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बुधवार, 13 अगस्त 2025

⚜️️⚜️️कह कपि मुनि गुरदछिना लेहू। पाछें हमहिं मंत्र तुम्ह देहू॥2॥⚜️️⚜️️घटना - 323⚜️️Operation Kalnemi⚜️️🔱शक्तिवाण लगने से लक्ष्मणजी के मूर्छित होने का प्रसंग>> >> हनुमानजी का सुषेण वैद्य को लाना एवं संजीवनी के लिए जाना, कालनेमि-रावण संवाद, मकरी उद्धार, कालनेमि उद्धार ⚜️️🔱Shri Ramcharitmanas Gayan || Episode #323||

श्रीरामचरितमानस 

षष्ठ सोपान

[ लंका  काण्ड]
   
[ घटना - 323: दोहा -55,56,57] 


>>>⚜️️Operation Kalnemi⚜️️🔱लक्ष्मणजी और मेघनाद के बीच भीषण युद्ध का प्रसंग - 


      >> हनुमानजी का सुषेण वैद्य को लाना एवं संजीवनी के लिए जाना, कालनेमि-रावण संवाद, मकरी उद्धार, कालनेमि उद्धार 

        शक्तिवाण लगने से मूर्छित लक्ष्मण के उपचार के लिए हनुमान लंका के वैद्य सुषेण को उनके घर समेत उठा लाये हैं। औषधि है संजीवनी बूटी , पर्वत का नाम सुनकर जहाँ वो मिलेगी पवनपुत्र हनुमान श्रीराम का स्मरण कर प्रस्थान करते हैं। गुप्तचरों से ये संवाद सुनकर रावण चिंतित हो जाता है , और कालनेमि नामक राक्षस को हनुमान के मार्ग में बाधा डालने के लिए भेजना चाहता है। कालनेमि पहले तो रावण को सद्बुद्धि देने का प्रयास करता है , मदान्धता त्याग कर महामोह निद्रा त्यागने की बात कहता है , किन्तु फिर रावण के हाथों मरने की अपेक्षा , श्रीराम के दूत द्वारा मरना श्रेयस्कर जान , मुनिरुप धारण कर पवनपुत्र के मार्ग में माया रचना करता है। प्यास बुझाने के लिए हनुमान मुनि के संकेत पर सरोवर पहुँचते हैं , जहाँ मगरी के रूप में उपस्थित अप्सरा उनके पैर पकड़ लेती है। हनुमान उसका वध कर देते हैं , स्वर्गारोहण से पूर्व वो मुनिरूपी कालनेमि की वास्तविकता उन्हें बता देती है। कालनेमि का वध करके हनुमान पर्वत पर जड़ी-बुट्टी न पहचान सकने की स्थिति में पूरा पर्वत ही उठाकर लंका जाते हुए , अयोध्या के आकाश में पहुँचते हैं.... 

दोहा :
* राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेन।
कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन ॥55॥

भावार्थ:- सुषेण ने आकर श्री रामजी के चरणारविन्दों में सिर नवाया। उसने पर्वत और औषध का नाम बताया, (और कहा कि) हे पवनपुत्र! औषधि लेने जाओ॥55॥

चौपाई :
* राम चरन सरसिज उर राखी। चला प्रभंजनसुत बल भाषी॥
उहाँ दूत एक मरमु जनावा। रावनु कालनेमि गृह आवा॥1॥

भावार्थ:-श्री रामजी के चरणकमलों को हृदय में रखकर पवनपुत्र हनुमान्‌जी अपना बल बखानकर (अर्थात्‌ मैं अभी लिए आता हूँ, ऐसा कहकर) चले। उधर एक गुप्तचर ने रावण को इस रहस्य की खबर दी। तब रावण कालनेमि के घर आया॥1॥

* दसमुख कहा मरमु तेहिं सुना। पुनि पुनि कालनेमि सिरु धुना॥
देखत तुम्हहि नगरु जेहिं जारा। तासु पंथ को रोकन पारा॥2॥

भावार्थ:-रावण ने उसको सारा मर्म (हाल) बतलाया। कालनेमि ने सुना और बार-बार सिर पीटा (खेद प्रकट किया)। (उसने कहा-) तुम्हारे देखते-देखते जिसने नगर जला डाला, उसका मार्ग कौन रोक सकता है?॥2॥

* भजि रघुपति करु हित आपना। छाँड़हु नाथ मृषा जल्पना॥
नील कंज तनु सुंदर स्यामा। हृदयँ राखु लोचनाभिरामा॥3॥

भावार्थ:- श्री रघुनाथजी का भजन करके तुम अपना कल्याण करो! हे नाथ! झूठी बकवाद छोड़ दो। नेत्रों को आनंद देने वाले नीलकमल के समान सुंदर श्याम शरीर को अपने हृदय में रखो॥3॥

