[ (25 फरवरी, 1885) श्रीरामकृष्ण वचनामृत- 107 ]
卐🙏नरेन्द्र आदि के साथ श्रीरामकृष्ण का स्टार थिएटर में 'वृषकेतु' नाटक देखना卐🙏
श्रीरामकृष्ण 'वृषकेतु' नाटक देखेंगे । बीडन स्ट्रीट पर जहाँ बाद में मनोमोहन थिएटर हुआ, पहले वहाँ स्टार थिएटर था । श्रीरामकृष्ण थिएटर में आकर बाक्स में दक्षिण की ओर मुँह करके बैठे । मास्टर आदि भक्तगण पास ही बैठे हैं ।
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ বৃষকেতু অভিনয়দর্শন করিবেন। বিডন স্ট্রীটে যেখানে পরে মনোমোহন থিয়েটার হয়, পূর্বে সেই মঞ্চে স্টার-থিয়েটার আভিনয় হইত। থিয়েটারে আসিয়া বক্সে দক্ষিণাস্য হইয়া বসিয়াছেন।
Sri Ramakrishna arrived at the Star Theatre, on Beadon Street, to see a performance of Vrishaketu.^ He sat in a box, facing the south. M. and other devotees were near him.
[^Vrishaketu was the son of Karna, a hero of the Mahabharata, who was celebrated alike for charity and heroism. Karna sacrificed his son to fulfil a promise.
^एक ही जन्म में दूसरी बार जीवित होने वाले कर्ण के पुत्र वृषकेतु की कथा : कहते हैं मृत्यु जीवन का सत्य है जो एक बार मर जाता है वह फिर जीवित नहीं हो सकता। लेकिन कई बार ऐसे भी चमत्कार होते हैं कि मरने के बाद लोग जीवित हो उठते हैं। महाभारत में भी कुछ ऐसी ही कथाएं हैं। कथा इस प्रकार है - कर्ण के द्वार से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटता था। यदि एक बार वह किसी वस्तु को देने की स्वीकृति दे देता तो उसे अवश्य देता। एक दिन महाराज कर्ण दोपहर के भोजन के लिए निकलने लगे तो एक ब्राह्मण पधारे. द्वारपाल ने उन्हें महल में जाने की आज्ञा दे दी। महाराज ने पूछा –“कहिए विप्रवर ! मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ?” --कल एकादशी का व्रत था आज उपवास खोलना है। किन्तु आपसे इच्छित भोजन चाहता हूँ। ”
महात्मन ! आज्ञा दें, जैसे आज्ञा देंगे वही भोजन परोसा जाएगा। ” उस क्षद्मवेशी ने कर्ण के पुत्र का मांस खाने की इच्छा प्रकट की। “ब्राह्मण को नरमांस का लोभ ! प्रभु कहीं आप मेरी परीक्षा तो नहीं ले रहे ? मैं एक माँ होकर अपने ही बच्चे का मांस कैसे पकाऊ ? उसने विचार किया – “धर्म व व्रत के पालन के लिए सन्तान का बलिदान भी करना पड़े तो नि:संकोच कर देना चाहिए, हो सकता है ईश्वर ने वृषकेतु के भाग्य में यही लिखा हो।
पद्मावती ने ध्यान लगा कर चित्त को शांत किया व समस्त मोह त्याग कर पुत्र वध के लिए प्रस्तुत हुई। वृषकेतु के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए ब्राह्मण के आगे भोजन परोसा तो वह बोला –“ वाह ! क्या बढिया सुगंध आ रही है। जाओ, बाहर से किसी बालक को बुला लाओ, पहला कौर उसे खिलाऊंगा। ”कर्ण बालक की खोज में बाहर गए तो देखा कि वृषकेतु बच्चों के साथ खेल रहा है। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। ब्राह्मण के वेश में स्वयं नारायण कर्ण व उसकी पत्नी की परीक्षा लेने आए थे। पद्मावती ने पति-पत्नी की मर्यादा के पालन के लिए मातृत्व की सभी मर्यादाएँ तोड़ दीं व अपने अप्रतिम त्याग के बल पर संसार में अमर हो गई।]
श्रीरामकृष्ण (मास्टर के प्रति) - नरेन्द्र आया है ?
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — নরেন্দ্র এসেছে?
MASTER (to M.): "Has Narendra come?"
