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मंगलवार, 27 जून 2023

🔱🙏 पारुल यूनिवर्सिटी, वडोदरा में 'मनुष्य बनो और बनाओ' आंदोलन का आविर्भूत होना -एक ऐतिहासिक अनिवार्यता !/151st, SPTC of ABVYM organized on July 24, 2016:

1.>>>महामण्डल आंदोलन के आविर्भूत होने की  ऐतिहासिक अनिवार्यता ! [Historical imperative (Urgency) for the emergence of Mahamandal movement! ] 

" स्वामी विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा "~ में अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल द्वारा संचालित 'Be and Make' आन्दोलन, अर्थात 'मनुष्य बनो और बनाओ' आंदोलन का आविर्भूत होना -एक ऐतिहासिक अनिवार्यता !] 

महामंडल के आदर्श, उद्देश्य और कार्यक्रम : (Ideals, Objectives, and Programs of the Mahamandal) : हमलोग जानते हैं कि महामण्डल का उद्देश्य है - भारत का कल्याण। भारत का कल्याण यदि उद्देश्य है , तो भारत की उन्नति के लिए केंद्र सरकार है , 'कट्टर ईमानदार' राज्य सरकार है, प्रशासनिक अधिकारी हैं , लाखों की संख्या में NGO कार्यशील हैं , मठ-मिशन भी है , जब इतना संगठन पहले से है तो महामण्डल के आविर्भूत होने की क्या अनिवार्यता थी ? 

देश की वर्तमान अवस्था का कारण और निवारण ? रूस से उधार ली गयी पंचवर्षीय योजनाओं का फल ऐसा क्यों मिला ? सरकारी तंत्र या रूस की प्राइवेट आर्मी - Machinery -व्यवस्था है,  उसमें मनुष्य नहीं हैं। वैसे मनुष्य कहाँ से आएंगे ? Education System से , वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में Heart Development की कोई व्यवस्था नहीं है। कोई सर्कार या कोई भी NGO मनुष्य-निर्माण और चरित्रनिर्माण की व्यवस्था नहीं है। इसी छूटे हुए कार्य को महामण्डल ने अपने कन्धों पर उठा लिया है। 

कुछ लोग यह भी पूछते हैं कि भारत जब रत्नगर्भा है तब यहाँ युवा आदर्श के रूप में केवल स्वामी विवेकानन्द ही क्यों ? क्योंकि उनका एकमात्र ध्यान का विषय था भारत , ज्ञान का विषय था भारत। भगिनी निवेदिता का ह्रदय में - Ye, would-be patriots! present patriot, भारत बसता था।  

 उपाय है - चरित्र-निर्माण ! तो क्या हम अभी चरित्रहीन हैं ? चरित्र अच्छा या बुरा सब का होता है। आहार-निद्रा-भय -मैथुन तो सभी प्राणियों में होता है  लेकिन मनुष्य बनना पड़ता है। 

आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च समानमेतत्पशुभिर्नराणाम् ।

धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥

अर्थ – अगर किसी मनुष्य में धार्मिक लक्षण नहीं है और उसकी गतिविधी केवल आहार ग्रहण करने, निंद्रा में,भविष्य के भय में अथवा संतान उत्पत्ति में लिप्त है, वह पशु के समान है क्योकि धर्म #  ही मनुष्य और पशु में भेद करता हैं| [ # Dharma is not religion but it is righteousness/right conduct/doing good; To do good and to be good  is the whole of religion  ]  ...संसार के धर्म प्राणहीन उपहास की वस्तु हो गए हैं - संसार चाहता है चरित्र ! Religions of the world have become lifeless mockeries, what the world wants is character.  

  उन्होंने देखा था भारत की मौलिक समस्या - 'चरित्रवान मनुष्य का अभाव' , इसको दूर किये बिना भारत का कल्याण नहीं हो सकता।पशु को कोई पशु बनने के लिए कहता ? क्योंकि पशु तो पूर्ण है ही। मनुष्य की गरिमा यही है कि मनुष्य देव-मानव भी बन सकता है। मनुष्य अगर ठान ले तो वह नरदेव बन सकता हैं , और यदि मनःसंयोग विवेक-प्रयोग नहीं सीखा तो पशु या राक्षस भी हो जाता है।  मनुष्य यदि और उन्नततर  मनुष्य बनने की चेष्टा छोड़ दे तो वह कल पशु बन जायेगा। मैं आज जैसा मनुष्य हूँ कल उससे बेहतर मनुष्य बनूंगा। यह संकल्प रोज बनाये रखना है। मनुष्य शरीर मिल गया तो , ब्रह्म को जानो। उन्नत चरित्र - उन्नत मनुष्य - उन्नत समाज के निर्माण में चरित्र ही निर्णायक भूमिका का पालन करता है। चारित्रिक अवनति ही सामाजिक अवनति का मूल कारण है।अभी समाज में नरपशुओं की संख्या बढ़ रही है।  देश की अवस्था देखिये - एक पूर्व पी.एम ने भी पार्लियेमेन्ट के अंदर और बाहर यह स्वीकार किया था -100 भेजने से 85 खा जाता था सिर्फ 15 पहुँचता था। इस पर विचार करने के बाद उन्होंने उपाय निकाला था - 'सुन्दरतर मनुष्यों का सुन्दरतर समाज ! " या उन्नततर मनुष्यों का उन्नततर समाज। 

अंग्रेजी कवि रॉबर्ट ब्राउनिंग कहते हैं -  "-Progress, man’s distinctive mark alone, Not God’s, and not the beasts’: God is, they are, Man partly is and wholly hopes to be.“- —  Robert Browning, मूल-धारणा - जीवन क्या है ? मृत्यु तक बुढ़ाते रहना क्या जीवन है ? जीवन का उद्देश्य है है Be and Make के सिद्धान्त को सामने रखकर चरित्र-निर्माण के माध्यम से सम्पूर्ण भारत का कल्याण। देश की परिस्थिति देखो।  यह मनुष्य का जीवन नहीं है। विजय माल्या भाग गया।  तो एक राज्य सभा सांसद ने उसकी मद्त की ? देशप्रेमी का अभाव है। शासक वर्ग का चरित्र कहाँ है ? महामण्डल के आदर्श और उद्देश्य।  उद्देश्य के अत्यन्त निकट एक आदर्श रहता है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। उद्देश्य -भारत का कल्याण ! कल्याण का प्रश्न क्यों आता है ? देश की वर्तमान अवस्था पर ध्यान दें। आजादी के 75 वर्ष बाद भी देश की अवस्था क्यों नहीं बदली ? पहली बारिश में ही अव्यस्था की पोल खुल जाती है। पंचवर्षीय योजना , में यथार्थ मनुष्य बनाने की कोई योजना क्यों नहीं बनी ? देशभक्त नागरिकों का निर्माण कैसे होगा ? जापान में ये शिक्षा मिली थी। स्कूल से लेकर कॉलेज तक महामण्डल द्वारा मनुष्य-निर्माणकारी शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जाता है। इसलिए महामण्डल के आदर्श हैं - स्वामी विवेकानन्द ! क्योंकि स्वामीजी कहते थे - सबसे पहले चरित्र सुन्दर होना चाहिए। 

2.>>>महामण्डल का स्वरुप एवं कार्य) : (Purpose and responsibility of Mahamandal :)   यह वैसे देशप्रेमी युवायों का संगठन है जो अपने से प्रेम करते हैं और सभी मनुष्यों से प्रेम करते हैं। यह संगठन हर धर्म और जाती के लिए है। जीवन का उद्देश्य को ठीक से समझे बिना , पैसा का लालच रखने से आत्मविश्वास में अवनति होता है।

 इसके सदस्य को मंदिर-मस्जिद-गिरजा नहीं जाना पड़ता फिर भी यह धार्मिक संगठन है , समाजसेवा उद्देश्य नहीं मनष्य बनने का साधन है , आत्मविश्वास वापस लाने का उपाय है -मनःसंयोग। इसके आभाव में देश डूबने जा रहा है , हमें इस काम में कूद पड़ना होगा।  इसका कोई बहुत बड़ा योजना नहीं है। हमलोग कभी यह नहीं कह पाएंगे कि देखो -हम अपने लक्ष्य पर पहुंच गए हैं। मनुष्य बनना जीवन-व्यापी संग्राम है। स्वामीजी ने 39 वर्ष के जीवन को मानवजाति की सेवा में न्योछावर कर दिया। क्या यह भावुकता थी ? हमारे आदर्श ने मनुष्य की सेवा में प्राण उत्सर्ग किया और फिर भी कहे -मैं तब तक काम करना बंद नहीं करूंगा जब तक कि पूरी दुनिया यह न जान ले कि वह ईश्वर से एक है। 'I will not cease to work unless the whole world knows that it is one with God.' क्या स्वामीजी द्वारा ऐसा कहना केवल एक भावुकता थी ?  

विगत 55 वर्षों में महामण्डल द्वारा कितना काम हुआ ? इसके नापने का पैमाना क्या होगा ? स्कूल -कॉलेज बिल्डिंग की संख्या से अधिक यह आध्यात्मिक आंदोलन है। इसका उद्देश्य है स्वयं  निःस्वार्थ मनुष्य बनना और दूसरों को भी निःस्वार्थ मनुष्य बनने के लिए प्रेरित करना। 

उन्नततर मनुष्य किसे कहेंगे ? जो I.A.S में कम्पीट कर लिया ? या नीट परीक्षा 1St हुआ ? बहुत ऊँचा डिग्री हासिल किया ? उन्नतर मनुष्य वे आत्मज्ञानी या ब्रह्मविद महापुरुष साम्यभाव में पहुँचे , नेता, गुरु या जीवनमुक्त शिक्षक हैं जिनकी पूजा करने को हम बाध्य हो जाते हैं। बुद्धदेव 2600 वर्ष पहले हुए थे , लेकिन आज भी उनकी पूजा होती है। श्रीरामकृष्ण देव , स्वामीजी के गुरु सिर्फ कक्षा 2 पास थे , उनकी पूजा पूरे विश्व में हो रही है, क्योंकि वे यथार्थ मनुष्य थे - साम्यभाव उनके भीतर पूर्णतः आविर्भूत हुआ था। सिर्फ दो माँझियों का झगड़ा नहीं , जड़ दूबघास पर चलने से भी उन्हें एकत्व की अनुभूति होती थी। ऐसे साम्यभाव में पहुंचे -वसुधैव कुटुंबकम के भाव में पहुँचे -'उन्नततर' नेताओं, पैगम्बरो, जीवन्मुक्त शिक्षकों का जीवनगठन करना होगा ; तभी भारत का कल्याण होगा।  ऐसे उन्नततर मनुष्य - साम्यभाव में स्थित अवतार वरिष्ठ, पैगम्बर या CINC नवनिदा जैसे जीवन्मुक्त मनुष्यों का निर्माण करने का कार्य दो प्रकार से किया जा सकता है - 

1 . दूसरों को आत्मश्रद्धा, मनःसंयोग, विवेक-प्रयोग द्वारा 'श्रेय (आंवला) को ग्रहण करते और प्रेय (इमली -तम्बाकू) को त्याग करते हुए ' तुम मनुष्य बन जाओ' का लेक्चर देकर ?

2 . अथवा महामण्डल से जुड़कर प्रशिक्षण-शिविर में भाग लेकर 3H विकास के 5 अभ्यास का प्रशिक्षण लेकर स्वयं मनुष्य बनने की चेष्टा करते हुए जो अन्य भाई भी आदर्श नेता स्वामीजी जैसा मनुष्य बनने की इच्छा रखते हों , उनको संघबद्ध करके अपने अपने क्षेत्र में पहले युवा पाठचक्र स्थापित करके, राज्य स्तरीय , जिला स्तरीय युवा-प्रशिक्षण शिविर आयोजित करते हुए आगे- "पहले स्वयं श्रेय का ग्रहण और प्रेय का त्याग" करते हुए अपने जीवन से आदर्श प्रस्तुत करते हुए आगे बढ़ो !  अतएव महामण्डल का सिद्धान्त- वाक्य, Motto, या नीति-वाक्य है - Be and Make ! अर्थात स्वयं मनुष्य बनो और दूसरों को मनुष्य बनने में सहायता करो ! 

