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शनिवार, 16 अक्तूबर 2021

" कुमारी पूजा "

 [13/10, 06:05] +91 82502 65921: 

" कुमारी पूजा "

 🙏🙏 .....आज 13 अक्टूबर 2021 , तदानुसार 'महा-अष्टमी' तिथि है ! कश्मीर के क्षीरभवानी मन्दिर में 'महा-अष्टमी' के इसी विशेष दिन पर स्वामी विवेकानन्द ने 'कुमारी देवी' के रूप में एक मुस्लिम कन्या की पूजा   की थी। 

  'कुमारी पूजा ' शारदीय दुर्गोत्स्व के अवसर पर आयोजित होने वाला रंगबिरंगा कार्यक्रम ( colorful episode) माना जाता है ......इस अवसर पर  विशेष रूप से 'कुमारी देवी' को माँ दुर्गा की सांसारिक प्रतिनिधि के रूप पूजा -अर्चना की जाती है। हर वर्ष दुर्गा पूजा की महाष्टमी पूजा के अन्त में कुमारी पूजा का आयोजन किया जाता है। श्रीश्री माँ सारदा देवी की अनुमति से,  1901 ई ० में  इस पूजा की शुरुआत स्वामी विवेकानन्द ने की थी। हमारे धर्म - ग्रन्थों में नारी-जाति के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रदर्शित करने के लिए इस 'कुमारी पूजा ' को अनुष्ठित करने का विधान किया गया है। हमारे 'सनातन धर्म ' में नारी को सम्मान के सर्वोच्च सिंहासन पर विराजमान किया गया है।  

       प्रत्येक पुरुष (Male) को 'मनुष्य' बनने के लिए अपनी पाशविक-मनोवृत्ति पर अंकुश लगाकर महिलाओं (Female)  के प्रति सम्मान का भाव (मातृभाव) रखना सीखना अनिवार्य है - यही कुमारी पूजा का मुख्य उद्देश्य है। 'बृहद धर्म  पुराण' (Brihaddharma Purana)  में यह वर्णन मिलता है कि देवताओं द्वारा की गयी स्तुति से प्रसन्न होकर , देवी चण्डिका एक कुमारी कन्या का रूप धारण कर देवताओं के सामने प्रकट हुई थीं। 'देवी पुराण' में भी इस घटना का विस्तार से वर्णन किया गया है ...... तथापि बहुत से लोगों का मानना है कि तान्त्रिक साधना के अनुसार दुर्गापूजा के साथ कुमारी पूजा को  जोड़ा गया है। ऐसा सुनने में आता है कि एक समय था जब भारत के सभी शक्तिपीठों में कुमारी पूजा पद्धति (ritual of Kumari Puja ) प्रचलित थी। श्वेताश्वतर उपनिषद में भी कुमारी पूजा का उल्लेख हुआ है , और इससे हम यह समझ सकते हैं कि कुमारी पूजा की प्रथा बहुत पुरानी है। जिस प्रकार देवी दुर्गा के लिये 'कुमारी' का नाम (virgin name of the goddess) बहुत पुराना है , उसी प्रकार उनकी पूजा और आराधना करने की रीति-नीति भी बहुत प्राचीन और व्यापक है। 

योगिनीतंत्र , पुरोहित दर्पण आदि धार्मिक ग्रन्थों में कुमारी पूजा की पद्धति और उसके महात्म्य का वर्णन विस्तार से किया गया है। उस वर्णन के अनुसार , कन्या मात्र ही पूजनीय होती है। 'कुमारी पूजा' में किसी भी जाती, धर्म और वर्ण की कन्या के पूजन करने में कोई भेदभाव करने विधान नहीं है। देवी-ज्ञान से किसी भी 'कुमारी' की पूजा की जा सकती है । हालाँकि सामान्य तौर पर 'कुमारी देवी ' के रूप में सर्वत्र 'ब्राह्मण' कन्या की पूजा ही प्रचलित है।  

'कुमारी पूजा' के लिये आयु के आधार पर एक से 12-13  वर्ष के आयु तक की कन्याओं का ही चयन किया जाता है। यद्यपि किसी भी अन्य जाति और धर्म की कन्याओं का चयन 'कुमारी देवी ' के रूप में पूजने के लिए किया जा सकता है, तथापि उनमें रजोधर्म (Menstruation) का प्रारम्भ निश्चित रूप से नहीं होना चाहिए।  