मास्टर - जी हाँ ।
अभिनय हो रहा है । कर्ण और पद्मावती ने आरी को दोनों ओर से पकड़कर वृषकेतु का बलिदान किया । पद्मावती ने रोते रोते मांस को पकाया । वृद्ध ब्राह्मण अतिथि आनन्द मनाते हुए कर्ण से कह रहे हैं, “अब आओ, हम एक साथ बैठकर पका हुआ मांस खायें ।”
कर्ण कह रहे हैं, "यह मुझसे न होगा । पुत्र का मांस खा न सकूँगा ।”
एक भक्त ने सहानुभूति प्रकट करके धीरे से आर्तनाद किया । साथ ही श्रीरामकृष्ण ने भी दुःख प्रकट किया ।
অভিনয় হইতেছে। কর্ণ ও পদ্মাবতী করাত দুইদিকে দুইজন ধরিয়া বৃষকেতুকে বলিদান করিলেন। পদ্মাবতী কাঁদিতে কাঁদিতে মাংস রন্ধন করিলেন। বৃদ্ধ ব্রাহ্মণ অতিথি আনন্দ করিতে করিতে কর্ণকে বলিতেছেন, এইবার এস, আমরা একসঙ্গে বসে রান্না মাংস খাই। অভিনয়ে কর্ণ বলিতেছেন, তা আমি পারব না; পুত্রের মাংস খেতে পারব না। একজন ভক্ত সহানুভূতি-ব্যঞ্জক অস্ফুট আর্তনাদ করিলেন। ঠাকুরও সেই সঙ্গে দুঃখপ্রকাশ করিলেন।
The performance began. Karna and his wife Padmavati sacrificed their son to please God, who had come to them in the guise of a brahmin to test Karna's charity. During this scene one of the devotees gave a suppressed sigh. Sri Ramakrishna also expressed his sorrow.
[ (25 फरवरी, 1885) श्रीरामकृष्ण वचनामृत- 107 ]
卐🙏 अवतार कहते हैं - “मैं आया हूँ"; भक्त कहेगा -मैं खुद नहीं आया, लाया गया हूँ 卐🙏
[অবতার বলেন - "আমি এসেছি"; ভক্ত বলবে -
আমি নিজে আসিনি, আমাকে আনা হয়েছে।]
[Avatar says - "I have come"; The devotee will say -
I myself have not come, I have been brought.]
खेल (वृषकेतु नाटक) समाप्त होने पर श्रीरामकृष्ण रंगमंच के विश्रामगृह में आकर उपस्थित हुए । गिरीश, नरेन्द्र आदि भक्तगण बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण कमरे में जाकर नरेन्द्र के पास खड़े हुए और बोले, “मैं आया हूँ ।"
অভিনয় সমাপ্ত হইলে ঠাকুর রঙ্গমঞ্চের বিশ্রাম ঘরে গিয়া উপস্থিত হইলেন। গিরিশ, নরেন্দ্র প্রভৃতি ভক্তেরা বসিয়া আছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ ঘরে প্রবেশ করিয়া নরেন্দ্রের কাছে গিয়া দাঁড়াইলেন ও বলিলেন, আমি এসেছি।
After the play Sri Ramakrishna went to the recreation room of the theatre. Girish and Narendra were already there. The Master stood near Narendra and said, "I have come."
श्रीरामकृष्ण बैठे । अभी भी वृन्द वाद्यों (orchestra) का संगीत सुनायी दे रहा है । श्रीरामकृष्ण (भक्तों के प्रति) - यह सहगान (Concert) सुनकर मुझे आनन्द हो रहा है । वहाँ पर (दक्षिणेश्वर में) शहनाई बजती थी, मैं भावमग्न हो जाता था । एक साधु मेरी स्थिति देखकर कहा करता था, 'ये सब ब्रह्मज्ञान के लक्षण हैं।'
ঠাকুর উপবেশন করিয়াছেন। এখনও ঐকতান বাদ্যের (কনসার্ট) শব্দ শুনা যাইতেছে।শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদের প্রতি) — এই বাজনা শুনে আমার আনন্দ হচ্ছে। সেখানে (দক্ষিণেশ্বরে) সানাই বাজত, আমি ভাবিবিষ্ট হয়ে যেতাম; একজন সাধু আমার অবস্থা দেখে বলত, এ-সব ব্রহ্মজ্ঞানের লক্ষণ।
MASTER (to the devotee): "I feel happy listening to the concert. The musicians used to play on the sanai at Dakshineswar and I would go into ecstasy. Noticing this, a certain sadhu said, 'This is a sign of the Knowledge of Brahman.'"
[ (25 फरवरी, 1885) श्रीरामकृष्ण वचनामृत- 107 ]
卐🙏 इस विश्व-रंगमंच पर "मैं खुद आया हूँ -कहना ठीक नहीं, और "मेरा" का ज्ञान卐🙏
[গিরিশ ও “আমি আমার” ]
वाद्य बन्द होने पर श्रीरामकृष्ण फिर बात कर रहे हैं । श्रीरामकृष्ण (गिरीश के प्रति) - यह तुम्हारा थिएटर है या तुम लोगों का ?
কনসার্ট থামিয়া গেলে শ্রীরামকৃষ্ণ আবার কথা কহিতেছেন। শ্রীরামকৃষ্ণ (গিরিশের প্রতি) — এ কি তোমার থিয়েটার, না তোমাদের?