3.>>>"Man-making is my mission" भारत के राष्ट्रीय युवा आदर्श हैं स्वामी विवेकनन्द ! - जिन्होंने कहा था - " मनुष्य निर्माण करना ही मेरे जीवन का उद्देश्य है!  क्योंकि क विवेकानन्द ने महसूस किया था कि " किसी भी देश का भविष्य (समाज या परिवार का भी भविष्य) उसमें रहने वाले मनुष्य के चरित्र पर निर्भर करता है", इसलिए उन्होंने मुख्य रूप से मनुष्य-निर्माण पर जोर देते हुए कहा था -"Man-making is my mission" अर्थात मेरी शिक्षा का उद्देश्य ही मनुष्य-निर्माण करना है। विवेकानन्द ने कहा था -My ideal indeed can be said in a few words ..... " मेरे वास्तविक आदर्श को बहुत थोड़े से शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है वह है- 'मानवजाति को उसकी अन्तर्निहित दिव्यता का उपदेश देना तथा जीवन के हर क्षेत्र में उसे प्रकट करने का उपाय बताना ! " तो फिर कोई युवा उनके मिशन से अलग कैसे रह सकता है ? क्या सभी युवा राकृष्ण मठ -मिशन  में जाकर संन्यासी बन सकते हैं ? अधिकांश युवा तो प्रवृत्ति मार्ग अर्थात गृहस्थ जीवन के अधिकारी होते हैं। वे लोग फिर कहाँ जायेंगे ? उनको पारिवारिक जीवन में रहते हुए मनुष्य बनने का मार्ग बताता है महामण्डल। १-३-६ दिनों कि कैम्प में--मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है ? .. मनुष्य किसे कहते हैं ? नेता किसे कहते हैं , ये सब बतलाया जाता है। 

4.>>>Man making method' है विवेक-प्रयोग ! पारुल यूनिवर्सिटी में पिछला SPTC या सेमिनार कब हुआ था ? : 15 मई , 2016 को हुआ था। तब से लेकर 23 जुलाई, 2016 तक 70 दिनों में मेरे मनुष्य बनने के प्रयास, 3H विकास के 5 अभ्यास में कितनी प्रगति हुई है , उसका  मूल्यांकन स्वयं करने हमलोग SPTC में भाग लेते हैं।

स्वामी जी शिष्य को मनुष्य -निर्माण की पद्धति का मुख्य सिद्धान्त बतलाये है -विवेक-प्रयोग।अर्थात "Accept the “beneficial” and discard the “pleasant”. Speak of this Atman to all, even to the lowest. By continued speaking your own intelligence also will clear up. And always repeat the great Mantras — “तत्वमसि — Thou art That, “सोऽहमस्मि — I am That”, “सर्वं खल्विदं ब्रह्म — All this is verily Brahman” — and have the courage of a lion in the heart.‘

 -"श्रेय' (beneficial, आँवला) को ग्रहण कर - 'प्रेय ' (pleasant, इमली, तम्बाकू गुल) का त्याग कर !"  विवेक-विचार , 24 घंटा चलेगा। अर्थात ......  यह आत्म-तत्व चाण्डाल आदि सभी को सुना। सुनाते सुनाते तेरी बुद्धि भी निर्मल हो जाएगी। तत्त्वमसि , सोऽहमस्मि, सर्वं खल्विदं ब्रह्म, प्रज्ञानं ब्रह्म - आदि महावाक्यों का सदा उच्चारण कर, और ह्रदय में सिंह की तरह बल रख।

 --শ্রেয়ঃ’কে গ্রহণ কর, ‘প্রেয়ঃ’কে পরিত্যাগ কর। এই আত্মতত্ত্ব আচণ্ডাল সবাইকে বলবি। বলতে বলতে নিজের বুদ্ধিও পরিষ্কার হয়ে যাবে। আর ‘তত্ত্বমসি’, ‘সোঽহমস্মি’, ‘সর্বং খল্বিদং ব্রহ্ম’ প্রভৃতি মহামন্ত্র সর্বদা উচ্চারণ করবি এবং হৃদয়ে সিংহের মত বল রাখবি। 

    आजकल की शिक्षा व्यवस्था में - हमलोगों को " श्रेय का ग्रहण , और प्रेय का त्याग "  करने की शिक्षा ; हर समय अपने विवेक को जाग्रत रखते हुए कर्म करने की शिक्षा, पारुल यूनिवर्सिटी, बड़ौदा, गुजरात छोड़कर यह शिक्षा और किस यूनिवर्सिटी में प्राप्त हो रही है ?  इन दिनों  इन्टरनेट, टीवी, सिनेमा आदि विभिन्न माध्यमों से आधुनिक साहित्य के नाम पर जो सब प्रचारित किया जा रहा है, समाचार पत्रों में जैसे-जैसे चित्र और सम्वाद निकल रहे हैं;  इन सब को देख कर ऐसा प्रीत होता है कि, भारत की प्राचीन संस्कृति नष्ट हो चुकी है।  और हमलोग यह मान चुके हैं कि अब हमलोगों यही सब पाश्चात्य जीवन शैली आहरण करना ही होगा। पर यह बात सच नहीं है, 1000 वर्षों की गुलामी से भी हमारा आत्मविश्वास नष्ट नहीं हुआ है, हमारा खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः जागृत हो रहा है।  हमारी सांस्कृतिक विरासत पूरी तरह से नष्ट नहीं हुई है, अब भी जितना कुछ बचा हुआ है, भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए पर्याप्त है। आवश्यकता केवल उस ओर, प्राचीन भारतीय संस्कृति की ओर, गुरु-परम्परा की ओर  दृष्टि रखने की है। 

विवेक किसे कहते है ? Use and misuse of WhatsApp Messenger: (व्हाट्सएप मैसेंजर का यूज़ और मिसयूज):  किसी भी समय और कहीं भी दोस्तों और परिवार के साथ संपर्क में रहने के लिए दुनिया के 180 से अधिक देशों के, 2 billion people- 2 अरब से अधिक लोग व्हाट्सएप मैसेंजर का उपयोग करते हैं। (More than 2 billion people in over 180 countries use WhatsApp to stay in touch with friends and family, anytime and anywhere.) WhatsApp का यूज़ और मिसयूज तुम्हारे हाथ में है। विज्ञान का दुरूपयोग और सदुपयोग मनुष्य के विवेक पर निर्भर है। आज सम्पूर्ण विश्व में रूस -यूक्रेन युद्ध के नाम पर, ' वैश्वीकरण '- ग्लोबनाइजेशन  के नाम पर, यूरोपीय यूनियन और कम्युनिस्ट देश के बीच  जो कुछ चल रहा है, जो सब हो रहा है, उससे वे सारे गरीब देश जो चाहे पूरब के हों य़ा युरोप के, वे सब  गरीब होते जा रहे हैं, एवं और भी होते चले जायेंगे। आज हमारे देश के गरीबों की अवस्था कैसी हो गयी है? उन गरीबों के हताश-निराश मलिन चेहरे की तरफ नजर उठा कर देखने वाला भी कोई है? कोई नहीं है।

 यदि भारत अपना नेतृत्व नहीं देगा - तो केवल धनि देशों का धन और भी बढेगा , और जो निर्धन देश हैं वे और अधिक निर्धन होते चले जायेंगे ।  भूखे रहने के कारण, या बम-विस्फोट के कारण यदि कोई खुशहाल देश समाप्त हो जाये , हजारों मनुष्यो की मृत्यु भी हो जाये तो कोई देखने वाला नहीं है।  उनकी सहायता करने के लिये कुछ भी तो नहीं है, क्यों ? इसीलिये कि हमलोगों का जो यथार्थ मनुष्यत्व है, जिसको हम हृदयवत्ता के नाम से जानते हैं, उसमे वृद्धि करने, ह्रदय का विस्तार करने के लिये कोई हमलोग कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं। 

 इसीलिये गुजरात के अन्य यूनिवर्सिटी के डीन, VC, HOD, प्रिंसिपल  के भीतर यदि सदबुद्धि है, थोड़ा भी समाज और देश के कल्याण की चिन्ता है, उनको चाहिये कि अपने इसी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को , भारतीय धरोहर के  इस प्रकार के उच्च भावों को आहरण करके, ऐसे सेमिनार,  युवा -प्रशिक्षण शिविर , साप्ताहिक पाठचक्र आदि का आयोजन कर  उनलोगों के समक्ष रख दें जो अभी तरुण अवस्था में हैं। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो देश बचेगा कैसे?

5. >>'चरैवेति -चरैवेति ' महामण्डल का अभियान मंत्र है। "चरैवेति चरैवेति" ही धरती पर सत्ययुग लाने की योजना  है ! १८९५ में अपने गुरुभाई शशि, (स्वामी रामकृष्णानन्द) को लिखित एक पत्र में स्वामी विवेकानन्द कहते हैं-" रामकृष्ण अवतार की जन्मतिथि से- 'सत्ययुग का आरम्भ हुआ है'  [" From the date that the Ramakrishna Incarnation was born, has sprung the Satya-yuga (Golden Age)"  " রামকৃষ্ণবতারের জন্মদিন হইতেই সত্যযুগোত্পত্তি হইয়াছে "'रामकृष्णवतारेर जन्मदिन होइतेइ सत्ययुगोत्पत्ति होइयाछे।'] - उनके इस कथन का तात्पर्य क्या है? श्रीरामकृष्ण, स्वामी विवेकानन्द जैसे मानवजाति के मार्दर्शक नेता का अनुसरण, अपने जीवन को भी उनके साँचे में ढालकर गढ़ने का अभ्यास करने से किया जा सकता है। जैसे ऐतरेय ब्राह्मण कहता है-

कलिः शयानो भवति, संजिहानस्तु द्वापरः ।

 उत्तिष्ठँस्त्रेताभवति, कृतं संपद्यते चरन् ।

चरैवेति चरैवेति॥

-अर्थात सोये रहना ही कलियुग में रहना है , जाग्रत होना द्वापर है , चलने के लिए उठ खड़े होना त्रेता है , और लक्ष्य प्राप्ति की दिशा - देवमानव बनने की दिशा में चलने लगे तो जीवन में सतयुग चलने लगता है। तुम्हें भी ठाकुर देव की तरह अपनी स्त्री को अपना प्रथम शिष्य बनाना चाहिए। उसको मनुष्य बनने की पद्धति सिखाओ ! 'श्रेय का ग्रहण करो -प्रेय का त्याग करो ! ' त्याग के बिना अमृत नहीं मिलता - बलिदान देना होगा; और क्या उपाय है?  हमलोग सत्ययुग # को धरती पर पुनः स्थापित करने आये हैं। आत्मत्याग के आनन्द से हम विभोर होंगे , पृथ्वी भी धन्य होगी। हमें अपना 100 % महामण्डल को देना है।  

6.>> Man-Making means the harmonious development of the 3Hs: स्वामी विवेकानन्द की दृष्टि में 'Man-making' मनुष्य-निर्माण का अर्थ है - 3H's का सामंजस्यपूर्ण विकास !  उसके तीन प्रमुख अवयव अर्थात शरीर (Hand), मन (Head) और आत्मा (Heart) का समंजस्यपूर्ण विकास। हमलोगों का अधिकांश प्रयास तो केवल शारीरिक ताकत के प्रदर्शन करने तक सीमित हो गया है,  शरीर की शक्ति बढ़ाने के लिए (सरकारी- प्राइमरी स्कूल में कुंग-फु सिखाया जा रहा है),अर्थ बढ़ाने, धन-बल बढ़ाने, हमलोगों का अहंकार बढे, हमारा ऐश्वर्य बढे, हमारी आकांक्षाओं को बढ़ाने का भरपूर प्रयास हो रहा है। 3H विकास की शिक्षा बात कहाँ हो रही है ? इसलिए धूर्त नेता लोग जंतर-मंतर पर पहलवान-किसान  को मूर्ख बनाता है। यह जो पाश्चात्य भोगवाद है, वह तो आज नहीं बहुत दिन पहले ही भारत में आ चुका है! इसीलिये इसने (पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति ने) हमलोगों को पूरी तरह से अपना ग्रास बना डाला है। तभी तो अख़बार में फोटो छपता है -कोई गरीब बाप अपनी बेटियों को ही बैल की जगह लगाकर खेत जोत रहा है ? या एम्बुलेंस नहीं मिलने से कोई गरीब पती अपनी पत्नी की लाश को ३० कि.मी सायकिल पर ढो कर ले जा रहा है ?

उन्होंने ही सर्वप्रथम वेदों में वर्णित- 'एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति' महावाक्यों के आधार पर 'Unity in diversity' 'अनेकता में एकता भारत की विशेषता' की अवधारणा को विकसित किया। विवेकानन्द के अनुसार शिक्षा का असली उद्देश्य -भौतिक जगत और आध्यात्मिक जगत, सेक्यूलर -सेक्रेड, या लौकिक और पार-लौकिक में जो मिथ्या भेद,  खेल का मैदान और मन्दिर का द्वार, पौरुष और आत्मश्रद्धा के मिथ्या भेद को समाप्त कर देना है। उनके अनुसार , शिक्षा का असली उद्देश्य ब्रह्म (The Absolute-पूर्ण) और जगत (The manifestation) के प्रति एकत्व की भावना को विकसित करना है।  

[Vivekananda realized a country's future depends on its people, so he mainly stressed on man, "Man-making is my mission", that's how he described his teaching. Vivekananda put his real ideals in a few words and that was: "to preach unto mankind their divinity, and how to make it manifest in every movement of life." 

According to swami Vivekananda Man-Making means the harmonious development of the 3Hs:  body (Hand) , mind (Head), and soul (Heart). He developed the concept of unity in diversity. To him, the true aim of education is to develop a oneness of feeling toward the material and the spiritual world.] 