अलग -अलग उम्र की कुमारी कन्याओं का धार्मिक विधान के अनुसार अलग-अलग नाम निर्धारित किया गया है --  

एक साल की कन्या का नाम है -  संध्या ( Sandhya)

दो साल की कन्या  का नाम है - सरस्वती (Saraswati)।  

तीन साल की कन्या का नाम है - त्रिधाममूर्ति (Tridhamurti) । 

चार साल की कन्या का नाम है - कालिका (Kalika)। 

पांच साल की कन्या का नाम है - सुभागा (Subhaga)। 

छह साल की कन्या का नाम है - उमा (Uma)। 

सात साल की कन्या का नाम है - मालिनी (Malini)। 

आठ साल की कन्या  का नाम है- कुंजिका (Kunjika)  ,

नौ साल की बेटी का नाम है -कालसन्दर्भा (Kalsandarbha)। 

दस साल की कन्या  का नाम है- अपराजिता (Aprajeeta)। 

ग्यारह साल की कन्या  का नाम है - रुद्राणी (Rudrani) । 

बारह साल की कन्या  का नाम है - भैरवी (Bhairvi) । 

तेरह साल की कन्या  का नाम है -महालक्ष्मी (Mahalakshmi)। 

चौदह साल की कन्या का नाम है - पीठानिका (Pithanika)।

पंद्रह साल की कन्या  का नाम है - क्षेत्रज्ञा (Kshetrajna)

सोलह साल की कन्या का नाम है -अंबिका (Ambika)।    

योगिनीतंत्र में कुमारी पूजा के विषय में उल्लेख किया गया है। ब्रह्माजी के श्राप से भगवान विष्णु के शरीर में जब पाप अवतरित हो जाता है , तब उस पाप से मुक्त होने के लिये विष्णु हिमाचल पर महाकाली की तपस्या करते हैं। महाकाली भगवान विष्णु की तपस्या से प्रसन्न हो जाती हैं , और देवी के सन्तोष मन्त्र से ही विष्णु के कमल से अचानक कोला महा-असुर प्रकट होता है।  उस कोलासुर ने इन्द्र आदि देवताओं को पराजित कर सम्पूर्ण पृथ्वी पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात विष्णु के वैकुण्ठ और ब्रह्मा जी के कमलासन को भी जीत लिया। तब पराजित विष्णु और सभी देवगण विनम्र भाव से " रक्षा करो, रक्षा करो" कहकर देवी की स्तुति करने लगे। उनकी स्तुति से संतुष्ट होकर देवी ने विष्णु से कहा , " हे विष्णु , मैं 'कुमारी' रूप धारण करके स्वयं कोलानगरी जाऊँगी और उस कोलासुर का वध कर दूँगी! "  

तत्पश्चात देवी ने जब कोलासुर का वध कर दिया , तब सभी देवताओं ने देवी माँ  की पूजा की। 

कुमारी पूजा का दार्शनिक- तत्व है महिलाओं की मातृशक्ति में परमार्थदर्शन और परमार्थ ज्ञान (सर्वव्यापी मातृहृदय के विराट 'मैं ') का अर्जन। विश्व-ब्रह्माण्ड में जो सृष्टि और प्रलय क्रिया निरन्तर अनुष्ठित हो रही है, वह शक्ति (Energy ऊर्जा) 'कुमारी ' में ही निहित है।  'कुमारी पूजा ' प्रकृति की  बीजावस्था (अव्यक्त अवस्था)  या अव्यक्त मातृ-शक्ति का प्रतीक है। इसीलिए कुमारी कन्या में देवी भाव आरोपित कर के सम्पूर्ण नारीजाति की साधना और पूजा की जाती है , और यह समझाने की चेष्टा की जाती है कि नारीजाति त्याज्य नहीं पूज्य है !  

