कुल पेज दृश्य

शनिवार, 2 अगस्त 2025

⚜️️🔱इंद्रजालि कहुँ कहिअ न बीरा। काटइ निज कर सकल सरीरा॥5॥⚜️️🔱 घटना -312⚜️️️️🔱 A juggler is never called a hero even though he hacks to pieces his whole body with his own hands. ⚜️️️️🔱सभा में अंगद की चेतावनी और चुनौती से रावण का क्रोध और अपने पराक्रम की गाथा का वर्णन ⚜️️️️🔱

  श्रीरामचरितमानस 

षष्ठ सोपान

[सुन्दर काण्ड /लंका  काण्ड]

(श्रीरामचरितमानस ग्रन्थ में लंका काण्ड किन्तु विविध भारती रेडिओ पर सुन्दर काण्ड।???) 
   
[ घटना - 312: दोहा -28,29]

[Shri Ramcharitmanas Gayan || Episode #312||]

 


>>सभा में अंगद की चेतावनी और चुनौती से रावण का क्रोध और अपने पराक्रम की गाथा का वर्णन .... 

          अपनी राजसभा में अंगद की चेतावनी चुनौती सुनकर रावण के क्रोध की सीमा न रही, उसे लगा कि ये मूर्ख बानर यह नहीं जानता कि कुम्भकर्ण जैसा वीर उसका भाई, और इन्द्र को परास्त करने वाला योद्धा मेघनाद उसका पुत्र है। वानरों की सेना की सहायता से समुद्र पर सेतु बाँध लेने से राम की किस वीरता का परिचय देता है ? समुद्र तो पक्षी भी लाँघ जाते हैं , अपने हाथों अपना सिर काटकर , शिव के समक्ष अग्निहोम कर देने वाला वीर अन्यत्र कौन है ? रावण अपने बल और पराक्रम की गाथा सुनाते हुए कहता है - मेरी भुजाओं के बलरूपी समुद्र में कितने ही देवता और मनुष्य डूब चुके हैं ; अब कौन ऐसा शूरवीर है जो इनकी अथाह गहराई को पार कर सके ? यदि तेरा स्वामी इतना ही बलशाली है , तो फिर दूत क्योंकर भेजता है , शत्रु की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाते उसे लज्जा का अनुभव नहीं होता ? इन भुजाओं को देख जिनसे अपना सिर काटकर मैंने होम कर दिया था ! अंगद बोले सिर काटकर होम कर देना एक मायावी द्वारा रचित इन्द्रजाल का करतब है ,   

चौपाई :
Chaupai:
 

* सठ साखामृग जोरि सहाई। बाँधा सिंधु इहइ प्रभुताई॥
नाघहिं खग अनेक बारीसा। सूर न होहिं ते सुनु सब कीसा॥1॥

भावार्थ:- रे दुष्ट! वानरों की सहायता जोड़कर राम ने समुद्र बाँध लिया, बस, यही उसकी प्रभुता है। समुद्र को तो अनेकों पक्षी भी लाँघ जाते हैं। पर इसी से वे सभी शूरवीर नहीं हो जाते। अरे मूर्ख बंदर! सुन-॥1||

English: "Fool, with the help of monkeys your master has bridged the ocean; is this what you call valour? There are many birds which fly across the ocean; yet listen, O monkey,

* मम भुज सागर बल जल पूरा। जहँ बूड़े बहु सुर नर सूरा॥
बीस पयोधि अगाध अपारा। को अस बीर जो पाइहि पारा॥2॥

भावार्थ:- मेरा एक-एक भुजा रूपी समुद्र बल रूपी जल से पूर्ण है, जिसमें बहुत से शूरवीर देवता और मनुष्य डूब चूके हैं। (बता,) कौन ऐसा शूरवीर है, जो मेरे इन अथाह और अपार बीस समुद्रों का पार पा जाएगा?॥2||

English: they are no heroes all. Now each of my arms is a veritable ocean, brimming over with a flood of strength, beneath which many a valiant god and man has been drowned. What hero is there, who will cross these twenty unfathomable and boundless oceans?

