कुल पेज दृश्य

सोमवार, 11 अगस्त 2025

⚜️️🔱ब्रह्मजिज्ञासा योग्यता ⚜️️🔱विवेकचूडामणि सार | Session 6 | ⚜️️🔱स्वामी शुद्धिदानन्द जी महाराज, अध्यक्ष, अद्वैत आश्रम, मायावती।⚜️️🔱 The Essence of Vivekachudamani | Session 6 | ⚜️️🔱

ब्रह्मजिज्ञासा योग्यता  

(स्वामी शुद्धिदानन्द जी महाराज, अध्यक्ष, अद्वैत आश्रम, मायावती।) 

छठवें श्लोक में आचार्य शंकर कह रहे हैं - आप चाहे कुछ भी कर लो आत्मज्ञान के बिना कोई व्यक्ति मुक्त नहीं हो सकता। 



 तो कहते हैं -

 वदन्तु शास्त्राणि यजन्तु देवान,  कुर्वन्तु कर्माणि भजन्तु देवताः।  

आत्मैक्यबोधेन विनापि मुक्तिः, न सिध्यति ब्रह्मशान्तरेऽपि।। (6)

    6. आप चाहे कुछ भी कर लो ,  चाहे शास्त्रों का उद्धरण दें, देवताओं को बलि चढ़ाएँ, अनुष्ठान करें और देवताओं की पूजा करें, लेकिन 'जीव' का (अहं-आधारकार्ड वाली पहचान) और आत्मा के साथ एकत्व की अनुभूति हुए बिना, मतलब आत्मज्ञान हुए बिना मुक्ति नहीं मिलती, यहाँ तक कि सौ ब्रह्माओं के जीवनकाल में भी नहीं।[ जीवनकाल - अर्थात, समय की अनिश्चित अवधि। ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) का एक दिन मानव गणना के 432 मिलियन वर्षों के बराबर है, जो कि संसार की अवधि मानी जाती है। ] 

       आप यह नश्वर देह-इन्द्रिय संघात नहीं हो, आप इस देह-इन्द्रिय संघात से पृथक नित्य-शुद्ध-बुद्ध आत्मा हो। इस ज्ञान के बगैर कोई भी भी व्यक्ति मुक्त नहीं हो सकता। आप चाहे कुछ भी कर लो - इसमें सबकुछ आ गया। तो कहते हैं - वदन्तु शास्त्राणि यजन्तु देवान' -कुर्वन्तु कर्माणि भजन्तु देवताः। कहने का मतलब है आप चाहे कुछ भी कर लो, लेकिन आत्मज्ञान के बगैर व्यक्ति कभी मुक्त नहीं हो सकता।  यही बात भजगोविन्दं स्त्रोत्र में आचार्य बहुत सुन्दर ढंग से एक श्लोक में कहते हैं - 

कुरुते गंगासागर गमनम्,
व्रतपरिपालनमथवा दानम् ।
ज्ञानविहीन: सर्वमतेन,
मुक्तिं न भजति जन्मशतेन ॥

( चर्पटपञ्जरिका स्तोत्रम्-१८ )

   चाहे गंगा-सागर को जाय, चाहे भाँति-भाँति के व्रतोपवासों का पालन अथवा दान करें तथापि बिना आत्मज्ञान के, अर्थात जीव (सिद्धार्थ वाला अहं) और आत्मा (गौतम बुद्ध) के एकत्व की अनुभूति किये बिना, इन सबसे सौ जन्म में भी मुक्ति नहीं हो सकती। अर्थात् आत्मज्ञान के बीना मुक्ति संभव नहीं । 16 वर्ष से भी कम आयु के बालक आचार्य शंकर की रचनायें अतुलनीय हैं। इतिहास में कोई तुलना है ही नहीं - ऐसी अद्भुत रचना है। 

       कुरुते गंगासागर गमनम्,- गंगासागर चले जाइये मतलब तीर्थाटन के लिए चले जाइये , व्रतपरिपालनम अथवा दानं - आप कितने प्रकार के व्रत पालन कीजिये , गरीबों को अन्न-वस्त्र का दान भी कीजिये ,दानधर्म करना बुरा नहीं है , ये सब ठीक है। इनका अपना स्थान है , इनका महत्व भी है , पर इतना मात्र ही पर्याप्त नहीं है। असलीचीज क्या है ? आत्मज्ञान ! जब तक मैं कौन हूँ? इसका ज्ञान नहीं हुआ; हम सैंकड़ों -सैंकड़ों जन्मों में मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते। इसका मतलब ये नहीं है कि आप व्रत का पालन नहीं करेंगे, तीर्थाटन नहीं करेंगे ; वो तो हमारे आध्यात्मिक जीवन का एक अंग है। वो सब हम क्यों कर रहे हैं ? आत्मज्ञान तक पहुँचने के लिए ही कर रहे हैं। वो आत्मज्ञान के सहायक हैं। मुख्य चीज क्या है ? आत्मज्ञान !       