कुमारी भगवती देवी दुर्गा की सात्विक प्रतिमूर्ति है। माँ जगदम्बा जगत की आत्म-शक्ति हैं , जो सम्पूर्ण विश्व-ब्रह्माण्ड की सृष्टिकर्त्री होकर भी चिरकुमारी हैं -.... कुमारी आद्याशक्ति महामाया की प्रतीक हैं। देवी दुर्गा का ही एक नाम कुमारी है।   

कुमारी में सम्पूर्ण मातृजाति की श्रेष्ठ-शक्ति , पवित्रता , सृजनी शक्ति (सृजन करने की शक्ति) ,पालनी शक्ति (पालन करने की शक्ति) और सर्व कल्याणी (सम्पूर्ण जगत का कल्याण करने की शक्ति) सूक्ष्म रूप से विराजित है। इस तथ्य से मानवजाति का परिचय कराना ही कुमारी पूजा का उद्देश्य है। 

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  [ (प्रज्वलित कलम से) [https://www.wisdomlib.org/hinduism/book/brihaddharma-purana-abridged]

[साभार https://hi.quora.com/डॉ. विनीत बाहरी, Punjab National Bank में पूर्व Sr. Manager (2000-2015) ] 

प्रश्न : देश का मौजूदा माहौल देखते हुए क्या आप 2024 में फिर से बीजेपी को वोट देंगे?

उत्तर  : "फ़ैसला है आपका……. सर है आपका "

मुझे याद आता है उस समय का एक विज्ञापन जब हेलमेट पहनने को अनिवार्य बनाया गया था, जिसमें सिर की तुलना एक तरबूज से करते हुए "अत्यंत स्पीड में चलती हुई मोटर साईकल से एक तरबूज नीचे गिरता है और वह तरबूज टुकड़े टुकड़े हो कर लाल रंग के चीथड़ो में बदल जाता है" तब टेबल में रखे तरबूज को हेलमेट पहनाते हुए बैकग्राउंड से एक भारी सी आवाज आती है -"फ़ैसला है आपका……. सर है आपका "

क्या आप लालू प्रसाद यादव या मायावती या मुलायम सिंह या प्रियंका गाँधी या राहुल गाँधी या ममता दीदी या मुफ़्ती मोहम्मद या फारुख या गुलाम नबी या वाई एस जगनमोहन रेड्डी या नवीन पटनायक या पिनाराई विजयन या भूपेश बघेल या हेमन्त सोरेन या पलानी स्वामी या चंद्रशेखर राव या नितीश कुमार या कमलनाथ या उद्धव ठाकरे या अरविंद केजरीवाल या अशोक गहलोत में से किसी को प्रधान मंत्री चुनना चाहेगे ?

आप मोदी जी के विरुद्ध किसी अन्य नेता की कल्पना करें तो आपको स्वत: जवाब मिल जाएगा.

यद्यपि कई राज्यों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सफल नहीं हो रही है, परंतु बावजूद इसके मई 2019 के हाल ही के लोकसभा चुनावों में देश की जनता ने प्रधानमंत्री के रूप में श्री मोदी को प्रचंड बहुमत से स्वीकार किया है. इसका तात्पर्य है कि इस देश की जनता की अपेक्षाएं देश के लिए अलग हैं और राज्यों के लिए अलग….

असेम्बली चुनाव के मुद्दे उस राज्य से सम्बंधित होते हैं जबकि लोकसभा के चुनाव में देश दांव पर होता है. अब यह तथ्य स्थापित हो चुका है और यह विवाद का विषय नहीं बचा.

तो सीधे और सरल शब्दों में "फ़ैसला है आपका……. सर है आपका "

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[ साभार :बिसात कुमार, आर्य समाज का पूर्व समर्थक, अब सनातन धर्म का पक्षधर/ https://hi.quora.com/] 

प्रश्न : आर्य-समाजी लोग वेद ग्रंथों के भाष्य में झूठा, गलत, संदर्भहीन अर्थ निकालकर क्यों लिखते हैं?

उत्तर :---बिसात कुमार , आर्य समाज का पूर्व समर्थक, अब सनातन धर्म का पक्षधर। (जवाब दिया गया: 21 सित॰ 2020)

यह सवाल पढ़ कर मुझे सांत्वना मिली कि कोई तो है जो इस बात को मानता है, कि आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती ने वेदों का पूर्ण रूप से गलत भाष्य लिखा है। इतना ही नहीं उन्होंने लोगों के बीच और भी कई सारी मिथ्या भ्रांति फैलाई है, जो कि सनातन धर्म के मुख्यधारा से बिल्कुल उलट है। आइए मैं आपको आर्य समाज के द्वारा फैलाई गई कुछ झूठी बातों के बारे में विस्तारपूर्वक बतात हूं। आइए एक एक कर उनके सारे झूठे बातों का पर्दाफाश करें।

