Bijay: Yes, perhaps something similar might have happened.
Ranenda - However the above-named senior monks did not take part in the January 1968 meeting of the Mahamandal, but they always guided us in different ways. Swami Smarananda (Present President), Swami Budhananda(the then President, Advaita Ashrama), and Swami Joyananda (Sukdev Maharaj) were generally attending our meetings held at Advaita including the second one. I was also generally attending such meetings almost from the beginning.
Ranenda - However the above-named senior monks did not take part in the January 1968 meeting of the Mahamandal, but they always guided us in different ways. Swami Smarananda (Present President), Swami Budhananda (the then President, Advaita Ashrama), and Swami Joyananda (Sukdev Maharaj) were generally attending our meetings held at Advaita including the second one. I was also generally attending such meetings almost from the beginning.
राणेन दा: "मुझे विवेक-अंजन में छपे बीरेन' दा (श्री बीरेंद्र कुमार चक्रवर्ती) के उद्घाटन भाषण में कुछ स्पष्ट गलतियाँ दिखाई दी हैं । दूसरे कॉलम के ऊपरी हिस्से में रामकृष्ण मिशन (RKM) के महासचिव (G.S.) के रूप में स्वामी अभयानन्द का नाम दर्शाया गया है। लेकिन वे तो कभी आरके मिशन का जी.एस. बने ही नहीं थे।
उस समय (1967 में) स्वामी वीरेश्वरानंद और स्वामी गंभीरानंद क्रमशः अध्यक्ष और जी.एस (महासचिव) थे। स्वामी अभयानन्द (भरत महाराज) प्रबंधक थे। मुझे लगता है कि तुम ठीक से समझ नहीं सके या जिस व्यक्ति ने रिकॉर्डर से उनके अंग्रेजी भाषण को सुन कर उसे long hand में लिखा होगा उससे गलती हुई होगी।
बिजय : हाँ, शायद वैसा ही कुछ हुआ होगा।
रनेन दा - हालाँकि, उपरोक्त वरिष्ठ संन्यासियों ने जनवरी 1968 की महामंडल की दूसरी बैठक में भाग नहीं लिया था, लेकिन वे अपने- अपने ढंग से हमलोगों का मार्गदर्शन हमेशा किया करते थे। स्वामी स्मरणानन्द ( रामकृष्ण मिशन के वर्तमान अध्यक्ष), स्वामी बुधानन्द
(तत्कालीन अध्यक्ष, अद्वैत आश्रम), और स्वामी जोयानन्द (सुकदेव महाराज) आम तौर पर अद्वैत आश्रम में आयोजित महामण्डल की दूसरी बैठक सहित हमारी समस्त बैठकों में भाग लिया करते थे। और मैं भी शुरू से ही ऐसी बैठकों में आमतौर पर शामिल होता रहा हूं।
#23-24 जुलाई, 2016 (7.40 pm) को आयोजित महामण्डल के 151 वें SPTC में बीरेन दा द्वारा दिया गया भाषण :
उपरोक्त 151 वें SPTC ( विशेष प्रशिक्षण शिविर) में महामण्डल तात्कालीन GS बीरेन दा ने महामण्डल के संस्थापक महासचिव (=जीवनमुक्त शिक्षक, नेता या पैगम्बर C-IN-C) नवनीदा के सामने " महामण्डल की मूलभावना तथा इसका प्रामाणिक इतिहास" का उल्लेख करते हुए अपने भाषण में कहा था - " आपलोग जानते हैं कि 70 दिनों के अन्तराल पर [ वेदान्त डिण्डिम लीडरशिप परम्परा (पैगम्बर निर्माण प्रशिक्षण परम्परा में] महामण्डल के 5 SPTC (लीडरशिप ट्रेनिंग कैम्प) वर्ष भर में आयोजित किये जाते हैं।
" पिछला SPTC 15 मई , 2016 को हुआ था। तब से लेकर अभी 23 जुलाई, 2016 तक 70 दिनों में मेरे मनुष्य बनने के प्रयास, 3H विकास के 5 अभ्यास में कितनी प्रगति हुई है , उसका मूल्यांकन स्वयं करने हमलोग SPTC में भाग लेते हैं। (जैसे हफ्ता में एक दिन पाठ-चक्र में अपना मूल्यांकन भी करते हैं)।
Sept, 1967 में इस युवा -संगठन आन्दोलन के संयोजक बने थे जयराम महाराज (रामकृष्ण मिशन के वर्तमान अध्यक्ष) , और उन्होंने प्रथम बैठक में भाग लेने के लिए बहुत से रामकृष्ण-भावधारा से प्रेरित युवा संगठनों को आमंत्रित किया था । उस मीटिंग की अध्यक्षता स्वामी अनन्यानन्द जी महाराज ने की थी। जिसमें तय हुआ कि 25 -26 अक्टूबर 1967 को अद्वैत आश्रम में दूसरी बैठक आयोजित की जाएगी। और उसी दिन की बैठक में अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल आविर्भूत हुआ।
महामण्डल युवा आन्दोलन के उस प्रथम कार्यकारिणी समिति के सचिव बने थे नवनीदा। उस दिन की बैठक में बासुदा, बीरेश्वर दा, न्यू बैरकपुर छात्र संगठन के साथ-साथ 6 -7 अन्य युवा संगठन भी शामिल हुए। नीलमणि दा, अमियो दा, नवनीदा को जिम्मा मिला था महामण्डल का नियम-कानून बनाने का। स्वामी गम्भीरानन्द जी महाराज उस समय रामकृष्ण मठ -मिशन के महासचिव थे , वे भेंट होने से हमेशा पूछते थे , कितने पुराने युवा संगठन को महामण्डल से मान्यता प्राप्त हुई ? उनका कहना था कि चल रहे सभी युवा संघों का नाम परिवर्तन करके उन्हें महामण्डल में विलय करके उनको आत्मसात कर लेना जरुरी है।
1967 में युवा महामण्डल के स्थापित होने के बाद प्रथम OTC ( SPTC) बैरकपुर छावनी स्कूल (Barrackpore cantonment school) से प्रारम्भ हुआ था। प्रथम बार का SPTC अढ़ाई दिन का (2 and 1/2 days) का हुआ था। उस OTC में जयराम महाराज भी (वर्तमान में रामकृष्ण मठ -मिशन के अध्यक्ष) आये थे। उसके बाद महामण्डल का प्रथम वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर भी बैरकपुर छावनी स्कूल में ही आयोजित हुआ था।
