11.
मार्ग की पुनर्व्याख्या
[The Way Further Explained]
महामण्डल देश के विभिन्न हिस्सों में फैल रहा है। कई बार इसके कार्यों में तीव्र उत्साह देखा गया है तो कई बार इसका अभाव भी दृष्टिगोचर हुआ है। यद्यपि इसका भौतिक विस्तार स्वागत योग्य है , किन्तु जो चीज सबसे अधिक आवश्यक है , वो है इसके उद्देश्य और आदर्श में दृढ़ विश्वास। यह दृढ़ विश्वास तभी आ सकेगी , जब वे सभी लोग जो इस कार्य में लगे हैं, और जो लोग आगे इसके साथ जुड़ना चाहते हैं, वे महामण्डल के आदर्श और उद्देश्य से पूर्णतया परिचित हों। क्योंकि केवल 'एक भारत -श्रेष्ठ भारत का निर्माण ' के प्रति निष्ठा और दृढ़ विश्वास रखने से ही महामण्डल के आदर्श और उद्देश्य को कार्यान्वित करने की प्रचण्ड इच्छाशक्ति आयेगी।
>> Weekly Study circles, Periodical training camps, Annual training camps, are practical methods for coordination of wills to bring about change in society.
जब तक महामण्डल के आदर्श और उद्देश्य के प्रति हमारा विश्वास दृढ़ नहीं हो जाता , तब तक इसे कार्यान्वित करने के लिये जैसी प्रचण्ड संकल्प शक्ति चाहिये उसका अभाव दिखाई देगा। महामण्डल के आदर्श, उद्देश्य और कार्यपद्धति को समझने के लिये विभिन्न भाषाओँ में पुस्तिकायें, सुचना पत्र (leaflets), मासिक मुखपत्र 'विवेक जीवन' , हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका 'विवेक अंजन',पत्राचार के माध्यम से मूल विचारों के आदान -प्रदान की सुविधा , तथा व्यक्तिगत तौर से बातचीत करने की सुविधा भी उपलब्ध है। विशेषतः साप्ताहिक पाठचक्र, आवधिक प्रशिक्षण शिविर, वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर आदि 'एक भारत -श्रेष्ठ भारत का निर्माण ' के लिए इच्छाशक्ति में समन्वय लाने के व्यावहारिक तरीके हैं।
>>Mahamandal -movement is a broad flow of coordinated will and This is the best instrument for social engineering.
जब तक महामण्डल के 'आदर्श, उद्देश्य और कार्य-पद्धति' को हम अच्छी तरह से समझ नहीं लेते , तब तक भले ही इस बात पर सहमति हो कि देश के कल्याण के लिये हमें भी कुछ न कुछ अवश्य करना चाहिये, किन्तु हमारे 'असमन्वित क्रियाकलाप' (uncoordinated actions) देश के कल्याण के लिये किये गए हमारे प्रयासों को एक रचनात्मक आन्दोलन का रूप नहीं दे सकते। तोड़-फोड़ करने या धरना प्रदर्शन (Agitations) से कुछ भी हासिल नहीं होगा। आज एक नये प्रकार के रचनात्मक आन्दोलन की आवश्यकता है। समन्वित इच्छाशक्ति के व्यापक प्रवाह को ही रचनात्मक आन्दोलन कहा जाता है। यह मनुष्य -निर्माण और चरित्र- निर्माण कारी आंदोलन समन्वित इच्छाशक्ति का एक व्यापक प्रवाह है और सामाजिक अभियान्त्रिकी (social engineering) का सबसे अच्छा साधन है। अलग-अलग व्यक्तियों की बिखरी हुई इच्छाशक्ति जब संयुक्त होकर 'समन्वित इच्छाशक्ति ' में रूपान्तरित हो जाती है -तब वह अमोघ शक्ति बन जाती है।
>>To give this movement a dynamism; Our Ideal is great hero and the pathfinder of the future - Swami Vivekananda !
इस आन्दोलन को अद्भुत गतिशीलता देने के लिये हमने एक ऐसे 'आदर्श' का चयन किया है जो बिना किसी सम्भावित विचलन के हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे, एक ऐसा आदर्श जो जनता-जनार्दन के कल्याण के उद्देश्य से समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने में समर्थ हैं- वे हैं स्वामी विवेकानन्द। किन्तु इस महान जन-नायक और 'the pathfinder of the future' -भविष्य के सम्पूर्ण मानवजाति के मार्गदर्शक नेता, स्वामी विवेकानन्द के नाम पर कुछ न कुछ करते रहना ही पर्याप्त नहीं है। यदि हमलोग कुछ ठोस परिणाम हासिल करना चाहते हों, तो हमें अपने -'उद्देश्य और कार्यपद्धति' को हमारे 'आदर्श ' (विवेकानन्द चरित ) के साथ समायोजित कर लेना होगा। अतः हमें इन तीन विषयों - 'उद्देश्य, आदर्श और कार्य-पद्धति' को बहुत अच्छी तरह से आत्मसात कर लेना होगा !