मिथ्या सं १. जितने भी पुराण हैं, वे वेद का भाग नहीं है।

तथ्य :- वेदों में पुराणों को पंचम वेद कहा गया है, आइए इसके प्रमाण देखें

छान्दोग्य उपनिषद (७.१.४) : नाम वा ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेद आथर्वणश्चतुर्थ इतिहासपुराणः पञ्चमो वेदानां वेदः पित्र्यो राशिर्दैवो निधिर्वाकोवाक्यमेकायनं देवविद्या ब्रह्मविद्या भूतविद्या क्षत्रविद्या नक्षत्रविद्या सर्पदेवजनविद्या नामैवैतन्नामोपास्स्वेति ॥ ७.१.४ ॥

यह मंत्र साफ साफ ये कहता है कि, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, ये चार वेद है, और इतिहास और पुराण पंचम वेद हैं।

अथर्व वेद (१५.६.१० - १२) स बृहतिं दिशमनु व्यचलत, तम इतिहासश्च पुराण च गाथाश्च नाराशंसोश्चानुरूपचलन,इतिहासस्य च वे स पुराणस्य च गाथानाम च नाराशंसीनाम च, प्रिय धाम भयति य एवं वेद। अर्थ:- उसने बृहती दिशा का गमन शुरू किया तब उनके लिए पुराण, इतिहास, गाथाएं एवं नाराशंसी अनुकूल हो गए, इस बात को जानने वाला पुराण, इतिहास और गाथाओं का प्रियधाम होता है।

इन दो मंत्रों के अलावा वेदों में और भी बहुत से साक्ष्य मिल जाएंगे, जिससे ये बात साफ होता है कि इतिहास और पुराण के बिना आपको पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती

मिथ्या सं २. पुराणों को वेद व्यास जी ने नहीं, बल्कि किसी पाखंडी ने लिखा है।

तथ्य :- कलियुग के लोगों के लिए पुराणों की रचना स्वयं वेद व्यास ही किए थे, और सनातन धर्म के जितने भी प्रमुख आचार्य हुए है, उन सभी ने पुराणों को ग्रंथ के रूप में स्वीकार किया है।

आर्य समाज अक्सर यह भ्रांति फैलता है कि पुराणों की रचना तो किसी पाखंडी ने किया है, परन्तु वे इसका साक्ष्य देने में असमर्थ हैं। सच्चाई तो यह है कि आर्य समाज को पुराणों से ही समस्या है, क्योंकि पुराणों में लिखी गई सिद्धांत आर्य समाज के सिद्धांत से परे है, इसलिए उन्होंने पूरे पुराणों को ही नकार दिया। दयानंद सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं कि भागवत पुराण की रचना भोपदेव ने ११०० के लगभग करी थी, परन्तु हमें भागवत पुराण के अस्तित्व के साक्ष्य उससे भी पहले मिलता है, आदि गुरु शंकराचार्य (जिनका जन्म ५०८ ई.पु में हुआ) अपने कृत्यों में भागवत पुराण के श्लोकों का उल्लेख करते हैैं। इतना ही नहीं, चाणक्य ने भी चाणक्य नीति में पौराणिक कथाओं के कुछ अंश का उल्लेख करते हैं।

मिथ्या सं‌ ३. वैदिक काल में लोग मूर्ति पूजा नहीं करते थे। 

तथ्य :- स्वयं रामायण में मूर्ति पूजा का उल्लेख है। आर्य समाज यह कहता है, कि राम और कृष्ण यज्ञ किया करते थे परन्तु मूर्ति पूजा नहीं करते थे, बल्कि सच्चाई तो यह है कि, रामायण में राम के द्वारा शिवलिंग की पूजा के बारे में सभी जानते है, और तो और रामायण में मंदिरों का भी उल्लेख है।

मिथ्या सं ४ :- ईश्वर निराकार है। 

तथ्य :- ईश्वर निराकार और साकार दोनों है।

आर्य समाज कहता है कि वेदों के अनुसार ईश्वर निराकार है, परन्तु वेद में तो ईश्वर के साकार रूप का भी वर्णन आता है, जैसे कि यह देखें। सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्।स भूमिं विश्वतो वृत्वा अत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्॥- श्वेताश्वतरोपनिषद् ३.१४, यजुर्वेद ३१.१ अतर्ववेद १९.६.१ और ऋग्वेद १०.९०.१ में मंत्र है।

भावार्थ :- वह परम पुरुष हजारों सिर वाला, हजारों आँख वाला और हजारों पैर वाला, वह समस्त जगत को सब ओर से घेर कर नाभि से दस अङ्गुल ऊपर (हृदय में) स्थित है।