7.>>>'Man-making' का मूलधन capital : क्या होगा ? चाहे कार्य का प्रारम्भ कहीं से करें, किसी भी कार्य को करने में मूलधन (Principal amount, stock या capital) तो लगता ही है। 'मनुष्य बनो और बनाओ आन्दोलन' रूप कार्य का मूलधन है - आत्मविश्वास ! "Each soul is potentially divine" ~ प्रत्येक आत्मा अव्यक्त ब्रह्म है "  - इस बात पर विश्वास करने से आत्मविश्वास बढ़ता है ; जैसा एक अंग्रेजी कहावत भी है -  "Money begets money." इसकी तुलना इस से करें  "The rich get richer and the poor get poorer." तो हम लोग आसानी से समझ सकते हैं कि आत्मविश्वास रहने से ही आत्मविश्वास बढ़ता है। और चूँकि कहा गया है - "सिखाते हुए खुद सीखना, सीखने का सबसे अच्छा तरीका है।" -" learning by teaching is the best way of learning.' अतएव एक संगठन बनाकर महामण्डल के आदर्श, उद्देश्य और कार्क्रम पर चर्चा करने में सक्षम वक्त तैयार करो ! यही sptc का उद्देश्य होना चाहिए।   

1000 वर्षों की गुलामी के कारण भारत ने आत्मविश्वास खो दिया था। अब ठाकुर-माँ -स्वामीजी की प्रेरणा से वही आत्मविश्वास भारत में फिर जाग उठा है। स्वामीजी ने कहा था -" प्राचीन धर्मों में कहा गया है , जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है। नूतन धर्म कहता है, जो आत्मविश्वास नहीं रखता वही नास्तिक है। जिसमें आत्मविश्वास नहीं है वही नास्तिक है। "

" संसार का इतिहास उन थोड़े से व्यक्तियों का इतिहास है, जिनमें आत्मविश्वास था। यह विश्वास ही अन्तस्थ ईश्वरत्व (पूर्णत्व या 100 % निःस्वार्थपरता) को ललकार कर प्रकट कर देता है तब वह व्यक्ति कुछ भी कर सकता है , वह सर्वसमर्थ हो जाता है। असफलता तभी होती है, जब तुम इस अन्तस्थ अमोघ शक्ति (निःस्वार्थपरता) को अभिव्यक्त करने का यथेष्ट प्रयत्न नहीं करते। जिस क्षण कोई व्यक्ति या राष्ट्र आत्मविश्वास खो देता है, उसी क्षण उसकी मृत्यु आ जाती है " 

" विश्वास -विश्वास ! अपने आप पर विश्वास , परमात्मा के ऊपर विश्वास -यही उन्नति करने का एकमात्र उपाय है। यदि पुराणों में कहे गए तैंतीस करोड़ देवताओं के ऊपर और विदेशियों ने बीच-बीच में जिन देवताओं को (बाबाओं -मुल्लों को) तुम्हारे बीच घुसा दिया है , उन सब पर भी तुम्हारा विश्वास हो और अपने आप पर विश्वास न हो , तो तुम कदापि मोक्ष के अधिकारी नहीं हो सकते। " 

" तुम जो कुछ सोचोगे , तुम वही हो जाओगे ; यदि तुम अपने को दुर्बल समझोगे (नश्वर देह-मन समझोगे), तो तुम दुर्बल हो जाओगे ; बलवान सोचोगे तो बलवान बन जाओगे। "

8.>>>Habit makes your future >How to build character? चरित्र-निर्माण की प्रक्रिया : >>>3H विकास के 5 अभ्यास :    Thought> Action > habit > propensity = Character. विवेक-प्रयोग नहीं करना - श्रेय का ग्रहण और प्रेय का त्याग नहीं करना ही बुरे चरित्र का कारण है। महामण्डल का काम है -भावी नेता के सामने यह वार्ता पहुँचा देना कि कैसे हमारा जीवन अच्छा बनेगा ? परिस्थिति सापेक्ष चरित्रगठन - का यह कार्य प्रातः से नींद तक चलता रहेगा। एक दिन का दिनचर्या , जीवन समाप्त होगा पर यह कार्य कभी बंद नहीं होगा। सोने से पहले प्रार्थना करना ही अंतिम बात होगी। देश का मंगल हो सोचकर सोने जायेंगे। निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। 

1. नींद से उठते ही प्रार्थना - आन्तरिक रूप से , जगत- मंगल की प्रार्थना- सर्वे भवन्तु सुखिनः ! यह महा औषधि है। आज सारा दिन मैं किसी की बुराई नहीं करूँगा। 

2. मनःसंयोग का अभ्यास, 2nd Important step; मनुष्य बनने का दूसरा महत्वपूर्ण सोपान। मन रूपी लगाम से इन्द्रिय रूपी घोड़ों को वश में रखना , घोड़ों की लगाम है मन। मन को सलाह दूंगा - हे मन आज सारा दिन हमें 24 गुणों को अपनाना है , और जो घट रहा है उसको बढ़ाना है। ३-४ या ५ गुण भी अपना लिया तो सत्यनिष्ठा के लिए आज मैं केवल सत्य ही कहूंगा।  जो जिस क्षेत्र में काम कर रहा हो , वहां पर Inter Police '- विवेक हमारे मन के ऊपर नजर रखेगा की मन क्या विचार कर रहा है ? शाम को भीं आत्मसमीक्षा के लिए बैठो ! अपने दैनिक कार्यों से अवकाश लेकर दो बार मनःसंयोग करो। self -marking daily करो। कम नंबर क्यों मिला ? अपने को जवाब देना होगा। मन को कहना होगा कि कल 100 /100 पाना होगा। 

3 . व्यायाम 

4 . स्वाध्याय 

5 . विवेकप्रयोग। 

9.>>>Life building and Character building:  चरित्र क्या है ? विभिन्न अवस्था, परिस्थिति और समय में विभिन्न कार्य करने का अवसर मिलता है। उस समय की विशेष परिस्थिति के अनुरूप बिना कुछ सोचे-विचारे, अर्थात श्रेय-प्रेय का विवेक-प्रयोग किये हमलोग जो कर्म कर बैंठते हैं, उसी कार्य से हमारा चरित्र प्रकट होता है। दैनन्दिन आचार -आचरण का समग्र प्रयास चरित्र से प्रकट होता है। यदि निर्जन में सोना का हार  पड़ा हुआ हो , तो उसे देखकर तीन मनुष्य तीन प्रकार से आचरण करेगा।  यदि प्रतिमुहूर्त हम अच्छा कर्म करते रहें , तो हमारा चरित्र अच्छा बन जायेगा। बुरा कार्य ही करेंगे तो चरित्र बुरा बन जायेगा। यदि समाज में असद चरित्र वाले मनुष्यों की संख्या बढ़ जाएगी तो समाज की हानी होगी। वैयक्तिक ,पारिवारिक , सामाजिक या देश की उन्नति उसके आत्मविश्वासी नागरिकों के चरित्र पर निर्भर करती है। देश का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि देश के अधिकांश मनुष्य निर्जन में कामिनी-कांचन को देखकर किस प्रकार का व्यवहार करते हैं ? देवता -पशु और मनुष्य की पहचान उसके चरित्र से होती है। उन्नततर मनुष्य बनने के लिए उन्नततर चरित्र का निर्माण करना आवश्यक है। 

आज का मेरा चरित्र जैसा है , वह मेरी पुरानी आदतों से से निर्मित प्रवृत्तियों का समाहार है। एक ही कार्य को बार बार करते रहने से चरित्र गठित हो जाता है। कार्य करने पहले हमारे मन में विचार उठते हैं , वहीँ विवेक-प्रयोग करके देखना होगा कि विचार पवित्र है या अपवित्र ? शुद्ध विचार होना आवश्यक है। मन में कैसे विचार उठ रहे हैं ? इसे देखते रहना होगा। हमलोग वही कार्य करेंगे जो हमें शक्ति प्रदान करेगा , जो कार्य हमें दुर्बल बनाये उसका त्याग करना होगा। मुझे निःस्वार्थपरता की शक्ति ही मनुष्य बनने की दिशा में आगे ले जाएगी। मनःसंयोग के अभ्यास द्वारा मन को अपने वश में रखते हुए विवेक को निरंतर जाग्रत रखना होगा। श्रेय को ग्रहण करना और प्रेय को त्याग करना होगा ! सद्विचार पूर्वक सद्कर्म करते रहने से हम सद्चरित्र के स्वामी बन जायेंगे। -अच्छा विचार - अच्छा कार्य - अच्छी आदत -अच्छी प्रवृत्ति - असंख्य अच्छी आदतों से अच्छा चरित्र निर्मित हो जायेगा। 

अब कैसे जानें कि अच्छा क्या है ? भालो क्या है ? अच्छा वही है जिससे हम निःस्वार्थी बन जाते हों। किस गुण को अच्छा कहेंगे ? चरित्र के गुण पुस्तिका में 24 गुण बताये गए हैं।  'Self-Introspection ' या आत्मनिरीक्षण करते हुए उन गुणों के मानांक को आत्ममूल्यांकन तालिका में बढ़ाते जाना होगा। सप्ताह में एक बार आत्ममूल्यांकन करना अच्छा है। उसके पहले नियमपूर्वक Autosuggestion के माध्यम से संकल्प-ग्रहण करना होगा। यह हमारी बुरी आदतों को दबा देगा।   

10.>>> चरित्र-गठन में पाठचक्र (study Circle, Seminar या सत्संग) की भूमिका :

महामण्डल द्वारा आयोजित सत्संग (सेमिनार ,पाठचक्र या युवा प्रशिक्षण शिविर ) में  विशिष्ट बात यह है कि, इसमें प्राचीन ग्रंथों (गीता , उपनिषद, योगसूत्र आदि ) के सिद्धान्तों को सरल भाषा में समझने के लिखी गयी महामण्डल पुस्तिकाओं को पढ़ा और सुना जाता है। उसके अर्थ पर चर्चा की जाती है,  फिर उन शब्दों के स्रोत, मानवजाति के मार्गदर्शक नेता स्वामी विवेकानन्द की छवि पर मन को एकाग्र करने की पद्धति (मनःसंयोग) को सीख कर उनके जीवन और उपदेश  को आत्मसात् किया जाता है। अर्थात उनके अर्थ को अपने दैनंदिन जीवन में उतारा जाता है। सत् वस्तु का ज्ञान। शास्त्र कहते हैं कि - मन एव मनुष्याणं कारणं बन्ध मोक्षयोः ! -' मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है।'  मन शुद्ध कैसे होता है ? मन शुद्ध होता है विवेक से।  और विवेक कहाँ से मिलता है ?

 बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥

 सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥

 भावार्थ- सत्संग के बिना मनुष्य का चैतन्य जाग्रत नहीं होता , अर्थात विवेक जाग्रत नहीं होता, और श्री रामजी की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में मिलता नहीं। संतों की संगति आनंद और कल्याण का मुख्य मार्ग है, सत्संग की सिद्धि (आत्मविश्वास की प्राप्ति अर्थात ईश्वर -प्राप्ति) ही फल है और सब साधन तो फूल है।  सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और भगवान की कृपा के बिना सच्चे संत नहीं मिलते।  तोते की तरह रट-रटकर बोलने वाले तो बहुत मिलते हैं, परंतु उस 'सत्' तत्त्व का अनुभव करने वाले महापुरूष (नवनीदा)  विरले ही मिलते हैं। 

दुर्लभं त्रयमेवैतत्, देवानुग्रहहेतुकम्।

मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं,  महापुरूषसंश्रय:॥

भावार्थ-- यह तीन दुर्लभ हैं और देवताओं की कृपा से ही मिलते हैं - मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों का साथ॥ आत्मज्ञान को पाने के लिए रामकृपा, सत्संग और सदगुरू की कृपा आवश्यक है। ये तीनों मिल जायें तो हो गया बेड़ा पार।

 परमात्मा की प्राप्ति और प्रभु के प्रति प्रेम उत्पन्न करने तथा बढ़ाने के लिए सत्पुरूषों को श्रद्धा एवं प्रेम से सुनना – यही सत्संग है। जीव की उन्नति सत्संग से ही होती है। सत्संग से उसका स्वभाव परिवर्तित हो जाता है। सत्संग उसे नया जन्म देता है। जैसे, कचरे में चल रही चींटी यदि गुलाब के फूल तक पहुँच जाय तो वह देवताओं के मुकुट तक भी पहुँच जाती है। ऐसे ही महापुरूषों के संग से नीच व्यक्ति भी उत्तम गति को पा लेता है। [12 जनवरी 1985 को साक्षात् स्वामी विवेकानन्द की कृपा करने के बाद , कुछ विरले लोगों को ही 28 वर्षों तक नवनीदा का सत्संग, सानिध्य प्राप्त करने का सौभाग्य मिलता है।] 

संस्कृत शब्द 'सत्संग' का शाब्दिक अर्थ है -सत् अर्थात सत्य, और संग अर्थात संगति; अर्थात (1) "परम सत्य या ईश्वर " की संगति, (2) गुरु की संगति, या (3) व्यक्तियों की ऐसी संस्था की संगति जो -- " श्रवण, मनन और निदिध्यासन" करती है।  अर्थात 'मनन' के द्वारा गुरुमुख से सुने महावाक्य - "तत्त्वमसि" के  'तत् ' के विषय में अपने doubt को clear करती है। फिर उस 'सत्य' को आत्मसात् करती है ! अर्थात वेदान्त के भ्रमर-कीट न्याय परम्परा के अनुसार निदिध्यासन -अपने इष्टदेव के 'तत्व' ( सच्चिदानन्द) का चिंतन करते करते वही बन जाती है।सुंदर चरित्र बज्रदृढ़ बाधाओं के प्राचीर को भी पार कर सकता है। भारत वर्ष 1000 वर्षों की गुलामी के कारण आत्मविश्वास खोकर राजनैतिक , पारिवारिक , सामाजिक चारित्रिक दृष्टि से पिछड़ गया था। सभी लोग भोगी और ईर्ष्यालु बन गए थे।  आर्थिक दृष्टि से जो धनी हैं वे अधिक धनी, और जो गरीब हैं , अधिक गरीब होते जा रहे हैं। देश की अवस्था चिन्तनीय है - उपाय क्या है ? सबसे महत्वपूर्ण है विवेक-प्रयोग, जिसके लिए उपाय है सत्संग या पाठचक्र। 