     जब आत्मज्ञान की हम बात करते हैं तो कौन इसके योग्य है ? आत्मज्ञान पाने का अधिकारी कौन हैं ? इस पूरे विश्व में कितने लोग हैं जो आत्मज्ञान पाने की इच्छा रखते हैं ? आपके आसपास , आपके मित्रमण्डली में ऐसा है कोई जो कहता हो मैं आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ ? कभी देखा है आपने ? आपके पड़ोस में एक भी नहीं मिलेगा। आप लोग यहाँ आकर ये सब जो सुन रहे हैं -यही ईश्वर का अनुग्रह है। मुक्ति की इच्छा या आत्मज्ञान पाने की इच्छा किसके अंदर जगती है ? कौन व्यक्ति इसके योग्य है ? मोक्ष रूप इस लक्ष्य को प्राप्त करने की योग्यता क्या है ? किन चीजों के रहने से हम आत्मज्ञान पाने के अधिकारी बन सकते हैं ? ये प्रश्न है। वो क्या चीज है -जिसके नहीं रहने से हम आत्मज्ञान पाने के योग्य नहीं होते ?

     ये बहुत महत्वपूर्ण बिंदु है जिस पर हमें ध्यान देना है। अगर यहाँ से दिल्ली जाना हो तो -कम से कम हमारे पास क्या होना चाहिए ? अगर आपको अपने जीवन को सही दिशा में ले जाना हो तो -इसे समझना बहुत आवश्यक है। fitness - फॉर आत्मज्ञान ? इस Minimum Qualification को हमारे वेदांत की भाषा में साधनचतुष्टय कहते हैं - 17,18, 19 इन तीन श्लोकों में आचार्य शंकर साधन बता रहे हैं। आत्मज्ञान के लक्ष्य तक या  साध्य तक पहुँचने के चार साधन हैं। अपने सत्य स्वरुप को जानना हो तो इस साधन-चतुष्टय के बिना नहीं होगा।  - ब्रह्मजिज्ञासा की योग्यता ? अब देख्ग्ते हैं कि ये साधन क्या -क्या हैं ?  

विवेकिनो विरक्तस्य शमदिगुणशालीनः |
मुमुक्षोरेव हि ब्रह्मजिज्ञासायोग्यता मता || 17 ||

17. जो मनुष्य सत् और असत् में विवेक करता है, जो वैराग्यवान है या  जिसका मन असत् से विमुख है, जो शम -दमादि से सम्बन्धित गुणों या षट्सम्पत्ति से युक्त है, तथा जो मुमुक्षु है, मोक्ष की अभिलाषा रखता है, उसी को ब्रह्मजिज्ञासा की योग्यता वाला , आत्मज्ञान या मैं कौन हूँ ? इस प्रश्न के उत्तर को खोजने या ब्रह्म की खोज करने के योग्य माना जाता है। 

 साधनन्यात्र चत्वारि कथितानि मनीषिभिः |
येषु सत्स्वेव संनिष्ठा यदाभावे न सिध्यति || 18 ||

18. इस विषय में ऋषियों ने लक्ष्य प्राप्ति के चार साधन बताये हैं, जिनके होने पर ही सत्यस्वरूप आत्मा में अपनी स्थिति हो सकती है , उनके बिना नहीं।  अथवा साधन-चतुष्टय के रहने पर ही ब्रह्म-भक्ति सफल होती है और जिनके अभाव में वह निष्फल हो जाती है।  

 आदौ नित्यनित्यवस्तुविवेकः परिगण्यते |
इहामुत्रफलभोगविरागस्तदनन्तरं
शमदीशतकसम्पत्तिर्मुमुक्षुत्वमिति स्फुटम् || 19 ||

