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गुरुवार, 5 सितंबर 2024

स्वामी विवेकानंद और भारत का भविष्य

     पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी की छठवीं सन्तान के रूप में पौष संक्रांति 12 जनवरी 1863 को जन्म लेने वाला बालक नरेन्द्र ही आगे चलकर विश्वविख्यात विवेकानंद हुआ। इस बात को प्राय: सभी जानते हैं , परंतु उन्होंने श्रेष्ठ और महान भारत का भविष्य भी देखा था यह सभी नहीं जानते। 

उन्हाेंने अपने चिंतन प्रज्ञा में प्रश्न किया था- 'क्या भारत मर जाएगा? तब तो संसार से सारी आध्यात्मिकता का समूल नाश हो जाएगा, सारे सदाचारपूर्ण आदर्श जीवन का विनाश हो जाएगा, धर्मों के प्रति सारी मधुर सहानुभूति नष्ट हो जाएगी, सारी भावुकता का भी लोप हो जाएगा। और, उसके स्थान में कामरूपी देव और विलासितारूपी देवी राज करेगी। धन उनका पुरोहित होगा। प्रताड़ना, पाशविक बल और प्रतिद्वंद्विता, ये ही उनकी पूजा-पद्धति होगी और मानवता उनकी बलि सामग्री हो जाएगी।' ऐसी दुर्घटना कभी हो नहीं सकती। " (विवेकानंद साहित्य भाग 9, मद्रास अभिनंदन का उत्तर -पृष्ठ 377)। 

     स्वामी विवेकानंद के इस विचार-सूत्र से समझ में आता है कि समग्र मानवता के लिए भारतीय संस्कृति में व्याप्त गुरु-शिष्य परम्परा [श्रीरामकृष्ण -विवेकानन्द वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा में 'Be and Make ' का]  जीवित-जागृत रहना कितना जरूरी है। इसी के बल पर हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति - 'सम्पूर्ण अस्तित्व का एकत्व' (Oneness of whole existence) तथा मनुष्यमात्र में अन्तर्निहित दिव्यता (Inherent divinity) विश्वास करती आ रही है। भारत यदि मर जायेगा -तो सम्पूर्ण विश्व स 'सदाचारपूर्ण आदर्श', 'मधुर सहानुभूति', 'सारी भावुकता' 'साम्प्रदायिक सहानुभूति' का लोप हो जायेगा। और उसके स्थान पर वासना, धनलोलुपता, प्रताड़ना, प्रतिद्वंद्विता आदि पाशविक बलों का ही बोलबाला हो जाएगा जो मानवता को मर-मर कर जीने के लिए मजबूर कर देंगे। पर स्वामीजी ने अपनी भविष्य दृष्टि से देख लिया था कि 'ऐसी दुर्घटना कभी हो नहीं सकती'। 

     उन्होंने दृढ़ विश्वास प्रकट किया था कि 'भारत की उन्नति अवश्य होगी और साधारण तथा गरीब लोग सुखी होंगे।' स्वामीजी ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था- 'भारत का पुनरुत्थान होगा, पर वह जड़ की शक्ति से नहीं, वरन् आत्मा की शक्ति के द्वारा। यदि कोई शैतान हो, तो भी हमारा कर्तव्य यही है कि हम ब्रह्म का स्मरण करें, शैतान का नहीं। जड़ नहीं चैतन्य हमारा लक्ष्य है। ऐसा मत कहो कि हम दुर्बल हैं , कमजोर हैं। आत्मा सर्वशक्तिमान है। जड़ पदार्थ तुम्हारा ईश्वर कभी नहीं हो सकता, शरीर तुम्हारा ईश्वर कभी नहीं हो सकता।  नाम और रूप वाले सभी नामरूप हीन सत्ता के अधीन हैं। इसी सनातन सत्य की शिक्षा श्रुति दे रही है। आत्मा की शक्ति (त्याग और सेवा) का विकास करो, और सारे भारत के विस्तृत क्षेत्र में उसे ढाल दो, और जिस स्थिति की आवश्यकता है , वह आप ही प्राप्त हो जाएगी। अंतर्निहित दिव्यता यानि ब्रह्मभाव - को प्रकट करो और उसके चारों ओर सबकुछ समन्वित होकर विन्यस्त हो जायेगा। " (वही पुस्तक, भाग 9 पृ. 380)। 

" आत्मा की इस अनन्त शक्ति का प्रयोग जड़ वस्तु पर होने से लौकिक -भौतिक उन्नति होती है, विचार पर होने से बुद्धि का विकास होता है , और स्वयं पर होने से मनुष्य का ईश्वर बन जाता है।  पहले हमें ईश्वर (बुद्ध) बन लेने दो। ततपश्चात दूसरों को भी ईश्वर बनने में सहायता देंगे। मनुष्य बनो और बनाओ , यही हमारा मूल मंत्र रहे।  (वही पुस्तक, भाग 9 पृ. 379 )।  

 'सुदीर्घ रजनी अब समाप्त होती हुई जान पड़ती है। महानिद्रा में निमग्न शव मानों जागृत हो रहा है... जड़ता धीरे-धीरे दूर हो रही है। अब कोई उसे रोक नहीं सकता। अब वह फिर सो भी नहीं सकती। कोई बाह्य शक्ति इस समय इसे दबा नहीं सकती क्योंकि यह असाधारण शक्ति का देश अब जागकर खड़ा हो रहा है।' (वही, भाग 5, पृ. 42, 43)। 

क्या वर्तमान भारत की दिशा और दशा स्वामी जी की भविष्यवाणी को सही साबित नहीं कर रही है? सारी खामियों और खासियतों के बावजूद विश्व बिरादरी में भारत को मिल रही अहमियत भारत के क्रमश: जागरूक व सशक्त होने का प्रमाण नहीं है? अपनी उस भविष्यवाणी की परिपूर्णता के लिए स्वामी जी ने साधन संकेत देते हुए आह्वान किया था- 'भारत को महान बनाना है, उसका भविष्य उावल करना है तो इसके लिए आवश्यकता है संगठन की, शक्ति संग्रह की और बिखरी हुई इच्छाशक्ति को एकत्र कर उसमें समन्वय लाने की। अथर्ववेद संहिता की एक विलक्षण ऋचा याद आ गई, जिसमें कहा गया है, 'तुम सब लोग एकमन हो जाओ, सब लोग एक ही विचार के बन जाओ।... एक मन हो जाना ही समाज संगठन का रहस्य है।' (वही, पृ. 192)।यह भी सनातन सत्य है कि 'संघे शक्ति युगे-युगे।' हर प्रकार की सफलता प्राप्ति में संगठन-शक्ति ही मुख्य आधार है।

     उस संगठन-शक्ति का स्वरूप कैसा होगा? उसे भी स्वामी जी ने स्पष्ट देख लिया था। भारत में हिन्दू-मुस्लिम दो बड़े समुदायों का साम्प्रदायिक संघर्ष सदियों से समय-समय पर होता रहा है। इससे राष्ट्रीय एकात्मता बाधित होती रही है। परंतु गत कुछ वर्षों से संघर्ष की कमी देखी जा रही है। विघ्न संतोषियों के लाख विषवमनों के बावजूद दोनों समाजों की दूरियां काफी घटी हैं, सद्भाव-नाएं बढ़ी हैं। इस दशा व दिशा को पहले ही देख लिया था स्वामी जी ने और कहा था - 'मैं अपने मानस चक्षु से भावी भारत की उस पूर्णावस्था को देखता हूं, जिसका तेजस्वी और अजेय रूप में वेदान्ती बुद्धि और इस्लामी शरीर के साथ उत्थान होगा... हमारी मातृभूमि के लिए इन दोनों विशाल मतों का सामंजस्य-हिन्दुत्व और इस्लाम-वेदान्ती बुध्दि और इस्लामी शरीर-यही एक आशा है।' (वही भाग 6, पृ. 405, 06)। 

    ऐसे साम्प्रदायिक सामंजस्यता व सामाजिक समरसता से एक नवीन भारत उठ खड़ा होगा। जिसका स्वरूप अखिल विश्व में अद्भुत, अद्वितीय, अतुलनीय और अदमनीय होगा। इसीलिए 'भावी भारत' का सपना देखने वाले देशभक्तों से सम्पूर्ण समर्पण हेतु आह्वान करते हुए कहा था- 'एक नवीन भारत निकल पड़े। निकले-निकले हल पकड़कर, किसानों की कुटिया भेदकर, मछुआ, माली, मोची, मेहतरों की झोपड़ियों से। निकल पड़े बनियों की दुकानों से! निकले झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से!... अतीत के कंकाल-समूह यही है तुम्हारे सामने तुम्हारी उत्तराधिकारी भावी भारत! वे तुम्हारी रत्न पेटिकाएं, तुम्हारी मणि की अंगुठियां-फेंक दो इनके बीच, जितना शीघ्र फेंक सको, फेंक दो, और तुम हवा में विलीन हो जाओ, अदृश्य हो जाओ, सिर्फ-कान खड़े रखो। 

     तुम ज्यों ही विलीन होगे, उसी वक्त सुनोगे:- कोटिजिमूतस्मंदिनी, त्रैलोक्यकंपनकारिणी भावी भारत की उद्बोधन ध्वनि 'वाहे गुरु जी का खालसा , वाहे गुरूजी की फतह'। (वही पुस्तक, भाग 8, पृष्ठ 167-68)।'

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नारी जागरण पर स्वामी विवेकानंद कहते हैं स्त्रियों की पूजा करके ही सभी राष्ट्र बड़े बने हैं। जिस देश में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वह देश या राष्ट्र कभी बड़ा नहीं बन सका है और भविष्य में कभी बड़ा भी नहीं बन सकेगा। हम देख रहे हैं कि नौ देवियों लक्ष्मी और सरस्वती को मां मानकर पूजने वाले सीता जैसे आदर्श की गाथा घर-घर में गाने वाले यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता को हृदय में बसाने वाले भारत में नारी को यथोचित सम्मान प्राप्त नहीं है। हमारी मानसिकता बदल रही है किंतु उसकी गति बहुत धीमी है, यदि हम देश की तरक्की चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी सोच को बदल कर नारी जागरण और उत्कर्ष पर चिंतन और त्वरित क्रियाशीलता दिखानी भी होगी। ग्रामीण आदिवासी स्त्रियों की वर्तमान दशा में उद्धार करना होगा, आम जनता को जगाना होगा, तभी तो भारत वर्ष का कल्याण होगा। अपनी आध्यात्मिकता और दार्शनिकता से हमें जगत को जीतना होगा। संसार में मानवता को जीवित रखने का और कोई उपाय नहीं है।

स्वामी विवेकानंद जी ने तीन भविष्यवाणी की थीं। सर्वप्रथम 1897  में उन्होंने कहा था कि भारत अकल्पनीय परिस्थितियों के बीच अगले 50 वर्षों में ही स्वाधीन हो जाएगा। जब उन्होंने यह बात कही तब कुछ लोगों ने इस पर ध्यान दिया। उस समय ऐसा होने की कोई संभावना भी नहीं दिख रही थी। अधिकांश लोग अंग्रेजों द्वारा शिक्षित होकर संतुष्ट थे। उन दिनों लोगों में शायद ही कोई राजनीतिक चेतना दिखाई पड़ती थी। उन्हें राजनीतिक स्वाधीनता की कोई धारणा नहीं थी। ऐसी पृष्ठभूमि में स्वामी विवेकानंद ने भविष्यवाणी की कि भारत अगले 50 वर्षों में स्वाधीन हो जाएगा और यह सत्य सिद्ध  हुई। विवेकानंद ने ही एक और भविष्यवाणी की थी जिसका सत्य सिद्ध होना शेष है। उन्होंने कहा था भारत एक बार फिर समृद्धि तथा शक्ति की महान ऊँचाइयों पर उठेगा और अपने समस्त प्राचीन गौरव को पीछे छोड़ जाएगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत का विश्व गुरु बनना केवल भारत ही नहीं, अपितु विश्व के हित में है। 

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि अतीत से ही भविष्य बनता है। अत: यथासंभव अतीत की ओर देखो और उसके बाद सामने देखो और भारत को उज्ज्वल तक पहले से अधिक पहुंचाओ। हमारे पूर्वज महान थे। हम भारत के गौरवशाली अतीत का जितना ही अध्ययन करेंगे हमारा भविष्य उतना ही उज्ज्वल होगा। भारत में श्रीराम, कृष्ण, महावीर, हनुमान तथा श्रीरामकृष्ण जैसे अनेक ईष्ट और महापुरुषों के आदर्श उपस्थित हैं।

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि धर्म को हानि पहुंचाए बिना ही जनता की उन्नति की जा सकती है। किसी को आदर्श बना लो, यदि तुम धर्म को फेंक कर राजनीति, समाजनीति अथवा अन्य किसी दूसरी नीति को जीवन शक्ति का केंद्र बनाने में सफल हो जाओ तो उसका फल यह होगा कि तुम्हारा अस्तित्व नहीं रह जाएगा। भारत में हजारों वर्षों से धार्मिक आदर्श की धारा प्रवाहित हो रही है। भारत का वायुमंडल इस धार्मिक आदर्श से शताब्दी तक पूर्ण रह कर जगमगाता रहा है। हम इसी धार्मिक आदर्श के भीतर पैदा हुए और पले हैं। यहां तक कि धर्म हमारे जन्म से ही हमारे रक्त में मिल गया है, जीवन शक्ति बन गया है। यह धर्म ही है जो हमें सिखाता है कि संसार के सारे प्राणी हमारी आत्मा के विविध रूप ही हैं। सच्चाई यह भी है कि हमारे लोगों ने धर्म को समाज में सही रूप में उपयोग भी नहीं किया है। अत: भारत में किसी प्रकार का सुधार या उन्नति की चेष्टा करने के पहले धर्म को अपनाने की आवश्यकता है। भारत को राजनीतिक विचारों से प्रेरित करने के पहले जरूरी है कि उसमें आध्यात्मिक विचारों की बाढ़ ला दी जाए। शिक्षा हमारी मूलभूत आवश्यकता है।

      राष्ट्रभक्तों की टोलियों पर स्वामी विवेकानंद ने कहा है देशभक्त बनो। जिस राष्ट्र ने अतीत में हमारे लिए इतने बड़े-बड़े काम किए हैं, उसे प्राणों से भी प्यारा समझो। क्या तुम यह अनुभव करते हो कि ज्ञान के काले बादल ने सारे भारत को ढंक लिया है। यह सोचकर क्या तुमको बेचैनी नहीं होती है। क्या इस सोच ने तुम्हारी निद्रा छीन ली है कि भारत के लोग दुखी हैं, यदि हां तो फिर तुम देशभक्त बनने की पहली सीढ़ी पार कर गए हो। यदि तुमने केवल व्यर्थ की बातों में शक्ति क्षीण करके इस दुर्दशा के निवारण हेतु कोई यथार्थ कर्तव्य पथ निश्चित किया है। यदि तुम पर्वताकार विघ्न बाधाओं को लांग कर राष्ट्र कार्य करने के लिए तैयार हो तो सारी दुनिया विरोध में खड़ी हो जाए तो भी निडरता के साथ सत्व की रक्षा के लिए खड़े रहना और संगी साथियों के छोड़ जाने पर भी अभी तुम राष्ट्रोत्थान के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहोगे तो यह तीसरी सफलता है। इन बातों से युक्त विश्वासी युवा देशभक्तों की आज भारत को आवश्यकता है। स्वामीजी का स्वप्न था कि उन्हें 1000 तेजस्वी युवा मिल जाएं तो वह भारत को विश्व शिखर पर पहुंचा सकते हैं। मेरा विश्वास युवा पीढ़ी, नई पीढ़ी में है। मेरे कार्यकर्ता इनमें से आएंगे और वह सिंहों की भांति समस्याओं का हल निकालेंगे। ऐसे युवाओं में और किसी बात की जरूरत नहीं है। बस केवल प्रेम, सेवा, आत्मविश्वास, धैर्य और राष्ट्र के प्रति असीम श्रद्धा होनी चाहिए।

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शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

🔱🕊😇 'सफलता का रहस्य : The Secret of Success' 🙋🏹जान लिया है हमने राज चरित्र से बनता देश-समाज ! 😇 😇 "We have learnt that a nation and society is made by one's character!"

 सफलता का रहस्य 

(The Secret of Success ) 

[मनुष्यमात्र में अन्तर्निहित दिव्यता (विवेक) के प्रयोग द्वारा जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए नौ पाठों का पाठ्यक्रम। अव्यक्त शक्तियों के विनियोग (Application of the Latent Powers) द्वारा जीवन में सफल होने का रहस्य - विलियम वॉकर एटकिन्सन (1862–1932) द्वारा 1908 ई. में लिखित पुस्तक। A course of nine lessons to achieve success in life by using the divinity (Latent Powers -conscience) inherent in every human being. ]

विषय-वस्तु

पाठ I. विवेक-प्रयोग :सफलता का मूलभूत नियम। सहज प्रेरणा (सहज वृत्ति-instinctive impulse) अर्थात विवेक के प्रयोग से जीवन में सफल कैसे हुआ जाता है?  सफलता का रहस्य (Secret of Success.)। जीवन क्या है ? परिस्थितियों का घोर दबाव रहने के बावजूद अपने दिव्य व्यक्तित्व के प्रकटीकरण और विकास को ही जीवन कहते हैं ! और जो व्यक्ति अपने अन्तर्निहित दिव्यता या दिव्य-व्यक्तित्व को प्रकट करने में सफल हो जाता है उसी को, 'The Leaders among Men.' मानवजाति का मार्गदर्शक नेता कहा जाता है! -स्वामी विवेकानन्द।]

Lesson I. Secret of Success. The Fundamental Rules of Success. The Instinctive Impulse How to Succeed. The Leaders among Men. The Unfoldment of Individuality. 

[Life is "The Unfoldment and development of an Individuality under the circumstances tending to press it down!"-Swami Vivekananda

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पाठ II. व्यक्ति : वैयक्तिकता और विशिष्टता [पृथक्त्व (Individuality) और व्यक्तित्व (Personality-विशेषता).आत्मा वास्तव में क्या है ? और वह व्यक्ति क्या है जो आत्मा की शक्ति को प्रकट कर लेता है ? मस्तिष्क में अवस्थित इन्द्रिय -केंद्रआत्मा मस्तिष्क के सहस्रार में गुरु रूप से रहता है। 

Lesson II. The Individual. Individuality and Personality. What the Self really is. What is the Individual which manifests the Power of the Self. The Master in the Brain.

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पाठ III. आत्मश्रद्धा (अदम्य उत्साह : Spiritedness- आत्मश्रद्धा (आस्तिक्य बुद्धि रहने से जन्मा अदम्य उत्साह या Spiritedness) कोई काल्पनिक (ख़याली-fanciful) या सन्दिग्ध (vague) गुण नहीं है, बल्कि मनुष्य मात्र में विद्यमान एक वास्तविक, जीवंत और अत्यंत प्रभाव-शाली शक्ति है। आत्मश्रद्धा का गुण या अदम्य उत्साह का गुण साधक के (समाधि-प्राप्त) योगी होने का एक निश्चायत्मक पहचान है। -A wonderful Soul-quality'-आत्मा के 24 गुणों में सबसे पहला अद्भुत गुण है !   

Lesson III. -Spiritedness. Spiritedness is not a fanciful, vague quality, but a real, live, forceful Power in Man. The Assertion of Recognition of Mastery. A wonderful Soul-quality.

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पाठ IV. मानवमात्र में अन्तर्निहित (24) सम्भावित (potential) अव्यक्त (dormant-सुप्त)-  शक्तियाँ। उन सभी गुणों को व्यक्त करने के में ईमानदारी (Earnestness), उत्सुकता (Enthusiasm-अति श्रद्धा) और आकांक्षा (Desire) द्वारा निभाई गई भूमिका। इच्छा-शक्ति की अभिव्यक्ति।  इच्छा और इसके पीछे क्या छिपा है ?

Lesson IV. Latent Powers. The part played by Earnestness, Enthusiasm, and Desire. The Manifestation of Will-Power. The Will and what lies behind it.

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 पाठ V. आत्म-शक्ति। उत्साह की ऊर्जा, और इसका वास्तव में क्या अर्थ है। उत्साह क्या हासिल करता है। उत्साह का संचार कैसे करें।

Lesson V. Soul‑Force. The Energy of Enthusiasm, and what it really means. What Enthusiasm accomplishes. How to communicate Enthusiasm.

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पाठ VI. इच्छा की शक्ति। प्रेरक शक्ति जो दुनिया को चलाती है। एक उपयोगी सेवक लेकिन एक खराब स्वामी। इच्छा कैसे पैदा करें। इसकी अद्भुत ऊर्जा को कैसे लागू करें। इच्छा द्वारा मन की शक्ति को कैसे बढ़ाया जाए।

Lesson VI. The Power of Desire. The Motive Force that runs the world. A useful servant but a poor master. How to Create Desire. How to apply its wonderful Energy. How to Extend the Mind Force by Desire.

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पाठ VII. आकर्षण का नियम। प्रकृति का महान नियम। परमाणु से मनुष्य तक। हम जिन चीज़ों की इच्छा करते हैं या जिनसे डरते हैं, उन्हें अपनी ओर कैसे आकर्षित करें। इच्छा शक्ति। मन की इस महान शक्ति को कैसे विकसित करें और उस पर महारत हासिल करें। डर का विचार और उस पर कैसे काबू पाया जाए।

Lesson VII. The Law of Attraction. Nature’s Great Law. From Atom to Man. How to draw to us the things we Desire or Fear. Desire Force. How to cultivate and master this great power of the Mind. Fear thought and how to overcome it.

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पाठ VIII. व्यक्तिगत चुंबकत्व।  व्यक्तिगत चुंबकत्व का औचित्य. यह क्या है और यह क्या करता है. यह दूसरों को कैसे प्रभावित करता है. चुंबकीय आकर्षण कुछ लोगों द्वारा प्रकट होता है.

Lesson VIII. Personal Magnetism. The Rationale of Personal Magnetism. What it is and what it does. How it affects others. The magnetic attraction is manifested by certain people.

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पाठ IX. आकर्षक व्यक्तित्व। आकर्षक व्यक्तित्व कैसे प्राप्त करें। व्यक्तित्व का आकर्षण। आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और महारत का गुण - यह किसी के लिए क्या करता है, और सफलता के लिए आवश्यक व्यक्तिगत गुणों और लक्षणों को कैसे विकसित करता है, और उन्हें कैसे प्राप्त करें।

Lesson IX. Attractive Personality. How to Acquire an Attractive Personality. The Charm of Personality. The quality of SelfRespect, Confidence, and Mastery—What it does for one, and Develops its Personal qualities and traits that make for success, and how to acquire them.

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पाठ- I 

 🙋व्यक्तित्व (Individuality-दिव्यता,ब्रह्मत्वहमारी आत्मा की अभिव्यक्ति है🙋 

[सफलता प्राप्ति के लिए (स्वामी विवेकानन्द के चरित्र-निर्माण और मनुष्य-निर्माणकारी शिक्षा)  का पहला और मूलभूत नियम है, 'विवेक-प्रयोग'।  सहज प्रेरणा (सहज वृत्ति-instinctive impulse) अर्थात कुछ भी कार्य करने से पहले विवेक के प्रयोग करने से जीवन में सफल हुआ जाता है। यही है सफलता का रहस्य 'Secret of Success.'। जीवन क्या है ?  परिस्थितियों का घोर दबाव रहने के बावजूद अपने दिव्य व्यक्तित्व के प्रकटीकरण और विकास को ही जीवन कहते हैं ! और जो व्यक्ति अपने अन्तर्निहित दिव्यता या दिव्य-व्यक्तित्व को प्रकट करने में सफल हो जाता है उसी को, 'The Leaders among Men.' मानवजाति का मार्गदर्शक नेता कहा जाता है!  - स्वामी विवेकानंद। Life is "The Unfoldment and development of an Individuality under the circumstances tending to press it down!"-Swami Vivekananda]

भूमिका : थोड़ी सी झिझक के साथ हम इस अंग्रेजी पुस्तिका 'The Secret of Success'- (सफलता का रहस्य।) का हिन्दी अनुवाद करने की चेष्टा कर रहे हैं। क्योंकि हम अपने को 'सफलता का शिक्षक' कहने में संकोच का अनुभव करते हैं। 

स्वयं चरित्रवान मनुष्य बनने की अपेक्षा, दूसरों को चरित्रवान मनुष्य बनने का उपदेश देना ज्यादा आसान है। किसी भी काम, जैसे 'Be and Make' को करने की अपेक्षा कहना कहीं अधिक आसान है।  इसलिए, स्वयं मनुष्य बनने के नियमों को व्यवहार में लाने और निःस्वार्थी मनुष्य बनने के लिए कठोर प्रयत्न करने की अपेक्षा 'Be and Make' के लिए नियमों पर पुस्तक लिखना या भाषण देना कहीं अधिक आसान है। सफलता की कला के शिक्षक कहते रहते हैं -"जैसा मैं कहता हूँ वैसा करो, जैसा मैं करता हूँ वैसा नहीं" ( “do-as-I tell you, and not as I do”) 

सभी लोग सफलता पाने के लिए प्रयासरत हैं और उसे पाना चाहते हैं। सफलता के बारे में उनके विचार अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन वे सभी प्राप्ति (Attainment-लब्धि) की वांछनीयता (desirability) पर सहमत हैं। "प्राप्ति (उपलब्धि)" - यही वह शब्द है, जो उस चीज़ का सार है जिसे हम सफलता कहते हैं।  "लक्ष्य तक पहुँचने" का विचार है - प्राप्ति का विचार - उस लक्ष्य तक पहुँचने का विचार जिसके लिए हमारा जन्म हुआ है। प्रत्येक मनुष्य की यही कहानी है - प्राप्ति। 

कई पुरुषों और महिलाओं ने दूसरों को सफलता का रास्ता दिखाने का प्रयास किया है, जबकि कुछ ने उन लोगों के लिए बहुमूल्य सेवा प्रदान की है जो प्राप्ति के मार्ग पर उनका अनुसरण कर रहे थे, फिर भी कोई भी सफलता की पूरी कहानी नहीं बता पाया है। कोई भी दो स्वभाव बिल्कुल एक जैसे नहीं होते - प्रकृति विविधता में आनंदित होती है; कोई भी दो परिस्थितियां बिल्कुल एक जैसी नहीं होती - यहां भी अनंत विविधता (infinite variety) प्रकट होती है। और इसलिए सफलता के लिए कोई एक ऐसा सार्वभौमिक नियम बनाने की चेष्टा करना मूर्खता होगी, जो निश्चित रूप से सभी को सफलता के महान लक्ष्य तक ले जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति जिसने सफलता प्राप्त की है, उसने अलग-अलग तरीकों से ऐसा किया है।

वास्तव में, व्यक्तित्व के रूप में ज्ञात योग्यता या विशेषता ने, इसे प्राप्त करने वाले अधिकांश व्यक्तियों की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वैयक्तिकता (Individuality) उन लोगों को एक हद तक प्रभावित करती है जो किसी भी नियम या निर्धारित कार्य-पद्धति से विचलित होने की संभावना रखते हैं। और इसलिए, यह एक सामान्य सिद्धांत के रूप में कहा जा सकता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सफलता के लिए किसी निर्धारित नियम या आचरण का अनुसरण करने के बजाय, अपने स्वयं के व्यक्तित्व के अनुरूप कार्य करना चाहिए। यह एक विरोधाभास जैसा लग सकता है, लेकिन थोड़ी जांच से आपको पता चलेगा कि ऐसा नहीं है।

हम वास्तव में मानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सफलता के लिए किसी cut‑and‑dried plan.' -तयशुदा योजना के बजाय अपने व्यक्तित्व के अनुरूप काम करना चाहिए। और यहीं पर “सफलता का रहस्य” सामने आता है। और जिस मात्रा में उसके पास व्यक्तित्व होगा, उतनी ही मात्रा में उसके पास सफलता की पहली शर्त भी होगी। और यही है “सफलता का रहस्य” से हमारा तात्पर्य - वैयक्तिकता (Individuality)। प्रत्येक व्यक्ति में सुप्त एवं अप्रकट व्यक्तित्व (दिव्यता - dormant and latent Individuality) विद्यमान होता है - किन्तु बहुत थोड़े से लोग ही उसे अभिव्यक्त कर पाते हैं।

