श्रीरामचरितमानस
षष्ठ सोपान
[सुन्दर काण्ड /लंका काण्ड]
(श्रीरामचरितमानस ग्रन्थ में लंका काण्ड किन्तु विविध भारती रेडिओ पर सुन्दर काण्ड।???)
[ घटना - 310: दोहा -23,24]
[Shri Ramcharitmanas Gayan || Episode #310||]
>>सभा में अंगद का व्यंग और श्रीराम की सेना के बल और पराक्रम का रावण द्वारा उपहास
सभा में अंगद के व्यंग वचन सुनकर रावण श्रीराम की सेना के सभी योद्धाओं के बल और पराक्रम का उपहास करता है। हाँ, उस वानर को वो नहीं भूला जिसने लंका जलाई थी। अंगद ने कहा -तूँ जिसके बल की सरहना कर रहा है , वो तो सुग्रीव का सन्देशवाहक मात्र था, किन्तु क्या सचमुच ही प्रभु की आज्ञा पाए बिना तुम्हारी सोने की लंका जला डाली ? तुम सच ही कहते हो कि हमारे दल में कोई भी ऐसा वीर नहीं जो तुमसे लड़कर शोभा पाए। प्रीति और वैर अपने बराबर वालों से ही करना चाहिए। तुम्हें मारना श्रीराम को शोभा नहीं देता ; किन्तु क्षत्रिय का क्रोध बड़ा प्रबल होता है। अंगद के व्यंग वाणों से रावण का कलेजा जल उठा, क्रोध में उसने वानर जाति के लिए अपशब्द कहे। उनकी स्वामि-भक्ति की खिल्ली उड़ाई। और ये कहकर अपने बड़प्पन का परिचय दिया कि वो गुणग्राहक है , और इसी कारण वानरों के बकवास पर ध्यान नहीं देता। अंगद ने फिर व्यंगवाण छोड़ा - हाँ तेरी गुणग्राहकता मैंने हनुमान से सुनी थी। लंकादहन , अशोकवाटिका का विध्वंश और अपने पुत्र अक्षयकुमार का वध करने के बाद भी तूने इसी गुणग्राहकता के कारण तूने हनुमान का कोई अहित नहीं किया। फिर अपने पिता बाली/वाली के हाँथों रावण को क्षमा दान का स्मरण कर बोले, मैंने जगत में कई रावण होने की बात सुनी है। एक रावण तो वो था जो जब बाली को जीतने पाताल लोक गया , तो बच्चों ने उसे घुड़साल में बाँध रखा। बाली दयाकर उसे बच्चों से मुक्त कराया। एक और रावण को जन्तु समझ सहस्त्रबाहु ने पकड़ लिया था , कौतुक के लिए जब उसे घर ले आये , तो पुलस्त्य ऋषि ने उसे मुक्त कराया। एक रावण ने वो भी था , जिसे बाली ने अपनी काँख में दबा लिया था; इनमें से तूँ कौन सा रावण है ?.....
दोहा :
Doha:
* सत्य नगरु कपि जारेउ बिनु प्रभु आयसु पाइ।
फिरि न गयउ सुग्रीव पहिं तेहिं भय रहा लुकाइ॥23 क॥
भावार्थ:- क्या सचमुच ही उस वानर ने प्रभु की आज्ञा पाए बिना ही तुम्हारा नगर जला डाला? मालूम होता है, इसी डर से वह लौटकर सुग्रीव के पास नहीं गया और कहीं छिप रहा!॥23 (क)||
English: "It seems true that the monkey set fire to your capital without receiving an order from his master. That is why he did not go back to Sugriva and remained in hiding for fear.
* सत्य कहहि दसकंठ सब मोहि न सुनि कछु कोह।
कोउ न हमारें कटक अस तो सन लरत जो सोह॥23 ख॥
भावार्थ:- हे रावण! तुम सब सत्य ही कहते हो, मुझे सुनकर कुछ भी क्रोध नहीं है। सचमुच हमारी सेना में कोई भी ऐसा नहीं है, जो तुमसे लड़ने में शोभा पाए॥23 (ख)||
English: All that you say, Ravana, is true and I am not in the least angry at hearing it. There is none in our army who would fight you with any amount of grace.
