*सर्वधर्मसमन्वय ~“बाहर शैव, हृदय में काली, मुख में हरिनाम ।”*
प्रश्न : भगवान के किस मूर्ति (रूप -Form) पर मनःसंयोग का अभ्यास करना चाहिए ?
श्रीरामकृष्ण : “यदि रागभक्ति-अनुराग के साथ भक्ति-हो तो वे स्थिर नहीं रह सकते ।”
“भक्ति उनको उतनी ही प्रिय है जितनी बैल को चोकर मिला हुआ सानी ।”
“रागभक्ति-शुद्ध भक्ति-अहैतुकी भक्ति । जैसे प्रह्लाद की ।”
“तुम किसी बड़े आदमी से कुछ चाहते नहीं हो, परन्तु रोज आते हो, उन्हें देखना ही चाहते हो । पूछने पर कहते हो- ‘जी, कोई काम नहीं है, बस दर्शन के लिए आ गया ।’ इसे अहैतुकी भक्ति कहते हैं । तुम ईश्वर से कुछ चाहते नहीं, सिर्फ प्यार करते हो ।”
{“যদি রাগভক্তি হয় — অনুরাগের সহিত ভক্তি — তাহলে তিনি স্থির থাকতে পারেন না।“ভক্তি তাঁর কিরূপ প্রিয় — খোল দিয়ে জাব যেমন গরুর প্রিয় — গবগব করে খায়।“রাগভক্তি — শুদ্ধাভক্তি — অহেতুকী ভক্তি। যেমন প্রহ্লাদের।“তুমি বড়লোকের কাছে কিছু চাও না — কিন্তু রোজ আস — তাকে দেখতে ভালবাস। জিজ্ঞাসা করলে বল, ‘আজ্ঞা, দরকার কিছু নাই — আপনাকে দেখতে এসেছি।’ এর নাম অহেতুকী ভক্তি। তুমি ঈশ্বরের কাছে কিছু চাও না — কেবল ভালবাস।”
"God cannot remain unmoved if you have raga-bhakti, that is, love of God with passionate attachment to Him. Do you know how fond God is of His devotees' love? It is like the cow's fondness for fodder mixed with oil-cake. The cow gobbles it down greedily."Raga-bhakti is pure love of God, a love that seeks God alone and not any worldly end. Prahlada had it. Suppose you go to a wealthy man every day, but you seek no favour of him; you simply love to see him. If he wants to show you favour, you say: 'No, sir. I don't need anything. I came just to see you.' Such is love of God for its own sake. You simply love God and don't want anything from Him in return."
यह कहकर श्रीरामकृष्ण गाने लगे :
" आमि मुक्ति दिते कातोर नेई, शुद्धा भक्ति दिते कातोर होई।
आमि मुक्ति दिते कातोर नेई,
शुद्धा भक्ति दिते कातोर होई।
आमार भक्ति जेबा पाय , तारे केबा पाय ,
शे जे सेवा पाय , होये त्रिकालजयी।।
शुन चन्द्रावली भक्तीर कथा कोई।
भक्तीर कारणे पाताल भवने,
बलिर द्वारे आमि द्वारपाल होये रोही ।।
शे जे सेवा पाय, होये त्रिलोकजयी।
शुद्धा भक्ती एक आछे वृन्दावने,
गोप- गोपी वीने अन्ये नाही जाने।
भक्तीर कारणे नन्देर भवने,
पिता ज्ञाने नन्देर बाधा माथाय बोई।
" गीत का मर्म यह है:-‘मैं मुक्ति देने में कातर नहीं होता, किन्तु शुद्धा भक्ति देने में कातर होता हूँ।’
“मूल बात है ईश्वर में रागानुराग भक्ति और विवेक-वैराग्य चाहिए ।”
{“মূলকথা ঈশ্বরে রাগানুগা ভক্তি। আর বিবেক বৈরাগ্য।”
He continued, "The gist of the whole thing is that one must develop passionate yearning for God and practise (मनःसंयोग) discrimination and renunciation."
चौधरी- महाराज, गुरु (नेता ) के न होने से क्या ईश्वर-दर्शन नहीं होता?