* मैं तैं मोर मूढ़ता त्यागू। महा मोह निसि सूतत जागू॥
काल ब्याल कर भच्छक जोई। सपनेहुँ समर कि जीतिअ सोई॥4॥

भावार्थ:- मैं-तू (भेद-भाव) और ममता रूपी मूढ़ता को त्याग दो। महामोह (अज्ञान) रूपी रात्रि में सो रहे हो, सो जाग उठो, जो काल रूपी सर्प का भी भक्षक है, कहीं स्वप्न में भी वह रण में जीता जा सकता है?॥4॥

दोहा :
* सुनि दसकंठ रिसान अति, तेहिं मन कीन्ह बिचार।
राम दूत कर मरौं बरु यह खल रत मल भार॥56॥

भावार्थ:- उसकी ये बातें सुनकर रावण बहुत ही क्रोधित हुआ। तब कालनेमि ने मन में विचार किया कि (इसके हाथ से मरने की अपेक्षा) श्री रामजी के दूत के हाथ से ही मरूँ तो अच्छा है। यह दुष्ट तो पाप समूह में रत है॥56॥

चौपाई :
* अस कहि चला रचिसि मग माया। सर मंदिर बर बाग बनाया॥
मारुतसुत देखा सुभ आश्रम। मुनिहि बूझि जल पियौं जाइ श्रम॥1॥

भावार्थ:- वह मन ही मन ऐसा कहकर चला और उसने मार्ग में माया रची। तालाब, मंदिर और सुंदर बाग बनाया। हनुमान्‌जी ने सुंदर आश्रम देखकर सोचा कि मुनि से पूछकर जल पी लूँ, जिससे थकावट दूर हो जाए॥1॥

* राच्छस कपट बेष तहँ सोहा। मायापति दूतहि चह मोहा॥
जाइ पवनसुत नायउ माथा। लाग सो कहै राम गुन गाथा॥2॥

भावार्थ:-राक्षस वहाँ कपट (से मुनि) का वेष बनाए विराजमान था। वह मूर्ख अपनी माया से मायापति के दूत को मोहित करना चाहता था। मारुति ने उसके पास जाकर मस्तक नवाया। वह श्री रामजी के गुणों की कथा कहने लगा॥2॥

* होत महा रन रावन रामहिं। जितिहहिं राम न संसय या महिं॥
इहाँ भएँ मैं देखउँ भाई। ग्यान दृष्टि बल मोहि अधिकाई॥3॥

भावार्थ:-(वह बोला-) रावण और राम में महान्‌ युद्ध हो रहा है। रामजी जीतेंगे, इसमें संदेह नहीं है। हे भाई! मैं यहाँ रहता हुआ ही सब देख रहा हूँ। मुझे ज्ञानदृष्टि का बहुत बड़ा बल है॥3

* मागा जल तेहिं दीन्ह कमंडल। कह कपि नहिं अघाउँ थोरें जल॥
सर मज्जन करि आतुर आवहु। दिच्छा देउँ ग्यान जेहिं पावहु॥4॥

भावार्थ:- हनुमान्‌जी ने उससे जल माँगा, तो उसने कमण्डलु दे दिया। हनुमान्‌जी ने कहा- थोड़े जल से मैं तृप्त नहीं होने का। तब वह बोला- तालाब में स्नान करके तुरंत लौट आओ तो मैं तुम्हे दीक्षा दूँ, जिससे तुम ज्ञान प्राप्त करो॥4॥

दोहा :
* सर पैठत कपि पद गहा मकरीं तब अकुलान।
मारी सो धरि दिब्य तनु चली गगन चढ़ि जान॥57॥

भावार्थ:- तालाब में प्रवेश करते ही एक मगरी ने अकुलाकर उसी समय हनुमान्‌जी का पैर पकड़ लिया। हनुमान्‌जी ने उसे मार डाला। तब वह दिव्य देह धारण करके विमान पर चढ़कर आकाश को चली॥57॥

चौपाई :
* कपि तव दरस भइउँ निष्पापा। मिटा तात मुनिबर कर सापा॥
मुनि न होइ यह निसिचर घोरा। मानहु सत्य बचन कपि मोरा॥1॥

भावार्थ:- (उसने कहा-) हे वानर! मैं तुम्हारे दर्शन से पापरहित हो गई। हे तात! श्रेष्ठ मुनि का शाप मिट गया। हे कपि! यह मुनि नहीं है, घोर निशाचर है। मेरा वचन सत्य मानो॥1॥

* अस कहि गई अपछरा जबहीं। निसिचर निकट गयउ कपि तबहीं॥
कह कपि मुनि गुरदछिना लेहू। पाछें हमहिं मंत्र तुम्ह देहू॥2॥