हममें से ज़्यादातर लोग ऐसे इंसानी भेड़ों (human sheep) # की तरह हैं जो किसी आत्म-विश्वासी Bellwether [A bellwether is a leader or indicator of trends. एक लीड (बधिया किया हुआ नर भेड़) के गले में घंटी बांध कर उसे भेंड़ों का रहनुमा मानने की प्रथा, के अनुसार कोई चरवाहा उसके गले में बंधी घंटी की आवाज़ सुनकर अपने भेंड़ों के झुण्ड की गतिविधियों को तब भी देख सके जब वह ऐसी जगह हो जहाँ से झुण्ड में न आ रहा हो।) उसके पीछे-पीछे भागते रहते हैं, जिसकी झनझनाती घंटी हमारे कदमों का मार्गदर्शन करती है।

हमने किसी तरह यह गलत धारणा आत्मसात कर ली है कि केवल इन 'bellwethers ' अग्रदूतों  के पास ही  मानव ज्ञान और शक्ति तथा सोचने की क्षमता का सार है - और अपनी स्वयं की सुप्त शक्तियों तथा अव्यक्त संभावनाओं को उजागर (unfold) करने की चेष्टा करने के बजाय, हम उन्हें सुषुप्ति की अवस्था में ही रहने देते हैं, और अपने (pet bellwether) 'प्रिय अग्रदूत ' के पीछे-पीछे दौड़ते-दौड़ते रहते हैं।

इस मामले में अधिकांश लोग भेड़ों की तरह ही- आज्ञाकारी और अनुकरणीय पशु (obedient and imitative animals) जैसे होते हैं - और अपने कदमों को स्वयं निर्देशित करने की जिम्मेदारी लेने के बजाय, वे तब तक इंतजार करते हैं जब तक कोई आगे नहीं बढ़ जाता, और फिर वे उसके पीछे भागते हैं। क्या यह कोई आश्चर्य की बात है कि तथाकथित 'नेता' अपने लिए सबसे बढ़िया विकल्प (choicest pickings) का दावा करते हैं, और अपने पीछे चलने वाले झुंड को केवल 'scrubby grass' कटीली झाड़ियाँ से भरा घास खाने देते हैं? उन्होंने अपने पीछे आने वालों की ओर से आत्म-विश्वासी (self‑assertive) बेहतर व्यक्तित्व (Individuality) और आत्म-निर्देशक उद्यम (Initiative) की गुणों वजह से उन्हें इन्हीं गुणों के कारण नेता के रूप में चुना गया है। यदि वे नेतृत्व करने के बजाय विनम्र, सौम्य तरीके से पीछे हट जाते, तो उन्हें उस झुंड द्वारा किनारे कर दिया जाता जो उन्हें नेता के रूप में अस्वीकार कर देता, और उन लोगों के पक्ष में खड़ा हो जाता जो आगे बढ़ना जानते थे। “bellwetherism” करने या भेंड़ों की रहनुमाई करने में - व्यर्थ की शान और क्षुद्र आत्म-संतुष्टि के अलावा और कुछ नहीं रखा है।

     वांछनीय बात तो यह है कि आपके पास पर्याप्त व्यक्तित्व (Individuality) और उद्यम (Initiative) हो, जिससे आप स्वयं अपना नेतृत्व कर सकें-अपने स्वयं के ह्रदय की वक्रता को दूर कर सकें। और जहाँ तक दूसरों का नेतृत्व करने का प्रश्न है, उनसे कहो ‘अप्प दीपो भव' कि अब तुम जाओ, अब तुम्हारी साधना पूरी हुई, अब तुम अपने दीप, अपने प्रकाश स्वयं हो। सच्चे नेता कभी अपने पीछे घूमने वाले झुण्ड को देखकर कभी गर्व नहीं करते कि वे उसका अनुसरण कर रहे हैं -बल्कि इसके भीतर जो दिव्यता है उसका अनुसरण करते हैं। उन्हें बड़ाई की बातों को सुनने से कोई संतुष्टि नहीं मिलती, क्योंकि यह प्रशंषा केवल निम्न बुद्धि को ही प्रसन्न करती है, तथा केवल तुच्छ स्वभाव और महत्वाकांक्षाओं को ही संतुष्ट करती है

    और, यही वह चीज़ जिसे व्यक्तित्व (Individuality) कहते हैं, जो परम् सत्य अविभाज्य  चीज़ है। यह दिव्यता/ब्रह्मत्व हममें से हर एक में निहित है, और अगर हम इसे सही तरीक़े से प्रशिक्षण प्राप्त करें तो में प्रत्येक व्यक्ति में निहित इस दिव्यता को विकसित किया जा सकता है और क्रियाशील बनाया जा सकता है। व्यक्तित्व (Individuality ) हमारी आत्मा की अभिव्यक्ति है - वह आत्मा जिसे हम "मैं" कहते समय अभिप्रेत करते हैं। (Individuality is the expression of our Selfthat Self which is what we mean when we say “I”. ) और जहाँ तक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति (personal expression-या वैयक्तिकता) का प्रश्न  है, हममें से प्रत्येक मनुष्य (M/F) एक व्यक्ति है, एक "मैं" है "Individual—an “I” है जो विश्व में हर दूसरे "मैं" से भिन्न है ! (Each of us is an Individual—an “I”—differing from every other “I” in the universe, so far as personal expression is concerned.) और जिस मात्रा में हम उस "मैं" की शक्तियों को (unfold and manifest the powers of that “I”, को अर्थात चरित्र-के 24 गुणों को) अभिव्यक्त और प्रकट करते हैं, उसी मात्रा में हम चरित्रवान (great-महात्मा), शक्तिशाली और सफल मनुष्य होते हैं। हम में से प्रत्येक मनुष्य में यह दिव्यता (व्यक्तित्व), अर्थात "चरित्र के यह 24 गुण अन्तर्निहित है" - लेकिन सुप्तावस्था में है, उन्हें जगाना और व्यक्त करना हम पर ही निर्भर करता है। और, अपनी 'व्यक्तिगत अभिव्यक्ति (Individual Expression) को unfold करके क्रियाशील बना लेना ही "सफलता के रहस्य" का केंद्रबिंदु है। और इसीलिए हम इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं - और यही बात हम आपको इस छोटी सी किताब-'The Secret of Success' में बताएंगे। क्योंकि इस "रहस्य" को जानने से आपको फ़ायदा होगा।

1. The Unfoldment of Individualityकोई भी दो स्वभाव बिल्कुल एक जैसे नहीं होते - प्रकृति विविधता में आनंदित होती है; कोई भी दो परिस्थितियाँ बिल्कुल एक जैसी नहीं होतीं - यहाँ भी अनंत विविधता प्रकट होती है। और इसलिए सार्वभौमिक अनुप्रयोग के नियम बनाने का प्रयास करना मूर्खता होगी, जो निश्चित रूप से सभी को सफलता के महान लक्ष्य तक ले जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी निर्धारित नियम या आचरण की रेखा का अनुसरण करने के बजाय अपनी स्वयं की व्यक्तित्व की रेखाओं के अनुसार अपनी सफलता प्राप्त करनी चाहिए।

तो इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति के पास "व्यक्तित्व" होना चाहिए, तभी वह अपनी "व्यक्तित्व" के अनुसार काम कर सकता है। और जिस हद तक उसके पास व्यक्तिगत पहचान है, उसी हद तक उसके पास सफलता की पहली शर्त भी होगी। और यही हमारा “सफलता का रहस्य” से तात्पर्य है - व्यक्तित्व। 

हममें से ज़्यादातर लोग किसी आत्म-विश्वासी घंटी बजाने वाले के पीछे-पीछे भागते हुए इंसानी भेड़ों की तरह हैं, जिसकी झनझनाती घंटी हमारे कदमों का मार्गदर्शन करती है। हममेंसे अधिकांश लोग इस तरह से भेड़ों की तरह होते हैं - वे आज्ञाकारी और अनुकरणीय जानवर होते हैं, और अपने कदमों को निर्देशित करने की जिम्मेदारी लेने के बजाय, वे तब तक प्रतीक्षा करते हैं जब तक कोई नेतृत्व नहीं ले लेता, और फिर वे उसके पीछे भागते हैं। 

इस छोटी सी पुस्तक में, हम आप में "बेलवेदरिज्म" की भावना को जगाने का प्रयास नहीं करेंगे, न ही आपको झुंड का नेतृत्व करने का प्रयास करने के लिए आग्रह करेंगे - लोगों का नेतृत्व करने में घमंड और क्षुद्र आत्म-संतुष्टि के अलावा कुछ भी नहीं है

महान लोग - मजबूत लोग - झुंड की परवाह नहीं करते, जो उनके पीछे इतनी आज्ञाकारी रूप से चलता है। और, यह चीज़ जिसे व्यक्तित्व कहते हैं, एक वास्तविक चीज़ है। यह हममें से हर एक में निहित है, और जिसे हम में से हर एक में विकसित किया जा सकता है और क्रियाशील बनाया जा सकता है, अगर हम इसे सही तरीके से करें। व्यक्तित्व हमारे स्व की अभिव्यक्ति है - वह स्व जिसका अर्थ हम तब करते हैं जब हम "मैं" कहते हैं। हममें से हर एक व्यक्ति है - एक "मैं" - जो ब्रह्मांड में हर दूसरे "मैं" से अलग है, जहाँ तक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का सवाल है। और जिस हद तक हम उस "मैं" की शक्तियों को व्यक्त और प्रकट करते हैं, हम उतने ही महान, मजबूत और सफल होते हैं। हम सभी में "यह है" - इसे बाहर निकालना हम पर निर्भर करता है, और, यह व्यक्तिगत अभिव्यक्ति "सफलता के रहस्य" के केंद्र में है।

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पाठ- II 

आत्म-अवधारणा (self-concept) मैं क्या हूँ ?" 

[व्यक्ति BKS ~ The Individual BKS क्या है ?  वैयक्तिकता और विशिष्टता [पृथक्त्व (Individuality) और व्यक्तित्व (Personality-विशेषता).आत्मा वास्तव में क्या है ? और वह व्यक्ति क्या है जो आत्मा की शक्ति को प्रकट कर लेता है ? मस्तिष्क में अवस्थित इन्द्रिय -केंद्र। आत्मा मस्तिष्क के सहस्रार में गुरु रूप से रहता है। 

The Individual. Individuality and Personality. What the Self really is. What is the Individual which manifests the Power of the Self.  The Master in the Brain.] 

   अपने पिछले पाठ में, हमने सुना था कि “Secret of success”  (सफलता का रहस्य) मुख्यतः अपने वास्तविक 'मैं' को - Individual—the “I.” को प्रकट, अभिव्यक्त या UNFOLDMENT करने में निहित है। किन्तु जब तक आप स्वयं यह अनुभव नहीं कर लेते कि आपके भीतर का व्यक्ति -आपका वास्तविक "मैं" - the Individual—the “I” within you, सचमुच में क्या है ?...  तब तक आप सिद्धांत को अपने जीवन में सफलतापूर्वक लागू नहीं कर सकते। यह कथन आपमें से कई लोगों को पहली बार में उपहास्य (ridiculous) लग सकता है, लेकिन इसके पीछे के विचार (the idea behind it) से पूरी तरह परिचित होना आपके लिए लाभदायक होगा, "for upon the true realization of “I” comes Power" क्योंकि "मैं" की सच्ची अनुभूति होने पर ही शक्ति आती है- चरित्र के 24 गुण प्रकट या Unfold होने लगते हैं। 

यदि आप रुककर स्वयं का 'सिंहावलोकन' करें, तो आप पाएंगे कि आप पहले जितना स्वयं को समझते थे, उससे कहीं अधिक जटिल (complex-पेचीदा ) प्राणी हैं। प्रथम स्थान पर, एक “मैं-“I,” है, जो वास्तविक आत्मा (Real Self) या व्यक्ति (Individual) है, और एक “मुझे-Me” है, जो कि “मैं”- “I” से जुड़ा हुआ है और उससे संबंधित है - व्यक्तित्व (Personality)

[व्यक्तित्व (Personality)  से तात्पर्य उन स्थायी विशेषताओं और व्यवहार ( characteristics and behavior) से है जो किसी व्यक्ति के जीवन के प्रति उसके अनूठे समायोजन ( unique adjustment ) को दर्शाते हैं, जिनमें चरित्र के 24 प्रमुख गुण, रुचियां, प्रेरणाएं, मूल्य, आत्म-अवधारणा (self-concept, 3H में कौन सा 'H' समझते हो ?), नेतृत्व क्षमता या योग्यताएं-(Leadership Skills) और भावनात्मक आदर्श (emotional patterns) शामिल हैं।]

इसको प्रमाणित करने के लिए, यदि “मैं” को “मुझे” का सिंहावलोकन करने दें ! ( let the “I” take stock of the “Me”) तो हम देखेंगे कि जिसको हम मुझे “Me” समझते हैं - उसके तीन प्रमुख अवयव हैं 3'H' - यानी (1) भौतिक शरीर -the Physical Body (2) मन -The Mind.(3) आत्मा या प्राण ऊर्जा- (The Vital Energy)। 

बहुत से लोगों को अपने शरीर (M/F नाम-रूप ) को अपना "मैं" हिस्सा मानने की आदत (habit) या प्रवृत्ति (Propensity) बन जाती है, लेकिन थोड़ा विचार करने पर उन्हें पता चल जाएगा कि शरीर और मन दोनों (या नाम-रूप) तो वास्तविक "मैं" (आत्मा) का केवल एक अंश, आवरण या यंत्र मात्र है - जिसकी सहायता से  “I” can manifest itself-जिसके माध्यम से "मैं" खुद को प्रकट (Unfold) कर सकता है 

थोड़ा चिंतन करने पर पता चलेगा कि कोई व्यक्ति अपने "मैं हूँ" (“I Am”) भाग के प्रति स्पष्ट रूप से सचेत (vividly conscious) हो सकता है, जबकि उसी समय  वह अपने भौतिक शरीर की उपस्थिति से अन्यमनस्क (oblivious -अनभिज्ञ) भी हो सकता है। ऐसा होने पर, यह निष्कर्ष निकलता है कि -  “I” is independent of the body ! “मैं” (चेतना) शरीर से स्वतंत्र है, और शरीर “मुझे और मेरे ”-"Me and my" की श्रेणी (classification-जड़ की श्रेणी) में आता है।  “मैं” के चले जाने के बाद भी (after the “I” has left it) भौतिक शरीर अस्तित्व में रह सकता है (The physical body may exist) - मृत शरीर (dead body) “मैं” नहीं है -the dead body is not the “I.”। भौतिक शरीर अनगिनत कणों (countless particles ) से बना है जो हमारे जीवन में हर पल अपना स्थान बदलते रहते हैं - हमारा आज का शरीर एक साल पहले के शरीर से - 'entirely different' या पूरी तरह भिन्न है

      इसके बाद आता है “मुझे और मेरा” “Me”—का दूसरा अवयव है - प्राण ऊर्जा-the Vital Energy, या जिसे कई लोग जीवन (Life) भी कहते हैं। प्राण ऊर्जा को भी शरीर से स्वतंत्र माना जाता है, और शरीर वह है जिसे यह ऊर्जा (जीवन) प्रदान करता है। लेकिन यह भी क्षणभंगुर और परिवर्तनशील है, यह प्राण भी "मैं" का एक उपकरण (instrument)  है, और इसलिए "मुझे "-“Me” को प्राणवंत करने वाला एक अवयव है। तो फिर, “मैं”-“I”  के पास बचा क्या जिससे वह अपनी प्रकृति की जांच करे और उसका निर्धारण करे? तब स्वाभाविक रूप से होठों पर जो उत्तर आता है, वह है- “The Mind, by which I know the truth of what you have just said.” 

       “मन, जिसके द्वारा मैं जानता हूँ कि आपने अभी जो कहा है, उसका सत्य क्या है।”लेकिन, एक क्षण रुकिए, आपने मन के बारे में कहा है, “जिसके द्वारा मैं जानता हूँ” - क्या आपने ऐसा कहते हुए मन को ऐसी चीज़ नहीं माना है जिसके माध्यम से “मैं” कार्य करता हूँ? एक क्षण सोचिए - क्या आप मन हैं? जो आपका यंत्र है, वह आप नहीं हो सकते। आप जानते हैं कि आपकी मानसिक स्थितियाँ (mental states)  बदलती रहती हैं - आपकी भावनाएँ (emotions) बदलती रहती हैं - आपकी भावनाएँ समय-समय पर भिन्न होती रहती हैं - आपके विचार और भावनायें परस्पर -विरोधी (inconsistent) होते हैं और बाहरी प्रभावों के अधीन होते हैं, या फिर उस चीज़ के द्वारा ढाले और नियंत्रित होते हैं जिसे आप "मैं" या अपना वास्तविक स्व कहते हैं।

      तब निष्कर्ष यह निकलता है कि मानसिक अवस्थाओं, विचारों, भावनाओं, चिंतन आदि के पीछे अवश्य ही कुछ (आत्मा ?) ऐसा होगा, जो उनसे श्रेष्ठ है और जो उन्हें उसी प्रकार "जानता" है, जैसे कोई व्यक्ति स्वयं से अलग किसी वस्तु (मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार) को जानता है, और उसका उपयोग भी  करता है। आप कहते हैं कि “मैं” महसूस करता हूँ; “मैं” सोचता हूँ; “मैं” विश्वास करता हूँ; “मैं” जानता हूँ; “I” will मैं” इच्छा करता हूँ- आदि, आदि। अब इन सबमें वास्तविक आत्मा कौन सी हैयह मन नहीं है जो जानता है, बल्कि यह “मैं” है जो जानने के लिए मन का उपयोग करता है। (It is not the Mind that knows, but the “I” which uses the Mind in order to know.) यदि आपने कभी इस विषय का व्यक्तिगत अध्ययन नहीं किया है तो यह बात आपको थोड़ी कठिन लग सकती है, लेकिन थोड़ा विचार करें और यह विचार आपके मन में स्पष्ट रूप से उभर कर आ जाएगा।

     "मैं" या वास्तविक स्व (Real Self) का बोध होने- अर्थात आत्मसाक्षात्कार होने के साथ ही साथ अंतर्निहित एक अनन्त शक्ति की भावना भी आपके माध्यम से प्रकट होगी और आपको निर्भीक (अभीः) बना देगी । "मैं" की स्पष्टता और जीवंतता (vividness)  की अनुभूति के प्रति जागृति (The awakening) आपको अस्तित्व और शक्ति (sense of Being and Power)  की ऐसी अनुभूति कराएगी जिसे आपने पहले कभी नहीं जाना था। इससे पहले कि आप अपना 'व्यक्तित्व' (Individuality) व्यक्त कर सकें, आपको अपनी अनुभूति यह जान लेना होगा कि आप मरणधर्मा शरीर नहीं - बल्कि एक 'Individual' (व्यष्टि) हैं- समष्टि के अविभाज्य अंश हैं । आपका "मैं" नहीं,“Me” या मुझे वाला पक्ष ही व्यक्तित्व (Personality)-कहलाता है, और आपके बाहरी स्वरूप (M/F) को दर्शाता है।आपका व्यक्तित्व (Personality)-असंख्य विशेषताओं, गुणों, आदतों, विचारों, अभिव्यक्तियों और गतिविधियों से बना कुछ विशिष्टताओं और व्यक्तिगत लक्षणों का एक समूह है जिसके बारे में आप अब तक सोचते रहे हैं कि वही मेरा असली "मैं" हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। क्या आप जानते हैं कि व्यक्तित्व या 'Personality' का विचार कहाँ से आया? चलिए हम आपको बताते हैं। किसी भी अच्छे शब्द कोश के पन्नों को पलटें, और आप देखेंगे कि यह शब्द लैटिन शब्द “Persona” (पर्सोना) से आया है, जिसका अर्थ होता है "प्राचीन काल में अभिनेताओं द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला मुखौटा (mask)| और यह शब्द Per+sona  दो अन्य शब्दों से बना है, “sonare,” जिसका अर्थ है “sound,” और “per,” जिसका अर्थ है "के माध्यम से", दोनों शब्दों का संयुक्त अर्थ है "ध्वनि के माध्यम से" - विचार यह है कि अभिनेता की आवाज़ ग्रहण किए गए व्यक्तित्व (personality) या चरित्र (character) के मुखौटे के माध्यम से सुनाई देती है।

     आज भी नाटक में “Person” या 'व्यक्ति' के रूप अर्थ है: “एक पात्र (A character) या भूमिका (part कौन सा पार्ट निभाना है?) , जैसे कि किसी नाटक में; एक कल्पित चरित्र (assumed character)।” इस लिहाज से 'Personality' (व्यक्तित्व) का अर्थ हुआ माँ का बेटा - सत्यार्थी की ?>नेता की ? या जीवनमुक्त शिक्षक की वह भूमिका जो विश्व के रंगमंच के  निर्देशक (ठाकुर-माँ -स्वामीजी) आपके माध्यम से जीवन की महान लीला करते हुए[ the Great Play of Life...unfoldment and Development of Individuality] अब तक निभवाते आ रहे हैं। इस नेता वाले व्यक्तित्व (Personality) के मुखौटे के पीछे छिपा हुआ असली व्यक्ति ( real Individual) आप —the “I”  - वास्तविक स्व - "मैं" हैं - आपका वह अवयव जिसके बारे में आप जब सचेत(conscious) होते हैं और कहते हैं -“I am”-- 'I am He ' जो कि आपके अस्तित्व- (existence) एवं 'latent power' यानि अन्तर्निहित दिव्यता ,पूर्णता, निःस्वार्थरता -अव्यक्त -ब्रह्मत्व या अप्रकट -शक्ति का निश्चयात्मक कथन (assertion) अर्थात महावाक्य है ! 

 “Individual” या व्यक्ति का अर्थ है कोई ऐसी वस्तु जिसे विभाजित (divided) या घटाया (subtracted) नहीं जा सकता - कोई ऐसी वस्तु जिसे किसी बाहरी शक्ति द्वारा कोई चोट या नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता - वह जिसे हम परम् सत्य (आत्मा) के नाम से जानते हैं। 

[ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।

  पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

                                              -वृहदारण्यक उपनिषद

अर्थ : अर्थात वह सच्चिदानंदघन परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार परब्रह्म की पूर्णता से जगत पूर्ण होने पर भी वह परब्रह्म परिपूर्ण है। उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल देने पर भी वह पूर्ण ही शेष रहता है।] और आप एक 'Individual ' (व्यक्ति-व्यष्टि आत्मा) हैं -a Real Self—an “I” जीवन (प्राण) ,मन और शरीर से संपन्न [endowed with Life, Mind, and Power] एक अविनाशी सत्ता- एक "मैं" (ब्रह्म) - जिसका आप अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकते हैं। 'Orr "ऑर नामक एक कवि ने लिखा है - 

“Lord of a thousand worlds am I, And I reign since time began;

And night and day, in cyclic sway, Shall pass while their deeds I scan.

Yet time shall cease here I find release, For I am the soul of Man.”

[“मैं हज़ारों जहाँ का राजा हूँ, और  समय की प्रारम्भ से ही मैं शासन (reign)करता हूँ;

और रात और दिन, चक्रीय प्रभाव में, उनके कर्मों को देखते हुए गुज़र जाएँगे।

फिर समय (मन या देश-काल) भी यहीं रुक जाएगा, मैं देह-मन की गुलामी से मुक्ति पाऊँगा, क्योंकि मैं मनुष्य की आत्मा हूँ।”] 

अध्याय (२). Individuality and Personality. व्यक्तित्व और वैयक्तिकता (विशेष-चरित्र Personality-शख्सियत) आत्मा क्या है और वह व्यक्ति कौन है जो आत्मा की शक्ति को प्रकट करता है? What the Self is. What is the Individual which manifests the Power of the Self? आपको पहले यह अहसास होना चाहिए कि व्यक्ति (the Individual) - आपके भीतर का "मैं" - वास्तव में क्या है

अगर आप रुकें और खुद का जायजा लें, तो आप पाएंगे कि आप पहले जितना खुद को समझते थे, उससे कहीं ज़्यादा जटिल प्राणी हैं। सबसे पहले, "मैं" है, जो वास्तविक आत्मा (Real Self - व्यक्ति- the Individual) है, और "मैं" है, जो "मुझसे" से जुड़ा हुआ है और उससे संबंधित है - वह मेरी वैयक्तिता (the Personality) है। इसके प्रमाण के लिए,  let the “I” take stock of the “Me, "मैं" को जो कुछ "मुझसे जुड़ा हुआ है " उसका जायजा लेने दें, तो हम  यह पाएंगे कि उत्तरार्द्ध में तीन चरण या सिद्धांत शामिल हैं, यानी (1) भौतिक शरीर; (2) प्राण ऊर्जा; (3) मन।   

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पाठ III.

 अदम्य उत्साह-Spiritedness ! 

[आत्मश्रद्धा - (आस्तिक्य बुद्धि रहने से जन्मा अदम्य उत्साह या Spiritedness) कोई काल्पनिक (ख़याली-fanciful) या सन्दिग्ध (vague) गुण नहीं है, बल्कि मनुष्य मात्र में विद्यमान एक वास्तविक, जीवंत और अत्यंत प्रभाव-शाली शक्ति है। आत्मश्रद्धा का गुण या अदम्य उत्साह का गुण साधक के (समाधि-प्राप्त) योगी होने का एक निश्चायत्मक पहचान है। -A wonderful Soul-quality'-आत्मा के 24 गुणों में सबसे पहला अद्भुत गुण है ! 