19. प्रथम साधन नित्यानित्य -वस्तु विवेक गिना जाता है,  सत् और असत् का भेद; तत्पश्चात् इहलोक और परलोक में कर्मों के फल के सुख-भोग में वैराग्य का होना है। तत्पश्चात् - शम,दम, उपरति, तितिक्षा , श्रद्धा और समाधान आदि छः गुणों का समूह ; और चौथा है मुमुक्षुता - मोक्ष की स्पष्ट इच्छा। 

      इन तीन श्लोकों में भगवान शंकराचार्यजी हमें उन साधन-चार अनिवार्य चीजों के बारे में बता रहे हैं , जिसके रहने से कोई साधक अपने साध्यवस्तु को प्राप्त कर सकता है। अगर हमें इस खोज में सफल होना है कि - मैं कौन हूँ ? इस प्रश्न के उत्तर को पाने में अगर सफल होना हो , तो एक -एक साधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसको ठीक से समझ लेना है। यहाँ Introduction में अभी केवल उन साधनों के नाम बताये जा रहे हैं। आगे चलकर उनकी परिभाषा बताई जाएगी। तो पहले बता रहे हैं - मुमुक्षोरेव हि ब्रह्मजिज्ञासा योग्यता - 'ब्रह्मजिज्ञासा' माने किसकी जिज्ञासा ? आत्मजिज्ञासा ! अपने स्वरूप के विषय में जिज्ञास है , ये अपने सत्यस्वरूप से पृथक किसी अन्य वस्तु के विषय में ये जिज्ञासा नहीं है। इसलिए ब्रह्मजिज्ञासा -माने मैं कौन हूँ ? यह जिज्ञासा, कैसे होगा -किसको होगा? जो विवेकी होगा, जो वैरागी होगा - विरक्तस्य , शमादि गुणशालीन होगा। शमदमादि षट-संम्पतियाँ जिसके पास होगी। छह समपत्ति मिलाकर एक -साधन का समूह है। जो छह सम्पत्तियों से विभूषित होगा। और चौथा है -जो मुमुक्षु होगा। जो मुक्त होने की इच्छा ही नहीं करेगा उसके अंदर आत्मज्ञान की जिज्ञासा की योग्यता भी नहीं होगी। कोई पूछता है - इस प्रशिक्षण में बाहर के लोग क्यों नहीं हैं ? क्योंकि उसमें आत्मजिज्ञासा की योग्यता ही नहीं है। 

        आपको कहीं कोई विवेकी दिखाई देता है क्या ? सभी तो मगरमच्छ की लकड़ी का कुन्दा समझकर नदी पार करना चाहते हैं। आप बताइये आप के पास-पड़ोस में कोई विवेकी है ? अर्थात जो सत्य नहीं है , उसी को सत्य समझकर बैठे हैं। अपने को स्त्री-पुरुष ही समझकर निश्चिन्त बैठे हैं। तो जो विवेकी ही नहीं हो , उसके अंदर विरीत जेंडर से वैराग्य हो सकता है क्या ? वैराग्य नहीं होगा तो 'शमदमादि षट-संम्पतियाँ' भी उसके अंदर नहीं होंगी। तो उसके अंदर मुक्ति की इच्छा भी नहीं होगी। वह तो इस तलहीन कुएँ के अंदर गिरा हुआ है , बस गिरते जा रहा है। उसको बाहर निकलने की इच्छा ही नहीं है। उसको लगता है मेरे इसी इन्द्रियों वाले जीवन से ही सुख-शांति मिलेगी, खुशियाँ मिलेंगी -जो उसको कभी मिलता नहीं है, वो हमेशा अतृप्त ही रहता है । वो व्यक्ति इस गड्ढे से निकलने के योग्य है क्या ? गड्ढे से बाहर निकलने की शुरुआत विवेक से होती है। विवेक वो स्पष्टता है -जिससे आप समझ जाते हो कि ये लक्क्ड़ नहीं है -मगरमच्छ है। विवेक वह योग्यता है -जिससे आप समझ जाते हो कि जैसा ये जगत दिखाई दे रहा वैसा वो नहीं है। आपकी धारणा स्पष्ट है कि ये जो M/F शरीर दिखाई दे रहा है , यह सत्य नहीं है - सत्य कुछ और है। -Consciousness है ? जिसके अंदर ये विवेक होगा , उसके अंदर वैराग्य भी आ जायेगा , षट्सम्पत्ति भी आजायेगी, मुमुक्षुत्व भी आ जायेगा। 

