि-विश्राम  तक पूरे दिन का एक कार्यक्रम बना कर, उपरोक्त विषयों की शिक्षा दी जाएगी।
        इस प्रकार से स्वामी विवेकानन्द द्वारा निर्देशित 'गुरुगृह-वास वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा' [Gurugriha-Vas Vedanta Leadership-Training Tradition] में छात्रों और शिक्षकों को छह दिनों तक एक साथ रख कर; 'मनुष्य-निर्माण और चरित्रनिर्माणकारी'  प्रशिक्षण देने की व्यवस्था महामण्डल के सिवा आज भी कहीं और नहीं है। उस समय (1967 तक ) भी नहीं थी। 
 [Now the question was, "Then how shall we to teach? If We also will  open schools or colleges?.... Then it was decided that there would be a periodical training camps in Mahamandal. We shall send clarion call to the youth, and collect them at the training site with arrangements of living and fooding. (ie. We shall keep in front of us that image of Swami Vivekananda, in which Thakur is seated in the heart of the meditating Swamiji; and then Will call upon the youth, and collect them at the training site with accommodation and food arrangements.) Then in the morning, by gathering the youth in front of the Vyasapeetha of the Place of Worship (called Auditorium) , the following subjects - how to build character? What is the character?  How can someone who has only the frame of man become a real human being? If a person becomes a true human being (Mahatma), what can he do for the society? .. .. etc. subjects will be taught.
Thus by keeping the students and teachers together for six days in the 'Gurugriha-Vas Vedanta Leadership-Training Tradition ' as directed by Swami Vivekananda; There is no system for imparting 'Man-Making and Character-building' training even today except the Mahamandal. And It was not even at that time (until 1967).

 "तार पोरे की भाबे शिक्खा देवा होबे ? अमारा तो स्कूल कॉलेज कोरबो ना। तोखन ठिक होलो जे महामण्डले प्रशिक्षण शिबिर होबे। आमरा युवकदेर आह्वान कोरे डेके एने सेखाने (प्रशिक्षण शिविरे)  तादेर थाका ओ खाबार व्यवस्थासह प्रशिक्षण स्थले संग्रह कोरबो।".... आर आमरा एई सब विषयेर शिक्खा देबो जे ....'चरित्र गठन कि करे करते होय ?', `चरित्र काके बोले ?',`मानुष कि करे होवा जाय ?', `मानुष कि करे होते होय ?', `मानुष कि करते पारे समाजेर जोन्ने ?'  --ए सबेर शिक्खा देवा होबे ! एटा कोथाओ एखनओ नेई , तखनओ छिलो ना !  " ]  
nabani da : 'मनुष्य ' बनने के लिए पहले 'शरीर' और 'ह्रदय' का विकास धीरे -धीरे करें (हड़बड़ी में नहीं !)
जब कोई युवा धीरे -धीरे स्वयं मनुष्य बनने का प्रयत्न करने के साथ-साथ,दूसरों को भी मनुष्य बनने में सहायता करने का प्रयास करता है, तब क्या होता है ? उस पद्धति की व्याख्या करते हुए, स्वामीजी ने तो कहा है, बार बार कहा है कि, मनुष्य के तीन मौलिक `components' ( अवयव य़ा घटक) हैं- शरीर , मन और ह्रदय ! हमारे देश में इन तीनों को कई जगह पर -शरीर, मन और आत्मा के नाम से भी सम्बोधित किया गया है। मनुष्य के इन तीन प्रमुख अवयवों को विकसित करने की बात तो कही गयी है,  किन्तु 'आत्मा' के लिए 'ह्रदय' का सम्बोधन प्रचलित नहीं था। किन्तु स्वामीजी साधारणतः शरीर, मन, और आत्मा नहीं कहते थे। क्योंकि- आत्मा  क्या है ? - इसको साधारण मनुष्यों को समझा देना उतना सहज नहीं है। जबकि ह्रदय (दिल) क्या है , इसे हर कोई समझता है ! ह्रदय वह वस्तु है जिसे आत्मा को अभिव्यक्त करने वाला 'यन्त्र ', या आत्मा को अभिव्यक्त करने वाला 'माध्यम' भी कहा जा सकता है किसी व्यक्ति की आत्मा किस प्रकार कार्य कर रही है;  इस बात को उस मनुष्य के 'ह्रदय' से समझा जा सकता है। ह्रदय को सहानुभूतिशील होना चाहिए , मनुष्य का ह्रदय दूसरों के दुःख में दुःखी होगा, दूसरों के आनन्द को देखकर आनन्दित होगा। समस्त 'विश्व के साथ एकात्मता का बोध' या 'वसुधैव कुटुंबकम' का बोध रखने वाला ह्रदय स्वभावतः  विस्तृत और विशाल होगा !  
   लेकिन केवल ह्रदय का विकास करने, या विस्तृत बना लेने से ही तो काम नहीं चलेगा। विकसित ह्रदय को अपने भीतर धारण करने वाला शरीर भी स्वस्थ-सबल रहना चाहिए। ह्रदय की भावनाओं को कार्यरूप देने के लिए स्वस्थ शरीर भी आवश्यकता रहती है। इसीलिये शरीर को सख्त, सबल, निरोग, कर्मठ रखना होगा।  सख्त, सबल, निरोग, कर्मठ शरीर बनाने के लिये क्या आवश्यक है ? नियमित रूप से व्यायाम आदि करना और पौष्टिक आहार आवश्यक है। इसीलिये खाली हाथ का व्यायाम, योगासन आदि करने का प्रशिक्षण देना भी इस मनुष्य-निर्माणकारी शिक्षा का एक मुख्य अंग होगा।
[महामण्डल के पूर्व उपाध्यक्ष में से एक- पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध बॉडी बिल्डर नीलमणि दास ('Iron-man' Nilmoni Das) महामण्डल के प्रथम शारीरिक प्रशिक्षक थे। अभी उनके सुपुत्र श्री स्वप्न दास महामण्डल के व्यायाम शिक्षक हैं। 
[What happens when a young man, while slowly trying to become a Man himself, tries to help others to become human as well? While explaining that method, Swamiji has said, time and again, that there are three fundamental 'components' (organs ) of man - body, mind and heart!In our country, these three have also been addressed in many places - body, mind and soul.In our shastras it has been said to develop these three main components of man, but to address the 'Soul' as 'Heart'  was not prevalent.But Swamiji did not simply say body, mind, and soul. Because what is soul? It is not that easy to explain this to ordinary people.Whereas what is a heart ? (दिल ही टूट गया?), it is understood by everyone! The heart is that thing which can also be called the 'Instrument' of expressing the soul, or the 'medium' of expressing the soul.How is the soul of a person functioning; This thing can be understood from the 'heart' of that man. The heart should be sympathetic, the heart of man will be sad in the misery of others, will rejoice at the joy of others. The heart having the vision of 'Vasudhaiva Kutumbakam', the 'sense of oneness' with the whole world', will naturally be wide and spacious!
But merely developing or expanding the heart will not do.The body which holds a developed heart within itself, should also be healthy and strong.A healthy body is also necessary for, giving the practical shape of the feelings of the heart. That is why the body has to be kept strong,rigorous, healthy and hardworking. What is needed to keep a strong,rigorous, healthy and hard working body?Regular exercise and nutritious diet are essential. That is why training to do empty-handed exercises, yogasanas etc. will also be a main part of this man-making education.

[धीरे धीरे तखन मानुष करते गेले कि होय ? स्वामी जी तो बोलेचेन, बार बार बोलेछेन जे , मानुषेर तिनटि जिनिस - देह , मन आर ह्रदय। अनेक समय आमादेर देशे देह, मन आर आत्मा बोला होय। एटा बोला होय , किन्तु तिनटे कोथा जे बोला होतो, ना ता नोय। किन्तु स्वामीजी देह, मन आर आत्मा बोलतेन ना। कारण आत्मा कि ? --सेटा साधारणके बोझानो अतो सोजा नोय। किन्तु ह्रदयटा सबाई बोझे। ह्रदय होछे ता जाके आत्मार प्रकाशेर यंत्र बोला जेते पारे , माध्यम'ओ बोला जेते पारे। कार आत्मा कि रकम भावे काज करछे, सेटा बोझा जाबे मानुषेर ह्रदय दिये। ह्रदय सहानुभूतिशील होबे, परदुःखे दुःखी होबे, अपरेर आनन्दे आनन्दित होबे , विस्तृत ह्रदय होबे,जगत जोड़ा ह्रदय होबे। प्रत्येक मानुषेर जगत जोड़ा ह्रदय होबे।  
किन्तु शुधु हृदयेरटा होले तो होबे ना। ह्रदयटा के धोरबार जन्ये शरीरटा तो आछे ? दरकार थाके। काजेई शरीरटा शक्त ,सबल , निरोग , कर्मठ होबे। शक्त , सबल , निरोग , कर्मठ शरीर करते गेले कि दरकार ? व्यायमादिर प्रयोजन आछे। काजेई व्यायामादि एई शिक्खार एकटा अंग होबे।

