कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 4 अगस्त 2016

卐 10 -" लक्ष्य और उसका मार्ग " [एक नया युवा आंदोलन-10.'The Object and the Way ']

10. 
 
लक्ष्य- और उसका मार्ग 

[The Object and the Way.]

        >>It is not enough to do something as we cannot stay without work. We should plan our work according people need. 
       हमारे समक्ष जो भी कार्य इस समय अत्यन्त महत्वपूर्ण और प्रयोजनीय प्रतीत हो रहे हैं, हर उस कार्य में कूद पड़ने से पहले उसमें अन्तर्निहित उद्देश्य से भलीभाँति परिचित होना अनिवार्य है। हम एक क्षण भी कार्य किये बिना नहीं रह सकते , लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि स्वयं को जिस-तिस प्रकार के कार्यों में व्यस्त कर लिया जाये। अधिकांश लोग ऐसे ही किसी न किसी कार्य में व्यस्त रहते हैं, किन्तु इस तरह के कार्यों से ऐसा कोई परिणाम नहीं मिलता जिससे आम लोगों लाभ पहुँचे। स्वाभाविक रूप से हमें पहले यह निर्धारित करना चाहिये कि जो कार्य हम करने जा रहे हैं वह बहुतों के लिये लाभकारी हो, अतः हमें अपने कार्य के परिणाम पर दृष्टि रखते हुए ही कोई कार्य [स्ट्रीट लैम्प पर निशाना लगाना आदि] करना चाहिए। इसलिये पहले हमें यह जान लेना चाहिये लोगों की मूल आवश्यकता क्या है, फिर उस आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए अपनी कार्य योजना बनानी चाहिए। (दूरदर्शी होकर दीर्घकालीन और अल्पकालीन दोनों प्रकार की कार्य-योजना बनानी चाहिये- जैसे 12 वर्ष बाद भारतवर्ष को मैं कहाँ देखना चाहूँगा, और उस ऊँचाई तक वह पहुँचेगा कैसे ? )      
         >>Our Goal is overall prosperity of the people of India.  
      हमारे देशवासी वर्षों से नहीं बल्कि सदियों से अज्ञानता, दुःख और गरीबी में रहते आ रहे हैं। आज भारत के लिए जो सर्वाधिक जरूरी चीज है, वह है समस्त देशवासियों का 'समग्र' विकास और  समृद्धि इसीलिये, हमारी समस्त परियोजनायें ऐसी होनी चाहिये के वे देशवासियों के सामग्रीक विकास के अनुकूल हों। शिक्षा, अर्थव्यवस्था, कानून व्यवस्था , साहित्य , कला , शिल्प , दर्शन, धर्म , सामाजिक रीति-रिवाज, उद्योग , वाणिज्य , विदेश व्यापर , कृषि, आदि सभी विषयों को इस प्रकार निर्देशित करना चाहिये कि ये सभी हमारे देशवासियों की समृद्धि के उसी लक्ष्य की ओर अग्रसर हों। यही वह आदर्श है जिसकी घोषणा सभी राजनितिक नेता लोग करते तो हैं, पर ये घोषणायें शायद ही कभी कार्य में परिणत होते दिखाई देती हैं। हमारे देश में इन दो धाराओं-(कथनी और करनी ) के बीच का अन्तर इतना स्पष्ट है कि अक्सर आश्चर्य होता है कि क्या सम्पूर्ण देशवासियों के उद्देश्य को एक ही दिशा- 'एक भारत -श्रेष्ठ भारत' का निर्माण में एकजुट करने का सच्चा प्रयास करना सम्भव भी है ?
       >>To built 'One India - Best India' --What is the way to attain this unification of purpose ?
  सभी देशवासियों का उद्देश्य 'एक भारत -श्रेष्ठ भारत का निर्माण ' करना हो जाये, उद्देश्य के ऐसे एकीकरण (unification of purpose) को प्राप्त करने का उपाय क्या है ? और क्या ऐसा करना कभी सम्भव भी है? अवश्य सम्भव है, और इसका उपाय है ऐसा करने की इच्छाशक्ति या दृढ़-संकल्प ! लेकिन, कोई अकेला मनुष्य (One -individual) ऐसा करने, अर्थात `एक भारत, श्रेष्ठ भारत का निर्माण' करने का संकल्प ले-ले तो यह कभी सम्भव नहीं होगा। परन्तु यदि यह 'अनेकों' (many) का संकल्प बन जाये, अर्थात `एक भारत, श्रेष्ठ भारत का निर्माण' करना ही यदि 140 करोड़ देशवासियों का संकल्प बन जाये; तो ऐसा करना अवश्य सम्भव हो जायेगा ! लेकिन 'अनेकों' का , 140 करोड़ देशवासियों का- 'संकल्प ' एक जैसा बना देना कैसे सम्भव होगा ? `Teach everyone to learn to will that way.' देश के प्रत्येक व्यक्ति को 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत का निर्माण' करने के लिए संकल्प ग्रहण करने की विधा- (autosuggestion) सिखा दो !
  >>The most important part of Mass Education is the coordination of will. [जन -शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण अंग है - इच्छाशक्ति का समन्वय। ]
 यदि तुम स्वयं संकल्प ग्रहण करने का कौशल सीख लो और दूसरे को भी उसी प्रकार सिखा दो तब इच्छाशक्ति का समन्वय हो जायेगा। जनसाधारण को शिक्षित करने का यही सबसे महत्वपूर्ण अंग है। ऋग्वेद, अथर्व वेद तथा उपनिषदों में और बाद के शास्त्रों में (अष्टांग-योग आदि में) भी इसी की शिक्षा दी जाती थी। लेकिन कतिपय कारणों से इस अनूठी नियम-बद्धता (unique discipline) को आज हमलोग भूल बैठे हैं और इसी कारण इतना दुःख-कष्ट सह रहे हैं। मुफ्त में रेवड़ी बाँटने का प्रलोभन देकर बहुमत जुटा लेने वाली पार्टी को सत्ता में ले आना, जनसाधारण के समन्वित इच्छाशक्ति के महान सिद्धान्त का एक बहुत ही घटिया उदाहरण है। इस तरह की  प्रलोभन जन्य नियमबद्धता तो कोई भी पार्टी राजनीतिक हथकण्डों के द्वारा पुनः अर्जित कर सकती है।
