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सोमवार, 11 जुलाई 2016

卐 卐 2. ' उन्नत मनुष्य, उन्नत समाज' और यविष्ठ ! [ एक नया युवा आंदोलन-2. ~ Tend individuals, Tend Society !] 卐🙏अन्तर्विज्ञान और बहिर्विज्ञान के समन्वय द्वारा राष्ट्र को पुनरुज्जीवित करो卐🙏 `मनुष्य निर्माण' ही मेरे जीवन का उद्देश्य है। '

2.
' उन्नत मनुष्य, उन्नत समाज' 
[Tend individuals , Tend Society !]

        >> All power of human society lies in the youth.
क्या आप जानते हैं कि आज पूरे विश्व में युवाओं की संख्या लगभग 180 करोड़ है और इसका एक तिहाई हिस्सा भारत की युवा आबादी है ? वर्तमान समय में भारत की युवा आबादी लगभग 60 करोड़ है ; और हम सभी जानते हैं कि मानव समाज की समस्त शक्तियाँ सदैव युवाओं के हाथों में ही रही हैं। जनसांख्यिकीय मानदंडों के अनुसार 15-35 आयु वर्ग के लोगों को आमतौर पर युवा माना जाता है। 
        स्वामी विवेकानन्द को भारत के युवाओं पर अटूट विश्वास था। किन्तु, यह देख कर बड़ा आश्चर्य होता है कि सुकरात और अरस्तु जैसे प्राचीन पाश्चात्य दिग्गज भी अपने समय के युवाओं से सन्तुष्ट नहीं रहते थे। वे हमेशा युवाओं के दोष ही गिनवाते रहते थे और हर समय उन्हें बुरा-भला कहते रहते थे। आज भी गौर करें तो हम पायेंगे कि बुजुर्ग लोग आमतौर से युवाओं को पसंद नहीं करते हैं।  वे किसी तरह उन्हें केवल बर्दास्त भर करते हैं। लेकिन हमें उतना ही आश्चर्य होता है जब हम स्वामी विवेकानन्द की वाणी और रचनाओं में कहीं भी युवाओं के लिए एक भी कटु वचन ढूंढने में असफल रह जाते हैं। वे युवाओं के साथ कभी असहज नहीं होते थे, इसका क्या कारण हो सकता है ? 
       >>In Veda Beautiful adjective about Brahman is यविष्ठ yavistha, the most youthful.
स्वामी विवेकानन्द ने मनुष्य के अस्तित्व को केवल बाह्य तौर पर ही नहीं बल्कि उसकी गहराई में  देखा था। उन्होंने यह देखा था कि इन युवाओं के भीतर वही एक ही परम सत्य, वास्तविक सत्ता,  ब्रह्म, या सर्वशक्तिमान आत्मा- जो सच्चिदानन्द स्वरूप है, विद्यमान हैं ! इसीलिये उन्होंने कहा था कि सभी प्राणियों का शरीर एक मन्दिर है पर मानव-शरीर इनमें ताजमहल जैसा सर्वश्रेष्ठ मन्दिर है। इसीलिये तो प्रत्येक जीव विशेषतः मनुष्य उनके लिये पूजा की वस्तु है। भारतवर्ष के गौरवशाली अतीत की ओर देखने और वेदों की और उन्मुख होने पर हम पाते हैं कि वहाँ ब्रह्म के लिए एक उत्तम विशेषण 'यविष्ठ ' का प्रयोग देखने को मिलता है जिसका अर्थ है - 'सबसे युवा।' इसीलिये  हमारे देवताओं (देव-सेनापति कार्तिक) का व्यक्तित्व शारीरिक सौष्ठव और मानसिक तेज की दृष्टि से किसी प्रतिभावान नायक (हीरो-योद्धा ) की तरह ही दीखता है ! स्वामीजी सभी युवाओं को इन्हीं चिरयुवा देवताओं (यविष्ठ,C-IN-C नवनी दा ?) की तरह बनते देखना चाहते थे।  
[नि नो होता वरेण्यः सदा यविष्ठ मन्मभिः। अग्ने दिवित्मता वचः॥ऋग्वेद 1.26.2
 अग्नि! तुम सर्वदा युवक, श्रेष्ठ और तेजस्वी हो। हमारे होमकर्ता और प्रकाशमय वाक्यों द्वारा 'नेता' चुने जाने योग्य होकर बैठो। 
Sit ever to be chosen, as our priest (Leader)., most youthful, through our hymns, Agni, through our heavenly word. 
