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रविवार, 10 अगस्त 2025

⚜️️🔱राम कृपा करि चितवा सबही। भए बिगतश्रम बानर तबही॥1॥⚜️️🔱घटना - 320⚜️️🔱 युद्ध को लेकर दोनों पक्षों द्वारा मंत्रणा का प्रसङ्ग ⚜️️🔱⚜️️🔱 Shri Ramcharitmanas Gayan || Episode #320|| ⚜️️🔱

श्रीरामचरितमानस 

षष्ठ सोपान

[ लंका  काण्ड]
   
[ घटना - 320: दोहा -47,48,49 ] 


>>युद्ध को लेकर दोनों पक्षों द्वारा मंत्रणा का प्रसङ्ग --

       लंका में भीषण युद्ध छिड़ा है, वानरसेना ने प्रायः रावण की आधी सेना का संहार कर दिया है। रात्रि का आगमन होने पर दोनों पक्ष अपने -अपने शिविरों में जय-पराजय तथा रणनीतियों की समीक्षा करते हैं। आधा सैन्यबल खोकर रावण चिंतित है , मंत्रणा के समय माल्यवान रावण को फिर सीख देता है , वेद-पुराणों ने जिन प्रभु का गुण गाया है उससे विमुख होकर कोई भी सुखी नहीं हो सका। माल्यवन उसे स्मरण दिलाता है कि जब से वो सीता को हर लाया है , तबसे ही भाँति भाँति के अपशकुन हो रहे हैं। किन्तु रावण को अपने वृद्ध नाना की यह सीख नहीं सुहाई। अपमानित कर वो माल्यवन को सभा से निकाल देता है। रावणपुत्र मेघनाद ने पिता को अपनी दृढ़ता से उत्साहित किया -कल प्रातः देखना मैं क्या करताहूँ ! इस प्रकार-पिता-पुत्र में मंत्रणा होते रात बीत गयी , सवेरा हुआ वानरसेना ने एकबार फिर , दुर्गम गढ़ को चारों ओर से घेर लिया। राक्षस ऊपर से बड़े बड़े शिलाखण्ड तथा अन्य अस्त्र बरसाने लगे। घोर गर्जन-तर्जन और वज्र जैसे अस्त्रों से कलह मच गयी। वानरसेना प्रहार से घायल होती किन्तु मैदान नहीं छोड़ती। मेघनाद ने जब वानर और रीछ सेना द्वारा दुर्ग के घेर लिए जाने का समाचार सुना , तो युद्ध घोष करता , डंका बजाता किले से उतरकर युद्ध के लिए प्रस्तुत हुआ।   

 माल्यवान का रावण को समझाना

दोहा :
* कछु मारे कछु घायल कछु गढ़ चढ़े पराइ।
गर्जहिं भालु बलीमुख रिपु दल बल बिचलाइ॥47॥

भावार्थ:- कुछ मारे गए, कुछ घायल हुए, कुछ भागकर गढ़ पर चढ़ गए। अपने बल से शत्रुदल को विचलित करके रीछ और वानर (वीर) गरज रहे हैं॥47॥
चौपाई :

* निसा जानि कपि चारिउ अनी। आए जहाँ कोसला धनी॥
राम कृपा करि चितवा सबही। भए बिगतश्रम बानर तबही॥1॥

भावार्थ:- रात हुई जानकर वानरों की चारों सेनाएँ (टुकड़ियाँ) वहाँ आईं, जहाँ कोसलपति श्री रामजी थे। श्री रामजी ने ज्यों ही सबको कृपा करके देखा त्यों ही ये वानर श्रमरहित हो गए॥1॥

* उहाँ दसानन सचिव हँकारे। सब सन कहेसि सुभट जे मारे॥
आधा कटकु कपिन्ह संघारा। कहहु बेगि का करिअ बिचारा॥2॥

भावार्थ:- वहाँ (लंका में) रावण ने मंत्रियों को बुलाया और जो योद्धा मारे गए थे, उन सबको सबसे बताया। (उसने कहा-) वानरों ने आधी सेना का संहार कर दिया! अब शीघ्र बताओ, क्या विचार (उपाय) करना चाहिए?॥2॥

* माल्यवंत अति जरठ निसाचर। रावन मातु पिता मंत्री बर॥
बोला बचन नीति अति पावन। सुनहु तात कछु मोर सिखावन॥3॥

भावार्थ:- माल्यवंत (नाम का एक) अत्यंत बूढ़ा राक्षस था। वह रावण की माता का पिता (अर्थात्‌ उसका नाना) और श्रेष्ठ मंत्री था। वह अत्यंत पवित्र नीति के वचन बोला- हे तात! कुछ मेरी सीख भी सुनो-॥3॥

* जब ते तुम्ह सीता हरि आनी। असगुन होहिं न जाहिं बखानी॥
बेद पुरान जासु जसु गायो। राम बिमुख काहुँ न सुख पायो॥4॥

भावार्थ:-जब से तुम सीता को हर लाए हो, तब से इतने अपशकुन हो रहे हैं कि जो वर्णन नहीं किए जा सकते। वेद-पुराणों ने जिनका यश गाया है, उन श्री राम से विमुख होकर किसी ने सुख नहीं पाया॥4॥
दोहा :

* हिरन्याच्छ भ्राता सहित मधु कैटभ बलवान।
जेहिं मारे सोइ अवतरेउ कृपासिंधु भगवान॥48 क॥