मित्रों तथ्य तो ये है कि ईश्वर एक समय निराकार और साकार दोनों होते है, आइए इसे हम बृहद आरण्यक उपनिषद के इस मंत्र से समझें - द्वे वाव ब्रह्मणो रूपे मूर्तं चैवामूर्तं च मर्त्यं चामृतं च,स्थितं च यच्च सच्च त्यच्च॥- बृहदारण्यकोपनिषद् २.३.१भावार्थ:- ब्रह्म के दो रूप हैं - मूर्त और अमूर्त, मर्त्य और अमृत, स्थित और यत् (चर) तथा सत् और त्यत्। अर्थात् वो भगवान के ही दो स्वरूप है एक निराकार (अमूर्त) और दूसरा साकार (मूर्त)। भगवान की वो रूप जो हमारे बुद्धि से भी आच्छादित है, उन्हें ही शास्त्रों में निराकार कहा गया है।

मिथ्या सं ५. राम और कृष्ण आम व्यक्ति है, वे विष्णु के रूप नहीं है

तथ्य :- राम, कृष्ण और विष्णु एक ही है, वे दिव्य है, मनुष्य रूप में तो वे बस भक्तों के साथ लीला करने के लिए अपनी इच्छा से ही अवतरित होते है. इस बात की पुष्टि स्वयं कृष्ण ही भगवद गीता में करते है, -'जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं ' अर्थात मेरा जन्म और कर्म दिव्य है (भ० गी ० ४.९) और फिर 'न मां कर्माणि लिम्पन्ति' -अर्थात मुझ पर किसी कर्म का प्रभाव नहीं पड़ता, या मैं कर्मों के बंधन से मुक्त हूं। और तो और वे अवतार लेने की बात स्वयं कहते हैं -यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥हे भारतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ |

निष्कर्ष :- मित्रों आर्य समाज ने सिर्फ इतनी ही नहीं और भी बहुत सारी भ्रांतियां लोगों के बीच फैलाई हुई है, इतनी कि अगर मैं लिखने लग जाऊं तो धरती भी छोटी पड़ जाए, वे सभी साक्ष्यों के देने के बावजूद आए दिन यूट्यूब, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से लोगों के बीच मिथ्या भ्रांति फैलाते हुए नजर आते हैं।

मैं आपलोग से बस इतना पूछता हूं कि क्या ये तथा कथित आर्य समाज वेद व्यास, वाल्मीकि, चाणक्य, शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, माध्वाचार्य, वल्लभाचार्य जैसे आचार्यों से भी ज्यादा बुद्धिमान है ? किसी भी दृष्टिकोण से नहीं, अगर कोई ऐसा कहता है तो वह उसका अहंकार और मूर्खता है, आर्य समाज के बातों में अहंकार साफ नजर आता है, चाणक्य हमें ऐसे ही लोगों से दूरी बनाए रखने को कहते है, आप भी ऐसे लोगों से सचेत रहें। 

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विशेष : DAV School में बच्चों को भेजें पर वहाँ सरस्वतीपूजा करने के लिए अनुप्रेरित करें।  

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[13/10, 06:05] +91 82502 65921: 

"  কুমারী পুজা "

🙏🙏  .....  আজ ১৩- ই  অক্টোবর , ২০২১ |  কাশ্মীরে  ক্ষীরভবানী  মন্দিরে  স্বয়ং  স্বামী বিবেকানন্দ  একটি মুসলমান কন্যাকে মহাঅষ্টমীর এই বিশেষ  দিনে কুমারী দেবী  হিসেবে  পুজো  করেছিলেন  |

🙏🙏কুমারী পুজা শারদীয় দুর্গোৎসবের এক বর্ণাঢ্য পর্ব ...... বিশেষতঃ কুমারী দেবী দুর্গার পার্থিব প্রতিনিধি হিসাবে পুজো করা হয়ে থাকে ৷ প্রতি বছর দুর্গাপুজার মহাষ্টমি পুজোর শেষে কুমারী পুজা অনুষ্ঠিত হয় ৷

 শ্রীশ্রীমা -র অনুমতিক্রমে স্বামী বিবেকানন্দ ১৯০১ সালে এই পুজার প্রচলন করেন ৷ শাস্ত্রকাররা নারী জাতিকে সম্মান ও শ্রদ্ধা করতে এই পুজো করতে বলেছেন ৷ আমাদের সনাতন ধর্মে নারীকে সম্মানের শ্ৰেষ্ঠ আসনে বসানো হয়েছে ৷

