द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त (Two-Nation Theory) : भारत देश की मूल कल्पना सनातन धर्म के ग्रन्थों के हिसाब से बहुत पहले से है। विष्णु पुराण बताता है कि यहां लोग तब से रह रहे हैं जब अन्य धर्मों का जन्म भी नहीं हुआ था -
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।
(विष्णु पुराण २.३.१)
समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं तथा उसकी संतानों (नागरिकों) को भारती कहते हैं।
लेकिन इस मंत्र में एक खास बात है। भारत और भारती। इस देश का नाम भारत है और वहां भारती नाम की संतानें रहती हैं। अब एक और शब्द पर गौर करते हैं। हिन्दू। हम लोग अरब देशों के साथ प्राचीन काल से व्यापार करते रहे हैं। तो जब अरब यहां आते थे तो उसका सबसे पहले वास्ता सिन्धु नदी से पड़ता था। लेकिन अरबों के साथ एक दिक्कत थी। वे 'श' नहीं बोल पाते थे। 'श' की जगह 'ह' बोलते थे। इसलिए ये सिन्धु शब्द अरब में हिन्दू हो गया। इस तरह सिंधू नदी के इस पार का भूखण्ड हिंदुस्तान बन गया और यहाँ के रहने वाले लोग हिंदू कहलाए। विदेशों में यह धारणा आज भी प्रचलित है। फिर समय के साथ कट्टरवादी इस्लामिक उत्पीड़न से बचने के लिए जो लोग यहां शरणार्थी बनकर यहाँ आये सबों को भारत ने शरण दिया। लेकिन जब ईसाई और मुस्लिम धर्म के साथ हमारा संपर्क हुआ तो उन्होंने हमसे कहा कि भई हम तो ईसाई हैं, मुसलमान हैं, तुम क्या हो? तुम्हारा धर्म क्या है? लेकिन हमने तो अपने सनातन धर्म का कोई साम्प्रदायिक नाम दिया ही नहीं था। हमारे यहां विभिन्न ऋषियों द्वारा आविष्कृत सनातन सत्यों, वैदिक धर्म या 'सनातन धर्म' को अलग से नाम देने की जरूरत कभी महसूस नहीं की गई। हमारे लिए वेदान्त या सनातन धर्म शब्द ही पर्याप्त था। क्योंकि सनातन धर्म किसी एक व्यक्ति या एक ग्रन्थ पर आधारित नहीं है , अतः नाम देने की कभी जरूरत ही महसूस नहीं की। लेकिन अब हमें उनसे पृथक दिखना था, इसलिए एक नाम की जरूरत तो थी ही। इस पर अरबों ने हमें गाली सूचक शब्द में बताया कि हम हिन्दू हैं, और हमने मान भी लिया। इस तरह हमारी राष्ट्रीयता और हमारा धर्म दोनों ही हिन्दू शब्द से पहचाने जाने लगे। यह सब इसीलिए हुआ क्योंकि हम विष्णु पुराण को ही भूल गए थे। हम तो भारती हैं। भारत माता की संतानें। हमारा धर्म तो सनातन धर्म या वैदिक धर्मं है -फिर दूसरों द्वारा दिए गए इस 'हिन्दू ' शब्द से इतना मोह क्यों? अब हमें अपने नागरिकों के लिए 'हिन्दू' शब्द को छोड़कर, फिर से 'भारतीय' शब्द को ही क्यों नहीं अपना लेना चाहिए ? क्योंकि हिन्दू शब्द के मुकाबले भारतीय शब्द हमारी राष्ट्रीयता और हमारे शास्वत जीवन मूल्यों के अच्छी तरह से दर्शाता है। हिन्दू शब्द तो हमें विदेशियों से मिला है, भारतीय शब्द हमारा अपना है।