nabani da : 'मन' को वश में किये बिना 'शरीर और ह्रदय' का विकास अधूरा है :
उसी प्रकार हमलोगों का मन भी है; बल्कि मन ही तो सब कुछ है। हमारे शास्त्रों में [अमृतबिन्दु उपनिषद् में (२) कहा भी गया है –मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।  बन्धाय विषयासंगो मुक्त्यै निर्विषयं मनः।। “मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का भी कारण है | इन्द्रियविषयों में लीन मन बन्धन का कारण है और विषयों से विरक्त मन मोक्ष का कारण है |”  इस मन के द्वारा ही हमलोग प्रत्येक कार्य को करने में समर्थ होते हैं।  किन्तु हमलोग अपने मन की हमलोग कोई सुध नहीं लेते हैं, उसकी उपेक्षा करते हैं। इसीलिये मन हमलोगों के द्वारा उसकी जो इच्छा हो वही करवा लेता है, और उसके बहकावे में आकार  हमलोग विवेक-विचार किये बिना ही मन जो कुछ चाहता है, उसीको पाने के लिये दौड़ जाते हैं। 
 हमलोग मन के दास (गुलाम) बन गये हैं, किन्तु हमें मन को अपना दास बनाना होगा जिस प्रकार मनुष्य अर्थ का भी दास नहीं होता, उसका प्रभु होता है। किन्तु अभी रूपया ही मनुष्य का प्रभु बन गया है, रुपया मनुष्य का दास नहीं है।  जिस प्रकार हम सभी लोग इस समय रूपये के दास बन गये हैं, उसी प्रकार हम सभी लोग मन के भी दास बन गये हैं। मन हमारा दास नहीं है, वह हमारे आदेश के अनुसार कार्य नहीं करता। इसीलिये इस 'Arrogant mind' या अहंकारी मन को पहले अपने वश में लाना होगा ! इस अभिमानी मन को अपने वश में कैसे लाऊंगा, उसकी पद्धति क्या है ? इस मनःसंयोग की पद्धति को ही महामण्डल द्वारा आयोजित युवा प्रशिक्षण शिविर में सिखाया जायेगा।
[ स्वामी विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर गुरुगृह-वास वेदान्त शिक्षक-परम्परा में प्रशिक्षित आचार्य C-IN-C `नवनिदा'-.....द्वारा आयोजित युवा प्रशिक्षण शिविर में मनःसंयोग (विधिवत रूप से) सिखाया जायेगा।] 
[सेई रकम आमादेर मन ; मनई तो सब। ~ मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । मनई मानुषेर बन्धनेर कारण, मुक्तिरओ कारण। एई मनटा के दिये आमरा सबई करते पारी। किन्तु मनटा के आमरा अवहेला करि बोले मन आमादेर दिए जा इच्छा ताई कराय , बिचार विहीन होय। आमरा मनेर दास , किन्तु मनके आमादेर दास करते होबे। जेमन अर्थ मानुषेर प्रभु होछे दास होछे ना। मानुष टाकार दास , टाका मानुषेर दास नोय। आमरा सबाई टाकार दास जेमन , तेमन आमरा सकले आमादेर मनेर दास। मन आमादेर दास नोय , मन आमादेर कथा शुने चले ना। काजेई एई दुर्बिनित मन के निजेर आयत्ते आनते होबे , सेटाके कि करे कोरा जाय ? तार पद्धति कि ? प्रशिक्खन शिविर शेखानो होबे। ]                             
 nabani da : Leadership Training- `नेता या महात्मा ' का अर्थ क्या है ?  
 'मन' और 'शरीर' के साथ -साथ हमें अपने 'ह्रदय' का भी विस्तार करना होगा। यदि इन तीनों अवयवों को ठीक -ढंग से विकसित कर लिया जाय , तभी यथार्थ मनुष्य निर्मित होता है। इसीलिये स्वामीजी एक सूत्र में - three 'H' विकास की बात कहते हैं! ' HAND ' standing for the body, ' HEAD ' standing for one 's itellect and mind; तथा ' HEART ' जो मनुष्य की आत्मा को व्यक्त करने का माध्यम (Instrument) है, जिसके द्वारा मनुष्य की आत्मा का परिचय प्राप्त होता है, इन तीनों को सुसमन्वित ढंग से विकसित करने का अभ्यास करना होगा ।  
जैसे किसी- किसी मनुष्य को ' महात्मा ' कहा जाता है - ' महात्मा ' का अर्थ क्या है ? वैसा मनुष्य  जिसका ह्रदय अति विस्तृत हो गया हो। ऐसा ह्रदय जो सबों के सुख-दुःख को अपने ही सामान समझ सकता हो, दूसरों के सुख-दुःख को अपने ह्रदय में अनुभव कर सकता हो। और जो दुःख-कष्ट में गिरा हुआ है, उसके दुखों को दूर करने के लिये, उसकी सहयता करने के लिये जिसका ह्रदय उसे प्रेरणा देता हो, उसे उदबुद्ध कर देता हो, जाग्रत कर देता हो ! और वह जाग्रत मनुष्य (ब्रह्मविद, पूर्णतः निःस्वार्थी नेता) अपनी शारीरिक शक्ति, अपनी आर्थिक शक्ति, अपना सब कुछ वह दूसरे मनुष्यों का दुःख-कष्ट दूर करने में उपयोग करता है, प्राणों को भी न्योछावर कर देता है।
[मानवजाति के मार्गदर्शक नेता , जीवनमुक्त शिक्षक या Leadrship के ऊपर -वृक्षों के माध्यम से श्रीकृष्ण का ग्वालबालों को सुंदर उपदेश - (श्रीमद्भागवत महापुराण, दशम स्कन्ध, अध्याय 22, श्लोक 32 -35 में)  

पश्यतैतान् महाभागान् परार्थैकान्तजीवितान् ।*
वात वर्षा तपहिमान् सहन्तो वारयन्ति नः ॥ ३२ ॥*

अहो एषां वरं जन्म सर्व प्राण्युपजीवनम् ।*
सुजनस्येव येषां वै विमुखा यान्ति नार्थिनः ॥ ३३ ॥*

पत्र पुष्प फलच्छाया मूल वल्कलदारुभिः ।*
गन्धनिर्यासभस्मास्थि तोक्मैः कामान् वितन्वते ॥ ३४ ॥*

एतावत् जन्मसा फल्यं देहिनामिह देहिषु ।
प्राणैरर्थैर्धिया वाचा श्रेय एवाचरेत् सदा ॥ ३५ ॥*

एक दिन भगवान श्रीकृष्ण बलराम जी और ग्वालबालों के साथ गौएँ चराते हुए वृन्दावन से बहुत दूर निकल गये । ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें बहुत प्रखर हो रही थीं। भगवान श्रीकृष्ण ने वृक्षों को छाया करते देख ग्वालबालों को सम्बोधन करके कहा- ‘मेरे प्यारे मित्रों ! देखो, ये वृक्ष कितने भाग्यवान हैं! इनका सारा जीवन केवल दूसरों की भलाई करने के लिये ही है। ये स्वयं तो हवा के झोंके, वर्षा, धूप और पाला- सब कुछ सहते हैं, परन्तु हम लोगों की उनसे रक्षा करते हैं । मैं कहता हूँ कि इन्हीं का जीवन सबसे श्रेष्ठ है। क्योंकि इनके द्वारा सब प्राणियों को सहारा मिलता है, उनका जीवन-निर्वाह होता है।'
जैसे किसी सज्जन पुरुष के घर से कोई याचक ख़ाली हाथ नहीं लौटता, वैसे ही इन वृक्षों से भी सभी को कुछ न कुछ मिल ही जाता है। ये अपने पत्ते, फूल, फल, छाया, जड़, छाल, लकड़ी, गन्ध, गोंद, राख, कोयला, अंकुर और कोंपलों से भी लोगों की कामना पूर्ण करते हैं। मेरे प्यारे मित्रों! संसार में प्राणी तो बहुत हैं; परन्तु उनके जीवन की सफलता इतने में ही है कि जहाँ तक हो सके अपने धन से, विवेक-विचार से, वाणी से और प्राणों से भी ऐसे कर्म किये जायँ, जिनसे दूसरों की भलाई हो।*
स्वामीजी ऐसे ही- पर हितैषी वृक्षों के समान चरित्रवान, ब्रह्मविद और पूर्णतया निःस्वार्थपर - महात्मा, नेता या जीवन-मुक्त मनुष्यों का निर्माण करना चाहते थे ! स्वामीजी ने कहा था - महात्मा या हृदयवान व्यक्ति -वसंतवत लोकहितं चरन्तः,--यही मेरा धर्म है !  हर दिल जो प्यार करेगा , वो गाना गायेगा - दीवाना सैंकड़ों में पहचाना जायेगा ! -जिंदगी है क्या > सुन मेरी जान प्यार भरा दिल मीठी जुबान !  ] 
[आमादेर हृदयेर विस्तार करते होबे। एई तीनटा दिक दिये तैरी होले तबे ठीक मानुष होय। स्वामीजी सेई जन्ये three 'H' -एर कथा बोले छेन। 'HAND' standing for the body, 'HEAD ' standing for one's itellect and mind; आर `HEART' मानुषेर आत्मार माध्यम , जा दिए मानुषेर आत्मार परिचय पावा जाय। 'महात्मा ' कथाटा आछे - 'महात्मा' माने कि? जार ह्रदय अति विस्तृत। सकलेर सुख-दुःख समान भावे जे ह्रदय बुझते पारे , उपलब्धि करते पारे एवं जे दुःखे आछे , कष्टे आछे ताके सहाय करबार जन्य तार ह्रदय ताके प्रेरणा देय, उद्बुद्ध करे, जागिये तोले। तार देहेर शक्ति , तार अर्थ बल, सब किछु से मानुषेर दुःख करबार जन्य व्यव्हार करे। एई तो स्वमीजिर शिक्षा। एई रकम मानुष स्वामीजी गड़ते चेयेछिलेन , मानुष एमन चरित्रवान होबे।        
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 " हम उस मनुष्य को देखना चाहते हैं , जिसका विकास समन्वित रूप से हुआ हो -हृदय से विशाल , मन से उच्च और कर्म में महान। ( great in heart, great in mind, great in deed)  हम ऐसा मनुष्य चाहते हैं , जिसका हृदय संसार के दुःख-दर्दों को गहराई से अनुभव करता हो , जो न केवल अनुभव करता हो,वरन उसके मूल कारण को खोज लेने में भी सक्षम हो। हम चाहते हैं ऐसा मनुष्य , जो यहाँ भी न रुके बल्कि उसके हाथ इतने सबल हों, वह उन दुःख के कारणों को दूर करने में समर्थ हो। हम मस्तिष्क (Head), हृदय (Heart) और हाथों (Hand) के ऐसे ही संयोजन (3'H') को प्रत्येक युवा में देखना चाहते हैं। हम उस महाकाय मनुष्य का निर्माण क्यों न करें -जो समान रूप से क्रियाशील, ज्ञानवान और प्रेमवान भी हो ? क्या यह असम्भव है ? निश्चय ही नहीं। यही है भविष्य का मनुष्य। इस समय ऐसे तीनों अवयवों के संतुलित विकास द्वारा निर्मित मनुष्य बहुत थोड़ी संख्या में हैं। लेकिन ऐसे मनुष्यों की संख्या तब तक बढ़ती रहेगी जब तक कि समस्त संसार का मानवीकरण नहीं हो जाता। ... धर्म (शिक्षा, निःस्वार्थपरता) वह वस्तु है जो पशु को मनुष्य में और मनुष्य को देवता में उन्नत कर देता है। "  (*** उपासक और उपास्य-खण्ड-3 , २१४ ) 
[What we want is to see the man who is harmoniously developed . . . great in heart, great in mind, [great in deed] . . . . We want the man whose heart feels intensely the miseries and sorrows of the world. . . . And [we want] the man who not only can feel but can find the meaning of things, who delves deeply into the heart of nature and understanding. [We want] the man who will not even stop there, [but] who wants to work out [the feeling and meaning by actual deeds]. Such a combination of head, heart, and hand is what we want. Why not [have] the giant who is equally active, equally knowing, and equally loving? Is it impossible? Certainly not. This is the man of the future, of whom there are [only a] few at present. [The number of such will increase] until the whole world is humanized. Religion is the idea which is raising the brute into man, and man into God.) 
[ Worshipper and Worshipped -E6/49)  स्वामी विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा - Be and Make' में प्रशिक्षित जीवनमुक्त शिक्षक /नेता (C-IN-C) बनने और बनाने को ही महामण्डल युवा प्रशिक्षण शिविर के पाठ्यविषय और पाठ्यक्रम के रूप में निर्धारित कर लिया गया।`जीवन नदी के हर मोड़ पर' -परिच्छेद -44, बंगला पेज 85-86 / हिन्दी पेज -133-34, ]
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[45] * मनुष्य-निर्माण एवं चरित्र गठन *