          ऐसा जो साधन-चतुष्टय सम्पन्न व्यक्ति है , वो ब्रह्मजिज्ञासा के योग्य है। अब हमें आत्मनिरीक्षण करके परखना है कि - मेरे अंदर ये सभी चीजें हैं क्या है ? मेरे अंदर की वस्तुस्थिति क्या है ? विवेक है क्या ? question mark है ? Find Out ! वैराग्य है क्या ? Find Out!  षट्सम्पत्ति है क्या ?  षट्सम्पत्ति में पहला है - शम। शम का मतलब है मन का निग्रह। मन का निग्रह का माने है - मन पर नियंत्रण , 'Control of the mind'.जिनके पास कॉपी -पेन हो लिख सकते हैं। दम का मतलब है -  इन्द्रियों का निग्रह - Control of the sense organs, इंद्रियों पर नियंत्रण ! तीसरा सम्पद है उपरति- उपरति का मतलब है - बाहर की चीजों से प्रभावित न होना। मन की वो दशा जिसमें हम बाहर की चीजों से प्रभावित नहीं होते हों। आचार्य शंकर ने उपरति को बहुत सुंदर ढंग से परिभाषित किया है। चौथा सम्पद है तितिक्षा - तितिक्षा का मतलब है -सहन करना- forbearance, सहनशीलता, या Tolerance-  श, स , ष। जीवन में दुःख तो आते ही हैं -स्वजन वियोग, या रोग आदि होने पर उसको सहना ही पड़ेगाव्यावहारिक स्तर पर जीवन क्या है ? उथल-पुथल है कि नहीं ? 'सामान 100 वर्ष का है - पल की खबर नहीं !' सभी दुःखों को सहन करना। फिर श्रद्धा और समाधान- पाँचवाँ सम्पद श्रद्धा, और छठा सम्पद है -समाधान। श्रद्धा क्या है ? गुरु और शास्त्र की महावासाधन क्य जो हैं -जो उपदेशों हैं उस पर विश्वास। छठा है समाधान - अन्तःकरण (अहंकार) का निरंतर ब्रह्म या आत्मा में ही स्थिर होकर रहना ही समाधान है। ये जो छह गुण हैं - शम, दम, उपरति, तितिक्षा, श्रद्धा और समाधान , ये छह सम्पति हैं। तो साधन चतुष्टय में चार साधन - क्या हैं ? विवेक , वैराग्य, षट्सम्पत का समूह और चौथा है (सत्य को देखने की तीव्र इच्छा??) -मुमुक्षुत्वं-Strong desire for Moksha!              यह साधनचतुष्टय - चार साधनों से विभूषित रहने पर ही किसी साधक में , ब्रह्मजिज्ञासा, आत्मजिज्ञासा या आत्मज्ञान - मैं कौन हूँ ? का उत्तर रूपी साध्य वस्तु को प्राप्त करने की योग्यता उसके अंदर आती है। फिर प्रश्न उठता है - हमारे अंदर ये योग्यता है क्या ? निराश होने की जरूरत नहीं है -This question is very beautiful ! आप देखोगे , हमारे अंदर इनमेंसे शायद कुछ भी नहीं हो ? या बहुत थोड़ा सा हो ? मैं तो कहूँगा आप सबके अंदर कुछ मात्रा में अवश्य है -तभी आप इस कैम्प या P.C. में आये हो। नहीं तो आप यहाँ नहीं होते। आप सबके अंदर पहले से ही ये योग्यताएं कुच-न-कुछ मात्रा में अवश्य हैं। तभी घर और शहर के भोग का सारा सुख छोड़कर यहाँ का दाल-मुढ़ी बड़े शौख से खा रहे हैं ! 3 दिन -मोबाईल को भी छूना नहीं हैआज के युग में  ये तो सबसे बड़ी कठिन तपस्या है ! देखिये , आध्यात्मिक जीवन में ऐसा कभी भी नहीं होता कि ये जो चार साधन - बताये गए , वे हमारे अंदर 100 % हों ? किसी के भी जीवन में ऐसा नहीं होता। विवेक, वैराग्य , षट्सम्पत्ति और मुमुक्षत्व शत-प्रतिशत किसी के पास नहीं होता। सभी साधकों में ये थोड़ा-थोड़ा ही होता है। हो सकता है -किसी में सिर्फ 10 % हो , किसी में सिर्फ 5 % हो , किसी में हो सकता है -15 % हो लेकिन , थोड़ा तो होना जरुरी है। यदि बिल्कुल भी नहीं हो , तो ये सफर- आत्मज्ञान तक पहुँचने की यात्रा जो है, ये शुरू ही नहीं होगी। समझते हो भाई ? इसीलिए बाहर के लोग यहाँ नहीं आ सकते , क्योंकि उनके अंदर ये बिल्कुल भी नहीं है। आपके अंदर कुछ है , थोड़े मात्रा भी है , तभी आपलोग यहाँ पहुँचे हुए हो। (21.40 मिनट) ये ईश्वर का अनुग्रह ही है कि ये जो चार साधन हैं , उसका कुछ-नकुछ सभी में है, ये अनिवार्य है -हर मनुष्य जीवन में होना चाहिए।  ''विवेक हीनः पशुभिः समानः''-विवेक यदि थोड़ा भी नहीं होगा तो आपकी ये यात्रा शुरू ही नहीं होगी।