'श्रेष्ठं यविष्ठ भारताऽग्ने द्युमन्तमा भर । वसो पुरुस्पृहं रयिम् ।। RV2.7.1. 
In Bharat all to have temperaments enlightened by zeal that is fired by desires to have excellent prosperity.] 
          >>The root of all our sufferings is ignorance. So, dispel this ignorance .  
इसीलिये स्वामी विवेकानन्द ने युवाओं को ध्यान में रखते हुए कहा था - " तुम्हारे लिए अपने भावी जीवन का मार्ग चुन लेने का यही सबसे उपयुक्त समय है। यदि तुम युवावस्था में ही भावी जीवन के विषय में ठोस निर्णय नहीं ले सके तो जीवन रूपी धन का सदुपयोग करने में विफल हो जाओगे।  यदि हम अपनी इन्द्रियों, मन और जीवन की वृत्तियों को बहिर्मुखी बनाये रखें तो इस देवदुर्लभ मानव-जीवन को सार्थक करने में असफल रह जायेंगे। इसलिए, स्वामीजी ने युवाओं में कदाचित दोषों के रहते हुए भी कभी उनका तिरस्कार नहीं किया वरन उत्साहित ही किया है , आशाप्रद बातें ही सुनाई हैं। युवा अपने भविष्य के प्रति आस्था अर्जित कर सकें ऐसी शक्तिदायी विचारों और आदर्शों से उन्हें प्रेरित किया है।  वे कहते हैं,  " संसार की ओर ऑंखें उठाकर देखो, मनुष्य क्यों दुःख भोगता है ? वेदान्त की दृष्टि से समस्त दुःखो कारण है - 'अज्ञान' (अविद्या)। इसलिए सत्य के आलोक का संधान कर इस अज्ञान से मुक्त हो जाओ। तुम यदि इस आलोक की थोड़ी भी झलक पा लेते हो तो तुम स्वयं ही जान पाओगे कि तुम्हारा भावी जीवन कितना महान है ! यदि हम अपने व्यक्ति जीवन को इस आलोक से आलोकित कर पायें, और हममें से कई लोग यदि उस आलोक की एक झलक देख सकें, तो सम्पूर्ण मानवजाति का भविष्य ही उज्ज्वल हो जायेगा। और मानव जाति की अन्तर्निहित दिव्यता के ऊपर अज्ञान के अंधकार का जो घनीभूत आवरण पड़ा है वह छिन्न-भिन्न हो जायेगा। तभी हमारी अन्तर्निहित दिव्यता (पूर्णता) का जागरण होगा और हमारी वास्तविक उन्नति होगी!
      >> Hankering for wealth and lust, and lack of spirituality brings in our mind the desire for waging wars.
       वर्तमान जगत में कितने ही विरोधाभास देखे जा सकते हैं। एक ओर दरिद्रता दिखती है तो दूसरी ओर प्रचुरता। एक ओर विज्ञान प्रगति कर रहा है , तो दूसरी ओर वास्तविक ज्ञान (परम् सत्य के ज्ञान) का घोर अभाव भी दृष्टिगोचर हो रहा है। आधुनिक युग के मनुष्यों के जीवन में एक ओर जहाँ सच्चे सुख और आनन्द का अभाव है , वहीं वह युद्ध की विभीषिका से भी त्रस्त है। मानव समाज नाना प्रकार के घात -प्रतिघात , द्वन्द्व , घृणा आदि से भी अभिशप्त है। चरम स्वार्थपरता और लोभ , चारों ओर पसरा हुआ दिखाई देता है। समाज में सहानुभूति और सद्भावना का घोर अभाव है। धन की तथा भोगों की आकांक्षा ने हमारे वास्तविक जीवन को आच्छन्न कर रखा है। आज कामिनी -कांचन में आसक्ति और आध्यात्मिकता के अभाव ने हमारी अन्तर्दृष्टि पर गहरा आवरण डाल दिया है। मनुष्यों में आध्यात्मिकता का यह अभाव ही मानव -समाज में घृणा , हिंसा , द्वेष , द्वंद्व और युद्धोन्माद उत्पन्न कर रहा है।  
         >>Synthesize the science of outer world, and the science of the inner world. 
