श्रीरामचरितमानस
षष्ठ सोपान
[सुन्दर काण्ड /लंका काण्ड]
(श्रीरामचरितमानस ग्रन्थ में लंका काण्ड किन्तु विविध भारती रेडिओ पर सुन्दर काण्ड।???)
[ घटना - 308: दोहा -17 ख, 18, 19,20 ]
[Shri Ramcharitmanas Gayan || Episode #308||]
>>श्रीराम का सन्देश लेकर दूत के रूप में अंगद के रावण की सभा में पहुँचने का प्रसंग -
मैं जानता हूँ कि तुम परम चतुर हो, शत्रु से ऐसे बात करना जिससे हमारा उद्देश्य पूरा हो, और उसका कल्याण हो (भारत की विदेशनीति : हमारा उद्देश्य पूरा हो और शत्रु का कल्याण हो)।श्रीराम का ये वचन ह्रदय में धारण कर अंगद लंका में प्रवेश करते हैं। राह में रावण के एक पुत्र से भेंट होती है, जो इनके समान ही अतुलनीय बलशाली है। बातों- बातों में दोनों में झगड़ा हो जाता है। रावणपुत्र ने क्रोध में इन्हें मारने को जो लात उठाई, तो अंगद ने वही लात पकड़ उसे मार गिराया; पूरी लंका में भय और आतंक छा गया। बालिपुत्र अंगद तब रावण की सभा में उपस्थित होते हैं , परिचय पूछे जाने पर अंगद कहते हैं - 'मैं श्रीराम का दूत हूँ , मेरे पिता बाली तुम्हारे मित्र थे; अतः मैं तुम्हारे कल्याण की बात करने आया हूँ , पुलस्तय ऋषि के पौत्र होने के नाते तुम उत्तम कुल के वंशज हो। सभी लोकपालों और राजाओं को तुमने जीता है ; लेकिन मदाधन्ता वश तुम जगतजननी सीता को हर लाये हो। अब अपनी करनी के पश्चाताप स्वरुप मेरी सलाह मानकर श्रीराम की शरण जाकर उनसे क्षमा प्रार्थना करो....
चौपाई :
Chaupai:
* बंदि चरन उर धरि प्रभुताई। अंगद चलेउ सबहि सिरु नाई॥
प्रभु प्रताप उर सहज असंका। रन बाँकुरा बालिसुत बंका॥1॥
भावार्थ:- चरणों की वंदना करके और भगवान् की प्रभुता हृदय में धरकर अंगद सबको सिर नवाकर चले। प्रभु के प्रताप को हृदय में धारण किए हुए रणबाँकुरे वीर बालिपुत्र स्वाभाविक ही निर्भय हैं॥1||
English: Adoring the Lord’s feet and keeping His glory in his heart Angad bowed his head to all and departed. The gallant son of Vali, who was an adept in warfare, was dauntless by nature, cherishing as he did the might of the Lord.
* पुर पैठत, रावन कर बेटा। खेलत रहा, सो होइ गै भेंटा॥
बातहिं बात करष बढ़ि आई। जुगल अतुल बल पुनि तरुनाई॥2॥
भावार्थ:-लंका में प्रवेश करते ही रावण के पुत्र से भेंट हो गई, जो वहाँ खेल रहा था। बातों ही बातों में दोनों में झगड़ा बढ़ गया (क्योंकि) दोनों ही अतुलनीय बलवान् थे और फिर दोनों की युवावस्था थी॥2||
English: As soon as he entered the city he met one of Ravan`s sons (Prahasta by name), who was playing there. From words they proceeded to fight; for both were unrivalled in strength and in the prime of youth to boot.
* तेहिं अंगद कहुँ लात उठाई। गहि पद पटकेउ भूमि भवाँई॥
निसिचर निकर देखि भट भारी। जहँ तहँ चले न सकहिं पुकारी॥3॥
भावार्थ:- उसने अंगद पर लात उठाई। अंगद ने (वही) पैर पकड़कर उसे घुमाकर जमीन पर दे पटका (मार गिराया)। राक्षस के समूह भारी योद्धा देखकर जहाँ-तहाँ (भाग) चले, वे डर के मारे पुकार भी न मचा सके॥3||
English: He raised his foot to kick Angad, who in his turn seized the foot and, swinging him round, dashed him to the ground finding him a formidable warrior, the demons ran helter-skelter in large numbers, too much frightened to raise an alarm. They did not tell one another what had happened,
* एक एक सन मरमु न कहहीं। समुझि तासु बध चुप करि रहहीं॥
भयउ कोलाहल नगर मझारी। आवा कपि लंका जेहिं जारी॥4॥
भावार्थ:-एक-दूसरे को मर्म (असली बात) नहीं बतलाते, उस (रावण के पुत्र) का वध समझकर सब चुप मारकर रह जाते हैं। (रावण पुत्र की मृत्यु जानकर और राक्षसों को भय के मारे भागते देखकर) नगरभर में कोलाहल मच गया कि जिसने लंका जलाई थी, वही वानर फिर आ गया है॥4||
English: but kept quiet when they thought of the death of Ravan`s son. There was a cry in the whole city that the same monkey who had burnt down Lanka had come again.