* प्रीति बिरोध समान सन, करिअ नीति असि आहि।
जौं मृगपति बध मेडुकन्हि भल कि कहइ कोउ ताहि॥23 ग॥
भावार्थ:- प्रीति और वैर बराबरी वाले से ही करना चाहिए, नीति ऐसी ही है। सिंह यदि मेंढकों को मारे, तो क्या उसे कोई भला कहेगा?॥23 (ग)||
English: Make friends or enter into hostilities only with your equals: this is a sound maxim to follow. If a lion were to kill frogs, will anyone speak well of him?
* जद्यपि लघुता राम कहुँ तोहि बधें बड़ दोष।
तदपि कठिन दसकंठ सुनु छत्र जाति कर रोष॥23 घ॥
भावार्थ:-यद्यपि तुम्हें मारने में श्री रामजी की लघुता है और बड़ा दोष भी है तथापि हे रावण! सुनो, क्षत्रिय जाति का क्रोध बड़ा कठिन होता है॥23 (घ)||
English: Though it would be derogatory on the part of Shri Ram to kill you and He will incur great blame thereby, yet, mark me, Ravana, the fury of the Kshatriya race is hard to face.”
* बक्र उक्ति धनु बचन सर हृदय दहेउ रिपु कीस।
प्रतिउत्तर सड़सिन्ह मनहुँ काढ़त भट दससीस॥23 ङ॥
भावार्थ:-वक्रोक्ति रूपी धनुष से वचन रूपी बाण मारकर अंगद ने शत्रु का हृदय जला दिया। वीर रावण उन बाणों को मानो प्रत्युत्तर रूपी सँड़सियों से निकाल रहा है॥ 23 (ङ)||
English: The monkey (Angad) burnt the enemy’s heart with shafts of speech shot forth from the bow of sarcasm; and the ten-headed hero proceeded to extract the arrows, so to speak, with pairs of pincers in the form of rejoinders.
* हँसि बोलेउ दसमौलि तब कपि कर बड़ गुन एक।
जो प्रतिपालइ तासु हित करइ उपाय अनेक॥23 च॥
भावार्थ:- तब रावण हँसकर बोला- बंदर में यह एक बड़ा गुण है कि जो उसे पालता है, उसका वह अनेकों उपायों से भला करने की चेष्टा करता है॥23 (च)||
English: He laughed and said: "“A monkey possesses one great virtue: it does everything in its power to serve him who maintains it."
चौपाई :
Chaupai:
* धन्य कीस जो निज प्रभु काजा। जहँ तहँ नाचइ परिहरि लाजा॥
नाचि कूदि करि लोग रिझाई। पति हित करइ धर्म निपुनाई॥1॥
भावार्थ:- बंदर को धन्य है, जो अपने मालिक के लिए लाज छोड़कर जहाँ-तहाँ नाचता है। नाच-कूदकर, लोगों को रिझाकर, मालिक का हित करता है। यह उसके धर्म की निपुणता है॥1||
English: "Bravo for a monkey, who dances unabashed in the service of its master anywhere and everywhere. Dancing and skipping about to amuse the people it serves the interest of its master; this shows its keen devotion to duty.
* अंगद स्वामिभक्त तव जाती। प्रभु गुन कस न कहसि एहि भाँती॥
मैं गुन गाहक परम सुजाना। तव कटु रटनि करउँ नहिं काना॥2॥
भावार्थ:-हे अंगद! तेरी जाति स्वामिभक्त है (फिर भला) तू अपने मालिक के गुण इस प्रकार कैसे न बखानेगा? मैं गुण ग्राहक (गुणों का आदर करने वाला) और परम सुजान (समझदार) हूँ, इसी से तेरी जली-कटी बक-बक पर कान (ध्यान) नहीं देता॥2||
English: Angad, all of your race are devoted to their lord; how could you, then, fail to extol the virtues of your master in the way you have done? I am a respecter of merit and too magnanimous to pay any attention to your scurrilously glib talk.”
* कह कपि तव गुन गाहकताई। सत्य पवनसुत मोहि सुनाई॥
बन बिधंसि सुत बधि पुर जारा। तदपि न तेहिं कछु कृत अपकारा॥3॥
भावार्थ:- अंगद ने कहा- तुम्हारी सच्ची गुण ग्राहकता तो मुझे हनुमान् ने सुनाई थी। उसने अशोक वन में विध्वंस (तहस-नहस) करके, तुम्हारे पुत्र को मारकर नगर को जला दिया था। तो भी (तुमने अपनी गुण ग्राहकता के कारण यही समझा कि) उसने तुम्हारा कुछ भी अपकार नहीं किया॥3||
English: Said Angad: “The son of the wind-god gave me a true account of your partiality to merit. He laid waste your garden, killed your son and set fire to your city and yet (in your eyes) he did you no wrong.
