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रविवार, 14 सितंबर 2025

⚜️️जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि॥⚜️️घटना - 355⚜️️कुलगुरु वशिष्ठ, कुटुम्बियों और ब्राह्मणों के साथ श्रीराम की अगुवाई करने के लिए भरत के प्रस्थान का वर्णन। ⚜️️Shri Ramcharitmanas Gayan || Episode #355 || ⚜️️ https://www.shriramcharitmanas.in/p/uttar-kand_27.html⚜️️


श्रीरामचरितमानस 

सप्तम सोपान

उत्तरकाण्ड

[दोहा -3,4 ] 



कुलगुरु वशिष्ठ, कुटुम्बियों और ब्राह्मणों के साथ श्रीराम की अगुवाई करने के लिए भरत के प्रस्थान का वर्णन।  

       हनुमान के विदा हो जाने के बाद हर्षित भरत ने कुलगुरु को ये समाचार सुनाया कि श्रीराम नगर में पहुँचने वाले हैं। राजमहल से ये सन्देश तत्काल पूरी नगरी में फैल गया। चारों ओर कौशलपति के अगवानी की तैयारियाँ होने लगीं। दूब -दही आदि माँगलिक वस्तुएँ थाल में सजाकर नारियाँ श्रीराम, सीता और लक्ष्मण की आरती को निकल पड़ीं। कुलगुरु वसिष्ठ म भाई शत्रुघ्न अन्य कुटुम्बियों तथा ब्राह्मणों को साथ लेकर , भरत जी श्रीराम की अगवानी के लिए निकल पड़ते हैं। सबकी आँखे आकाश की ओर लगी हैं, जहाँ किसी भी क्षण पुष्पक दिखाई देगा ! उधर पुष्पक में बैठे श्रीराम अपने सहयोगियों को पवित्र नगरी अयोध्या की महिमा सुना रहे हैं। वो अयोध्या जो उनकी जन्मभूमि है , जो उन्हें वैकुण्ठ से भी अधिक प्रिय है। इस सुन्दर नगरी के उत्तर में सरयू की पवित्र धारा बहती है। जिसके निर्मल जल में स्नान करने मात्र से , प्राणी मोक्ष प्राप्त कर लेता है। प्रभु का संकेत पाकर पुष्पक विमान अयोध्या नगरी के समीप उतर गया। लंका से अयोध्या तक की यात्रा पूरी हो गयी। श्रीराम ने जब विमान को अपने स्वामी कुबेर के पास लौट जाने को कहा ; तो एक बार उस जड़ पदार्थ को भी विषाद की अनुभूति होती है। अपने स्वामी के पास लौट जाने का हर्ष भी, श्रीराम से बिछुड़ जाने की उदासी को नहीं छिपा सका -

चौपाई :

* हरषि भरत कोसलपुर आए। समाचार सब गुरहि सुनाए॥

पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई॥1॥

भावार्थ:-इधर भरतजी भी हर्षित होकर अयोध्यापुरी में आए और उन्होंने गुरुजी को सब समाचार सुनाया! फिर राजमहल में खबर जनाई कि श्री रघुनाथजी कुशलपूर्वक नगर को आ रहे हैं॥1॥

* सुनत सकल जननीं उठि धाईं। कहि प्रभु कुसल भरत समुझाईं॥

समाचार पुरबासिन्ह पाए। नर अरु नारि हरषि सब धाए॥2॥

भावार्थ:-खबर सुनते ही सब माताएँ उठ दौड़ीं। भरतजी ने प्रभु की कुशल कहकर सबको समझाया। नगर निवासियों ने यह समाचार पाया, तो स्त्री-पुरुष सभी हर्षित होकर दौड़े॥2॥

* दधि दुर्बा रोचन फल फूला। नव तुलसी दल मंगल मूला॥

भरि भरि हेम थार भामिनी। गावत चलिं सिंधुरगामिनी॥3॥

भावार्थ:-(श्री रामजी के स्वागत के लिए) दही, दूब, गोरोचन, फल, फूल और मंगल के मूल नवीन तुलसीदल आदि वस्तुएँ सोने की थाली में भर-भरकर हथिनी की सी चाल वाली सौभाग्यवती स्त्रियाँ (उन्हें लेकर) गाती हुई चलीं॥3॥  

* जे जैसेहिं तैसेहिं उठि धावहिं। बाल बृद्ध कहँ संग न लावहिं॥

एक एकन्ह कहँ बूझहिं भाई। तुम्ह देखे दयाल रघुराई॥4॥

भावार्थ:-जो जैसे हैं (जहाँ जिस दशा में हैं) वे वैसे ही (वहीं से उसी दशा में) उठ दौड़ते हैं। (देर हो जाने के डर से) बालकों और बूढ़ों को कोई साथ नहीं लाते। एक-दूसरे से पूछते हैं- भाई! तुमने दयालु श्री रघुनाथजी को देखा है?॥4॥

* अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल सोभा कै खानी॥

बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भइ सरजू अति निर्मल नीरा॥5॥

भावार्थ:-प्रभु को आते जानकर अवधपुरी संपूर्ण शोभाओं की खान हो गई। तीनों प्रकार की सुंदर वायु बहने लगी। सरयूजी अति निर्मल जल वाली हो गईं। (अर्थात्‌ सरयूजी का जल अत्यंत निर्मल हो गया)॥5॥

दोहा :

* हरषित गुर परिजन अनुज भूसुर बृंद समेत।

चले भरत मन प्रेम अति सन्मुख कृपानिकेत॥3 क॥

भावार्थ:-गुरु वशिष्ठजी, कुटुम्बी, छोटे भाई शत्रुघ्न तथा ब्राह्मणों के समूह के साथ हर्षित होकर भरतजी अत्यंत प्रेमपूर्ण मन से कृपाधाम श्री रामजी के सामने अर्थात्‌ उनकी अगवानी के लिए चले॥3 (क)॥

* बहुतक चढ़ीं अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान।

देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान॥3 ख॥

भावार्थ:-बहुत सी स्त्रियाँ अटारियों पर चढ़ीं आकाश में विमान देख रही हैं और उसे देखकर हर्षित होकर मीठे स्वर से सुंदर मंगल गीत गा रही हैं॥3 (ख)॥

* राका ससि रघुपति पुर, सिंधु देखि हरषान।

बढ़्‌यो कोलाहल करत जनु नारि तरंग समान॥3 ग॥

भावार्थ:-श्री रघुनाथजी पूर्णिमा के चंद्रमा हैं तथा अवधपुर समुद्र है, जो उस पूर्णचंद्र को देखकर हर्षित हो रहा है और शोर करता हुआ बढ़ रहा है (इधर-उधर दौड़ती हुई) स्त्रियाँ उसकी तरंगों के समान लगती हैं॥3 (ग)॥

चौपाई :

* इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर। कपिन्ह देखावत नगर मनोहर॥

सुनु कपीस अंगद लंकेसा। पावन पुरी रुचिर यह देसा॥1॥

भावार्थ:-यहाँ (विमान पर से) सूर्य कुल रूपी कमल को प्रफुल्लित करने वाले सूर्य श्री रामजी वानरों को मनोहर नगर दिखला रहे हैं। (वे कहते हैं-) हे सुग्रीव! हे अंगद! हे लंकापति विभीषण! सुनो। यह पुरी पवित्र है और यह देश सुंदर है॥1॥

* जद्यपि सब बैकुंठ बखाना। बेद पुरान बिदित जगु जाना॥

अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ॥2॥

भावार्थ:-यद्यपि सबने वैकुण्ठ की बड़ाई की है- यह वेद-पुराणों में प्रसिद्ध है और जगत्‌ जानता है, परंतु अवधपुरी के समान मुझे वह भी प्रिय नहीं है। यह बात (भेद) कई-कोई (बिरले ही) जानते हैं॥2॥

* जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि॥

जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा॥3॥

भावार्थ:-यह सुहावनी पुरी मेरी जन्मभूमि है। इसके उत्तर दिशा में जीवों को पवित्र करने वाली सरयू नदी बहती है, जिसमें स्नान करने से मनुष्य बिना ही परिश्रम मेरे समीप निवास (सामीप्य मुक्ति) पा जाते हैं॥3॥

* अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी॥

हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी॥4॥

भावार्थ:-यहाँ के निवासी मुझे बहुत ही प्रिय हैं। यह पुरी सुख की राशि और मेरे परमधाम को देने वाली है। प्रभु की वाणी सुनकर सब वानर हर्षित हुए (और कहने लगे कि) जिस अवध की स्वयं श्री रामजी ने बड़ाई की, वह (अवश्य ही) धन्य है॥4॥   

दोहा :

* आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान।

नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि बिमान॥4 क॥

भावार्थ:-कृपा सागर भगवान्‌ श्री रामचंद्रजी ने सब लोगों को आते देखा, तो प्रभु ने विमान को नगर के समीप उतरने की प्रेरणा की। तब वह पृथ्वी पर उतरा॥4 (क)॥

* उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु।

प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु॥4 ख॥ 

भावार्थ:-विमान से उतरकर प्रभु ने पुष्पक विमान से कहा कि तुम अब कुबेर के पास जाओ। श्री रामचंद्रजी की प्रेरणा से वह चला, उसे (अपने स्वामी के पास जाने का) हर्ष है और प्रभु श्री रामचंद्रजी से अलग होने का अत्यंत दुःख भी4 (ख)॥  

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