राज्य स्तरीय या वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर तो वर्ष में एक ही बार होता है। लेकिन पाठचक्र साप्ताहिक होता है , उसमें हमलोग सामूहिक रूप से देख सकते हैं कि महामण्डल में आने के बाद हमारा जीवन ठीक से गठित हो रहा है या नहीं ? किस सदस्य में कौन सा अभ्यास कम हो रहा है, किसी क्रिटिक को बुलवाकर भी च्चर्चा हो सकती है।  यदि युवा पाठचक्र ठीक ठीक चल रहा है तो महामण्डल भी मजबूत होगा। जहाँ पुरे वर्ष बहुत आशा लेकर आते हैं -वहां ज्यादा ध्यान रखा जा सकता है। पाठचक्र में विवेक-जीवन , विवेक-अंजन से बोलने दो।  नए- नए सदस्य बोलें तो अच्छा होगा। 3H विकास के 5 करणीय अभ्यास क्या हैं ? इस पर पाठचक्र में नियमित चर्चा होना चाहिए। पाठचक्र का उद्देश्य है आत्मविश्वास अर्जित करने की शिक्षा प्राप्त करना। बैठकर कथावाचन करना उद्देश्य नहीं है। परिच्छेद के हिसाब से पढ़ना चाहिए , पाठ्यविषय ठीक से समझे या नहीं ? पढ़ने का तरीका भी आना चाहिए। पुस्तक का पाठ विषय पूर्वनिर्धारित होगा , फाइल में जो मिल गया उसीको पढ़ लेने से नहीं होगा। कौन पढ़ेगा ? यह भी पूर्वनिर्धारित होगा।हमारे बहुत निकट रहता है , लेकिन हमसे इतना जलता क्यों है ? पाठचक्र में  व्यक्तिगत आध्यात्मिक प्राप्ति कहाँ तक हुई ? क्या इसपर बात नहीं करेंगे ? स्वामीजी के आशीर्वाद से हमलोग भी जीवन की परीक्षा में उसी प्रकार उत्तीर्ण होंगे जिस प्रकार स्वामी विवेकानन्द उत्तीर्ण हुए थे। 

दीक्षा पर चर्चा या विवेकानन्द का  जीवन एक सार्थक जीवन था , हमलोगों को भी अपना जीवन सार्थक करना चाहिए। नरेन्द्रनाथ ने ब्रह्मविद की पदवी मन के साथ संघर्ष करके जीता था , मुफ्त में ठाकुर का चपरास नहीं मिल गया था। पात्रा ने बताया कि खड़गपुर यूनिट में १.३० बजे से २ घंटे का पाठचक्र होता है। पाठचक्र में जाना उन्हें मन्दिर में जाना जैसा रोमांचित करता है। महामण्डल को आगे ले जाने वाली शक्ति ही प्राणशक्ति है। उस समय अन्य कोई कार्य नहीं करना चाहिए। सत्संग-सदग्रन्थ पाठ , शुभ-विचार , शुभ- कर्म, शुभ-चरित्र ! इस प्रकार अभ्यास करने से हमारे जीवन में आगे और भी परिवर्तन होता रहेगा।  व्यक्तिगत या स्थानीय स्तर पर नहीं देशव्यापी स्तर पर चरित्र-निर्माण का कार्य चलने के साथ साथ काली कमाई वालों पर ED की छापेमारी भी जारी है। विचार-कर्म-प्रवृत्ति - चरित्र मेरे अतीत का चरित्र ही मेरे आज का 'मैं ' है ! मेरी प्रवणता ही मेरा मैं है।  2+2 =4 होता है , उसी प्रकार यदि हम अच्छे गुणों को बढ़ाते जाएँ अच्छे चरित्र के अधिकारी हो जायेंगे। next class में 24 गुणों की तालिका , पर चर्चा साप्तहिक -पाक्षिक आत्ममूल्यांकन तालिका भरना। ६ महीने में चरित्रवान मनुष्य बन जाना सम्भव।

11.>>>Concept of Dharma and Karma : धर्म (सेक्रेड)  की धारणा / कर्म (सेक्यूलर) की धारणा /10 am - दादा के अनुसार -To be good and to do good is whole of religion ! Expansion is life contraction is death! शरीर को मैं मानना ही सबसे बड़ी भूल है। वो मृत है। जो शरीर को मैं समझता है वो more dead than alive है। इस जड़ शरीर में दैवी सत्ता है , ब्रह्म सत्ता है। हम सभी स्वरूपतः ब्रह्म हैं। I am He , I am you , Oneness of all, Each Soul is potentially divine .The goal is to manifest that divinity, do this in 4 ways or anyone.  but I will have to master my mind firstतब सेक्यूलर और सेक्रेड में कोई अन्तर नहीं रहेगा।  मैं और मेरे लिए सांसारिक कार्य, बिजनेस -व्यापार आदि करते हो वो भी धर्म है। और ईश्वरलाभ के लिए मनःसंयोग के लिए जो करते हो, यम-नियम वह तपस्या है साधना है। ये भी कर्म हैं। तपस्या है कुछ पाने के लिए कष्ट सहना। मनःसंयोग महामण्डल का मुख्य साधना या कार्य है। आधुनिक युग के अवतार ने यही शिक्षा- (मनःसंयोग) दी है। तिलक-फोटा नहीं चाहिए, बल्कि पवित्र जीवन चाहिए । मनुष्य का दुःख दूर करने के लिए अपना स्वार्थ भूल जाना धर्म है। 

12.>> The last murder and the cloth became white ! अन्तिम  हत्या और कपड़ा सफ़ेद हो गया ?  Cardio Exercise Education-  ह्रदय -विस्तार का अभ्यास हेतु ध्यान की मूर्ति का चयन-Choosing an idol of meditation for the practice of heart-expansion):  कोई तीन दिन का भूखा अन्न खा रहा है , मैं उसका ध्यान कर रहा हूँ, क्या आनन्द आ रहा है ? जहाँ बावनवाँ वहीं तिरपनवाँ, बोल कर अंतिम हत्या कर दिया और कपड़ा सादा हो गया ! त्याग का भाव , प्रेम का भाव बढ़ जायेगा, हमारा हम 'मैं' -हरि तक प्रसारित हो जायेगा, तो ईश्वरलाभ क्यों नहीं होगा ? ह्रदय -विस्तार का अभ्यास करो , अपना भोजन त्याग कर भूखे को खाना खिलाओ ! यह कहते समय दादा एक कहानी सुनाते थेजहाँ बावनवाँ वहीं तिरपनवाँ, बोल कर अंतिम हत्या कर दिया और कपड़ा सादा हो गया !

   - साभार : @@@ कर्मयोग का रहस्य :/https://vivek-jivan.blogspot.com  /-2010/05/21.html?m=0 /   

हम में से प्रत्येक के भीतर ' महान ' बनने की सम्भावना अन्तर्निहित है, हम कितने महान हो सकते हैं-इसकी कोई सीमा नहीं है !  "हम लोग ब्रह्म को जानकर ब्रह्म हो सकते हैं ! " किन्तु हमलोग अपने थोड़े से विकास से ही संतुष्ट हो जाते हैं।  थोड़ा पढना-लिखना सीख लिया, कोई नौकरी प्राप्त हो गयी, शादी-विवाह करके थोड़ा पारिवारिक सुख लिया, एक दो सन्तान हो गया, फिर जैसे तैसे जीवन कट ही जाता है।  भले ही दुःख-कष्ट में जीना पड़े य़ा  पीड़ा और यंत्रणा में य़ा  हिंसा-अत्याचार-प्रताड़ना में य़ा फिर लोगों को ठग कर ही सही किसी प्रकार गुजर-बसर तो हो ही जाता है। क्या केवल बुढ़ाकर मर जाने के लिए, यह दुर्लभ मनुष्य -जीवन मिला था ? इसी लिये बंगला में रवीन्द्र संगीत है-(alpa laiya thaki tai mor) ' अल्प लईया थाकि, ताई जाहा पाई - ताहा चाई ना। 'অল্প লইয়া থাকি, তাই মোর যাহা যায় তাহা যায়। কণাটুকু যদি হারায় তা লয়ে; প্রাণ করে হায়-হায়। - हम लोग थोड़े को ही लेकर जीवन बिता देते हैं(क्षूद्र अहं को ही अपना यथार्थ स्वरूप समझते हैं.), इसी लिये जितना भी प्राप्त होता है, उसे चाहते नहीं हैं ! (उपनिषद में कहा गया है- ' न अल्पस्य सुखं भूमैव सुखम ') फिर हममें से ही कोई यदि (तथा कथित-बुद्धिवादी) विद्वान् निकल गया ( मनुष्य जीवन कैसे सार्थक बनता है, इसका तरीका नहीं समझा ?) तो वह कुमार्ग में जाकर और अधिक भटक जाता है। इसीलिये एक सन्यासी ने किसी पत्रिका में स्वामी विवेकानन्द के कर्मयोग इत्यादि पर चर्चा करते हुए, स्वामी जी द्वारा कही गयी एक कहानी का उदहारण दे कर जो समझाया था, वह अति सुन्दर कहानी बीच-बीच में याद आ जाती है- 

  किसी गाँव में गाँव के बिल्कुल एक छोर पर एक सन्यासी वास करते थे, उनकी एक कुटिया थी।  और उसी ग्राम में एक डकैत भी रहता था, उस डकैत ने अनेक बार डाका डाला था, डाका डालने के क्रम में अनेकों हत्यायें  भी किये थे। जब उस डाकू उम्र कुछ अधिक हुई तो उस डकैत के मन में विचार आया- नहीं, यह सब कार्य - डाका डालना,किसी मनुष्य की हत्या करना आदि ठीक कार्य नहीं है, अब और ऐसा जघन्य कार्य नहीं करूँगा।  फिर सोचने लगा, यह छोड़ कर रहूँगा कहाँ, कहाँ जाना ठीक होगा ? 

फिर उसने सोंचा, अपने साधु जी तो अक्सर परोपकार करने का उपदेश देते हैं, जो लोग किसी संकट में पड़ जाते हैं, उनको आश्रय देते हैं, तो क्यों नहीं साधु महाराज से ही पूछा  जाय ? वे साधु के पास जा कर बोले- " मैं इस प्रकार का एक भयंकर डकैत हूँ, अनेकों मनुष्यों की हत्या कर चुका हूँ, कई डाके डाले हैं, किन्तु मुझे अब यह सब अच्छा नहीं लगता है| मैं यहाँ आपके आश्रय में रहना चाहता हूँ, मुझे यहाँ रहने देंगे? " साधु बोले- " ठीक है, रह जाओ।  "

 कुछ दिन उनके सत्संग में रहने के बाद, उस डकैत ने पुनः कहा- " मैंने तो अनेकों पाप किये हैं अब थोड़ा पुण्य संचय करने के लिये तीर्थ- स्नान आदि करने की इच्छा हो रही है। " साधु बोले- बात तो ठीक है , लेकि  यह बताओ कि तीर्थ-स्नान आदि करने से तुम्हारे पाप मिट गये  य़ा नहीं - इस बात को तुम समझोगे कैसे ? "  डकैत सोंच में पड़ गया - ' बिल्कुल ठीक बात है, सचमुच मैं कैसे जान पाउँगा कि मेरे पाप गये हैं य़ा नहीं? साधु बोले- "  एक काम करो, तुम आधा मीटर सफ़ेद   कपड़े का एक टुकड़ा ले आओ। " वह डकैत आधा मित्र सफ़ेद कपड़ा का टुकड़ा ले आया। साधु महाराज बोले- ' वहाँ पर दावात रखा है, तुम उसकी पूरी  स्याही इस सफ़ेद कपड़े पर उड़ेल  दो। " स्याही डाल दिया वह कपड़ा काला हो गया ।  फिर साधु बोले - " इस कपड़े को तुम अपनी मोटरी में रख लो।  जब किसी तीर्थ स्थान में जाकर स्नान करोगे तो, स्नान करने के बाद बाहर निकलते ही , इस कपड़े को मोटरी से बाहर निकाल कर देखना।  - यदि देखो कि कपड़ा तो काला ही है, तो समझ लेना कि तुम्हारा पाप अभी मिटा नहीं है, और जब पाप मिट जायेगा तो देखोगे कि कपड़ा फिर से सादा हो गया है! " अब वह विभिन्न तीर्थ स्थानों का दर्शन करने के बाद जहाँ-जहाँ स्नान करता, प्रत्येक बार उस कपड़े को बाहर निकाल कर देख लेता, पर उसका कालापन मिटता नहीं था- जैसा था वैसा ही बना रहता।  बहुत उदास मन से वापस लौट रहा था। 

