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शनिवार, 2 अगस्त 2025

⚜️️️️🔱सुनु मतिमंद लोक बैकुंठा। लाभ कि रघुपति भगति अकुंठा॥4॥⚜️️🔱 घटना -311⚜️️️️🔱 Is Vaikunth an ordinary sphere and unflinching devotion to the Lord of the Raghus an ordinary gain?⚜️️️️🔱 सभा में अंगद द्वारा रावण का उपहास और प्रभु श्रीराम की महिमा ⚜️️🔱

श्रीरामचरितमानस 

षष्ठ सोपान

[सुन्दर काण्ड /लंका  काण्ड]

(श्रीरामचरितमानस ग्रन्थ में लंका काण्ड किन्तु विविध भारती रेडिओ पर सुन्दर काण्ड।???) 
   
[ घटना - 311: दोहा -23,24]

[Shri Ramcharitmanas Gayan || Episode #311||] 

 

>> सभा में अंगद द्वारा रावण का उपहास और प्रभु श्रीराम की महिमा 

         अंगद के मुख से कई रावणों के उपहास की कथायें सुन, रावण तिरस्कार भरे स्वर में बोला  मूर्ख बानर , मैं वही रावण हूँ जिसकी भुजाओं का बल कैलाश पर्वत को ज्ञात है। जिसका पराक्रम स्वयं महादेव जानते हैं। जिसने अगिनत बार अपने सिर काट और चढ़ाकर उनकी पूजा की थी। दिशाओं की रक्षा करने वाले हाथियों विशाल काय दाँत मेरी छाती से टकराकर गाजर-मूली की तरह टूट गए थे। मेरे चलने मात्र से पृथ्वी ऐसे डोलती है , मानो भूकंप आ गया हो। मैं वही जगत प्रसिद्द रावण हूँ - क्या ये सब तूने अपने कानों से नहीं सुना, जो मुझे छोटा समझ एक मनुष्य की बड़ाई करता है ? तू कितना अज्ञानी है , अब मैं समझ गया। रावण के वचन सुन अंगद श्रीराम की महिमा और अनंत शक्ति का बखान करते हुए कहते हैं - तूँ मूर्ख है जो श्रीराम को साधारण मनुष्य, हनुमान को वानर, कामदेव को धनुर्धर ,कल्पबृक्ष को एक सामान्य पेंड़, गरुड़ को मात्र एक पक्षी और शेषनाग को एक मामूली सर्प समझता है। यदि तूने श्रीराम से वैर मोल लिया तो ब्रह्मा और रूद्र भी तेरी रक्षा नहीं कर सकेंगे ..... 

चौपाई :
Chaupai:


* सुनु सठ सोइ रावन बलसीला। हरगिरि जान जासु भुज लीला॥
जान उमापति जासु सुराई। पूजेउँ जेहि सिर सुमन चढ़ाई॥1॥

भावार्थ:-(रावण ने कहा-) अरे मूर्ख! सुन, मैं वही बलवान्‌ रावण हूँ, जिसकी भुजाओं की लीला (करामात) कैलास पर्वत जानता है। जिसकी शूरता उमापति महादेवजी जानते हैं, जिन्हें अपने सिर रूपी पुष्प चढ़ा-चढ़ाकर मैंने पूजा था॥1||

English: “Listen, O fool: I am the same mighty Ravana, the sport of whose arms is familiar to Mount Kailash (the peak sacred to Lord Shiv) and whose valour is known to Uma's Spouse (Shiv Himself), in whose worship I offered my heads as flowers.

* सिर सरोज निज करन्हि उतारी। पूजेउँ अमित बार त्रिपुरारी॥
भुज बिक्रम जानहिं दिगपाला। सठ अजहूँ जिन्ह कें उर साला॥2॥

भावार्थ:- सिर रूपी कमलों को अपने हाथों से उतार-उतारकर मैंने अगणित बार त्रिपुरारि शिवजी की पूजा की है। अरे मूर्ख! मेरी भुजाओं का पराक्रम दिक्पाल जानते हैं, जिनके हृदय में वह आज भी चुभ रहा है॥2||

English: Times without number have I removed my lotus-like heads with my own hands to worship Lord Shiv (the Slayer of Tripura). The prowess of my arms is well-known to the guardians of the eight quarters, whose heart, you fool, still smarts under injuries inflicted by them.

