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मंगलवार, 29 जुलाई 2025

⚜️️🔱 'अहंकार' सिव 'बुद्धि' अज 'मन' ससि 'चित्त' महान।⚜️️🔱 घटना -307⚜️️मूरुख हृदयँ न चेत जौं, गुर मिलहिं बिरंचि सम॥🔱श्रीराम के व्यापक स्वरुप का वर्णन कर मन्दोदरी द्वारा रावण को समझाने का प्रयत्न और अंगद को दूत के रूप में रावण की सभा में भेजने का विचार⚜️️🔱श्रीरामचरितमानस- षष्ठ सोपान, लंका काण्ड। ⚜️🔱श्री रामचरित मानस गायन || लंका काण्ड भाग #307⚜️🔱

 श्रीरामचरितमानस 

षष्ठ सोपान


[सुन्दर काण्ड /लंका  काण्ड]

(श्रीरामचरितमानस ग्रन्थ में लंका काण्ड किन्तु विविध भारती रेडिओ पर सुन्दर काण्ड।???) 
   
[ घटना - 307: दोहा -15क,15ख,16क, 16ख, 17क,17 ख  ]

[Shri Ramcharitmanas Gayan || Episode #307||]


⚜️️मूरुख हृदयँ न चेत जौं, गुर मिलहिं बिरंचि सम॥⚜️️

    >>श्रीराम के व्यापक स्वरुप (विश्वरूप) का वर्णन कर मन्दोदरी द्वारा रावण को समझाने का प्रयत्न और अंगद को दूत के रूप में रावण की सभा में भेजने का विचार ......

     कर्णफूल के काटकर गिरने से मन्दोदरी सोंच में पड़ गयी थी ; वो श्रीराम के व्यापक स्वरुप और पराक्रम की कल्पना भलीभाँति कर सकती थी। शिव जिनके मान (अहंकार), ब्रह्मा बुद्धि, चन्द्रमा मन और विष्णु चित्त हैं;उन्हीं जगदीश्वर ने मनुष्य रूप धारण किया है !! वो पति को यह सब समझाने की भरसक चेष्टा करती है। किन्तु रावण हँसकर उसकी ये बात -यह कहते हुए टाल देता है- 'सच कहते हैं, कि नारी के ह्रदय में छल, भय, चंचलता , झूठ , अविवेक और अपवित्रता तथा निर्दयता का निवास होता है। मन्दोदरी द्वारा वर्णित भगवान के विश्वरूप में वर्णित यह चराचर विश्व तो मेरा आधिपत्य स्वीकार करते हैं, अतः उनसे भय कैसा ? हो न हो अपने कथन से वो उसकी प्रभुता की ही महिमा बखान रही है। रानी की गूढ़ बातें रावण के लिए विरोध का हेतु बन गयीं। आमोद-प्रमोद के क्षण बीत जाते हैं; सवेरा होता है। जिस प्रकार बादलों द्वारा बरसाया गया जीवनदायी जल पाकर भी बेंत फल-फूल नहीं सकता, उसी प्रकार मन्दोदरी समझ लेती है कि उसका पति काल के वश में हो गया है, उसकी मति मारी गयी है, ऐसे में तो ब्रह्मा जैसा गुरु भी उन्हें ज्ञान नहीं दे सकता। इधर श्रीराम की सभा में वृद्ध जामवंत ये परामर्श देते हैं कि अंगद को दूत के रूप में रावण की सभा में भेजा जाए ...                 

दोहा

 Doha:
अहंकार सिव बुद्धि अज मन ससि चित्त महान।
मनुज बास सचराचर रूप राम भगवान॥15 क॥

भावार्थ:- शिव जिनका अहंकार (मान)  हैं, ब्रह्मा बुद्धि हैं, चंद्रमा मन (अन्तःकरण =मन, बुद्धि, चित) हैं और महान (विष्णु) ही चित्त (मनवस्तु) हैं। उन्हीं चराचर रूप (विश्वरूप) भगवान श्री रामजी ने मनुष्य रूप में निवास किया है॥15 (क)||

English: “Lord Shiva is His ego, Brahma His Intellect (reason), the moon His mind [faculty of understanding =अन्तःकरण = मन, बुद्धि,चित्त और अहंकार] and the great Vishnu is His चित्त (mind stuff-चित्त). It is the same Lord Shri Ram, manifested in the form of this animate and inanimate creation,

* अस बिचारि सुनु प्रानपति, प्रभु सन बयरु बिहाइ।
प्रीति करहु रघुबीर पद, मम अहिवात न जाइ॥15 ख॥

भावार्थ:- हे प्राणपति सुनिए, ऐसा विचार कर प्रभु से वैर छोड़कर श्री रघुवीर के चरणों में प्रेम कीजिए, जिससे मेरा सुहाग न जाए॥15 (ख)||

English: who has assumed a human semblance.(मानव रूप) Pondering thus, hear me, O lord of my life: cease hostility with the Lord and cultivate devotion to the feet of Shri Ram (the Hero of Raghu’s line) so that my good-luck may not desert me.”