Lesson III. -Spiritedness. Spiritedness is not a fanciful, vague quality, but a real, live, forceful Power in Man. The Assertion of Recognition of Mastery. A wonderful Soul-quality.  ]

आप में से कई लोगों को इस पाठ का शीर्षक - Spiritedness (स्पिरिटेडनेस) - "आत्माओं", "अशरीरी संस्थाओं" या फिर "आत्मा" के लिए अक्सर  Spirit (स्पिरिट) नाम का इस्तेमाल किया जाता है, जुड़ा हुआ लगेगा। लेकिन, इस मामले में, हम इस शब्द का प्रयोग एक अलग अर्थ में कर रहे हैं, और फिर भी उस अर्थ में जिसे तंत्र-मंत्र (occult) और आध्यात्मिक (spiritual) विषयों के कई उन्नत शिक्षकों और अन्वेषकों ने अनुमोदित किया है। ”spirit” (स्पिरिट) शब्द का एक अर्थ इस प्रकार है: "ऊर्जा (Energy), जीवंतता (vivacity), जोश  (ardor), उत्साह (enthusiasm), साहस (courage)," आदि, जबकि इसका अर्थ  "तेजस्वी (Animated) ; जीवन और शक्ति से भरा, जीवंत (lively)," आदि।ये परिभाषाएँ आपको इस बात का संकेत देंगी कि हम अब इस शब्द का उपयोग किस अर्थ में कर रहे हैं, लेकिन इसमें अभी और भी बहुत कुछ है।

हमारे लिए "Spirit " आत्मा आत्मा शब्द सार्वभौमिक शक्ति की वास्तविक सारभूत प्रकृति का विचार व्यक्त करता है, और जो मनुष्य में भी उसके अस्तित्व के केन्द्र के रूप में अभिव्यक्त होती है, उसकी सारभूत शक्ति और सामर्थ्य, जहां से वह सब निकलता है जो उसे एक व्यक्ति 'Individual' बना देती है। उत्साही होने 'Spiritedness' का अर्थ अलौकिक, "पाखन्डी और अच्छा-अच्छा", आध्यात्मिक, पारलौकिक या इस तरह का कोई गुण नहीं है। इसका अर्थ है “animated,” (चेतन -अनुप्राणित, तेजस्वी) या ठाकुर के शब्दों में चैतन्य  होने की अवस्था, अर्थात, "जीवन और शक्ति से भरपूर " 'being filled with Power and Life' अर्थात यह अवस्था वास्तव में शक्ति और जीवन से परिपूर्ण होने की अवस्था है। और वह शक्ति और जीवन व्यक्ति के अस्तित्व के केन्द्र - आत्मा से आता है - जो मन और चेतना के "मैं हूँ" क्षेत्र है।

'Spiritedness ' -आत्मश्रद्धा (निर्भीकता ?) अदम्य उत्साह अलग-अलग मनुष्यों में अलग-अलग मात्रा में प्रकट होता है, यहाँ तक कि पशुओं में भी। यह जीवन की एक प्राथमिक, और मौलिक अभिव्यक्ति- प्रकटीकरण या Unfoldment है। तथा यह संस्कृति, परिमार्जन (refinement ) या शिक्षा पर निर्भर नहीं करता है - इसका विकास इस तरह की सहज या अंतर्ज्ञानी पहचान  (instinctive or Intuitional Recognition) पर निर्भर करता है कि भीतर कुछहै - व्यक्ति (Individual -आत्मा) की शक्ति  (दिव्यता -ब्रह्मत्व) जो उस सार्वभौमिक शक्ति (Universal Power - माँ जगदम्बा-काली या कृष्ण) से प्राप्त होती है जिसकी हम सभी अभिव्यक्तियाँ हैं। और यहां तक ​​कि कुछ पशुओं में भी यह गुण (दिव्यता) पाई जाती है।

"पशुओं को वश में कैसे करे" विषय पर एक हालिया लेखक ने कुछ उच्चतर पशुओं में अदम्य उत्साह या (आत्मश्रद्धा) की सहज अनुभूति (instinctive realization of Spiritedness)को इस प्रकार व्यक्त किया है: “दो नर लंगूरों (baboons -कपि) को एक ही पिंजरे में रख दीजिए, और वे अपना मुंह खोलेंगे, अपने सभी दांत दिखाएंगे, और एक-दूसरे पर ‘प्रहार’ करेंगे। लेकिन उनमें से एक, भले ही उसके दांत बदसूरत हों, एक अलग ढंग से प्रहार करेगा, एक आंतरिक अस्थिरता के साथ जो उसे तुरंत ही कमजोर या डरपोक लंगूर होने का परिचय देगी। युद्ध के किसी परीक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ती । बड़ी बिल्लियों के साथ भी यही बात है। दो, चार या एक दर्जन शेरों को एक साथ रख दें, और वे भी, संभवतः बिना किसी प्रतिस्पर्धा के, शीघ्र ही पता लगा लेंगे कि उनमें से किसमें अपने को सबका नेता (mettle of the master) सिद्ध करने की क्षमता है। इसके बाद वही शेर अपने मांस का चयन करता है; यदि वह चुनता है, तो बाकी लोग तब तक खाना शुरू नहीं करते जब तक वह समाप्त नहीं कर लेता; और पानी से भरे हौदे के पास सबसे पहले वही जाता है - जो शेरों का सरदार होता है। संक्षेप में उसी को ‘पिंजरे का राजा’ ‘king of the cage' मान लिया जाता है। आप उपरोक्त उद्धरण में देखेंगे कि लेखक ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हमेशा सबसे भयंकर दाँत वाला लंगूर ही सरदार नहीं होता,न ही "राजा शेर" जरूरी तौर पर शारीरिक लड़ाई ( physical fight) जीतकर अपना प्रभुत्व/ नेतृत्व स्थापित करता है। यह किसी भौतिक शक्ति से कहीं अधिक कोई सूक्ष्म शक्ति है - यह उस पशु के कुछ आत्मिक गुणों (आत्मश्रद्धा या अदम्य उत्साह) की अभिव्यक्ति है। 

और ठीक यही बात मनुष्यों में (युवा -प्रशिक्षण शिविर में) भी देखी जाती है, हमेशा सबसे लम्बा और तगड़े शारीर वाला व्यक्ति ही शासक नहीं होता है - शासक (ruler-CC, C-IN-C) वही बनता है जिसमें जन्मजात रूप से - वह 'रहस्यपूर्ण आत्मिक गुण ' (mysterious soul quality) जिसे हम 'Spiritedness' - अदम्य उत्साह या आत्मश्रद्धा रहती जिसे अधिकांश लोग “nerve,” साहस या  “mettle,” अर्थात दिलेरी कहते हैं, या “Poise अविचलता-सन्तुलन (पानी लाये नारद ? वाली अविचलता।) कहते हैं।  

>>>नेता (CINC नवनीदा, स्वामी जी) में आत्मश्रद्धा की अभिव्यक्ति या प्रकटीकरण का गुण 100 प्रतिशत था : जब दो (-तीन) व्यक्ति [XYZ] एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तो एक प्रकार का मानसिक संघर्ष (mental struggle-मुकाबला ) शुरू हो जाता है - हो सकता है कि एक शब्द भी न बोला जाए - और फिर भी एक आत्मा दूसरे आत्मा से गुत्थम-गुत्था होना चाहती है (soul grapples with soul ), जैसे ही दो जोड़ी आंखें एक दूसरे को देखती हैं ( two pairs of eyes gaze into each other), और प्रत्येक में से एक सूक्ष्म चीज (a subtle something-अद्वैत वाला प्रेम ! या द्वैत वाला घृणा ?) निकलकर दूसरे में एक सूक्ष्म चीज अद्वैत वाला प्रेम ! या द्वैत वाला घृणा ? प्रेम के साथ जुड़ना चाहती हैं - गुत्थम-गुत्था होना चाहती हैं, या द्वैतवादी घृणा के साथ जूझना चाहती हैं??। यद्यपि यह सारा मानसिक मुकाबला  कुछ ही क्षणों में समाप्त भी हो जाता है, लेकिन यह मल्ल्युद्ध मिन्टों में सुलझता हुआ दीखता है -किन्तु प्रत्येक मानसिक योद्धा (mental combatants-जुझारू लड़ाका ,बीरेनदा-रनेन दा, दीपक दा, प्रमोद दा-Amb) मन ही मन में यह जानता रहता है कि - वह विजयी हुआ है (Victor Lion) है या पराजित (defeated-Sheep?)  जो व्यक्ति जिस मात्रा में आत्मश्रद्धा या Oneness' अर्थात अंतर्निहित दिव्यता (पूर्णता-निःस्वार्थपरता) को  प्रकट करेगा-as the case may be.' उसी पैमाने के अनुसार उसे विजय या पराजय प्राप्त होगा ! इसमें शामिल पक्षों के बीच (महामण्डल कर्मी के बीच) मनमुटाव (antagonism) की कोई भावना नहीं होगी, फिर भी दोनों पक्ष में (रूस और यूक्रेन में ) एक आंतरिक मान्यता रहती ही है कि उनके बीच कुछ ऐसा है जिसे तुरंत सुलझाया जाना चाहिए 

[There may be no feeling of antagonism between the parties engaging, but nevertheless there seems to be an inward recognition on both sides that there is something between them that has to be settled at once. महामण्डल के नेता (CINC) का काम परस्पर  वैरभाव या विरोध नहीं किन्तु ओजस्वी -अविरोध बनाये रखना  है!  राम की कृपा के बिना माया रास्ता नहीं छोड़ती   गौरी से चण्डिका बन जाओ। शंकर को ताण्डव रचाने दो विजय के गीत गाने दो !प्यार की सरगम न छेड़ो विजय के गीत गाने दो। आज देश की माटी शिशकी -खून खौल रहा है , चल पड़ा है कारवाँ-प्रलय के गीत गाने दो। प्यार की सरगम न छेड़ो। शान्तिदूत से विजय की ललकार बनो ! >>ब्रह्मसूत्र का संस्कृत -हिन्दी वेबसाइट : https://vedpuran.net/wp-content/uploads/2013/04/gita-press-vedant-darshan-brahmasutra-sanskrit-hindi.pdf]

"The parties may become the best of friends, and yet one of them always leads." दोनों दल [पण्डित त्रय और विक्टर लॉयन] भले ही सबसे अच्छे मित्र बन जाएं, लेकिन फिर भी उनमें से एक दल हमेशा नेतृत्व (Leadership) करता है। और यह नेतृत्व शारीरिक शक्ति( physical strength), बौद्धिक उपलब्धि (intellectual attainment) या सामान्य अर्थों में संस्कृति (culture in the ordinary sense) पर निर्भर नहीं करता, बल्कि उस सूक्ष्म गुण (दिव्यता या पूर्णता) की अभिव्यक्ति प्रकटीकरण - और पहचान पर निर्भर करता है जिसे हम आत्मा (Spirit) या आत्मश्रद्धा (Spiritedness) कहा है। लोग अनजाने में (unconsciously) ही इस शब्द - 'आत्मश्रद्धा' (Spiritedness - अदम्य उत्साह) का प्रयोग या दिखावा करके स्वयं में तथा दूसरों में चरित्र के इस गुण रहने की मान्यता का दावा करते हैं।

         हम अक्सर लोगों के बारे में सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति  “lacking spirit” है, या उसमें “आत्मश्रद्धा (उत्साह) की कमी है !”; फलाँ व्यक्ति  “spiritless” (डरपोक, निष्प्राण) है; या किसी घटनावश अमुक व्यक्ति का “सारा उत्साह जाता रहा है” “their spirit broken”-आदि। 

      इस शब्द  “spiritedness” या आत्मश्रद्धा का प्रयोग अक्सर  “mettle.” “बंदे में दम है - या साहस” के अर्थ में किया जाता है। शब्दकोशों के अनुसार एक “साहसी” घोड़ा -A “mettled” horse या अमुक बड़ा मनुष्य “उत्साही” है man is “high‑spirited,होता है; और वही अधिकारी “साहसी” को “उत्साह से भरा हुआ” के रूप में परिभाषित करते हैं, इसलिए आप देखते हैं कि शब्द का प्रयोग उसी तरह किया गया है जैसा हमने इसका प्रयोग किया है - लेकिन “spiritedness” “अदम्य साहस” के स्रोत की व्याख्या नहीं दी गई है।

    शुद्ध नस्ल के रेसिंग घोड़ों का व्यापारी आपको बतायेगा कि जिस घोड़े में “spirit” या अदम्य उत्साह (आत्मा या रीढ़ की हड्डी) होगी, वही एक बेहतर रेस में भाग ले सकेगा और अक्सर उस घोड़े से अधिक दूरी और तेज़ दौड़ लगाएगा जिसके शारीरिक लक्षण ( physical characteristics) तो अधिक हैं, लेकिन "आत्मा" या "चारित्रिक गुणों की या उत्साह के प्रकटीकरण की श्रेणी" कम है। अच्छे घुड़सवार ( Horsemen) लोग इस बात को जोर देकर कहते हैं कि सफलता के रहस्य (Secret of Success ) घोड़े में "आत्मा"  “spirit” के प्रति जागरूकता या आत्मश्रद्धा रहने से अन्य घोड़े भी उसे पहचान लेते हैं, और इससे प्रभावित होकर खुद हतोत्साहित हो जाते हैं, और रेस में स्वयं को पराजित होने देते हैं, हालांकि अक्सर वे शारीरिक रूप से बेहतर रेसिंग मशीन हो सकते हैं

'This spirit' यह आत्मश्रद्धा की भावना एक मौलिक महत्वपूर्ण शक्ति (fundamental vital strength है जो सभी जीवित प्राणियों में कुछ हद तक पाई जाती है - और इसे अपने आप में विकसित -अभिव्यक्त और सुदृढ़ (strengthened) किया जा सकता है। अपने अगले पाठ में, हम मनुष्यों में इसके प्रकटीकरण (manifestation) के कुछ उदाहरण सुनाएँगे। 

     ओलिवर वेंडेल होम्स (Oliver Wendell Holmes) ने अपनी एक पुस्तक में दो व्यक्तियों के बीच मानसिक संघर्ष का निम्नलिखित विशद वर्णन किया है: “कोहिनूर का चेहरा क्रोध से इतना सफेद हो गया कि उसकी नीली-काली मूंछें और दाढ़ी उसके सामने डरावनी लग रही थीं। वह क्रोध (wrath) से मुस्कुराया और एक गिलास को इस तरह पकड़ा जैसे वह उसका सारा सामान वक्ता पर फेंक देगा। किन्तु स्वयं को रोकना जानता था ! 

"यह मान लेना एक बड़ी भूल है कि यह इच्छाशक्ति हर अवसर पर प्रकट होने की आदि है; ऐसा बिलकुल नहीं है। इच्छाशक्ति प्रायः अपने आप को छुपाने की कोशिश करती है, और कभी-कभी बहुत ही सुखद बाहरी आवरण के नीचे छिप जाती है। कुछ ऐसे पुरुष और महिलाएं भी हैं जो इतनी विनम्र होनेका दिखावा करते हैं कि लगता है कि उनकी अपनी कोई इच्छाशक्ति नहीं है; और वे केवल दूसरों को खुश करने के लिए ही जीवित हैं -अस्तित्व में हैं।but just wait till the time comes' लेकिन समय आने तक प्रतीक्षा करें, और फिर उनकी छिपी हुई इच्छाशक्ति प्रकट  " the latent will‑power is revealed " (अंतर्निहित इच्छाशक्ति या दिव्यता-ब्रह्मत्व अभिव्यक्त होती है), और और इसमें कोई संदेह नहीं कि हम इस मखमली दस्ताने के नीचे लोहे के हाथ को पाते हैंयह कूटनीतिज्ञ (under this velvet glove the iron hand व्यवहार-कुशल व्यक्ति) का रहस्य है : secret of the diplomatist ! टैलीरैंड (एस। जयशंकर) के पास यह शक्ति उल्लेखनीय रूप से थी, और वह एक शांत, साहसी, सफल कूटनीतिज्ञ था; कैवूर (डोवल) के पास भी यह शक्ति थी और उसने इसका बुद्धिमानी से उपयोग किया। [ चार्ल्स मॉरीस दे टैलीरैंड एक कुशल राजनयिक थे जिन्होंने फ्रांसीसी क्रांति के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।]

  यह माँ सारदा (या C-IN-C नवनीदा) वाली आत्मश्रद्धा ही It is the secret of the diplomatist.यह कूटनीतिज्ञ का रहस्य है। (It is a subtle, tenuous Power, resting latent beneath the surface and out of evidencebut when needed it flashes forth like the dynamic electric spark, driving all before it.) या राजनीती कुशलता/उत्साह से भरपूर diplomatist होना यह एक सूक्ष्म, क्षीण शक्ति है, जो सतह के नीचे सुप्त अवस्था में रहती है- resting latent beneath the surface और साक्ष्य से परे होती है - लेकिन जब जरूरत होती है तो यह गतिशील विद्युत चिंगारी (dynamic electric spark) या  It is the secret of the diplomatist. माँ सारदा/नवनीदा वाली आत्मश्रद्धा जो सुनसान में डकैत को बाबा कहती है! जानिबीघा कैम्प में बीरेन दा को खोजती है और साक्ष्य से परे होती है - लेकिन जब जरूरत होती है तो यह गतिशील विद्युत चिंगारी की तरह चमक उठती है, और अपने सामने आने वाले किसी भी मनुष्य या डकैत सभी को प्रभावित करती है और चलाती है। यह माँ सारदा वाली निःस्वार्थपरता -It is an elemental force, of irresistible power.यह वज्रशक्ति के सामान अप्रतिरोध्य शक्ति (irresistible power) की एक आद्या शक्ति है elemental force है , मौलिक शक्ति है, अदम्य शक्ति है। 

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पाठ IV. 

Latent Powers.

ज्वलंत इच्छाशक्ति से चरित्र के 24 गुण को अभिव्यक्त करें ! 

मानवमात्र में अन्तर्निहित (24) सम्भावित (potential) अव्यक्त (dormant-सुप्त)-  शक्तियाँ। उन सभी गुणों को व्यक्त करने के में ईमानदारी (Earnestness), उत्सुकता (Enthusiasm-अति श्रद्धा) और आकांक्षा (Desire) द्वारा निभाई गई भूमिका। इच्छा-शक्ति की अभिव्यक्ति।  इच्छा और इसके पीछे क्या छिपा है ?

Lesson IV. Latent Powers. The part played by Earnestness, Enthusiasm, and Desire. The Manifestation of Will-Power. The Will and what lies behind it.]

आप में से अधिकांश लोग अपने दैनन्दिन जीवन के अनुभव से यह जानते हैं कि हमारे शरीर भौतिक जीव (M/F) के भीतर (within the physical organism) एक ऐसी शक्ति होती है जिसे हम नई जान मिलना या "दूसरी प्राणवायु" कहते हैं। [जैसे हमें लगने लगा था कि हम और आगे नहीं चल सकते, लेकिन जब हमने दूर से शहर देखा तो हमें नई जान या ऊर्जा मिली। उत्साह, दिलचस्पी, ऊर्जा और जोश को “second‑wind.” कहते हैं 

हमने कुछ शारीरिक कार्य - जैसे मैराथन रेस किया है, और कुछ समय बाद हम “सांस फूलने” लगे, और हम रुककर अपने हांफते हुए शरीर को आराम देने के लिए ललचाते हैं। लेकिन, हमने अनुभव से यह भी पाया है कि यदि हम अपने आदर्श और लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करते रहेंगे,  if we will stick to the task at hand- Be and Make ! given by Swamiji "  तो शारीरिक कष्ट की भावना सामान्यतः समाप्त हो जाएगी, और हमें वह प्राप्त होगा जिसे हमारी  “second‑wind.” "दूसरी प्राणवायु" या 'नई जान ” कहा जाता है। अब यह "दूसरी हवा" क्या है, यह एक ऐसा प्रश्न है जिसने शरीर विज्ञानियों (physiologists) को लंबे समय से उलझन में डाल रखा है, और आज भी वे इस घटना के अंतर्निहित कारण के बारे में हमें कोई सटीक अनुमान नहीं दे पाए हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो अतिरिक्त प्राण-ऊर्जा का या अव्यक्त भौतिक शक्ति का  पहले से आरक्षित भण्डार (reserve stores of vital energy) का द्वार खुल गया है - जिसे विधाता ने मनुष्य के भीतर ऐसी ही आपात स्थितियों से निकलने के लिए संग्रहित कर रखा था। वे सभी व्यक्ति जो हष्ट-पुष्ट खेलों (athletic sports) में शामिल रहे हैं, इस विचित्र शारीरिक घटना के विवरण को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं - इसकी वास्तविकता इतनी दृढ़ता से स्थापित है कि इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता।

      और, जैसा कि अक्सर होता है, परीक्षण करने से मानसिक और भौतिक स्तर 'mental plane and the physical' पर प्रकृति की कार्यप्रणाली के बीच एक विचित्र समानता-curious parallel दिखाई देता है। जिस प्रकार कोई भौतिक “second‑wind,”  होती है, उसी प्रकार एक मानसिक आरक्षित शक्ति या गुप्त ऊर्जा (latent energy-अंतर्निहित दिव्यता ) भी होती है, जिसका उपयोग करके हम एक नई शुरुआत कर सकते हैं। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, शारीरिक "दूसरी हवा" के साथ होने वाली घटनाएं, कुछ मानसिक घटनाओं (mental phenomena) द्वारा लगभग बिल्कुल दोहराई जाती हैं। जब हम मानसिक रूप से कुछ थकाऊ काम करते हुए थक जाते हैं, और हमें लगने लगता है कि हम “पूरी तरह से इसमें लगे हुए हैं”, लेकिन अचानक कुछ नया आता है - और हम पूरी तरह से मानसिक रूप से “दूसरी हवा” के साथ अपने काम को एक ताजगी, जोश और उत्साह के साथ करने लगते हैं जो मूल प्रयास से कहीं बढ़कर है। और इस प्रकार हमने मानसिक ऊर्जा के एक नए स्रोत या आपूर्ति का उपयोग किया है। We have tapped into a fresh source or supply of mental energy. 

हममें से अधिकांश लोगों को अपने भीतर निहित आरक्षित मानसिक ऊर्जाओं और शक्तियों (reserve mental energies and forces) के बारे में बहुत कम जानकारी या कोई  जानकारी नहीं होती है। 'We jog along at our customary gait 'हम अपनी पारंपरिक लकीर - आहार-निद्रा -भय -मैथुन  से चलते हुए यह सोचते हैं कि हम अपना सर्वश्रेष्ठ कर रहे हैं,  और जीवन का पूरा लाभ उठा रहे हैं - सोचते हैं कि हम अपनी पूरी क्षमता से खुद को (हर साल कैलेंडर छाप दिया -दिव्यता को) अभिव्यक्त unfold कर रहे हैं। लेकिन हम केवल प्रथम-वायु मानसिक अवस्था-  में रह रहे हैं, और हमारी कार्यशील मानसिकता के पीछे अद्भुत मानसिक ऊर्जा और शक्ति के भंडार हैं -awaiting the magic command of the Will in order to awaken into activity and outward expression जो क्षमताएं निष्क्रिय पड़ी हैं - शक्ति अव्यक्त पड़ी है - जो सक्रियता और बाह्य अभिव्यक्ति में जागृत होने के लिए इच्छाशक्ति के जादुई आदेश awaiting the magic command of the Will की प्रतीक्षा कर रही है। हम जितना महान अपने को समझते हैं, वास्तव में उससे कहीं अधिक महान प्राणी हैं - हम उतने ही शक्ति के धनी हैं, यदि हम यह जानते हैं। हममें से कई लोग उन युवा हाथियों की तरह हैं जो स्वयं को कमजोर मनुष्यों (महावतों) के अधीन होने देते हैं, तथा उनके जैसा व्यवहार करने देते हैं, तथा अपने शरीर में छिपी महान शक्ति और ताकत के बारे में जरा भी नहीं सोचते। हमारे साथ परेशानी यह है कि हम इन क्षमताओं के अस्तित्व को नहीं समझते। हम सोचते हैं कि हम बस वही हैं जो हम अपनी सामान्य चाल में प्रकट करते हैं।

ज्वलंत इच्छा से पूर्ण जागृत “आंतरिक चेतना” और साधारण बाहरी चेतना। “The Inner Consciousness” and ordinary outer consciousness. दूसरी समस्या यह है कि हममें कार्रवाई करने की प्रेरणा incentive नहीं रही है - हममें महान कार्य करने की रुचि नहीं रही है - हमने पर्याप्त प्रयास नहीं किया है। सर्वश्रेष्ठ को पाने की इच्छा वह आग है जो इच्छा-शक्ति के उत्साह को जगाती है।  Desire is the fire that rouses up the steam of Will. ज्वलनशील इच्छा रहने से रास्ता खुद बन जाता है। जहाँ चाह वहाँ राह ! प्रलोभन -(Incentive) कुछ मनचाही वस्तु पाने की तीव्र इच्छा किये बिना - हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। यदि हमें महान, ईमानदार, प्रज्वलित उत्कट इच्छा (Burning Ardent Desire)  को एक प्रेरक शक्ति के रूप में दिया जाए -हाथ पैर बांधकर सुलगता हुआ चारकोल जैसे पेट पर रख दिया जाए तो उसे हटाने की जितनी तीव्र इच्छा होगी उसी को -ज्वलनशील उत्कट इच्छा कहते हैं। जो कार्य करने के लिए एक महान प्रेरणा है - तो हम इस मानसिक "दूसरी हवा" को जगा सकते हैं - हाँ, तीसरी, चौथी और पाँचवीं हवा आंतरिक शक्ति के एक के बाद एक स्तरों का दोहन करते हुए जब तक कि हम मानसिक चमत्कार (mental miracles) नहीं कर देते।-tapping one plane of inward power after another until we work mental miracles. 

    हम जीवन के सभी क्षेत्रों के महान व्यक्तियों (राजकुमार सिद्धार्थ गौतम)  की उपलब्धियों पर आश्चर्य करते हैं, और यह दुखद टिप्पणी - 'sad remark ' करके अपने आप को बचा लेते हैं - कि इन लोगों में "वह क्षमता थी", जबकि हममें वह क्षमता (बुद्धत्व प्राप्त करने की क्षमता) नहीं है।  'Nonsense' ये केवल बकवास की बातें है! हम सभी में यह क्षमता होती है कि जो काम हम अभी कर रहे हैं, उससे सौ गुना बड़ा काम हम कर सकते हैं। जो कुछ हम अभी कर रहे हैं , कोई भी समस्या उससे अधिक नहीं होती। 

      समस्या शक्ति और मानसिक सामग्री (mental material) की कमी में नहीं है, बल्कि समस्या  इच्छा (Desire) और रुचि (Interest) में कमी की हैand Incentive to arouse into activity those wonderful storehouses of dynamic power within our mentality और  कमी हमारी मानसिकता के भीतर गतिशील शक्ति के उन अद्भुत भंडारों को सक्रिय करने के लिए प्रोत्साहन में है।—हम अपने उस disposal या परिपाटी को बुलाने में विफल रहते हैं, और जो अन्य सभी प्राकृतिक शक्तियों और ताकतों की तरह प्रकट और अभिव्यक्त होने के लिए उत्सुक और व्यग्र है। हां, यही तो हमने कहा था “anxious and eager”  seem to be bursting with desire to manifest and express into outer dynamic activity. क्योंकि सभी प्राकृतिक शक्तियां, बंद और स्थिर अवस्था से, बाहरी गतिशील गतिविधि  dynamic activity. में प्रकट होने और अभिव्यक्त होने की इच्छा से फूटती हुई प्रतीत होती हैं। ऐसा लगता है कि -Law of Life and Natureयह जीवन और प्रकृति का नियम है। प्रकृति और उसमें मौजूद सभी चीजें सक्रिय अभिव्यक्ति के लिए उत्सुक हैं। 

    क्या कभी-कभी आप स्वयं पर आश्चर्यचकित नहीं हुए हैं, जब थोड़े अधिक दबाव और प्रोत्साहन के कारण आपके भीतर कुछ ऐसा प्रतीत होता है जो अपनी सीमाओं को तोड़ देता है और सक्रिय कार्य में लग जाने के कारण आपको अपने पैरों से नीचे गिरा लेता है? क्या आपने अचानक आई किसी तात्कालिक आवश्यकता के तनाव में ऐसे कार्य पूरे नहीं किए हैं, जिन्हें आप सचमुच असंभव मानते होंगे? Have you not accomplished tasks under the stress of a sudden urgent need, that you would have deemed impossible in cold bloodमन की इन सुप्त शक्तियों और प्रसुप्त शक्तियों  latent forces and dormant powers को क्रियाशील करने में ईमादारी  (Earnestness) और उत्साह (Earnestness) दो महान कारक हैं। लेकिन आपको तब तक खड़े होकर इंतजार करने की ज़रूरत नहीं है जब तक कि आप  fit of fervor before the energies spring into action.' ऊर्जाओं के क्रियाशील होने से पहले जोश में न आ जाएँ।

    आप इच्छाशक्ति के सावधानीपूर्वक प्रशिक्षण द्वारा - या बल्कि, स्वयं को अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करने के लिए सावधानीपूर्वक प्रशिक्षण देकर - मानसिक नियंत्रण पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं, ताकि जब भी आवश्यक हो आप उसे नीचे खींच सकें और पूरी ताकत से कार्य कर सकें। (You can by a careful training of the Will—or rather, by a carefully training of yourself use your Will—manage to get hold of the mental throttle, so that you may pull it down and turn on a full head of steam whenever necessary.) और जब आप एक बार इसमें महारत हासिल कर लेंगे, तो आप पाएंगे कि जब आप रेंगते हुए चल रहे होते हैं, तो आप अब पूरे दबाव में दौड़ते समय भी ज़्यादा थकते नहीं हैं - यह सफलता के रहस्यों में से एक है।

     कई लोगों के लिए,  “The Will,” (इच्छा-शक्ति) शब्द का अर्थ केवल मन की निष्ठा और दृढ़ता है, जो दृढ़ संकल्प और उद्देश्य की दृढ़ता-Determination and Fixity of Purpose के समान है। दूसरों के लिए इसका अर्थ इच्छा (Desire) जैसा कुछ है। दूसरों के लिए इसका अर्थ है “चुनने की शक्ति”, आदि। लेकिन तान्त्रिकों (occultists या गूढ़ विद्या के जानकारों के लिए), इच्छाशक्ति इन चीज़ों से कहीं ज़्यादा है - इसका मतलब है एक प्राणशक्ति (Vital Power) - मन की एक क्रियाशील शक्ति - जो अन्य मानसिक क्षमताओं पर हावी होने और उन पर शासन करने में सक्षम है, साथ ही व्यक्ति के मानसिक अंगों से परे खुद को प्रक्षेपित करने और अपने प्रभाव क्षेत्र में आने वाले अन्य लोगों को प्रभावित करने में सक्षम है। capable of dominating and ruling the other mental faculties as well as projecting itself beyond the mental organs of the individual and affecting others coming within its field of influence. और इसी अर्थ में हम इस पाठ में  "इच्छा-शक्ति' या“Will” शब्द का प्रयोग करते हैं। But to occultists, the Will is something far more than these things—it means a Vital Power—an Acting Force of the Mind—capable of dominating and ruling the other mental faculties as well as projecting itself beyond the mental organs of the individual and affecting others coming within its field of influence. And it is in this sense that we use the word “Will” in this lesson.

       हम पाठक को तंत्रशास्त्र और तत्वमीमांसा के धुंधले दायरे में या वैज्ञानिक मनोविज्ञान के हल्के लेकिन फिर भी कठिन रास्तों पर ले जाने की इच्छा नहीं रखते हैं, लेकिन हमें उसे उस चीज के अस्तित्व के तथ्य से परिचित कराना होगा जिसे हम इच्छा शक्ति कहते हैं, और उसका "मैं" से संबंध है।  (but we must acquaint him with the fact of the existence of this thing that we call Will Power, and its relation to the “I.” 