>> Buildings, schools, dispensaries, doing some social service work are not the criteria to judge the success of this movement.
महामण्डल का किसी भी तरह की राजनीती से कोई लेना-देना नहीं है, ठीक उसी प्रकार यह साधारण अर्थों में कोई धार्मिक या समाज-सेवी संगठन भी नहीं है ! महामण्डल के सदस्य किसी भी राजनितिक दल या संगठन के साथ नहीं जुड़ सकते , उसी प्रकार महामण्डल की कार्यसूची में साधारण धार्मिक-संस्कार या अनुष्ठान का आयोजन करना या तथाकथित समाज-सेवा के कार्य का कोई स्थान भी नहीं है। इस आन्दोलन की सफलता का निर्णय करने का मापदण्ड यह नहीं हो सकता कि अब तक इसके कितने भवन बने हैं, कितने विद्यालय या दातव्य चिकित्सालय आदि इसके द्वारा चलाये जा रहे हैं। महामण्डल के सभी कार्यक्रमों का वास्तविक उद्देश्य चरित्र निर्माण के माध्यम से एक उन्नततर समाज की स्थापना करना है। इसके विविध कार्यक्रम,समारोह, संसथान, समाज सेवा आदि कार्य जो चरित्र का निर्माण करने में सहायता करती हों - साधन हैं और साध्य है युवाओं का जीवन गठन !
>> Success of the Mahamandal work is to be evaluated, by taking note of the progress of the working upon the youths mind.
अतः महामण्डल आन्दोलन की सफलता का मूल्यांकन इस तरह के कार्यों की संख्या से नहीं, बल्कि इस बात से निर्धारित होता है कि ये सभी कार्य युवाओं को चारित्रिक गुणों को अर्जित करने में कितने सहायक सिद्ध हो रहे हैं। चूँकि इस प्रकार से मूल्यांकन करना कठिन होता है, और इसके सदस्यों के चारित्रिक गुणों का संवर्धन और उन्नति सतही दृष्टि से देखने पर दिखाई नहीं देती, इसलिए नौसिखिया लोग युवाओं के मन पर हुए कार्य की प्रगति को पहचानने में अक्सर विफल हो जाते हैं , इसलिए वे महामण्डल की कार्यपद्धति को अपनाने के विषय में आसानी से
उत्साहित भी नहीं हो पाते है। फिर भी यहाँ निर्देशित निःशब्द अभ्यासों (3H विकास के 5 अभ्यास) को, इसकी सफलता के प्रति दृढ़ विश्वास रखते हुए व्यक्तिगत एवं सामूहिक तौर पर अपना लेना होगा।
इस बात को हमें निश्चित रूप से समझ लेना होगा, कि प्रत्येक व्यक्ति-चरित्र का निर्माण किये बिना , हमलोग अपने करोड़ो देशवासियों के दुःख-कष्ट को कभी दूर नहीं कर सकते, तथा उनके लिये शिक्षा, आवास, भोजन आदि मुलभूत सुविधा नहीं जुटा सकते। और व्यक्तिगत चरित्र का निर्माण बनाए बिना सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को भी जड़ से नहीं मिटा सकते । और इसीलिये यह हमारा लक्ष्य है। और एक 'स्वस्थ समाज' के बिना मानव व्यक्तित्व का पूर्ण विकास, मनुष्यों की सम्पूर्ण शिक्षा (जो, कि यथार्थ धर्म या आध्यात्मिकता का ही दूसरा नाम है) सम्भव नहीं है।
>> Character building of youths is the sine qua non for full development of human personality, which is nothing but true spirituality .