 🔆🙏`न कृतः शीलविलयः'- प्यारे भाइयों, अपने चरित्र को कभी नष्ट न होने देना 🔆🙏

भारत की प्राचीन 'गुरु-शिष्य वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा' में 'मनुष्य निर्माण और चरित्र गठन' का प्रशिक्षण देने के कौशल को विवेकानन्द ने अपने गुरु श्रीरामकृष्ण (ठाकुर) से ही सीखा था ! ['स्वामी विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा-'Be and Make' और 'चरैवेति -चरैवेति' परम्परा' में  कोई साधारण मनुष्य एक ' चरित्रवान- मनुष्य ' के रूप में कैसे रूपान्तरित हो जाता है, इस कौशल को नवनीदा ने अपने पूर्वजन्म में स्वामी विवेकानन्द से ही सीखा था ? 
 एक साधारण मनुष्य ' चरित्रवान- मनुष्य ' में कैसे रूपान्तरित हो जाता है,  इस कौशल को महाभारत में बड़े ही सुन्दर ढंग से समझाया गया  है ! मनुष्य जो कुछ भी चिंतन करता है,  बोलता है, या कार्य  करता है;  उसका एक छाप उसके मन (चित्त) पर पड़ ही जाता है।  सदैव सद्चिन्तन,  सदवचन एवं  सद्कर्म  करते रहने से - चीत्त पर  (कार्बन कॉपी की तरह ) जो सुन्दर छाप पड़ जाता है, या चित्त पर जो गहरी लकीर (बैलगाड़ी के  पहियों से बनी लकीर की तरह) पड़ जाती है , उन  छापों के समुच्य (agglomeration) से ही मनुष्य का चरित्र गठित होता । और चूँकि सुंदर चरित्र का निर्माण सद्चिन्तन-सदवचन एवं सद्कर्मों के छापों से ही होता है ; इसीलिए स्वामीजी कहते हैं कि हमलोगों को  सदैव सत-चिन्तन ,सत-वचन तथा  सत-कर्म करते रहने का अभ्यास करते रहना चाहिये। 
nabani da : उठो, जागो ! 'औपनिवेशिक मानसिकता' (सोचने का तरीका) बदलो, और दुनिया को होशपूर्वक देखो ! (Wake up ! , Change the 'Colonial mindset ' (way of thinking),  and watch the world  Consciously.) 
हम जैसा सोचते हैं वैसे ही होजाते हैं, हमारे सोचने ने हमारा संसार निर्मित कर दिया है। सोच को बदलो ! जागो ! और होशपूर्वक देखो। सब यही रहेगा, केवल हमारे देखने, सोचने, जानने के ढंग बदल जायेंगे, और सब बदल जायेगा। [नजरें बदलीं तो नजारे बदल गए , कश्ती का मुख मोड़ा तो किनारे बदल गए। ] 
मुक्ताभिमानी मुक्तो हि बद्धो बद्धाभिमान्ययि।
 किंवदतीह सत्येयं या मति: स गतिर्भवेत।। 
(अष्टावक्र: महागीता)
भावार्थ : स्वयं को मुक्त मानने वाला मुक्त ही है और बद्ध मानने वाला बंधा हुआ ही है, यह कहावत सत्य ही है कि जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति होती है॥ मुक्ति का अभिमानी मुक्त है, और बद्ध का अभिमानी बद्ध है।’ जो सोचता है मैं बंधा हूं वह बंधा है। जो सोचता है मैं मुक्त हूं ! वह मुक्त है ! क्योंकि बार बार सद्चिन्तन , सदवचन तथा सद्कर्म करने का अभ्यास करने से हमें  उसकी आदत पड़ जाती है। तथा जब आदत  प्रगाढ़ हो जाती है,  तो वह  propensity (प्रवृत्ति) में तब्दील हो जाती है। ये ही आदतें मनुष्य के स्वाभाविक झुकाव में परिणत हो जातीं हैं।  अब मनुष्य को कार्य करने के पहले विवेक प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं रह जाती, बल्कि उसकी स्वभाविक प्रवृत्ति -'natural instinct' सद्कर्म करने की हो जाती है।

" आत्मजन्या भवेदिच्छा, इच्छाजन्या भवेत् कृतिः।  
कृतिजन्या भवेच्चेष्टा, चेष्टाजन्या भवेत् क्रिया॥