वापस लौटते समय रास्ते में एक घना जंगल भी पार करना पड़ता था। जब वह उसी घने जंगल से गुजर रहा था, तो उसे किसी स्त्री की- ' बचाओ-बचाओ ' की आर्तनाद सुनाई दी।  वह उसी आवाज का अनुसरण करता हुआ जब घटना स्थल पर पहुँचा, तो देखा कि कुछ डकैत लोग किसी  नव-विवाहिता स्त्री को पकड़ कर, रस्सी से एक पेंड़ के साथ बांध दिया है, और उसका सब गहना-गुड़िया लूट रहा है। तीर्थाटन करने से पवित्र हुए डकैत के मन में वापस लौटते समय  हठात बोध जाग गया - ' नहीं नहीं इस अकेली महिला को तो बचाना ही होगा! ' उस डाका डालने वाले डकैत की ही कुल्हाड़ी, वहीँ जमीन पर गिरी हुई थी।  उसी कुल्हाड़ी को उठाकर वह  बोला- ' जहाँ बावन वाँ वहीं तिरपन वाँ !'  और झट से एक डकैत के माथे पर वार कर दिया, उसका सर फट गया और रक्त-रंजित हो कर वह वहीं गिर पड़ा, उसकी हालत देख कर अन्य सब डकैत भाग गये। तब डकैत ने उस नारी का बन्धन खोल दिया, उसका समस्त गहना आदि को एकत्र करके एक पोटली में बांध कर उस लड़की के हाथ में देकर बोला- ' तुम्हारा घर किस गाँव में है, कहाँ रहती हो ?' फिर उसके बताये रास्ते तक उसे छोड़ कर, साधु के पास वापस लौट आया।  

जब साधु के पास पहुँचा तो साधु ने पूछा- " बताओ क्या समाचार है, तुम्हारे तीर्थस्नान से सब पाप -वाप मिट गए हैं य़ा नहीं ? डकैत बहुत दुखी होकर बोला- " पाप मिटना तो दूर की बात है, महाराज और एक नया खून कर के आया हूँ !"  साधुजी बोले - क्यों ? ऐसा कैसे, क्या हुआ ? पूरा विवरण कह सुनाया- इस प्रकार इस प्रकार सब हुआ है। तब साधु महाराज बोले- ' ठीक है, तुम जरा अभी अपनी मोटरी से उस काले कपड़े को बाहर निकाल कर देखो तो।' जब उसने गंदे कपड़े को बाहर निकाला तो देखता है- अब वहाँ थोड़ी भी स्याही नहीं है, पूरा कपड़ा बिल्कुल सफ़ेद हो गया है!

इस उदहारण से साधु महाराज ने कर्म-योग के मूल रहस्य को इस प्रकार समझाया- देखो धर्म क्या है ? सत्कर्म के उद्देश्य से किया गया कोई कर्म धर्म है , पाप कट जाता है। " यह खून- जो तुमने अभी अभी किया है, वहाँ वह खून करना ही तुम्हारा कर्तव्य था।  एक अबला स्त्री की रक्षा करने के लिये तुमने वह हत्या किया था। इसके पहले तुमने जितने खून किये थे, उसके पीछे तुम्हारा उद्देश्य उनकी हत्या करके लूट-पाट करना था। और अभी जो खून किया वह किसी के कल्याण के लिये किया है! इसलिए हत्या जैसा जघन्य कर्म भी विवेक पूर्वक करने से कर्मयोग हो सकता है ! "   तब से हमलोग इस मुहाबरे- ' जहाँ बावनवाँ वहीं तिरपनवाँ ' को अक्सर व्यवहार में लाते हैं। यह धर्म-बोध, इस प्रकार विवेक-पूर्वक कर्म करने की क्षमता - हममे से प्रत्येक के भीतर रहना आवश्यक है!

13. >>मनुष्य बनने के लिए तपस्या करना होगा, यम-नियम को जीवन में धारण करना ही होगा। फिर भी यदि ईश्वर लाभ अर्थात आत्मविश्वास लाभ ! न हुआ तो समझो ईश्वर - यानि आत्मा है ही नहीं ! हमारा मन-मुख एक नहीं है। पवित्रता का जीवन बने , 3H विकास का 5 अभ्यास करें तो आत्मविश्वास अवश्य बढ़ेगा ! स्वामी जी ने ठाकुर से पूछा था -"महाशय ,क्या अपने ईश्वर को देखा है ?" इस प्रश्न के पीछे हमारी ईश्वर की धारणा क्या होती है ? चार हाथ वाले प्रभु ? शंख-चक्र-गदा -पद्म ? कौन वस्तु किस हाथ में होगी ? यह प्रथम अवस्था में ठीक है। बोध होने के पहले ऐसी जिज्ञासा ठीक है। ईश्वर लाभ होगा मनःसंयोग द्वारा निर्विकल्प समाधि में। राजयोग ग्रन्थ का अनुसरण करने से। लेकिन ठाकुर ने निर्विकल्प का आनन्द लेने, ईश्वरलाभ का आनन्द लेने  से स्वामी जी को क्यों डाँटा ? क्यों छोड़वा दिया ? २२-२३ वर्ष के नरेन् का लक्ष्य प्राप्त हो गया, अब केवल अपना भोग चाहता है ? छिः नरेन् तुई एतो हीन बुद्धि ? रामेश्वरम के मंदिर में स्वामीजी ने अंग्रेजी में भाषण दिया था। उन्होंने कहा था - " जो शिव जी को केवल पत्थल की मूर्ति में देखता है , और जीवित मनुष्य रूपी शिव की पूजा नहीं करता, तो समझो कि अभी वह पहले ही सोपान पर खड़ा है। " प्रत्येक मनुष्य में ठाकुर ही हैं ! मैं प्रत्येक मनुष्य में  पूर्ण ब्रह्म की अनुभूति करूँगा।  "I will realize the fullest Brahman" - अर्थात मैं ब्रह्म के साकार और निराकार दोनों स्वरुप की अनुभूति करूँगा। इसी मनुष्य शरीर में पूर्ण ब्रह्म या 100 % निःस्वार्थपरता की अभिव्यक्ति सम्भव है। जीवन क्या है ? Life is the unfoldment and development of a being  under the circumstances tending to press it down . एक अन्तर्निहित शक्ति अपने को व्यक्त करना छह रही है ---- 

14. >>सिंह -शावक की कथा -I promise I will not kill you!  मेरा खाद्य पदार्थ जैसे घास है , यह सिंह क्या हमें वैसे खा लेगा ?  काल क्या उसको खा लेगा जो खुद महाकाल है ? जो खुद सिंह है , वो दूसरे सिंह को देखकर भाग क्यों रहा था ? वो गुरु सिंह उसके पास जाकर बोला - I promise I will not kill you! मैं वादा करता हूँ कि मैं तुम्हें नहीं मारूँगा! , बल्कि तुमको तो अमर बना दूँगा। उस सिंह ने एक और भेंड़ को मारकर उसका मांस इस सिंह-शावक को खिला दिया। इसीलिए स्वामी जी ने कहा था मेरे आदर्श को थोड़े से शब्दों में कहा जा सकता है , वह है प्रत्येक मनुष्य को उसके अंतर्निहित ब्रह्म का उपदेश देना , और जीवन के हर क्षेत्र में उसे प्रकट करने का मार्ग बताना। " मनुष्य स्वरूपतः ब्रह्म है। " इसको रोज तोता ऐसा बोलता रहा पर 5 अभ्यास नहीं किया , भेंड़ बना रहा ? ऐसे युवाओं को कैसे बताओगे कि मैं आया हूँ तुम्हें बताने कि तुम अपने अंतर्निहित ब्रह्मत्व को अभिव्यक्त कैसे करोगे ? ठाकुर देव इसी लिए अविर्भूत हुए थे। महामण्डल रूपी संगठन भी मूर्तमान गुरु है। जैसे गोबिंद सिंह के बाद - "गुरु मानियो ग्रन्थ" , वैसे नवनीदा के बाद - " गुरु मानियो संग़ठन" यह संगठन अंतर्निहित ब्रह्मत्व को अभिव्यक्त करने की पद्धति सिखाने के लिए ही आविर्भूत हुआ है। लीडरशिप ट्रेनिंग यही है - मैं स्वयं ईश्वर में उन्नत हो रहा हूँ , और दूसरों को भी ईश्वर में उन्नत उठाने  की कोशिश कर रहा हूँ ! यही है ठाकुर -स्वामीजी प्रशिक्षणपद्धति का चपरास ! 1890 -91 - 92 ' परिव्राजक जीवन , कन्याकुमारी पर ध्यान -भारत माता का ! मेरा मुक्ति कैसे हो ? यह उनके ध्यान का विषय नहीं था। मनुष्यों का दुःख कैसे दूर हो ? यही उनके ध्यान का विषय था। जहाज पर से ही 20 अगस्त 1893 को अलसिंघा को पत्र लिख रहे हैं -----------"               15 >>>Leadership :  'भवसागर के 'lighthouse' -आलोकस्तम्भ ' All foxes have the same call !' महामण्डल स्थापित होने के शुरुआती दिनों (early days) में इस दो दिवसीय SPTC (विशेष युवा प्रशिक्षण शिविर) को "Education and appraisal sessions" अर्थात  "शिक्षा और मूल्यांकन सत्र" (बंगला - শিক্ষা ও সমীক্ষা সত্র ) कहा जाता था। महामण्डल के उद्देश्य और कार्यक्रम के विषय में इससे जुड़े सभी निष्ठावान सदस्यों (भावी नेताओं ) की स्पष्ट अवधारणा बन सके यही इस 'नेतृत्व-प्रशिक्षण शिविर' का उद्देश्य था। 

 बंगला कहावत है - सब शियालेर एक ई डाक !"(সব শিয়ালের এক ই ডাক ) ' All foxes have the same call !' सभी लोमड़ियां एक ही आवाज़ में आह्वान करती हैं !" उसी प्रकार गुरु परम्परा में प्रशिक्षित सभी ब्रह्मविद नेता के आह्वान- "उत्तिष्ठत जाग्रत !" में भी एक समान आत्मविश्वास भरा होता है। अभी युवा महामण्डल की आयु 49 वर्ष हो चुकी है। यदि महामण्डल से जुड़े सभी निष्ठवान कर्मियों (भावी जीवन्मुक्त शिक्षक, नेता या पैगम्बर) के मन में इस युवा संगठन के आदर्श, उद्देश्य और कार्यक्रम के विषय में एक स्पष्ट अवधारणा रहेगी , तभी तो महामण्डल के चार भाई जब किसी स्कूल -कॉलेज के सेमिनार में बोलने जायेंगे तो सभी के भाषण (आह्वान)  का सार एक होना चाहिए।

16 . >>>ब्रह्मवेद ब्रह्मैव भवति : "ईश्वर का सर्वोच्च आदर्श जिसे मानव मन समझ सकता है वह अवतार (आत्मसंस्थ नेता, गुरु या पैगम्बर)  है।.... " इसी बात को स्पष्ट करते हुए स्वामीजी ने कहा था - ".... ब्रह्म तथा ब्रह्मज्ञ में कुछ भी अन्तर नहीं है - ब्रह्मवेद ब्रह्मैव भवति ( ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म हो जाता है।) लेकिन 'आत्मा को तो जाना नहीं जा सकता' क्योंकि यह आत्मा ही ज्ञाता (सत्यार्थी) और मननशील बनी हुई है - यह बात मैंने पहले ही कही है। अतः मनुष्य का जानना उसी अवतार तक है- जो आत्मसंस्थ है! मानव बुद्धि ईश्वर के सम्बन्ध में जो सबसे उच्च भाव ग्रहण कर सकती है, वह वहीं तक  (महामण्डल के नेता, गुरु या C-IN-C नवनीदा  तक) है। उसके बाद और जानने का प्रश्न नहीं रहता। उस प्रकार के ब्रह्मज्ञ कभी कभी ही जगत में पैदा होते हैं।  उन्हें कम लोग ही समझ पाते हैं। वैसे नेता (CINC नवनीदा जैसे नेता) ही शास्त्र वचनों के प्रमाण स्थल हैं - 'भवसागर के 'lighthouse' -आलोकस्तम्भ है !' इन अवतारों के सत्संग तथा कृपादृष्टि से एक क्षण में ही ह्रदय का अन्धकार दूर हो जाता है - एकाएक ब्रह्मज्ञान का स्फुरण हो जाता है। क्यों होता है ? अथवा किस उपाय से होता है , इसका निर्णय नहीं किया जा सकता , परन्तु होता अवश्य है। मैंने होते देखा है। (६/१६८) 

दादू-पंथी सम्प्रदाय के त्यागी सन्त निश्चलदास ने अपने 'विचारसागर' ग्रन्थ में स्पष्टतापूर्वक कहा है - 

" जो ब्रह्मविद वही ब्रह्म है,ताको वाणी वेद। 

भाषा अथवा संस्कृत में, करत भेद-भ्रम का छेद।। 

-अर्थात जिसने ब्रह्म को जान लिया, वह ब्रह्म बन गया, उसकी वाणी वेदरूप है, और उससे अज्ञान का अंधकार दूर हट जायेगा, चाहे वह वाणी संस्कृत में हो या किसी लोकभाषा में हो।"

[ब्रह्म तथा ब्रह्मज्ञ में कोई अन्तर नहीं होता -अर्थात साम्य भाव में अवस्थित- आत्मसंस्थ, अवतार, (नेता, पैगम्बर) ब्रह्म ही हो जाता है ! इसीलिए सब शियालेर एक ई डाक!  ..... Between Brahman and the knower of Brahman there is not the least difference. “ब्रह्म वेद ब्रह्मैव भवति — He who knows the Brahman becomes the Brahman” (Mundaka, III. ii. 9). The Atman cannot be known by the mind for It is Itself the Knower — this I have already said. Therefore man’s relative knowledge reached up to the Avataras — those who are always established in the Atman. The highest ideal of Ishvara which the human mind can grasp is the Avatara. 