       ये सभी साधन कुछ मात्रा में होनी चाहिए , हमारा प्रयास क्या होता है ? पता है ? उसकी मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ाते रहते हैं। हो सकता है -हमारा विवेक थोड़ा सा हो ,पर फिर साधुसंग के द्वारा , पाठचक्र और कैम्प के द्वारा , इस प्रकार शास्त्र और गुरु विवेकानन्द द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर चलते-चलते हम विवेक-वैराग्य और षट्सम्पत्ति की मात्रा को हम बढ़ाते जाते हैं , बढ़ाते जाते है ,और आत्ममूल्यांकन तालिका खुद उसका मनांक बैठाते रहते हैं। हमारी योग्यता और भी बढ़ती -बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है। यदि महामण्डल द्वारा निर्दिष्ट -Autosuggestion' या स्व-सुझाव का निष्ठापूर्वक पालन करें -छह महीने में ही चरित्र रूपी चमत्कार हमारी आज्ञा का पालन करने लगेगा- अर्थात षट्सम्पत्ति -से हम अपने को धनी पाएंगे। और इस प्रकार  हम भी ब्रह्मजिज्ञासा के योग्य होते जाते हैं। हो सकता है कि आज हमारे अंदर विवेक-वैराग्य बहुत ही मंद हो , बहुत थोड़ी मात्रा में हो। उससे हमें हताश नहीं होना है -इसको हमें बढ़ाना है। उसको हम बढ़ा सकते हैं --यही मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य है। उसकी प्रक्रिया दूसरे क्लास में बताया जायेगा। दादा मायावती यात्रा का ही उदाहरण देते थे -यदि आपको यहाँ से दिल्ली जाना हो , पर आपकी गाड़ी के पेट्रोल की टंकी बिल्कुल खाली हो - तो गाड़ी start भी नहीं हो सकती। अच्छा पेट्रोल की टंकी पूरी भरी हुई हो , ऐसा भी जरुरी नहीं है। कमसेकम 1 लीटर पेट्रोल तो होनी चाहिए कि आप कमसे कम स्टार्ट करके नजदीक के पेट्रोल पम्प तक तो चले जाएँ। यात्रा शुरू ही नहीं होगी -कमसेकम थोड़ी तो होनी चाहिए कि आप नजदीक के पेट्रोल-पम्प  तक चले जाएँ। और वहां  से भरें। हो सकता है कि आपके पास टंकी फूल करने का पैसा नहीं हो।  फिरभी पेट्रोल क्रमशः डालते हुए हम आगे बढ़ते जाते हैं। अपनी योग्यता को हम बढ़ाते जाते हैं , पहले थोड़ी मात्रा में जो विवेक-वैराग्य था , उसको बढ़ाते जाते हैं। 