{महोपनिषद ४.११४ के अनुसार अपनी आत्मा के अवलोकन की इच्छा (विवेक-दर्शन की इच्छा) मोह का (Hypnotized अवस्था का) क्षय करने वाली है। जबकि इच्छा मात्र अविद्या माया (Illusion of Ignorance)  है, जिसका नाश करना ही मोक्ष को प्राप्त होना है। 
पहले मन में  इच्छा उठती है, अतः  मन में केवल ' सत-इच्छा ' (या आत्मा को जानने की इच्छा , विवेक-दर्शन की इच्छा) को उठने देने का अभ्यास करने से, उसी विवेक-संयुक्त इच्छा के अनुसार ' सतकर्म ' करने का अभ्यास (habit ) हो जाता है।  
और सतकर्म (3H विकास के 5 अभ्यास) करने की आदत या habit प्रगाढ़ हो जाने से, वह सद्प्रवृत्ति (good instinct, या good propensity) में तब्दील हो जाती है।  तथा सारी स्वाभाविक सद्प्रवृत्तियों- 'natural good  instincts ' के समुच्चय से मनुष्य का स्वाभाविक सद्चरित्र  'natural good character' निर्मित हो जाता है। अतः महामण्डल के युवा प्रशिक्षण शिविर में किये जाने वाले समस्त क्रियाकलापों का उद्देश्य- इसी लक्ष्य, स्वाभाविक सद्चरित्र को  'natural good character' को प्राप्त करना होगा। 
nabani da :   उठो, जागो !  औपनिवेशिक मानसिकता को बदल कर जगत को होशपूर्वक देखने से क्या होता है ? (What happens when we  change our colonial mindset and look at the world consciously? दृष्टिं ज्ञानमयीं कृत्वा पश्येद्ब्रह्ममयं जगत् -  
" स्वामी विवेकानन्द के अद्भुत विचारों में रंग जाने का अर्थ :  है उन्हें पचा लेने का सामर्थ्य (विचार -हाजमा ) ठीक रखना। बैंगन बेचने वाले , कपड़े बेचने वाले अपनी पूँजी के अनुसार ही 'बहुमूल्य हीरे' का मूल्य निर्धारित करेंगे । बहुत खुश होने पर भी वे उसका मूल्य एक लाख से अधिक निर्धारित नहीं कर सकते। जिसको लाखों रूपये देकर भी प्राप्त नहीं किया जा सकता, उसे (परम सत्य को) पाने के लिए जीवन समर्पित कर देना होगा। जीवन समर्पित करने का अर्थ है -इसी जीवन में इसे पा लेंगे। यह संकल्प -'चिदानन्द रूपः शिवोहं ' मन में हर समय जाग्रत रहेगा। जिस प्रकार अन्न को पचा लेने से पुष्टि प्राप्त होती है , उसी प्रकार [स्वामी जी के महावाक्यों के ] भाव को पचा सकने से, जीवन की धारा बदल जाती है , जगत को देखने का दृष्टिकोण बदल जाता है , चिंतन शक्ति अपूर्व हो जाती है, लापरवाही या उदासीनता नहीं रहती ," पारस्परिक सम्बन्ध नये रूप धारण कर लेते हैं। जगत, जीवन , मृत्यु सब नए रूप में दिखने लगते हैं।  मैं क्या प्राप्त कर सकता हूँ? इस विचार के बदले, मैं क्या दे सकता हूँ -का विचार मन में उठने लगता है। 'क्या-क्या नहीं पा सका ' की गणना करने के बजाय - ` दे दो और वापस पाने की इच्छा मत करो ' इसका ही विचार उठने लगता है। तभी वह (आत्मा) ह्रदय में सहारा बन जाता है। विवेकानन्द के भावों को पचा लेने का अर्थ उनका आत्मसातीकरण होता है। यह होने से ह्रदय में (आत्मा का ) संबल प्राप्त होता है। " 
nabani da : स्वाध्याय का महत्व : " उस संबल को पाने का उपाय क्या है ? पढ़ना ? हाँ , पढ़ने की आवश्यकता है। विभिन्न विषयों के बारे मे अध्यन करना, सद्चिन्तन चिन्तन-मनन करना अब से स्वभाविक प्रवृत्ति -'natural instinct' हो जाएगी, इसीलिए स्वाभाविक रूप से हमलोगों का सर्वाधिक प्रयोजनीय अध्यन होगा- स्वामीजी के द्वारा लिखे एवं कहे उपदेशों को पढना।  स्वामीजी के उपदेशों को पढने का अर्थ स्वामीजीने जो कहा है उसको केवल पढ़ लेना ही नहीं है, उसपर मनन करना है।  मनन करते रहने से स्वामीजी के विचार, उनकी वाणी - बिल्कुल हमारे ह्रदय के भीतर बैठ जायेंगे।  साथ ही साथ स्वामीजी का जीवन के ऊपर भी चिन्तन मनन करते रहना चाहिये।[`विवेकानन्द और युवा आन्दोलन ' -परिच्छेद 30, पृष्ठ 103/]           
दृष्टि को ज्ञानमयी बनाकर जगत को देखने से क्या दीखता है ? `पंचभूतों के फंदे में फंसकर ब्रह्म रो रहे हैं !' उनकी सेवा करने की इच्छा होती है।.....    किन्तु स्वामीजी ने जो भी कुछ कहा है, वह सब उन्होंने ठाकुर से ही सीखा था।  ठाकुर ने अपने निकट आये हुए युवाओं के जीवन को सुन्दर ढंग से गठित कर, उनको एक चरित्रवान मनुष्य के रूप में गढ़ देने के लिये क्या क्या नहीं किया है !जिस समय वे दक्षिणेश्वर में रहते थे, क्या एक दिन अपने कमरे की छत पर खड़े होकर, व्यथित ह्रदय से यह कहते हुए बिल्कुल रो नहीं पड़े थे-  " माँ, बलेछिले युवकदेर एने देबे, कई, युवकरा तो आसछे ना ? " - माँ, तुमने तो कहा था, युवाओं को यहाँ ले आओगी, पर कहाँ, युवा लोग तो आ नहीं रहे हैं ? "श्रीरामकृष्ण परमहंसदेव ने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा था- " अरे तुम लोग कौन कहाँ हो, शिघ्रातीशीघ्र मेरे पास चले आओ ! " और कुछ मुट्ठी भर युवक उनके पास आये थे।  केकिन उन युवकों को ही उन्होंने इस प्रकार तैयार कर दिया  कि, वे लोग, सम्पूर्ण जगत में एक नवीन विचार-धारा का संचार करने में समर्थ हो गये थे।  उन मुट्ठी भर युवकों ने ' श्रीरामकृष्ण भावान्दोलन ' को सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैला दिया था, एवं उसके फलस्वरूप एक " संघ " स्थापित हो गया थ। . यह कितनी अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। ऐसा दृष्टान्त किसी अन्य पुराण में है, हमें नहीं मालूम, किसी दूसरे देश के इतिहास में है, पता नहीं |
 " पढ़कर भाषण देने से ज्यादा जरुरी है , विचारों को आत्मसात करना, उन्हें अपना बना लेना। श्रीरामकृष्ण ने जब 'टाका -माटी ' को एक समान जानकर फेंक दिया , तो उसका स्पर्श होते ही उनके शरीर में जलन होने लगता था।" यह कोई अलौकिक घटना नहीं है , विचारों को आत्मसात करने से ऐसा ही घटित होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन सत्य है। इसका उपाय है मनन। मनन का अर्थ कंठस्थ करना नहीं , हृदयस्थ करना होता है। हृदयस्थ करने का अर्थ है , आत्मसात कर लेना या बिलकुल अपना बना लेना। जो उस विचार को पचा लेंगे , उनका जीवन ही बदल जायेगा। इस प्रकार चेष्टा करने से स्वामीजी के सभी विचारों को आत्मसात किया जा सकता है। उदाहरण के लिए `तुम्हारे सामने कई रूपों में वे ही खड़े हैं का भाव। '  प्रयत्न करने से इस उदार विचार को भी `अपना भाव' बना लिया जा सकता है।       
ऐसे उदार `Heart' को धारण करने वाला `Hand ' स्टील का होगा : महात्मा (वसंत ऋतू तुल्य नेता, जीवनमुक्त शिक्षक) के विशाल ह्रदय को धारण करने के लिए सबसे पहले अपने शरीर को स्वस्थ, सबल और निरोग रखना होगा। अतः युवाओ का शरीर जिस प्रकार स्वस्थ, सबल, कर्मठ, निरोग रह सके इसके लिये व्यायाम आदि करना, और पौष्टिक आहार लेने पर ध्यान देना होगा। [भोजन को ठूंसकर खाने के बदले, दवाई के जैसा लेना होगा , नहीं तो बुढ़ापे में दवाई को ही भोजन की तरह लेना होगा !
 [The 5 practices of 3H development must be imbibed/ 3H विकास के 5 अभ्यासों का आत्मसातीकरण करना होगा : विवेकानन्द के विचारों को पचाना होगा, इसके लिए -'विवेकानन्द और युवा आन्दोलन' का 30 वां परिच्छेद-पृष्ठ १०२ देखें।]
जिस शिक्षा के आभाव में आज पूरे विश्व के मनुष्य दुःख-कष्ट में पड़े हुए हैं, जिस दुर्गति को भोग रही है- उसमें परिवर्तन लाने के लिये क्या करना होगा ? सर्वप्रथम तो हमें अपने चरित्र की ओर दृष्टि डालनी होगी। [' मनुष्य ' के 3'H' विकास पर दृष्टि डालनी होगी !] 
हम बाहर की ओर, प्रकृति  की ओर देख रहे हैं, धन-दौलत की ओर देख रहे हैं, भोगों की आकांक्षा कर रहे हैं, किन्तु इन समस्त कार्यों के मूल में पहले जिस मनुष्यत्व को अर्जित करना आवश्यक होता है, उसले लिए हमलोगों ने कोई प्रयास ही नहीं किया है।  अपने चरित्र को सही ढंग से गठित नहीं किया है। 
चरित्र कितनी अनुपम वस्तु है, उसका कितना महत्व है, इसे हम ठीक से नहीं समझते; कवि राजा भर्तृहरि ने कहा था- " वरं तुंगात श्रृंगात गुरुशिखरिणः  क्वापि विषमे, पतित्वायं कायः कठिनदृषदन्तर्विदलितः। वरं न्यस्तो हस्तः फणिपतिमुखे तीक्ष्णदंशने, वरं वह्नौ पातास्तदपि न कृतः शीलविलयः।। "
- भले ही ऊँचे पर्वत-शिखर से कूद पड़ने के कारण तुम्हारा अंग भंग क्यों न हो जाय, काले नाग के मुख में हाँथों को डाल देने पर सर्प के दंश से तुम्हारे प्राण क्यों न छूट जाएँ, अग्नि में गिर पड़ने से तुम्हारा शरीर भी जल कर खाक क्यों न होता हो, लेकिन किसी भी कीमत पर- " न कृतः शीलविलयः " अपने चरित्र को कभी नष्ट न होने देना।  - ये सब उपदेश-वाणी हजारो वर्ष पूर्व भारत से ही चली आ रही हैं।  इन प्राचीन सद्ग्रंथों में दिये गये उपदेशों को अपने जीवन में उतार लेने से भारत के युवाओं का चरित्र इतना दृढ़ हो जायेगा कि कोई भी प्रलोभन (कामिनी-कान्चन) उसे विचलित नहीं कर पायेगा! पर वैसा चरित्र आज किसी में कहाँ दिखायी देता है? इस तरह के चरित्र का निर्माण करने की चेष्टा भी हमलोग कहाँ कर रहे हैं?
 शंकराचार्य ने भी इसी बात को समझाते हुए कहा था- " त्रये दुर्लभ ~  मनुष्यत्वं, मुमुक्षत्वं, महापुरुष संश्रयः !"  इस सूत्र के माध्यम से चरित्र के महत्व को ही आचार्य शंकर भी समझा रहे हैं! हमने देव -दुर्लभ 'विवेक-प्रधान ' मनुष्य शरीर को प्राप्त किया है, पुरुषार्थ -प्रधान मानव-मन को प्राप्त किया है। किन्तु इस दुर्लभ मन और शरीर की सहायता से हमलोग जो कर सकते थे - जैसा मनुष्यत्व अर्जित कर सकते थे, हममें उस मनुष्यत्व का जागरण अभी तक नहीं हुआ है।  हमलोग बाकी सब कुछ कर रहे हैं, किन्तु जिसके होने से सबकुछ होता है --वह ' चरित्र' ही पीछे छूट गया है !
 स्वामी विवेकानन्द ने उन्हीं प्राचीन ग्रंथों (महाभारत, उपनिषद आदि) से- " चरित्र निर्माणकारी एवं मनुष्यत्व उन्मेषक " भावों को चुन-चुनकर अपने जीवन में उतार लिया था।  वे ही नहीं, श्री रामकृष्ण के सम्पर्क में आये सभी युवाओं को ये सारे विचार  श्रीरामकृष्ण परमहंस देव से ही प्राप्त हुए थे।  और  यह भी सत्य है कि, समस्त सदगुणों को अपने जीवन में धारण करने की शिक्षा भी उन्होंने श्रीरामकृष्ण परमहंस देव से ही प्राप्त कि थी।    
 