हजारों वर्ष पूर्व ही हमारे पूर्वज ऋषियों ने ज्ञान (wisdom या मनीषा) की खोज कर इसे बाहर लाने का प्रयत्न किया था। उन्होंने बहिर्विज्ञान (अपरा विद्या) और अन्तर्विज्ञान (परा विद्या) दोनों में समान रूप से प्रगति की थी एवं इनके बीच समन्वय स्थापित की थी। किन्तु, काल के प्रवाह में हमने इन दोनों के बीच समन्वय स्थापित करने के कौशल को भुला दिया। इस युग में , विशेषकर उन्नीसवीं सदी के शेष भाग में स्वामी विवेकानन्द ने इन दोनों विज्ञानों (धर्मों) के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास नये सिरे से किया है। जिनके पास ठीक-ठीक देखने की क्षमता है , वे देख सकेंगे कि वर्तमान युग में अन्तर्विज्ञान और बहिर्विज्ञान के बीच समन्वय पुनः स्थापित होने लगा है। महामण्डल प्रकाशित पुस्तिका "In Store for the Twenty-First Century" में इस सम्भावना की एक झलक देखी जा सकती है।  
         >>"Equality' in our society is just a hollow word. आज के भारतवर्ष (मोदी युग से पूर्व के भारत) में हम क्या देखते हैं? मात्र 20 घराने ऐसे हैं जिनका देश के अधिकांश धन पर प्रभुत्व है। दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुसार भारत की जनसंख्या का 74.5 प्रतिशत सुविधा से वंचित वर्ग (underprivileged  class) में आता है। अभी भी लगभग 30 फीसदी लोग अशिक्षा के अंधकार में डूबे हुए हैं। जिन्हें साक्षर कहा जाता है उनमें 30 से 35 प्रतिशत लोग ठीक से अपना नाम भी नहीं लिख सकते। इन्हें शिक्षित नहीं कहा जा सकता। भारत की लगभग आधी आबादी किसी तरह पेट भरने और तन ढंकने के न्यूनतम स्तर के नीचे वास करती है। सच कहा जाय तो बहुत से लोगों के पास रहने के लिए ठीक से घर भी नहीं है। अधिकांश लोगों के पास शिक्षा की कोई सुविधा नहीं है ,लोग न्याय वंचित रह जाते हैं। यह जो सबको समान न्याय दिलाने की बात की जाती है वह थोथी बकवास है।       
        >>Regeneration of the nation meant invigorating the individual.
   भारत की ऐसी भयावह और दयनीय अवस्था को देखकर क्या हमलोग पशुओं की भाँति अपना -अपना स्वार्थ सिद्ध करने में ही लगे रह सकते हैं ? स्वामी विवेकानन्द ने समाज की अत्यन्त ही सरल परिभाषा दी है। वे कहते हैं कि एक -एक व्यक्ति के मिलने से समाज बनता है। इसी निष्कर्ष के आधार पर वे कहते हैं कि - यदि तुम अपने समाज की उन्नति चाहते हो तो तुम्हें समाज का उपादान --व्यष्टि मनुष्य की उन्नति के सारे उपाय करने होंगे। इसलिए राष्ट्र को पुनरुज्जीवित करने का अर्थ हुआ उसके नागरिकों को पुनरुज्जीवित करना अर्थात राष्ट्र के व्यष्टि मनुष्य की चारित्रिक उन्नति या राष्ट्रिय-चरित्र की उन्नति। भारत को पुरुज्जीवित करने का यही एकमात्र उपाय है ! इसीलिए `मनुष्य निर्माण' ही मेरे जीवन का उद्देश्य है। ' 