 >>Coordination of will is emphatically 'a political, or apolitical' 
 action ?  
       बलपूर्वक या चालाकी से इच्छाशक्तियों का समन्वयन करना एक राजनितिक कार्य है, लेकिन यहाँ जिस ' एक भारत, श्रेष्ठ भारत का निर्माण' के महान उद्देश्य से किया जाने वाले जन-साधारण के इच्छाशक्ति का समन्वय करने की बात की जा रही है , वह पूरी तरह से एक अराजनैतिक (apolitical) कार्य है। यदि हमलोग पहले ही जन-शिक्षा (mass education) के इस सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा को अराजनैतिक 'a-politically' तरीकों से अनुभव करने में सक्षम हो जायें ; तो आज जिन संकटों का सामना हम कर रहे हैं, उनमें से अधिकांश पर काबू पाया जा सकता है। और इस दिशा में कार्य का प्रारम्भ करने के लिये हमारे भीतर जनसाधारण की समन्वित इच्छाशक्ति की प्रचण्ड क्षमता पर अटूट विश्वास होना चाहिये। और फिर इच्छाशक्ति के इस समन्वयन को कार्यरूप देने के लिये हमारे भीतर दृढ़ संकल्प (strong determination) भी होना चाहिए।  
 >>Youths come close, forge a united front so that a national will emerges.
       अब चूँकि हममें से प्रत्येक व्यक्ति को  'एक भारत श्रेष्ठ भारत, हर दृष्टि से समृद्ध भारत' का निर्माण करने के उद्देश्य से संकल्प-ग्रहण की पद्धति को सीखना है, और दूसरों को भी उसी प्रकार संकल्प-ग्रहण कौशल को सीखने के लिये अनुप्रेरित करना है; इसीलिये कार्य में जुड़े सभी व्यक्तियों को एक-दूसरे के करीब आना चाहिये और परस्पर जुड़कर (दीदी -दादा का) एक संयुक्त मोर्चा (united front) बना लेना चाहिये, ताकि एक राष्ट्रीय इच्छाशक्ति का आविर्भाव हो सके। 'एक भारत श्रेष्ठ भारत, हर दृष्टि से समृद्ध भारत' का निर्माण के उद्देश्य से की गयी यह राष्ट्रीय इच्छाशक्ति (national will ) यदि निष्कपट होगी तो वह जनसाधारण को स्वार्थपरता त्यागने के लिये प्रेरित करेगी। और तब जिन सभी क्षेत्रों में नियमबद्धता (disciplines) और राजीनीति आदि विषयों का उल्लेख पहले किया गया था उसके लिए अपने क्षुद्र स्वार्थों को त्याग करने की शक्ति प्राप्त होगी, और ऐसी समन्वित राष्ट्रीय इच्छाशक्ति के द्वारा देश की अवस्था परिवर्तित होने के लिए बाध्य हो जाएगी। 
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था - " संकल्प शक्ति ही जगत में अमोघ शक्ति है। प्रबल इच्छाशक्ति का अधिकारी मनुष्य एक ऐसी ज्योतिर्मयी प्रभा अपने चारों ओर फैला देता है कि दूसरे लोग स्वतः उस प्रभा से प्रभावित होकर उसके भाव से भावित हो जाते हैं। इच्छा-शक्ति का संचय और उनका समन्वय कर उन्हें एकमुखी करना ही वह सारा रहस्य है।"  5 /191 ] 
       >>>The necessity of Youth organization.
        अब प्रश्न उठता है कि इस प्रक्रिया को (वज्र जैसा अप्रतिरोध्य निःस्वार्थी मनुष्य बनने और बनाने की प्रक्रिया) को तेज  कैसे किया जाय ? यहीं पर संगठन की आवश्यकता होती है। और यह महामण्डल जो समस्त देशप्रेमी समस्त संगठनों का ह्रदय (nucleus) या केन्द्र है, वह आगे चलकर देश के कोने कोने तक प्रसारित हो जायेगा। और इस संगठन से जुड़े हर व्यक्ति के जीवन को इतने सुन्दर ढंग से गठित कर देगा कि वह व्यक्ति मानव मस्तिष्क द्वारा कल्पित किसी भी मशीनी मानव (Robot) की तुलना में अधिक दक्ष होगा।  
==================================
महामण्डल देश-प्रेमी समस्त संगठनों का 'नूक्लीअस' (ह्रदय) है ! और महामण्डल का लक्ष्य है, इस युवा संगठन के माध्यम से  'एक भारत श्रेष्ठ भारत, हर दृष्टि से समृद्ध भारत' का निर्माण करने में सक्षम -राष्ट्रीय इच्छाशक्ति (National Will) का आविर्भाव घटित कराना !  'भारत के राष्ट्रीय आदर्श 'त्याग और सेवा' से अनुप्रेरित राष्ट्रीय -इच्छाशक्ति शक्ति के आविर्भाव का उपाय बतलाते हुए स्वामी जी ने 1897 में कहा था - 
      " आगामी पचास वर्षों के लिये यह जननी जन्मभूमि भारतमाता ही मानो आराध्य देवी बन जाय। तब तक के लिये हमारे मस्तिष्क से व्यर्थ के देवी-देवताओं के हट जाने में कुछ भी हानि नहीं है। अपना सारा ध्यान इसी एक ईश्वर पर लगाओ, हमारा देश ही हमारा जाग्रत देवता है। सर्वत्र उसके हाथ हैं, सर्वत्र उसके पैर हैं, और सर्वत्र उसके कान हैं। समझ लो कि दूसरे देवी-देवता सो रहे हैं। जिन व्यर्थ के देवी-देवताओं को हम देख नहीं पाते, उनके पीछे तो हम बेकार दौड़ें और जिस विराट देवता को हम अपने चारों ओर देख रहे हैं, उसकी पूजा ही न करें ? जब हम इस प्रत्यक्ष देवता की पूजा कर लेंगे, तभी हम दूसरे देव-देवियों की पूजा करने योग्य होंगे, अन्यथा नहीं। " ५/१९३] 
कविसम्मेलन आदि से मिलने वाला तुच्छ सुख ही नहीं, निर्विकल्प समाधी से मिलने वाले 'भूमा आनंद जैसे अमृत के महासुख' को भी त्याग देने की शक्ति भी इसी समन्वित राष्ट्रीय इच्छाशक्ति से प्राप्त होगी। और तब अब से ठीक 25 वर्ष बाद 2047 में जब हम अपनी आजादी की शतवार्षिकी मना रहे होंगे तब हमारा भारतवर्ष - 'एक भारत श्रेष्ठ भारत, हर दृष्टि से समृद्ध भारत' बन चुका होगा !  
================================= 




