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गुरुवार, 8 जून 2023

*11 जुलाई, 1897 को अल्मोड़ा से स्वामी शुद्धानन्द को लिखित पत्र*

*11 जुलाई, 1897 को अल्मोड़ा से स्वामी शुद्धानन्द को लिखित पत्र*

[स्वामी जी 11 जुलाई, 1897 को अल्मोड़ा से स्वामी शुद्धानन्द को पत्र लिख रहे हैं - स्वामी शुद्धानन्द महाराज, रामकृष्ण मठ और मिशन के द्वितीय महासचिव और पंचम अध्यक्ष थे। ]

प्रिय शुद्धानन्द, 

अभी तक जितना कार्य हुआ है, उससे मैं अत्यन्त सन्तुष्ट हूँ। किन्तु अब कार्य को और भी आगे तक  फैला देना होगा।  मैंने एक बार पहले भी तुमको लिखा था, अपने स्कूल के लिए पदार्थ विज्ञान और रसायन शास्त्र सम्बन्धी कुछ उपकरणों का इन्तजाम करना बहुत अच्छा होगा; तथा पदार्थ विज्ञान और रासायन विज्ञान की प्रयोगशाला कक्षा में, विशेष कर शरीर-रचना विज्ञान (Anatomy) के ऊपर सरल भाषा में व्यावहारिक शिक्षा (practical education) देना भी अच्छा होगा। किन्तु कहाँ ? उसके विषय में तो मुझे अभीतक कुछ सुनने को नहीं मिला ! और भी एक बात मैंने तुम्हें लिखी थी, कि जितने भी वैज्ञानिक ग्रन्थों का बंगला भाषा में [यानि स्थानीय भाषा में] अनुवाद हो चुका है, उन सबको स्कूल की लाइब्रेरी के लिये खरीद लेना उचित है; किन्तु मेरे इस सुझाव का क्या हुआ ? 

अब मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मठ-मिशन के कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए, एक साथ तीन सचिवों (महन्तों) का निर्वाचन करना आवश्यक है - एक व्यावहारिक कार्यों का संचालन करेंगे, दूसरे सदस्यों की आध्यात्मिक प्रगति पर ध्यान देंगे, और तीसरे ज्ञानार्जन की व्यवस्था करेंगे। [ अर्थात स्वामी विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा में प्रशिक्षित और चपरास प्राप्त नेता CINC नवनीदा के निर्देशन में  लीडरशिप प्रशिक्षण की व्यवस्था करेंगे। ] 

 " शिक्षाविभागेर उपयुक्त परिचालक पावाई- देखछि कठिन ! " यानि- मैं देखता हूँ कि शिक्षा-विभाग के संचालन योग्य नेतृत्व (Leadership) को ढूँढ़ना ही मुश्किल है। ब्रह्मानन्द और तुरियानन्द आसानी से शेष दोनों विभागों का कार्य सम्भाल सकते हैं। 'मठ दर्शन कोरते केवल कोलकातार बाबूर दल आसचेन जेने, बोड़ो दुःखित होलाम।' हमलोगों के मठ का दर्शन करने के लिए केवल कलकत्ते के बाबू लोग ही आ रहे हैं, जानकर मुझे बहुत दुःख हुआ। उनके द्वारा कुछ नहीं होगा। हमें तो चाहिए साहसी युवाओं का दल, जो कार्य को आगे बढ़ाएंगे; अहंकारी लोगों के समूह को इकट्ठा करके क्या होगा ?

ब्रह्मानन्द से कहना कि वे अभेदानन्द तथा सारदानन्द को अपना साप्ताहिक रिपोर्ट मठ के केन्द्रीय कार्यालय में नियमित रूप से भेजने के लिए लिखें, रिपोर्ट भेजने में कोई त्रुटि न हो। और बंगला मासिक पत्रिका (उद्बोधन) प्रकाशित करने की बात चल रही है, उसके लिए लेख, प्रश्नोत्तरी आदि उपयोगी नोट्स भी भेजें। गिरीश बाबू उस पत्रिका को प्रकाशित करने के लिए क्या कुछ व्यवस्था कर रहे हैं? अदम्य इच्छाशक्ति के साथ कार्य करते जाओ , और सदा प्रस्तुत रहो।  

अखण्डानन्द महुला में अद्भुत कार्य कर तो कर रहा है, किन्तु उसकी कार्य-प्रणाली ठीक प्रतीत नहीं होती। लगता है, कि वे लोग एक छोटे से गाँव में ही अपनी सारी शक्ति क्षय कर रहे हैं, और वह भी केवल चावल-वितरण के कार्य में ! इस चावल वितरण द्वारा सहायता करने के साथ ही साथ, किसी प्रकार का प्रचार-कार्य [मनुष्य-निर्माण कार्य] भी चल रहा हो - वैसी कोई बात तो मेरे सुनने में नहीं आती। साधारण जनता को यदि आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा न दी जाये तो सारे संसार की दौलत से भी भारत के एक छोटे से गाँव की सहायता नहीं की जा सकती।