* दिगपालन्ह मैं नीर भरावा। भूप सुजस खल मोहि सुनावा॥
जौं पै समर सुभट तव नाथा। पुनि पुनि कहसि जासु गुन गाथा॥3॥

भावार्थ:- अरे दुष्ट! मैंने दिक्पालों तक से जल भरवाया और तू एक राजा का मुझे सुयश सुनाता है! यदि तेरा मालिक, जिसकी गुणगाथा तू बार-बार कह रहा है, संग्राम में लड़ने वाला योद्धा है-॥3||

English: I made the guardians of the eight quarters do menial service to me; while you, O wretch, glorify an earthly prince before me! If your lord, whose virtues you recount again and again, is valiant in battle,

* तौ बसीठ पठवत केहि काजा। रिपु सन प्रीति करत नहिं लाजा॥
हरगिरि मथन निरखु मम बाहू। पुनि सठ कपि निज प्रभुहि सराहू॥4॥

भावार्थ:- तो (फिर) वह दूत किसलिए भेजता है? शत्रु से प्रीति (सन्धि) करते उसे लाज नहीं आती? (पहले) कैलास का मथन करने वाली मेरी भुजाओं को देख। फिर अरे मूर्ख वानर! अपने मालिक की सराहना करना॥4||

English: why does he send an ambassador to me? Is he not ashamed to make terms with his enemy? Look at my arms, which lifted and violently shook Mount Kailash, and then, foolish monkey, extol your master, if you like."

दोहा :
Doha:


* सूर कवन, रावन सरिस; स्वकर काटि जेहिं सीस।
हुने अनल, अति हरष, बहु बार साखि गौरीस॥28॥

भावार्थ:- रावण के समान शूरवीर कौन है? जिसने अपने हाथों से सिर काट-काटकर अत्यंत हर्ष के साथ बहुत बार उन्हें अग्नि में होम दिया! स्वयं गौरीपति शिवजी इस बात के साक्षी हैं॥28||

English: "“What hero is there equal to Ravana, who with his own hands cut off his heads time and again and offered them to the sacrificial fire with great delight, as will be borne out by Gauri's Spouse (Lord Shiva) Himself."

चौपाई :
Chaupai:


* जरत बिलोकेउँ जबहि कपाला। बिधि के लिखे अंक निज भाला॥
नर कें कर आपन बध बाँची। हसेउँ जानि बिधि गिरा असाँची॥1॥

भावार्थ:- मस्तकों के जलते समय जब मैंने अपने ललाटों पर लिखे हुए विधाता के अक्षर देखे, तब मनुष्य के हाथ से अपनी मृत्यु होना बाँचकर, विधाता की वाणी (लेख को) असत्य जानकर मैं हँसा॥1||

English: “When as my skulls began to burn I saw the decree of Providence traced on my brow and read that I was going to die at the hands of a mortal, I laughed;

* सोउ मन समुझि त्रास नहिं मोरें। लिखा बिरंचि जरठ मति भोरें॥
आन बीर बल सठ मम आगें। पुनि पुनि कहसि लाज पति त्यागें॥2॥

भावार्थ:- उस बात को समझकर (स्मरण करके) भी मेरे मन में डर नहीं है। (क्योंकि मैं समझता हूँ कि) बूढ़े ब्रह्मा ने बुद्धि भ्रम से ऐसा लिख दिया है। अरे मूर्ख! तू लज्जा और मर्यादा छोड़कर मेरे आगे बार-बार दूसरे वीर का बल कहता है!॥2||

English: for I knew Brahma's prophecy to be false. I am not afraid in my heart even when I remember this; for (I am sure) Brahma must have traced the decree in his senile dementia. Yet, you fool, you repeatedly exalt the might of another hero in my presence,giving up all shame and decorum.”

* कह अंगद सलज्ज जग माहीं। रावन तोहि समान कोउ नाहीं॥
लाजवंत तव सहज सुभाऊ। निज मुख निज गुन कहसि न काऊ॥3॥

भावार्थ:- अंगद ने कहा- अरे रावण! तेरे समान लज्जावान्‌ जगत्‌ में कोई नहीं है। लज्जाशीलता तो तेरा सहज स्वभाव ही है। तू अपने मुँह से अपने गुण कभी नहीं कहता॥3||

English: Angad replied: “Yes, there is no one in the whole world so shamefaced as you. You are bashful by your innate disposition, since you never indulge in self-praise.