अतएव स्वस्थ मानव-समाज के निर्माण के लिए युवाओं के चरित्र का निर्माण एक अनिवार्य शर्त (sine qua non) है। महामण्डल का यह सुविचारित आन्दोलन, असंख्य लोगों के कल्याण के लिये एक नये समाज का निर्माण करने दिशा में ही कार्यरत है। ऐसा महान उद्देश्य कुछ मुट्ठी भर लोगों के द्वारा या यहाँ-वहाँ कार्यरत समूहों के द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। देश के सभी लोग पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक, एक बहुत बड़ी संख्या में जब एक ही उद्देश्य को प्राप्त करने इच्छा से, अपनी कार्य-योजना में अटल विश्वासी होकर, एक साथ संघबद्ध होकर, आगे बढ़ेंगे तो निःसन्देह परिवर्तन होकर रहेगा। ऐसे विचारों से अनुप्रेरित होकर महामण्डल ही महामण्डल का आविर्भाव हुआ है। अब यदि हम सभी लोग एक साथ मिल- जुल कर काम नहीं करते, और जो सुविचारित कार्यपद्धति है उसे कार्यरूप देने के लिये कठिन परिश्रम नहीं करते, तो स्वामी विवेकानन्द ने भारत में आमूल-चूल परिवर्तन लाने का जो स्वप्न देखा था, उसे धरातल पर कैसे उतारा जा सकेगा ? हमलोगों ने बातें बहुत कर ली हैं, बहुत आहें भर चुके हैं, बहुत दिनों तक तन्द्रा में सोये रहे हैं। बस, यह सब बहुत हो चुका, आइये हमलोग एकजुट होकर कार्य में जुट जाएँ । मनुष्य और समाज को हमलोग जिस रूप में ढालना चाहते हैं, उसके लिए हमारे पास पर्याप्त शक्ति भी है।
महामण्डल के 'वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर' में इस चरित्र-निर्माणकारी आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान करने के प्रति आग्रही युवाओं को-गीता उपनिषद एवं श्रीरामकृष्ण-विवेकानन्द वेदान्त शिक्षक प्रशिक्षण परम्परा में आध्यात्मिक शिक्षक बनने और बनाने की पद्धति 'निवृत्ति अस्तु महाफला' पर आधारित,'BE AND MAKE' लीडरशिप ट्रेनिंग भी दी जाती है। इस विशिष्ट प्रकार के लीडरशिप ट्रेनिंग को महामण्डल के रजिस्टर्ड ऑफिस से समय तय होने के बाद 'पर्सनल इन्टरव्यू' या व्यक्तिगत साक्षात्कार के द्वारा विचारों का आदान-प्रदान करके, अथवा पत्राचार के माध्यम से भी समझने की चेष्टा की जा सकती है। जो लोग इस कार्य को करने के इच्छुक हैं , वे इन पद्धतियों का उपयोग कर सकते हैं। तथा समाज में परिवर्तन लाने के लिये 'समन्वित इच्छाशक्ति' (coordination of wills) की प्रचण्ड क्षमता के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
स्वस्थ मानव-समाज के निर्माण के लिए युवाओं के चरित्र का निर्माण एक अनिवार्य शर्त (sine qua non) है। समन्वित इच्छाशक्ति: अमोघ शक्ति कैसे और क्यों बन जाती है ? स्वामी जी कहते हैं - "निस्सन्देह जगत जननी ने अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये ही श्री रामकृष्ण के शरीर का निर्माण किया था। देखो, मैं बिना यह विश्वास किये नहीं रह सकता कि कहीं कोई ऐसी शक्ति है, जो अपने को नारी मानती है और काली अथवा माँ जगत-जननी कही जाती है.... और मैं ब्रह्म (अवतार वरिष्ठ) में भी विश्वास करता हूँ !"
" जो आन्दोलन वस्तुओं को, जैसी वे स्वरूपतः हैं- उस रूप में सुधारने का प्रयास नहीं करते, व्यर्थ हैं। " 'तूने दीवाना बनाया तो मैं दीवाना बना, अब मुझे होश की दुनिया में तमाशा न बना !'
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इसीलिए युवाओं का चरित्र-निर्माण ही समग्र-शिक्षा का 'सिने क्वा नोन' (sine qua non) अर्थात अनिवार्य शर्त है। तथा महामण्डल का यह सुविचारित चरित्र-निर्माणकारी आन्दोलन, देश के समग्र विकास और समृद्धि के उद्देश्य से एक नये समाज का निर्माण करने दिशा में ही कार्यरत है। ऐसा महान उद्देश्य कुछ मुट्ठी भर लोगों के द्वारा या यहाँ-वहाँ कार्यरत समूहों के द्वारा भी सम्पादित नहीं किया जा सकता। देश के सभी लोग पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक, एक बहुत बड़ी संख्या में जब एक ही उद्देश्य को प्राप्त करने इच्छा से, अपनी कार्य-योजना में अटल विश्वासी होकर, एक साथ संघबद्ध होकर, आगे बढ़ेंगे तो इस बात में कोई सन्देह नहीं कि परिवर्तन होकर रहेगा।
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