हमलोगों का मुख्य कार्य होना चाहिए -शिक्षादान, नैतिक और बौद्धिक दोनों दृष्टि से उन्नत मनुष्य बनने और बनाने वाली शिक्षा का विस्तार। अपने मन की प्रवृत्ति के अनुकूल काम मिलने पर तो, अत्यन्त मूर्ख व्यक्ति भी उसे कर सकता है। लेकिन सभी कार्यों को जो, अपने मन के अनुकूल बना लेता हो, वही बुद्धिमान है। कोई भी काम छोटा नहीं है, संसार में सब कुछ बट-बीज की तरह है, सरसों जैसा क्षुद्र दिखाई देने पर भी अति विशाल वट-वृक्ष उसके अन्दर विद्यमान है। बुद्धिमान वही है, जो ऐसा देख पाता है, और सभी मिले हुए कार्यों को महान बनाने में समर्थ है।

जो लोग दुर्भिक्ष-निवारण कार्य कर रहे हैं , उन्हें इस ओर भी ध्यान रखना चाहिए कि, आलसी  और भ्रष्ट लोग कहीं गरीबों के प्राप्य को भी हड़प न लें। भारत ऐसे कामचोर और भ्रष्ट लोगों (वंशवादी नेताओं) से भरा पड़ा है, और तुम्हें यह देखकर आश्चर्य होगा कि ये चाराचोर-पुत्र लोग कभी भूखों नहीं मरते हैं - उन्हें कुछ न कुछ खाने के लिए हमेशा मिल ही जाता है। [कभी चारा , कभी 1745 करोड़ का ब्रिज ?] 

ब्रह्मानन्द से कहना 'जो लोग दुर्भिक्ष -निवारण कार्यों से जुड़े हुए हैं, उन्हें यह बात लिख देने के लिए' ताकि पैसा उचित जगह पर ही खर्च हो। उन्हें किसी ऐसे व्यर्थ योजना पर, खर्च करने के लिए धन कभी नहीं दिया जाये, जिससे भारत का कोई स्थायी कल्याण नहीं होता हो। कहने का तात्पर्य है, भारत का स्थायी कल्याण (Permanent welfare of India, भारतस्य स्थायी कल्याणम् ) कैसे हो सकता है, इस विषय में तुमलोगों को स्वयं ही मैलिक ढंग से नये-नये उपाय खोजने का प्रयत्न करना होगा।  "आमि मरे गेलेई गोटा काजटा चूरमार होये जाबे।"-   नहीं तो, मेरी मृत्यु के बाद यह पूरा आन्दोलन ही नष्ट हो जायेगा।

इस कार्य को इस प्रकार किया जा सकता है - तुम सब लोग मिलकर एक आम बैठक (meeting -AGM) आयोजित करो, उस बैठक में इसी विषय पर चर्चा करो कि हमारे पास जो भी सीमित संसाधन हैं, उसीको सम्बल बनाकर किस प्रकार भारत का स्थायी कल्याण करने का श्रेष्ठतम कार्य किया जा सकता है। बैठक की निर्धारित तिथि से कुछ दिन पूर्व सभी सदस्यों को उसकी सूचना दी जाये, सभी अपने सुझाव दें, सब कोई अपनी राय खुलकर जाहिर करें, उन सुझावों पर विचार-विमर्श और विस्तार से चर्चा हो, और तब इस बैठक में लिए गए निर्णय (decisions) का एक रिपोर्ट मेरे पास भेज दो।

तुमलोग यह याद रखना कि- मैं अपने गुरुभाइयों की अपेक्षा अपनी सन्तानों से अधिक आशा रखता रखता हूँ। मैं चाहता हूँ कि मेरी सभी सन्तानें, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे भी सौगुना अधिक उन्नत बनें। " तोमादेर प्रत्येककेई एक एकटा ‘दाना’ होते होबे - आमि बोलछि - अवश्यई होते होबे। " - तुम में से प्रत्येक को वट-बीज के जैसा 'दाना' बनना होगा, [जिसमें महान वट-वृक्ष बन जाने, अर्थात पैगम्बर या मानवजाति का मार्गदर्शक नेता बन जाने की सम्भावना छिपी रहती है.] वैसा शक्तिशाली भावी नेता, पैगम्बर बनना ही होगा- मैं कहता हूँ -अवश्य बनना होगा। और सबसे अन्त में मुझे यह कहना है कि -'आज्ञा पालन', [महामण्डल के] 'आदर्श और उद्देश्य'-Be and Make' के प्रति अनुरागएवं उपाय (चरित्रनिर्माण) को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना - इन तीनों के रहने पर, कोई भी परिस्थिति तुम्हें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकती ! फिर मेरा स्नेह और आशीर्वाद तो सर्वदा तुम्हारे साथ है ही -इति, 

तुम्हारा विवेकानन्द। 

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