       सभी मानसिक क्षमताओं या शक्तियों में से, इच्छाशक्ति “I” or Ego of the person' व्यक्ति के "मैं" या अहंकार के सबसे करीब है। यह अहंकार के हाथ में पकड़ी गई शक्ति की तलवार है। It is the Sword of Power clasped in the hand of the Ego. कोई व्यक्ति अपने विचारों में खुद को अन्य मानसिक क्षमताओं और अवस्थाओं से अलग कर सकता है, लेकिन जब वह "मैं" के बारे में सोचता है तो वह यह सोचने के लिए बाध्य होता है कि उसमें वह शक्ति है जिसे हम इच्छा कहते हैं। इच्छाशक्ति "मैं" की एक मौलिक, आद्या शक्ति है जो अंत तक हमेशा उसके साथ रहती है  The Will is a primal, original power of the “I” which is always with it until the end. यह वह शक्ति है जिसके द्वारा वह अपने mental and physical kingdom—मानसिक और भौतिक साम्राज्य पर शासन करता है (या उसे शासन करना चाहिए) -इच्छा शक्ति वह आद्या शक्ति है जिसके द्वारा किसी मनुष्य व्यक्तित्व-'Individuality' बाहरी दुनिया पर अभिव्यक्त होता है—the power of which his Individuality manifests itself upon the outside world. 

     Desire ? Burning Desire 'या ज्वलंत इच्छा जीवन के किसी कार्य में सफलता पाने की इच्छा-शक्ति को प्रेरित करने वाली महान प्रेरक शक्ति (motive power) है। जैसा कि हमने आपको दिखाया है कि इच्छा की प्रेरक शक्ति के बिना इच्छा की क्रिया अकल्पनीय है, और इसलिए यह निष्कर्ष निकलता है कि इच्छा की संस्कृति और सही दिशा इच्छा की अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति के चैनल को साथ लेकर चलती है।

रामप्रसादि You cultivate certain Desires, : आप कुछ विशेष इच्छाओं का विकास करते हैं, (यानि मन का कृषि काज-करके विशेष इच्छाओं की फसल उगाते हैं) ताकि इच्छाशक्ति इन मार्गों से प्रवाहित हो सके। इच्छा को कुछ निश्चित दिशा में (जप-ध्यान की दिशा में ?) विकसित करके, आप ऐसे चैनल बना रहे हैं जिनके माध्यम से इच्छाशक्ति अपनी अभिव्यक्ति और प्रकटीकरण की ओर तेजी से प्रवाहित हो सकती है।

🔱map out your Desire channels clearly इसलिए आप जो बनना चाहते हैं - एक चरित्रवान मनुष्य ! या बुद्ध-मानव ! तो उसकी उचित मानसिक छवियां बनाकर अपनी इच्छा चैनलों को स्पष्ट रूप से चित्रित करना सुनिश्चित करें चित्त की लकीरों को deep and clear‑cut-  by the force of repeated attention and autosuggestion.सुनिश्चित करें और बार-बार ध्यान और आत्म-सुझाव के बल द्वारा इच्छा चैनलों को गहरा और स्पष्ट बनाएं।तिहास ऐसे लोगों के उदाहरणों से भरा पड़ा है जिन्होंने इच्छाशक्ति का प्रयोग- आत्मश्रद्धा को  विकसित करने में (या चरित्र के 24 गुणों को विकसित करने में) किया है।History is filled with examples of men who have developed the use of the Will. हम यह नहीं कहते कि किसी महान व्यक्ति ने अपनी 'इच्छाशक्ति को विकसित किया है', बल्कि यह कहते हैं कि मनुष्य ने “developed the use of Will”  इच्छाशक्ति का प्रयोग [ अर्थात विवेक-प्रयोग क्षमता] को विकसित  क्योंकि मनुष्य अपनी इच्छाशक्ति का विकास नहीं करता है -उसकी अंतर्निहित इच्छाशक्ति हमेशा उपयोग के लिए तैयार रहती है - एक व्यक्ति अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करने की क्षमता- अर्थात विवेक-प्रयोग करने की क्षमता को विकसित करता है - और इसके उपयोग में खुद को परिपूर्ण (100 % निःस्वार्थी) बनाता है

     हमने निम्नलिखित उदाहरण का बार-बार प्रयोग किया है, तथा इसे और बेहतर नहीं बना पाए हैं: मनुष्य एक कलकतिया ट्राम गाड़ी ( trolley car) की तरह है, जिसके ट्राम इंजिन रूपी मन का उठा हुआ मस्तूल इच्छाशक्ति रूपी विद्युतीय तार 'live wire of Will' से जुड़ा हुआ है। उस तार के साथ इच्छाशक्ति की धारा बह रही है, जिसे वह “टैप” करता है और अपने मन रूपी इंजन में खींच लेता है, और जिसके द्वारा वह आगे बढ़ सकता है, कार्य कर सकता है, और इच्छाशक्ति को आत्मश्रद्धा के रूप में प्रकट कर सकता है। लेकिन शक्ति हमेशा तार में होती है, और उसको “विकसित” करने का अर्थ गाड़ी के मस्तूल को इच्छाशक्ति प्राविहत विद्युतीय तार से जोड़ने की क्षमता में है ,और इस प्रकार इसकी इच्छाशक्ति रूपी ऊर्जा का “उपयोग” करता है।यदि आप इस विचार को अपने मन में रखेंगे, तो आप इस सत्य को अपने दैनिक जीवन में अधिक आसानी से लागू कर सकेंगे।

चरित्रनिर्माण किये बिना - "no talents, no circumstances, no opportunities, will make a two‑legged creature a Man without it."  और कोई भी प्रतिभा, कोई भी परिस्थिति, कोई भी अवसर, इस  दो पैरों वाले प्राणी (creature- पशु) को मनुष्य नहीं बना सकता आत्मश्रद्धा के आलावा अध्यवसाय (Persistence-until its work is accomplished. अमृत मिलने तक मंथन करने का हठ) और दृढ़ संकल्प (Determination) के गुण को इच्छाशक्ति का महत्वपूर्ण कार्य कहते हैं। 

मध्यम मार्ग संयम का मार्ग : अति सर्वत्र वर्जयेत् है, वह मार्ग जो एक ओर तपस्या की चरम सीमा को हतोत्साहित करता है, और दूसरी ओर कामुक भोग को। इसका तात्पर्य यह है कि आदर्श कहीं बीच में स्थित है, वह बढ़िया संतुलन जो किसी भी चीज़ को बहुत ज़्यादा या बहुत कम करने की दो चरम सीमाओं के नुकसान से बचाता है। 

महात्मा बुद्ध ने ध्यान लगाते समय दृढ़संकल्प लिया था कि -"मेरा शरीर इस आसन पर भले ही सूख जाए और त्वचा, हड्डियाँ और मांस वापस तत्वों में मिल जाएँ। किन्तु 'अप्राप्य बोधिं ' ज्ञान प्राप्त किए बिना, जिसे पाना कठिन है, मेरा शरीर इस स्थान से आगे नहीं बढ़ पाएगा।"  (इहासने शुष्यतु मे शरीरं त्वगस्थिमांसं प्रलयं च यातु। अप्राप्य बोधिं बहुकल्पदुर्लभां नैवासनात् कायमतः चलिष्ये।।)

इहासाने शुष्यतु मे शरीरम्,

त्वग्-स्थि-मांसं प्रलयं च यातु। 

अप्राप्य बोधिं बहु-कल्प-दुर्लभम्,

नैवासनात् कायमतः चलिष्ये।।  

सदियों पहले, कृष्ण ने भी यही बात सिखाई थी (गीता, 6.16-17): ध्यान की सफलता के लिए महत्त्व का नियम यह है कि अति सर्वत्र वर्जयेत् अर्थात् जीवन के कार्यों और उपभोगो में अतिरेक का त्याग करना चाहिए। परिमितता या संयम सफलता की कुन्जी है। असंयम से विक्षेप उत्पन्न होते हैं और संगठित व्यक्तित्व का सांमजस्य भंग हो जाता है। इसलिए आहार विहार और निद्रा में परिमितता का होना आवश्यक है

    भगवान् कहते हैं कि अत्याधिक मात्रा में भोजन करने वाले या अति उपवास करने वाले व्यक्ति के लिए योग असाध्य है यहाँ आहरण करने का अर्थ या खाने का अर्थ केवल मुख के द्वारा अन्न भक्षण ही नहीं वरन् सभी 5 इन्द्रियों के द्वारा किये जाने वाले विषय ग्रहण है। इस शब्द में समाविष्ट हैं विषय ग्रहण मन की भावनाएँ और बुद्धि के विचार।संक्षेप में योगाभ्यासी पुरुष के लिए नियम यह होना चाहिए कि केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए प्राणी जगत् का संहार किये बिना समयसमय पर जो कुछ प्राप्त होता है उसका ग्रहण या भक्षण केवल इतना ही करे कि पेट को भार न हो।यहाँ ठीक ही कहा गया है कि अत्याधिक निद्रा अथवा जागरण योग के अनुकूल नहीं है। यहाँ भी विवेकपूर्ण परिमितता ही नियम होना चाहिए। 

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।

युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।6.17।।

।।6.17।। उस पुरुष के लिए योग दु:खनाशक होता है, जो युक्त आहार और विहार करने वाला है, यथायोग्य चेष्टा करने वाला है और परिमित शयन और जागरण करने वाला है।। अपना कार्यक्षेत्र चुनने में (जीवन का उद्देश्य चुनने में ) विवेक का प्रयोग तो  करना ही चाहिए परन्तु तत्पश्चात् यह भी आवश्यक है कि हमारे विवेक-वैराग्य के प्रयोग का प्रयत्न यथायोग्य हों।

उपनिषदों में पारमार्थिक सत्य [इन्द्रियातीत सत्य या परम्के सत्य (ब्रह्म) के] अज्ञान की अवस्था को निद्रा कहा गया है तथा उस अज्ञान के कारण प्रतीति और अनुभव में आनेवाली अवस्था (M/F शरीर में आसक्ति) को स्वप्न कहा गया है;  जिसमें हमारी जाग्रत अवस्था और स्वप्नावस्था दोनों ही सम्मिलित हैं।  इस दृष्टि से वास्तविक अवबोध की स्थिति तो तत्त्व के यथार्थ ज्ञान की ही कही जा सकती है। इन दोनों में युक्त रहने का अर्थ यह होगा कि दैनिक कार्यकलापों में तो साधक को संयमित होना ही चाहिये तथा उसी प्रकार प्रारम्भ में ध्यानाभ्यास में भी मन को बलपूर्वक शान्त करके दीर्घ काल तक उस स्थिति में रहने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये। So, raise that mental trolley‑pole, and touch the live wire of Will.तो, उस मानसिक ट्राम के मस्तूल (ट्रॉली-पोल) को उठाओ, और इच्छाशक्ति के जीवंत  तार को छूओ। [यानि अपने जीवन नौका (शरीर-मन ) के पाल खोल दो और देखो कि ठाकुर, माँ स्वामीजी की कृपा वायु -Latent power: गुप्त शक्ति या अव्यक्त शक्ति तो सदा से बह रही थी, मैंने ही मन के पाल -मस्तूल को उस कृपावायु का स्पर्श नहीं होने दिया था।]  

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पाठ V.

Interest is the mother of Enthusiasm.

आध्यात्मिक-शक्ति को व्यक्त करने में रूचि उत्साह (आत्मश्रद्धा) की जननी है  

Soul‑Force.

[क्या 'उत्साह' की ऊर्जा ही वास्तव में आत्मश्रद्धा की ऊर्जा है?  इसका वास्तविक अर्थ क्या है ? लक्ष्य प्राप्ति होने तक उत्साह बनाये रखने से क्या प्राप्त होता है ?  दूसरों में उत्साह का संचार करने के लिए - दूसरों में आत्मश्रद्धा को जागृत कैसे करें ?

Lesson V.-Soul‑Force. The Energy of Enthusiasm, and what it really means. What Enthusiasm accomplishes. How to communicate Enthusiasm. ]

 तुमने अक्सर “उत्साह” शब्द का इस्तेमाल होते सुना होगा—खुद भी अक्सर इसका इस्तेमाल किया होगा। लेकिन क्या तुमने कभी यह सोचा है कि इस शब्द का असल में क्या मतलब है—यह किस स्रोत से आया है—इसका मूल भाव क्या है? बहुत कम लोगों ने ऐसा सोचा है। [-The word “Enthusiasm” is derived from the Greek term meaning “to be inspired; to be possessed by the gods, or etc ?,” the term having been originally used to designate the mental state of an inspired person who seems to be under the influence of a higher power. ]

यह शब्द "उत्साह"-“Enthusiasm” ग्रीक शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है-“to be inspired; to be possessed by the gods, etc., "स्वामी विवेकानन्द से प्रेरित होना; या ठाकुर-माँ -स्वामीजी (उनके गुरुभाई आदि देवताओं) द्वारा वश में होना, इस शब्द का मूल रूप से किसी "प्रेरित व्यक्ति " an Inspired Person (सुदीप, जेपी मेहता, जमुना मेहता,   रजत ?, रौशन, गजानन्द,) की मानसिक स्थिति  (mental state) को निर्दिष्ट करने के लिए उपयोग किया जाता था जो किसी उच्च शक्ति (या दुष्टशक्ति ? -बीरनअपाजीतनरनन)  के प्रभाव में प्रतीत होता है। इस शब्द का मूल अर्थ है,“Inspired by a superhuman or divine power; ecstasy; etc.” “किसी अलौकिक या दैवीय शक्ति से प्रेरित होना; परमानंद की अवस्था से साक्षात्कार की अवस्था; आदि।”

[according to Websterवेबस्टर अर्थात पूर्वसर्ग के अनुसार: अनुरूपता में according to preposition: in conformity with-  It is now used, in the sense of: “Enkindled and kindling fervor of soul; ardent and imaginative zeal or interest; lively manifestation of joy or zeal; etc.” अब इसका प्रयोग इस अर्थ में किया जाता है: "आत्म-श्रद्धा द्वारा प्रज्वलित अदम्य उत्साह जो दूसरों के भीतर भी आत्मश्रद्धा को प्रज्वलित करने में समर्थ हो वैसा उत्कट और कल्पनाशील उत्साह या रूचि; आनंद या जोश की जीवंत अभिव्यक्ति आदि।"]

इस शब्द ने "दूरदर्शी उत्साह; कल्पनाशील उत्साह; आदि" के अर्थ में एक गौण और प्रतिकूल अर्थ ( unfavorable meaning) प्राप्त कर लिया है; लेकिन इसका वास्तविक और प्राथमिक अर्थ किसी चीज़ में वह उत्साही, जीवंत उत्साह और रुचि (ardent, lively zeal and interest) है,  which seems to awaken into activity some inner forces of one’s nature. जो किसी व्यक्ति की प्रकृति की कुछ आंतरिक शक्तियों को सक्रिय रूप में जागृत करती है। वास्तविक उत्साह (Real enthusiasm) का अर्थ है -'powerful mental state' आत्मश्रद्धा -सम्पन अविचल मानसिकता

     अदम्य उत्साह (आत्मश्रद्धा) से भरा हुआ व्यक्ति जो सचमुच किसी शक्ति या अपने से उच्चतर सत्ता से प्रेरित प्रतीत होता है -inspired by some power or being higher than himself वह शक्ति के ऐसे स्रोत ( source of power) आत्मशक्ति ? का उपयोग करता है जिसके बारे में वह सामान्यतः सचेत (conscious) नहीं होता। और इसका परिणाम यह होता है कि वह एक महान चुम्बक [ Great Magnet >C-IN-C नवनीदा>Occultist ?बन जाता है-radiating attractive force in all directions and influencing those within his field of influenceजो सभी दिशाओं में अपनी 'आकर्षण शक्ति' (पवित्रता ,निःस्वार्थपरता-इश्क का भूत सवार है ?) का विकिरण करता है तथा अपने प्रभाव क्षेत्र में आने वाले सभी लोगों को प्रभावित करता है। क्योंकि उत्साह (आत्मश्रद्धा या इश्क-का-भूत)  संक्रामक (contagious) होता है और जब कोई व्यक्ति (Individual-आत्मा) इसे अनुभव कर लेता है तब वह प्रेरक शक्ति का स्रोत (source of inductive power) और मानसिक प्रभाव का केंद्र (center of mental influence) बन जाता है। लेकिन वह शक्ति (अदम्य उत्साह या आत्मश्रद्धा)  जिससे वह भरा हुआ है, किसी बाहरी स्रोत (outside source—) से नहीं आती है - वह उसके मन या आत्मा (certain inner regions of his mind or soul)— के कुछ आंतरिक क्षेत्रों से आती है - उसकी आंतरिक चेतना Inner Consciousness (सच्चिदानन्द) से। Indomitable Enthusiasm is actually "spiritual strength",अदम्य उत्साह वास्तव में “soul power” (आत्मिक शक्ति अर्थात आध्यात्मिक शक्ति) है, और जब यह विशुद्ध (genuine) होता है तो इसके प्रभाव क्षेत्र में आने वाले लोग इसे पहचानते और महसूस करते हैं। उत्साह (Enthusiasm) की एक निश्चित मात्रा (अदम्य) के बिना कोई भी व्यक्ति कभी भी सफल नहीं हो सकता। बहुत कम लोग उत्साह के वास्तविक मूल्य को समझते हैं। (Few people realize the actual value of Enthusiasm.) कई लोग इसके (आत्मश्रद्धा या अदम्य उत्साह) होने के कारण सफल हुए हैं, और कई लोग इसके अभाव के कारण असफल हुए हैं।

अदम्य उत्साह (आत्मश्रद्धा ) वह भक्ति है (भाप) है जो हमारी मानसिक मशीनरी को चलाती है, और जो अप्रत्यक्ष रूप से जीवन में महान कार्यों को पूरा करती है। आप स्वयं कार्य ठीक से पूरा नहीं कर सकते जब तक कि आप उनमें कुछ हद तक रुचि (degree of interest ) नहीं दिखाते,  and what is Enthusiasm ? और उत्साह क्या है ? Interest plus Inspiration—Inspired Interest, that’s what Enthusiasm is. रुचि और अन्तः-प्रेरणा - प्रेरित रुचि (Inspired Interest) | उत्साह की शक्ति (power of Enthusiasm) आत्मश्रद्धा रहने से जीवन -गठन की महान चीजें- चरित्र के 24 गुण अभिव्यक्ति और सिद्धि तक पहुंचती हैं। उत्साह (या आत्मश्रद्धा का गुण)  कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो कुछ लोगों में होती है और दूसरों में नहीं। सभी लोगों में यह क्षमता दिव्यता या ब्रह्मत्व All persons have it potentially, but only a few are able to express it.) अंतर्निहित होती है, लेकिन कुछ ही लोग इसे व्यक्त कर पाते हैं। अधिकांश लोग किसी चीज़ को “महसूस” करने से डरते हैं,(अधिकांश लोग अपने को मरणधर्मा M/F शरीर करना चाहते हैं और शरीर के बाजए एक अजर-अमरआत्मा महसूस करने से डरते हैं।) and then to let the “feeling=एकात्मबोध” की भावना को शक्तिशाली इंजन में भाप की तरह अभिव्यक्त नहीं करा पाते। (The majority is afraid to let themselves “feel” a thing,  and then to let the “feeling” express itself in powerful action like the steam in an engine. और फिर उस “भावना” को इंजन में भाप की तरह शक्तिशाली क्रिया में अभिव्यक्त करने देते हैं।)

    अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि उत्साह (आत्मश्रद्धा को) जगाया कैसे जाए ?Enthusiasm may be developed, by cultivating interest and love of your task.  अपने कार्य के प्रति रुचि और प्रेम पैदा करके उत्साह (आत्मश्रद्धा) विकसित किया जा सकता है। [मेरा बचा हुआ कार्य - सतयुग स्थापन करने में स्वामीजी की चरित्र-निर्माण और मनुष्य-निर्माणकारी शिक्षा -'Be and Make ' नेता प्रशिक्षण -पद्धति का प्रचार-प्रसार करना। इसी कार्य के प्रति रूचि और प्रेम पैदा करने से - युवा प्रशिक्षण शिविर और पाठचक्र के प्रति रूचि और प्रेम पैदा करने से उत्साह या आत्मश्रद्धा को विकसित किया जा सकता है। ] भाप की तरह, उत्साह को भी नष्ट किया जा सकता है या उसका उपयोग (dissipated or used) किया जा सकता है - उद्देश्य केंद्रित दिशा में इसका प्रयोग करने से परिणाम उत्पन्न करता है, और मूर्खतापूर्ण बर्बादी और अपव्यय से ऐसा करने में विफल रहता है। आप किसी चीज़ में जितनी ज़्यादा दिलचस्पी रुचि लेंगे, आपका आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति उतनी ही बढ़ती जाएगी - और इन्हीं से उत्साह की लहर पैदा होती है। The more interest you take in a thing> Be and Make " , the greater your confidence and desire grow—and from these arise the steam of Enthusiasm.इसलिए हमेशा याद रखें कि रुचि उत्साह की जननी है। Interest is the mother of Enthusiasm.

       उत्साही व्यक्ति (enthusiastic man) स्वाभाविक रूप से आशावादी मानसिकता की ओर प्रवृत्त होता है, और ऐसा करके वह अपने चारों ओर आत्मविश्वासपूर्ण, हर्षित उम्मीद का वातावरण फैलाता है, जो दूसरों में आत्मविश्वास जगाता है, तथा उसके चरित्रवान मनुष्य बनने के प्रयासों में उसकी सहायता करता है। वह स्वयं को सफलता के मानसिक आभामंडल (mental aura of Success) से घेर लेता है -he vibrates Success— वह सफलता को स्पंदित करता है - और जिस किसी के समक्ष वह जाता है, वह व्यक्ति भी अनजाने में ही उसके स्पंदन ग्रहण कर लेते हैं-unconsciously take on his vibrations।  उत्साह बहुत संक्रामक (contagious)  होता है, और जो व्यक्ति अदम्य उत्साह के सही गुण, प्रकार और मात्रा से भरा होता है, वह  'unconsciously communicates' अनजाने में ही अपनी रुचि, ईमानदारी और अपेक्षाओं को दूसरों तक पहुँचा देता है।

    जिसको हमलोग 'व्यक्तिगत चुम्बकत्व ' ( Personal Magnetism) कहते हैं उसमें उत्साह उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एक जीवंत, गर्म, महत्वपूर्ण मानसिक गुण है, "vital mental quality "और यह इसका उपयोग करने वाले और इससे प्रभावित होने वाले लोगों की नब्ज को तेज कर देता है। जिस व्यक्ति में उत्साह की कमी होती है, उसकी व्यक्तिगत प्रभाव क्षमता (force of Personal Influence) का आधे से अधिक हिस्सा छिन जाता है। 

       जितने लोगों के (सनी- C-IN-C नवनीदा) निकट -संपर्क में  आप आए हैं, उनके द्वारा आप पर डाले गए प्रभाव का विश्लेषण करें और फिर देखें कि उत्साह कितना बड़ा प्रभाव डालता है। और फिर याद रखें कि जब आप इसे महसूस करते हैं तो इसका आप पर क्या प्रभाव पड़ता है। उत्साह- Mental Steam' है मानसिक भाप है - इसे याद रखें। यह इतना महत्वपूर्ण प्रश्न नहीं है कि "क्या मैंने इतना अधिक किया ?" या "क्या मैंने किसी और के बराबर किया?", बल्कि यह है कि "क्या मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया?"  “Did I do my best?”जो व्यक्ति किसी भी काम में (चश्मा खोल में?) अपना सर्वश्रेष्ठ उड़ेल सकता है, वह कभी असफल नहीं होता।The man who does his best is never a failure.' जो व्यक्ति अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करता है, वह कभी भी “quitter,” -“हार मानने वाला” या  “shirker”“कामचोर” नहीं होता - वह तब तक अपने प्रयास में  लगा रहता है जब तक कि वह  अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन न कर दे। ऐसा व्यक्ति कभी असफल नहीं हो सकता। और जब कोई सचमुच इस महान प्रश्न का ईमानदारी से उत्तर दे सकता है, “हाँ, मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया,” तब सचमुच, वह “इसका क्या उपयोग है” प्रश्न का उचित उत्तर देने में सक्षम होगा। - स्वयं का विकास और दूसरों की सहायता -Be and Make कार्य स्वयं में निहित सर्वश्रेष्ठ क्षमता (दिव्यत्व ) को सामने लाने में "उपयोगी" है, यदि किसी अन्य कारण से नहीं बल्कि इसलिए कि वास्तव में यह एक मनुष्य- निर्माण प्रक्रिया है । [“of use” to have brought out the Best work in oneself, if for no other reason than because it is a Man Making process—a developer of the Self.] 

हम क्यों आध्यात्मिक होने का परायास करें ? आत्मज्ञान का उपयोग क्या हैऐसा लगता है कि यह हर बात में यह कहना कि  “What’s the Use”"इसका क्या फायदा ?" किसी निराशावादी भेंड़ नेता के द्वारा- जो खुद मन और इन्द्रियों का स्वामी न बन सका - उसके द्वारा  लोगों को चरित्रवान मनुष्य बनने के प्रयास में हतोत्साहित करने के लिए गढ़ा गया है। इस तरह के प्रश्न ने अनेक लोगों को निराशा और असफलता के दलदल में धकेल दिया है। जब भी ऐसा कुछ आपके दिमाग में आए, उसे अपने दिमाग से निकाल दें और उसकी जगह यह सवाल रखें,-“Am I doing my Best ?”  “क्या मैं अपना सर्वश्रेष्ठ कर रहा हूँ ?”, यह जानते हुए कि सकारात्मक जवाब दूसरे सवाल का भी समाधान कर देता है।(-knowing that an affirmative answer settles the other question also. ) कोई भी चीज़ तभी --“Of Use” या “उपयोगी” होती है जब वह सही भावना से, तथा उचित उद्देश्य- 'भारत का कल्याण ' को सामने रखकर की गई हो, क्योंकि व्यक्ति का अपना पौरुष अपनी मर्दानगी (own manhood) इसकी मांग करती है।हां, अगर कोई ऐसा करते हुए मर भी जाए तो भी यह सफलता है Yes, even if one goes down to death in the doing of it—still it is a Success.हाल ही में एक पत्रिका में छपे लेख में बताई गई यह कहानी सुनिए: 

   " यह एक जर्मन केरोसिन स्टीमर (German kerosene steamer) के मलबे पर सवार एक नाविक (sailor) की कहानी है, जो 1901 की शुरुआत में 'Newfoundland-coast'- न्यू -फ़ाउंडलैण्ड तट की चट्टानों से टकरा गया था। उस स्टीमर में आग लग गई थी और वह तट से लगभग आठवें मील दूर एक जलमग्न चट्टान पर जा फंसी थी। समुद्र तट स्वयं एक दीवार थी, जो लगभग चार सौ फीट ऊंची थी। जब सुबह हुई, तो किनारे पर मौजूद मछुआरों ने देखा कि उसकी सभी नावें गायब थीं, तथा  केवल तीन लोगों को छोड़कर सभी चालक दल और अधिकारी खो गए थे। इन तीन लोगों में से दो पुल पर खड़े थे - तीसरा ऊपर था, रस्सियों से बंधा हुआ। बाद में, दर्शकों ने देखा कि एक जबरदस्त लहर जहाज से टकराई, जिसने पुल और उस पर खड़े दो लोगों को बहाकर ले गई। कई घंटों बाद उन्होंने देखा कि रस्सियों में बंद आदमी ने उसे कोड़े मारे और अपने हाथों से उसके शरीर पर जोर-जोर से प्रहार किया, जाहिर तौर पर रक्त संचार को बहाल करने के लिए, जो कोड़ों की मार और अत्यधिक ठंड के कारण लगभग बंद हो गया था। फिर उस आदमी ने अपना कोट उतारा, चट्टान के ऊपर मछुआरों को दिखाया और फिर समुद्र में कूद गया।पहला विचार यह था कि उसने लड़ाई छोड़ दी है और आत्महत्या कर ली है - लेकिन वह ऐसा आदमी नहीं था। वह किनारे की ओर बढ़ा और किनारे पर पहुंचकर उसने चट्टान के नीचे चट्टानों पर पैर जमाने के लिए तीन अलग-अलग प्रयास किए। लेकिन, वह असफल रहा - तीनों बार उसे पकड़ लिया गया। वह लहरों के साथ बह गया, और अंततः अपने प्रयासों की निरर्थकता को देखते हुए, वह पुनः जहाज की ओर तैर गया। जैसा कि वर्णनकर्ता ने ठीक ही कहा है: "संघर्ष के उस संकट के समय सौ में से निन्यानबे आदमी हार मान लेते और खुद को डूब जाने देते; लेकिन यह आदमी हार मानने वाला नहीं था।" लहरों के साथ भीषण संघर्ष के बाद वह व्यक्ति जहाज पर पहुंच गया और काफी संघर्ष के बाद उस पर चढ़ने में सफल रहा।

     वह फिर से नाव पर चढ़ गया और चट्टान पर ऊपर खड़े मछुआरों की ओर हाथ हिलाकर इशारा किया, जो उसकी मदद करने में असमर्थ थे।उसने अपने आप को तेजी से कोड़े मारे, और अंधेरा होने तक ऊपर मछुआरों को संकेत देता रहा, कि वह अभी भी जीवित है और शिकार के लिए तैयार है। जब अगली सुबह हुई तो मछुआरों ने देखा कि उसका सिर उसकी छाती पर गिर गया था - वह निश्चल था - रात भर में जम गया था। वह मर चुका था - उसकी बहादुर आत्मा अपने निर्माता से मिलने के लिए आगे बढ़ चुकी थी, और कौन संदेह कर सकता है कि जब उस व्यक्ति ने अपने निर्माता का सामना किया तो उसकी आँखें दृढ़ता और बहादुरी से उपस्थिति की ओर देख रही थीं, और शर्म या डर से झुकी नहीं थीं। जैसा कि लेखक जॉर्ज केनन ने रोमांचित करने वाले शब्दों में कहा है: "वह आदमी वैसे ही मरा जैसे विपरीत परिस्थितियों में मरने वाले व्यक्ति को मरना चाहिए, अंत तक लड़ते हुए।" आप इसे मूर्खतापूर्ण कह सकते हैं, और कह सकते हैं कि जब उसने पाया कि वह चट्टान के तल पर नहीं उतर सकता, तो उसे डूबकर अपनी पीड़ा समाप्त करनी चाहिए थी; लेकिन अपने दिल की गहराई में आप उसके-his courage, his endurance, and his indomitable will साहस, उसकी सहनशीलता और उसकी अदम्य इच्छाशक्ति को गुप्त श्रद्धांजलि देते हैं। वह अंततः हार गया, लेकिन जब तक वह होश में था, neither fire nor cold not tempest could break down his manhood.-मनुष्यत्व  न तो आग, न ही ठंड और न ही तूफान उसकी मर्दानगी(manhood) को तोड़ सकते थे !  