समिति के निर्णयानुसार हमें अरियादह में (स्वामी विवेकानन्द निर्देशित शिक्षा प्रणाली के अनुसार) ,  महामण्डल का " प्रथम अखिल भारत वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर " शिविर आयोजित करने की तैयारी करनी थी। प्रश्न यह उठा कि उस नव आविर्भूत युवा संगठन-  'महामण्डल ' द्वारा  के आदर्श (Role Model) , उद्देश्य और पाठ्यक्रम  (Purpose and Syllabus-curriculum)  तथा प्रशिक्षक कौन हों -संन्यासी या अनुशासित जीवन में प्रतिष्ठित कोई गृहस्थ ?

 इस प्रकार आगे बढ़ते बढ़ते, थोड़ा सा कम-ज्यादा हो सकता है, लास्ट जो रिपोर्ट हमने देखा, उसके अनुसार इस समय पूरे भारत में इस संगठन की 315  शाखाएं कार्यरत हैं ! 
क्या आप किसी अन्य युवा संगठन का नाम बता सकते हैं, जिसके पूरे भारत में तीन सौ से अधिक इकाइयाँ, केंद्र हों ? लेकिन इन समस्त केंद्रों की स्थापना लगभग बिल्कुल स्वचालित ढंग से हो गयी है! हमें इसके लिए बहुत अधिक जोर नहीं लगाना पड़ा है, पेपर -मिडिया आदि में प्रचार..,ये सब कुछ नहीं करना पड़ा है। भारत के विभिन्न स्थानों से महामण्डल के वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने आये जिन युवाओं को  'नया भारत गढ़ने' 'Building a New India' की 'Be and Make ' योजना और चरैवेति -चरैवेति अभियान की ऐसी भव्यता और सुन्दरता का अनुभव हुआ;  जो युवाओं के विचार और जीवन को सही दिशा प्रदान कर सकती है, तब  उन लोगों ने स्वयं ही अपने -अपने स्थानों पर जाकर इसकी शाखाएं स्थापित कर लीं। 
औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) को बदलने के लिए 'प्रशिक्षक -प्रशिक्षण शिविर' (SPTC या OTC ) का आयोजन : तो इस प्रकार युवाओं की औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) को बदलने का युवा -प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारम्भ हो गया। जिसके फलस्वरूप अभी पूरे भारत में 315 केन्द्र कार्यरत हैं। किन्तु पहले -पहल केवल छः युवा संगठन इसमें शामिल थे , फिर उनकी संख्या क्रमशः बढ़ती चली गयी।  इस प्रकार वर्ष में एकबार 20, 30, 40, 50 इकाइयों में कार्यरत सभी युवाओं को एक साथ सम्मिलित करके, कम से कम एकबार महामण्डल द्वारा छः दिवसीय वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया जाने लगा। इसके अतरिक्त साल में चार बार आवधिक 'प्रशिक्षक -प्रशिक्षण शिविर' (periodical OTC/ या PSTC ) का आयोजन भी होने लगा।     
[Three hundred and fifteen centers are there! Can you find out any other organization, of which there are more than three hundred units, centers in the whole of India? But almost automatically, dose not much pushing or bugle, all of them people there, as they came to know about this organization, and the beauty and the grandeur of the plane, which can really remould the life of youths...who can build a New India ! Any how gaining Independence is not enough, we are ashamed of meaning of independence now a days, every where, wherever we go, we see this is a spurious independence, we don't have real independence; what is that in India ? That can come only..if we have proper Men !..who must have love for the country, love for their parents, mother first, father and there are other elderly people, they must have deep respect for them, they must be ready to serve them as much as possible for him, and not to look so much at his own happiness, and ease etc. no not like that. 
 so it went on and this plane came to the mind, that are so many units now, when there were only  20 units, 30 units, 40 units, 50 units like that it went on rising gradually, so they must be brought together at least at times,at least once a year, previously two-three times a year 
अभी जैसा अखिल भारतीय स्तर पर एनुअल कैम्प - होता है, ऐसा कैम्प पहले सम्भव नहीं होता था। तब हमलोग देश के चार दिशाओं के अनुसार कैम्प एरिया भाग करके  बारी बारी से छोटा -छोटा कैम्प आयोजित किया करते थे। इधर के अमुक स्थान पर नोर्थ इंडिया का कैम्प होगा, अमुक स्थान पर  साऊथ इंडिया का, अमुक स्थान में मध्य भारत (middle of India) , इधर ईस्ट उधर वेस्ट, हमलोग पहले तय कर लेते थे कि, भारत के किन राज्यों को मिलाकर इस बार क्षेत्रीय कैम्प होना चाहिए।  
और मेरे साथ ऐसा होता था, कि कोई न कोई कहीं से आकर मुझे हेल्प करता था, और इसी प्रकार से  मैंने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण कर लिया ,  whole of India I went round, हिमालय (अल्मोड़ा और मायावती) से ले कर कन्याकुमारी तक और उधर पूर्व में आसाम , अरुणाचल ,...जहाँ तक हैवहाँ से लेकर मुंबई तक, ऐसा कोई कोना नहीं बचा है, जहाँ मैं नहीं गया हूँ !  और गया भी किस तरह ? अभी मुझे याद नहीं आ रहा है, मेरी यादास्त बहुत खराब हो गयी है। पहले हमारा कहीं के किसी अन्य संगठन से हमारा कोई परिचय नहीं था।  कोई संपर्क नहीं था, मैंने कभी किसी संगठन (जैसे मैं हिन्दी स्पीकर खोजने बेलूड़ मठ या राँची रामकृष्ण मिशन गया था ?) को पहले से यह सूचित नहीं किया कि मैं  एक उद्देश्य के लिए जा रहा हूं, जो मैं जाने पर आपको समझाऊंगा, मुझे इन बातों को समझाने का कोई मौका नहीं मिला था। एक बार मैं नोर्थ-वेस्ट में किसी जगह पर गया था। बिलकुल नोर्थ-वेस्ट में at the top , वहाँ पहुँचने के बाद एक-दो सहृदय व्यक्ति पूछने लगे- ' आप अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए यहाँ किससे मिलना चाहेंगे ? कहाँ जाना चाहेंगे ? " मैंने कहा -  ' नहीं किसी को तो मैं यहाँ जनता नहीं हूँ, किसी के साथ मेरा परिचय नहीं है। तब एक व्यक्ति ने 'महामण्डल के उद्देश्य और कार्यक्रम' पर मुझसे कुछ देर तक बातचीत की , और उसके प्रति अपनी अभिरुचि (Interest-दिलचस्पी) दिखलाते हुए कहा कि तुम इस राज्य के मुख्य न्यायधीश (chief Judge) के पास जाओ, वह बहुत अच्छा आदमी है, बहुत मददगार है। तब मैं बिना किसी पूर्व-परिचय के उस राज्य के मुख्य न्यायाधीश से मिलने मैं उसके घर चला गया ! उनके गार्ड ने पूछा आप कौन हैं , उनसे क्यों मिलना चाहते हैं ? [ previously we don't have any contact, I have not informed any body that I am going for a purpose, which I will explain to you when I go, I had not got any chance to explain these things to them. So some one took interest and talked to me for some time, and said you go to the chief, judge, of the state, he is very good man, very helpful, chief justice of that state, I went to his house,उनके गार्ड ने पूछा-मैं कौन हूँ ?
मैं बोला, भाई मैं बहुत दूर से आया हूँ, उनके साथ मिलना चाहता हूँ।  वह फिर पूछा - किसलिए, कारण बताइए ? मैंने कहा, उन्हीं से काम है, बहुत जरुरी काम है।  भीतर जाकर उनको बताया, वे तुरंत मुझे अपने घर के भीतर बुलवाए।  जब उनको मैनें सारी बातें बताई, (युवाओं के लिए स्वामी विवेकानन्द की 'Man making and Character building education' मनुष्य निर्माणकारी और चरित्र-निर्माणकारी शिक्षा ' के व्यावहारिक युवा प्रशिक्षण पद्धति Be and Make  पर चर्चा की)  तो वे आश्चर्य से बोले- ऐसा सुन्दर काम हो रहा है ! तब उन्होंने कहा यह बहुत अच्छी बात है , इसलिए उन्होंने उस स्थान के सभी सरकारी पदाधिकारियों , जानेमाने लोगों , स्कूलों , कॉलेजों , प्रसिद्द युवा क्लबों के लिए इसी विषय पर एक सर्क्युलर जारी कर दिया। इसके बाद तीन दिनों के भीतर एक सभी प्रबुद्ध लोगों की एक बड़ी बैठक हुई। उस सम्मेलन में मैंने युवाओं के (mindset बदलने की), 3H-विकास Education पद्धति के विषय में उन्हें समझाया। इसी प्रकार महामण्डल का कार्य तब तक आगे बढ़ता गया, जब तक कि महामंडल के केंद्रों की कुल संख्या ऐसा ही कुछ  तीन सौ, या तीन सौ पंद्रह से अधिक न हो जाए! हाँ...ऐसा कैसे हो गया भाई? 
[Very good, very good, so he issued circulars to schools, colleges, etc. big clubs, known people, so in three days time a big meeting was held, I explained to them, like that went on,
[Very good, very good, so he issued circulars to schools, colleges, etc. big clubs, known people, so in three days time a big meeting was held, I explained to them, like that went on,and went on, until the total numbers of the centers of the Mahamandal has exceeded three hundred; three hundred fifteen or something like that.हाँ...ऐसा कैसे हो गया भाई,? ] 