* जानहिं दिग्गज उर कठिनाई। जब जब भिरउँ जाइ बरिआई॥
जिन्ह के दसन कराल न फूटे। उर लागत मूलक इव टूटे॥3॥

भावार्थ:- दिग्गज (दिशाओं के हाथी) मेरी छाती की कठोरता को जानते हैं। जिनके भयानक दाँत, जब-जब जाकर मैं उनसे जबरदस्ती भिड़ा, मेरी छाती में कभी नहीं फूटे (अपना चिह्न भी नहीं बना सके), बल्कि मेरी छाती से लगते ही वे मूली की तरह टूट गए॥3||

English: The toughness of my chest is familiar to the elephants supporting the eight quarters, whose fierce tusks, whenever I impetuously grappled with them, failed to make any impression on it and snapped off like radishes the moment they struck against it.

* जासु चलत डोलति इमि धरनी। चढ़त मत्त गज जिमि लघु तरनी॥
सोइ रावन जग बिदित प्रतापी। सुनेहि न श्रवन अलीक प्रलापी॥4॥

भावार्थ:- जिसके चलते समय पृथ्वी इस प्रकार हिलती है जैसे मतवाले हाथी के चढ़ते समय छोटी नाव! मैं वही जगत प्रसिद्ध प्रतापी रावण हूँ। अरे झूठी बकवास करने वाले! क्या तूने मुझको कानों से कभी सुना?॥4||

English: Even as I walk, the earth shakes like a small boat when a mad elephant steps into it. I am the same Ravan, known for his might all over the world; did you never hear of him, you lying prattler?"

दोहा :
Doha:
* तेहि रावन कहँ लघु कहसि नर कर करसि बखान।
रे कपि बर्बर खर्ब खल, अब जाना तव ग्यान॥25॥

भावार्थ:- उस (महान प्रतापी और जगत प्रसिद्ध) रावण को (मुझे) तू छोटा कहता है और मनुष्य की बड़ाई करता है? अरे दुष्ट, असभ्य, तुच्छ बंदर! अब मैंने तेरा ज्ञान जान लिया॥25||

English: "You belittle that Ravana and extol a mortal man? Barbarous monkey, O puny wretch. I have now fathomed your wisdom."

चौपाई :
Chaupa:


* सुनि अंगद सकोप कह बानी। बोलु संभारि अधम अभिमानी॥
सहसबाहु भुज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कुठारा॥1॥

भावार्थ:- रावण के ये वचन सुनकर अंगद क्रोध सहित वचन बोले- अरे नीच अभिमानी! सँभलकर (सोच-समझकर) बोल। जिनका फरसा सहस्रबाहु की भुजाओं रूपी अपार वन को जलाने के लिए अग्नि के समान था,॥1||

English: On hearing this, Angad indignantly replied: “Take care what you say, you vainglorious wretch. How can He be accounted a man, you wretched Ravana, at whose very sight melted away the pride of Parasuram-—the same Parasuram whose axe was like a fire to consume King Sahasrabahu's boundless forest of arms,

* जासु परसु सागर खर धारा। बूड़े नृप अगनित बहु बारा॥
तासु गर्ब जेहि देखत भागा। सो नर क्यों दससीस अभागा॥2॥

भावार्थ:- जिनके फरसा रूपी समुद्र की तीव्र धारा में अनगिनत राजा अनेकों बार डूब गए, उन परशुरामजी का गर्व जिन्हें देखते ही भाग गया, अरे अभागे दशशीश! वे मनुष्य क्यों कर हैं?॥2||

English: or (to use another simile) like the sea in whose swift tide have drowned innumerable kings time after time.

* राम मनुज कस रे सठ बंगा। धन्वी कामु नदी पुनि गंगा॥
पसु सुरधेनु कल्पतरु रूखा। अन्न दान अरु रस पीयूषा॥3॥

भावार्थ:- क्यों रे मूर्ख उद्दण्ड! श्री रामचंद्रजी मनुष्य हैं? कामदेव भी क्या धनुर्धारी है? और गंगाजी क्या नदी हैं? कामधेनु क्या पशु है? और कल्पवृक्ष क्या पेड़ है? अन्न भी क्या दान है? और अमृत क्या रस है?॥3||

English: How can Shri Ram be a mortal, you arrogant fool? Is the god of love a mere archer, the Ganga a mere stream, the cow of plenty a mere beast, the tree of Paradise a mere tree, the gift of food an ordinary gift, nectar an ordinary drink,

* बैनतेय खग अहि सहसानन। चिंतामनि पुनि उपल दसानन॥
सुनु मतिमंद लोक बैकुंठा। लाभ कि रघुपति भगति अकुंठा॥4॥

भावार्थ:- गरुड़जी क्या पक्षी हैं? शेषजी क्या सर्प हैं? अरे रावण! चिंतामणि भी क्या पत्थर है? अरे ओ मूर्ख! सुन, वैकुण्ठ भी क्या लोक है? और श्री रघुनाथजी की अखण्ड भक्ति क्या (और लाभों जैसा ही) लाभ है?॥4||

English: Garuda (the mount of God Vishnu) a mere bird, the thousand-headed Shesh a mere serpent and the wish-yielding gem a mere stone, O ten-headed monster? Listen, O dullard: is Vaikunth an ordinary sphere and unflinching devotion to the Lord of the Raghus an ordinary gain?”