ব্রহ্ম ও ব্রহ্মজ্ঞে কিছুমাত্র তফাত নেই—‘ব্রহ্ম বেদ ব্রহ্মৈব ভবতি।’ আত্মাকে তো আর জানা যায় না, কারণ এই আত্মাই বিজ্ঞাতা ও মন্তা হয়ে রয়েছেন—এ কথা পূর্বেই বলেছি। অতএব মানুষের জানাজানি ঐ অবতার পর্যন্ত—যাঁরা আত্মসংস্থ। মানব-বুদ্ধি ঈশ্বর সম্বন্ধে highest ideal (সর্বাপেক্ষা উচ্চ আদর্শ) যা গ্রহণ করতে পারে, তা ঐ পর্যন্ত। ] 

17. >> चरित्र निर्माणकारी शिक्षा जीवन गठन की नींव है : (Character-building education is the foundation of Life Building): तो इस SPTC में हम इसलिए आये कि विवेक-प्रयोग को जीवन में धारण करने में हम कितने सफल हुए इसका यहाँ बैठकर मूल्यांकन करेंगे। 70 दिन में चरित्र के 24 गुणों का- आत्मश्रद्धा , आत्मविश्वास का मानांक कितना मिला ? चरित्रगठन ही जीवनगठन का बुनियाद है। 'श्रेय को ग्रहण कर, प्रेय को त्याग कर' जीवन-गठन का सूत्र यही है - ' Accept the “beneficial” and discard the “pleasant”-this is the formula of life building. 5 अभ्यास में मनःसंयोग मुख्य है। इसको करने से सब कुछ मिलेगा। घर गृहस्थी में रहते हुए यम-नियम का 24 X 7 पालन करना ही तपस्या है। तो  SPTC में आकर 70 दिनों के शारीरिक -मानसिक क्रमविकास का मूल्यांकन करना है , क्रम विकास आत्मा का नहीं होता है। 

गृहस्थ जीवन में रहते हुए लीडरशिप ट्रेनिंग में 1st OTC से 2nd OTC के बीच जो 70 days मिला इसमें 3H विकास के 5 अभ्यास का self -grading करो। यम-नियम का पालन करना Leader के लिए आवश्यक है। ब्रह्मचर्य-पालन अनिवार्य है। नैतिक्ता और चरित्र पर कोई धब्बा न हो। Minimum possible lunch and dinner : जितना कम से कम भोजन कर सको करो - भात में- आलू सिद्धो , पेपे सिद्धो ! उबला आलू या उबला पपीता के साथ उसना चावल खाया ? या पकवान खाने चाहा ? आत्ममूल्यांकन करो प्रयोजन से अधिक भोग करने की ओर तुम्हारा मन तो नहीं जा रहा है ? श्रेय का ग्रहण और प्रेय के त्याग में ही आनन्द है , इसके उल्टा में नहीं। भगवान कृष्ण एक रोज गौ चराते हुए जंगल में दूर चले गए तो जंगल में वृक्ष के नीचे गायों को विश्राम करते देखकर बोले - 

पश्यतैतान् महाभागान् परार्थैकान्तजीवितान् ।

वातवर्षातपहिमान् सहन्तो वारयन्ति न: ॥ ३२ ॥

(श्रीमद् भागवतम,श्लोक  10.22.31-32 )

 भगवान् कृष्ण ने कहा “हे मित्रो , जरा इन भाग्यशाली वृक्षों को तो देखो जिनके जीवन ही अन्यों के लाभ हेतु समर्पित हैं। वे हवा, वर्षा, धूप तथा पाले को सहते हुए भी इन तत्त्वों से हमारी रक्षा करते हैं।

अहो एषां वरं जन्म सर्वप्राण्युपजीवनम् ।

सुजनस्येव येषां वै विमुखा यान्ति नार्थिन: ॥ ३३ ॥

जरा देखो, कि ये वृक्ष किस तरह प्रत्येक प्राणी का भरण कर रहे हैं। इनका जन्म सफल है। इनका आचरण महापुरुषों के तुल्य है क्योंकि वृक्ष से कुछ माँगने वाला कोई भी व्यक्ति कभी निराश नहीं लौटता।

एतावज्जन्मसाफल्यं देहिनामिह देहिषु ।

प्राणैरर्थैर्धिया वाचा श्रेयआचरणं सदा ॥ ३५ ॥

हर प्राणी का कर्तव्य है कि वह अपने प्राण, धन, बुद्धि तथा वाणी से दूसरों के लाभ हेतु सदा - श्रेय का ग्रहण करते हुए प्रेय का त्याग करे और कल्याणकारी कर्म करे।

एक प्रश्न आया महामण्डल का एक भाई मेरे बहुत निकट है , लेकिन वो हमसे जलता है , ईर्ष्या करता है , क्या करें ? किसी में यदि दोष दिखे, नाम- यश की कामना दिखे तो प्रेमपूर्वक उस दोष को अकेले में बता दो। ताकि उसे शर्मिन्दा न होना पड़े। विद्वेष-शत्रुता या वैर न दिखाते हुए, भरी सभा में किसी के दोष को उजागर न करो। 

महामण्डल का उद्देश्य है --मनुष्य बनो और बनाओ ! प्रत्येक मनुष्य में एक एक सम्भावना है। जैसे किसी में गायक बनने की सम्भावना है , लेकिन जब उसका रियाज करेगा तभी गायक बन सकेगा। वही उसका उद्देश्य बन जायेगा तब वो रियाज करेगा। भारत को महान राष्ट्र बनाने के लिए महामण्डल का मनुष्य निर्माण पद्धति है - "अपने में ब्रह्मभाव को अभिव्यक्त करने का एकमात्र उपाय है कि इस विषय दूसरों की सहायता करना। लाखो स्त्री-पुरुष पवित्रता के अग्निमन्त्र से दीक्षित होकर , भगवान के प्रति अटल विश्वास से शक्तिमान बनकर और गरीबों , पतितों तथा पददलितों के प्रति सहानुभूति से सिंह के समान साहसी बनकर इस सम्पूर्ण भारत देश में सर्वत्र उद्धार के सन्देश का, समानता के सन्देश का , सामाजिक उत्थान के सन्देश का प्रचार करते हुए विचरण करेंगे। "  

ये मनुष्य बनाने का  काम NGO /Govt से नहीं होगा। वो लोग भोजन-वस्त्र -आवास देने का काम करता है , 'मनुष्य' बनाने काम सरकारी स्तर से होना सम्भव नहीं है। 1967 में युवा लोग आन्दोलित थे , किन्तु कुछ दूरदर्शी युवा भी थे। वे लोग उन युवाओं का मार्गदर्शन करने के लिए महामण्डल संगठन की स्थापना की। ताकि युवाओं के मन को उच्च विचारों से भरने के लिए प्रशिक्षित किया जाए। 28 वर्ष से 12 जनवरी को विवेकानन्द जयन्ती पर प्रभात फेरी जानिबीघा गाँव में निकलता रहा है , किसी साल नहीं निकलता तो ग्रामीण पूछते हैं , इस बार क्यों नहीं निकाला ? जो ग्रामीण पहले हमारे विरोधी थे , अब हमारे ऊपर आशा रखते हैं। 

व्यक्ति जीवन गठित करते हुए मनुष्य बनने का काम अधिभौतिक से ज्यादा आध्यात्मिक कार्य है। युवाओं के मन को प्रशिक्षित करना है। विवेकी मनुष्य बना देना है। जो युवा स्वयं से , समाज से और देश से प्रेम करते हैं देश कीअवस्था को बदलना चाहते हैं , उन देशभक्त युवाओं को समझा देना है कि जीवनगठन करने के लिए घर-परिवार , बिजनेस-व्यापार छोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। प्रतिदिन ये 5 काम करने हैं -  प्रार्थना , मनःसंयोग , व्यायाम , पाठचक्र-मूल्यांकन , स्वाध्याय -स्वामीजी का जीवन-सन्देश।  

18. >>>विवेक-वाहिनी के राज्य इंचार्ज ~ रासबिहारी का रिपोर्ट सुनना और अमल में लाना आवश्यक होगा।  उसने ने त्याग के आनन्द का अनुभव स्वयं किया है !  त्याग का आनन्द कैसा है > इसको स्वयं चखकर देखो। 49th AGM में आत्ममूल्यांकन करो। प्रेम-प्रयोग से केसरीसुदीतो की असम्भव बीमारी को ठीक होने में सम्भव करो ! श्रेय-प्रेय विवेक 24 घंटा चले। अजीमगंज विवेक-वाहिनी के लिए रेल विभाग ने जमीन दिया है। निकारीघाटा विवेक-वाहिनी देखो। विवेक-वाहिनी का नेता C-IN- C तरुण है। 8.25 pm विवेक-वाहिनी रिपोर्ट: गत मार्च OTC के पहले " विवेक -वाहिनी निदेशक शिविर" (বিবেক বাহিনী পরিচালক শিবির) Vivek vahini  director camp' हुआ था।  उस शिविर में यह बताया जाता है कि जहाँ बच्चों का कोई शाखा नहीं हो वहां , कैसे शुरू करें ? किशोर -वाहिनी महामण्डल का सहायक भाव से काम करता है। Executive meeting में विशेष अध्यक्ष की अनुमति से पर -बार बार शिशु-विभाग , किशोर-विभाग खोलने पर चर्चा हो। १-२ दिन शिशु विभाग का पाठचक्र हो। 153 कैंपर्स में 57 न्यू कॉम्पर्स हुआ था। ४ साल में विवेक-वाहिनी फिर से पुरुज्जीवित हुआ है। २४ विवेक-वाहिनी यूनिट चलता है। अभी २६ हुआ है। २२ यूनिट बन्द भी हुआ है। तो जुड़ा भी है प्लस/माईनस होकर 26 unit चलता है। 

१. जानीबीघा विवेक-वाहिनी में कहाँ भूल हुआ ? उसका अलग से रिपोर्ट दो। फिर क्यों नहीं खुल पाया उसका भी रिपोर्ट दो। 

२. विवेक-वाहिनी के शिशु विभाग का संगीत पुस्तिका हिन्दी में नहीं छपा है ? उत्पल दा की सहायता से छप रहा है। बंगला नाटक की पुस्तक का भी हिंदी अनुवाद होना चाहिए। प्रत्येक वार्षिक शिविर में शाम को एक नाटक भी रहेगा। ठाकुर-स्वामीजी की जीवनी पर आधारित नाटक हर यूनिट से तैयार होना चाहिए। आगामी कैम्प तक हिंदी , गुजराती में नाटक उपलब्ध रहेगा। 

३. इस बार विवेक-वाहिनी का जोनल इंचार्ज तरुण को राष्ट्रीय बनायें !! सभी सेंटर के विवेकवाहिनी परिचालक यदि तरुण को रिपार्ट करें , तो वे खुद वहाँ जाकर गाईड कर सकते हैं ।

४. हर जोनल OTC में विवेक-वाहिनी पर एक एजेण्डा रहना जरुरी है। 

५. भोगपुर सेन्टर में विवेकवाहिनी कैम्प होने में असुविधा होती है। विवेक-वाहिनी कैम्प भी स्टेट लेवल कैम्प की गरिमा से होना चाहिए। परिवेश गरिमापूर्ण हो। उसका जिम्मेवारी जोनल इंचार्ज पर होगा। कैम्प साईट अच्छा बनना चाहिए। 

६. किशोर विवेक-वाहिनी का युवा परिचालक ही महामण्डल की आत्मा में रक्त-संचार करता है। 20 मिनट में तरुण ने विवेक-वाहिनी की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला।

19.>>>महामण्डल संगीत घराना के गीत और लेखक  : जयो -जयो रामकृष्णो भुवन मंगलो  में गृही और त्यागी सभी शिष्य के नाम हैं, नाग महाशय, गिरीश घोष, + सभी युवा शिष्यों के नाम हैं। शुभाशीष दादा का शशि है।"जो भक्तिहीन पर कृपाकटाक्ष करे वही है रामकृष्ण है ! -I am You , में I का कार्यकारिणी समिति है।   और स्वामीजी- ताप हरण करते हैं ! Ramakrishna is the one who looks kindly on those, without devotion!..... [ ‘The Lord has not yet given up His Ramakrishna form. … The form of His will last until He comes once again in another gross body. Though He may not be visible to all, that He is in the organization (Sangha, Brotherhood, and is guiding it) is patent to all.’2 ]

१. "भैरव रव रवे , डाको डाको सबे , आर कि घुमानो साजे ? कोतो ना क्लेशे दोहीचे जगत आर कि घुमानो साजे ?" ~ नवनीदा ने लिखा। 

२. ' भेंड़ -विवेक-सिंह का बल और हुँकार से घोषणा करो , सिंह शिशु की दहाड़ से युवा घोषणा करो -  हम अपने भाग्य के निर्माता हैं। ~ नवनीदा 