       तो ब्रह्मजिज्ञासा योग्यता , आत्मज्ञान की योग्यता में इन चार साधनों की अनिवार्यता है -कम से कम कुछ मात्रा में भी रहना आवश्यक है। फिर उसको हमलोग क्रमशः बढ़ाते जायेंगे। उसी को साधना कहा जाता है। साधक का जीवन साधना करने के लिए होता है। महामण्डल के 5 अभ्यास को करते जाने से उसका विवेक-वैराग्य बढ़ता जाता है , बढ़ता जाता , वो और भी सशक्त बनता जाता है। उसी बात को आगे कहते हैं -   'साधनन्यात्र चत्वारि कथितानि मनीषिभिः' मनीषियों ने ऋषियों ने इन्हीं चार अनिवार्य साधनों की बात की है। येषु सत्स्वेव संनिष्ठा यदाभावे न सिध्यति || 18 | इनके रहने पर ही आत्मा में निष्ठा सम्भव है। इसके अभाव में आत्मा में निष्ठां सम्भव नहीं है। इन चार साधनों के रहने से आप इस जीवनयात्रा के गन्तव्यस्थान तक पहुँचोगे ! साधन चतुष्टय रूपी पेट्रोल यदि बिल्कुल नहीं हो तो आप की यात्रा शुरू ही नहीं होगीगणित की तरह है - पर लीटर 12 KMयेषु सत्स्वेव संनिष्ठा यदाभावे न सिध्यति|जिसके अभाव में आप यह सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते। 

      तो पहला साधन को परिभाषित कर रहे है -'आदौ नित्यनित्यवस्तुविवेकः परिगम्यते' - पहली योग्यता क्या है ? विवेक ! विवेक क्या है ? नित्यवस्तु और अनित्यवस्तु के बीचमें की स्पष्टता ! ये नित्य वस्तु है - ये अनित्य वस्तु है , इन दोनों मिलाना नहीं है। कन्फ्यूज नहीं होना है - आज हमने अनित्य वस्तु (देहमन) को नित्य वस्तु समझ लिया है , और नित्य वस्तु क्या है ? आपको पता ही नहीं है ! हमने मगरमच्छ को लकड़ा समझ लिया है - यही हमारी समस्या है। सो विवेक क्या है ? इन दोनों को पृथक करके स्पष्ट रूप से देखना। सारे अध्यात्मजीवन की शुरुआत विवेक से ही होती है। इसीलिए विवेक को क्या कहते हैं ? चूड़ामणि ! विवेक-चूड़ामणि ! कितना सुंदर है इस ग्रन्थ का नाम। इसलिए विवेक जो है वो चूड़ामणि है - There is nothing greater than this Viveka! यह विवेक  ही हमारे जीवन में स्पष्टता लाता हैं - रतौन्धी दूर होती है , हम चीजों स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। मन का सारा भ्रम निकल जाता है। तब आप अपनी जीवन यात्रा को पूर्ण बुद्धिमता के साथ आगे ले जा सकते हैं। 