दोहा :
Doha:


* सेन सहित तव मान मथि, बन उजारि पुर जारि।
कस रे सठ हनुमान कपि गयउ जो तव सुत मारि॥26॥

भावार्थ:- सेना समेत तेरा मान मथकर, अशोक वन को उजाड़कर, नगर को जलाकर और तेरे पुत्र को मारकर जो लौट गए (तू उनका कुछ भी न बिगाड़ सका), क्यों रे दुष्ट! वे हनुमान्‌जी क्या वानर हैं?॥26||

English: "What! is Hanuman, O fool, an ordinary monkey, who got off unhurt after trampling your pride as well as that of your army, laying waste your garden, setting your capital on fire and slaying your own son?”

चौपाई :
Chaupai:
* सुनु रावन परिहरि चतुराई। भजसि न कृपासिंधु रघुराई॥
जौं खल भएसि राम कर द्रोही। ब्रह्म रुद्र सक राखि न तोही॥1॥

भावार्थ:-अरे रावण! चतुराई (कपट) छोड़कर सुन। कृपा के समुद्र श्री रघुनाथजी का तू भजन क्यों नहीं करता? अरे दुष्ट! यदि तू श्री रामजी का वैरी हुआ तो तुझे ब्रह्मा और रुद्र भी नहीं बचा सकेंगे।|1||

English: "Listen, Ravana: giving up all hypocrisy, why do you not adore the All-merciful Lord of the Raghus? Oh wretch, if you pit yourself against Ram, even Brahma (the Creator) and Rudra (Lord Shiv) cannot save you.

* मूढ़ बृथा जनि मारसि गाला। राम बयर अस होइहि हाला॥
तव सिर निकर कपिन्ह के आगें। परिहहिं धरनि राम सर लागें॥2॥

भावार्थ:- हे मूढ़! व्यर्थ गाल न मार (डींग न हाँक)। श्री रामजी से वैर करने पर तेरा ऐसा हाल होगा कि तेरे सिर समूह श्री रामजी के बाण लगते ही वानरों के आगे पृथ्वी पर पड़ेंगे,॥2||

English: Fool, brag not in vain; if you contend with Ram, such will be your fate: struck with Shri Ram's arrows your many heads will fall to the ground in front of the monkeys

* ते तव सिर कंदुक सम नाना। खेलिहहिं भालु कीस चौगाना॥
जबहिं समर कोपिहि रघुनायक। छुटिहहिं अति कराल बहु सायक॥3॥

भावार्थ:- और रीछ-वानर तेरे उन गेंद के समान अनेकों सिरों से चौगान खेलेंगे। जब श्री रघुनाथजी युद्ध में कोप करेंगे और उनके अत्यंत तीक्ष्ण बहुत से बाण छूटेंगे,॥3||

English: and the bears and monkeys will play with those heads as with so many balls. When the Lord of the Raghus gets enraged in battle and His many fierce arrows dart,

* तब कि चलिहि अस गाल तुम्हारा। अस बिचारि भजु राम उदारा॥
सुनत बचन रावन परजरा। जरत महानल जनु घृत परा॥4॥

भावार्थ:- तब क्या तेरा गाल चलेगा? ऐसा विचार कर उदार (कृपालु) श्री रामजी को भज। अंगद के ये वचन सुनकर रावण बहुत अधिक जल उठा। मानो जलती हुई प्रचण्ड अग्नि में घी पड़ गया हो॥4||

English: will you then be able to bounce like this? Realizing this, adore the high-souled Shri Ram." On hearing these words Ravana flared up like a blazing fire on which clarified butter has been thrown.

दोहा :
Doha:
* कुंभकरन अस बंधु मम, सुत प्रसिद्ध सक्रारि।
मोर पराक्रम नहिं सुनेहि, जितेऊँ चराचर झारि॥27॥

भावार्थ:- (वह बोला- अरे मूर्ख!) कुंभकर्ण- ऐसा मेरा भाई है, इन्द्र का शत्रु सुप्रसिद्ध मेघनाद मेरा पुत्र है! और मेरा पराक्रम तो तूने सुना ही नहीं कि मैंने संपूर्ण जड़-चेतन जगत्‌ को जीत लिया है!॥27||

English: "I have a brother like Kumbhkarna (lit., one having ears as big as a pair of jars) and the renowned Meghnad (the vanquisher of Indra) for my son. And have you never heard of my own valour, by which I have conquered the entire creation, both animate and inanimate?”

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