पहले पहल SPTC का आयोजन नियमित रूप से नहीं हो पाता था। क्योंकि महामण्डल के पास अपनी कोई जगह नहीं थी। बैरकपुर में 'अरविन्द सोसाइटी 'के भूतिया डाकबंगला में SPTC का आयोजन करने के लिए वहां के इंचार्ज से अनुमति लेकर एक कमरा लिया गया था। बासुदा वहाँ के इंचार्ज थे, उन्होंने उसके मैनेजमेन्ट कमिटी से त्रैमासिक OTC आयोजित करने की मंजूरी करवा ली थी।
लेकिन जब वह मकान बहुत टूट-फूट गया ,तब अरविन्दो सोसाइटी वालों ने बोला - " आपलोग अपने खर्चे से बनवा लो , किन्तु वे उस मकान का जमीन महामण्डल के नाम से रजिस्ट्री करने वे तैयार नहीं थे। लेकिन घर का मालिकाना हक अपने ही पास रखना चाहे । " फिर बैरकपुर में ही एक भोलानन्द गिरी आश्रम स्कूल है, वहाँ OTC शुरू हुआ। जब से कोन्नगर में महामण्डल का अपना भवन बन गया तब से प्रति वर्ष 5 SPTC हो जा रहा है। भवन बनने से कितना लाभ हुआ - 151 वां SPTC महामण्डल के अपने भवन में हो रहा है। लेकिन इस बिल्डिंग को जितना मजबूत और उपयोगी बनाने का प्रयास करना था -उतना मोटा छड़ बुनियाद में नहीं दिया ? [ पूछने पर प्रमोद दा कहते हैं -इतना मजबूत है कि इसपर दो तल्ला और खड़ा हो सकता है।]
>>>पूज्य वीरेश्वर दा का तपस्वी जीवन (महामण्डल संगीत घराना के गीत और लेखक): प्रातः कालीन रामकृष्ण स्तुति मनःसंयोग के समय गाया जाता है। जयो -जयो रामकृष्णो भुवन मंगलो में गृही और त्यागी सभी शिष्य के नाम हैं, नाग महाशय, गिरीश घोष, + सभी युवा शिष्यों के नाम हैं। ।"जो भक्तिहीन पर कृपाकटाक्ष करे वही है रामकृष्ण है ! और स्वामीजी- ताप हरण करते हैं ! Ramakrishna is the one who looks kindly on those, without devotion!..... ‘The Lord has not yet given up His Ramakrishna form. … The form of His will last until He comes once again in another gross body. Though He may not be visible to all, that He is in the organization (Sangha, Brotherhood, and is guiding it) is patent to all.’2 ]
१. "भैरव रव रवे , डाको डाको सबे , आर कि घुमानो साजे ? कोतो ना क्लेशे दोहीचे जगत आर कि घुमानो साजे ?" ~ नवनीदा ने लिखा।
२. ' भेंड़ -विवेक-सिंह का बल और हुँकार से घोषणा करो , सिंह शिशु की दहाड़ से युवा घोषणा करो - हम अपने भाग्य के निर्माता हैं। ~ नवनीदा
३. आदर्श तव-शंकर -सीता : ~ चण्डिकानन्दजी द्वारा स्वदेश मंत्र का गीत।
४. आमरा मायेर छेले , भय कि आमार ? ~ वीरेश्वर दा।
५. तेज तुम , तेज दो , बल तुम करो बलियान ~ वीरेश्वर दा।
६. असत राह से मुझे सत राह पर लो , मन का अँधेरा हटाओ ~ वीरेशर दा।
७. हम सब हैं भाई, इस भारत के नवीन युवक दल, हमें तो पथ दिखाए ~ सनातन सिंह।
८. बोड़ो होबो , बोड़ो होबो, ह्रदय -ब्रह्म होबे भाई ~ बि० सिं०।
९. जान लिया है हमने राज, चरित्र से बनता देश-समाज' स्लोगन ~ बि० सिं०।
१०. पदण्डी मुण्डकू , पदण्डी मुण्डकू " तेलगु स्लोगन ~ मुनि स्वामी गारू।
महामण्डल के संघमन्त्र आदि के लिए प्रातः -सायं के विशिष्ट सुर-संगीत घराना के प्रतिष्ठाता वीरेश्वर दा का जीवन ऋषि-मुनियों के जैसा विशिष्ट नियम-निष्ठा द्वारा गठित तपस्यापूत जीवन था। वे कहते थे कि महामण्डल के SPTC में आते समय मन में ऐसा भाव रहना चाहिए मानो हमलोग गुरु के आश्रम में तपस्या करने जा रहे हैं। हमलोगों यहाँ श्रवण करके Chew And digest करने या चिबा कर पचा लेने की भावना से आना चाहिए। मैं खुद यहाँ की शिक्षा को आत्मसात करने आता हूँ। वे कहते थे - महामण्डल के इस दो दिवसीय शिविर में हमलोगों को Picnic Spirit (पीकिनक या वनभोज की भावना) से नहीं आना चाहिए Penance Spirit (तपस्वी-भावना) से आना चाहिए।
एक बार कुछ लोगों ने मिशन में ऊपर (मिशन के महासचिव के पास) शिकायत कर दी कि महामण्डल के पाठचक्र में श्रीरामकृष्ण वचनामृत छोड़कर केवल स्वामीजी का भाव और 'Be and Make ' ही क्यों पढ़ाया जाता है ? रामकृष्ण सेवा संघ के पुराने सदस्यों में बगावत हो गया कि जितने युवा गुरु-परम्परा में दीक्षित हुए हैं उनको महामण्डल में आने नहीं देगा। रामकृष्ण सेवा समिति का कुछ आदमी लोग बोलै हमलोग महामण्डल से तभी जुड़ेंगे जब यहाँ श्रीरामकृष्ण कथामृत (वचनामृत) पढ़ना अनिवार्य बना दिया जायेगा। तब वीरेश्वर दा उन्होंने प्रभु महाराज (स्वामी वीरेश्वरा नन्द) को पत्र लिखा था - "पूछा, मैं भी दीक्षित हूँ , क्या मैं महामण्डल जा सकता हूँ ? लेकिन वहाँ श्रीरामकृष्ण कथामृत (हिन्दी श्रीरामकृष्ण वचनामृत) नहीं पढ़ाया जाता है। तो यदि आप भी यह कह देंगे कि मत जाओ तो मैं महामण्डल छोड़ दूंगा।" प्रभु महाराज ने उसका उत्तर बंगला भाषा में एक पोस्टकार्ड में दिया था। प्रभुमहाराज तमिल थे , जयराम महाराज भी तमिल हैं , लेकिन बंगला जानते हैं। क्योंकि कथामृत-लीला-प्रसंग आदि ग्रन्थ को सभी साधु बंगला में ही पढ़ना चाहते हैं। महामण्डल पुस्तिका 'स्वामी विवेकानन्द और हमारी सम्भावना ' की भूमिका भी उन्हीं की लिखी हुई है। उस पत्र में प्रभुमहाराज ने लिखा था कि -"भोग-खिचड़ी खाना , ठाकुर का असली काम है ? श्री रामकृष्ण- परम्परा