इस युवा -संगठन से कोई आर्थिक लाभ उठाने की बात तो बिलकुल नहीं हो सकती है, यहाँ किसी विशेष व्यक्ति का नाम -यश, प्रतिष्ठा पाने की भी बात नहीं है ; कि देखो अमुक व्यक्ति कितना महान है, कि वही व्यक्ति इसका Founder (प्रतिष्ठापक)  है ! बिलकुल नहीं, महामण्डल में ऐसी कोई बात नहीं होती है।  और उस समय Philosophy के एक प्रोफेसर थे (श्री अमियो कुमार मजूमदार)  , जिनके साथ मेरा अच्छा परिचय था।  उनको संस्था का प्रेसिडेंट बनया गया, और ये था- दीपक दा ( श्री दीपक रंजन सरकार की ओर इशारा करते हुए }, देखो यह नटखट लड़का यहाँ है ! यह था, उस समय ये लड़का था, कॉलेज में पढ़ता था. बहुत कम उम्र था, उस समय विचार हुआ ये तो नवयुवक है, और यह युवा संगठन है, इसको भी कैम्प कमिटी का सदस्य बनाना चाहिए, So I am very happy, that he is present here today. (इसलिए मैं बहुत खुश हूं कि वह आज यहां मौजूद हैं।) तो कम से कम वह इस बात की पुष्टि कर सकता है कि उस दिन क्या हुआ था,   जो मैं आपको बता रहा हूं, वह मेरे कथन 'vouchsafe' सत्य होने की गवाही दे सकता है, वह कह सकता है- हां! यह ऐसा हुआ था। नहीं तो आप यह सोच सकते हैं कि, मैं आपको कोई कपोलकल्पित कथा सुना रहा हूँ , जिसे मैंने कभी स्वप्न में देख लिया होगा। नहीं, यह नींद में देखे किसी स्वप्न का वर्णन नहीं है, यह वास्तव में हुआ था ! [otherwise you may think that, I am telling you about a sleep that I had. no, it is not a sleeps description,this actually happened, and then see why it happened? so at least he can vouchsafe that what I am telling you ,at least that day what happened, what I am telling you, he can vouchsafe, he can say- yes ! it was like that. otherwise you may think that, I am telling you about a sleep that I had.no, it is not a sleeps description, this actually happened!  and then see why it happened? ]
 We have been chosen, to belong to this Organization ! और फिर देखें कि ऐसा सब कुछ क्यों और कैसे सम्भव हो गया  ?  यह सब सम्भव हुआ है भगवान श्री रामकृष्ण देव, जगन्माता सारदा और सभी युवाओं के 'आदर्श' (Hero, नायक-महावीर) स्वामी विवेकानन्द  की अव्यक्त इच्छा (latent या unexpressed desire) के कारण ! 1967 में इस आन्दोलन के प्रारम्भ होने से लेकर अभी तक,  (विगत 45 अब 2022 में  55 वर्षों तक) और अभी भी समाप्त नहीं होने के दौरानहम सभी के पास यही विश्वास होना चाहिए कि  हाँ, सचमुच ये ठाकुर-माँ -स्वामीजी जी ही हैं, जो कदम -कदम पर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं, और हम उनके द्वारा चुने हुए यंत्र के सिवा और कुछ भी नहीं हैं! हम सभी इस संगठन के एक विनम्र सेवक या कर्मी हैं ! और हम इस युवा -आंदोलन के दास होकर बहुत खुश हैं, हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमें इस संगठन (विवेकानन्द युवा आन्दोलन ) से सम्बद्ध हो जाने के लिए चुना गया है! हमें स्वामी विवेकानन्द के नेतृत्व में , उनके दास बनकर इस युवा -आन्दोलन को अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करते हुए देश के उन युवाओं को भी इस आन्दोलन से सम्बद्ध करना है जो रामकृष्ण -विवेकानन्द वेदान्त भावधारा से अभी तक वंचित (untouched -अछूता , अपरिष्कृत) रह गए हैं। हम सौभाग्य शाली हैं , We are Privileged की हमें सभी युवाओं को यह बताने , यह समझाने के लिये चुना गया है, कि 'प्रत्येक आत्मा अव्यक्त ब्रह्म है' ~ अतः पशुओं के समान केवल खाना-पीना और मौज उड़ाना ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकता।     
[It happened because of the unexpressed desire of Bhgwan Sri Ramakrishna Dev, Jaganmata Sarada and the hero of all youths Swami Vivekananda, ever pushing, ever helping, during all this movement's thirty (or 45?) years, and still not ending, we must have  that faith, that conviction, that yes, it is they who are guiding us, we are nothing ! We are servants of this Organization ! and we are very happy, we are very lucky, that we have been chosen, to belong to this organization ! and to help this to grow further and to spread more to involve more youths, who have remained untouched so far, and to tell them and make them understand, that eating, drinking and being merry is not the whole of life, it can not be the goal of human life.]
(The Goal of human life - is to Rejuvenate India!)  भारत की पुण्य-भूमि पर जन्म लेने वाले मनुष्य के जीवन का उद्देश्य भारत को पुनरुज्जीवित करना ! मानव जीवन का लक्ष्य है, दूसरों के कल्याण के लिए (अपने देशवासियों की भलाई के लिए) जितना सम्भव हो उतना देना। जो अपने प्राणों को भी जनताजनार्दन की सेवा में न्योछावर कर देने से पीछे नहीं हटता, वही सबसे बड़ा व्यक्ति (the greatest person, ब्रह्म-बृहद) है !  इस दृष्टिकोण से श्री रामकृष्ण सबसे बड़ा व्यक्ति (ब्रह्म) सिद्ध होते हैं, उस थ्रोट कैंसर को अपने गले में धारण करने के बावजूद, ठाकुर अपना सब कुछ युवाओं के प्रशिक्षण में अर्पित कर देते हैं!  जगन्माता सारदा के पास साधारण शिक्षा (की कोई डिग्री) नहीं थी , लेकिन उनमें केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं, बल्कि जितने भी प्राणी हैं , जिसमें जीवन का रंग परिलक्षित होता हो ,उन सभी के लिये मातृ भावना (motherly feeling) थी ! वे ह्रदय से यह महसूस करती थीं कि वे सभी की माँ हैं!   
भाईयो, हमें अपना धन, अपनी शिक्षा, जीवनी-शक्ति (ऊर्जा -Energy) को व्यर्थ में-सिर्फ खाने-पीने और मौज-मस्ती करने में बर्बाद (waste -अपव्यय) नहीं करना चाहिए; जीवन में करने के लिए इससे भी बड़े काम करने हैं , उच्चतर कार्य करना है - (ब्रह्म विद बनने की सम्भावना को व्यक्त करना है।) स्वामी जी निश्चलदास को उद्धृत करते हुए कहते थे - " जो ब्रह्मविद वह ब्रह्म है ताको वाणी वेद, संस्कृत या    भाषा में करत भरम का छेद॥ "      
 [The goal of human life is to give as much as of yourself as possible for the good of others, one who can give that, is the greatest person, Thakur gives His all in-spite of carrying that Cancer in his throat, the holy Mother, in no ordinary education, she had that feelingmotherly feeling, and she felt that she was the mother of not only of human beings, but all short of creatures, all that is alive, every thing that has a tinge of life in it, is the holy Mothers child. Brother we must not waste our life, we must not west our energies, our money our education or something, just in eating and drinking and being merry, no, their are bigger things, higher things to do. ( जो ब्रह्मविद वह ब्रह्म है ताको वाणी वेद,.... )
महामंडल विगत 52 वर्षों से इस विचार को (रामकृष्ण -विवेकानन्द वेदान्त भावधारा Be and Make को) भारत के युवाओं तक पहुंचाने का प्रयास करता चला आ रहा है ; और उसीका परिणाम है कि आज इस युवा प्रशिक्षण शिविर में भारत के 1600 युवा एकत्रित हुए हैं। यह एक अद्भुत बात है, अद्भुत अनुभव है , भविष्य में शायद इससे भी बड़ी संख्या में युवा लोग आयेंगे।  लेकिन मैं कब तक लड़ सकता हूं? उम्र सीमित है, अब इक्यासी साल की उम्र में मेरे दिन गिने-चुने बचे हैं हो सकता है दस-बीस साल और हों, या हो सकते हों, लेकिन नहीं भी हो सकता है। 
मुझे आगे से अब खुद कुछ नहीं करना होगा , दूसरे लोग को सामने आयेंगे, और मेरे करने लायक कुछ भी कार्य छोड़े बिना सम्पूर्ण आन्दोलन की जिम्मेवारी अपने कन्धों पर उठा लेंगे। निश्चित रूप से कई लोग सामने आये हैं , कई जिम्मेदारी उठा भी लिए हैं। आजकल मुझे सभी पत्रों का जवाब अपने हाथों से खुद लिखकर देने की जरूरत नहीं पड़ती । एक समय था, जब कार्यालय से लौटकर, मैं प्रतिदिन शाम को महामंडल कार्यालय में जाया करता था।  रात दस बजे या 10.30 या 11 बजे, मैं घर लौटता था। और घर जाकर रात के खाने के बाद फिर से टेबल पर बैठकर पत्र या  विवेक-जीवन के लिए लिखना, अन्य बातों के लिए लिखना, ये सब बातें चलती रहती थीं।
तो भाइयो, मुझे बहुत खुशी है कि मैं इन तीस वर्षों या (45 वर्षों से ) या उससे अधिक समय से जो भार उठा रहा था, उसे देखकर कई लोग सामने आये , और उसे तुम्हारे सहयोग से उतार सका। आशा है कि तुम सभी इस आन्दोलन के महत्व को अच्छी तरह से समझ गए होगे। अतः अब अन्य बातों के मोह में न पड़ो , -जैसे नाम-यश, पद-प्रतिष्ठा आदि तुच्छ विषयों के फेरे में न पड़ो ! यह  संसार तो लोभ से भरपूर है ही, जो ऋषियों के मन को भी चंचल बना सकता है। इसलिए पहले सोचो कि जो हितकर नहीं है, स्वस्थ नहीं है, मनुष्य के वास्तविक विकास के लिए नहीं है, तो उन सब (भोग-विलास आदि)  बातों को भूल जाओ; और केवल यही काम करो!
अपनी शिक्षा प्राप्त करो, कुछ कमाने की कोशिश करो, अपने परिवार की मदद करो, अपने पड़ोस में किसी और की मदद करो, जिसे कुछ मदद की ज़रूरत है, और यह काम भी करो ! क्योंकि उन्हें पैसे देकर, या कपड़े-दवाइयाँ देकर, यहां तक कि पैसे का ढेर देकर भी तुम सभी लोगों के सभी दुखों को दूर नहीं कर सकते,  उनके सिर पर लदे बोझ को सम्पूर्णतः हटा नहीं सकते। तुम उन्हें जीवन -जीने का तरीका बतलाओ; यह समझाओ कि जीने के लिये पैसा जरुरी है, लेकिन वे जानेंगे कि उसे ईमानदारी से भी कमाया जा सकता है। 'No dishonest deals ' क्रय-विक्रय में कोई कपट नहीं , बेईमानी नहीं , वे जानेंगे की पैसा ईमानदारी से कमाना चाहिए, ईमानदारी से जीना चाहिए । लेकिन यह समझ लेना चाहिए कि जीने का अर्थ खाना, पीना और मौज-मस्ती करना या वंश -विस्तार करते रहना नहीं है। मानवजीवन का अर्थ पहले लूटमार करना फिर रोगी होकर मर जाना नहीं है।         
 