३. आदर्श तव-शंकर -सीता : ~ चण्डिकानन्दजी द्वारा स्वदेश मंत्र का गीत।  

४. आमरा मायेर छेले , भय कि आमार ? ~ वीरेश्वर दा। 

५. तेज तुम , तेज दो , बल तुम करो बलियान ~ वीरेश्वर दा।   

६. असत राह से मुझे सत राह पर लो , मन का अँधेरा हटाओ ~ वीरेशर दा। 

७. हम सब हैं भाई, इस भारत के नवीन युवक दल, हमें तो पथ दिखाए ~ सनातन सिंह।  

८. बोड़ो होबो , बोड़ो होबो, ह्रदय -ब्रह्म होबे भाई ~ बिजय सिंह।   

९. जान लिया है हमने राज, चरित्र से बनता देश-समाज' स्लोगन  ~ बिजय सिंह।

१०. पदण्डी मुण्डकू ,  पदण्डी मुण्डकू " तेलगु स्लोगन ~ मुनि स्वामी गारू।    

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>>>151st, SPTC of ABVYM : [July 23, 2016> 7.40 pm > "49th, AGM of Mahamandal" > (SNS Camp to be held in October, 2016) 70 दिनों के अन्तराल पर वर्ष भर में  "स्वामी विवेकानंद -कैप्टन सेवियर  वेदान्त शिक्षक- प्रशिक्षण परम्परा" में  5 SPTC (लीडरशिप ट्रेनिंग कैम्प) आयोजित किये जाते हैं। महामण्डल के संस्थापक महासचिव  (=जीवनमुक्त शिक्षक, नेता या पैगम्बर C-IN-C)  नवनीदा के सामने  महामण्डल के 151 वां SPTC ( विशेष प्रशिक्षण शिविर) का इतिहास - वक्ता हैं महामण्डल के पूर्व महासचिव वीरेन दा : 

Sept, 1967 में संयोयक बने थे जयराम महाराज , और उन्होंने बहुत से रामकृष्ण-भावधारा से प्रेरित युवा संगठनों को आमंत्रित किया। उस मीटिंग की अध्यक्षता स्वामी अनन्यानन्द जी महाराज ने की थी। जिसमें तय हुआ कि 25 -26 अक्टूबर 1967 को अद्वैत आश्रम में दूसरी बैठक आयोजित की जाएगी। और उसी दिन की बैठक में अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल आविर्भूत हुआ। उस प्रथम कार्यकारिणी समिति के सचिव बने नवनीदा। उस बैठिक में बासुदा, बीरेश्वर दा, न्यू बैरकपुर छात्र संगठन , के साथ ६-७ अन्य संगठन शामिल हुए। नीलमणि दा, अमियो दा, नवनीदा को जिम्मा मिला नियम बनाने का। स्वामी गम्भीरानन्द जी महाराज उस समय रामकृष्ण मठ -मिशन के महासचिव थे , वे भेंट होने से हमेशा पूछते थे , कितने पुराने युवा संगठन को महामण्डल से मान्यता प्राप्त हुई ? चल रहे सभी संघों का नाम परिवर्तन करके महामण्डल में विलय करके आत्मसात करना जरुरी है। 

1967 में युवा महामण्डल के स्थापित होने के बाद प्रथम SPTC बैरकपुर छावनी स्कूल से  प्रारम्भ हुआ था। उसके बाद महामण्डल का प्रथम युवा प्रशिक्षण शिविर भी बैरकपुर छावनी स्कूल (Barrackpore cantonment school) में ही आयोजित हुआ था। पहली बार का SPTC अढ़ाई दिन (2 and 1/2 days) का हुआ था। उसमें जयराम महाराज भी  (वर्तमान में रामकृष्ण मठ -मिशन के अध्यक्ष) आये थे। 

पहले SPTC का आयोजन नियमित रूप से नहीं हो पाता था। अपनी कोई जगह नहीं थी। बैरकपुर में 'अरविन्द सोसाइटी ' भूतिया डाकबंगला  में  SPTC का आयोजन करने के लिए वहां के एक कमरा लिया गया था। बासुदा वहाँ के इंचार्ज थे, उन्होंने उसके मैनेजमेन्ट कमिटी से त्रैमासिक otc के लिए मंजूरी करवा ली थी।  लेकिन जब घर बहुत टूटफूट गया , तब अरविन्दो सोसाइटी बोला - " आपलोग अपने खर्चे से बनवा लो , लेकिन घर का मालिकाना हक उन्हीं के पास रहेगा। " जमीन महामण्डल के नाम से रजिस्ट्री करने वे तैयार नहीं थे। फिर बैरकपुर में ही एक भोलानन्द गिरी आश्रम स्कूल है, वहाँ OTC शुरू हुआ। जब कोन्नगर में महामण्डल का अपना भवन बन गया तब से प्रति वर्ष 5 SPTC हो जा रहा है। भवन बनने से कितना लाभ हुआ - 151 वां SPTC महामण्डल के अपने भवन में हो रहा है। जितना उपयोगी बनाने का प्रयास करना था -उतना छड़ बुनियाद में नहीं दिया ? प्रमोद दा कहते हैं -इतना मजबूत है कि इसपर दो तल्ला और खड़ा हो सकता है। 

>>>वीरेश्वर दा का जीवन : ऋषि-मुनियों के जैसा तपस्यापूत जीवन था, विशिष्ट नियम-निष्ठा द्वारा गठित एक तपोपूत जीवन था। वे कहते थे कि महामण्डल के SPTC में आते समय मन में ऐसा भाव रहना चाहिए मानो हमलोग गुरु के आश्रम में तपस्या करने जा रहे हैं। हमलोगों यहाँ श्रवण करके Chew And digest करने या चिबा कर पचा लेने की भावना से आना चाहिए। मैं खुद यहाँ की शिक्षा को आत्मसात करने आता हूँ। यहाँ  Picnic Spirit से नहीं आना चाहिए Penance Spirit से आना चाहिए। 

कुछ लोगों ने शिकायत कर दी कि महामण्डल पाठचक्र में श्रीरामकृष्ण वचनामृत छोड़कर केवल स्वामीजी का भाव Be and Make क्यों पढ़ाया जाता है ? पुराने संघ में बगावत हो गया कि जितने युवा गुरु-परम्परा में दीक्षित हुए हैं उनको महामण्डल में आने नहीं देगा। प्रभु महाराज को पत्र लिखा - पूछा , मैं भी दीक्षित हूँ , क्या मैं महामण्डल जा सकता हूँ ? लेकिन वहाँ कथामृत नहीं पढ़ाया जाता है। तो यदि आप भी यह कह देंगे कि मत जाओ तो मैं महामण्डल छोड़ दूंगा। प्रभु महाराज ने उसका उत्तर एक पोस्टकार्ड में दिया था बंगला भाषा में। प्रभुमहाराज तमिल थे , जयराम महाराज भी तमिल हैं , लेकिन बंगला जानते हैं। क्योंकि कथामृत-लीला-प्रसंग आदि ग्रन्थ को सभी साधु बंगला में ही पढ़ना चाहते हैं। महामण्डल पुस्तिका 'स्वामी विवेकानन्द और हमारी सम्भावना ' की भूमिका भी उन्हीं की लिखी हुई है। उस पत्र में प्रभुमहाराज ने लिखा था कि -सभी भक्तों को यह ज्ञात हो कि महामण्डल का उद्देश्य और कार्यक्रम में भाग लेना ही ठाकुर देव का वास्तविक पूजा है। हर सदस्य को साप्ताहिक पाठचक्र में अवश्य शामिल होना चाहिए। और जितने भी पूर्व से संचालित युवा संगठन अन्य नाम का प्रयोग कर रहे हैं , उन्हें अपने संगठन का पुराना नाम छोड़कर अविलम्ब महामण्डल के चरित्र-निर्माण आंदोलन में सम्मिलित हो जाना चाहिए। जैसे कई युवा संगठनों को महामण्डल से मान्यता प्राप्त करनी होगी। जो लोग नाम नहीं बदलना चाहते थे , वे महामण्डल से चले जाएँ। 

सेवा समिति का कुछ आदमी लोग बोलै वचनामृत पढ़ना ही होगा। भोग-खिचड़ी खाना , ठाकुर का काम है ? नवनीदा का Portfolio Bag of Navnida  में महामण्डल का पर्चा , पुस्तिका , भाषण देकर फॉर्म देते थे। Affiliation मिल गया। वीरेश्वर दा तो 'विवेक-समीति ' के प्राणपुरुष थे। वे भी महामण्डल से मिलने के लिए तैयार हो गए। फिर उनके प्रयास से संस्कृति परिषद , विवेक-समिति ,रामकृष्ण सेवा संघ, ... आदि छः संगठनों का विलय महामण्डल में हो गया। जैसे 1988 में आयोजित प्रथम राज्य स्तरीय युवा प्रशिक्षण शिविर होने के बाद १२ जनवरी १८८५ को स्थापित ' झुमरीतिलैया विवेकानन्द ज्ञान मन्दिर' का विलय महामण्डल में  1988 में हो गया था। 

>>>1st मीटिंग में तय हुआ युवा प्रशिक्षण शिविर लगाना होगा। उस मीटिंग में 6 Pre Existing Units भाग लिया था। उनमें से किसी भी संगठन ने  "Man-making" सुना नहीं था , Bread Making सुना था। उसके साथ कुछ individuals भी मीटिंग में शामिल थे। नवनीदा किसी संगठन से नहीं जुड़ा था। 1st Training camp, में कर्मवृत्ति संस्था भाग लेने आया, वह एक विजातीय संगठन (Heterogeneous organization) था। यानि एक 'रहस्यमय पद्धति के संगठन' (Organization of the 'Mysterious Method') था; वे लोग रहस्य विद्या पर जोर देने वाले Rituals करते थे। उनके (पंचमुण्डी आसन वाले) होम-यज्ञ आदि भी प्रशिक्षण के कार्यक्रम में शामिल था। बाद में उस संगठन का  भी महामण्डल में विलय हो गया। करते थे ? नवनीदा प्रथम कैम्प में थे, शौलेन बाबू के साथ धीरेन उस कैम्प में शामिल था।  अन्दुल मौरी का सुशान्त उस कैम्प में था। ( महामण्डल स्थापन के शुभ अवसर पर, अन्दुल मौरी के सुशान्त दा के पिता श्री भवदेव बंदोपाध्याय भी उपस्थित थे। उनके अनुसार  महामण्डल का प्रथम युवा प्रशिक्षण शिवि1968 के 8 जनवरी को दक्षिणेश्वर के आड़ियादह? में  आयोजित हुआ था,? लेकिन वीरेनदा  बताये हैं बैरकपुर ? में पहला कैम्प हुआ ?  तब उस शिविर में उन्होंने अपने पुत्र तथा आन्दुल के दो युवकों को शिविर-प्रशिक्षणार्थी के रूप में भेजा था।)  लेकिन वह कैम्प सही अर्थ में महामण्डल का कैम्प नहीं था। उस समय के कैम्प में साधु लोग भी क्लास लेते थे। महामण्डल के 50 वर्षों का जब इतिहास लिखा जायेगा तब उसमें ये सब घटनाएं दर्ज होंगी। 

1968 जनवरी महीने में कैम्प का Inauguration किये थे स्वामी समबुद्धानन्द। वे विवेकानन्द शतवार्षिकी के सचिव थे।  Holy Trio शतवार्षिकी के सचिव रहे थे। उनका कार्य करने का तरीका 24 घंटा एक था , जो उनके पास आया वो भगवान ने भेजा सोचकर उसका नाम, ठिकाना, फोन नंबर लेते थे। आपका क्या मत है पूछ कर नोट करते थे। डॉ राधाकृष्णन के सामने बोले थे -"यदि महात्मा गांधी राष्ट्रपिता हैं, तो स्वामी विवेकानन्द राष्ट्र के पितामह हैं! " If Mahatma Gandhi is the Father of the nation, then  Swami Vivekananda is the Grandfather of the nationPresident Roosevelt की बेटी भारत दर्शन करने आयी थी। उनसे पूछा गया वहां क्या देखा ? अंग्रेज जो खाकर उलटी करता है , अमेरिका खता है , अमेरिका का यूवा जो उलटी करता है , India का युवा वही खाता है। स्वामी समबुद्धानन्द जी को महामण्डल से बहुत आशा थी। उनके आदेश से यहाँ rituals होना बंद हो गया।  

1969 वार्षिक कैम्प - बैरकपुर छावनी में भोलानन्द आश्रम स्कूल बिल्डिंग म हुआ।  तब तक 6 days camp का Course and syllabus नहीं बना था। घर में जाकर प्रैक्टिस करेगा तो Man-Making हो जायेगा। उस समय बहुत से संन्यासी लोग क्लास लेने आते थे। 

1970 कैम्प - सरंगाबाद में उग्र नक्सली क्षेत्र था। MLA था बैंडेल के पास त्रिवेणी का था। आनन्द बाजार पत्रिका के सम्पादक अमियो बन्दोपाध्याय थे , उन्होंने पेपर में कैम्प का समाचार ३-४ दिन छापा था। एक पेज का सम्पादकीय लिखने पर सन्तोष घोष को ठाकुर देव का दर्शन मिला था , नजर बदल गया था।  Course and syllabus of Youth Training Camp' लिखने साधु लोग आये , क्षेत्र सेन शर्मा को भर मिला। क्रान्तिकारी नाटक करना मुख्य कार्य था। भवेश दा का friend था। विप्लवी सर्टिफिकेट हाथ से लिखकर देता था। विप्लव आर्टिस्ट था। 184 कैम्पर का सर्टिफ़िकेट हाथ लिख दिया। मुख्य काम था नाटक करना। केमिस्ट्री और ड्रामा ताश खेलना तो चार आदमी चाहिए। इसको मेंबरशिप कौन दे दिया ? 