        विवेक-प्रयोग किसी सिद्धान्त को जानने का नाम नहीं है, इसका प्रतिफलन हमारे जीवन पर होता है, हमारे व्यक्तित्व पर होता है। आपका व्यक्तित्व ही बदल जायेगा। विवेकी व्यक्ति का एक स्वाधीन व्यक्तित्व होता है , वो किसी का गुलाम नहीं है। Is this not the best thing to happen ? किसी का भी गुलाम न होना - अच्छा है या नहीं ? कितने प्रकार के हम विषयों के गुलाम हैं , कितने प्रकार के हम भोगों के गुलाम है। ये भोग हमें जलाकरके राख बना देती हैं। पर हमें समझ नहीं आ रहा , इस गुलामी से ऊपर उठने की यात्रा में जो प्रथम पड़ाव है - वो विवेक है! दादा कहते थे - 'विवेक-दर्शन अभ्यासेन विवेक-स्रोत उदघाट्यते'! इसलिए विवेक के बिना मनुष्य बनने और बनाने की यात्रा सम्भव ही नहीं है - इसीलिए भगवान शंकराचार्य जी कह रहे हैं -  आदौ नित्यनित्यवस्तुविवेकः परिगण्यते साधन की पहली परिगणना जो बताई जा रही है -वो विवेक है। विवेक का अर्थ हुआ नित्य वस्तु और अनित्यवस्तु के बीच की स्पष्टता। हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि यह विश्व-ब्रह्माण्ड जैसा हमें इन्द्रियों से दिख रहा है , ये जैसा दिख रहा है , ये वैसा नहीं है। जब आपको यह समझ हो जायेगा की जगत जैसा गोलगोल और सुंदर दिख रहा है -वैसा ये नहीं है। तब वैराग्य भी अपने आप आ जायेगा। तब क्या होगा ? आप इसके पीछे दौड़ना बंद कर दोगे। जब वैराग्य होगा - मन में 72 हूरों, शराब की नदी आदि से वैराग्य हो जायेगा -तब क्या होगा ?           इहामुत्रफलभोगविरागस्तदनन्तरं, यहाँ और अमुत्र माने परलोक में फलभोगने की इच्छा - मनुष्य कितने प्रकार की चीजों के लोभ में पड़कर के वो जगत में व्यवहार कर रहा है। हमलोग यहाँ जोकुछ भी कर्म कर रहे हैं - वह किसी न किसी फल को पाने के लिए ही तो कर रहे हैं। हमसभी फलीच्छा से प्रेरित होकर ही तो कर्म करते हैं। केवल इसी लोक में नहीं , कुछ लोग इसलिए भी कर्म करते हैं कि हमें स्वर्ग की प्राप्ति हो। ऐसा कोई है जो फल पाने की इच्छा के बगैर करता हो ? जैसे नचिकेता के पिता -बाजश्रवा। (बालक नचिकेता को दुनिया का पहला जिज्ञासु माना जाता है – कम से कम पहला महत्वपूर्ण जिज्ञासु। एक उपनिषद् भी उस से शुरू होता है। नचिकेता एक छोटा बालक था।) स्वर्ग प्राप्ति  -एक ऐसा बहुत बड़ा लोभ है , जो हमें प्रेरित करती है , कुछ विशिष्ट प्रकार के कर्मों के करने की प्रेरणा देती है। स्वर्गप्राप्ति के लिए आतंकवादी लोग कुछ भी कर लेते हैं। उनको ऐसा लगता है कि आत्मघाती हमला करके हम स्वर्ग में पहुँच जायेंगे। फिर क्या होगा ? आप जानते हैं -ये सब कल्पना है। ये सब विभिन्न नाम वाले धर्म या ism क्या हैं ? ये सब गलत धारणायें हैं ! सबसे ज्यादा अवैज्ञानिक , अन्धविश्वास में -Most unscientific superstitions में डूबा हुआ मानव समाज में स्वर्ग की जो कल्पना है , और वेदांत या सनातन सत्य की बात कर रहे हैं - कोई कल्पना नहीं, कोई अन्धविश्वास नहीं। ऊपर कोई बैठा हुआ हैं -वहाँ से विश्वब्रह्माण्ड का संचालन कर रहा है?  मरने के बाद आप वहां पहुँचोगे , और वो व्यक्ति फिर मनमानी करेगा ? वो उसकी ख़ुशी है कि वो आपको कहाँ डालेगा , स्वर्ग या नर्क में ? अनंतकाल तक आप वहीँ पर पड़े रहते हो। यह क्या विश्वसनीय है ? स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, बड़ों की तो बात दूर रही ये स्कूल जाने वाले बच्चों को भी विश्वसनीय नहीं होगा। इसमें विज्ञानं कहा है ? ये अद्वैत सनातन धर्म की जो विचारधारा है , उससे सर्वथा विपरीत है। मनुष्य कितने अगणित चीजों से प्रेरित होकर कर्म करता है , उसमें से एक लोभ है -स्वर्गप्राप्ति ! स्वर्ग में जाकरके मैं भोग करूँगा।  तो वैराग्य क्या है? इहामुत्रफलभोग-विरागः विरागस्तदनन्तरं - इस लोक में भी (इस जन्म में भी) पर लोक में भी सभी प्रकार के भोगों से विरक्ति। फिर क्या योग्यता चाहिए - शम,दम आदि षट्सम्पत्ति। शमदीशतकसम्पत्तिर्मुमुक्षुत्वमिति स्फुटम् || 19 || छह गुणों को सम्पत्ति कहा गया - वे कितने सुंदर गुण हैं ?? हमारे जीवन की असली धनसम्पत्ति तो ये है ! हमारे बैंक में कितनी धनसम्पत्ति है - उससे मनुष्य सुखी नहीं होगा। सरकार नहीं तो लारेंस गैंग  - सब छीन कर ले जाता है। लेकिन किसी व्यक्ति के अंदर जितना -भी शम, दम, उपरति , तितिक्षा , श्रद्धा और समाधान अधिक से अधिकतर होता जायेगा, वो व्यक्ति स्वभाव से ही सुखी होगा। इसके चेहरे पर सुख और समाधान सब समय छलकेगा ! वहीं जो Materialism या भौतिकवाद है , हमारे धन का हमारे मन के साथ क्या सम्बन्ध है ? धन का सम्बन्ध सिर्फ हमारे स्थूल शरीर के साथ है। आप धन से एक घर बना सकते हो, air conditioner लगा सकोगे , डनलप पिलो और गद्दा ले पाओगे - वो सब इस स्थूल शरीर के लिए है। मन का राग, द्वेष, काम-क्रोध , लोभ-मोह, मद -मात्सर्य आदि षडरिपु है - इसका धन से कोई सम्बन्ध है क्या ? जिस मन के अंदर ये आग सबसमय जल रही है - काम, क्रोध , लोभ-मोह -मात्सर्य रूपी जो आग जल रही है , वो भले ही कितने air conditioner में सो जाओ उसी दशा क्या है ? वो सुखी हो सकता है क्या ?  