यह सबको मालूम है कि टू नेशन थ्योरी की घटना मूल रूप से उपमहाद्वीप में इस्लाम के आगमन के साथ शुरू हुई। पाकिस्तान के निर्माण के बारे में यह भावना बहुत महत्वपूर्ण थी। देश के विभाजन के लिए जिन्ना जिम्मेदार तो था, लेकिन उससे भी बड़ा जिम्मेदार कोई था तो उसका नाम सैयद अहमद खान है। सर सैयद अहमद खान ही पहले मुस्लिम नेता थे जिन्होंने मुसलमानों के लिए “नेशन” शब्द का इस्तेमाल किया था। सर सैयद अहमद खान को दो राष्ट्र सिद्धांत के जनक के रूप में माना जाता है। सैयद अहमद खान वही व्यक्ति है जिसने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की नीवं रखी थी और जिसे हिन्दू मुसलमान का साथ रहना गवारा नहीं था। खान ने तर्क दिया कि मुसलमानों को अंग्रेजों से लड़ने के बजाय ब्रिटिश साम्राज्य के साथ सहयोग करना चाहिए। उन्होंने मुसलमानों को इंपीरियल सिविल सर्विसेज (I.C.S) की सेवा के लिए तैयार करने के लिए मुहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है) की स्थापना की थी। और जहाँ के छात्रों को जिन्ना ने भारत के विरुद्ध पाकिस्तान का हथियार कहा था ।1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दस साल बाद - 1867 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के मुख्य संस्थापक सय्यद अहमद ख़ान ने हिन्दी–उर्दू विवाद के कारण एक द्विराष्ट्र सिद्धांत को पेश किया था,जिसे उसकी चाटुकारिता के कारण अंग्रेजो ने "सर " की उपाधि थी। अल्लामा इकबाल ने सर सैयद के विचार को इस्लामिक स्पष्टीकरण प्रदान किया और 'जिन्ना ' (कायद-ए-आज़म) ने इस सिद्धांत का समर्थन किया और और इसे एक राजनीतिक वास्तविकता में बदल दिया। अल्लामा इक़बाल का मुसलिम वर्ल्ड में बड़ा मुक़ाम था। वह न केवल बड़े शायर थे बल्कि बड़े दार्शनिक भी थे। जिन्ना को समझाने के लिए एक ख़त में वह लिखते हैं कि मुझे इस बात पर पूरा यक़ीन है कि मुसलिमों की हालत तभी सुधरेगी जब शरीयत के हिसाब से शासन चलेगा और ऐसा मुसलिम राष्ट्र में ही संभव है। वह लिखते हैं, ‘ अगर भारत में यह संभव नहीं है तो फिर गृह युद्ध एक मात्र विकल्प है। हिंदू-मुस्लिम दंगों के रूप में ये वैसे भी चल रहा है।’जिन्ना ने इक़बाल को निराश नहीं किया। उनके विचारों को राजनीतिक लिबास पहनाया और फिर पाकिस्तान बनाने की राह पर चल पड़े। जिन्ना कहते थे कि मुसलिम एक राष्ट्र है क्योंकि उसमें हिंदुओं से ज़्यादा एकता है। उनकी नज़र में हिंदू जातियों में बँटा है। और उसमें समानता नहीं है। जिन्ना ख़ुद मुसलिमों में अल्पसंख्यक शिया इस्माइली तबक़े से आते थे। उन्होंने पाकिस्तान तो बनवा लिया पर उसी पाकिस्तान में सुन्नी बहुसंख्यक कट्टरपंथियों ने यह साबित कर दिया कि धर्म किसी ‘स्थाई’ राष्ट्र का आधार नहीं हो सकता। शिया और अहमदिया फ़िरक़ों पर जो ज़ुल्म हुए वो जिन्ना ने कभी सोचा भी नहीं होगा। इश्तियाक़ अहमद लिखते हैं कि धर्म के आधार पर बना पाकिस्तान कभी भी सेकुलर मुल्क नहीं रह सकता। और न जिन्ना एक सेकुलर मुल्क बना सकते थे। ट्रेजेडी यह है कि इसलामिक राष्ट्र होने के बाद भी पाकिस्तान के टुकड़े हुए, हिंदुओं से अलग होने के बाद मुसलमान आपस में लड़ने लगे, एक-दूसरे का ख़ून बहाने लगे। सैयद अहमद का विचार था कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं क्योंकि उनके धर्म, इतिहास, सभ्यता, रीति -रिवाज (तीन तलाक , हलाला , खतना आदि) एक दूसरे से भिन्न थे।