    कॉकेशियन लोगों की एक पसंदीदा कहावत है- “Heroism is endurance for one moment more.”  "वीरता एक पल अधिक धीरज रखने का नाम है।" और वह एक पल और “quitter” यानि “हार मानने वाले” और  “done his Best.” “अपना सर्वश्रेष्ठ करने वाले” व्यक्ति के बीच का अंतर बताता है। -No one is dead until his heart has ceased beating—कोई भी व्यक्ति तब तक मरा नहीं है जब तक उसका दिल धड़कना बंद न हो जाए - और and no one has failed - कोई भी व्यक्ति तब तक असफल नहीं होता जब तक - so long as there is one more bit of fight in him. उसके अंदर एक और लड़ाई बाकी है। और वह "और एक क्षण " And that “one moment more”क्सर वह क्षण होता है जब स्थिति बदल जाती है - वह क्षण जब दुश्मन अपनी पकड़ ढीली कर देता है और पराजित होकर पीछे हट जाता है

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पाठ VI.

इच्छा की शक्ति।

The Power of Desire.

[ वह प्रेरक शक्ति जो दुनिया को चलाती है। वह इच्छा जो एक उपयोगी सेवक है लेकिन एक खराब स्वामी है । इच्छा कैसे पैदा करें। इसकी अद्भुत ऊर्जा को कैसे लागू करें। इच्छा द्वारा मन की शक्ति को कैसे बढ़ाया जाए।

The Motive Force that runs the world. A useful servant but a poor master. How to Create Desire. How to apply its wonderful Energy. How to extend the Mind Force by Desire.] 

इच्छा क्या है? What is Desire?मेरियम-वेबस्टर डिक्शनरी हमें बताता है कि यह:  “The natural longing to possess any seeming good; eager wish to obtain or enjoy,” “किसी भी अच्छी चीज़ को पाने की स्वाभाविक इच्छा; प्राप्त करने या आनंद लेने की उत्सुक इच्छा है” या इसके गलत अर्थ में:  “excessive or morbid longing; lust; appetite. ”“अत्यधिक या रुग्ण इच्छा; वासना; भूख।” 

         “Desire” is a much‑abused term—"इच्छा" एक बहुत ही दुरुपयोग किया जाने वाला शब्द है - जनमानस ने इसे इसके असामान्य या पतित चरण के साथ ही पहचान लिया है, जैसा कि पहले बताया गया है, तथा इसके मूल और सच्चे अर्थ को नजरअंदाज कर दिया है।कई लोग इस शब्द का इस्तेमाल “महत्वाकांक्षा” “aspiration,” “worthy craving and longing,”“योग्य लालसा और लालसा” आदि के वास्तविक अर्थ के बजाय एक विषय-भोग की लालसा या तृष्णा के अर्थ में करते हैं।-"भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः तपो न तप्तं वयमेव तप्ताःकालो न यातो वयमेव याताः तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः॥"भर्तृहरि (वैराग्यशतकम्)अर्थात - "हमने भोग नहीं भोगे, उन्होंने हमें भोग लिया । तपस्या हमने नहीं की, स्वयं तप गए ।  काल कहीं नहीं गया, हम चले गए । तृष्णा नहीं गयी, हम जीर्ण हो गए ।" महत्वाकांक्षा को भोगेच्छा कहना इसे कमतर इच्छा बना देता है। इस पर "प्रशंसनीय लक्ष्य और महत्वाकांक्षा" शब्द लागू करने से-character of Desire  इच्छा का चरित्र ख़त्म नहीं हो जाता। 

         इस तथ्य से बचने का प्रयास करने में कोई तुक नहीं है कि -that Desire is the natural and universal impulse toward action, be the action good or bad. इच्छा कार्य के प्रति स्वाभाविक और सार्वभौमिक आवेग है, चाहे कार्य अच्छा हो या बुरा। ज्वलंत इच्छा के बिना संकल्प क्रियाशील नहीं होता, और कुछ भी पूरा नहीं होता। Without Desire the Will does not spring into action, and nothing is accomplished.-यहाँ तक कि जाति की सर्वोच्च उपलब्धियाँ और लक्ष्य भी तभी संभव हैं जब - the steam of Will is aroused by the flame and heat of Desire.इच्छा की भाप को इच्छा की ज्वाला और गर्मी द्वारा जगाया जाता है 

      कुछ तंत्र मार्ग के उपदेश (occult teachings) “इच्छा को मार डालने” के निर्देशों से भरी हुई हैं।  इसलिए विद्यार्थी को इसके सबसे कपटी और सूक्ष्म रूपों से भी सावधान रहने की चेतावनी दी जाती है, यहाँ तक कि “avoiding even the desire to be desireless—even desire not to desire.” “इच्छा रहित होने की इच्छा से भी दूर रहना चाहिए - यहाँ तक कि इच्छा न करने की इच्छा से भी दूर रहना चाहिए।” यह "इच्छा करना; किसी को चाहना; महसूस करना; झुकाव; प्रसन्न होना;" और बाकी सब क्या है, लेकिन इनमें से कुछ नामों के तहत छिपी हुई सादी, स्पष्ट, शुद्ध इच्छा है। बिना “इच्छा” के “इच्छा को मारना” ऐसा करना है जैसे खुद को ऊपर उठाने की कोशिश करना-बड़ी मूर्खता है।To proceed to “kill out desire” without “desiring” to do so is like trying to lift oneself by pulling on his own bootstraps. Folly.

         वास्तव में इसका अर्थ यह है कि तांत्रिक साधक (occultist) को अपनी प्रकृति में पाई जाने वाली निम्नतर इच्छाओं को नष्ट करना चाहिए, तथा कामिनी-कांचन, नामयश आदि  वस्तुओं के प्रति “आसक्ति” -“attachment” for things को भी नष्ट करना चाहिए।  What is really meant is that the occultist should proceed to kill out the lower desires that he finds within his nature, and also to kill out the “attachment” for things. इस अंतिम के बारे में हम कहेंगे कि सभी सच्चे तंत्र-साधक all true occultists जानते हैं कि सबसे अच्छी "चीजें" भी किसी पर शासन करने और उसे नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त अच्छी नहीं हैं -nothing is good enough for the soul to allow itself to be unduly attached to it" आत्मा के लिए कोई भी चीज इतनी अच्छी नहीं है कि वह खुद को उससे अनावश्यक रूप से जुड़ने दे, ताकि वह चीज आत्मा पर शासन करे, बजाय इसके कि आत्मा उस चीज पर नियंत्रण करे। तांत्रिक शिक्षाओं का यही अर्थ है - "कामिनी -कांचन में आसक्त होने " से बचना।  And in this the occult teachers are clearly right. और इस मामले में तंत्र-विद्या के गुरु स्पष्ट रूप से सही हैं।

       इच्छा एक भयावह स्वामी है - अग्नि की तरह यह आत्मा के आधारों को बहा ले जाती है, और सुलगती राख के अलावा कुछ नहीं छोड़ती। लेकिन, अग्नि की तरह इच्छा भी एक शानदार सेवक है और इसकी शक्ति से हम इच्छा और क्रिया की भाप उत्पन्न करने में सक्षम हैं, और दुनिया में बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं। उचित इच्छा के बिना संसार क्रियाहीन हो जायेगा।Desire is a frightful master—like fire it sweeps away the supports of the soul, leaving nothing but smoldering ashes. But, also like Fire Desire is a splendid servant and by its harnessed power we are able to generate the steam of the Will and Activity, and to accomplish much in the world. इसलिए इच्छा का उपयोग करते समय कोई गलती न करें, जैसे आप आग का उपयोग करने से इनकार करते हैं -avoid allowing the control to pass from you to Desire. लेकिन दोनों मामलों में नियंत्रण अपने हाथों में रखें, और नियंत्रण को आपसे इच्छा में स्थानांतरित करने से बचेंइच्छा ही वह प्रेरक शक्ति है जो दुनिया को चलाती है; हम इसे कई मामलों में स्वीकार करने की परवाह नहीं करते।अपने आस-पास देखें और हर मानवीय कार्य में इच्छा के प्रभाव को देखें, चाहे वह अच्छा हो या बुरा।जैसा कि एक लेखक ने कहा है: "हमारा हर काम, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, इच्छा से ही प्रेरित होता है हम यदि दानशील हैं क्योंकि हम दुःख को देखकर अपने आंतरिक कष्ट को दूर करना चाहते हैं; या सहानुभूति की इच्छा से; या इस संसार में सम्मान पाने की इच्छा से, या परलोक में आरामदायक स्थान प्राप्त करने की इच्छा सेकोई आदमी यदि दयालु है, तो इसीलिए है क्योंकि वह दयालु होना चाहता है - क्योंकि दयालु होने से उसे संतुष्टि मिलती है; जबकि दूसरा आदमी ठीक उसी तरह के मकसद से क्रूर है।

        One man does his duty because he Desires to do it—एक व्यक्ति अपना कर्तव्य इसलिए करता है क्योंकि वह उसे करने की इच्छा रखता है - वह अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाने से अधिक संतुष्टि प्राप्त करता है, बजाय इसके कि वह कुछ कमजोर इच्छाओं के अनुसार उसकी उपेक्षा करने से प्राप्त करता।

     धार्मिक व्यक्ति धार्मिक होता है क्योंकि उसकी धार्मिक इच्छाएँ उसकी अधार्मिक इच्छाओं से अधिक प्रबल होती हैं - क्योंकि उसे सांसारिक इच्छाओं की अपेक्षा धर्म में अधिक संतुष्टि मिलती है। The moral man is moral because his moral desires are stronger than his immoral ones—नैतिक व्यक्ति नैतिक होता है क्योंकि उसकी नैतिक इच्छाएँ उसकी अनैतिक इच्छाओं से अधिक मजबूत होती हैं - वह इसके विपरीत होने की अपेक्षा नैतिक होने में अधिक संतुष्टि प्राप्त करता है। हम जो कुछ भी करते हैं वह किसी न किसी रूप में इच्छा से प्रेरित होता है - उच्च या निम्न। मनुष्य इच्छा रहित होकर किसी भी तरह से कार्य नहीं कर सकता। Desire is the motivating power behind all actionsइच्छा ही सभी कार्यों के पीछे प्रेरक शक्ति है —it is a natural law of life. - यह जीवन का एक स्वाभाविक नियम है। Everything from the atom to the monad- अणु से लेकर अभेद्य वस्तु तक, from the monad to the insect-एकल व्यक्ति से लेकर कीट तक ; from the insect to man- कीट से मनुष्य तक ; मनुष्य से प्रकृति तक, प्रत्येक वस्तु इच्छा की शक्ति और बल के कारण कार्य करती है, जो कि सजीव प्रेरणा है।” 

      उपरोक्त सभी बातें पहली नजर में मनुष्य को एक मशीन मान लेने जैसा प्रतीत होती हैं, जो अपने मन में आने वाली किसी भी इच्छा के अधीन है। All the above at first glance would seem to make man a mere machine, subject to the power of any stray desire that might happen to come into his mind.--But this is far from being so.-- लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। मनुष्य प्रत्येक इच्छा के अनुसार कार्य नहीं करता, बल्कि मनुष्य सबसे प्रबल इच्छा के अनुसार, या अपनी सबसे प्रबल इच्छाओं के औसत के अनुसार कार्य करता है किसी मनुष्य की इच्छाओं का यह औसत ही उसके स्वभाव या चरित्र का निर्माण करता है। This Average of Desires is that which constitutes his Nature or Character. और यहीं पर-Mastery of the “I”  "मैं वह हूँ " की महारत काम आती है! And here is where the Mastery of the “I” comes in! यदि मनुष्य अपनी इच्छाओं पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है तो उसे अपनी इच्छाओं का गुलाम या पशु बनने की आवश्यकता नहीं है। Man need not be a slave or creature of his Desires if he will assert his Mastery.मनुष्य अपनी इच्छाओं को -चाहे किसी भी मनोवांछित दिशा में  नियंत्रित, विनियमित, नियंत्रित और निर्देशित कर सकता है। केवल इतना ही नहीं- he may even Create Desires by an action of his Will, -बल्कि, वह अपनी इच्छा से इच्छाएं भी उत्पन्न कर सकता है, जैसा कि हम आगे देखेंगे। he may neutralize unfavorably Desires, and grow and develop—yes, practically Create New Desires in their place—all by the power of his Will, मनोवैज्ञानिक नियमों के ज्ञान से वह प्रतिकूल इच्छाओं को बेअसर कर सकता है, और बढ़ सकता है और विकसित हो सकता है :मनुष्य अपने मन का नेता/मालिक/कप्तान है। -Man is the Master of his Mind.  हाँ, व्यावहारिक रूप से उनकी जगह नई इच्छाएँ पैदा कर सकता है - यह सब उसकी इच्छा शक्ति से, उसके तर्क और निर्णय के प्रकाश की सहायता से होता है।  

      "हाँ," लेकिन कुछ गहन तर्क करने वाले आलोचक आपत्ति कर सकते हैं; "हाँ, यह काफी हद तक सच है, लेकिन उस स्थिति में भी क्या इच्छा ही प्रमुख प्रेरणा नहीं है - क्या एक इच्छा को इन नई इच्छाओं को उत्पन्न नहीं करना चाहिए, इससे पहले कि वह ऐसा कर सके - क्या इच्छा हमेशा कार्रवाई की पूर्व मिसाल नहीं होती है?"  यह बहुत ही बारीकी से तर्क करने जैसा है, अच्छे मित्रों, लेकिन सभी उन्नत तांत्रिक गुरुओं (प्रेमिक महाराज और आचार्य देव जैसे रटन्ती कालीपूजा में निशाभ्रमण करने वाले  गूढ़विद्याविदों) को पता है कि एक बिंदु ऐसा होता है जिसमें इच्छा का सिद्धांत अपने साथी सिद्धांत, इच्छा में छाया और विलीन हो जाता है।  और एक करीबी तर्ककर्ता और मानसिक विश्लेषक एक मानसिक स्थिति की कल्पना कर सकता है जिसमें व्यक्ति को लगभग इच्छा की इच्छा प्रकट करने के बजाय इच्छा की इच्छा प्रकट करने वाला कहा जा सकता है।Very close reasoning this, good friends, but all advanced occultists know that there is a point in which the Principle of Desire shades and merges into its companion Principle, Will, and that a close reasoner and mental analyst may imagine a mental state in which one may be said to manifest almost a Will to Will, rather than to merely Desire to Will. ] इस स्थिति को समझने से पहले इसका अनुभव किया जाना आवश्यक है - शब्दों में इसे व्यक्त नहीं किया जा सकता। This state must be experienced before it can be understoodwords cannot express it.

    हमने कहा है कि इच्छा को उत्पन्न करना मनुष्य की शक्ति में है - न केवल उत्पन्न होने पर उसका स्वामी बनना, बल्कि उसे अस्तित्व में लाकर उसका सृजन करना भी।और यह कथन सत्य है, और आधुनिक मनोविज्ञान के नवीनतम प्रयोगों और खोजों द्वारा सत्यापित और सिद्ध किया गया है।ज्ञान और इच्छाशक्ति के द्वारा वह चीजों के सामान्य क्रम को उलट सकता है और, displacing the intruder from the throne, he may seat himself there in his rightful place, सिंहासन से घुसपैठिये को हटाकर, स्वयं उसके उचित स्थान पर बैठ सकता है, the late occupant do his will and obey his bidding. और फिर दिवंगत अधिभोगी  'late occupant ' मिथ्या अहं ? को अपनी इच्छा पूरी करने और अपने आदेश का पालन करने का आदेश दे सकता है। VVIp लेकिन सिंहासन के नए अधिभोगी (occupant- दखलकार) के लिए पुनर्गठित दरबार 'reorganized court 'लाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि वह अपने मन के पुराने आपत्तिजनक प्राणियों (Cast and M/F) को हटा दे और उनके स्थान पर नए प्राणियों का निर्माण करे। But the best way for the new occupant of the throne to bring about a reorganized court is to dismiss the old objectionable creatures of his mind and create new ones in their places. 

यह इस प्रकार किया जा सकता है (ह्रदय सिंहासन पर बैठे दासो -अहं बोलने वाला नया दखलकार the new occupant-मन में विराजमान पुराने आपत्तिजनक प्राणियों - Bh-Aj को ऐसा नया रूप दे सकता है।): सबसे पहले उस नये व्यक्ति को (दासो अहं को) उन कार्यों पर ध्यानपूर्वक विचार करना चाहिए जिन्हें वह पूरा करना चाहता है। -विवेक-प्रयोग या using his judgment carefully, judicially and impartially—impersonally so far as is possible—  फिर, अपने विवेक का सावधानीपूर्वक, न्यायिक और निष्पक्ष रूप से उपयोग/प्रयोग करते हुए - जहाँ तक संभव हो, निष्पक्ष रूप से - उसे अपने बारे में मानसिक रूप से सोचना चाहिए और देखना चाहिए कि कार्य की सफल पूर्ति के संबंध में वह किन बिंदुओं पर कमज़ोर है। 

     >>कैम्प के पहले चेकलिस्ट बनाओ ! फिर उसे अपने सामने मौजूद कार्य का विस्तार से विश्लेषण करने दें, मामले को यथासंभव स्पष्ट रूप से परिभाषित भागों में विभाजित करें, ताकि वह उस चीज़ को जैसी वह है, विस्तार से और साथ ही उसकी संपूर्णता में देखने में सक्षम हो सके। फिर उसे उन चीजों की भी सूची बनानी चाहिए, जो कार्य की पूर्ति के लिए आवश्यक लगती हैं - न कि उन विवरणों की जो दिन-प्रतिदिन कार्य की प्रगति के साथ ही सामने आएंगे - बल्कि सामान्य चीजों की, जिन्हें किया जाना आवश्यक है ताकि कार्य को सफलतापूर्वक पूरा किया जा सके। फिर कार्य, उपक्रम की प्रकृति, तथा अपनी योग्यताओं (qualifications) और कमियों ( shortcomings) का जायजा लेने के बाद, निम्नलिखित योजना के अनुसार इच्छा सृजन करना शुरू करेंthen Begin to Create Desire, according to the following plan:

इच्छा के सृजन (Creation of Desire) में पहला कदम कार्य के गुणों, वस्तुओं और विवरणों के साथ-साथ सम्पूर्ण सम्पूर्णता की स्पष्ट, "महत्वपूर्ण मानसिक छवि"vital Mental Image of the qualities का निर्माण करना है। as well as of the Completed Whole. मानसिक छवि से हमारा तात्पर्य कल्पना में ऊपर वर्णित चीजों की स्पष्ट, विशिष्ट मानसिक तस्वीर से है। अब, कल्पना शब्द का उल्लेख होने पर अधीरता से मुंह मत मोड़िए।कल्पना एक वास्तविक चीज़ है - यह मन की एक क्षमता है जिसके द्वारा यह चीजों का एक मैट्रिक्स, साँचा या पैटर्न बनाता है, जिसे बाद में प्रशिक्षित इच्छा और चाहत वस्तुगत वास्तविकता में मूर्त रूप देती है। Imagination is a real thing—it is a faculty of the mind by which it creates a matrix (साँचा) , mold, or pattern of things, which the trained Will and Desire afterward, materialize into objective reality. मनुष्य के हाथों और मस्तिष्क द्वारा निर्मित ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है, जिसकी उत्पत्ति किसी की कल्पना में न हुई हो।

कल्पना सृजन में पहला कदम है - चाहे वह संसार की हो या छोटी-छोटी चीज़ों की। मानसिक पैटर्न हमेशा भौतिक रूप से पहले होना चाहिए। और यही बात इच्छा के सृजन में भी लागू होती है।Imagination is the first step in Creation—whether of worlds or trifles. The mental pattern must always precede the material form. And so it is in the Creation of Desire. इससे पहले कि आप कोई इच्छा पैदा कर सकें, आपके पास स्पष्ट मानसिक छवि होनी चाहिए कि आपको क्या इच्छा करनी है। -Before you can Create a Desire you must have a clear Mental Image of what you need to Desire.

आप पाएंगे कि मानसिक छवि बनाने का यह कार्य आपकी अपेक्षा से थोड़ा कठिन है।आपको जो चाहिए उसकी एक धुंधली मानसिक तस्वीर भी बनाना मुश्किल लगेगा।लेकिन निराश मत होइए, और दृढ़ रहें, क्योंकि हर चीज़ की तरह इसमें भी अभ्यास से ही सिद्धि मिलती है। हर बार जब आप मानसिक छवि बनाने की कोशिश करेंगे तो यह थोड़ा और स्पष्ट और स्पष्ट दिखाई देगी, और विवरण थोड़ा और प्रमुखता में आ जाएँगे। पहले तो खुद को थकाएं नहीं, बल्कि उस काम को बाद में या कल के लिए टाल दें। लेकिन अभ्यास और दृढ़ता से लगे रहें और आप जल्द ही उन चीजों को मानसिक रूप से देख पाएंगे जिनकी आपको आवश्यकता है, ठीक उसी तरह जैसे आप पहले से देखी गई किसी चीज की स्मृति तस्वीर को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।आगामी पाठों में हम मानसिक कल्पना और कल्पना के इस विषय पर और अधिक कहेंगे। We shall have more to say on this subject of Mental Imagery and Imagination in subsequent lessons. फिर, जिन चीज़ों की आप इच्छा करना चाहते हैं उनकी स्पष्ट मानसिक छवि प्राप्त करने और उन्हें प्राप्त करने के बाद, उन चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करें।

'attention ' अटेंशन शब्द लैटिन शब्द "“Attendere”  से लिया गया है, जिसका अर्थ है “to stretch forth,” "आगे फैलाना", मूल विचार यह है कि in Attention the mind was “stretched forth,” अटेंशन में मन को ध्यान की वस्तु की ओर "आगे बढ़ाया" या "विस्तारित" किया जाता है, और यह सही विचार है क्योंकि इस मामले में मन इसी तरह काम करता है। विचारों को यथासंभव अपने ध्यान के समक्ष रखें, ताकि मन उन पर दृढ़ पकड़ बना सके, और उन्हें अपना एक हिस्सा बना सके - ऐसा करने से आप विचारों को मन की मोम की पटिया पर दृढ़ता से अंकित कर देते हैं। इस प्रकार, कल्पना और ध्यान के माध्यम से अपने मन में विचार को स्पष्ट रूप से स्थिर कर लेने के बाद, जैसा कि हमने कहा है, जब तक कि यह वहां एक स्थायी तत्व न बन जाए, चीजों के भौतिकीकरण के लिए एक उत्कट इच्छा, लालसा, तृष्णा की मांग को विकसित करना शुरू करें।मांग करें कि आप कार्य के लिए आवश्यक गुणों को विकसित करें - मांग करें कि आपके मानसिक चित्र मूर्त रूप लें - मांग करें कि विवरण के साथ-साथ संपूर्णता भी अभिव्यक्त हो, और इस बात के लिए गुंजाइश रखें कि जैसे-जैसे आप आगे बढ़ेंगे, मूल विवरणों का स्थान लेने के लिए निश्चित रूप से कुछ बेहतर उत्पन्न होगा - आंतरिक चेतना आपके लिए इन चीजों पर ध्यान देगी। फिर दृढ़ता से, आत्मविश्वास से और ईमानदारी से इच्छा करें।

अपनी मांगों और इच्छाओं में आधे-अधूरे मन से न रहें - पूरी चीज़ का दावा करें और मांग करें, और आश्वस्त रहें कि यह भौतिक वस्तुनिष्ठता और वास्तविकता में काम करेगा। इसके बारे में सोचो, इसके सपने देखो और हमेशा इसके लिए तरसते रहो - तुम्हें इसे सबसे बुरी तरह से चाहना सीखना चाहिए - "इसे बहुत ज़ोर से चाहना" सीखो।Think of it, dream of it, and always Long for it—you must learn to want it the worst way—learn to “want it hard enough.” आप "बहुत ज़्यादा चाहकर" बहुत सी चीज़ें पा सकते हैं - हममें से ज़्यादातर लोगों के साथ दिक्कत यह है कि हम चीज़ों को बहुत ज़्यादा नहीं चाहते - हम अस्पष्ट लालसाओं और इच्छाओं को ईमानदारी, लालसा, मांग वाली इच्छा और चाहत समझ लेते हैं।Keep the ideas before your attention as much as possible, so that the mind may take a firm grasp upon them, and make them a part of itself—by doing this you firmly impress the ideas upon the wax tablet of the mind.जिस तरह आप अपने दैनिक भोजन की मांग करते हैं और उसकी इच्छा करते हैं, उसी तरह उस चीज़ की भी इच्छा करें और उसकी मांग करें। इसका मतलब है “इसे सबसे बुरी तरह से चाहना।” यह केवल एक संकेत है - निश्चित रूप से आप बाकी की आपूर्ति कर सकते हैं, यदि आप ईमानदार हैं, और “काफी हद तक चाहते हैं।”

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पाठ VII.

आकर्षण का नियम।

[आकर्षण का नियम - प्रकृति का महान नियम। परमाणु से मनुष्य तक। हम जिन चीज़ों की इच्छा करते हैं या जिनसे डरते हैं, उन्हें अपनी ओर कैसे आकर्षित करें। इच्छा शक्ति। मन की इस महान शक्ति को कैसे विकसित करें और उस पर कैसे काबू पाएं। भय और इस पर कैसे काबू पाएं।

एक कहावत है- "पांच तत्व का पुतला प्राणी, सूरत सबकी न्यारी, कलाकार है कैसा भगवान उससे दुनियाँ हारी।  "जैसी करनी वैसी भरनी करले सुंदर काम। " और "रे मन अब तू चेत जा भज ले हरि का नाम।" 

Lesson VII. The Law of Attraction. Nature’s Great Law. From Atom to Man. How to draw to us the things we Desire or Fear.Desire Force. How to cultivate and master this great power of the Mind. Fear thought and how to overcome it.]

प्रकृति में एक महान नियम है - आकर्षण का नियम - जिसके प्रभाव से सभी चीजें - परमाणुओं से लेकर मनुष्यों तक - सामान्य उपयोग की सामान्य आत्मीयता की मात्रा में एक दूसरे की ओर आकर्षित होती हैं। There is in Nature a great Law—the Law of Attraction—by the operations of which all things—from atoms to men—are attracted toward each other in the degree of the common affinity of common use.