भावार्थ:-भाई हिरण्यकशिपु सहित हिरण्याक्ष को बलवान्‌ मधु-कैटभ को जिन्होंने मारा था, वे ही कृपा के समुद्र भगवान्‌ (रामरूप से) अवतरित हुए हैं॥ 48 (क)॥

मासपारायण, पचीसवाँ विश्राम 

लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध, लक्ष्मणजी को शक्ति लगना


*कालरूप खल बन दहन गुनागार घनबोध।
सिव बिरंचि जेहि सेवहिं तासों कवन बिरोध॥48 ख॥

भावार्थ:- जो कालस्वरूप हैं, दुष्टों के समूह रूपी वन के भस्म करने वाले (अग्नि) हैं, गुणों के धाम और ज्ञानघन हैं एवं शिवजी और ब्रह्माजी भी जिनकी सेवा करते हैं, उनसे वैर कैसा?॥48 (ख)॥

चौपाई :
* परिहरि बयरु देहु बैदेही। भजहु कृपानिधि परम सनेही॥
ताके बचन बान सम लागे। करिआ मुँह करि जाहि अभागे॥1॥

भावार्थ:- (अतः) वैर छोड़कर उन्हें जानकीजी को दे दो और कृपानिधान परम स्नेही श्री रामजी का भजन करो। रावण को उसके वचन बाण के समान लगे। (वह बोला-) अरे अभागे! मुँह काला करके (यहाँ से) निकल जा॥1॥

* बूढ़ भएसि न त मरतेउँ तोही। अब जनि नयन देखावसि मोही॥
तेहिं अपने मन अस अनुमाना। बध्यो चहत एहि कृपानिधाना॥2॥

भावार्थ:-तू बूढ़ा हो गया, नहीं तो तुझे मार ही डालता। अब मेरी आँखों को अपना मुँह न दिखला। रावण के ये वचन सुनकर उसने (माल्यवान्‌ ने) अपने मन में ऐसा अनुमान किया कि इसे कृपानिधान श्री रामजी अब मारना ही चाहते हैं॥2॥

* सो उठि गयउ कहत दुर्बादा। तब सकोप बोलेउ घननादा॥
कौतुक प्रात देखिअहु मोरा। करिहउँ बहुत कहौं का थोरा॥3॥

भावार्थ:- वह रावण को दुर्वचन कहता हुआ उठकर चला गया। तब मेघनाद क्रोधपूर्वक बोला- सबेरे मेरी करामात देखना। मैं बहुत कुछ करूँगा, थोड़ा क्या कहूँ? (जो कुछ वर्णन करूँगा थोड़ा ही होगा)॥3॥

* सुनि सुत बचन भरोसा आवा। प्रीति समेत अंक बैठावा॥
करत बिचार भयउ भिनुसारा। लागे कपि पुनि चहूँ दुआरा॥4॥

भावार्थ:- पुत्र के वचन सुनकर रावण को भरोसा आ गया। उसने प्रेम के साथ उसे गोद में बैठा लिया। विचार करते-करते ही सबेरा हो गया। वानर फिर चारों दरवाजों पर जा लगे॥4॥

* कोपि कपिन्ह दुर्घट गढ़ु घेरा। नगर कोलाहलु भयउ घनेरा॥

बिबिधायुध धर निसिचर धाए। गढ़ ते पर्बत सिखर ढहाए॥5॥

भावार्थ:- वानरों ने क्रोध करके दुर्गम किले को घेर लिया। नगर में बहुत ही कोलाहल (शोर) मच गया। राक्षस बहुत तरह के अस्त्र-शस्त्र धारण करके दौड़े और उन्होंने किले पर पहाड़ों के शिखर ढहाए॥5॥

छंद :
* ढाहे महीधर सिखर कोटिन्ह, बिबिध बिधि गोला चले।
घहरात जिमि पबिपात गर्जत, जनु प्रलय के बादले॥
मर्कट बिकट भट जुटत कटत न, लटत तन जर्जर भए।
गहि सैल तेहि गढ़ पर चलावहि, जहँ सो तहँ निसिचर हए॥

भावार्थ:- उन्होंने पर्वतों के करोड़ों शिखर ढहाए, अनेक प्रकार से  गोले चलनेलगे। वे गोले ऐसा घहराते हैं जैसे वज्रपात हुआ हो (बिजली गिरी हो) और योद्धा ऐसे गरजते हैं, मानो प्रलयकाल के बादल हों। विकट वानर योद्धा भिड़ते हैं, कट जाते हैं (घायल हो जाते हैं), उनके शरीर जर्जर (चलनी) हो जाते हैं, तब भी वे लटते नहीं (हिम्मत नहीं हारते)। वे पहाड़ उठाकर उसे किले पर फेंकते हैं। राक्षस जहाँ के तहाँ (जो जहाँ होते हैं, वहीं) मारे जाते हैं।

दोहा :
* मेघनाद सुनि श्रवन अस गढ़ पुनि छेंका आइ।
उतर्‌यो बीर दुर्ग तें सन्मुख चल्यो बजाइ॥49॥

भावार्थ:- मेघनाद ने कानों से ऐसा सुना कि वानरों ने आकर फिर किले को घेर लिया है। तब वह वीर किले से उतरा और डंका बजाकर उनके सामने चला॥49॥

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