में दीक्षित सभी भक्तों को यह ज्ञात हो कि महामण्डल का उद्देश्य और कार्यक्रम में भाग लेना ही ठाकुर देव का वास्तविक पूजा है। हर सदस्य को साप्ताहिक पाठचक्र में अवश्य शामिल होना चाहिए। और जितने भी पूर्व से संचालित युवा संगठन अन्य नाम का प्रयोग कर रहे हैं , उन्हें अपने संगठन का पुराना नाम छोड़कर अविलम्ब महामण्डल के चरित्र-निर्माण आंदोलन में सम्मिलित हो जाना चाहिए। जैसे कई युवा संगठनों को महामण्डल से मान्यता प्राप्त करनी होगी। जो लोग नाम नहीं बदलना चाहते थे , वे महामण्डल से चले जाएँ। " वीरेश्वर दा तो 'रामकृष्ण विवेक-सेवा समीति ???' के प्राण पुरुष थे। वे भी महामण्डल से मिलने के लिए तैयार हो गए। इस पत्र के प्राप्त होने के बाद वीरेश्वर दा ने अपने संघ को महामण्डल में शामिल करने का आवेदन किया। नवनीदा के 'Portfolio Bag' में ही महामण्डल का सारा विधि-विधान पर्चा , पुस्तिका , रहता था भाषण देकर फॉर्म देते थे। Affiliation मिल गया। फिर उनके प्रयास से संस्कृति परिषद , विवेक-समिति ,रामकृष्ण सेवा संघ, ... आदि छः संगठनों का विलय महामण्डल में हो गया।
[ठीक उसी प्रकार जैसे ' झुमरीतिलैया विवेकानन्द ज्ञान मन्दिर' के तत्वाधान में " प्रथम बिहार राज्य स्तरीय युवा प्रशिक्षण शिविर झुमरीतिलैया के अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल द्वारा 1988 में C.H.हाई स्कूल में आयोजित हुआ था। उस शिविर में कोलकाता महामण्डल कार्यकारिणी समीति के अध्यक्ष अमियो दा को छोड़कर, बाकि सभी 15 सदस्य उपस्थित थे। और उस प्रथम बिहार राज्य स्तरीय शिविर के बाद 1988 में ही : 12 जनवरी 1885 को स्वयं स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा और कृपा से स्थापित झुमरीतिलैया 'विवेकानन्द ज्ञान मन्दिर' नाम का विलय झुमरीतिलैया 'विवेकानन्द युवा महामण्डल' में हो गया था। इसीलिए झुमरीतिलैया शाखा को शुरू से ही पूज्य नवनीदा द्वारा महामण्डल नाम use करने की अनुमति है और ध्वज प्राप्त है। (उस समय झुमरीतिलैया भी बिहार में ही था क्योंकि झारखण्ड बिहार से अलग नहीं हुआ था, और उस समय कोडरमा भी जिला नहीं बना था, झुमरीतिलैया तब हज़ारीबाग जिला के अन्तर्गत था।)
>>>महामण्डल का गोल्डन जुबली 2016 सितम्बर से सूत्रपात होगा।
1st मीटिंग में यह तय हुआ था युवाओं को भारतीय संस्कृति से परिचित करवाने के युवा प्रशिक्षण शिविर लगाना होगा। उस मीटिंग में 6 Pre Existing Units भाग लिया था। उनमें से किसी भी संगठन ने "Man-making" सुना नहीं था , Bread Making सुना था। उसके साथ कुछ individuals भी मीटिंग में शामिल थे। नवनीदा किसी भी संगठन से नहीं जुड़े हुए थे। 1st Training camp, में 'कर्मवृत्ति संस्था' नामक एक अन्य संगठन भी भाग लेने आया था, वह एक विजातीय संगठन (Heterogeneous organization) था। वे लोग रहस्य विद्या पर जोर देने वाले Rituals करते थे, यानि एक 'रहस्यमय पद्धति का संगठन' (Organization of the 'Mysterious Method') था। उनके प्रशिक्षण के कार्यक्रम में पंचमुण्डी आसन करते थे ? वाले होम-यज्ञ पद्धति भी शामिल था। लेकिन बाद में उस संगठन का भी महामण्डल में विलय हो गया था। प्रथम कैम्प में नवनीदा के एक करीबी आन्दुल के शौलेन बाबू के साथ धीरेन दा उस कैम्प में शामिल हुए थे। अन्दुल मौरी का सुशान्त भी उस कैम्प में था। लेकिन वह कैम्प सही अर्थ में महामण्डल का कैम्प नहीं था। उस समय के कैम्प में साधु लोग भी क्लास लेते थे। महामण्डल के 50 वर्षों का जब इतिहास लिखा जायेगा तब उसमें ये सब घटनाएं दर्ज होंगी। [ महामण्डल प्रथम कैम्प के शुभ अवसर पर, अन्दुल मौरी के सुशान्त दा के पिता श्री भवदेव बंदोपाध्याय भी उपस्थित थे। उनके अनुसार महामण्डल का प्रथम युवा प्रशिक्षण शिविर 1968 के 8 जनवरी को दक्षिणेश्वर के आड़ियादह में आयोजित हुआ था? लेकिन वीरेनदा बताये हैं बैरकपुर ? में पहला कैम्प हुआ ?] तब उस शिविर में उन्होंने अपने पुत्र तथा आन्दुल के दो युवकों को शिविर-प्रशिक्षणार्थी के रूप में भेजा था। लेकिन वह कैम्प सही अर्थ में महामण्डल का कैम्प नहीं था। उस समय के कैम्प में साधु लोग भी क्लास लेते थे। ]
>>>1968 जनवरी महीने में प्रथम कैम्प का उद्घाटन (Inauguration) स्वामी समबुद्धानन्द जी महाराज ने किया था। वे विवेकानन्द शतवार्षिकी के सचिव थे। वे ठाकुर-माँ-स्वामीजी - तीनों Holy Trio शतवार्षिकी के सचिव रहे थे। उनका कार्य करने का तरीका 24 घंटा एक था , जो उनके पास आया वो भगवान ने भेजा सोचकर उसका नाम, ठिकाना, फोन नंबर लेते थे। आपका क्या मत है पूछ कर एक डायरी में नोट भी करते थे। भारत के राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन के सामने एक बार उन्होंने कहा था - " If Mahatma Gandhi is the Father of the nation, then Swami Vivekananda is the Grandfather of the nation! "- अर्थात महात्मा गांधी यदि राष्ट्रपिता हैं, तो स्वामी विवेकानन्द राष्ट्र के पितामह हैं!" उन्होंने एक बार बताया था कि अमेरिका के 32 वें राष्ट्रपति President Roosevelt की बेटी भारत दर्शन करने आयी थी। उनसे पूछा गया कि आने भारत में अभी कैसी अवस्था देखि ? उन्होंने बताया था कि - "अंग्रेज जो खाकर उलटी करता है , उसको अमेरिका खता है , अमेरिका का यूवा जो उलटी करता है, India का युवा वही खाता है। " स्वामी समबुद्धानन्द जी को महामण्डल से बहुत आशा थी। उनके ही आदेश से यहाँ के शिविर में रहस्यमय rituals आदि होना बंद हो गया।
>>>1969 वार्षिक कैम्प - बैरकपुर छावनी में भोलानन्द आश्रम स्कूल बिल्डिंग में हुआ था । तब तक 6 days camp का Course and syllabus नहीं बना था। उस समय बहुत से साधु लोग भी क्लास लेने आते थे। वे लोग बता देते थे कि घर में जाकर ये सब प्रैक्टिस करेगा तो Man-Making हो जायेगा।
>>>1970 कैम्प - सरंगाबाद में हुआ जो उग्र नक्सली क्षेत्र था। बैंडेल के पास त्रिवेणी का एक MLA सहयोग किया था। आनन्द बाजार पत्रिका के सम्पादक अमियो बन्दोपाध्याय थे , उन्होंने अपने पेपर में कैम्प का पूरा समाचार लगातार 4 -5 रोज छापा था। उन्हीं दिनों एक पेज का सम्पादकीय लिखने पर सन्तोष घोष ??? को ठाकुर देव का दर्शन मिला था , नजर बदल गया था???। इस शिविर के बाद महामण्डल के 'Youth Training Camp' का Course and syllabus लिखने का कार्य भार साधु लोग के साथ महामण्डल के पूर्व उपाध्यक्ष 'श्री क्षेत्र सेन शर्मा' को दिया गया था। वे भवेश दा का friend थे । क्रान्तिकारी नाटक करना उनका मुख्य कार्य था। केमिस्ट्री और ड्रामा ताश खेलना तो चार आदमी चाहिए। इसको मेंबरशिप कौन दे दिया ? विप्लव आर्टिस्ट था। 184 कैम्पर का सर्टिफ़िकेट हाथ लिख दिया। विप्लवी होने का सर्टिफिकेट हाथ से लिखकर देता था। मुख्य काम था नाटक करना।
बीरेन दा के भाषण के बाद डॉक्टर राजर्षि ने एक गीत गाया - राग बहार में वीर सेनापति ! फिर एक रविन्द्र संगीत सुनाया -शुधु तोमार वाणी नय गो, हे बन्धु, हे प्रिय; माझे माझे प्राणे- तोमार परश खानि दियो।।
गीत के बाद वीरेन दा ने पुनः कहा - विवेकानन्द साहित्य के हिन्दी/English publication office, प्रकाशन कार्यालय अद्वैत आश्रम से जुड़ी 40 page में लिखित घटनायें महामंडल की पृष्ठभूमि 'Background of mahamandal' -- से जुड़ी हुई हैं ??। उन दिनों >>>उस समय के युवा नवनीदा कुछ महाराज लोग के साथ अपने ऑफिस से सुन्दरी मोहन देव रोड से या CIT रोड पार्क सर्कस होते हुए Evening Walk पर जाते थे। नवनीदा कहते हैं - स्वामी वन्दनानन्द, अनन्यानन्द के साथ शाम को अद्वैत आश्रम से पार्क सर्कस तक १/२ किमी घूमने के लिए जाते थे। उस समय के मेधावी छात्र भी लाइब्रेरी जलाने लगे। रेल की सम्पत्ति , सरकारी सम्पत्ति में आग लगाने लगे। उन्हें कोई ये नहीं बता रहा था कि शिक्षा पद्धति में परिवर्तन करें या पुस्तक ही जला दें ? तो एक दिन जाते -जाते कुछ शिक्षित युवा, कॉलेज स्टूडेन्ट नवनीदा और जयराम महाराज (वर्तमान रामकृष्ण मठ मिशन के अध्यक्ष) पर कटाक्ष करते हुए कहा - " देखो साधु लोग देश का माल खा खा कर कितना मोटा हो गया है। " तब उनलोगों के मन में आया कि एक युवा संगठन के माध्यम से एक रचनात्मक आंदोलन खड़ा करना अत्यन्त आवश्यक हो गया है।
भारत को 1947 में आजादी मिली , उसके बाद 1967 आते आते 20 वर्ष गुजर गया। देश के गरीब किसानों की अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, युवाओं की आशा भंग हो गयी , हताशा के चलते युवा वर्ग में विप्लवी मानसिकता ने जन्म लिया। कोलकाता में नक्सल मूवमेन्ट के पहले महामण्डल की स्थापना 1967 में हुई थी। 1947 में देश आजाद हुआ , लोगों के मन में आशा थी कि अब भारत में कोई भूखा नहीं सोयेगा , सभी भोजन-वस्त्र -आवास उपलब्ध होगा। 20 वर्षों तक पूरे देश में केवल एक ही पार्टी का शासन रहा। लेकिन स्वाधीनता के बाद 20 वर्षों तक प्रतीक्षा किया , लेकिन कोई परिवर्तन नहीं हुआ। केरल में कम्युनिस्ट शासन कुछ दिन रहा , फिर congress लौटा सिंगल party ! लेकिन एक एक कर 20 वर्ष बीत जाने पर भी जब परिवर्तन नहीं दिखा तब युवा वर्ग आक्रोशित हो उठा। पोल्टीसिअन राजनितिक नेता लोग युवा को गलत दिशा में ले जाने लगे।
उसी युवा आक्रोश की परिणति नक्सल आंदोलन में हुई। उस समय की समसामयिक घटना का विश्लेषण करने पर हम देखते हैं-युवाओं में हताशा थी। पहले अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश था कि इन्होने हमारे देश को दरिद्र बना दिया। उसको भारत से बाहर निकालो। भारत की दुर्गति के लिए केवल अंग्रेजी शासन ही जिम्मेदार है , उसको हटाओ ! उसको भगाने से सब दुःख दूर हो जायेगा। स्वामी जी ने कहा -मैं 4 दिन में आजादी दिलवा सकता हूँ ; लेकिन उसको सम्भाल कर रखने वाले मनुष्य कहाँ हैं ? अतः पहले मनुष्य का निर्माण करने वाला आंदोलन शुरू करो। लोगों ने सोचा शायद केवल अंग्रेज ही मुख्य कारण है ,उसको भगा देने से सब ठीक हो जायेगा।
>>जगदीश्वर के कखोनो फांकी देवा जाए ना : पहाड़ मोहम्मद के निकट आ सकता ; तो मोहम्मद पहाड़ के निकट जायेगा। बन्धु कौन होता है ? जो घर-बाहर कहीं कहीं अकेला नहीं छोड़े। शिशु जैसा पवित्र तरुण दल popular होने लगा। सभी महान शिक्षाएं श्रवण से ही प्राप्त होती हैं। माँ के मुख से और अपने कानों से सुनकर ही हमने श्रेष्ठ शिक्षा - मनुष्य बनने की शिक्षा प्राप्त की है। संन्यासी और गृहस्थ दोनों अपने अपने स्थान में श्रेष्ठ हैं। श्रेष्ठ शक्ति के प्रतीक हैं।
>>>खाँटी लोग मुखे जा बोले ताई करे ! ह्रदय शरीर का राजधानी है - heart के निकट ही Blood pumping machine होता है। सिर्फ भारतीय नारी ही नहीं अमेरिका की नारी भी अपने सन्तानों को मनुष्य बनने की शिक्षा देंगी। इस मनुष्य-निर्माणकारी शिक्षा- Be and Make' को सार्वभौमिक धर्म का रूप देना होगा। 1893 से 1896 तक स्वामीजी अमेरिका में रहे , 15th जनवरी, 1897 को सिंघल पहुँचे। फरवरी महीने में कोलकाता आये। कोलम्बो से अल्मोड़ा तक जागरण मंत्र सुनाया। लाहौर -कराँची तक घूमे। ३-४ साल से भारत से दूर थे। 1897 से 99 बिताने के बाद दुबारा गए थे। वहाँ उनको " मेरे गुरुदेव " पर भाषण देना पड़ा।
बंगाल से कांग्रेस का शासन चला गया, रक्षणशील -प्रतिक्रियाशील -क्रान्तिकारी संयुक्त मोर्चा और Left Front का सरकार बन गया। Hard or Soft पता नहीं , उसके सभी नेता क्रान्तिकारी ही थे। 1962 से 1967 तक बंगाल में PC Sen (प्रफुल्ल चन्द्र सेन) का शासन था। वे त्यागी थे, लेकिन चुनाव में हार गए। जनता-दल का शासन आया फिर गया - यही चलता रहा। जनता फिर उद्वेलित हो गयी। अजय मुखर्जी # को क्या गाँधीवादी नेता कह सकते हैं ? [ अजय कुमार मुखर्जी # (15 अप्रैल 1901 - 27 मई 1986) एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने वर्ष 1967 में आरामबाग विधानसभा क्षेत्र में एक अन्य गांधीवादी प्रफुल्ल चंद्र सेन को हराया और प्रफुल्ल चंद्र सेन के बाद पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने। वे पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले के तमलुक के रहने वाले थे। उनके भाई विश्वनाथ मुखर्जी कम्युनिस्ट सांसद गीता मुखर्जी के पति थे । अजॉय की भतीजी कल्याणी (दूसरे भाई की बेटी) की शादी मोहन कुमारमंगलम से हुई थी और वह रंगराजन कुमारमंगलम और ललिता कुमारमंगलम की मां थीं ।]
Russia -1948 : मार्क्स के कम्युनिज्म से स्टालिन के चरित्र का कोई मेल नहीं था , चीनी राष्ट्रपति माओ का असली मार्क्सवाद से कुछ भी लेना -देना नहीं था। रसिया में चुनाव के बाद - Stalin का पतन हुआ - और खुर्श्चेव पार्टी प्रसिडेन्ट बना। 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी बंट गया। श्रीपाद अमृत डांगे का पत्र मिला जो Blitz में छापा ,अंग्रेज को खुशामदी चिट्ठी लिखा था। - Your most obedient servant Dange ? किसी केस के विषय में। तय हुआ 32 नेता लोग डांगे को पार्टी से निकाल दो। 1967 में डांगे को विप्लवी दल से निकलने वाला अजय मुखर्जी दोनों रहा। नारा था - इलाका इलाका डांगे दलाल , पहचान लो। G.L. Nanda 3 बार P.M. हुआ। साधु प्रकृति मनुष्य था। होम मिनिस्टर था। चीन के दलाल गुप्तचरों को अरेस्ट किया। नक्सल आंदोलन शुरू हुआ जेल का ताला टूटेगा चीनी बंदी छूटेगा। हताशा से मुक्ति देगा , Land reform minister चारु मजूमदार का दर्शन शास्त्र , कानू सान्याल और जंगल सरदार लोगों को दर्शन था 'Operation Killing'- 6 " छोटा चलाकर उनको मानव हत्या करने में आनन्द मिलता था।
20 वर्ष बाद किसान-मजदूरों की कम्युनिस्ट सरकार बंगाल में बनी। लोगों ने सोचा जब सर्वहारा वर्ग सत्ता में आएगा तो उन्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। लेकिन ऑपरेशन बर्गा कानून लागु किया गया , जिसका मतलब ये था कि अगर कोई भूमिहीन किसी जमींदार के खेत पर साझे में खेती कर रहा है तो उसके हक को अचानक खारिज नहीं किया जा सकता है। अगर जमीन मालिक इस जमीन को बेचने जा रहा है तो उसे सबसे पहले इस जमीन को अपने बंटाईदार को ही बेचने की पेशकश करना पड़ेगी। कोई लाभ नहीं हुआ। युवा हताशा के परिणाम थे - चारु मजूमदार, कानू सान्याल , जंगल सरदार। उनलोगों का कहना था कोई कानून नहीं - जमीन्दारों की हत्या कर दो। ऊपर से ६" छोटा कर दो ! यही विचार कॉलेज के स्टूडेंट्स में पॉपुलर होगया।
1972 से 1977 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धार्थ शंकर रे का शासन रहा। बहुत से होनहार युवा मारे गए या जीवन बर्बाद हो गया।.... अनन्यानन्द जी उस मीटिंग में थे। हैदराबाद मिलने गया। महाराज उसको logens दिया। preside किया था। V/P था सुरेश चंद्र दास। विज्ञानानन्द जी का साक्षत शिष्य प्रेस में था।
बंगला प्रसिद्द उपन्यासकार शरतचन्द्र चटर्जी का मझले भाई प्रभास ? रामकृष्ण आश्रम में साधु बन गए थे। संन्यासी होने के बाद उनका नाम था स्वामी वेदानन्द। रंगून से लौटने के बाद मठ से नाराज होकर शरतचन्द्र अपने भाई को वापस ले आये, और उसका विवाह कर दिया और उन्हें गृहस्थ बना दिया। उनका एक पुत्र और एक पुत्री हुई थी। वे हेडमास्टर थे 15 एकड़ का विशाल plot खरीदा था। मिशन को देना चाहते थे। स्थानीय लोगों के लिए हॉस्पिटल या जो कुछ चाहे खोलिये।
1967 में विवेकानन्द युवा महामण्डल स्थापित हो जाने बाद , 1972 में श्री एकनाथ रानाडे ने कन्याकुमारी में विवेकानन्द केन्द्र की स्थापना की थी। [एकनाथ रानडे (१९ नवम्बर १९१४ - २२ अगस्त १९८२) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक समर्पित कार्यकर्ता थे जिन्होने सन् १९२६ से ही संघ के विभिन्न दायित्वों का निर्वाह किया।] रानाडे ने महामण्डल को प्रस्ताव दिया आदिवासी कल्याण के लिए उसमें कुछ कर सकता हूँ। महामण्डल को पत्र लिखे। निर्मलेन्दु दा ??? -- बोले बाहर से आकर कोई उस गाँव में सेवा-भाव से काम नहीं करता है। उनको मनुष्य निर्माण का काम ज्यादा पसन्द था। इनको महामण्डल का idea और logic पर विश्वास था। उन्होंने कहा अब समझ में आता है - इतना बड़ा institution किस पर छोड़कर जाऊँ ? वे चले गए। 2nd मैन कोई तैयार नहीं हो सका।
अजीमगंज विवेक-वाहिनी के लिए रेल विभाग ने जमीन दिया था । निकारीघाटा विवेक-वाहिनी देखो। विवेक-वाहिनी का नेता C-IN- C तरुण ? है। राजू मैती ? हर जोनल OTC में विवेक-वाहिनी पर एक एजेण्डा रहना जरुरी है। भोगपुर सेन्टर में विवेकवाहिनी कैम्प होने में असुविधा होती है। विवेक-वाहिनी कैम्प भी स्टेट लेवल कैम्प की गरिमा से होना चाहिए। परिवेश गरिमापूर्ण हो। उसका जिम्मेवारी जोनल इंचार्ज पर होगा। कैम्प साईट अच्छा बनना चाहिए। 8.25 pm विवेक-वाहिनी रिपोर्ट: गत मार्च OTC के पहले " विवेक -वाहिनी निदेशक शिविर" (বিবেক বাহিনী পরিচালক শিবির) Vivek vahini director camp' हुआ था। उस शिविर में यह बताया जाता है कि जहाँ बच्चों का कोई शाखा नहीं हो वहां , कैसे शुरू करें ? किशोर -वाहिनी महामण्डल का सहायक भाव से काम करता है। Executive meeting में विशेष अध्यक्ष की अनुमति से पर -बार बार शिशु-विभाग , किशोर-विभाग खोलने पर चर्चा हो। १-२ दिन शिशु विभाग का पाठचक्र हो। 153 कैंपर्स में 57 न्यू कॉम्पर्स हुआ था। ४ साल में विवेक-वाहिनी फिर से पुरुज्जीवित हुआ है। २४ विवेक-वाहिनी यूनिट चलता है। अभी २६ हुआ है। २२ यूनिट बन्द भी हुआ है। तो जुड़ा भी है प्लस/माईनस होकर 26 unit चलता है।
24 जुलाई, 2016 : 7.00 am जलपाईगुड़ी के संजीत द्वारा , स्वामीजी द्वारा अलासिंघा पेरुमल को 19 नवम्बर, 1894 को लिखित पत्र का पाठ हुआ। श्री सोमनाथ बागची द्वारा Life building and Character building' का वर्ग लिया गया। >Speaker on Aims and objectives of Mahamandal : महामंडल के लक्ष्य एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डालेंगे 1 . Speaker Sandip Singh : उद्देश्य - समस्त मनुष्यों का कल्याण ! उपाय - चरित्र गठन ! 3rd Speaker : अतनु मान्ना : 4th Speaker : असीम कुमार पोड़िया - >- विद्युत् कान्ति विश्वास , तारक नगर , नदिया जिला , 2nd Speaker : सुजीत -अच्छी आवाज है।3rd Speaker : अशेष मण्डल : 4th Speaker : दिनेश मल्लिक। ]
>>> Minimum possible lunch and dinner : जितना कम से कम भोजन कर सको करो - भात में- आलू सिद्धो , पेपे सिद्धो ! उबला आलू या उबला पपीता के साथ उसना चावल खाया ? या पकवान खाने चाहा ?
भगवान कृष्ण एक रोज गौ चराते हुए जंगल में दूर चले गए तो जंगल में वृक्ष के नीचे गायों को विश्राम करते देखकर बोले -
पश्यतैतान् महाभागान् परार्थैकान्तजीवितान् ।
वातवर्षातपहिमान् सहन्तो वारयन्ति न: ॥ ३२ ॥
(श्रीमद् भागवतम,श्लोक 10.22.31-32 )
भगवान् कृष्ण ने कहा “हे मित्रो , जरा इन भाग्यशाली वृक्षों को तो देखो जिनके जीवन ही अन्यों के लाभ हेतु समर्पित हैं। वे हवा, वर्षा, धूप तथा पाले को सहते हुए भी इन तत्त्वों से हमारी रक्षा करते हैं।
अहो एषां वरं जन्म सर्वप्राण्युपजीवनम् ।
सुजनस्येव येषां वै विमुखा यान्ति नार्थिन: ॥ ३३ ॥
जरा देखो, कि ये वृक्ष किस तरह प्रत्येक प्राणी का भरण कर रहे हैं। इनका जन्म सफल है। इनका आचरण महापुरुषों के तुल्य है क्योंकि वृक्ष से कुछ माँगने वाला कोई भी व्यक्ति कभी निराश नहीं लौटता।
एतावज्जन्मसाफल्यं देहिनामिह देहिषु ।
प्राणैरर्थैर्धिया वाचा श्रेयआचरणं सदा ॥ ३५ ॥
हर प्राणी का कर्तव्य है कि वह अपने प्राण, धन, बुद्धि तथा वाणी से दूसरों के लाभ हेतु सदा - श्रेय का ग्रहण करते हुए प्रेय का त्याग करे और कल्याणकारी कर्म करे।
एक प्रश्न आया महामण्डल का एक भाई मेरे बहुत निकट है , लेकिन वो हमसे जलता है , ईर्ष्या करता है , क्या करें ? किसी में यदि दोष दिखे, नाम- यश की कामना दिखे तो प्रेमपूर्वक उस दोष को अकेले में बता दो। ताकि उसे शर्मिन्दा न होना पड़े। विद्वेष-शत्रुता या वैर न दिखाते हुए, भरी सभा में किसी के दोष को उजागर न करो।
गृहस्थ जीवन में रहते हुए लीडरशिप ट्रेनिंग में 1st OTC से 2nd OTC के बीच जो 70 days मिला इसमें 3H विकास के 5 अभ्यास का self -grading करो। यम-नियम का पालन करना Leader के लिए आवश्यक है। ब्रह्मचर्य-पालन अनिवार्य है। जीवन में नैतिकता का पालन और चरित्र पर कोई धब्बा न हो। आत्ममूल्यांकन करो प्रयोजन से अधिक भोग करने की ओर तुम्हारा मन तो नहीं जा रहा है ? श्रेय का ग्रहण और प्रेय के त्याग में ही आनन्द है , इसके उल्टा में नहीं।
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Bijay - What is the fundamental spirit behind establishing Mahamandal? How can this be explained to the coming generations?
Ranen da - Vivek Anjan originally started to bring out Hindi translations of all that are published in Vivek Jiban mainly for circulation for the benefit of Mahamandal boys of the Hindi belt. Initially, it was working fine. Of late, some people are reporting that you are referring to Mandukya Upanishad to make the boys understand the concept of Swamiji's "BE AND MAKE".
My request to you would be to avoid such things (which may create confusion) in the future, and use simple quotations from Ramkrishna Vivekananda's literature only. You better stick to the Hindi translation of V-J for Vivek Anjan, as you have been doing for so long.
Bijay Kumar Singh: " Correct! In the future, I will take care of it. Actually, quotations from 'Mandukya Upanishad' were never published in our Hindi magazine, "Vivek- Anjan! " but, those were published on my website "Vivek-Anjan Blogspot. Com " I was writing this for my own benefit, I thought boys would not like to read Mandukya Upanishad. So it will not harm them. I posted some Mandukya quotations on WhatsApp, to one senior member and some selected boys. But it seems they too couldn't digest the same. So, as per your advice Today I will withdraw all the blogs which I had sent them.
Renan da WhatsApp: If you have published it not in Vivek-Anjan magazine, but on your blog for your own benefit, then I have no objection to that. But you should not take back what you have already posted. This may give a wrong message. In the future, you may post to selected persons only.
Bijay Kumar Singh: Actually this Upanishad was being taught at Belur Math by Swami Vishwatamanand of Kailash Ashram, Haridwar, on YouTube in Hindi. Which helped me to understand the meanings of Om.
बिजय - महामण्डल को स्थापित करने के पीछे इस संगठन की मूल भावना क्या है ? यह बात आगे आने वाली पीढ़ी को कैसे समझाया जा सकता है ?
रनेन दा : मूल रूप से हिंदी क्षेत्र के महामंडल के लड़कों के लाभ के लिए बंगला 'विवेक जीवन' में प्रकाशित सभी सम्पादकीय तथा अन्य निबन्धों का हिंदी अनुवाद 'विवेक अंजन ' शीर्षक महामण्डल के हिन्दी मुखपत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था। प्रारंभ में, यह ठीक काम कर रहा था। हाल में (नवनीदा का शरीर त्यागने के बाद) , कुछ हिन्दी भाषी लोग रिपोर्ट कर रहे हैं ?? कि तुम लड़कों को स्वामीजी के "BE AND MAKE " की अवधारणा को समझाने के लिए उस पत्रिका तुम " माण्डूक्य उपनिषद " के गूढ़ श्लोकों का उल्लेख कर रहे हो ? मेरा तुमसे अनुरोध है कि भविष्य में ऐसी चीजों (जो भ्रम पैदा कर सकती हैं) से बचो और केवल रामकृष्ण विवेकानन्द के साहित्य से सरल उद्धरणों का उपयोग करो। बेहतर होगा कि तुम 'विवेक अंजन' में छपने के लिए केवल विवेक-जीवन में छपे निबन्धों का हिंदी अनुवाद छापने के सिद्धान्त पर कायम रहो, जैसा कि तुम इतने लंबे समय से करते आ रहे हो।
बिजय कुमार सिंह: " बिल्कुल सही! भविष्य में मैं इसका ध्यान रखूंगा। दरअसल, हमारी हिंदी पत्रिका "विवेक-अंजन" में 'माण्डूक्य उपनिषद' के उद्धरण कभी प्रकाशित नहीं हुए! लेकिन, वे मेरी वेबसाइट "विवेक-अंजन ब्लॉगस्पॉट.कॉम" पर अवश्य प्रकाशित हुए थे। मैं बहुत वर्षों से इस वेबसाइट पर अपने फायदे के लिए हिन्दी ब्लॉग्स लिखता चला आ रहा हूँ। मुझे लगा कि लड़के मांडूक्य उपनिषद पढ़ना पसंद नहीं करेंगे। इसलिए इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। मैंने माण्डूक्य उपनिषद के कुछ उद्धरण अपने व्हाट्सएप ग्रुप में एक वरिष्ठ सदस्य और कुछ चयनित लड़कों को पोस्ट किए थे। लेकिन ऐसा लगता है कि वे भी इसे पचा नहीं सके। इसलिए, आपकी सलाह के अनुसार आज ही मैं वे सभी ब्लॉग वापस ले लूँगा जो मैंने उन्हें भेजे थे।
रेनन दा व्हाट्सएप: यदि तुमने इसे विवेक-अंजन पत्रिका में नहीं, बल्कि अपने लाभ के लिए अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया है, तो मुझे उससे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन जो तुमने पहले ही पोस्ट कर दिया है, उसे तुमको अब वापस नहीं लेना चाहिए। इससे गलत संदेश जा सकता है। भविष्य में, तुम्हें केवल चयनित व्यक्तियों को ही पोस्ट करने की चेष्टा करनी चाहिए।
बिजय कुमार सिंह: दरअसल यही माण्डूक्य उपनिषद किसी दिन बेलूड़ मठ में कैलाश आश्रम, हरिद्वार, के स्वामी विश्वात्मानन्द जी के द्वारा YouTube पर हिंदी में पढ़ाया जा रहा था। जिसे सुनकर मुझे भी ओम का अर्थ समझने में थोड़ी मदद मिली है।
Respected Navni Da has made it clear in the first chapter of his book "A NEW YOUTH MOVEMENT" that this movement is completely based on the teachings of Geeta and Upanishads. In it he has written – "As soon as common people hear about an organization, particularly in the name of Swami Vivekananda, their imagination takes it to the final field of work among the downtrodden and the lowly. True, Swamiji wanted that. But very often we forget Swamiji's directions for preparation for such work through self-development. We want to rush to the college before we finish the school. There our buddhi fails us. So Krishna (in Gita 2.49) exhorts us to take recourse to buddhi-दूरेण, हि, अवरं, कर्म, बुद्धियोगात्, धनञ्जय । बुद्धौ, शरणम्, अन्विच्छ, कृपणाः, फलहेतवः ॥
And the rishi of the Upnishad [Chandogya Upanishad (1.1.10)] asks us to have Vidya. - " That work becomes more efficient, says the Chhandogya Upanishad ---' तेनोभौ कुरुतो यश्चैतदेवं वेद यश्च न वेद । नाना तु विद्या चाविद्या च यदेव विद्यया करोति, श्रद्धयोपनिषदा तदेव वीर्यवत्तरं भवतीति....॥ [1.1.10]
"Whatever Work is done with vidya, knowledge, through shraddha, faith, and backed by Upanishad, meditation, that alone becomes most effective. which is undertaken with adequate understanding, faith, conviction, and sincerity, and the required know-how. With the understanding of the negative and the positive aspects, if a work is taken up, it has a better chance for success. Swamiji's plan follows this scheme in Toto and that is why his Social Service is so different from all others. The Mahamandal wants to follow this plan ("Be and Make") only and does not propose to depend on techniques and theories of social service imported in bulk from elsewhere."
I think that every would be Leaders of Mahamandal should also listen the lecture of Swami Vishwatmananda on Mandukya Upanishad as he is also a Puri Order Sanyasi like Totapuruji Maharaj .
[09/08, 14:52] Ranenda Whatsapp: I shall talk to over phone later. Now take a little rest.
[23/08, 14:42]
Ranendra Whatsapp: Nabani Das was always reluctant to change members of the Executive Committee frequently. 'Aru' was too young at the time and therefore Amit was inducted as an assistant Secy.
" Everything cannot be controlled by a few at the city office. You have to trust the next level of experienced workers to make use of the enthusiasm and talents of boys. But, the main hindrance to that is: there is a trust deficit and an anxiety-driven approach. No positive vision is driving the work. It's just going on with the momentum acquired long back." This post I received from a young Mahamandal worker while chatting with him in connection with an important issue. Do you agree with his view?
Ranenda Watsap: Nabani Da sacrificed almost his entire life for the common people through Mahamandal and then only this Organization took a sound shape/footings. Do you think that the present few persons of the City Office, who are now controlling the affairs have A positive vision in making decisions and having trust in the next level of experienced and talented workers? The young man's feeling is that "the momentum acquired long back" ie at the time of Nabani Da is still the force acting and the newcomers in the management are not in the position to understand and follow what Dada wanted.
Do you think that they all understand the significance of VAJRA on the Mahamandal flag and acquired the quality of SACRIFICE for the cause of the Organization?
Bijay Kumar Singh: I want to see any person from the next level be the General Secretary of the Mahamandal, who understands the significance of VAJRA and transforms his life accordingly. I agree that the present C-IN-C of Mahamandal is quite unfit for the post. If I had been present in that executive body meeting, certainly I would've objected to his name for the CHAPRAS of C-IN-C to a person like the present one.
Ranen da : This will be decided in the next AGM by the General Body of the Organization. I and you are simply two individuals of that Body. That's the Spiritual power of Vajra, (Wisdom and Compassion) which will select the right person to hold the Mahamandal's Flag. I am sure of this miracle that is going to happen!
My understanding regarding the significance of VAJRA is, that it mainly represents "SACRIFICE AND STRENGTH". While making our flag, the sacrifices made by the famous mythological saint Dadhichi for God's (good) to concur with the battle against Danabas(evils) were in our minds. As you are aware Vajra was made from the bones of the dead body of the saint, who sacrificed his life for the ultimate welfare of mankind.
To run our organization properly, we require such a person who has an attitude to sacrifice for others apart from organizational power and love, as wanted by Swamiji. Love for each and everyone plays the role of the main bondage for any organization. If one can love others all other things like discipline, obedience, respect, and interest to work seriously will automatically come.
Bijay Kumar Singh: With respect, I want to ask REGARDING WEBINAR , what you think, about how a student's personality can be developed.
[30/08, 10:32] Ranenda Watsap: What I suggest, you better attend today's programme and thereafter we can discuss. You are aware that I am not a well-read person like you. Still, I shall try to tell you my opinion about the way a student can develop his personality in the way suggested by Mahamandal.
Ranenda Watsap: How you can conclude that this WEBINAR will not be on the way suggested by Mahamadal unless you attend it? We should not be so much conservative in our approach to make others understand our own stand. So, you attend today's webinar and thereafter we can discuss and tell the organizers subsequently if we find any deviation.
[30/08, 10:58] Bijay Kumar Singh: Jahan tak mai samajhta hu, Mahamandal ka uddeshya to " BRAHM bid Maushya bn na aur banana hai. Upnishad me kaha gaya hai - Brahmbid Brahmaiv bhawti. Bina apne swarup ko jane , chaar mahawakya ka Shravan, Manan, Nididhyasan ya Samadhi me atma-sakshtakar kiye kisi ki Leadership wali personality nahin ban sakti . Navani da isko " Individuality " kehte the, personality to is Neta ka Aura ko kehte hain.
[30/08, 11:10] Ranenda Watsap: Tum to bhujte agey barh giya! If you tell this to junior boys and other common people jey tumio personality develop korbena liye tumko brhhmbid banna hai. to oh turnt uhase vag jayega. Gradually you proceed to take him to that ultimate stage.
[30/08, 11:14] Bijay Kumar Singh: Kya Mahamandal ke senior members yah jante hain ki hamlogo ka Anthem, Rigved se liya gaya hai, lekin Atharvaved me bhi thoda badal kar yahi mantra diya hua hai, aur Swami Vivekanand apne Bhashan me Atharvaved ki Richa ka hi ullekh kyon kiya tha ?
[30/08, 11:31] Ranenda Watsap: Please don't think that even the seniors of Mahamandal have conceptual ideas like you, and all of them had close contact with Nabani Da, as you had. That's why I always tell you to share your ideas with other workers in a way they can accept and not to make a hurry in this regard.
[30/08, 11:34] Bijay Kumar Singh: Thank's dada, I agree with you. But I can't dilute my principal's.
[30/08, 11:47] Ranenda Watsap: If you agree with my view and hear the deliberations of the webinar. I your principle will be diluted! This you can call an Orthodox/conservative approach to look things. You should have the Catholicity to hear others' opinions and thereafter to react. Don't do the same thing that Dipak did in the last Executive. Committee Meeting.
[30/08, 12:09] Bijay Kumar Singh: Sab koi Instant coffee type formula khoj raha hai, jisko karne se turant sabko uska khoya hua vyaktitiva mil jaye. Lekin 5 abhyas jo dada ne bataya hai, usko kiye bina Atma Shraddha kaise aa sakta hai? Ye main nahin janta. Main yah janta hun ki jo koi nam -yash ka chinta ya post ka chinta chor kar is 5 abhyas se Brahm ko khojne ke andolan me laga rahega, usko jarur Ishwar laabh hoga.
[30/08, 12:12] Bijay Kumar Singh: If it is your order, then I will obey it ![30/08, 17:11] Bijay Kumar Singh: I couldn't join the meeting as my new Samsung phone does not support the above-mentioned meet ID.[30/08, 18:40] Bijay Kumar Singh: Anyway I could join the program at 5.30 PM and listen till last at 6.40 PM.
"আপনি যদি পূর্ণ তীব্রতার সাথে কিছু চান, তবে সমগ্র মহাবিশ্ব আপনার কাছে এটি আনার চেষ্টা শুরু করে।"
5. "सपने विचारों में बदल जाते हैं, और विचार कार्यों में परिणत होते हैं।"