दादा के भाषण के बाद डॉक्टर राजर्षि ने गया - राग बहार में वीर सेनापति ! एक रविन्द्र संगीत सुनाया  - शुधु तोमार वाणी , माझे -माझे परसमणि दियो।   

 वीरेन दा बोले >English publication office,विवेकानन्द साहित्य के हिन्दी प्रकाशन कार्यालय अद्वैत आश्रम से जुड़ी 40 page में लिखित घटनायें 'Background of mahamandal' --महामंडल की पृष्ठभूमि से जुड़ी हुई हैं।  नवनीदा उस समय अपने ऑफिस से सुन्दरी मोहन देव रोड से या CIT रोड पार्क सर्कस Evening Walk पर कुछ महाराज लोग के साथ जाते थे। 1947 में आजादी के बाद 1967 आते आते 20 वर्ष गुजर गया। परिवर्तन नहीं हुआ , आशा भंग , हताशा , विप्लवी मानसिकता , कांग्रेस का शासन चला गया ,रक्षणशील -प्रतिक्रियाशील -क्रान्तिकारी संयुक्त मोर्चा और Left Front का सरकार बन गया। Hard or Soft पता नहीं , सभी क्रान्तिकारी थे। अजय मुखर्जी क्या गाँधीवादी थे ? Russia -1948 का चीनी राष्ट्रपति चुनाव- Stalin का पतन - मार्क्स के कम्युनिज्म से स्टालिन के कोई मेल नहीं था , माओ का मार्क्स से कुछ लेना -देना नहीं था। खुर्श्चेव पार्टी प्रसिडेन्ट बना। 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी बंट गया। श्रीपाद अमृत डांगे का पत्र मिला जो Blitz में छापा , - Your most obedient servant Dange ? अंग्रेज को खुशामदी चिट्ठी लिखा था। किसी केस के विषय में। तय हुआ 32 नेता लोग डांगे को पार्टी से निकाल दो। 1967 में डांगे को विप्लवी दल से निकलने वाला अजय मुखर्जी दोनों रहा। इलाका इलाका डांगे दलाल , पहचान लो। G.L. Nanda 3 बार P.M. हुआ। साधु प्रकृति मनुष्य था। होम मिनिस्टर था। चीन के दलाल गुप्तचरों को अरेस्ट किया। नक्सल आंदोलन शुरू हुआ जेल का ताला टूटेगा चीनी बंदी छूटेगा। हताशा से मुक्ति देगा , Land reform minister चारु मजूमदार का दर्शन शास्त्र , कानू सान्याल , जंगल सरदार लोगों को Operation Killing चलाकर मानव हत्या करने में आनन्द मिलता था।.... अनन्यानन्द जी उस मीटिंग में थे। हैदराबाद मिलने गया। महाराज उसको logens दिया।  preside किया था। V/P था सुरेश चंद्र दास। विज्ञानानन्द जी का साक्षत शिष्य प्रेस था। 

>>महामण्डल का गोल्डन जुबली 2016 सितम्बर से सूत्रपात होगा। कोलकाता में नक्सल मूवमेन्ट के पहले महामण्डल की स्थापना 1967 में हुई थी। 1947 में देश आजाद हुआ , लोगों के मन में आशा थी कि अब भारत में कोई भूखा नहीं सोयेगा , सभी भोजन-वस्त्र -आवास उपलब्ध होगा। 20 वर्षों तक पूरे देश में केवल एक ही पार्टी का शासन रहा। केरल में कम्युनिस्ट शासन कुछ दिन रहा , फिर congress लौटा सिंगल party ! लेकिन एक एक कर 20 वर्ष बीत जाने पर भी जब परिवर्तन नहीं दिखा तब युवा वर्ग आक्रोशित हो उठा।  1962 से 1967 तक बंगाल में PC Sen (प्रफुल्ल चन्द्र सेन) का शासन था। वे त्यागी थे, लेकिन चुनाव में हार गए। जनता-दल का शासन आया फिर गया - यही चलता रहा। जनता फिर उद्वेलित हो गयी। पोल्टीसिअन नेता लोग युवा को गलत दिशा में ले जाने लगे। उसी युवा आक्रोश की परिणति नक्सल आंदोलन में हुई। उस समय की समसामयिक घटना का विश्लेषण करने पर हम देखते हैं-युवाओं में हताशा थी। पहले अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश था कि इन्होने हमारे देश को दरिद्र बना दिया। उसको भारत से बाहर निकालो। भारत की दुर्गति के लिए केवल अंग्रेजी शासन ही जिम्मेदार है , उसको हटाओ ! उसको भगाने से सब दुःख दूर हो जायेगा। स्वामी जी ने कहा -मैं 4 दिन में आजादी दिलवा सकता हूँ ; लेकिन उसको सम्भाल कर रखने वाले मनुष्य कहाँ हैं ? अतः पहले मनुष्य का निर्माण करने वाला आंदोलन शुरू करो। लोगों ने सोचा शायद केवल अंग्रेज ही मुख्य कारण है ,उसको भगा देने से सब ठीक हो जायेगा। 1972 से 1977 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धार्थ शंकर रे का शासन रहा। बहुत से होनहार युवा मारे गए या जीवन बर्बाद हो गया। लेकिन स्वाधीनता के बाद 20 वर्षों तक प्रतीक्षा किया , लेकिन कोई परिवर्तन नहीं हुआ। 20 वर्ष बाद किसान-मजदूरों की कम्युनिस्ट सरकार बंगाल में बनी। लोगों ने सोचा जब सर्वहारा वर्ग सत्ता में आएगा तो उन्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। लेकिन ऑपरेशन बर्गा कानून लागु किया गया , जिसका मतलब ये था कि अगर कोई भूमिहीन किसी जमींदार के खेत पर साझे में खेती कर रहा है तो उसके हक को अचानक खारिज नहीं किया जा सकता है. अगर जमीन मालिक इस जमीन को बेचने जा रहा है तो उसे सबसे पहले इस जमीन को अपने बंटाईदार को ही बेचने की पेशकश करना पड़ेगी। कोई लाभ नहीं हुआ। युवा हताशा के परिणाम थे - चारु मजूमदार, कानू सान्याल , जंगल सरदार। उनलोगों का कहना था कोई कानून नहीं - जमीन्दारों की हत्या कर दो। ऊपर से ६" छोटा कर दो ! यही विचार कॉलेज के स्टूडेंट्स में पॉपुलर होगया।

बंगला प्रसिद्द उपन्यासकार शरतचन्द्र चटर्जी का मझले भाई प्रभास ? रामकृष्ण आश्रम में साधु बन गए थे। संन्यासी होने के बाद उनका नाम था स्वामी वेदानन्द। रंगून से लौटने के बाद मठ से नाराज होकर शरतचन्द्र अपने भाई को वापस ले आये, और उसका विवाह कर दिया और उन्हें गृहस्थ बना दिया। उनका एक पुत्र और एक पुत्री हुई थी।  वे हेडमास्टर थे 15 एकड़ का विशाल plot खरीदा था। मिशन को देना चाहते थे। स्थानीय लोगों के लिए हॉस्पिटल या जो कुछ चाहे खोलिये। 1967 में विवेकानन्द युवा महामण्डल स्थापित हो जाने बाद , 1972 में श्री एकनाथ रानाडे ने कन्याकुमारी में विवेकानन्द केन्द्र की स्थापना की थी।  [एकनाथ रानडे (१९ नवम्बर १९१४ - २२ अगस्त १९८२) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक समर्पित कार्यकर्ता थे जिन्होने सन् १९२६ से ही संघ के विभिन्न दायित्वों का निर्वाह किया।] रानाडे ने महामण्डल को प्रस्ताव दिया आदिवासी कल्याण के लिए उसमें कुछ कर सकता हूँ। महामण्डल को पत्र लिखे। निर्मलेन्दु दा ??? -- बोले बाहर से आकर कोई उस गाँव में सेवा-भाव से काम नहीं करता है। उनको  मनुष्य निर्माण का काम ज्यादा पसन्द था। इनको महामण्डल का idea और logic पर विश्वास था। उन्होंने कहा अब समझ में आता है - इतना बड़ा institution किस पर छोड़कर जाऊँ ? वे चले गए।  2nd मैन कोई तैयार नहीं हो सका।  

>>जगदीश्वर के कखोनो फांकी देवा जाए ना : पहाड़ मोहम्मद के निकट आ सकता ; तो मोहम्मद पहाड़ के निकट जायेगा। बन्धु कौन होता है ? जो घर-बाहर कहीं कहीं अकेला नहीं छोड़े। शिशु जैसा पवित्र तरुण दल popular होने लगा। सभी महान शिक्षाएं श्रवण से ही प्राप्त होती हैं। माँ के मुख से और अपने कानों से सुनकर ही हमने श्रेष्ठ शिक्षा - मनुष्य बनने की शिक्षा प्राप्त की है। संन्यासी और गृहस्थ दोनों अपने अपने स्थान में श्रेष्ठ हैं। श्रेष्ठ शक्ति के प्रतीक हैं। 

>>>खाँटी लोग मुखे जा बोले ताई करे ! ह्रदय शरीर का राजधानी है - heart के निकट ही Blood pumping machine होता है। सिर्फ भारतीय नारी ही नहीं अमेरिका की नारी भी अपने सन्तानों को मनुष्य बनने की शिक्षा देंगी। इस मनुष्य-निर्माणकारी शिक्षा- Be and Make' को सार्वभौमिक धर्म का रूप देना होगा। 1893 से 1896 तक स्वामीजी अमेरिका में रहे , 15th जनवरी, 1897 को सिंघल पहुँचे। फरवरी महीने में कोलकाता आये। कोलम्बो से अल्मोड़ा तक जागरण मंत्र सुनाया। लाहौर -कराँची तक घूमे। ३-४ साल से भारत से दूर थे। 1897 से 99 बिताने के बाद दुबारा गए थे। वहाँ उनको " मेरे गुरुदेव " पर भाषण देना पड़ा। 

>>>उस समय के युवा नवनीदा कहते हैं - स्वामी वन्दनानन्द, अनन्यानन्द के साथ शाम को अद्वैत आश्रम से पार्क सर्कस तक १/२ किमी  घूमने के लिए जाते थे। उस समय के मेधावी छात्र भी लाइब्रेरी जलाने लगे। रेल की सम्पत्ति , सरकारी सम्पत्ति में आग लगाने लगे। उन्हें कोई ये नहीं बता रहा था कि शिक्षा पद्धति में परिवर्तन करें या पुस्तक ही जला दें ? तो एक दिन जाते -जाते कुछ शिक्षित युवा, कॉलेज स्टूडेन्ट नवनीदा और जयराम महाराज (वर्तमान रामकृष्ण मठ मिशन के अध्यक्ष) पर कटाक्ष करते हुए कहा - " देखो साधु लोग देश का माल खा खा कर कितना मोटा हो गया है। " तब उनलोगों के मन में आया कि एक युवा संगठन के माध्यम से एक रचनात्मक आंदोलन खड़ा करना अत्यन्त आवश्यक हो गया है। 

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[>>150th, SPTC of ABVYM organized on May 15, 2016 / Action details of the 150th Special Training Camp of Akhil Bharat Vivekananda Yuva Mahamandal / under the leadership and presence of Pujya Navnida at Konnagar Mahamandal Bhawan:

कोन्नगर भवन में पूज्य नवनीदा के लीडरशिप और उपस्थिति में 15 मई , 2016/   आयोजित अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल  का 150 वां विशेष प्रशिक्षण शिविर /150th, SPTC of ABVYM/  की कार्य विवरणी। ]

>>>151st, SPTC of ABVYM organized on July 24, 2016:  - जलपाईगुड़ी का संजीत, स्वामीजी द्वारा 24 जुलाई, 2016 : 7.00 am अलासिंघा पेरुमल को   19 नवम्बर, 1894 को लिखित पत्र का पाठ हुआ। Life building and Character building : का वर्ग श्री सोमनाथ बागची द्वारा लिया गया। 1 . Speaker Sandip Singh : उद्देश्य - समस्त मनुष्यों का कल्याण ! उपाय - चरित्र गठन ! 3rd Speaker : अतनु मान्ना  : 4th Speaker : असीम कुमार पोड़िया - >>Speaker on Aims and objectives of Mahamandal : महामंडल के लक्ष्य एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डालेंगे - विद्युत् कान्ति विश्वास , तारक नगर , नदिया जिला , 2nd Speaker : सुजीत -अच्छी आवाज है।3rd Speaker : अशेष मण्डल : 4th Speaker : दिनेश मल्लिक : 

[साभार @@@ https://advaitaashrama.org/ Immense Idealism with Immense Practicality: Ramakrishna Mission—A Phenomenon>असीम व्यावहारिकता के साथ असीम आदर्शवाद:> रामकृष्ण मिशन-एक घटना >

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