    পুরুষদের পশুত্বকে সংযত রেখে নারীকে সন্মান জানাতে হবে , এটাই কুমারী পুজোর মুল লক্ষ্য ৷

বৃহদ্ধর্ম পুরাণের বর্ণনা অনুযায়ী দেবতাদের স্তবে . প্রসন্ন হয়ে দেবী চন্ডিকা কুমারী কন্যা রুপে দেবতাদের সামনে গিয়েছিলেন ৷ দেবীপুরানে বিস্তারিত এ বিষয়ে উল্লেখ আছে ..... তবে অনেকে মনে করেন দুর্গাপুজার কুমারী পুজা সংযুক্ত হয়েছে তান্ত্রিক সাধনা মতে ৷ শোনা যায় একসময়ে শক্তিপীঠ সমুহে কুমারী পুজার রীতি প্রচলন ছিল । শ্বেতাশ্বত উপনিষদেও কুমারী পুজার কথা উল্লেখ আছে এবং এথেকেও আমরা বুঝতে পারি যে কুমারী পুজোর প্রথা অনেক পুরোনো ৷ দেবীর কুমারী নাম যেমন পুরোনো , তেমনি তাঁর আরাধনা ও রীতিনীতিও প্রাচীন ও ব্যাপক ৷

     যোগিনীতন্ত্রে , পুরোহিত দর্পন প্রভৃতি ধর্মীয় গ্রন্থে কুমারী পুজোর পদ্ধতি ও মাহাত্ম্য বিশেষভাবে বর্ণিত আছে । বর্ণনানুসারে , কুমারী পুজোয় কোন জাতি , ধর্ম ও বর্নভেদ নেই ৷ দেবীজ্ঞানে যে কোন কুমারীই পুজনীয় ৷ তবে সাধারণতঃ ব্রাহ্মন কন্যার পুজোই সর্বত্র প্রচলিত |

   বয়স অনুসারে এক থেকে ষোল বছর বয়সি কুমারী কন্যাদেরই পুজো করা হয় ৷ তবে অন্যজাতির কন্যাকেও কুমারী পুজোয় নির্বাচন করা যেতেই পারে ..... কিন্তু অবশ্যই তাদের ঋতুবতী হওয়া চলবে না ৷

ধর্মীয় বিধান অনুযায়ী এক এক বয়সের কুমারীর এক এক নাম রয়েছে .....

১  বছরের কন্যার নাম সন্ধ্যা ।

দুই বছরের কন্যার নাম সরস্বতী ৷

তিন বছরের কন্যার নাম ত্রিধামুর্তি ৷

চার বছরের কন্যার নাম কালীকা ৷

পাঁচ বছরের কন্যার নাম সুভাগা ৷

ছয় বছরের কন্যার নাম উমা ৷

সাত বছরের কন্যার নাম মালিনী ৷

আট বছরের কন্যার নাম  কুঞ্জিকা |

নয় বছরের কন্যার নাম কালসন্দর্ভা ৷

দশ বছরের কন্যার নাম অপরাজিতা |

এগারো বছরের কন্যার নাম রুদ্রাণী ৷

বারো বছরের কন্যার নাম ভৈরবী ৷

তের বছরের কন্যার নাম মহালক্ষ্মী ৷

চোদ্দ বছরের কন্যার নাম পীঠনায়িকা ।

পনেরো বছরের কন্যার নাম ক্ষেত্রজ্ঞা ।

ষোল বছরের কন্যার নাম অম্বিকা |

যোগিনীতন্ত্রে কুমারী পুজা সম্পর্কে  উল্লেখ আছে ৷ ব্রহ্মশাপবলে মহাতেজা ভগবান বিষ্ণুর দেহে পাপ অবতার হলে সেই পাপ হতে মুক্ত হতে বিষ্ণু হিমাচলে মহাকালীর তপস্যা করেন ৷ ভগবান বিষ্ণুর তপস্যায় মহাকালী খুশি হন এবং দেবীর সন্তোষ মন্ত্রেই বিষ্ণুর পদ্ম হতে সহসা কোলা নামক মহাসুরের আবির্ভাব হয় ৷ সেই কোলাসুর ইন্দ্রাদি ও দেবগণকে পরাজিত করে অখিল ভূমন্ডল , বিষ্ণুর বৈকুন্ঠ ও ব্রহ্মার কমলাসন প্রভৃতি দখল করে নেয় ৷ তখন পরাজিত বিষ্ণু ও দেবগন " রক্ষ রক্ষ " বাক্যে ভক্তি বিনম্র চিত্তে দেবীর স্তব শুরু করেন ৷ দেবী সন্তুষ্ট হয়ে বিষ্ণুকে বলেন , " হে বিষ্ণু , আমি কুমারী রূপ ধারণ করে কোলানগরী গমন করে কোলাসুরকে সবান্ধবে হত্যা করিব । "