* सिर अरु सैल कथा चित रही। ताते बार बीस तैं कहीं॥
सो भुजबल राखेहु उर घाली। जीतेहु सहसबाहु बलि बाली॥4॥

भावार्थ:- सिर काटने और कैलास उठाने की कथा चित्त में चढ़ी हुई थी, इससे तूने उसे बीसों बार कहा। भुजाओं के उस बल को तूने हृदय में ही टाल (छिपा) रखा है, जिससे तूने सहस्रबाहु, बलि और बालि को जीता था॥4||

English: Only the story of offering your heads (to Lord Shiv) and lifting the mountain (Kailash) has been foremost in your mind and hence you have told it twenty times over. As for (the tale of) that strength of arm by which you were able to conquer Sahasrabahu, Bali and Vali.

* सुनु मतिमंद देहि अब पूरा। काटें सीस कि होइअ सूरा॥
इंद्रजालि कहुँ कहिअ न बीरा। काटइ निज कर सकल सरीरा॥5॥

भावार्थ:- अरे मंद बुद्धि! सुन, अब बस कर। सिर काटने से भी क्या कोई शूरवीर हो जाता है? इंद्रजाल रचने वाले को वीर नहीं कहा जाता, यद्यपि वह अपने ही हाथों अपना सारा शरीर काट डालता है!॥5||

English: you have kept it secret in your heart. Listen, fool, and brag no more. Can anyone turn a hero by cutting off one’s head ? A juggler is never called a hero even though he hacks to pieces his whole body with his own hands.

दोहा :
Doha:
* जरहिं पतंग मोह बस भार बहहिं खर बृंद।
ते नहिं सूर कहावहिं समुझि देखु मतिमंद॥29॥

भावार्थ:-अरे मंद बुद्धि! समझकर देख। पतंगे मोहवश आग में जल मरते हैं, गदहों के झुंड बोझ लादकर चलते हैं, पर इस कारण वे शूरवीर नहीं कहलाते॥29||

English: “Ponder, O fool, and see for yourself that due to infatuation moths burn themselves in fire and donkeys carry loads; but they are never termed as heroes.”
चौपाई :
Chaupai:

* अब जनि बतबढ़ाव खल करही। सुनु मम बचन मान परिहरही॥
दसमुख मैं न बसीठीं आयउँ। अस बिचारि रघुबीर पठायउँ॥1॥

भावार्थ:- अरे दुष्ट! अब बतबढ़ाव मत कर, मेरा वचन सुन और अभिमान त्याग दे! हे दशमुख! मैं दूत की तरह (सन्धि करने) नहीं आया हूँ। श्री रघुवीर ने ऐसा विचार कर मुझे भेजा है-॥1||

English:

* बार बार अस कहइ कृपाला। नहिं गजारि जसु बंधे सृकाला॥
मन महुँ समुझि बचन प्रभु केरे। सहेउँ कठोर बचन सठ तेरे॥2॥

भावार्थ:- कृपालु श्री रामजी बार-बार ऐसा कहते हैं कि स्यार के मारने से सिंह को यश नहीं मिलता। अरे मूर्ख! प्रभु के (उन) वचनों को मन में समझकर (याद करके) ही मैंने तेरे कठोर वचन सहे हैं॥2॥

* नाहिं त करि मुख भंजन तोरा। लैं जातेउँ सीतहि बरजोरा॥
जानेउँ तव बल अधम सुरारी। सूनें हरि आनिहि परनारी॥3॥

भावार्थ:- नहीं तो तेरे मुँह तोड़कर मैं सीताजी को जबरदस्ती ले जाता। अरे अधम! देवताओं के शत्रु! तेरा बल तो मैंने तभी जान लिया, जब तू सूने में पराई स्त्री को हर (चुरा) लाया॥3॥

* तै निसिचर पति गर्ब बहूता। मैं रघुपति सेवक कर दूता॥
जौं न राम अपमानहिं डरऊँ। तोहि देखत अस कौतुक करउँ॥4॥

भावार्थ:- तू राक्षसों का राजा और बड़ा अभिमानी है, परन्तु मैं तो श्री रघुनाथजी के सेवक (सुग्रीव) का दूत (सेवक का भी सेवक) हूँ। यदि मैं श्री रामजी के अपमान से न डरूँ तो तेरे देखते-देखते ऐसा तमाशा करूँ कि-॥4॥

========================

 




   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें