गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विशेष -
क्या है ईश्वर का समीकरण ? What is God Equation ?
" GOD =LOVE "
श्रीरामकृष्ण वचनामृत
(14 सितंबर,1884)
(2)
* ईश्वर दर्शन का उपाय है ~ गुरुवाक्य 'तत्त्वमसि ' (thou art That) पर विश्वास *
श्रीरामकृष्ण के कमरे में बहुत से भक्तों का समागम हुआ है । कोन्नगर के भक्तों में एक साधक अभी पहले-पहल आये हैं । उम्र पचास के ऊपर होगी । देखने से मालूम होता है कि भीतर पाण्डित्य का पूरा अभिमान है । बातचीत करते हुए वे कह रहे, ‘समुद्र-मंथन के पहले क्या चन्द्र न था ? परन्तु इसकी मीमांसा कौन करे ?’
मास्टर - (सहास्य) - देवी के एक गाने में है - जब ब्रह्माण्ड ही न था, तब मुण्डमाला तुझे कहाँ मिली होगी?
साधक - (विरक्ति से) - वह दूसरी बात है ।....
श्रीरामकृष्ण अपने आसन पर बैठ गये । कोन्नगर के एक भक्त श्रीरामकृष्ण से कह रहे हैं - 'महाराज, ये (साधक) आपको देखने आये हैं; इन्हें कुछ पूछना है।
साधक देह और सिर ऊँचा किये बैठे हैं ।
साधक - महाराज, उपाय क्या है ?
श्रीरामकृष्ण - गुरु की बातों पर विश्वास करना । उनके आदेश के अनुसार चलने पर ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं । जैसे डोर अगर ठिकाने से लगी हुई हो तो उसे पकड़कर चलने से पते पर पहुँचा जा सकता है ।
साधक - क्या उनके दर्शन होते हैं ?
श्रीरामकृष्ण - वे विषय-बुद्धि के रहते नहीं मिलते । कामिनी और कांचन का लेशमात्र रहते उनके दर्शन नहीं हो सकते । वे शुद्ध मन और शुद्ध बुद्धि से गोचर होते हैं । वह मन चाहिए जिसमें आसक्ति का लेशमात्र न हो । शुद्ध मन, शुद्ध-बुद्धि और शुद्ध आत्मा, ये एक ही वस्तु हैं ।
साधक - परन्तु शास्त्र में है - 'यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह' वे मन और वाणी से परे हैं ।
*बिना साधना किये (3H विकास के 5 अभ्यास किये बिना ) शास्त्रों की धारणा नहीं होती *
श्रीरामकृष्ण - रखो इसे । साधना किये बिना शास्त्रों का अर्थ समझ में नहीं आता । 'भंग-भंग' चिल्लाने से क्या होता है ? पण्डित जितने हैं, सर्राटे के साथ श्लोकों की आवृत्ति करते हैं, परन्तु इससे होता क्या है ? भंग जाहे जितनी देह में लगा ली जाय, पर इससे नशा नहीं होता, नशा लाने के लिए तो भंग पीनी ही चाहिए ।
"दूध में मक्खन है, दूध में मक्खन है, इस तरह चिल्लाते रहने से क्या होता है ? दूध जमाओ, दही बनाओ, मथो, तब होगा ।"
साधक - मक्खन निकालना , ये सब तो शास्त्र की ही बातें हैं ।
श्रीरामकृष्ण - शास्त्र की बात कहने या सुनने से क्या होता है ? - उसकी धारणा होनी चाहिए । पंचाग में लिखा हैं - वर्षा पूरी होगी, परंतु पंचाग दबाओ तो कही बूंद भर भी पानी नहीं निकलता ।
साधक - मक्खन निकालना बतलाते हैं - आपने निकाला है मक्खन ?
*मार्गदर्शक नेता की आवश्यकता : केमन घी , ना जेमन घी *
श्रीरामकृष्ण - मैंने क्या किया है और क्या नहीं किया यह बात रहने दो । और ये बातें समझाना बहुत मुश्किल है । कोई अगर पूछे कि घी का स्वाद कैसा है, तो कहना पड़ता है, जैसा है - वैसा ही है ।
"यह सब समझना हो तो साधुओं का संग करना चाहिए । कौनसी नाड़ी कफ की है, कौनसी पित्त की और कौन वायु की, इसके जानने की अगर जरूरत हो तो सदा वैद्य के साथ रहना चाहिए ।"
साधक - दूसरे के साथ रहने में कोई कोई आपत्ति करते हैं ।
श्रीरामकृष्ण - वह ज्ञान के बाद – ईश्वर-प्राप्ति के बाद की अवस्था है । पहले तो सत्संग चाहिए ही न ?
साधक चुप हैं ।
साधक - (कुछ देर बाद, झुंझलाकर) - आपने उन्हें जाना? – कहिये – प्रत्यक्ष रूप से हो या अनुभव से । इच्छा हो और आप कह सकें तो कहिये, नहीं तो न सही ।
श्रीरामकृष्ण - (मुस्कराते हुए) - क्या कहूँ, आभास (hint) मात्र कहा जा सकता है ।
साधक - वही कहिये ।.....
नरेन्द्र गायेंगे । नरेन्द्र कहते हैं, पखावज अभी तक नहीं लाया गया ।...नरेन्द्र गा रहे हैं -
जाबे कि हे दिन आमार विफले चलिये,
आछि नाथ, दिवानिशि आशापथ निरखिये।
तुमि त्रिभुवन नाथ, आमि भिखारि अनाथ,
केमोन बोलिबो तोमाय ‘एशो हे मम हृदय। ’
O Lord, must all my days pass by so utterly in vain?
Down the path of hope I gaze with longing, day and night. . . .
गाना सुनते हुए साधक ध्यानमग्न हो गये । श्रीरामकृष्ण के तख्त के उत्तर की ओर मुँह किये बैठे हैं । दिन के तीन या चार बजे का समय होगा - पश्चिम की ओर से धूप आकर उन पर पड़ रही थी । श्रीरामकृष्ण ने फौरन एक छाता लेकर अपने पश्चिम और रखा, जिससे साधक को धूप न लगे । नरेन्द्र गा रहे हैं –
मलिन पंकिल मने केमोने डाकिबो तोमाय।
पारे कि तृण पशिते ज्वलंत अनल यथाय।।
तुमि पुण्येर आधार, ज्वलंत अनलसम।
आमि पापी तृणसम, केमोने पूजिबो तोमाय।।
शुनि तव नामेर गुणे, तरे महापापी जने।
लोइते पवित्र नाम, कांपे हे मम हृदय।।
अभ्यस्त पापेर सेवाय, जीवन चलिया जाय।
केमोने करिबो आमि पवित्र पथ आश्रय।।
ए पातकी नराधमे, तारो जदि दयाल नामे।
बल करे , केशे धरे, दाओ चरणे आश्रय।।
[मार्गदर्शक नेता की आवश्यकता : यदि दूध से मक्खन निकालने की पद्धति सीखनी हो तो " C-IN-C=प्रेमस्वरूप नवनीदा जैसे नेता " का संग करना चाहिए, अर्थात छः दिनों का गुरुगृहवास-Be and Make ' युवा प्रशिक्षण शिविर में भाग लेना चाहिए। ]
(3)
[नरेन्द्रादि को शिक्षा]
*वेद-वेदान्त में केवल आभास (hint) है *
नरेन्द्र गा रहे हैं –
सुंदर तोमार नाम दीन-शरण हे।
बहिछे अमृतधार, जुड़ाय श्रवण ओ प्राण-रमण हे॥
एक तव नाम-धन, अमृत-भवन हे।
अमर होय से'जन, जे करे कीर्तन हे।।
गभीर विषादराशि निमेषे बिनाशे, जखोनि तव नामसूधा श्रवणे परशे।
हृदय मधूमय तव गाने, होय हे हृदयनाथ चिदानन्दघन हे॥
“है दीनों के शरण ! तुम्हारा नाम बड़ा ही मधुर है । उसमें अमृत की धारा बह रही है । हे प्राणों में रमण करनेवाले । उससे मेरे श्रवणेन्द्रिय शीतल हो जाते हैं । जब कभी तुम्हारे नाम को सुधा श्रवणों का स्पर्श करती है तो समस्त विषाद-राशि का एक क्षण में नाश हो जाता है । हे हृदय के स्वामी – चिदानन्दघन ! तुम्हारे नामों को गाते हुए हृदय अमृतमय हो जाता है ।”
[Sweet is Thy name, O Refuge of the humble! It falls like sweetest nectar on our ears, And comforts us, Beloved of our souls!The priceless treasure of Thy name alone,Is the abode of Immortality,And he who chants Thy name becomes immortal. Falling upon our ears, Thy holy name,Instantly slays the anguish of our hearts,Thou Soul of our souls, and fills our hearts with bliss! ]
श्रीरामकृष्ण की भाव का आवेश अब भी है । उसी अवस्था में कह रहे हैं - "यह भला कैसी बात है माँ ! मक्खन निकालकर मुँह के सामने रखो । न तालाब में चारा (मछलियों का) छोडेगा - न बंसी लेकर बैठा रहेगा - बस, मछली पकड़कर उसके हाथ में रख दो ! कैसा उत्पात है ! माँ ! तर्क-विचार अब न सुनूँगा, कैसा उत्पात है ! अब मैं फटकार दूँगा ।
"वे वेद-विधि के पार हैं । - क्या वेद, वेदान्त और शास्त्रों को पढ़कर कोई उन्हें प्राप्त कर सकता है? (नरेन्द्र से) तू समझा ? वेदों में आभास (hint) मात्र है ।"
{After a long time the Master regained partial consciousness of the world and sat down on the mat. Narendra finished his singing, and the tanpura was put back in its place. The Master was still in a spiritual mood and said: "Mother, tell me what this is. They want someone to extract the butter for them and hold it to their mouths. They won't throw the spiced bait into the lake. They won't even hold the fishing-rod. Someone must catch the fish and put it into their hands! How troublesome! Mother, I won't listen to any more argument. The rogues force it on me. What a bother! I shall shake it off. God is beyond the Vedas and their injunctions. Can one realize Him by studying the scriptures, the Vedas, and the Vedanta? (To Narendra) Do you understand this? The Vedas give only a hint."}
नरेन्द्र ने फिर स्वयं तानपूरा ले आने के लिए कहा । श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं, मैं गाऊँगा । उन्होंने कई गाने गाये । अब भी भावावेश है, श्रीरामकृष्ण गा रहे हैं ।
उन्होंने कई गाने गाये। फिर वे गीत के एक चरण की आवृत्ति करते हुए कह रहे हैं - (आमाय) दे मा पागल करे, आर काज नाई मा ज्ञान विचारे। (O Mother, make me mad with Thy love! What need have I of knowledge or reason? . . .) ज्ञान और तर्क के द्वारा या शास्त्रों का पाठ करके कोई ईश्वर की अनुभूति नहीं प्राप्त कर सकता ।” वे विनयपूर्वक गानेवाले से कह रहे हैं - ' भाई, आनन्दमयी का एक गाना गाइये ।’
गवैये - महाराज, क्षमा कीजियेगा ।
श्रीरामकृष्ण गवैये को हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए कह रह हैं - "नहीं भाई, इसके लिए आग्रह कर सकता हूँ ।" इतना कहकर गोविन्द अधिकारी की यात्रा (नाटक) के दल में गायी जानेवाली वृन्दा (गोपी-सखी) की उक्ति को गाते हुए कह रहे हैं -
" राई बोलिले बोलिते पारे ! (कृष्णेर जोन्ने जेगे आछे)
(सारा रात जेगे आछे ! ) (मान कोरिले करिते पारे। )
'राधिका अगर कृष्ण को कुछ कहना चाहे तो कह सकती है, क्योंकि कृष्ण के लिए तमाम रात जगकर उन्होंने भोर कर दिया ।"
{Radha has every right to say it; She has kept awake for Krishna. She has stayed awake all night, And she has every right to be piqued.}
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