* अब धौं कहा करिहि करतारा। अति सभीत सब करहिं बिचारा॥
बिनु पूछें मगु देहिं दिखाई। जेहि बिलोक सोइ जाइ सुखाई॥5॥
भावार्थ:- सब अत्यंत भयभीत होकर विचार करने लगे कि विधाता अब न जाने क्या करेगा। वे बिना पूछे ही अंगद को (रावण के दरबार की) राह बता देते हैं। जिसे ही वे देखते हैं, वही डर के मारे सूख जाता है॥5||
English: “Who knows what turn Providence is going to take?” everyone thought in excessive dismay. People showed him the way unasked: if he but looked at anyone, the latter would turn deadly pale.
दोहा :
Doha:
* गयउ सभा दरबार तब सुमिरि राम पद कंज।
सिंह ठवनि इत उत चितव धीर बीर बल पुंज॥18॥
भावार्थ:- श्री रामजी के चरणकमलों का स्मरण करके अंगद रावण की सभा के द्वार पर गए और वे धीर, वीर और बल की राशि अंगद सिंह की सी ऐंड़ (शान) से इधर-उधर देखने लगे॥18||
English: With his thoughts fixed on the lotus-feet of Shri Ram he then reached the gate of Ravana`s council-chamber. And there the stout-hearted and mighty hero stood with the mien of a lion glancing this side and that
चौपाई :
Chaupai:
* तुरत निसाचर एक पठावा। समाचार रावनहि जनावा॥
सुनत बिहँसि बोला दससीसा। आनहु बोलि कहाँ कर कीसा॥1॥
भावार्थ:- तुरंत ही उन्होंने एक राक्षस को भेजा और रावण को अपने आने का समाचार सूचित किया। सुनते ही रावण हँसकर बोला- बुला लाओ, (देखें) कहाँ का बंदर है॥1||
English: He forthwith sent a demon and apprised Ravana of his arrival. On hearing the news the ten-headed monster laughed and said. “Go, usher him in my presence and let me see where the monkey has come from.”
* आयसु पाइ दूत बहु धाए। कपिकुंजरहि बोलि लै आए॥
अंगद दीख दसानन बैसें। सहित प्रान कज्जलगिरि जैसें॥2॥
भावार्थ:- आज्ञा पाकर बहुत से दूत दौड़े और वानरों में हाथी के समान अंगद को बुला लाए। अंगद ने रावण को ऐसे बैठे हुए देखा, जैसे कोई प्राणयुक्त (सजीव) काजल का पहाड़ हो!॥2||
English: Receiving his order a host of messengers ran and fetched the monkey chief. Angad saw the ten-headed giant seated on his throne like a living mountain of collyrium.
* भुजा बिटप सिर सृंग समाना। रोमावली लता जनु नाना॥
मुख नासिका नयन अरु काना। गिरि कंदरा खोह अनुमाना॥3॥
भावार्थ:- भुजाएँ वृक्षों के और सिर पर्वतों के शिखरों के समान हैं। रोमावली मानो बहुत सी लताएँ हैं। मुँह, नाक, नेत्र और कान पर्वत की कन्दराओं और खोहों के बराबर हैं॥3||
English: His arms looked like trees and heads like peaks; while the hair on his body presented the appearance of numerous creepers. His mouths, nostrils, eyes and ears were as big as mountain caves and chasms.
* गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा। बालितनय अतिबल बाँकुरा॥
उठे सभासद कपि कहुँ देखी। रावन उर भा क्रोध बिसेषी॥4॥
भावार्थ:- अत्यंत बलवान् बाँके वीर बालिपुत्र अंगद सभा में गए, वे मन में जरा भी नहीं झिझके। अंगद को देखते ही सब सभासद् उठ खड़े हुए। यह देखकर रावण के हृदय में बड़ा क्रोध हुआ॥4||
English: With an unflinching mind he entered the court, the valiant son of Vali, possessed of great might. The assembly abruptly rose at the sight of the monkey; at this Ravan`s heart was filled with great fury.