                  आकर्षण के नियम का विपरीत रूप - जो कि इसकी शक्ति का एक और प्रकटीकरण मात्र है - विकर्षण (Repulsion) कहलाता है।  जो कि आकर्षण का दूसरा ध्रुव है-विकर्षण, और जिसके प्रभाव से वस्तुएं एक-दूसरे के प्रति इस सीमा तक घृणा उत्पन्न करती हैं- (repel) करती हैं कि वे एक-दूसरे से भिन्न, विरोधी और एक-दूसरे के लिए किसी काम की नहीं होतीं। The Law of Attraction is Universal,- on all the planes of life, from the physical to the spiritual. आकर्षण का नियम सार्वभौमिक है, जीवन के सभी स्तरों पर, भौतिक (देह और मन)  से लेकर आध्यात्मिक (आत्मा) तक

     छोटे कणों (tiny corpuscles-कणिका -रक्त में पाया जाने वाला लाल या श्वेत अतिसूक्ष्म अंश), इलेक्ट्रॉनों (electrons-ऋणावेशित सूक्ष्माणु) या आयनों (ions-ईओण) से शुरू करके, जिनसे परमाणु बनते हैं (of which the atoms are formed) , हम आकर्षण के नियम को प्रकट होते हुए पाते हैं -we find manifested the Law of Attraction' कुछ इलेक्ट्रॉन एक दूसरे को आकर्षित करते हैं, और फिर भी दूसरों को पीछे हटाते हैं, जिससे वे इलेक्ट्रॉनों के मौजूदा समूहों, संयोजनों और कॉलोनियों में बदल जाते हैं जो सहमति और सामंजस्य में प्रकट होते हैं और परमाणु कहलाते हैं, जिन्हें हाल ही तक पदार्थ का मूल रूप ( primal form of matter) माना जाता था। परमाणुओं की बात करें तो हम पाते हैं कि उनके बीच अनेक प्रकार की आत्मीयता (affinity) और आकर्षण (attraction) विद्यमान होते हैं, जिनके कारण वे संयोजित होकर अणुओं (molecules ) का निर्माण करते हैं, जिनसे पदार्थ के सभी द्रव्यमान (masses) बनते हैं।

     उदाहरण के लिए, पानी की प्रत्येक बूंद पानी के अनगिनत अणुओं से बनी होती है।और प्रत्येक अणु हाइड्रोजन के दो परमाणुओं और ऑक्सीजन के एक परमाणु से बना होता है - पानी के हर अणु में संयोजन हमेशा एक जैसा होता है। अब, ये परमाणु एक ही अपरिवर्तनीय समूह और अनुपात में इस तरह से क्यों संयोजित होते हैं?Now, why do these atoms combine in just this way—the same invariable grouping and proportion? निश्चित रूप से यह संयोग से नहीं है, क्योंकि प्रकृति में कोई भी चीज ऐसी नहीं जो बिना नियम के घटित होती है - हर घटना के पीछे एक प्राकृतिक नियम है। और इस पानी की बूँद मामले में आकर्षण का नियम इन परमाणुओं के मामले में प्रकट होता है। और यह सभी रासायनिक संयोजनों (chemical combinations) में होता है - इसे रासायनिक आत्मीयता (Chemical Affinity) कहा जाता है।

       Marriages and Divorces in the world of atoms: कभी-कभी एक जुड़ा हुआ परमाणु ( attached atom) दूसरे परमाणु के संपर्क में आता है या उसके निकट आता है, और फिर अणु में विस्फोट होता है, (then bang goes the explosion of the molecule) क्योंकि परमाणु अपने साथियों से दूर उड़ जाता है और -into the arms of the other atom for which it has a greater affinityदूसरे परमाणु की बाहों में चला जाता है, जिसके साथ उसका अधिक लगाव होता हैआप देखेंगे कि परमाणुओं की दुनिया में विवाह और तलाक होते हैं।

      और अणुओं (molecules)  के मामले में, यह पाया जाता है कि कुछ अणु समान प्रकार के अन्य अणुओं की ओर आकर्षित होते हैं, जिसे संसंजन (Cohesion- लगाव,संबद्धता)- कहा जाता है, और इस प्रकार पदार्थ के द्रव्यमान ( masses of matter) का निर्माण होता है। सोना (gold), चांदी (silver), टिन, कांच या किसी अन्य प्रकार के पदार्थ का एक टुकड़ा अनगिनत अणुओं से बना होता है, जो संसक्ति द्वारा एक साथ मजबूती से बंधे होते हैं - और यह संसक्ति (लगाव - Cohesion) आकर्षण के नियम का ही दूसरा रूप हैthe Law of Attraction—the same that draws all things together वही आकर्षण का नियम जो सभी चीजों को एक साथ खींचता है। तथा आकर्षण के नियम में हमारी इच्छा और संकल्प-'Principle of Desire and Will" का (चाह और राह का ) पुराना सिद्धांत अंतर्निहित है। mention of desire and Will in connection with electrons, atoms, molecules—all forms of matter, आप इलेक्ट्रॉनों, परमाणुओं, अणुओं - सभी प्रकार के पदार्थों के संबंध में इच्छा और संकल्प का उल्लेख सुनकर शायद अपने कंधे उचका दें, लेकिन थोड़ा इंतजार करें और देखें कि इस विषय पर अग्रणी वैज्ञानिक अधिकारी (leading scientific authorities) क्या कहते हैं।

     दुनिया के महानतम वैज्ञानिकों में से एक-प्रोफेसर हकल (Prof. Hakel- एक जर्मन प्राणी विज्ञानी , प्रकृतिवादी , यूजीनिस्ट , दार्शनिक, चिकित्सक, प्रोफेसर) कहते हैं -The idea of chemical affinity' - "रासायनिक आत्मीयता का विचार इस तथ्य में निहित है कि विभिन्न रासायनिक तत्व अन्य तत्वों में गुणात्मक अंतर को समझते हैं - उनके संपर्क में आने पर खुशी या घृणा का अनुभव करते हैं, और इस आधार पर विशिष्ट गतिविधियां (specific movements ) करते हैं।"

      लेकिन आप पूछ सकते हैं कि इन सबका  'Secret of Success ' से क्या संबंध है? सीधे शब्दों में कहें तो आकर्षण का नियम ही वास्तव में 'सफलता के रहस्य' का (Law of Success का)  एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह हमारी प्रबल ज्वलंत इच्छा, मांग और संकल्प के अनुसार वस्तुओं, व्यक्तियों और परिस्थितियों को हमारे पास लाता है, ठीक उसी तरह जैसे यह पदार्थ के परमाणुओं और अन्य कणों को एक साथ लाता है। अपने आप को जीवित इच्छा का एक अणु (an atom of Living Desire) बना लें और आप अपनी इच्छा की पूर्ति के अनुरूप व्यक्ति (Bh-Taleja), वस्तुओं और परिस्थितियों को अपनी ओर आकर्षित करेंगे। आप उन लोगों के साथ भी तालमेल बिठाएंगे जो समान विचारधारा के साथ काम कर रहे हैं, और आप उनकी ओर आकर्षित होंगे और वे आपकी ओर, और आप उन व्यक्तियों, चीजों और वातावरणों के साथ संबंधों में आएंगे जो आपकी इच्छाओं की समस्या का समाधान कर सकते हैं - you will get “next to” the right persons and things—all by the operation of this great natural Law of Attraction. आप सही व्यक्तियों और चीजों के "निकट" पहुंचेंगे - यह सब आकर्षण के इस महान प्राकृतिक नियम के संचालन द्वारा होगा। इसमें कोई No 'Necromancy or Magic ' भूतविद्या या जादू-टोना नहीं है - कुछ भी अलौकिक या रहस्यमय नहीं है - केवल एक operations of a great Natural Lawमहान प्राकृतिक कानून का संचालन है।

     संगठन की अनिवार्यता चाहे आप कितने भी मजबूत और सक्षम क्यों न हों, आप जीवन में अकेले, बहुत कम कर सकते हैं। Life is a complex thing,-जीवन एक जटिल/घुमावदार - कुत्ते की टेढ़ी पूँछ - जैसी? चीज है, individuals are interdependent upon each other for the doings of things 'और व्यक्ति चीजों को करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। एक व्यक्ति, अन्य सभी व्यक्तियों से अलग होकर, बाह्य गतिविधि के संबंध में बहुत कम या कुछ भी नहीं कर सकता। One Individual, segregated from all the other Individuals, could accomplish little or nothing along the lines of outer activity.उसे दूसरों के साथ, तथा वातावरण और वस्तुओं के अनुसार संयोजन (combinations), व्यवस्था (arrangements), सामंजस्य (harmonies) और समझौते(agreements)  बनाने होंगे, अर्थात्  must create and use the proper environments and things उसे उचित वातावरण और वस्तुओं का सृजन और उपयोग करना होगा, तथा दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करना होगा जिनके साथ उसे संयोजन बनाना होगा, in order to do things.- ताकि वह कार्य कर सके- लक्ष्य तक पहुँच सके। और ये व्यक्ति (Sud-Bh), वस्तुएँ और वातावरण उसके पास आते हैं -by reason of this great Law of Attraction.  और वह उनके पास आता है - आकर्षण के इस महान नियम के कारण। और जिस तरह से वह आकर्षण के इस महान नियम को क्रियान्वित करता है वह-his Desire, and along the lines of Mental Imagery. उसकी इच्छा के संचालन और मानसिक कल्पना की तर्ज पर होता है। क्या अब आपको यह संबंध समझ में आता है?इसलिए-So be careful to form, cultivate and manifest the right Desires— सही इच्छाओं की खेती करने-विवेकी इच्छाओं का बीज बोन, विकसित करने और प्रकट करने में सावधान रहें - उन्हें दृढ़ता से, मजबूती से और लगातार पकड़ें, और आप इस महान कानून को कार्यान्वित करेंगे, जो सफलता के रहस्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

     इच्छा-शक्ति (Desire‑Forceis the motive power leading the activities of Life. वह अंतर्निहित शक्ति (ब्रह्मत्व) जो जीवन के रूप व्यक्त होना चाहती है - इच्छाशक्ति उन्हीं गतिविधियों को  नेतृत्व करने वाली प्रेरक शक्ति है। यह मूलभूत महत्वपूर्ण शक्ति (basic vital power)है, Desire‑Force animates the minds of living things- इच्छाशक्ति ही जीवित प्राणियों के मन को सजीव करती है और उन्हें कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। प्रबल इच्छा के बिना कोई भी व्यक्ति नाम के योग्य कार्य नहीं कर सकता - और greater the desire the greater will be the amount of energy generated and manifested, बाकी सब समान होने पर भी जितनी प्रबल इच्छाशक्ति या ज्वलंत इच्छा होगी, उतनी ही अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होगी और अभिव्यक्त होगी

     कहने का तात्पर्य यह है कि, यदि एक दर्जन व्यक्ति समान बुद्धि, शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक क्रियाशीलता वाले हों - equal in everything else except Desire, जो इच्छा को छोड़कर अन्य सभी बातों में समान हों, संक्षेप में, one in whom Desire burns like an unquenchable flame will be the one who will Master the others जिनमें सबसे बड़ी इच्छा निवास करती है और अभिव्यक्त होती है, वे प्राप्ति में दूसरों से आगे निकल जाएंगे - और इन विजेताओं में से वह व्यक्ति जिसके भीतर इच्छा एक अमिट ज्वाला की तरह जलती है, वही अपनी आदिम मौलिक शक्ति (primitive elementary power). के बल पर दूसरों पर प्रभुत्व स्थापित कर लेगा।

     --इच्छा (Desire- तीनों ऐषणा ?न केवल मनुष्य को वह आंतरिक प्रेरणा (inward motive ) देती है जो उसके भीतर की शक्ति को प्रकट करने की ओर (दिव्यता को या पशुता को भी ? unfoldment अभिव्यक्त) ले जाती है, बल्कि यह इससे भी अधिक करती है। यह उससे उसकी प्रकृति की सूक्ष्मतर तथा अधिक सूक्ष्म मानसिक और प्राणिक शक्तियों को विकीर्णित-(radiate) करता है, जो चुम्बक से चुम्बकीय तरंगों (magnetic waves) या डायनमो (dynamo) से विद्युत तरंगों ( electric waves) की भाँति सभी दिशाओं में प्रवाहित होकर, बल क्षेत्र (field of force) में आने वाले सभी लोगों को प्रभावित करती हैं। 

      इच्छा-शक्ति (Desire‑Force) प्रकृति की एक वास्तविक, सक्रिय, प्रभावी शक्ति है, और यह इच्छा की प्रकृति के अनुरूप चीजों को आकर्षित करने, खींचने और केन्द्र की ओर लाने का कार्य करती है।  Law of Attraction' -आकर्षण के नियम के बारे में बहुत चर्चा होती है, जिसके बारे में मानसिक विज्ञान (Mental Science)  और नए विचारों (New Thought) में बहुत कुछ सुना जाता है, यह काफी हद तक इच्छा की शक्ति और ताकत पर निर्भर करता है।इच्छा-शक्ति आकर्षण के नियम के केंद्र में है। (Desire‑Force is at the center of the Law of Attraction.) प्रकृति में एक प्रवृत्ति होती है कि वह इच्छा के केन्द्र की ओर उन चीजों को आकर्षित करती है, जो उस इच्छा को पूरा करने के लिए आवश्यक होती हैं।

      One’s “own will come to him” - व्यक्ति की “अपनी इच्छा उसके पास आती है” उसकी प्राकृतिक शक्ति के कारण, जो मानसिक प्रभाव की संपूर्ण घटना के पीछे और नीचे स्थित है।ऐसा होने पर, क्या यह तुरन्त स्पष्ट नहीं हो जाता कि जो कोई भी चीज पूरी करना चाहता है, उसे उसके लिए एक प्रबल इच्छा अवश्य उत्पन्न करनी चाहिए, और साथ ही साथ कल्पना की कला भी अवश्य प्राप्त करनी चाहिए, ताकि इच्छित वस्तु का एक स्पष्ट मानसिक चित्र बनाया जा सके - एक स्पष्ट साँचा जिसमें भौतिक वास्तविकता अभिव्यक्त हो सके?

       क्या आप कभी आधुनिक व्यावसायिक जीवन के किसी महान व्यक्ति के संपर्क में आये हैं?यदि आपने इन लोगों को कार्य करते हुए देखा है, तो आप उनके बारे में एक सूक्ष्म, रहस्यमय चीज़ के प्रति सचेत हो गए होंगे - एक ऐसी चीज़ जिसे आप वास्तव में महसूस कर सकते हैं - एक ऐसी चीज़ जो आपको एक अदम्य शक्ति द्वारा उनकी योजनाओं, विमानों और इच्छाओं में फिट होने के लिए आकर्षित करती है।ये सभी लोग सबसे प्रबल इच्छा वाले लोग हैं -  their Desire–Force manifests strongly and affects those with whom they come in contact. उनकी इच्छा-शक्ति प्रबल रूप से प्रकट होती है तथा जिनके संपर्क में आती है, उन्हें प्रभावित करती है। इतना ही नहीं, बल्कि उनकी इच्छा-शक्ति  (Desire‑Force)  उनसे बड़ी लहरों के रूप में प्रवाहित होती है, जिसके बारे में तांत्रिकों (occultists) का कहना है कि यह शीघ्र ही एक गोलाकार या भँवर जैसी गति ( whirlpool‑like motion)  में प्रकट होती है, जो इच्छा के केंद्र के चारों ओर घूमती है - ये लोग वास्तव में इच्छा के चक्रवात (cyclones of Desire) बन जाते हैं, जिसके प्रभाव में आने वाली लगभग हर चीज़ प्रभावित होती है और भंवर (vortex) में बह जाती है। क्या हमें सभी महान मानव नेताओं के मामलों में इसका प्रमाण नहीं मिलता - क्या हम आकर्षण के उस शक्तिशाली नियम के क्रियान्वयन को नहीं देख सकते जो उन्हें उनके अपने पास लाता है? हम इसे इच्छा शक्ति (Will Power) कहने के लिए प्रवृत्त हैं, और एक तरह से यह सच भी है, ऐसे मामलों में इच्छा के पीछे और नीचे प्रबल (ardent), ज्वलन्त इच्छा ( burning Desire) पायी जाती है जो the motive force of the attractive power.कर्षक शक्ति की प्रेरक शक्ति होती है।

   a primitive, elemental -This Desire‑Force (तीनों ऐषणाएँ ?) यह इच्छा-शक्ति ही आद्या शक्ति हैं- वस्तु है![ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति से पूर्व घोर अंधकार से उत्पन्न होने वाली महा शक्ति या कहे तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाली शक्ति, 'आद्या या आदि शक्ति' के नाम से जानी जाती हैं। अंधकार से जन्मा होने के कारण वह 'काली' नाम से विख्यात हैं।]  यह आदिम/आद्या शक्ति -संभवतः उच्च जातियों के मनुष्यों की अपेक्षा अधिक स्पष्ट रूप से पशु जगत में तथा मनुष्यों की निम्न जातियों में (तांत्रिक पंचमुण्डी आसन में जिनकी मुण्डी का प्रयोग होता है -चतुष्पद-निष्पद-चतुष्कर- द्विपद तेली जाती की खोपड़ी) पाया जाता है, वह भी केवल इसलिए कि ऐसे उदाहरणों में (पंचमुंडी उदाहरण) इसे आवरण, आवरण, छद्मवेश और मुखौटे से मुक्त देखा जाता है जो जीवन के अधिक सभ्य रूपों और स्तरों को घेरे रहते हैं। लेकिन यह अच्छी तरह याद रखें, सभ्य जीवन के चमकदार आवरण के नीचे भी यही सिद्धांत प्रकट होता है - पुरुषों के सुसंस्कृत नेता की इच्छा शक्ति the Desire‑Force of the cultured leader of men - (CINC नवनीदा की इच्छाशक्ति) भी उतनी ही मौलिक होती है जितनी कि क्रूर और झबरा गुफावासी या जंगली बर्सकर में होती है, जो नग्न और अर्ध-पागल होता है। अपने शत्रुओं की विशाल भीड़ पर आक्रमण किया, तथा उन्हें मक्खियों की तरह एक ओर धकेल दिया - ऐसा तब है, जब आप पॉलिश की गई सतह के नीचे देखेंगे। पुराने उग्र दिनों में इच्छा अपनी शक्ति को भौतिक धरातल पर - देह के स्तर पर अभिव्यक्त करती थी - अब यह मानसिक धरातल पर अभिव्यक्त होती है - बस यही अंतर है, दोनों ही मामलों में शक्ति एक ही है।

      जब हम लिख रहे थे, तब मंच पर एक नया नाटक प्रस्तुत किया गया जो इस सिद्धांत को दर्शाता है। उस नाटक की नायिका, उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा और धन वाले एक पुराने न्यूयॉर्क परिवार की बेटी है, जो- dream of her life in a former incarnation अपने पूर्व जन्म के जीवन का सपना देखती है। जिसमें वह एक क्रूर बर्बर सरदार की शक्तिशाली भुजाओं द्वारा अपने गुफावासी पिता की बाहों से खुद को छीने जाती हुये देखती है, जिसकी इच्छा भौतिक रूप से प्रकट होती है। वह अपने सपने से जागती है, और उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य होता है कि उसके सपनों के अपहरणकर्ता का चेहरा एक ऐसे व्यक्ति पर दिखाई देता है जो न्यूयॉर्क में उसके पिता के जीवन में आता है। यह आदमी पश्चिम से आता है, बलशाली, साधन संपन्न और इच्छाशील, beating down all before him in the game of finance. - वित्त-ऐषणा को पूरा करने के खेल में अपने सामने सभी को परास्त करता हैपहले की तरह, वह अपने शत्रुओं की गर्दन पर अपना पैर रखता है - लेकिन इस बार, भौतिक के बजाय, मानसिक स्तर पर। उसके भीतर सत्ता की वही पुरानी ज्वलंत इच्छा या प्रबल इच्छाहै - और वही पुरानी प्रभुता (masterfulness manifests itselfप्रकट होती है। यह आदमी गर्व से सीना तान काट कहता है: “I have never quit; I have never been afraid.” “मैंने कभी हार नहीं मानी; मैं कभी डरा नहीं।” 

वही पुरानी इच्छा जो उस समय जंगली लोगों में भड़की थी, अब वॉल स्ट्रीट के स्वामी में प्रकट होती है, और उसके आकर्षण बल तथा उसकी इच्छा शक्ति के संयुक्त और संबद्ध बल के बीच, वह अपने पिछले अवतार के प्रदर्शनों को दोहराता है - लेकिन इस बार मानसिक शक्तियों और उपलब्धियों के धरातल पर -this time—mind, not muscle, being the instrument through which the Desire manifests. मन, न कि मांसपेशी, वह साधन है जिसके माध्यम से इच्छा प्रकट होती है। 

      हम उपरोक्त उदाहरण केवल इस तथ्य के उदाहरण के रूप में दे रहे हैं कि -Desire- इच्छा (ऐषणा) वह प्रेरक शक्ति है जो इच्छाशक्ति को क्रियाशील  Will into action,बनाती है, तथा and which causes the varied activity of life, men and things. जो जीवन, मनुष्य और वस्तुओं की विविध गतिविधियों का कारण बनती है। इच्छा-शक्ति (Desire‑Force या ऐषणा)  जीवन में एक वास्तविक शक्ति है और यह न केवल स्वयं की शक्तियों और उपलब्धियों को प्रभावित करती है, बल्कि अन्य व्यक्तियों और चीजों को भी अपनी ओर आकर्षित करती है, प्रभावित करती है और इच्छा के केंद्र की ओर धाराएं भेजकर उन्हें झुकने के लिए बाध्य करती है। 

         जीवन के खेल में सफलता के रहस्य में इच्छा (ऐषणा) एक प्रमुख भूमिका निभाती है।In the Secret of Success, Desire plays a prominent partसफलता की इच्छा के बिना, कोई सफलता नहीं है, कोई भी नहीं। आकर्षण का नियम भी इच्छा (ऐषणा) के द्वारा ही क्रियान्वित होता है।इस पुस्तक में बताए गए अधिकांश सिद्धांत सकारात्मक आदेशों की तरह हैं - अर्थात, आपको कुछ निश्चित कार्य करने के लिए कहा गया है, न कि विपरीत कार्य न करने के लिए कहा गया है। लेकिन यहाँ हम एक ऐसे स्थान पर पहुँचे हैं जहाँ सलाह नकारात्मक दिशा में दी जानी चाहिए - हमें आपसे आग्रह करना चाहिए कि आप एक निश्चित काम न करें।

      मृत्यु का भय : हम मन और इच्छा के उस महान विष की ओर संकेत करते हैं जिसे भय के नाम से जाना जाता है। We allude to that great poison of the mind and Will known as Fear.हम शारीरिक भय की ओर संकेत नहीं कर रहे हैं - यद्यपि शारीरिक साहस महत्वपूर्ण हो सकता है, तथा शारीरिक कायरता को खेदजनक माना जा सकता है, फिर भी इस पुस्तक का उद्देश्य शारीरिक कायरता के विरुद्ध उपदेश देना तथा शारीरिक कायरता के गुण को विकसित करने की सलाह देना नहीं है - आप इस बारे में अन्यत्र बहुत कुछ पाएंगे। यहां हमारा उद्देश्य सच्ची आत्म-अभिव्यक्ति के उस सूक्ष्म, कपटी शत्रु से मुकाबला करना है जो मानसिक भय, पूर्वाभासों के रूप और वेश में  (guise of mental fear, forebodings)  प्रकट होता है, जिसे नकारात्मक विचार माना जा सकता है, ठीक उसी तरह जैसे इस कार्य में वर्णित अन्य सिद्धांतों को सकारात्मक विचार माना जा सकता है।

       भय का विचार मन की वह स्थिति है जिसमें सब कुछ नीले चश्मे से देखा जाता है - जिसमें सब कुछ प्रयास की निरर्थकता का बोध कराता है - “I Can’t” principle of mentality  "मैं नहीं कर सकता" की मानसिकता के सिद्धांत बदले “I Can and I Will” "मैं कर सकता हूं और मैं करूंगा" का मानसिक दृष्टिकोण है। यह भय वाली मानसिकता मानसिक उद्यान में हानिकारक खरपतवार है, जो उसमें पाए जाने वाले मूल्यवान पौधों को नष्ट कर देता है।जहां तक ​​हम जानते हैं, "फियरथॉट" शब्द का प्रयोग करने वाले पहले व्यक्ति - जो अब आम उपयोग में आ गया है - प्रसिद्ध लेखक होरेस फ्लेचर थे, जिन्होंने एक निश्चित अर्थ में "चिंता" शब्द के प्रयोग को प्रतिस्थापित करने के लिए इसे गढ़ा था। उन्होंने बताया था कि क्रोध और चिंता एक संतुलित, उन्नत और प्रगतिशील मानसिकता के लिए दो बड़ी बाधाएं हैं, लेकिन कई लोगों ने उनकी बात को गलत समझा और कहा कि चिंता को खत्म करने का मतलब है कल के बारे में सोचना बंद करना - सामान्य विवेक और दूरदर्शिता का अभाव। और इसलिए फ्लेचर ने "चिंता रहित पूर्वविचार" के अपने विचार के एक चरण को व्यक्त करने के लिए "फियरथॉट" शब्द गढ़ा, और उन्होंने इस विषय पर अपनी दूसरी पुस्तक का शीर्षक रखा, "प्रसंग रहित फियरथॉट में पाया जाने वाला सुख", जो एक बहुत ही सुखद विचार की बहुत ही सुखद अभिव्यक्ति है। फ्लेचर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यह विचार प्रस्तुत किया कि भय अपने आप में कोई वस्तु नहीं है, बल्कि यह केवल विचार की अभिव्यक्ति है - मन की उस स्थिति की अभिव्यक्ति जिसे भय-विचार के रूप में जाना जाता है।

      उन्होंने और इस विषय पर लिखने वाले अन्य लोगों ने सिखाया है कि मन से भय के विचार को समाप्त करने के अभ्यास से भय को समाप्त किया जा सकता है - इसे मानसिक कक्ष से बाहर निकाल कर - और सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों ने सिखाया है कि भय (या किसी अन्य अवांछनीय मानसिक स्थिति) को बाहर निकालने का सबसे अच्छा तरीका है मन को वांछित गुणवत्ता के मानसिक चित्र पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर करके और by the appropriate auto‑ suggestions. उचित आत्म-सुझावों द्वारा मन की विपरीत गुणवत्ता के विचार को विकसित करना। यह उदाहरण अक्सर कहा जाता है कि किसी कमरे से अंधकार को भगाने का तरीका उसे फावड़े से बाहर निकालना नहीं है, बल्कि शटर खोलकर सूर्य की रोशनी को अंदर आने देना है, और यह भय-विचार को बेअसर करने का सबसे अच्छा तरीका है।

      मानसिक प्रक्रिया को सटीक रूप से “कंपन” - “vibrations,” कहा गया है, एक ऐसा शब्द जिसे आधुनिक विज्ञान में पूर्ण समर्थन प्राप्त है। फिर, कंपन को सकारात्मक स्तर तक बढ़ाकर, नकारात्मक कंपनों का प्रतिकार किया जा सकता है। इस पुस्तक के अन्य पाठों में सुझाए गए गुणों को विकसित करके,Fear Thought' को  भय के विचार को निष्प्रभावी किया जा सकता है। भय के विचार का विष कपटी और सूक्ष्म होता है, लेकिन यह धीरे-धीरे नसों में प्रवेश करता है, जब तक कि यह सभी उपयोगी प्रयासों और क्रियाओं को पंगु नहीं कर देता, जब तक कि हृदय और मस्तिष्क प्रभावित नहीं हो जाते और इसे बाहर निकालना कठिन नहीं हो जाता।भय का विचार जीवन में अधिकांश असफलताओं और “नीचे गिरने” का मूल कारण है। जब तक मनुष्य अपने आप में धैर्य और आत्मविश्वास बनाए रखता है, वह प्रत्येक ठोकर के बाद अपने पैरों पर खड़ा होने में सक्षम होता है, और शत्रु का दृढ़ता से सामना करता है - लेकिन उसे भय के प्रभाव को इस सीमा तक महसूस करने दें कि वह इसे दूर नहीं कर सकता और वह उठने में असफल हो जाएगा और दुखी होकर नष्ट हो जाएगा। यह ठीक ही कहा गया है - "डर के अलावा डरने की कोई बात नहीं है !" 