* सोइ बिचारि तव प्रकृति सुहाई। दसकंधर मैं कीन्हि ढिठाई॥
देखेउँ आइ जो कछु कपि भाषा। तुम्हरें लाज न रोष न माखा॥4॥
भावार्थ:- तुम्हारा वही सुंदर स्वभाव विचार कर, हे दशग्रीव! मैंने कुछ धृष्टता की है। हनुमान् ने जो कुछ कहा था, उसे आकर मैंने प्रत्यक्ष देख लिया कि तुम्हें न लज्जा है, न क्रोध है और न चिढ़ है॥4||
English: Remembering such amiability of your disposition I have been so insolent in my behaviour with you, O Ravan. On coming here I have witnessed all that Hanuman told me, viz., that you have no shame, no anger and no feeling of resentment.”
*जौं असि मति पितु खाए कीसा। कहि अस बचन हँसा दससीसा॥
पितहि खाइ खातेउँ पुनि तोही। अबहीं समुझि परा कछु मोही॥5॥
भावार्थ:- (रावण बोला-) अरे वानर! जब तेरी ऐसी बुद्धि है, तभी तो तू बाप को खा गया। ऐसा वचन कहकर रावण हँसा। अंगद ने कहा- पिता को खाकर फिर तुमको भी खा डालता, परन्तु अभी तुरंत कुछ और ही बात मेरी समझ में आ गई!॥5||
English: "Having been the death of my father I would have next claimed you as my victim; but a thought has come to me just now.
* बालि बिमल जस भाजन जानी। हतउँ न तोहि अधम अभिमानी॥
कहु रावन रावन जग केते। मैं निज श्रवन सुने सुनु जेते॥6॥
भावार्थ:- अरे नीच अभिमानी! बालि के निर्मल यश का पात्र (कारण) जानकर तुम्हें मैं नहीं मारता। रावण! यह तो बता कि जगत् में कितने रावण हैं? मैंने जितने रावण अपने कानों से सुन रखे हैं, उन्हें सुन-॥6||
English: Knowing you to be a living memorial of Bali's unsullied fame, I desist from killing you, O vile boaster. Tell me, Ravana, how many Ravana there are in the world? Or hear from me how many I have heard of.
* बलिहि जितन एक गयउ पताला। राखेउ बाँधि सिसुन्ह हयसाला॥
खेलहिं बालक मारहिं जाई। दया लागि बलि दीन्ह छोड़ाई॥7॥
भावार्थ:- एक रावण तो बलि को जीतने पाताल में गया था, तब बच्चों ने उसे घुड़साल में बाँध रखा। बालक खेलते थे और जा-जाकर उसे मारते थे। बलि को दया लगी, तब उन्होंने उसे छुड़ा दिया॥7||
English: One went to the nether world (Pataal) to conquer Bali and was tied up in the stables by the children, who made sport of him and thrashed him till Bali took compassion on him and had him released.
* एक बहोरि सहसभुज देखा। धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा॥
कौतुक लागि भवन लै आवा। सो पुलस्ति मुनि जाइ छोड़ावा॥8॥
भावार्थ:- फिर एक रावण को सहस्रबाहु ने देखा, और उसने दौड़कर उसको एक विशेष प्रकार के (विचित्र) जन्तु की तरह (समझकर) पकड़ लिया। तमाशे के लिए वह उसे घर ले आया। तब पुलस्त्य मुनि ने जाकर उसे छुड़ाया॥8||
English: Another again was discovered by King Sahasrabahu who ran and captured him as a strange creature and brought him home for the sake of fun. The sage Pulastya then went and secured his release."
दोहा :
Doha:
* एक कहत मोहि सकुच अति, रहा बालि कीं काँख।
इन्ह महुँ रावन तैं कवन, सत्य बदहि तजि माख॥24॥
भावार्थ:- एक रावण की बात कहने में तो मुझे बड़ा संकोच हो रहा है- वह (बहुत दिनों तक) बालि की काँख में रहा था। इनमें से तुम कौन से रावण हो? खीझना छोड़कर सच-सच बताओ॥24||
English: "Yet another, I am much ashamed to tell you, was held tight under Bali's arm. Be not angry, Ravana, but tell me the truth, which of these may you be?”
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