दोहा :
Doha:
* जथा मत्त गज जूथ महुँ पंचानन चलि जाइ।
राम प्रताप सुमिरि मन बैठ सभाँ सिरु नाइ॥19॥
भावार्थ:- जैसे मतवाले हाथियों के झुंड में सिंह (निःशंक होकर) चला जाता है, वैसे ही श्री रामजी के प्रताप का हृदय में स्मरण करके वे (निर्भय) सभा में सिर नवाकर बैठ गए॥19||
English: Thinking of Shri Ram`s might Angada bowed his head and took his seat in the assembly as fearlessly as a lion treads in the midst of mad elephants.
चौपाई :
Chaupai:
* कह दसकंठ, कवन तैं बंदर। मैं रघुबीर दूत दसकंधर॥
मम जनकहि तोहि रही मिताई। तव हित कारन आयउँ भाई॥1॥
भावार्थ:- रावण ने कहा- अरे बंदर! तू कौन है? (अंगद ने कहा-) हे दशग्रीव! मैं श्री रघुवीर का दूत हूँ। मेरे पिता से और तुमसे मित्रता थी, इसलिए हे भाई! मैं तुम्हारी भलाई के लिए ही आया हूँ॥1||
English: “Monkey, who are you?” Ravana asked. “I am an ambassador from the Hero of Raghu’s line, Ravana. There was friendship between you and my father; hence it is in your interest, brother, that I have come.
* उत्तम कुल, पुलस्ति कर नाती। सिव बिंरचि पूजेहु बहु भाँती॥
बर पायहु कीन्हेहु सब काजा। जीतेहु लोकपाल सब राजा॥2॥
भावार्थ:- तुम्हारा उत्तम कुल है, पुलस्त्य ऋषि के तुम पौत्र हो। शिवजी की और ब्रह्माजी की तुमने बहुत प्रकार से पूजा की है। उनसे वर पाए हैं और सब काम सिद्ध किए हैं। लोकपालों और सब राजाओं को तुमने जीत लिया है॥2||
English: Of noble descent and a grandson of the sage Pulastya (one of the mind-born sons of Brahma), you worshipped Lord Shiva and Brahma in various ways, obtained boons from them, accomplished all your objects and conquered the guardians of the different spheres as well as all earthly sovereigns.
* नृप अभिमान मोह बस किंबा। हरि आनिहु सीता जगदंबा॥
अब सुभ कहा सुनहु तुम्ह मोरा। सब अपराध छमिहि प्रभु तोरा॥3॥
भावार्थ:- राजमद से या मोहवश तुम जगज्जननी सीताजी को हर लाए हो। अब तुम मेरे शुभ वचन (मेरी हितभरी सलाह) सुनो! (उसके अनुसार चलने से) प्रभु श्री रामजी तुम्हारे सब अपराध क्षमा कर देंगे॥3||
English: Under the influence of kingly pride or infatuation you carried off Sita, the Mother of the Universe. But even now you listen to my friendly advice and the Lord will forgive all your offences.
* दसन गहहु तृन कंठ कुठारी। परिजन सहित संग निज नारी॥
सादर जनकसुता करि आगें। एहि बिधि चलहु सकल भय त्यागें॥4॥
भावार्थ:-दाँतों में तिनका दबाओ, गले में कुल्हाड़ी डालो और कुटुम्बियों सहित अपनी स्त्रियों को साथ लेकर, आदरपूर्वक जानकीजी को आगे करके, इस प्रकार सब भय छोड़कर चलो-॥4||
English: Put a straw between the rows of your teeth and an axe by your throat and take all your people including your wives with you, respectfully placing Janaka’s Daughter at the head. In this way repair to Him shedding all fear.
दोहा :
Doha:
* प्रनतपाल रघुबंसमनि, त्राहि त्राहि अब मोहि।
आरत गिरा सुनत प्रभु, अभय करेंगे तोहि॥20॥
भावार्थ:- और 'हे शरणागत के पालन करने वाले रघुवंश शिरोमणि श्री रामजी! मेरी रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए।' (इस प्रकार आर्त प्रार्थना करो।) आर्त पुकार सुनते ही प्रभु तुमको निर्भय कर देंगे॥20||
English: “And address Him thus: ‘O Protector of the suppliant, O Jewel of Raghu’s race, save me, save me now.’ The moment He hears your piteous cry the Lord will surely rid you of every fear.”
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