The orchestra stopped playing and Sri Ramakrishna began the conversation.MASTER (to Girish): "Does this theatre belong to you?"
गिरीश - जी, हम लोगों का ।
গিরিশ — আজ্ঞা আমাদের।
GIRISH: "It is ours, sir."
श्रीरामकृष्ण - 'हम लोगों का' शब्द ही अच्छा है । 'मेरा' कहना ठीक नहीं । कोई कोई कहता है 'मैं खुद आया हूँ ।' ये सब बातें हीनबुद्धि अहंकारी लोग कहते हैं ।
শ্রীরামকৃষ্ণ — আমাদের কথাটিই ভাল; আমার বলা ভাল নয়! কেউ কেউ বলে আমি নিজেই এসেছি; এ-সব হীনবুদ্ধি অহংকারে লোকে বলে।
MASTER: "'Ours' is good, it is not good to say 'mine'. People say 'I' and 'mine'; they are egotistic, small-minded people."
[ (25 फरवरी, 1885) श्रीरामकृष्ण वचनामृत- 107 ]
नरेन्द्र - सभी कुछ थिएटर है ।
নরেন্দ্র — সবই থিয়েটার।
NARENDRA: "The whole world is a theatre."
श्रीरामकृष्ण - हाँ, हाँ, ठीक । परन्तु कहीं विद्या का खेल है, कहीं अविद्या का ।
শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ হাঁ ঠিক। তবে কোথাও বিদ্যার খেলা, কোথাও অবিদ্যার খেলা।
MASTER: "Yes, yes, that's right. In some places you see tlie play of vidya and in some, the play of avidya."
नरेन्द्र - सभी विद्या के खेल है ।
(प्रत्येक नाटक में हम देखते हैं कि मनुष्य क्रमशः पूर्णता की ओर ही अग्रसर हो रहा है।)
নরেন্দ্র — সবই বিদ্যার।
NARENDRA: "Everything is the play of vidya."
[In each play we see that the Man is marching towards perfection.]
श्रीरामकृष्ण - हाँ, हाँ, परन्तु यह तो ब्रह्मज्ञान से होता है । भक्ति और भक्त के लिए दोनो ही हैं, विद्यामाया और अविद्यामाया ।
শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ হাঁ; তবে উটি ব্রহ্মজ্ঞানে হয়। ভক্তি-ভক্তের পক্ষে দুইই আছে; বিদ্যা মায়া, অবিদ্যা মায়া।
MASTER: "True, true. But a man realizes that when he has the Knowledge of Brahman. But for a bhakta, who follows the path of divine love, both exist — vidyamaya and avidyamaya.
(भावार्थ) - "चिदानन्द समुद्र के जल में प्रेमानन्द की लहरें हैं । अहा ! महाभाव में रासलीला की क्या ही माधुरी है । नाना प्रकार के विलास, आनन्द-प्रसंग कितनी ही नयी नयी भाव तरंगें नये नये रूप धारण कर डूब रही हैं, उठ रही हैं और तरह तरह के खेल कर रही हैं । महायोग में सभी एकाकार हो गये । देश-काल की पृथक्ता तथा भेदाभेद मिट गये और मेरी आशा पूर्ण हुई । मेरी सभी आकांक्षाएँ मिट गयीं । अब हे मन, आनन्द में मस्त होकर दोनों हाथ उठाकर 'हरि हरि' बोल' ।
শ্রীরামকৃষ্ণ — তুই একটু গান গা। নরেন্দ্র গান গাহিতেছেন:
চিদানন্দ সিন্ধুনীরে প্রেমানন্দের লহরী।
মহাভাব রাসলীলা কি মাধুরী মরি মরি।
বিবিধ বিলাস রঙ্গ প্রসঙ্গ, কত অভিনব ভাবতরঙ্গ,
ডুবিছে উঠিছে করিছে রঙ্গ নবীন রূপ ধরি।
(হরি হরি বলে)
মহাযোগে সমুদায় একাকার হইল,
দেশ-কাল, ব্যবধান, ভেদাভেদ ঘুচিল (আশা পুরিল রে, —
আমার সকল সাধ মিটে গেল)
এখন আনন্দে মাতিয়া দুবাহু তুলিয়া
বল রে মন হরি হরি।
"Please sing a little." Narendra sang: " Upon the Sea of Blissful Awareness waves of ecstatic love arise:Rapture divine! Play of God's Bliss! Oh, how enthralling! Wondrous waves of the sweetness of God, ever new and ever enchanting,Rise on the surface, ever assuming, Forms ever fresh.Then once more in the Great Communion all are merged, as the barrier walls Of time and space dissolve and vanish:Dance then, O mind! Dance in delight with hands upraised, chanting Lord Hari's holy name.
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