     जिस मन में काम रूपी अग्नि सबसमय धधक रही है , जो सब समय मन का गुलाम है , Slave to lust and anger है , वासना और क्रोध का गुलाम है। लोभ का गुलाम है, लोभी है ये सभी चीजें मन में ही तो है। मात्सर्य या ईर्ष्या का जलन की अग्नि में मन जलता रहता है। आपकी धनसम्पत्ति इस मन के रोग का निवारण कर सकती है क्या ? आपका बैंक बैलेंस आपके मन की इस अग्नि को शांत कर सकती है क्या ? सुख के साथ धनसम्पत्ति का क्या सम्बन्ध है ? ये सिर्फ शरीर सम्बंधित कुछ सुविधायें उपलब्ध कर सकती हैं , शानदार मकान और गाड़ी हो सकता है। लेकिन निद्रा प्रदान कर सकती है क्या ?  जबतक अन्तःकरण में आग लगी हुई हो , कोई व्यक्ति सो सकता है क्या ? धनसम्पत्ति का सुख के साथ कोई साथ कोई सम्बन्ध ही नहीं है, यह एक विचारणीय विषय है। सोचकर देखिये। विवेकानन्द के पास कौन सी धनसम्पत्ति थी ? लेकिन परमानन्द में हैं कि नहीं? क्योंकि उनके मन के अंदर काम, क्रोध, लोभ , मोह मद और मात्सर्य रूपी जो बीमारी है - वो बिल्कुल भी नहीं है। लंगोटधारी जो रमण महर्षि हैं , या श्रीरामकृष्ण हैं , सब समय आनंद में हैं -क्योंकि उनका मन सब समय - काम,क्रोध ,लोभ,  मद, मोह और मात्सर्य से मुक्त है। सब समय परमानंद में है। समझ रहे हो भाई ? 

         तो असली सुख कहाँ हैं ? षट्सम्पत्ति में सुख है ; इसलिए उसको सम्पत्ति कहा गया। असली संपत्ति तो यह है ! जिसके अंदर ये सम्पत्ति जितना होगा , वो व्यक्ति स्वभाव से ही सुखी होगा आनंद में होगा। अंतिम मुद्दा है - मुमुक्षुत्वं ! ये सव अभि केवल Introduction हुआ। आत्मज्ञान रूपी साध्यवस्तु को प्राप्त करने का साधन जो है , वह चार है - विवेक, वैराग्य , षट्सम्पत्ति है और मुमुक्षुत्व है ! यह साधन चतुष्टय कम से कम थोड़ी भी मात्रा में हममें होनी चाहिए। कभी भी 100 % नहीं होना चाहिए। किसीका भी आध्यात्मिक जीवन 100 % योग्यता से प्रारम्भ नहीं होता। कम से कम षट्सम्पत्ति अगर 10 % हो , या 5 % भी हो तो आपकी यात्रा शुरू हो जाएगी। फिर उसको बढ़ाना है -और वही साधना है। धीरे -धीरे बढ़ाते हुए आप उस पूर्णता (निःस्वार्थपरता -तृप्ति) ओर अग्रसर होते जाओगे , पर यह दीर्घकालीन अभ्यास है। यह कोई एक-दो दिन की बात या जादू  नहीं है। साधन चतुष्टय का पहला परिभाषा ही अति महत्वपूर्ण है - इसको हमलोग अगले सत्र में सुनेंगे क्योंकि ये सबसे महत्वपूर्ण है। विवेक क्या है ? ब्रह्मसत्यं जगत मिथ्या अब हम धीरे धीरे और भी गहराई में प्रवेश करेंगे। Now the Investigation has started -सत्य क्या है ? मिथ्या क्या है ? ये जगत जो हमको सत्य सा लग रहा है, ये सत्य है क्या ? ईसप कल विचार होगा। 

======== 
                                 


            

     

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें