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शनिवार, 19 जुलाई 2025

⚜️🔱कोसलाधीश श्री रामजी की सौगंध ⚜️भाग #297 ⚜️🔱 श्री रामचरित मानस गायन || ⚜️🔱'Episode'> घटना -297: रावण द्वारा भेजे गए गुप्तचरों को पहचान लेने का प्रसंग ⚜️🔱

 

श्रीराम चरित मानस गायन

सुन्दर काण्ड  

  दोहा : 51-54  


    >>>'Episode'> घटना -297: रावण द्वारा भेजे गए गुप्तचरों को पहचान लेने का प्रसंग ....... 

            विभीषण के श्री राम के शरण में जाने के साथ ही शत्रु की सेना का भेद जानने को रावण ने जो गुप्तचर भेजे थे, उनकी वास्तविकता वानरों के आगे देर तक छिपी न रह सकी। वे पकड़ लिए गए। सुग्रीव ने आदेश दिया कि उनका अंग-भंग करके उन्हें लंका भेज दिया जाये। नाक-कान काटे जाने की बात सुनकर गुप्तचर त्राहि त्राहि कर उठे और वानरों को ऐसा न करने के लिए श्रीराम की सौगन्ध दे दी। हाथ-पाँव बाँधकर जब उन्हें लक्ष्मणजी के सम्मुख लाया गया ; तो दयालु लक्ष्मण ने उन्हें बन्धन -मुक्त कराया। रावण के नाम से पत्र देकर गुप्तचरों को ये मौखिक संदेश पहुँचाने को कहा कि  सीताजी को सादर वापस लाकर,  वो राम की शरण आये, अन्यथा अपना काल आया ही समझे। लंका पहुँचकर रावण से अपनी दुर्गति और लक्ष्मण का सन्देश सुनाते हुए गुप्तचर शुक ने निवेदन किया - हे नाथ वानर-सेना का वर्णन तो सौ करोड़ मुखों से भी करना सम्भव नहीं है। जिसने लंका जलाई और आपके पुत्र अक्षय कुमार का वध किया उसका बल तो अन्य वानरों की तुलना में कुछ भी नहीं है ....
 
 दोहा 

सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह।

        प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह॥51॥    
  
   भावार्थ:-कपट से वानर का शरीर धारण कर उन्होंने सब लीलाएँ देखीं। वे अपने हृदय में प्रभु के गुणों की और शरणागत पर उनके स्नेह की सराहना करने लगे॥51॥

प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ। अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ॥

रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने। सकल बाँधि कपीस पहिं आने॥1॥

भावार्थ:-फिर वे प्रकट रूप में भी अत्यंत प्रेम के साथ श्री रामजी के स्वभाव की बड़ाई करने लगे उन्हें दुराव (कपट वेश) भूल गया। सब वानरों ने जाना कि ये शत्रु के दूत हैं और वे उन सबको बाँधकर सुग्रीव के पास ले आए॥1॥

कह सुग्रीव सुनहु सब बानर। अंग भंग करि पठवहु निसिचर॥

सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए। बाँधि कटक चहु पास फिराए॥2॥

भावार्थ:-सुग्रीव ने कहा- सब वानरों! सुनो, राक्षसों के अंग-भंग करके भेज दो। सुग्रीव के वचन सुनकर वानर दौड़े। दूतों को बाँधकर उन्होंने सेना के चारों ओर घुमाया॥2॥

बहु प्रकार मारन कपि लागे। दीन पुकारत तदपि न त्यागे॥
जो हमार हर नासा काना। तेहि कोसलाधीस कै आना॥3॥

भावार्थ:-वानर उन्हें बहुत तरह से मारने लगे। वे दीन होकर पुकारते थे, फिर भी वानरों ने उन्हें नहीं छोड़ा। (तब दूतों ने पुकारकर कहा-) जो हमारे नाक-कान काटेगा, उसे कोसलाधीश श्री रामजी की सौगंध है॥ 3॥

सुनि लछिमन सब निकट बोलाए। दया लागि हँसि तुरत छोड़ाए॥
रावन कर दीजहु यह पाती। लछिमन बचन बाचु कुलघाती॥4॥

भावार्थ:-यह सुनकर लक्ष्मणजी ने सबको निकट बुलाया। उन्हें बड़ी दया लगी, इससे हँसकर उन्होंने राक्षसों को तुरंत ही छुड़ा दिया। (और उनसे कहा-) रावण के हाथ में यह चिट्ठी देना (और कहना-) हे कुलघातक! लक्ष्मण के शब्दों (संदेसे) को बाँचो॥4॥

दोहा 

कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार।
सीता देइ मिलहु न त आवा कालु तुम्हार॥52॥

भावार्थ:-फिर उस मूर्ख से जबानी यह मेरा उदार (कृपा से भरा हुआ) संदेश कहना कि सीताजी को देकर उनसे (श्री रामजी से) मिलो, नहीं तो तुम्हारा काल आ गया (समझो)॥52॥

चौपाई 

तुरत नाइ लछिमन पद माथा। चले दूत बरनत गुन गाथा॥

कहत राम जसु लंकाँ आए। रावन चरन सीस तिन्ह नाए॥1॥

भावार्थ:-लक्ष्मणजी के चरणों में मस्तक नवाकर, श्री रामजी के गुणों की कथा वर्णन करते हुए दूत तुरंत ही चल दिए। श्री रामजी का यश कहते हुए वे लंका में आए और उन्होंने रावण के चरणों में सिर नवाए॥1॥
बिहसि दसानन पूँछी बाता। कहसि न सुक आपनि कुसलाता॥

पुन कहु खबरि बिभीषन केरी। जाहि मृत्यु आई अति नेरी॥2॥

भावार्थ:-दशमुख रावण ने हँसकर बात पूछी- अरे शुक! अपनी कुशल क्यों नहीं कहता? फिर उस विभीषण का समाचार सुना, मृत्यु जिसके अत्यंत निकट आ गई है॥2॥

करत राज लंका सठ त्यागी। होइहि जव कर कीट अभागी॥
पुनि कहु भालु कीस कटकाई। कठिन काल प्रेरित चलि आई॥3॥

भावार्थ:-मूर्ख ने राज्य करते हुए लंका को त्याग दिया। अभागा अब जौ का कीड़ा (घुन) बनेगा (जौ के साथ जैसे घुन भी पिस जाता है, वैसे ही नर वानरों के साथ वह भी मारा जाएगा), फिर भालु और वानरों की सेना का हाल कह, जो कठिन काल की प्रेरणा से यहाँ चली आई है॥3॥

जिन्ह के जीवन कर रखवारा। भयउ मृदुल चित सिंधु बिचारा॥
कहु तपसिन्ह कै बात बहोरी। जिन्ह के हृदयँ त्रास अति मोरी॥4॥

भावार्थ:-और जिनके जीवन का रक्षक कोमल चित्त वाला बेचारा समुद्र बन गया है (अर्थात्‌) उनके और राक्षसों के बीच में यदि समुद्र न होता तो अब तक राक्षस उन्हें मारकर खा गए होते। फिर उन तपस्वियों की बात बता, जिनके हृदय में मेरा बड़ा डर है॥4॥

दूत का रावण को समझाना और लक्ष्मणजी का पत्र देना

दोहा 

की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर।

कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर ॥53॥

भावार्थ:-उनसे तेरी भेंट हुई या वे कानों से मेरा सुयश सुनकर ही लौट गए? शत्रु सेना का तेज और बल बताता क्यों नहीं? तेरा चित्त बहुत ही चकित (भौंचक्का सा) हो रहा है॥53॥

चौपाई 

नाथ कृपा करि पूँछेहु जैसें। मानहु कहा क्रोध तजि तैसें॥

मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा। जातहिं राम तिलक तेहि सारा॥1॥

भावार्थ:-(दूत ने कहा-) हे नाथ! आपने जैसे कृपा करके पूछा है, वैसे ही क्रोध छोड़कर मेरा कहना मानिए (मेरी बात पर विश्वास कीजिए)। जब आपका छोटा भाई श्री रामजी से जाकर मिला, तब उसके पहुँचते ही श्री रामजी ने उसको राजतिलक कर दिया॥1॥

दोहा 

रावन दूत हमहि सुनि काना। कपिन्ह बाँधि दीन्हें दुख नाना॥

श्रवन नासिका काटैं लागे। राम सपथ दीन्हें हम त्यागे॥2॥

भावार्थ:-हम रावण के दूत हैं, यह कानों से सुनकर वानरों ने हमें बाँधकर बहुत कष्ट दिए, यहाँ तक कि वे हमारे नाक-कान काटने लगे। श्री रामजी की शपथ दिलाने पर कहीं उन्होंने हमको छोड़ा॥2॥

पूँछिहु नाथ राम कटकाई। बदन कोटि सत बरनि न जाई॥

नाना बरन भालु कपि धारी। बिकटानन बिसाल भयकारी॥3

भावार्थ:-हे नाथ! आपने श्री रामजी की सेना पूछी, सो वह तो सौ करोड़ मुखों से भी वर्णन नहीं की जा सकती। अनेकों रंगों के भालु और वानरों की सेना है, जो भयंकर मुख वाले, विशाल शरीर वाले और भयानक हैं॥3॥

जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा। सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा॥

अमित नाम भट कठिन कराला। अमित नाग बल बिपुल बिसाला॥4॥

भावार्थ:-जिसने नगर को जलाया और आपके पुत्र अक्षय कुमार को मारा, उसका बल तो सब वानरों में थोड़ा है। असंख्य नामों वाले बड़े ही कठोर और भयंकर योद्धा हैं। उनमें असंख्य हाथियों का बल है और वे बड़े ही विशाल हैं॥4॥
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