 [ Mahamandal has tried to bring this idea to the youths of India, and as result today 1600 youths of India have assembled here. It is a wonderful thing, wonderful experiencemore perhaps will come, but how long can I fight ? My days are limited now at the age of eighty one, may be another ten-twenty years, may be, but may not be also. Others will come forward, and take whole charge, without leaving for me any thing, that I will have to do myself. Of-course they have taken many things, now a days I don't have to reply to all letters. There was time, when after returning from office, and going to the Mahamandals office in the evening, at night  ten o'clock or 10.30 or 11o'clock, I return to home,and after the supper a little, I used to seat with letters etc, writing for Vivek-Jivan, writing for other things, all these things went on.So brothers, I am very happy that I could unload the weight that I have been carrying for these thirty years and more, you all come forward, I hope you understand this, thoroughly, don't be allured by other things, the world is full of  allurements, therefor first think, that which is not beneficial, not healthy, not for real growth of human beings, so forget all those things; do this work ! have your education, try to earn something, help your family ,help any body else in your neighborhood, who needs some help, and do this work, because you can not remove all sufferings of all people, by giving them money, heaps of money even, on their heads, you don't do that. Let them know some thing how to live, and for living money is necessarythey will know how to earn money through honesty, no dishonest deals, honest living, honestly you must earn money, honestly you must live. But must know that living dose not mean, eating, drinking and be merry or having some offspring, and then diseases, then plundering,
'मनुष्य-निर्माण करना (3H विकास करना)  ही सबसे बड़ा धर्म है !' जीवन-काल में कितनी- कितनी तरह  .... की चोरी-डकैती करनी पडती है ! और वह सब करते जाने से, मनुष्यों को न जाने कितने-कितने तरह के दुःख-कष्ट झेलने पड़ते हैं। महामण्डल आन्दोलन के साथ सम्बद्ध हो जाने से , इन सबों में से कुछ भी दुःख तुम्हारे नजदीक आ ही नहीं सकेंगे।  इनमें से कोई भी विपत्ति मुझे मेरे मार्ग से विचलित नहीं कर पायेगी, क्योंकि महामण्डल ने हमारे सामने जीवन का एक निश्चित लक्ष्य रख दिया है; वह क्या है? भारत को पुनर्जीवित करने के लिए 'Be and Make' ! यह भी कहा है कि भारत को पुनर्जीवित करने के लक्ष्य को जब तक हम प्राप्त नहीं कर लेते , जब तक हम उस लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाते, तब तक हम काम करना बंद नहीं करेंगे। भारत को पुनर्जीवित करने के लिए निरंतर मेहनत करते रहेंगे and until we reach that Goal, we will not stop working. work hard for it, what is that ? to rejuvenate India. और दर्द ? ये तो सब जगह में होगा न, पैर में दर्द है, घुटनों में दर्द है, इधर दर्द है, उधर दर्द है, इस दर्द दूर करना चाहिए।  शरीर (Hand)  स्वस्थ होगा, बुद्धि (Head) तीक्ष्ण होगी, हृदय (Heart) प्रेम से भरा होगा, यह प्रेम सबों के लिए होगा, पर गरीबों -दुखियों के लिए अधिक; इसी को  तो- 'मनुष्य बनना' कहते हैं भाई ! 
हमारा (महामण्डल का ) मानना है कि, (3H में विकसित) 'मनुष्य-निर्माण करना ही सबसे बड़ा धर्म है!' और स्वामी विवेकानन्द भी इस विचार से सहमत हैं ' Man- making ' is the greatest Religion, Swamiji also subscribe to this idea !  मनुष्य -निर्माण या ' Man- making ''  का तात्पर्य यह है कि 'हमारी मांस-पेशियाँ लोहे की होंगी, अर्थात शरीर के मसल्स मजबूत होंगे, और बहुत नरम दिल होगा, लेकिन साथ ही साथ यह दिमाग भी बहुत तेज होना चाहिए, इतना तेज जो समुद्र की गहराई में जाकर भी सत्य का पता लगाने में सक्षम होगा ! महामण्डल द्वारा निर्देशित "3H विकास के 5 अभ्यास " द्वारा इन तीनों चीजों का ऐसा संयोजन, तुम में से हर कोई कर सकता है ! और यदि तुम ऐसा कर सकते हो ; तभी तुम  सच्चे भारतीय नागरिक हो, भारत माता की सच्चे सन्तान हो ! क्योंकि भारत माता की जो सच्चे सन्तान होंगे , सच्चे बेटे या बेटियां होंगी, उनके जीवन का लक्ष्य मातृभूमि की सेवा करने, इस धरती पर जन्म लेने वाले हर प्राणी की सेवा करने के अलावा अन्य कुछ भी नहीं हो सकता। तो अब और कुछ ज्यादा न कहते हुए,  मुझे रुक जाना चाहिए,  तुम लोग क्या कहते  हो ?' 
   [ हम कहते हैं - ' Man- making ' is the greatest Religion, Swamiji also subscribe to this idea,' Man- making ' means : ' We shall have strong mussels, and a very soft heart, this brain must be very sharp, so combination of these things, every one of you can do that, and if you can do that then only you are true Indian nationals, true sons or even daughters alsosons and daughters of Mother India will have nothing beyond serving the motherland,serving every being that is born on this soil. so I think I should stop now, what do you say?
अच्छा, अच्छा, मुझे क्षमा करें, मुझे क्षमा करें, तुम्हें  पहले ही मुझे रोक देना चाहिए था ! भाई, तुम  सभी के लिए मेरा प्यार, तुम सभी को मेरा  प्यार पहुँचता है !  मैं तुम सभी के मंगल की प्रार्थना करता हूँ , अपने देश के मंगल की प्रार्थना करता हूँ। और उन सभी के कल्याण की प्रार्थना करता हूँ जो पीड़ित हैं ,अभी कष्ट भोग रहे हैं , जिनमें अभी अपूर्णता (deficiencies-दोष-त्रुटियाँ)  है, ताकि वे भी पूर्ण हो सकें!  जिससे वे भी ठाकुर, माँ, स्वामीजी को समझ सकें। इन दिनों, इस युग में, इस नव वेदान्त के युग में, वे ही "देवता-शिव " हैं, जो हर जीव की सेवा -सुश्रुषा करने को तत्पर हैं ! वे [ ठाकुर और माँ सारदाभी कमो-बेश ( more or less, करीब -करीब) मूर्ख  ही हैं ! स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालय की तो बात क्या करना,..उन्होंने कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की थी,,,, लेकिन हाँ, वैसी विद्या जो उनके पास है , और किसके पास है ? 
[अच्छा, अच्छा I am sorry, I am sorry, you should have stopped me earlier, भाई, my love to you all, my love to you all, I prey for you all, and prey for the country and every body,who is suffering, who has deficiencies,so that can become full, so that they can understand Thakur, Ma, Swamiji. In these days, in this yuga, in this yuga, in this period of time, they are " the Deities " , who will take care of every body. They are also more or less murkha's, हाँ ! , no education,not to speak of school or college, or university,..हाँ , लेकिन वैसी विद्या किनके पास है ?]