चौपाई :
Chaupai:


* बिहँसा नारि बचन सुनि काना। अहो मोह महिमा बलवाना॥
नारि सुभाउ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं॥1॥

भावार्थ:- पत्नी के वचन कानों से सुनकर रावण खूब हँसा (और बोला-) अहो! मोह (अज्ञान-infatuation) की महिमा बड़ी बलवान्‌ है। स्त्री का स्वभाव सब सत्य ही कहते हैं कि उसके हृदय में आठ अवगुण सदा रहते हैं-॥1||

English: Ravan laughed when he heard the words of his wife. “Oh, how mighty is the power of infatuation (आसक्ति की दीवानगी)! They rightly observe in regard to the character of a woman that the following eight evils ever abide in her heart:

* साहस अनृत चपलता माया। भय अबिबेक असौच अदाया॥
रिपु कर रूप सकल तैं गावा। अति बिसाल भय मोहि सुनावा॥2॥

भावार्थ:- साहस (recklessness-दुस्साहस) , झूठ (mendacity-मिथ्याभाषण) , चंचलता, माया (deceit-छल), भय (timidity-डरपोकपन) अविवेक (indiscretion-धृष्टता-ढिठाई), अपवित्रता और निर्दयता (callousness-बेरहमी)। तूने शत्रु का समग्र (विराट) रूप गाया और मुझे उसका बड़ा भारी भय सुनाया॥2||

English: recklessness, mendacity, fickleness, deceit, timidity, indiscretion, impurity and callousness. You have described the enemy’s cosmic form and thus told me a most alarming story.

* सो सब प्रिया सहज बस मोरें। समुझि परा अब प्रसाद तोरें॥
जानिउँ प्रिया तोरि चतुराई। एहि बिधि कहहु मोरि प्रभुताई॥3॥

भावार्थ:- हे प्रिये! वह सब (यह चराचर विश्व तो) स्वभाव से ही मेरे वश में है। तेरी कृपा से मुझे यह अब समझ पड़ा। हे प्रिये! तेरी चतुराई मैं जान गया। तू इस प्रकार (इसी बहाने) मेरी प्रभुता का बखान कर रही है॥3||

English: But all that (whatever is comprised in that cosmic form), my beloved, is naturally under my control; it is by your grace that this has become clear to me now. I have come to know your ingenuity, my dear; for in this way you have told my greatness.

* तव बतकही गूढ़ मृगलोचनि। समुझत सुखद सुनत भय मोचनि॥
मंदोदरि मन महुँ अस ठयऊ। पियहि काल बस मति भ्रम भयउ॥4॥

भावार्थ:- हे मृगनयनी! तेरी बातें बड़ी गूढ़ (रहस्यभरी) हैं, समझने पर सुख देने वाली और सुनने से भय छुड़ाने वाली हैं। मंदोदरी ने मन में ऐसा निश्चय कर लिया कि पति को कालवश मतिभ्रम हो गया है॥4||

English: Your words, O fawn-eyed lady, are profound: they afford delight when understood and dispel all fear even when heard. Mandodari was now convinced at heart that her husband’s impending death had deluded him.

दोहा :
Doha:
* ऐहि बिधि करत बिनोद बहु प्रात प्रगट दसकंध।
सहज असंक लंकपति सभाँ गयउ मद अंध॥16 क॥

भावार्थ:- इस प्रकार (अज्ञानवश) बहुत से विनोद करते हुए रावण को सबेरा हो गया। तब स्वभाव से ही निडर और घमंड में अंधा लंकापति सभा में गया॥16 (क)||

English: While Ravan was laughing and joking in diverse ways as mentioned above, the day broke and the king of Lanka, who was intrepid by nature and further blinded by pride, entered the court.

सोरठा :#

 
Sortha:


* फूलइ फरइ न बेत, जदपि सुधा बरषहिं जलद।
मूरुख हृदयँ न चेत जौं, गुर मिलहिं बिरंचि सम॥16 ख॥

भावार्थ:- यद्यपि बादल अमृत सा जल बरसाते हैं तो भी बेत फूलता-फलता नहीं। इसी प्रकार चाहे ब्रह्मा के समान भी ज्ञानी गुरु मिलें, तो भी मूर्ख के हृदय में चेत (ज्ञान) नहीं होता॥16 (ख)||

[सोरठा क्या है ? एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह दोहा का ठीक उलटा होता है। इसके विषम चरणों चरण में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।]  

English: The reed neither blossoms nor bears fruit even though the clouds rain nectar on it. Similarly the light of wisdom would never dawn on a fool even though he may have a teacher like Viranchi (Brahma).