1 टिप्पणी:

  1. क्या सामान्य जनता और जन-नेताओं की 'संयुक्त इच्छाशक्ति' को केवल एक उद्देश्य- 'भारत का कल्याण', भारत को समृद्ध और खुशहाल बनाने, भारत को विश्वगुरु के आसन पर बिठाने के संकल्प में नियोजित कर देने का कोई उपाय है ? और क्या ऐसा करना सम्भव भी है? निस्सन्देह यह किया जा सकता है, और इसका उपाय है -" टु विल टु डू सो"- अर्थात ऐसा करने की दृढ़ इच्छाशक्ति या दृढ़-संकल्प ! किन्तु कोई अकेला व्यक्ति ऐसा करने का संकल्प ले तो यह कभी सम्भव नहीं होगा। परन्तु, यदि यही महान लक्ष्य - 'भारत का कल्याण', (भारत माता को विश्वगुरु के आसन पर बिठाना है !) असंख्य देशवासियों का 'संकल्प' बन जाय। केवल तभी इस उद्देश्य को कार्य में रूपायित करना सम्भव हो सकता है। किन्तु प्रश्न यह है कि इतने सारे लोग, ऐसा संकल्प ले कैसे सकते हैं ?जन साधारण को, या प्रत्येक व्यक्ति को संकल्प लेने की पद्धति (ऑटोसजेशन) का महत्व समझा देने से ऐसा हो सकता है। यदि तुम स्वयं संकल्प लेने का तरीका सीख लो, और दूसरे को भी उसी प्रकार सिखा दो, तो संकल्पों का समन्वय हो जायेगा। और यही जन-समुदाय (बड़े समूह या संघ) को शिक्षित करने का सबसे महत्वपूर्ण सोपान है।

    जवाब देंहटाएं