लेकिन धर्म के नाम पर बेवजह की रीतिरिवाजों को ख़तम करना चाहिए। जैसे खतना के कूप्रथा उल्लेख हदीस में है, लेकिन यह कुरान में यह कहीं भी नहीं पाया जाता है। आधुनिक युग में जब सफाई जीवनचर्या है। इसे धर्म से जोड़ना ठीक नहीं। हदीस के अनुसार सुन्नत (खतना) हर एक मुसलमान को करनी जरूरी है शरीया अनुसार जब तक सुन्नत न हो कोई मुसलमान नहीं गिना जाता। आज ~ जब राममन्दिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है, सन्त कबीर ने हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करने के लिये " सुन्नत (खतना) की कुप्रथा " पर जो कुछ कहा था, उसका स्मरण करना बहुत जरुरी है।
सुन्नत (खतना) की कुप्रथा पर संत कबीर के विचार [The idea of Saint Kabir on the mischief of Sunnat (circumcision)] बालक कबीर का खतना और इस्लामी रीति रिवाजों को लेकर आश्चर्यचकित कर देने वाले कुछ प्रश्न : कबीर जी जब आठ साल के हो गए। तब कबीर की पिता नीरु जी को उनके जान-पहचान वालों ने कहना शुरू कर दिया कि सुन्नत करवाई जाये। सुन्नत पर काफी खर्च किया जाता है। सभी के जोर देने पर आखिर सुन्नत की मर्यादा को पुरा करने के लिए उन्होंने खुले हाथों से सभी सामग्री खरीदी। सभी को खाने का निमँत्रण भेजा। निश्चित दिन पर इस्लाम के मुखी मौलवी और काजी भी एकत्रित हुए। काजी कुरान शरीफ की आयतों का उच्चारण अरबी भाषा में करता हुआ उस्तरे को धार लगाने लगा।
• उसकी हरकतें देखकर कबीर जी ने किसी स्याने की भांति उससे पूछा: यह उस्तरा किस लिए है ? आप क्या करने जा रहे हो ?
• तो काजी बोला: ' कबीर ! तेरी सुन्नत होने जा रही है। सुन्नत के बाद तुझे मीठे चावल मिलेंगे और नये कपड़े पहनने को मिलेंगे।
• पर कबीर जी ने फिर काजी से प्रश्न किया। अब मासूम बालक के मुँह से कैसे और क्यों सुनकर काजी का दिल धड़का। क्योंकि उसने कई बालकों की सुन्नत की थी परन्तु प्रश्न तो किसी ने भी नहीं किया, जिस प्रकार से बालक कबीर जी कर रहे थे।
• काजी ने प्यार से उत्तर दिया:
बड़ों द्वारा चलाई गई मर्यादा पर सभी को चलना होता है। सवाल नहीं करते। अगर सुन्नत न हो तो वह मुसलमान नहीं बनता। जो मुसलमान नहीं बनता उसे काफिर कहते हैं और काफिर को बहिशत में स्थान नहीं मिलता और वह दोजक की आग में जलता है। दोजक (नरक) की आग से बचने के लिए यह सुन्नत की जाती है।
• यह सुनकर कबीर जी ने एक और सवाल किया: काजी जी ! केवल सुन्नत करने से ही मुसलमान बहिश्त (स्वर्ग) में चले जाते हैं ? क्या उनको नेक काम करने की जरूरत नहीं ?