      हमने आकर्षण के नियम के बारे में अन्यत्र बात की है, जो हमारी इच्छा को अपनी ओर आकर्षित करने की दिशा में कार्य करता है। लेकिन इसका एक विपरीत पहलू भी है - यह एक खराब नियम है जो दोनों तरफ से काम नहीं करेगा। भय भी आकर्षण के नियम को उसी तरह क्रियान्वित करेगा जैसे इच्छा। जिस तरह इच्छा किसी व्यक्ति को उसके मन में इच्छित चीज़ के रूप में चित्रित की गई चीज़ों की ओर खींचती है, उसी तरह भय भी उसके मन में भयभीत चीज़ के रूप में चित्रित की गई चीज़ों को अपनी ओर खींचेगा। कहावत है - “जिस बात का मुझे डर था वही मुझ पर आ पड़ी।” “The thing that I feared hath befallen me.” और इसका कारण बहुत सरल है, और जब हम मामले की जांच करते हैं तो स्पष्ट विरोधाभास गायब हो जाता है।वह कौन सा पैटर्न है जिस पर आकर्षण का नियम इच्छा के बल पर निर्माण करता है?मानसिक छवि, बेशक। और ऐसा ही डर के मामले में भी होता है - व्यक्ति डरी हुई चीज़ की मानसिक छवि या भयावह तस्वीर लेकर चलता है, और आकर्षण का नियम उसे उसके पास वैसे ही लाता है जैसे वह इच्छित चीज़ को लाता है।क्या आपने कभी सोचा है कि डर इच्छा का नकारात्मक ध्रुव है? दोनों मामलों में एक ही नियम काम करता है।

      इसलिए भय के विचार से बचें, जैसे आप जहरीली हवा से बचते हैं, जिसके बारे में आप जानते हैं कि इससे आपका खून काला और गाढ़ा हो जाएगा, और आपकी सांस फूलने लगेगी और आपको मुश्किल होगी। यह एक घिनौनी चीज़ है, और जब तक आप इसे अपने मानसिक तंत्र से निकाल नहीं देते, तब तक आपको संतुष्ट नहीं होना चाहिए। आप इच्छा और दृढ़ संकल्प के साथ-साथ निर्भयता की मानसिक छवि को धारण करके इससे छुटकारा पा सकते हैं।इसके विपरीत को विकसित करके इसे आगे बढ़ाएँ। अपनी ध्रुवता बदलें। अपने मानसिक कंपन को बढ़ाएँ।किसी ने कहा है, “डर के अलावा कोई शैतान नहीं है” - तो उस शैतान को उस जगह वापस भेज दो जहाँ उसका असली स्थान है, क्योंकि अगर तुम उसका आतिथ्य सत्कार करोगे तो वह तुम्हारे साथ रहेगा। 

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पाठ  VIII.

व्यक्तिगत चुंबकत्व.

Personal Magnetism.

[व्यक्तिगत चुंबकत्व। व्यक्तिगत चुंबकत्व का औचित्य। यह क्या है और यह क्या करता है। यह दूसरों को कैसे प्रभावित करता है ? कुछ लोगों द्वारा प्रकट किया गया चुंबकीय आकर्षण।

Personal Magnetism. The Rationale of Personal Magnetism. What it is and what it does. How it affects others. The magnetic attraction manifested by certain people.] 

इन दिनों हम व्यक्तिगत चुम्बकत्व के बारे में बहुत कुछ सुनते हैं। यह व्यक्ति की मानसिक सत्ता का एक विशिष्ट गुण है जो अन्य व्यक्तियों को चुंबकीय व्यक्ति के समान मनःस्थिति या मनोदशा में लाने का काम करता है। कुछ लोगों में यह गुण अद्भुत सीमा तक विकसित होता है, और वे थोड़े समय में ही दूसरे व्यक्तियों के साथ सामंजस्यपूर्ण समझौता कराने में सक्षम होते हैं, जबकि अन्य लोगों में यह गुण लगभग पूरी तरह से अभावग्रस्त होता है और उनकी उपस्थिति मात्र से ही दूसरों के मन में विरोध उत्पन्न हो जाता है।अधिकांश लोग व्यक्तिगत चुम्बकत्व के विचार को बिना किसी प्रश्न के स्वीकार करते हैं, लेकिन बहुत कम लोग इसके लिए किसी सिद्धांत पर सहमत होंगे। जिन लोगों ने इस मामले का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया है, वे जानते हैं कि यह पूरी बात व्यक्ति की मानसिक अवस्थाओं पर, तथा दूसरों को अपने मानसिक स्पंदनों को “पकड़ने” में लाने की उसकी क्षमता पर निर्भर करती है। यह “पकड़” मानसिक प्रेरण के रूप में जानी जाने वाली क्रिया के कारण होती है।

प्रेरण (Induction-समावेशन) क्या है आप जानते हैं, "वह गुण या गुणवत्ता, या प्रक्रिया है जिसके द्वारा विद्युत या चुंबकीय ध्रुवता वाला एक शरीर सीधे संपर्क के बिना दूसरे में इसे उत्पन्न करता है।" और मानसिक प्रेरण ( Mental Induction ) मानसिक तल पर इसी प्रकार की घटनाओं की अभिव्यक्ति-प्रकटीकरण है। लोगों की मानसिक स्थितियाँ “संक्रामक” - “catching” या “संक्रामक-contagious” होती हैं, और यदि कोई अपनी मानसिक स्थितियों में पर्याप्त जीवन और उत्साह भरता है, तो वे उन लोगों के मन को प्रभावित करेंगे जिनके साथ वे संपर्क में आते हैं।हमने इस विषय को इस शृंखला की छोटी पुस्तक, जिसका शीर्षक है, “मानसिक प्रभाव”“Mental Influence.” में विस्तार से समझाया है।

      हमें ऐसा लगता है कि सफल मानसिक प्रेरण-Mental Induction, manifestations of Personal Magnetism, is Enthusiasm. या व्यक्तिगत चुम्बकत्व की अभिव्यक्ति में मुख्य कारक उत्साह है। इस पुस्तक के दूसरे पाठ में हमने आपको उत्साह के बारे में बताया है, और जब आप व्यक्तिगत चुंबकत्व के बारे में सोचते हैं, तो आपके लिए यह अच्छा होगा कि आप उत्साह के बारे में जो हमने कहा है उसे भी पढ़ें। उत्साह व्यक्ति को गंभीरता प्रदान करता है, और गंभीरता (Earnestness-ईमानदारी )से अधिक प्रभावी कोई मानसिक स्थिति नहीं है। ईमानदारी स्वयं को दृढ़ता से महसूस कराती है, और अक्सर व्यक्ति को स्वयं के बावजूद भी आप पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करती है। सेल्समैनशिप विषय पर जाने-माने लेखक वाल्टर डी. मूडी सच कहते हैं, "यह पाया जाएगा कि व्यक्तिगत चुंबकत्व से युक्त सभी लोग बहुत गंभीर होते हैं। उनकी गहन ईमानदारी आकर्षक है।”और इस विषय के लगभग हर छात्र ने इस तथ्य पर ध्यान दिया है।लेकिन ईमानदारी, दूसरे व्यक्ति के ध्यान में प्रस्तुत की जा रही बात में दृढ़, आत्मविश्वासी, ईमानदार विश्वास से कहीं अधिक होनी चाहिए। यह एक जीवंत, संक्रामक ईमानदारी होनी चाहिए, जिसे सबसे अच्छे ढंग से उत्साह के रूप में वर्णित किया जा सकता है उत्साही ईमानदारी-Enthusiastic Earnestness' यही शब्द है।

     इस उत्साही ईमानदारी में बहुत अधिक भावना है - यह मानव स्वभाव के भावनात्मक पक्ष को आकर्षित करती है, न कि चिंतन-तर्क पक्ष को। तथा फिर भी, तर्क पर आधारित और तार्किक सिद्धांतों पर आधारित तर्क, उत्साहपूर्ण ईमानदारी के साथ कहीं अधिक प्रभाव के साथ प्रस्तुत किया जा सकता है, बजाय इसके कि तर्क को ठंडे, भावशून्य तरीके से प्रस्तुत किया जाए।औसत व्यक्ति मानसिक रूप से इतना गठित होता है कि वह व्यक्तिगत चुंबकत्व की अवधि के तहत जीवंत, उत्साही "भावना" की अभिव्यक्ति के तहत पिघल जाता है।मानसिकता का “भावना” पक्ष “सोच” पक्ष जितना ही महत्वपूर्ण है - और यह कहीं अधिक सामान्य और सार्वभौमिक है, क्योंकि अधिकांश लोग वास्तव में बहुत कम सोचते हैं, जबकि हर कोई “महसूस” करता है।

    पिछली सदी के "सत्तर के दशक की शुरुआत" में एक लेखक ने कहा: "हम सभी एक क्षेत्र, आभा या प्रभामंडल उत्सर्जित करते हैं, जो हमारे सार से भरपूर होता है; संवेदनशील लोग इसे जानते हैं; हमारे कुत्ते और अन्य पालतू जानवर भी ऐसा ही करते हैं; भूखा शेर या बाघ भी ऐसा ही करता है; हाँ, मक्खियाँ, साँप और कीड़े भी, जैसा कि हम अपनी कीमत पर जानते हैं। हममें से कुछ लोग चुंबकीय होते हैं - दूसरे नहीं। Some of us are magnetic—others are not हममें से कुछ लोग गर्म, आकर्षक, प्रेम प्रेरित करने वाले और मित्रतापूर्ण होते हैं, जबकि अन्य ठंडे, बौद्धिक, विचारशील और तर्कशील होते हैं, लेकिन चुंबकीय नहीं होते।

     यदि बाद वाले प्रकार का कोई विद्वान व्यक्ति किसी श्रोता को संबोधित करे, तो वह शीघ्र ही अपने बौद्धिक प्रवचन से ऊब जाएगा, तथा उसमें उनींदापन के लक्षण प्रकट हो जाएंगे।वह उनसे बात करता है, लेकिन उनके अंदर नहीं - वह उन्हें सोचने पर मजबूर करता है, महसूस करने पर नहीं, जो कि अधिकांश लोगों के लिए सबसे अधिक थकाऊ है, और बहुत कम वक्ता सफल होते हैं जो लोगों को केवल सोचने पर मजबूर करने का प्रयास करते हैं - वे चाहते हैं कि उन्हें महसूस कराया जाए।लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करने या हंसने के लिए उदारतापूर्वक भुगतान करेंगे, जबकि वे ऐसी शिक्षा या बातचीत के लिए एक पैसा भी देने से कतराएँगे जो उन्हें सोचने पर मजबूर कर दे। ऊपर वर्णित प्रकार के विद्वान व्यक्ति के विरुद्ध यदि कोई अर्धशिक्षित, किन्तु अत्यन्त प्रेममय, परिपक्व तथा मृदुभाषी व्यक्ति खड़ा हो, जिसमें प्रथम व्यक्ति के तर्क तथा पाण्डित्य का मात्र नौ-दसवाँ भाग ही हो, तो भी ऐसा व्यक्ति अपने समूह को पूर्ण सहजता से साथ लेकर चलता है, तथा प्रत्येक व्यक्ति पूर्णतः सजग रहता है, तथा उसके मुख से निकली प्रत्येक अच्छी बात को संजोकर रखता है। कारण स्पष्ट और स्पष्ट हैं।-It is heart against head; soul against logic; and is bound to win every time.” यह दिल बनाम दिमाग है; आत्मा बनाम तर्क; और हर बार जीतना तय है।”

       यदि आप उन पुरुषों और महिलाओं पर ध्यान देंगे जिन्हें सबसे अधिक“magnetic” या  "चुंबकीय" माना जाता है, तो आप पाएंगे कि लगभग हमेशा वे ऐसे लोग होते हैं जिनके पास वह होता है जिसे "आत्मा"  “soul” कहा जाता है - अर्थात, manifest and induce “feeling,” or emotion.वे "भावना" या भावना को प्रकट और प्रेरित करते हैं। वे चरित्र और स्वभाव के ऐसे लक्षण प्रकट करते हैं जो अभिनेताओं और अभिनेत्रियों द्वारा प्रकट किए जाते हैं।वे अपना एक हिस्सा बाहर फेंक देते हैं, जो उनके संपर्क में आने वालों को प्रभावित करता है। किसी गैर-चुंबकीय अभिनेता पर ध्यान दीजिए, और आप देखेंगे कि भले ही वह अपने किरदार में पूरी तरह से निपुण हो, और उसने अपनी कला के उचित तौर-तरीके, हाव-भाव और अन्य तकनीकी भागों को सीख लिया हो, फिर भी उसमें एक “खास चीज” की कमी है, और वह चीज “भावना” को व्यक्त करने की क्षमता के रूप में देखी जा सकती है।

      ” अब, जो लोग इस रहस्य को जानते हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि कई सफल अभिनेता, जो मंच पर जुनून, भावना और भावुकता से जलते हुए प्रतीत होते हैं, वास्तव में अभिनय करते समय इन गुणों को बहुत कम महसूस करते हैं - वे फोनोग्राफ की तरह होते हैं, जो उन ध्वनियों को उत्सर्जित करते हैं जो उनमें दर्ज की गई हैं। लेकिन यदि आप और भी अधिक जांच करेंगे, तो आप देखेंगे कि अपने भागों का अध्ययन करने और निजी तौर पर उसी का अभ्यास करने में, ये लोग एक उत्तेजित भावना को प्रेरित करते थे, जैसे कि जिस भाग की आवश्यकता थी, और उसे अपने मन में दृढ़ता से रखते थे, उसके साथ उपयुक्त हाव-भाव आदि करते थे, जब तक कि वह दृढ़ता से "स्थापित" न हो जाए - मानसिकता की पट्टियों पर अंकित हो जाए, जैसे कि फोनोग्राफ का रिकार्ड मोम पर अंकित होता है।फिर, जब बाद में उन्होंने भूमिका निभाई, तो भावनाओं की बाहरी झलक, गति, हाव-भाव, जोर आदि के साथ, खुद को पुनरुत्पादित किया और दर्शकों को प्रभावित किया।ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई अभिनेता अपने किरदार में इतना डूब जाता है कि उसे उसी तरह की भावनाएँ आती हैं, तो परिणाम अच्छा नहीं होगा, क्योंकि वह भावना से अभिभूत हो जाता है और इसका प्रभाव उसके दर्शकों पर पड़ने के बजाय उस पर ही पड़ता है।ऐसा कहा जाता है कि सबसे अच्छा परिणाम तब प्राप्त होता है जब कोई व्यक्ति पहले भावना का अनुभव करता है और फिर बाद में उसे अपने ऊपर नियंत्रण करने की अनुमति दिए बिना, ऊपर बताए गए तरीके से उसकी पुनरावृत्ति करता है।

     हम उपरोक्त तथ्यों का उल्लेख उन लोगों के उपयोग के लिए कर रहे हैं जिनमें स्वाभाविक रूप से व्यक्तिगत चुम्बकत्व की योग्यता या गुण अपेक्षित स्तर तक नहीं होता।ऐसे लोगों को निजी तौर पर उत्साही ईमानदारी की वांछित भावना को विकसित करने का प्रयास करना फायदेमंद लगेगा, बार-बार निजी अभ्यास और अभ्यास द्वारा मानसिक छाप को मजबूत करना, जब तक कि यह उनके "आदतन मन" में दर्ज न हो जाए, ताकि जरूरत पड़ने पर इसे दोहराया जा सके। एक अच्छा अभिनेता बनो - ऐसी स्थिति में यही सलाह दी जाती है; और यह याद रखो कि लगातार अभ्यास और निजी रिहर्सल ही एक अच्छा अभिनेता बनाता है। इस तरह से भावना और उत्साह पैदा करने में सक्षम होना, इसकी कमी होने की तुलना में कहीं बेहतर बात है-एक ओर तो यह कहना गलत होगा; या दूसरी ओर यह कहना गलत होगा कि आप भावनात्मक रूप से नशे में हैं।

        कोई व्यक्ति बिना किसी “गंदगी भरे” या भावुकता से भरे हुए, तर्कसंगत रूप से उत्साहपूर्वक ईमानदार हो सकता है।हमें लगता है कि सावधान विद्यार्थी यहाँ जो कहा गया है उसे ठीक से समझ लेगा और हमें गलत नहीं समझेगा।और याद रखें, कि इस बार-बार के “अभिनय” से वांछित गुण अक्सर वास्तविक और “स्वाभाविक” हो जाएगा।

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पाठ IX.

आकर्षक व्यक्तित्व।

Attractive Personality.

[आकर्षक व्यक्तित्व कैसे प्राप्त करें। व्यक्तित्व का आकर्षण। आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और महारत का गुण - यह किसी के लिए क्या करता है, और उसके व्यक्तिगत गुणों और लक्षणों को विकसित करता है जो सफलता के लिए आवश्यक हैं, और उन्हें कैसे प्राप्त करें।

How to acquire an Attractive Personality. The Charm of Personality. The quality of SelfRespect, Confidence and Mastery—What it does for one, and Develops its Personal qualities and traits that make for success, and how to acquire them.] 

हमने "व्यक्तित्व" “Individuality” पर अपने पाठ में समझाया है कि जिसे "विशेष व्यक्तित्व" “Personality” के रूप में जाना जाता है, वह  real “I” of the Individual, व्यक्ति का वास्तविक "मैं" नहीं था, बल्कि इसके बजाय यह स्वयं का "मैं" हिस्सा था - व्यक्ति का बाहरी रूप। the “Me” part of oneself—the outward appearance of the Individual. जैसा कि हमने आपको बताया है, Personality really means व्यक्तित्व शब्द का वास्तव में अर्थ है व्यक्ति का "मुखौटा" पहलू, जीवन के महान नाटक में उसकी भूमिका का बाहरी रूप। और जिस तरह अभिनेता अपना मुखौटा और पोशाक बदल सकता है, उसी तरह व्यक्ति भी अपने व्यक्तित्व को बदल सकता है, परिवर्तित कर सकता है और अपनी पसंद की अन्य विशेषताओं से प्रतिस्थापित कर सकता है। 

      लेकिन फिर भी, the Personality is not the real “I,” जबकि व्यक्तित्व वास्तविक "मैं" नहीं है, यह जीवन के नाटक में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि दर्शक, एक नियम के रूप में, मुखौटे के पीछे वास्तविक व्यक्ति की तुलना में व्यक्तित्व पर अधिक ध्यान देते हैं।इसलिए यह उचित है कि प्रत्येक व्यक्ति को एक ऐसा व्यक्तित्व विकसित करना और अर्जित करना चाहिए जो उसके दर्शकों के लिए आकर्षक साबित हो, और उसे उनके लिए स्वीकार्य बना दे। 

        नहीं, हम धोखे का प्रचार नहीं कर रहे हैं - हम व्यक्तित्व को वास्तविक आत्मा मानते हैं, और मानते हैं कि व्यक्ति को व्यक्तिगत प्रकटीकरण के नियमों के अनुसार अपने आप को सर्वोच्च और सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहिए - लेकिन, फिर भी, जब तक व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ने के लिए अपने व्यक्तित्व को धारण करना चाहिए, हम मानते हैं कि यह न केवल उसके लाभ के लिए है, बल्कि उसका कर्तव्य भी है कि वह उस व्यक्तित्व को जितना संभव हो उतना आकर्षक और मनमोहक बनाए। आप जानते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे कितना भी अच्छा, बुद्धिमान और उच्च विचारों वाला क्यों न हो, यदि वह अनाकर्षक और अप्रिय व्यक्तित्व का मुखौटा पहनता है, तो वह नुकसान में रहता है और उन लोगों को दूर भगाता है जिन्हें वह लाभ पहुंचा सकता है और जो उसके अनाकर्षक मुखौटे के पीछे देखने पर प्रसन्न होकर उससे प्रेम करेंगे।

         जब हम अनाकर्षक और आकर्षक मुखौटों की बात करते हैं तो हम किसी के व्यक्तिगत शारीरिक रूप की बात नहीं कर रहे होते हैं। जबकि कुछ मामलों में किसी व्यक्ति का शारीरिक रूप बहुत मायने रखता है, व्यक्तित्व का एक आकर्षण होता है जो उस क्षणभंगुर रूप से कहीं बढ़कर होता है।ऐसे कई लोग हैं जिनके चेहरे और आकृति सुंदर हैं, लेकिन उनका व्यक्तित्व आकर्षक नहीं है, तथा जो आकर्षित करने के बजाय पीछे हटाते हैं।और कुछ ऐसे भी हैं जिनके चेहरे साधारण हैं और जिनका रूप सुडौल से बहुत दूर है, फिर भी, उनके पास वह “आकर्षक तरीका” है जो दूसरों को उनकी ओर आकर्षित करता है। ऐसे लोग होते हैं जिन्हें देखकर हम हमेशा खुश होते हैं और जिनके व्यवहार का आकर्षण हमें यह भूला देता है कि वे सुंदर नहीं हैं, बल्कि उनके सामने आने पर उनके साधारण चेहरे भी बदल जाते हैं।व्यक्तित्व से हमारा यही अभिप्राय है, उसी तरह जिस तरह से हम अब इसका प्रयोग कर रहे हैं। इसका “व्यक्तिगत चुंबकत्व” से बहुत करीबी रिश्ता है, जिसके बारे में हमने अपने पिछले पाठ में बात की थी।

         व्यक्तित्व के आकर्षण को विकसित करने की इच्छा रखने वालों को सबसे पहले जो चीजें विकसित करनी चाहिए, उनमें से एक है प्रसन्नचित्तता का मानसिक वातावरण।एक खुशमिजाज व्यक्ति की मौजूदगी से ज्यादा उत्साहवर्धक कुछ नहीं है - उन मानव गीले कंबलों में से एक से ज्यादा निराशाजनक कुछ नहीं है जो हर किसी और हर चीज पर ठंडक डालते हैं जिसके संपर्क में आते हैं। अपने परिचितों के बारे में सोचें और आप पाएंगे कि आप स्वाभाविक रूप से उन्हें दो श्रेणियों में रखेंगे - प्रसन्नचित्त और उदास।सनी जिम को हमेशा ग्लूमी गस से बेहतर माना जाता है - एक का आप स्वागत करेंगे, और दूसरे से आप दूर भागेंगे। 

     जापानी लोग - law of Personality,व्यक्तित्व के इस नियम को समझते हैं, और पहली बात जो वे अपने बच्चों को सिखाते हैं, वह है कि वे अपना बाहरी रूप प्रसन्न और खुशनुमा बनाए रखें, चाहे उनका दिल टूट रहा हो या नहीं। उनके लिए यह सबसे बड़ा अपराध माना जाता है कि वे अपने दुख, पीड़ा और दर्द को दूसरों के सामने ले जाएं। वे अपने जीवन के उस हिस्से को अपने कमरे की गोपनीयता के लिए सुरक्षित रखते हैं - बाहरी दुनिया के लिए वे हमेशा एक खुश, धूप वाली मुस्कान पेश करते हैं। और इसमें वे बुद्धिमान हैं, कई कारणों से (1) कि वे अपने मन में अधिक उत्साहपूर्ण और सकारात्मक स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं; (2) कि वे आकर्षण के नियम द्वारा प्रसन्नचित्त व्यक्तियों और चीजों को अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं; और (3) कि वे दूसरों के सामने एक आकर्षक व्यक्तित्व प्रस्तुत कर सकते हैं, और इस तरह जीवन के काम में स्वागत योग्य और मिलनसार सहयोगी और भागीदार बन सकते हैं। रोज़मर्रा के व्यावसायिक जीवन में ग्लूमी गस जनजाति के लिए बहुत कम स्वागत या मदद मिलती है - उन्हें एक महामारी के रूप में टाला जाता है - हर किसी के पास अपनी खुद की पर्याप्त परेशानियाँ होती हैं, दूसरों की परेशानियों के अलावा। 

       पुरानी पंक्तियाँ याद रखें: 

“Laugh and the world laughs with you;

 Weep and you weep alone.

For this sad old earth is in need of mirth, 

And has troubles enough of its own.”

- “हँसो और दुनिया तुम्हारे साथ हँसेगी; रोओ और तुम अकेले रोओगे। क्योंकि इस दुखी पुरानी धरती को खुशी की ज़रूरत है, और इसके पास अपनी ही बहुत सारी परेशानियाँ हैं।”

     इसलिए ऐसी मुस्कान विकसित करें जो कभी खत्म न हो। यह व्यक्तित्व की एक मूल्यवान संपत्ति है। मूर्खतापूर्ण, मूर्खतापूर्ण मुस्कान नहीं, बल्कि वह मुस्कान जिसका कुछ मतलब होता है - असली चीज़।और ऐसी मुस्कान भीतर से आती है, और त्वचा की गहराई से कहीं ज़्यादा होती है। यदि आप एक मौखिक पैटर्न चाहते हैं जिस पर मानसिक स्थिति को मॉडल किया जा सके जो व्यक्तित्व के इस बाहरी रूप को उत्पन्न करेगा, तो यह यहाँ है: "उज्ज्वल, हंसमुख और खुश।"इसे फ्रेम करें और अपनी मेंटल आर्ट गैलरी में किसी प्रमुख स्थान पर टांग दें। इसे याद रखें और इसकी कल्पना करें, ताकि आप इसे अपने सामने एक प्रकाशित वस्तु की तरह देख सकें।इलेक्ट्रिक साइन—“उज्ज्वल, हंसमुख और खुश।”—फिर अपने मन में विचार को वास्तविकता में बदलने का प्रयास करें। इस पर विचार करें-इस पर अमल करें-और यह आपके लिए वास्तविक हो जाएगा।तो क्या आपके पास व्यक्तित्व के रूप में कुछ सार्थक होगा? यह आपको सरल और बचकाना लग सकता है - लेकिन अगर आप इसे वास्तविकता में बदल देंगे, तो यह आपके लिए हजारों डॉलर का मूल्य होगा, चाहे आप जीवन के किसी भी क्षेत्र में हों।

     Another valuable bit of Personality is that of Self Respect.व्यक्तित्व का एक और मूल्यवान हिस्सा है आत्मसम्मान। यदि आपमें वास्तविक आत्मसम्मान है तो यह आपके बाह्य आचरण और दिखावट में प्रकट होगा। यदि आपके पास यह नहीं है, तो बेहतर होगा कि आप आत्मसम्मान की भावना को विकसित करें और फिर याद रखें कि आप एक पुरुष या महिला हैं, जैसा भी मामला हो, और एक गरीब, रेंगने वाला कीड़ा नहीं जो मानव दरवाजे की चटाई की धूल पर पड़ा है। दुनिया का दृढ़ता और निडरता से सामना करो, अपनी आँखें सामने की ओर रखो। अपना सिर ऊँचा रखो! There is nothing like a stiff backbone and a raised head for meeting the world.दुनिया का सामना करने के लिए दृढ़ रीढ़ की हड्डी और ऊंचे सिर जैसा कुछ नहीं है।  ऐसा प्रतीत होता है कि सिर झुकाए हुए व्यक्ति पृथ्वी पर रहने और जीवित रहने के लिए क्षमा मांग रहा है - और संसार ऐसे लोगों को अपने ही मूल्यांकन के आधार पर स्वीकार कर लेता है।सीधा सिर व्यक्ति को सफलता के द्वार पर खड़े ड्रैगन से आगे निकलने में सक्षम बनाता है।एक लेखक इस विषय पर निम्नलिखित अच्छी सलाह देता है: "अपने कानों को सीधे अपने कंधों पर रखें, ताकि कानों से लटकी हुई एक साहुल रेखा आपके शरीर की रेखा का वर्णन करे। यह भी ध्यान रखें कि सिर को दाएं या बाएं न रखें, बल्कि सीधा रखें। कई पुरुष यह गलती करते हैं, विशेषकर जब वे ग्राहक द्वारा कोई महत्वपूर्ण काम पूरा करने का इंतजार कर रहे होते हैं, तो वे अपना सिर दाईं या बाईं ओर झुका लेते हैं।

       यह कमजोरी को दर्शाता है। पुरुषों पर किए गए एक अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि मजबूत पुरुष कभी भी सिर नहीं झुकाते।उनके सिर मज़बूत गर्दन पर बिल्कुल सीधे बैठे हैं। उनके कंधे, आसानी से, लेकिन मज़बूती से, अपनी स्थिति में टिके हुए हैं, उनकी ताकत प्रेरणादायक है - संतुलन का संकेत। दूसरे शब्दों में, शरीर की प्रत्येक रेखा धारक के विचार को दर्शाती है।”इस सलाह का महत्व सिर्फ़ इस बात में ही नहीं है कि यह आपको आत्मसम्मान का “आभास” देती है (वैसे यह कोई मामूली बात नहीं है), बल्कि यह आपके भीतर एक संगत मानसिक स्थिति भी पैदा करती है। क्योंकि जिस प्रकार "विचार क्रिया में आकार लेता है", उसी प्रकार क्रियाएं मानसिक अवस्थाओं को विकसित करती हैं - यह एक ऐसा नियम है जो दोनों तरफ से काम करता है। इसलिए आत्मसम्मान के बारे में सोचें और आत्मसम्मान के साथ काम करें। अपने अंदर के “मैं हूँ” को प्रकट होने दें। रेंगो मत - सिकुड़ो मत - गिड़गिड़ाओ मत - लेकिन एक सच्चे मनुष्य बनो