भावार्थ:- ऐसा कहकर ज्यों ही वह अप्सरा गई, त्यों ही हनुमान्‌जी निशाचर के पास गए। हनुमान्‌जी ने कहा- हे मुनि! पहले गुरुदक्षिणा ले लीजिए। पीछे आप मुझे मंत्र दीजिएगा2॥

* सिर लंगूर लपेटि पछारा। निज तनु प्रगटेसि मरती बारा॥
राम राम कहि छाड़ेसि प्राना। सुनि मन हरषि चलेउ हनुमाना॥3॥

भावार्थ:- हनुमान्‌जी ने उसके सिर को पूँछ में लपेटकर उसे पछाड़ दिया। मरते समय उसने अपना (राक्षसी) शरीर प्रकट किया। उसने राम-राम कहकर प्राण छोड़े। यह (उसके मुँह से राम-राम का उच्चारण) सुनकर हनुमान्‌जी मन में हर्षित होकर चले॥3॥

* देखा सैल न औषध चीन्हा। सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा॥
गहि गिरि निसि नभ धावक भयऊ। अवधपुरी ऊपर कपि गयऊ॥4॥

भावार्थ:- उन्होंने पर्वत को देखा, पर औषध न पहचान सके। तब हनुमान्‌जी ने एकदम से पर्वत को ही उखाड़ लिया। पर्वत लेकर हनुमान्‌जी रात ही में आकाश मार्ग से दौड़ चले और अयोध्यापुरी के ऊपर पहुँच गए॥4॥ 

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>>ऑपरेशन कालनेमि :  सोमवार को एक्स पर पोस्ट में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जानकारी देते हुए बताया कि ऑपरेशन कालनेमि के अंतर्गत 100 से अधिक पाखंडी अब कानून की गिरफ्त में हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड की पुण्यभूमि पर किसी भी प्रकार का ढोंग, छल या धार्मिक आवरण में छिपा अपराध सहन नहीं किया जाएगा। पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि ऑपरेशन कालनेमि केवल सुरक्षा अभियान नहीं, बल्कि आस्था, सनातन संस्कृति और देवभूमि की दिव्यता की रक्षा का संकल्प है। राज्य सरकार देवभूमि की पवित्रता और सांस्कृतिक अस्मिता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि सावन मास और चारधाम यात्रा के दौरान यह अभियान और अधिक सतर्कता व गंभीरता के साथ जारी रहेगा

 वहीं, एक निजी टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में सीएम धामी ने कहा कि रामायण का प्रसंग आपके सामने आया उस समय भी कालनेमि था। सही उद्देश्य के लिए काम करने वाले भगवान राम के भक्त हनुमान जब संजीवनी बूटी लेने के लिए जा रहे थे, तो भेष बदलकर, छद्म रूप बनाकर के गुमराह करने की कोशिश कर रहा था। उसी समय भगवान हनुमान को पता लग गया कि यह कालनेमि है और उन्होंने उसका अंत कर दिया उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में भी बहुत सारे कालनेमि छद्म भेष बनाकर अनेक स्थानों पर (म) अपनी पहचान छुपाकर के धार्मिक भावनाओं को आहत करने का काम कर रहे हैं। जो सच्चे धर्म की खोज में, पुण्य की खोज में और अपने आप को प्राप्त करने के लिए भगवान की शरण में जाते हैं, देवभूमि जाते हैं या अन्य स्थानों पर जाते हैं। उनको किसी न किसी रूप में मार्ग भटकाने का काम करते हैं। उनको कहीं रोकने का काम करते हैं और सनातन का नुकसान करते हैं।  यह अभियान ऐसे लोगों की पहचान कर उन सभी लोगों को रोकने और उजागर करने का काम कर रहे हैं। वहीं, 'ऑपरेशन कालनेमि’ पर ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन आश्रम के अध्यक्ष एवं आध्यात्मिक प्रमुख स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा, “मैं ‘ऑपरेशन कालनेमि’ शुरू करने के लिए राज्य सरकार को धन्यवाद देता हूं ऑपरेशन कालनेमि किसी बाबा या संत के खिलाफ नहीं है, बल्कि उन लोगों के खिलाफ है जो समाज को ठग रहे हैं और लूट रहे हैं, यह ऑपरेशन बहुत महत्वपूर्ण है। सभी को इस ऑपरेशन का समर्थन करना चाहिए। (इनपुट-एएनआई)

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https://hindi.webdunia.com/religion/religion/hindu/ramcharitmanas/LankaKand/15.htm 

https://www.shriramcharitmanas.in/p/lanka-kand_50.html 

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