फिर कबीर दास जी ने काजी से कहा-'जो तू तुर्क (मुसलमान) तुर्कानी का जाया भी भीतर खतना क्यों न कराया ।।
अर्थ:-कबीर दास जी कहते हैं:- हे काजी यदि तू मुस्लिम होने पर अभिमान करता है और कहता है की तुझे अल्लाह ने मुसलमान बनाया है तो तु अपनी माँ के पेट से खतना क्यों नहीं करवा के आया ? तुझे धरती पर मुसलमान बनने कि जरूरत क्यों पड गई, अल्लाह ने तुझे सिधा मुस्लिम बनाके (अर्थात खतना करके) क्यों नहीं भेजा ??? [” जो तूं ब्रह्मण , ब्राह्मणी का जाया, आन बाट काहे नहीं आया ? ”]
• यह बात सुनकर सभी मुसलमान चुप्पी साधकर कर कभी कबीर जी की तरफ और कभी काजी की तरफ देखने लगे। काजी ने अपने ज्ञान से कबीर जी को बहुत समझाने की कोशिश की, परन्तु कबीर जी ने सुन्नत करने से साफ इन्कार कर दिया। इन्कार को सुनकर काजी गुस्से से आग-बबुला हो गया।
• काजी आखों में गुस्से के अँगारे निकालता हुआ बोला: कबीर ! जरूर करनी होगी, राजा का हुक्म है, नहीं तो कौड़े मारे जायेंगे।
कबीर जी कुछ नहीं बोले, उन्होंने आँखें बन्द कर लीं और समाधि लगा ली। उनकी समाधि को तोड़ने और उन्हें बुलाने का किसी का हौंसला नहीं हुआ, धीरे-धीरे उनके होंठ हिलने लगे और वह बोलने लगे– राम ! राम ! और सन्त कबीर ने जो बाणी उच्चारण की वह श्री गुरुग्रन्थ साहिब (Sri Guru Granth Sahib/ सन्दर्भ- राग आसा कबीर पृष्ठ 477) में इस प्रकार कहा गया है -
ਹਿੰਦੂ ਤੁਰਕ ਕਹਾ ਤੇ ਆਏ ਕਿਨਿ ਏਹ ਰਾਹ ਚਲਾਈ ॥
हिंदू तुरक कहा ते आए किनि एह राह चलाई ॥
Hinḏū ṯurak kahā ṯe ā▫e kin eh rāh cẖalā▫ī.
Where have the Hindus and Muslims come from? Who put them on their different paths?
ਦਿਲ ਮਹਿ ਸੋਚਿ ਬਿਚਾਰਿ ਕਵਾਦੇ ਭਿਸਤ ਦੋਜਕ ਕਿਨਿ ਪਾਈ ॥੧॥
दिल महि सोचि बिचारि कवादे भिसत दोजक किनि पाई ॥१॥
Ḏil mėh socẖ bicẖār kavāḏe bẖisaṯ ḏojak kin pā▫ī. ||1||
Think of this, and contemplate it within your mind, O men of evil intentions. Who will go to heaven and hell? ||1||
ਕਾਜੀ ਤੈ ਕਵਨ ਕਤੇਬ ਬਖਾਨੀ ॥
काजी तै कवन कतेब बखानी ॥
Kājī ṯai kavan kaṯeb bakẖānī.
O Qazi, which book have you read?
ਪੜ੍ਹਤ ਗੁਨਤ ਐਸੇ ਸਭ ਮਾਰੇ ਕਿਨਹੂੰ ਖਬਰਿ ਨ ਜਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पड़्हत गुनत ऐसे सभ मारे किनहूं खबरि न जानी ॥१॥ रहाउ ॥
Paṛĥaṯ gunaṯ aise sabẖ māre kinhūʼn kẖabar na jānī. ||1|| rahā▫o.
Such scholars and students have all died, and none of them have discovered the inner meaning. ||1||Pause||
ਸਕਤਿ ਸਨੇਹੁ ਕਰਿ ਸੁੰਨਤਿ ਕਰੀਐ ਮੈ ਨ ਬਦਉਗਾ ਭਾਈ ॥
सकति सनेहु करि सुंनति करीऐ मै न बदउगा भाई ॥
Sakaṯ sanehu kar sunaṯ karī▫ai mai na baḏ▫ugā bẖā▫ī.
Because of the love of woman, circumcision is done; I don't believe in it, O Siblings of Destiny.
ਜਉ ਰੇ ਖੁਦਾਇ ਮੋਹਿ ਤੁਰਕੁ ਕਰੈਗਾ ਆਪਨ ਹੀ ਕਟਿ ਜਾਈ ॥੨॥
जउ रे खुदाइ मोहि तुरकु करैगा आपन ही कटि जाई ॥२॥
Ja▫o re kẖuḏā▫e mohi ṯurak karaigā āpan hī kat jā▫ī. ||2||
If God wished me to be a Muslim, it would be cut off by itself. ||2||
ਸੁੰਨਤਿ ਕੀਏ ਤੁਰਕੁ ਜੇ ਹੋਇਗਾ ਅਉਰਤ ਕਾ ਕਿਆ ਕਰੀਐ ॥
सुंनति कीए तुरकु जे होइगा अउरत का किआ करीऐ ॥
Sunaṯ kī▫e ṯurak je ho▫igā a▫uraṯ kā ki▫ā karī▫ai.