चौपाई :
Chaupai:


* इहाँ प्रात जागे रघुराई। पूछा मत सब सचिव बोलाई॥
कहहु बेगि का करिअ उपाई। जामवंत कह पद सिरु नाई॥1॥

भावार्थ:- यहाँ (सुबेल पर्वत पर) प्रातःकाल श्री रघुनाथजी जागे और उन्होंने सब मंत्रियों को बुलाकर सलाह पूछी कि शीघ्र बताइए, अब क्या उपाय करना चाहिए? जाम्बवान्‌ ने श्री रामजी के चरणों में सिर नवाकर कहा-॥1||

English: At this end the Lord of the Raghus woke at daybreak and, summoning all His counsellors, asked their opinion: “Tell me quickly what course should be adopted.” Jambvan bowed his head at the Lord’s feet and said

* सुनु सर्बग्य सकल उर बासी। बुधि बल तेज धर्म गुन रासी॥
मंत्र कहउँ निज मति अनुसारा। दूत पठाइअ बालि कुमारा॥2॥

भावार्थ:- हे सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाले)! हे सबके हृदय में बसने वाले (अंतर्यामी)! हे बुद्धि, बल, तेज, धर्म और गुणों की राशि! सुनिए! मैं अपनी बुद्धि के अनुसार सलाह देता हूँ कि बालिकुमार अंगद को दूत बनाकर भेजा जाए!॥2||

English: “Listen, O omniscient Lord, indweller of all hearts, storehouse of wisdom, strength, glory, piety and goodness: I offer advice to You according to my own lights. It is that Vali`s son (Prince Angad) may be sent as an envoy (to Ravana).”

* नीक मंत्र सब के मन माना। अंगद सन कह कृपानिधाना॥
बालितनय बुधि बल गुन धामा। लंका जाहु तात मम कामा॥3॥

भावार्थ:- यह अच्छी सलाह सबके मन में जँच गई। कृपा के निधान श्री रामजी ने अंगद से कहा- हे बल, बुद्धि और गुणों के धाम बालिपुत्र! हे तात! तुम मेरे काम के लिए लंका जाओ॥3||

English: The good counsel commended itself to all and the All-merciful turned to Angad and said, “O son of Vali, repository of wisdom, strength and goodness! go to Lanka, dear son, for My cause.

* बहुत बुझाइ तुम्हहि का कहऊँ। परम चतुर मैं जानत अहऊँ॥
काजु हमार तासु हित होई। रिपु सन करेहु बतकही सोई॥4॥

भावार्थ:- तुमको बहुत समझाकर क्या कहूँ! मैं जानता हूँ, तुम परम चतुर हो। शत्रु से वही बातचीत करना, जिससे हमारा काम हो और उसका कल्याण हो॥4||

English: I need not give you any elaborate instructions. I know you are supremely clever. You should talk with the enemy in such words as may advance My cause and serve his interest at the same time.”

सोरठा :
Soratha:


* प्रभु अग्या धरि सीस चरन बंदि अंगद उठेउ।
सोइ गुन सागर ईस राम कृपा जा कर करहु॥17 क॥

भावार्थ:-प्रभु की आज्ञा सिर चढ़कर और उनके चरणों की वंदना करके अंगदजी उठे (और बोले-) हे भगवान्‌ श्री रामजी! आप जिस पर कृपा करें, वही गुणों का समुद्र हो जाता है॥17 (क)||

English: Bowing to the Lord’s command and adoring His feet, Angad arose and said, “He alone is an ocean of virtues, on whom You shower Your grace, O divine Rama.

* स्वयंसिद्ध सब काज नाथ मोहि आदरु दियउ।
अस बिचारि जुबराज तन पुलकित हरषित हियउ॥17 ख॥

भावार्थ:-स्वामी सब कार्य अपने-आप सिद्ध हैं, यह तो प्रभु ने मुझ को आदर दिया है (जो मुझे अपने कार्य पर भेज रहे हैं)। ऐसा विचार कर युवराज अंगद का हृदय हर्षित और शरीर पुलकित हो गया॥17 (ख)||

English: “All the objects of my Lord are self-accomplished,” he thought; “He has only honoured me (by charging me with this task).” And the thought thrilled his body and delighted his heart. 

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