অতঃপর তিনি কোলাসুরকে হত্যা করেন এবং সমস্ত দেবগণ তখন মা-কে পুজো করেন ৷

কুমারী পুজোর দার্শনিকতত্ত্ব হল নারীতে পরমার্থ দর্শন ও পরমার্থ জ্ঞান অর্জন ৷ বিশ্ব ব্রহ্মান্ড প্রতিনিয়ত সৃষ্টি ও লয় ক্রিয়া অনুষ্ঠিত হচ্ছে , সেই  শক্তিই কুমারীতে নিহিত আছে ৷ কুমারী প্রকৃতি বা নারীজাতির প্রতীক ও বীজাবস্থা ..... তাই কুমারী  নারীতে দেবীভাব আরোপ করে তাতে সাধনা ও পুজো করা হয় এবং বোঝানো হয় নারীজাতি ভোগ্যা নয় , পুজ্যা ৷

     কুমারী ভগবতী দেবী দুর্গার  সাত্বিক রূপ ৷ জগতাত্ম বিশ্বব্রহ্মান্ডের সৃষ্টিকর্ত্রী হয়েও চিরকুমারী ..... কুমারী আদ্যাশক্তি মহামায়ার প্রতীক ৷ দেবী দুর্গার আরেক নাম কুমারী ৷

কুমারীতে সমগ্র মাতৃজাতির শ্রেষ্ঠ শক্তি , পবিত্রতা , সৃজনী ও পালনী শক্তি এবং সকল কল্যানী শক্তি সুক্ষ্মরূপে বিরাজিতা ৷

.........  🙏🙏🍁🍁🙏🙏 ......... ,

কলমে  তপতী ৷ 

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प्रज्ज्वलित कलम से निसृत : विजय कुमार सिंह, एक परिचय : मेरे पिता आर्यसमाज के पक्षधर थे , तत्कालीन प्रचलित धार्मिक-अन्धविश्वास जैसे ताबीज , अंगूठी,  छुआछूत आदि पर विश्वास नहीं करते थे।  परन्तु रामायण प्रेमी थे, सुबह -सुबह रामायण की चौपाइयाँ सुनाकर हम सभी भाईबहनों को जागते थे।  उन्हें  पूरा रामायण कंठस्थ था , किन्तु दशरथ के पुत्र राम भगवान विष्णु के अवतार थे , इस बात को नहीं मानते थे। परन्तु हमलोगों को मूर्तिपूजा करने या सनातन धर्म पर चलने से रोकते नहीं थे।   क्योंकि  मेरी माँ कृष्ण-भक्त थीं और सनातन धर्म की पक्षधर थीं। हमलोगों को अवतार पर विश्वास करने की शिक्षा देते हुए कहती थीं। अच्छे संस्कारों को ग्रहण करो , मन से कभी हारना नहीं , विश्वास करो तुम सबकुछ कर सकते हो। सन्तोष की डाल पर मेवा फलता है। अतः अच्छी आदतों के द्वारा अच्छे संस्कार अर्जित करो और  एक चरित्रवान मनुष्य बनकर जीने का प्रयास करो।  आर्य-समाजी लोग मूर्तिपूजा की निन्दा करते हैं , वेद, उपनिषद , मनुसमृति का झूठा,  गलत, संदर्भहीन अर्थ निकालकर सनातन धर्म को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। जो मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं था , लेकिन मेरे पिता आर्य समाजी थे और मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करते थे ,क्योंकि उनकी शिक्षा-दीक्षा पटना के आर्यसमाजी स्कूल में हुई थी। इसलिए उनके साथ मेरी बैद्धिक-बहस होती रहती थी। किन्तु वे मुझे रामकृष्ण-विवेकानन्द भावधारा के साथ जाने के लिए कभी मना नहीं किये। 

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