If circumcision makes one a Muslim, then what about a woman?
ਅਰਧ ਸਰੀਰੀ ਨਾਰਿ ਨ ਛੋਡੈ ਤਾ ਤੇ ਹਿੰਦੂ ਹੀ ਰਹੀਐ ॥੩॥
अरध सरीरी नारि न छोडै ता ते हिंदू ही रहीऐ ॥३॥
Araḏẖ sarīrī nār na cẖẖodai ṯā ṯe hinḏū hī rahī▫ai. ||3||
She is the other half of a man's body, and she does not leave him, so he remains a Hindu. ||3||
ਛਾਡਿ ਕਤੇਬ ਰਾਮੁ ਭਜੁ ਬਉਰੇ ਜੁਲਮ ਕਰਤ ਹੈ ਭਾਰੀ ॥
छाडि कतेब रामु भजु बउरे जुलम करत है भारी ॥
Cẖẖād kaṯeb rām bẖaj ba▫ure julam karaṯ hai bẖārī.
Give up your holy books, and remember the Lord, you fool, and stop oppressing others so badly.
ਕਬੀਰੈ ਪਕਰੀ ਟੇਕ ਰਾਮ ਕੀ ਤੁਰਕ ਰਹੇ ਪਚਿਹਾਰੀ ॥੪॥੮॥
कबीरै पकरी टेक राम की तुरक रहे पचिहारी ॥४॥८॥
Kabīrai pakrī tek rām kī ṯurak rahe pacẖihārī. ||4||8||
Kabeer has grasped hold of the Lord's Support, and the Muslims have utterly failed. ||4||8||
अर्थ:-समझदारों ने समझ लिया कि बालक कबीर जी काजी से कह रहे हैं कि हे काजी: जरा समझ तो सही कि हिन्दू और मुस्लमान कहाँ से आए हैं ? हे काजी तुने कभी यह नहीं सोचा कि स्वर्ग और नरक में कौन जायेगा ?
कौन सी किताब तुने पढ़ी है, तेरे जैसे काजी पढ़ते-पढ़ते हुए ही मर गए पर परमात्मा के दर्शन उन्हें नहीं हुए। रिशतेदारों को इक्कठे करके सुन्नत करना चाहते हो, मैंने कभी भी सुन्नत नहीं करवानी। अगर मेरे खुदा को मुझे मुसलमान बनाना होगा तो मेरी सुन्नत अपने आप हो जायेगी।
हे काजी अगर मैं तेरी बात मान भी लूँ कि मर्द ने सुन्नत कर ली और वह स्वर्ग में चला गया तो स्त्री का क्या करोगे ? अगर स्त्री यानि जीवन साथी ने काफिर ही रहना है तो फिर तो हिन्दू ही होना अच्छा है। मैं तो तुझे कहता हूँ कि यह किताबे आदि छोड़कर केवल राम नाम का सिमरन कर। मैंने तो राम का आसरा लिया है इसलिए मुझे कोई चिन्ता फिक्र नहीं।
meaning:-
The wise people have understood that Kabir Ji is telling the child that O Kazi: Just understand that where are the Hindus and the Muslims coming from? O Kazi, you never thought that who will go to heaven and hell?
Which book you have read, like you read Kaji as soon as you were studying, but the philosophy of God was not theirs. I want to circumvent the relatives by referring to them, I have never been circumcised. If my God has to make me a Muslim then my Sunnah will be done automatically.
If I accept your opinion, then what should the woman do when the man has sunk and he goes to heaven? If the woman, the wife of a spouse is to be a disbeliever then it is good to be a Hindu.
I tell you that leaving this book so much else, Simran just name Ram. I have taken shelter of Rama so I do not care about any anxiety.
[साभार : https://durgapatticsc.blogspot.com/2019/05/idea-of-saint-kabir-on-mischief-of.html]
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