{MR. CHOUDHURY: "Sir, is it not possible to have the vision of God without the help of a guru?"}
श्रीरामकृष्ण- सच्चिदानन्द ही गुरु है ।
“शवसाधना (हृदय श्मशान में अहं का शवदाह करते समय) करते समय जब इष्टदर्शन का मौका आता है, तब गुरु सामने आकर कहते हैं, ‘यह देख अपना इष्ट ।’ फिर गुरु इष्ट में लीन हो जाते हैं । जो गुरु हैं वे ही इष्ट हैं । गुरु मार्ग पर लगा देते हैं ।
{সচ্চিদানন্দই গুরু।“শবসাধন করে ইষ্টদর্শনের সময় গুরু সামনে এসে পড়েন — আর বলেন, ‘ওই দেখ্ তোর ইষ্ট।’ — তারপর গুরু ইষ্টে লীন হয়ে যান। যিনি গুরু তিনিই ইষ্ট। গুরু খেই ধরে দেন।
MASTER: "Satchidananda Himself is the Guru. At the end of the sava-sadhana (अहंकाररूपी शव का दाहसंस्कार करते ही) , just when the vision of the Ishta is about to take place, the guru appears before the aspirant and says to him, 'Behold! There is your Ishta.' Saying this, the guru merges in the Ishta. He who is the guru is also the Ishta (माँ काली) . The guru is the thread that leads to God.
“अनन्त-चतुर्दशी * का तो व्रत है, पर पूजा विष्णु की की जाती है । उसी में ईश्वर का अनन्त रूप विराजमान है ।”
“অনন্তব্রত করে। কিন্তু পূজা করে — বিষ্ণুকে। তাঁরই মধ্যে ঈশ্বরের অনন্তরূপ!”
[श्री कृष्ण का कथन है कि 'अनन्त' उनके रूपों का एक रूप है और वे 'काल' हैं जिसे अनंत कहा जाता है। भगवान् श्रीहरि विष्णु के चौदह नाम ~ 1. अनन्त 2. ऋषिकेश, 3. पद्मनाभ, 4. माधव, 5. वैकुंठ, 6. श्रीधर, 7. त्रिविक्रम, 8. मधुसुदन, 9. वामन, 10. केशव, 11. नारायण, 12. दामोदर, 13. गोविन्द, 14. श्रीहरि ! यदि हरि अनंत हैं तो 14 गांठ हरि द्वारा उत्पन्न 14 लोकों की प्रतीक हैं। भगवान् श्रीहरि विष्णु द्वारा निर्मित चौदह लोक -1. तल, 2. अतल, 3. वितल, 4. सुतल, 5. तलातल, 6. रसातल, 7. पाताल, 8. भू, 9. भुवः, 10. स्वः, 11. जन, 12. तप,13. सत्य, 14. मह। इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह ---"श्रीहरि" स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे।
अनंत व्रत चंदन, धूप, पुष्प, नैवेद्य के उपचारों के साथ किया जाता है। इस व्रत की पूजा दोपहर में की जाती है। अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है। इस व्रत के विषय में कहा जाता है कि यह व्रत 14 वर्षों तक किया जाए, तो व्रती विष्णु लोक की प्राप्ति कर सकता है। भारत के कई राज्यों में इस व्रत का प्रचलन है। इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती है।]
Women perform a ritualistic worship known as the 'Ananta-vrata', the object of worship being the Infinite. But actually the Deity worshipped is Vishnu. In Him are the 'infinite' forms of God.]
श्रीरामकृष्ण : (रामादी भक्तों से) यदि कहो किस मूर्ति का चिन्तन करेंगे, तो जो मूर्ति अच्छी लगे, उसी का ध्यान करना। परन्तु समझना कि सभी एक हैं ।
[(রামাদি ভক্তদের প্রতি) — “যদি বল কোন্ মূর্তির চিন্তা করব; যে-মূর্তি ভাল লাগে তারই ধ্যান করবে। কিন্তু জানবে যে, সবই এক।
(To Ram and the other devotees) "If you asked me which form of God you should meditate upon, I should say: Fix your attention on that form which appeals to you most; but know for certain that all forms are the forms of one God alone.
श्रीरामकृष्ण : “किसी से द्वेष न करना चाहिए । शिव, काली, हरि- सब एक ही के भिन्न भिन्न रूप हैं । वह धन्य है जिसको उनके एक होने का ज्ञान हो गया है ।”
(“কারু উপর বিদ্বেষ করতে নাই। শিব, কালী, হরি — সবই একেরই ভিন্ন ভিন্ন রূপ। যে এক করেছে সেই ধন্য।
"Never harbour malice toward anyone. Siva, Kali, and Hari are but different forms of that One. He is blessed indeed who has known all as one.)
“बाहर शैव, हृदय में काली, मुख में हरिनाम ।”
{“বহিঃ শৈব, হৃদে কালী, মুখে হরিবোল।
Outwardly he appears as Siva's (S.V.) devotee, But in his heart he worships Kali (Ma Sarda), the Blissful Mother, And with his tongue he chants aloud Lord Hari's name (Sri Thakur).
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श्रीरामकृष्ण की दृष्टि में अनंत चतुर्दशी। व्रत और पूजा अर्चना, सत्य का मार्ग उज्जवल करता है।
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