     व्यक्तित्व का एक और गुण जो विकसित करने लायक है, वह है दूसरों में रुचि लेने की कला। बहुत से लोग संसार में अपने कामों में इतने उलझे रहते हैं कि वे अपने संपर्क में आने वाले अन्य लोगों से “अलग” और कटे-कटे होने का आभास देते हैं। यह मानसिक स्थिति व्यक्तित्व के सबसे अप्रिय रूप में प्रकट होती है। ऐसे लोगों को न केवल "ठंडा" और हृदय और आत्मा से रहित माना जाता है, बल्कि वे दूसरों को स्वार्थी और कठोर भी मानते हैं, और जनता ऐसे व्यक्ति को अकेला छोड़ देती है - उसे उसके स्वार्थी मूड और मानसिक अवस्थाओं पर छोड़ देती है।ऐसा व्यक्ति कभी लोकप्रिय नहीं होता - वह कभी लोगों के बीच अच्छा मिलन-जुलन करने वाला नहीं बन पाता। दूसरों में रुचि लेना एक कला है, जिसे विकसित करने से सफलता के विद्यार्थी को अच्छा प्रतिफल मिलता है। बेशक, किसी को हमेशा अपने सामने मुख्य अवसर को बनाए रखना चाहिए और दूसरों में अपनी रुचि के कारण अपने हितों को प्रभावित नहीं होने देना चाहिए - यह कहने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अनुचित परोपकारिता अनुचित स्वार्थ की तरह ही एकतरफा है। लेकिन बीच का रास्ता भी है। आप जिस भी व्यक्ति के संपर्क में आएंगे, उसमें आपको कोई न कोई दिलचस्प चीज मिलेगी और अगर आप उस दिलचस्पी की ओर अपना ध्यान लगाएंगे तो वह इस तरह से प्रकट होगी कि वह व्यक्ति इसके प्रति सचेत हो जाएगा, इसकी सराहना करेगा और आपमें दिलचस्पी लेकर प्रतिक्रिया देने में प्रसन्न होगा।यह धोखा नहीं है, या समय की सेवा नहीं है, या चापलूसी नहीं है - यह मानसिक स्तर पर काम करने वाला मुआवज़ा का नियम है - आप जो देते हैं, वही पाते हैं। यदि आप रुककर एक क्षण सोचें तो आप पाएंगे कि जिन लोगों का व्यक्तित्व आपको सबसे अधिक आकर्षक लगता है, वे ही लोग आपके व्यक्तित्व में रुचि लेते हैं

      दूसरों में रुचि लेना कई तरीकों से प्रकट होता है, जिनमें से एक है आपको एक अच्छा श्रोता बनाना। अब, हमारा यह मतलब नहीं है कि आप अपने आप को उन सभी लोगों की बातों का डंपिंग ग्राउंड बनने दें जिनके साथ आप आते हैं। अब, हमारा यह मतलब नहीं है कि आप अपने संपर्क में आने वाले सभी लोगों की बातचीत का केंद्र बन जाएं - यदि आप ऐसा करेंगे तो आपके पास किसी और चीज के लिए समय नहीं बचेगा। आपको दूसरों को दिए जाने वाले समय को नियंत्रित करने में सामान्य निर्णय और चातुर्य का उपयोग करना चाहिए, जो व्यक्ति और मामले की विशेष परिस्थितियों पर निर्भर करता है। हमारा मतलब यह है कि जब आप सुन रहे हों तो आपको अच्छी तरह से सुनना चाहिए। एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की बात ध्यान से सुनने से बढ़कर कोई और तारीफ नहीं कर सकता। ध्यान से सुनने का मतलब है दिलचस्पी से सुनना।और यह ऐसी चीज़ है जिसे किताब में बहुत अच्छी तरह से नहीं पढ़ाया जा सकता। शायद इस विचार को व्यक्त करने का सबसे अच्छा तरीका यह कहना है, “ऐसे सुनो जैसे कि तुम्हारी बात सुनी जाती है।”स्वर्णिम नियम को कई चीजों और विचारों पर लागू किया जा सकता है, जिससे लाभ और अच्छे परिणाम मिलते हैं। जो व्यक्ति अच्छी तरह सुनता है, उसके बारे में सुनने वाले लोग भी अच्छी तरह सोचते हैं। इस संबंध में हमें हमेशा कार्लाइल की पुरानी कहानी याद आती है, जिसके बारे में सभी जानते हैं कि वह एक रूखा, चिड़चिड़ा बूढ़ा आदमी था, जो बातचीत करने वालों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी और अशिष्ट व्यवहार करने के लिए प्रवृत्त था। कहानी यह है कि एक दिन एक व्यक्ति ने कार्लाइल को बुलाया - और वह व्यक्ति अच्छी तरह से सुनने की कला को समझता था। उसने बातचीत को इस तरह मोड़ दिया कि कार्लाइल अपने दिल के करीब एक विषय पर बात करने लगा - और फिर वह चुप रहा और अच्छी तरह से सुनता रहा। कार्लाइल ने कई घंटों तक “सीधी-सी” बातें कीं और अपने विषय पर काफी उत्साही हो गए। जब अंततः आगंतुक जाने के लिए उठा, तो उसे वास्तव में कार्लाइल से खुद को अलग करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जो उसके पीछे दरवाजे तक आया, असामान्य उत्साह और अच्छी आत्माओं का प्रदर्शन किया, और उसे अलविदा कहते हुए, गर्मजोशी से कहा: "फिर से आओ, सोम - फिर से और बार-बार आओ - तुम्हारा दिमाग बहुत तेज है, और मुझे वास्तव में तुम्हारी बातचीत का बहुत आनंद आया - तुम एक बहुत ही सुखद बातचीत करने वाले व्यक्ति हो।"

     सावधान रहें कि लोगों को अपने निजी अनुभवों से बोर न करें - दूसरों से बात करते समय अपने निजी व्यक्तित्व को भूल जाना बेहतर है, सिवाय तब जब खुद को बीच में लाना सही हो।लोग यह सुनना नहीं चाहते कि आप कितने बढ़िया इंसान हैं - वे आपको बताना चाहते हैं कि वे कितने बढ़िया इंसान हैं, जो उनके लिए बहुत ज़्यादा सुखद है। अपनी परेशानियों का बखान न करें, न ही अपनी खूबियों का बखान करें। यह न बताएं कि आपका बच्चा कितना बढ़िया है - दूसरे लोगों के पास सोचने के लिए अपने बच्चे हैं। अगर दूसरा व्यक्ति खुद बात करना चाहता है, तो आपको उसकी रुचि की चीज़ों के बारे में बात करने का प्रयास करना चाहिए।अपने आप को भूल जाओ और दूसरे व्यक्ति में रुचि लो। 

        कुछ बेहतरीन खुदरा व्यापारी अपने सेल्सपर्सन को मानसिक दृष्टिकोण और व्यक्तित्व विकसित करने का लाभ बताते हैं, जिससे ग्राहक को यह आभास होगा कि आप "काउंटर के उसके पक्ष में हैं" - यानी, आप उसकी अच्छी सेवा, अनुकूलता, अच्छा व्यवहार और संतुष्टि में व्यक्तिगत रुचि ले रहे हैं। जो विक्रेता यह प्रभाव पैदा करने में सक्षम है, वह अपने विशेष क्षेत्र में सफलता की राह पर काफी आगे बढ़ चुका है।इसका वर्णन करना कठिन है, लेकिन पिछले पाठों में बताए गए अनुसार थोड़ा अवलोकन, विचार और अभ्यास इस दिशा में आपके लिए बहुत लाभकारी होगा।

       एक हालिया लेखक ने इस विषय पर सच्चाई से कहा:  “मान लीजिए, आप व्यापार या पेशे में हैं, और अपना व्यवसाय बढ़ाना चाहते हैं।जब आप कोई सामान या सेवा बेचते हैं, तो उसे महज औपचारिक लेन-देन बनाकर ग्राहक का पैसा लेकर उसे अच्छा मूल्य देकर यह महसूस करना ठीक नहीं होगा कि आपको इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं है, सिवाय उसे उचित सौदा देने और उससे लाभ कमाने के। जब तक उसे यह महसूस न हो कि आपको उसमें और उसकी जरूरतों में व्यक्तिगत रुचि है, और आप ईमानदारी से उसके कल्याण को बढ़ाने के इच्छुक हैं, तब तक आप असफल रहे हैं और अपनी जमीन खो रहे हैं। जब आप हर ग्राहक को यह महसूस करा सकते हैं कि आप वास्तव में उसके हितों के साथ-साथ अपने हितों को भी आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, तो आपका व्यवसाय बढ़ेगा।ऐसा करने के लिए दूसरों की तुलना में प्रीमियम, या भारी वजन, या बेहतर मूल्य देना आवश्यक नहीं है; यह हर लेन-देन में जीवन और रुचि डालकर किया जाता है, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो।”

        इस लेखक ने इस विचार को स्पष्ट, सशक्त और सत्यतापूर्वक व्यक्त किया है, और आपके लिए यह अच्छा होगा कि आप उसकी सलाह पर ध्यान दें और उसे वास्तविक रूप में अमल में लाएँ।व्यक्तित्व में एक और महत्वपूर्ण बिंदु है आत्म-नियंत्रण, विशेष रूप से अपने गुस्से को नियंत्रित रखने के मामले में। क्रोध कमज़ोरी की निशानी है, ताकत की नहीं। जो व्यक्ति अपना आपा खो देता है, वह तुरंत खुद को नुकसान में डाल लेता है। पुरानी कहावत याद रखें: "जिन्हें देवता नष्ट करना चाहते हैं, उन्हें पहले क्रोधित करते हैं।"क्रोध के प्रभाव में आकर मनुष्य अनेक प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्य कर बैठता है, जिनका बाद में उसे पछतावा होता है।वह निर्णय, अनुभव और सावधानी को ताक पर रख देता है, तथा एक पागल आदमी की तरह व्यवहार करता है।वास्तव में, क्रोध एक प्रकार का पागलपन है - पागलपन का एक चरण - यदि आपको इस पर संदेह है तो आप जिस भी पहले क्रोधित व्यक्ति से मिलें उसके चेहरे को ध्यान से देखें और देखें कि वह कितना तर्कहीन दिखता है और कितना अतार्किक व्यवहार करता है। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि यदि कोई व्यक्ति अपने विरोधी के क्रोधित होने पर भी शांत रहता है, तो वह निश्चित रूप से मामले में सबसे अच्छा है - क्योंकि वह एक विवेकशील व्यक्ति है जो तर्कहीन व्यक्ति से निपट रहा है। यह बेहतर नीति है कि दूसरे व्यक्ति को क्रोध की “खुद की चर्बी में उबलने” दिया जाए, और साथ ही खुद को भी शांत रखा जाए। बिना आप पर गुस्सा किए किसी गुस्सैल व्यक्ति को शांत करना तुलनात्मक रूप से आसान काम है - और चूंकि झगड़ा करने के लिए दो लोगों की ज़रूरत होती है, इसलिए मामला जल्दी ही खत्म हो जाता है। आप पाएंगे कि बाहरी अभिव्यक्ति पर नियंत्रण आपको अपनी आंतरिक मानसिक स्थिति पर नियंत्रण प्रदान करेगा।आप पाएंगे कि यदि आप अपनी आवाज को नियंत्रित करने में सक्षम हैं, उसे शांत, स्थिर और कम सुर वाला रखते हैं, तो आप आवेश में नहीं आएंगे, और इससे भी अधिक, आप पाएंगे कि ऐसा करने से दूसरे व्यक्ति की आवाज धीरे-धीरे अपने ऊंचे, शोरगुल वाले स्वर से नीचे आ जाएगी, और अंत में आप दोनों अपनी आवाज को एक ही सुर में ढाल लेंगे - और आपने वह सुर निर्धारित कर लिया है। यह याद रखने योग्य है - आवाज पर नियंत्रण - यह एक रहस्य है जिसे जानना और अभ्यास करना बहुत जरूरी है।

      चूंकि हम आवाज के विषय पर हैं, इसलिए हम आपका ध्यान आवाज पर और अधिक नियंत्रण, या कहें आवाज के संवर्धन की ओर आकर्षित करना चाहेंगे।एक व्यक्ति जिसकी आवाज नियंत्रित, सम और मधुर हो, वह अन्य दिशाओं में समान योग्यता रखने वाले, लेकिन उस एक गुण से रहित अन्य लोगों की तुलना में अधिक लाभ में होता है।एक जीवंत, गूंजती, कोमल और लचीली आवाज़ का मूल्य बहुत बड़ा है। अगर आपकी आवाज़ ऐसी है, तो आप धन्य हैं।अगर आपमें इसकी कमी है, तो इसे विकसित करने के लिए काम क्यों करें। ओह, हाँ, आप कर सकते हैं! क्या आपने कभी जाने-माने सार्वजनिक वक्ता नाथन शेपर्ड के बारे में सुना है?फिर उनके ये शब्द सुनिए, जिसमें वे अपनी आवाज़ की स्वाभाविक कमियों के बारे में बता रहे हैं और बता रहे हैं कि कैसे उन्होंने उन पर काबू पाया और एक महान वक्ता बने।

       वे कहते हैं: "जब मैंने अपना मन और शरीर सार्वजनिक भाषण के लिए समर्पित करने का मन बनाया, तो मेरे शिक्षकों और राज्यपालों ने मुझे बताया कि मैं निश्चित रूप से असफल हो जाऊंगा; कि मेरी अभिव्यक्ति विफल हो गई है, और यह विफल हो गई; कि मेरे भाषण के अंग अपर्याप्त हैं, और वे थे; और कि अगर मैं अपना छोटा सा मुंह खराब कर दूं तो इसे मेरी मां की अँगूठी में डाला जा सकता है, और यह हो सकता है। ये शब्द निश्चित रूप से चुभने वाले और क्रूर थे। मैं इन्हें कभी नहीं भूलूंगा; हालाँकि, संभवतः, उन्होंने मुझे ऐसी दृढ़ता में डुबो दिया था जिसे मैं इन शब्दों के बिना कभी नहीं जान पाता। किसी भी हालत में, यही मानव जाति की ‘स्व-निर्मित’ दुनिया का दर्शन है। हो सकता है कि मैंने बहुत कुछ हासिल न किया हो; मैं यह दावा नहीं करता कि मैंने बहुत कुछ हासिल किया है।यह कुछ ऐसा है जिससे मैंने बीस वर्षों तक अपनी कला से अपनी आजीविका बनाई है, और मैं दावा करता हूं कि मैंने हर बाधा और हर हतोत्साह के बावजूद ऐसा किया है, अपनी इच्छा को अपनी आवाज और स्वर अंगों पर केंद्रित करके, अपनी वाक्पटु प्रवृत्ति और बयानबाजी की लय के लिए अपने कानों को विकसित करके, यह जानकर कि मैं और मेरी आवाज और मेरी भावनाएं क्या हैं, अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बनाकर।”

     इन शब्दों के बाद, इच्छा, अभ्यास और चाहत से अच्छी आवाज़ हासिल करने की संभावना के बारे में हम जो कुछ भी जोड़ सकते हैं, वह अनावश्यक होगा।अपनी आवाज़ के लिए सबसे उपयुक्त आवाज़ चुनें और फिर अभ्यास, दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति से उसे विकसित करें। अगर श्री शेपर्ड इन बाधाओं के बावजूद एक प्रसिद्ध सार्वजनिक वक्ता बन सकते हैं, तो आपके लिए यह कहना कि “लेकिन मैं नहीं कर सकता” यह दर्शाता है कि आप कमज़ोर हैं।

      हमें सुझाव दिया गया है कि व्यक्तित्व के एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में व्यक्ति की चाल या शारीरिक मुद्रा के बारे में हमें कुछ कहना है - विशेष रूप से चलने के चरण में।लेकिन हम यह आवश्यक नहीं समझते कि इस पाठ में हमने जो कुछ इस विषय पर कहा है, उसमें आत्म-सम्मान की मानसिक स्थिति के संबंध में भी कुछ जोड़ना आवश्यक है।मुख्य बात यह है कि आत्म-सम्मान की मानसिक स्थिति विकसित की जाए, और बाकी सब स्वाभाविक परिणाम के रूप में अपने आप हो जाएगा। विचार क्रिया में आकार लेता है, और जिस व्यक्ति के मन में आत्मसम्मान समाया हुआ है, वह निश्चित रूप से उसे इस तरह से ले जाएगा और उसे इस तरह से पेश करेगा कि वह अपनी हर शारीरिक क्रिया, हाव-भाव, चाल और चाल में अपनी मानसिक स्थिति का सबूत देगा।उसे अपने भीतर भी होना चाहिए, और बाहर भी। बेशक, बाहरी पहलू पर ध्यान देना चाहिए, खास तौर पर पहनावे के मामले में। हमें शरीर और वस्त्र दोनों की स्वच्छता और साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए।मेरे लिए अच्छे कपड़े पहनने का मतलब दिखावटी कपड़े पहनना नहीं है - वास्तव में, जो व्यक्ति सबसे अच्छे कपड़े पहनता है, वह अगोचर कपड़े पहनता है।शांत, परिष्कृत स्वाद विकसित करें, जो दिखावे के बजाय गुणवत्ता में व्यक्त हो। और सबसे बढ़कर - स्वच्छ रहें।

      अंत में, हम आपको बार-बार यह समझाना चाहेंगे कि जिसे हम व्यक्तित्व कहते हैं, वह व्यक्ति के भीतर का बाहरी मुखौटा मात्र है।बुद्धिमतापूर्ण विवेक की सहायता से इच्छाशक्ति के प्रयास से मुखौटा बदला जा सकता है।सबसे पहले यह पता लगाएं कि आपका व्यक्तित्व कैसा होना चाहिए, और फिर उसे विकसित करने के लिए काम शुरू करें - वास्तव में, उसे विकसित करने के लिए।आप जो बनना चाहते हैं उसकी मानसिक छवि बनाएँ - फिर उसके बारे में सोचें - उसकी उत्कट इच्छा करें - इच्छा करें कि आप उसे पाएँ - फिर उसे बार-बार करें; बार-बार अभ्यास करें, जब तक कि आप वास्तव में अपने आदर्श को वस्तुगत वास्तविकता में न बदल लें।एक अच्छा मानसिक पैटर्न या साँचा बनाएँ, और फिर अपनी मानसिक सामग्री को स्थिर रूप से और धीरे-धीरे उसमें डालें!इस साँचे से वह चरित्र और व्यक्तित्व उभर कर आएगा जिसकी आपको इच्छा और आवश्यकता है। फिर इस नवजात व्यक्तित्व को तब तक निखारें जब तक कि यह संस्कृति की चमक से चमक न जाए।

     आप जो बनना चाहते हैं, वह बन सकते हैं - अगर आप बस इतना चाहते हैं कि आप दृढ़ निश्चयी हों। इच्छा ही वास्तविकता की जननी है। एक बार फिर पुराने नियम को याद करें - सच्ची इच्छा - आत्मविश्वास से भरी उम्मीद - दृढ़ संकल्प - ये तीन चीजें हैं जो सफलता की ओर ले जाती हैं।और अब जब हमने आपको सफलता का यह छोटा सा रहस्य बता दिया है - इसका इस्तेमाल करें। "अच्छा करना आप पर निर्भर है।" हमने "बटन दबा दिया है - बाकी काम आपको करना है!"

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An Afterword उपसंहार

उपरोक्त पृष्ठों को टाइप करने के बाद पढ़ने पर हम इस विचार से प्रभावित हुए कि हमारे दृढ़ संकल्प के बावजूद, जैसा कि पहले कुछ पृष्ठों में व्यक्त किया गया है, कि हम नियमों की संहिता या आचरण का ऐसा तरीका निर्धारित करने का प्रयास नहीं करेंगे जिसे सफलता के लिए एक अचूक मार्गदर्शक माना जाना चाहिए - शिक्षक या उपदेशक के रूप में पेश न आने के हमारे दृढ़ संकल्प के बावजूद - फिर भी हम "कानून बनाने" की दिशा में काफी कुछ करने में सफल रहे हैं, जहां तक ​​कि उन चीजों के नामकरण का संबंध है जिन्हें किया जाना चाहिए या टाला जाना चाहिए। हालाँकि, हमें लगता है कि दी गई सलाह अच्छी है, और उद्धृत विभिन्न उदाहरण पाठक के मन में सफलता की ओर ले जाने वाली आत्मा को जगाने के लिए हैं।और, इसी विचार के साथ, हम इन पृष्ठों को उन लोगों तक भेजते हैं जो उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं, या जो उनकी ओर आकर्षित हो सकते हैं - आकर्षण के नियम के तहत।

     लेकिन हमें लगता है कि हमने अपना कार्य तब तक पूरा नहीं किया होगा जब तक कि हम एक बार फिर पाठकों को यह याद न दिला दें कि सफलता किसी अन्य व्यक्ति के नियमों या सलाह का अंधाधुंध और गुलाम बनकर अनुसरण करने से प्राप्त नहीं होती है।सफलता के लिए कोई शाही रास्ता नहीं है - कोई पेटेंट प्रक्रिया नहीं है जिसके द्वारा असफल लोगों को जादुई तरीके से उद्योग के कप्तान या वॉल स्ट्रीट के दिग्गज में बदल दिया जाए। स्वयंभू शिक्षकों और प्रचारकों द्वारा जनता को दी जाने वाली सफलता की बातों से अधिक मनोरंजक या दयनीय कुछ भी नहीं है, चाहे कोई इसे कैसे भी देखे। ऐसा कोई भी नहीं है जो कुछ पृष्ठों में सफलता चाहने वालों को एक अचूक विधि बता सके जिससे प्रत्येक व्यक्ति वह सफलता और उपलब्धि प्राप्त कर सके जिसकी उसके हृदय में लालसा है।

        यह एक कठोर सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति को सफलता के मामले में अपने उद्धार का प्रयास स्वयं ही करना होगा। नियम और सलाह बहुत मददगार हो सकते हैं - और वे निस्संदेह ऐसा करते हैं - लेकिन व्यक्ति को असली काम पूरा करना होगा। उसे अपना भाग्य खुद बनाना होगा, और अगर वह खुद काम करने से इनकार करता है तो कोई भी ऊपर या नीचे की शक्ति उसके लिए काम नहीं करेगी। 

        पुरानी कहावत है कि "ईश्वर उसकी सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करता है" यह कहावत कई मायनों में सत्य है।यह इस अर्थ में सत्य है कि उच्च सहायता उस व्यक्ति की सहायता करने से इंकार करती है जो उसके लिए प्रयास करने और अपना सर्वश्रेष्ठ करने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन यह दूसरे अर्थ में भी सत्य है - यह सहायता उस व्यक्ति को मिलती है जो अपने सामने रखे गए कार्य में अपना दिल और आत्मा लगा देता है, और जो प्रत्येक दिन अपने कार्य को अपनी क्षमता के अनुसार सर्वोत्तम ढंग से करता है, अपनी आत्मा में आशा रखता है, तथा अपने आगे, सड़क के मोड़ पर, बेहतर चीजों की पूर्ण आशा रखता है। बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो साहसपूर्वक अपने आगे कदम बढ़ाता है, तथा अपने पैर को दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ उस पर रखता है, यद्यपि वह आगे देख पाने में असमर्थ होता है। ऐसे व्यक्ति को जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता है, एक के बाद एक कदम स्पष्ट होते जाते हैं, और वह अपने लक्ष्य तक पहुंच जाता है, जबकि पीछे हटने वाले लोग, जो स्पष्ट कदम उठाने से डरते हैं, क्योंकि वे उससे आगे नहीं देख सकते, वे अभी भी किसी चीज के सामने आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह प्रतीक्षा करने का व्यवसाय एक खराब नीति है - जैसा कि गारफील्ड ने कहा: "किसी चीज़ के होने का इंतज़ार मत करो - बाहर जाओ और कुछ पाओ।" 

       अपने सामने जो कदम है उसे साहसपूर्वक और आशापूर्वक उठाएँ, और अगला कदम अपने आप सामने आ जाएगा। जो काम करना है, वह वही है जो आपके सामने है—उसे अपनी क्षमता के अनुसार सबसे अच्छे तरीके से करें, और आश्वस्त रहें कि ऐसा करने से आप उन बेहतर चीजों की ओर प्रगति करेंगे जिनके लिए आपका दिल तरस रहा है।जब आप काम कर रहे होते हैं तो नए विचार आते हैं - काम करने से बड़ी चीज़ों को करने की प्रेरणा मिलती है।जब आप काम पर हों तो आप हमेशा बेहतर "रनिंग स्टार्ट" प्राप्त कर सकते हैं, जो आपको सबसे बेहतर "स्टैंडिंग स्टार्ट" की तुलना में लाभ देगा। काम और गति में आएँ।

 इस छोटे से कार्य में हमने आपका ध्यान मात्र नियमों और सामान्य सलाह से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है।हमने आपको यह गौरवशाली तथ्य बताया है कि आपमें से प्रत्येक के भीतर कुछ ऐसा है, जिसे यदि एक बार जागृत कर दिया जाए तो आपको बहुत अधिक शक्ति और क्षमता प्राप्त हो जाएगी।और इसलिए हमने आपको भीतर की इस कहानी को अलग-अलग दृष्टिकोणों से बताने की कोशिश की है, ताकि आप इस विचार को कई तरीकों से समझ सकें।

      हमारा दृढ़ विश्वास है कि सफलता मुख्यतः इस भीतरी कुछ की पहचान और अभिव्यक्ति पर निर्भर करती है - हम सोचते हैं कि सभी सफल व्यक्तियों के चरित्र और कार्य का अध्ययन करने पर आपको पता चलेगा कि यद्यपि वे व्यक्तिगत विशेषताओं में भिन्न हैं, फिर भी वे सभी अपने भीतर उस कुछ की चेतना को प्रकट करते हैं जो उन्हें आंतरिक शक्ति और सामर्थ्य का आश्वासन देती है, जिससे साहस और आत्मविश्वास उत्पन्न होता है।आप पाएंगे कि अधिकांश सफल व्यक्तियों को ऐसा लगता है कि कोई चीज उनकी मदद कर रही है - उनके प्रयासों के पीछे।आप पाएंगे कि अधिकांश सफल लोगों को लगता है कि कोई चीज उनकी मदद कर रही है - उनके प्रयासों के पीछे। कुछ लोगों ने इस चीज को "भाग्य" या "नियति" या ऐसे ही किसी नाम से पुकारा है।

      परंतु यह सब एक आंतरिक शक्ति की उसी मान्यता का एक रूप है कि उन्हें किसी प्रकार से "सहायता" मिलती है, यद्यपि वे सहायक की प्रकृति के विषय में पूरी तरह आश्वस्त नहीं होते - वास्तव में, उनमें से अधिकांश लोग उसकी प्रकृति के विषय में अटकलें लगाना बंद नहीं करते, वे बहुत व्यस्त रहते हैं और इस ज्ञान से संतुष्ट रहते हैं कि वह वहां है।यह भीतर का कुछ व्यक्ति है - उनमें से प्रत्येक में "मैं" - वह शक्ति का स्रोत है जिसे मनुष्य प्रकट करते हैं, जब वे इसे व्यक्त करते हैं। और यह छोटी सी किताब इस उम्मीद में लिखी गई है कि कई लोगों के लिए यह इस आंतरिक शक्ति की पहचान, प्रकटीकरण और अभिव्यक्ति की ओर पहला कदम हो सकता है। हम आपसे आग्रहपूर्वक आग्रह करते हैं कि आप इस “मैं हूँ” चेतना को विकसित करें - ताकि आप अपने भीतर की शक्ति को महसूस कर सकें। और तब आपके पास स्वाभाविक रूप से वह सहसंबद्ध चेतना आएगी जो स्वयं को इस कथन में अभिव्यक्त करती है, "मैं कर सकता हूँ और मैं करूँगा", जो कि शक्ति की सबसे महानतम पुष्टि है जो मनुष्य कर सकता है। यह "मैं कर सकता हूँ और मैं करूँगा" चेतना भीतर की उस चीज़ की अभिव्यक्ति है, जिसके बारे में हमें विश्वास है कि आप उसे महसूस करेंगे और प्रकट करेंगे।हमारा मानना ​​है कि हम आपको जो भी सलाह दे सकते हैं, उसके पीछे यही एक चीज है जो सफलता के रहस्य का प्रमुख कारक है।

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साभार https://www.yogebooks.com/english/atkinson/1908secretsuccess.pdf

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साभार :The Secret of Success : (Written by -William Walker Atkinson : (1862-1932) https://www.yogebooks.com/english/atkinson/1908secret- success.pdf]

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