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हे यविष्ठ ! उन्होंने कहा,  " जगत की ओर देखो, यह जगत (कितने प्रकार की व्याधियों -भ्रष्टाचार, नारी-अपमान आदि से ग्रस्त होकर ) दुःख से जल रहा है, क्या तुम सो सकते हो ? संसार के धर्म प्राणहीन और उपहास की वस्तु हो गये हैं, जगत को जिस वस्तु की आवश्यकता है, वह है चरित्र ! " और जैसा कि कम से कम एक बात जो वेदान्त की दृष्टि से, हमें सूर्य के प्रकाश की तरह स्पष्ट दिखाई देती है - वह यह कि "  अज्ञान (अविद्या या Ignorance) ही हमारे सभी दुःखों का मूल कारण है, और कुछ नहीं।" 'सो, डिस्पेल दिस इग्नोरेन्स' - अतः इस अविद्या के अंधकार को दूर करने का प्रयत्न करो। " 
" जगत को प्रकाश कौन देगा ? बलिदान भूतकाल से नियम रहा है और हाय ! युगों तक इसे रहना है। संसार के वीरों को और सर्वश्रेष्ठों (यविष्ठों) को 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' अपना बलिदान करना होगा। असीम दया और प्रेम से परिपूर्ण सैंकड़ों 'बुद्धों' की आवश्यकता (अर्थात आध्यात्मिक शिक्षकों की आवश्यकता) है। संसार को ऐसे लोग चाहिये जिनका जीवन स्वार्थहीन ज्वलन्त प्रेम का उदाहरण हो। वह प्रेम एक-एक शब्द को वज्र के समान प्रभावशाली बना देगा।"
  卐`अन्तर्विज्ञान और बहिर्विज्ञान के समन्वय द्वारा राष्ट्र को पुनरुज्जीवित करो !'卐 
Rejuvenate the nation by amalgamation of internal science and external science.
इन दोनों धर्मों या दोनों विज्ञानों- " प्रवृत्ति  और निवृत्ति " के बीच संतुलन और समन्वय बनाये रखने में समर्थ 'निवृत्ति अस्तु महाफला' के कौशल - 'Be and Make वेदान्त प्रशिक्षण-पद्धति ' को भूल गए।  स्वामी जी की कार्य-योजना और प्रणाली: भारत का भविष्य: " अच्छा, तो वह योजना -वह प्रणाली क्या है? उस आदर्श का एक छोर ब्राह्मण (आध्यात्मिक शिक्षक, योगा टीचर) है और दूसरा छोर चांडाल (पशु-मानव) है, और जातिप्रथा की सम्पूर्ण योजना चांडाल को उठाकर ब्राह्मण बनाना है "५/१८८ 
 जो व्यक्ति " बाह्य जगत का विज्ञान (अविद्या) और अंतःजगत का विज्ञान (विद्या)  के बीच समन्वय बनाये रखने में समर्थ 'योगा टेक्निक'  को जान लेता है वही एक आदर्श 'नेता' या  आध्यात्मिक शिक्षक बन सकता है! क्योंकि 'प्रत्येक आत्मा अव्यक्त ब्रह्म है'- इस रहस्य को जानने वाला भारत का प्रत्येक युवा भावी आध्यात्मिक शिक्षक या वुड बी लीडर ऑफ़ दी मैन काइंड है!  चाहे कोई उन्हें राम,कृष्ण,बुद्ध, ईसा, मोहम्मद, गुरु नानक या आधुनिक युग के अवतार भगवान श्रीरामकृष्ण देव आदि नामों में से किसी भी नाम से क्यों न पुकारता हो !
 महामण्डल पुस्तिका - " इक्कीसवीं सदी के गर्भ में " के अनुसार रूस -यूक्रेन आध्यात्मिकता  का प्रचार -प्रसार के साथ अमेरिका में भौतिकवाद के अतिशीघ्र संभावित पतन एवं अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस के साथ विश्व रंगमंच पर मोदी के नेतृत्व में भारत और विश्व के नागरिकों  आध्यात्मिक उत्थान आदि  ब्रिटेन के यूरो जोन से निकलन और ऋषि सुनक का इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री बनना   21 वीं सदी में 'Be and Make' - आंदोलन  " अद्वैत आश्रम, मायावती -महामण्डल वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा" प्रशिक्षित C-IN-C (P. K. Roy -Anup Panja) के निर्देशन में सार्वभौमिक धर्म  का रूप ग्रहण कर लेगा। 
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