 ठाकुर के पास जो विद्या थी, माँ के पास जो विद्या थी,स्वामीजी के पास जो विद्या थी, वैसी विद्या -(स्वयं मनुष्य बनने और दूसरों को मनुष्य बनने में सहायता करते, करते,-स्वयं को (ब्रह्मविद) भगवान बना लेने वाली ' विद्या ')  और कहाँ है ? वह ' विद्या ' उनके पास है, जो हमारे अपने माता-पिता हैं ! वे उस  विद्या को एक थाती के रूप में, हमें सौंप देने के लिए, उनके पास है, जो हमारे माता पिता हैं ! क्योंकि  हमलोग उनकी सन्तान हैं, इसलिए उस विद्या पर (मनुष्य बनते बनते भगवान में परिणत हो जाने वाली विद्या पर) हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ! ठाकुर माँ की सन्तान और स्वामी विवेकानन्द का छोटा भाई होने के कारण, उनके उत्तराधिकारी होने के कारण उनकी विद्या (मनुष्य -निर्माणकारी शिक्षा: जिससे ह्रदय विशाल होता है , बुद्धि तीक्ष्ण होती है , शरीर मजबूत होता है ) वह विश्वास , आत्मविश्वास (आत्मश्रद्धा), और वह प्रतिबद्धता (commitment) प्राप्त होती है , कि यदि जरूरत पड़ी तो भारत को पुनरुज्जीवित करने के लिए मैं अपने प्राणों को भी ख़ुशी -ख़ुशी न्योछावर कर दूँगा ! वैसी प्रतिबद्धता  पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है!    
[we have right on ' That ' education, to have that broadness of heart, and that intelligence, and विश्वास, that आत्मविश्वास !  that even if necessary, I will give up my body even, my life even, let my life also go, but let me be happy,... ]    
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स्मृति भ्रम का कारण : ध्रुव जी, अवध कुंज , कच्ची तलाव , पटना 28 जनवरी 2022, खान सर का बिहार बंद, बिहटा-दनियावां -कुर्थौल रोड से होते हुए तिलैया की यात्रा। बिहार के करोड़पति युवा दुर्गेश - स्लिमिंग डायटिंग, मैरेज बंगलोर इन्विटेशन, अमित - ध्रुव ईश्वर हैं ? और पुनर्जन्म होता है? ध्रुव - जागा है पर उम्र 76 और मेडिसिन पर आधारित जीवन के कारण निश्चल नहीं रह सकता। उदय -कमीशन लिया बहन से। ध्रुव के चचेरे भाई - का पत्नी को कैंसर की आशंका से रोना -'पंचभूतेर फाँदे ब्रह्म पड़े कांदे " हम हैं न तुमको मदद करेंगे। ब्रह्म राम का सीता वियोग में रोना और पार्वती जी का शंशय इस मनुष्य को आपने प्रणाम क्यों किया ? परीक्षा - परिणाम पर ध्रुव जी से चर्चा ! गीता 5 /19 -दुर्लभ साम्य - अर्थात समभाव या पूर्णता की अभिव्यक्ति दृश्य के रूप में नहीं होती , अनुभव के रूप में होती है ,  बिना माँ काली की कृपा ही साम्य में  स्थित होने का उपाय है। शशि के बुढ़ापे का कारण ईर्ष्या , सलाह, तारा -स्मृति नाम करो होटल का। मनोज राणा की दुआ - भइया आप 72 साल के हो गए!! देवराहा बाबा की तरह आप भी 200 -300 साल तक रहिये। कुर्थौल- ज्ञान : जगरनाथ का बेटा दिनेश का कहना -12,000 /= की नौकरी करता हूँ। चाचा बैजनाथ हमारे दुश्मन होगये बहन की शादी मर्डर के अभियुक्त से करवा दिए , उसका केस लड़ना , भगना का पालन-करने में 3 कट्ठा खेत 50,000/- रेट के जमाने में करना पड़ा। अब भी कुछ खेत बचा हुआ है। दीपक-राजदेव बाबू की उद्यमशीलता-पाउच पैकिंग का लाइसेंस तिलैया में मिलेगा ? अजय -उदय- उषा से 5 लाख कमीशन लिया।  कार्तिक-अकाउंट जानता है - को चचानी के यहाँ खाये-पीये में दिक्क्त था, इसीलिए हड़बड़ी में  गृह-प्रवेश करना पड़ा। राजू-नरेन् परम् भोला -मंटू सिंह सोनपुरिया लगा है -तीनो भाई को लड़वा कर साला की जमीन हड़पो।   
महामण्डल के संस्थापक सचिव श्री नवनीहरन मुखोपाध्याय द्वारा 30 दिसंबर 2011 को दिया गया भाषण :नकली स्वतंत्रता (Spurious Independence) से प्राप्त औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) को बदलना अनिवार्य है : भारत की आजादी के 75 वां वर्ष का अमृत महोत्स्व पर 29 जनवरी 2022 को आयोजित  'Beating The retreat ' समारोह : इस वर्ष जब गणतंत्र दिवस समारोह की समाप्ति 'Beating The retreat ' (जो युद्ध में विजय के बाद , सेना की बैरक वापसी का प्रतिक है) को रायसीना हिल्स स्थित राजपथ के 'विजय चौक ' पर आयोजित किया गया तब भारत की थल सेना , वायु सेना और नौसेना की बैण्ड ने पहली बार अपनी पारम्परिक धुनों की समाप्ति 'हे मेरे वतन के लोगों को जरा आँख में भर लो पानी' की धुन बजाकर किया। इसके पहले तक 1857 ई ० में लिखित एक इसाई भजन (Christian hymn) "Abide with Me"  की धुन को गाँधीजी की प्रिय धुन बताकर की जाती थी, जबकि गाँधी की प्रिय धुन -'रघुपति राघव राजाराम' , और 'वैष्णवजन तो तेने कहिये' है। विकसित देशों ने जिन रास्तों और संसाधनों का इस्तेमाल करके खुद तो तरक्की कर ली लेकिन वे नहीं चाहते कि विकासशील देश भी उन्हीं तरीकों का इस्तेमाल करके आगे बढ़ें।  'आज दुनिया में कहीं भी किसी भी देश की कोई कॉलोनी नहीं है लेकिन यह औपनिवेशिक मानसिकता, यह गुलामी की मानसिकता 'Colonial Mindset' अब भी बरकरार है। यह औपनिवेशिक मानसिकता इस विश्वास के साथ मेल खाती है कि उपनिवेशक देश या अंग्रेज-जाति के सांस्कृतिक मूल्य स्वाभाविक रूप से अपने आप से श्रेष्ठ हैं। अंग्रेजों के उपनिवेशीकरण गुलामी की मानसिकता के परिणामस्वरूप लोगों द्वारा महसूस की गई जातीय या सांस्कृतिक हीनता का आंतरिक दृष्टिकोण। यानी भारत पर राज करने वाला उपनिवेशक देश (ईसाई -मुगल देशों या जातियों)  के सांस्कृतिक मूल्य स्वाभाविक रूप से अपने आप से श्रेष्ठ हैं, तभी तो उन्हें (हिन्दू जाति को) दूसरे समूह द्वारा उपनिवेशित या गुलाम बनाया जा सका है। इसी गुलामी की मानसिकता से पीड़ित होकर राजाराम मोहन राय ने viceroy को पत्र में लिखा था कि संस्कृत पढ़ने से भारत तरक्की नहीं कर सकता, जिसके परिणाम स्वरुप मैकाले की शिक्षानीति भारत पर थोप दी गयी।  इस मानसिकता ने कई विकृत विचारों को जन्म दिया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पर्यावरण को मुद्दा बनाकर विकासशील देशों की प्रगति की राह में अड़चने खड़ा करना है।  औपनिवेशिक मानसिकता का अजेंडा ही विकासशील देशों की प्रगति को रोकना है। तब भारत के लोगों को यह समझ में आया कि.......... ] " किसी भी प्रकार से केवल स्वतंत्रता प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं है ! बल्कि औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) को बदलना भी अनिवार्य है। विगत 70 वर्षों से   भारत में स्वतंत्रता का जो अर्थ समझकर- ' तूँ हूँ लूटऽ हमहूँ लूटीं, लूटे के आजादी बा,  सबले अधिका उहे लूटी, जेकरा देह पर खादी बा। ' देश को जिस प्रकार लूटा जा रहा है - उसे देखकर  हम शर्मिंदा हैं।  हर जगह, जहाँ भी हम जाते हैं, हम देखते हैं कि यह एक नकली स्वतंत्रता है (Spurious Independence), हमारे पास वास्तविक स्वतंत्रता नहीं है;  भारत में ऐसा क्या है? अभी भी देशपर जो औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) हावी है, उसे बदलना आवश्यक है। वह तभी सम्भव हो सकता है..अगर हमारे पास 'Proper Men' योग्य और चरित्रवान मनुष्य' (3H में विकसित मनुष्य) हों! ऐसे मनुष्य तैयार किये जाएँ ..जिनमें अपने देश के प्रति प्रेम हो,   अपने माता-पिता के लिए प्यार हो, माता पहले, फिर पिता और अन्य बुजुर्ग लोग हैं, उनके लिए गहरा सम्मान होना चाहिए। युवाओं को जितना संभव हो सके, अपने आराम ,अपनी मौज-मस्ती और दिखावा करना छोड़कर, अपने माता-पिता तथा घर के अन्य बुजुर्ग की   सेवा करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
और यह तभी सम्भव है जब हम मैकाले शिक्षा व्यवस्था में आधारित औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) को बदल कर 'रामकृष्ण -विवेकानन्द वेदान्त नेतृत्व -प्रशिक्षण परम्परा' में प्रशिक्षित लीडरशिप परम्परा "Be and Make " को लागु कर सकें।      
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