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सोमवार, 27 सितंबर 2021

[( 28 अक्टूबर 1882) परिच्छेद-14, श्री रामकृष्ण वचनामृत] *नाम महात्म्य और पाप*

  [( 28 अक्टूबर 1882) परिच्छेद-14, श्री रामकृष्ण वचनामृत] 

*तमोगुण का मोड़ घुमा देने ~ 'Spiritual Turn" देने ~ से ईश्वर लाभ होता है ! * 

श्रीरामकृष्ण ऊर्ध्वदृष्टि हैं, प्रेमरस से भरे मधुर कण्ठ से गा रहे हैं -

गया गंगा प्रभासादि काशी कांची केबा चाय। 
काली काली काली बोले आमार अजपा जोदि फूराय।। 


त्रिसंध्या जे बोले काली, पूजा संध्या से की चाय। 
संध्या तार संध्याने फेरे, कोभू संधी नाहि पाय।। 

जप यज्ञ पूजा होम आदि आर किछु ना मने लोय। 
मदनेर याग यज्ञ, ब्रह्ममयीर रांगा पाय।। 

कालीनामेर एतो गुण, केबा जानते पारे ताय। 
देवादिदेव महादेव, जार पंचमुखे गुण गाय।। 

গয়া গঙ্গা প্রভাসাদি কাশী কাঞ্চী কেবা চায় ৷
কালী কালী কালী বলে আমার অজপা যদি ফুরায় ৷৷
ত্রিসন্ধ্যা যে বলে কালী, পূজা সন্ধ্যা সে কি চায় ৷
সন্ধ্যা তার সন্ধানে ফেরে, কভু সন্ধি নাহি পায় ৷৷
দয়া ব্রত দান আদি, আর কিছু না মনে লয় ৷
মদনের যাগযজ্ঞ, ব্রহ্মময়ীর রাঙা পায় ৷৷
কালীনামের এত গুণ, কেবা জানতে পারে তায় ৷
দেবাদিদেব মহাদেব, যাঁর পঞ্চমুখে গুণ গায় ৷৷
भाव यह है:- “ ‘काली काली’ जपते हुए यदि मेरे शरीर का अन्त हो तो गया गंगा-काशी-कांची-प्रभास आदि की परवाह कौन करता है? हे काली, तुम्हारा भक्त पूजा-सन्ध्यादि नहीं चाहता, सन्ध्या खुद उसकी खोज में फिरती है, पर पता नहीं लगा सकती । दया-व्रत-दान आदि पर उसका मन नहीं जाता । मदन के याग-यज्ञ ब्रह्मयी के रक्तिम चरणों में होते हैं । काली के नाम के गुण, जिसे देवाधिदेव महादेव पाँचों मुख से गाते हैं, कौन जान सकता है?” 
{Why should I go to Ganga or Gaya, to Kasi, Kanchi, or Prabhas,^(^पाँच तीर्थस्थल) So long as I can breathe my last with Kali's name upon my lips? What need of rituals has a man, what need of devotions any more, If he repeats the Mother's name at the three holy hours? (^ सुबह, दोपहर और शाम।Dawn, noon, and dusk. Rituals may pursue him close, but never can they overtake him. Charity, vows, and giving of gifts dc not appeal to Madan's mind; The Blissful Mother's Lotus Feet are his whole prayer and sacrifice. Who could ever have conceived the power Her name possesses? Siva Himself, the God of Gods, sings Her praise with His five mouths!
श्रीरामकृष्ण मानो अग्निमन्त्र से दीक्षित होकर भावोन्मत्त  हो पुनः गाने लगे (The Master was beside himself with love for the Divine Mother. He sang with fiery enthusiasm:-

आमि दूर्गा दूर्गा दूर्गा बोले मा जदि मरी।  
आखेरे ऐ -दीने, ना तारो केमने, जाना जाबे गो शंकरी।। 


नाशि गो, ब्राह्मण, हत्या करी भृणु,  सुरापान आदि बिनाशी नारी।  
ए सब पातक न भाबी तिलेक, ब्रह्म पद निते पारि।।   
 
गीत का आशय यह है - “यदि मैं ‘दुर्गा दुर्गा’ जपता हुआ मरूँ तो अन्त में इस दीन को, हे शंकरी, देखूँगा तुम कैसे नहीं तारती हो ।” 

[ঠাকুর ভাবোন্মত্ত, যেন অগ্নিমন্ত্রে দীক্ষিত (तूँ भावमुख रह के) হইয়া গাহিতেছেন:

 আমি দুর্গা দুর্গা বলে মা যদি মরি।
আখেরে এ-দীনে, না তারো কেমনে, জানা যাবে গো শঙ্করী।
[  If only I can pass away repeating Durga's name, How canst Thou then, O Blessed One, Withhold from me deliverance, Wretched though I may be? . . .


श्रीरामकृष्ण- “क्या ! मैंने उनका नाम लिया है- मुझे पाप ! मैं उनकी सन्तान हूँ- उनके ऐश्वर्य का अधिकारी हूँ !” इस प्रकार की जिद चाहिए । 
“तमोगुण को ईश्वर की ओर फेर देने से ईश्वर-लाभ होता है । उनसे हठ करो; वे कोई दूसरे तो नहीं, अपने ही तो हैं ।” 

[“কি! আমি তাঁর নাম করেছি — আমার আবার পাপ! আমি তাঁর ছেলে। তাঁর ঐশ্বর্যের অধিকারী! এমন রোখ হওয়া চাই! “তমোগুণকে মোড় ফিরিয়ে দিলে ঈশ্বরলাভ হয়।তাঁর কাছে জোর কর, তিনি তো পর নন, তিনি আপনার লোক। 
Then he said, "One must take the firm attitude: 'What? I have chanted the Mother's name. How can I be a sinner any more? I am Her child, heir to Her powers and glories.']
"If you can give a spiritual turn to your tamas, you can realize God with its help. Force your demands on God. He is by no means a stranger to you. He is indeed your very own.
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