कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

Bhakti Yoga - Class #2: The First Steps"/ प्रारम्भिक सोपान -अवतार वरिष्ठ का भक्त के जीवनगठन का पहला कदम: मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ? इस बात को लेकर बड़ा मतभेद है। खण्ड ९/पृष्ठ १२ -२२/ Eng.Volume 4, Addresses on Bhakti-Yoga]

 🔱 भक्तियोग पर प्रवचन : Class -2: "पहला कदम : The First Steps" 🔱 [स्वामी विवेकानंद द्वारा न्यूयॉर्क में भक्तियोग के ऊपर ली गयी ग्यारह (11) कक्षाओं की श्रृंखला का सारांश]🔱 प्रारम्भिक सोपान - खण्ड ९/पृष्ठ १२ -२२/ भक्त के जीवनगठन का पहला कदम   

🔱Class-2 : भक्त के जीवन-गठन का पहला कदम : The First Steps" 🔱

मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ? 

[स्वामी विवेकानन्द द्वारा भक्ति योग के प्रारंभिक साधकों के लिए 16 दिसंबर 1895 को सोमवार की संध्या में , 228 West 39th Street, New York में दूसरा क्लास लिया गया था, उसे श्री जोशिया जे. गुडविन द्वारा रिकॉर्ड किया गया था। यहाँ श्री वरुण नारायण उस प्रवचन को अंग्रेजी में सुना रहे हैं।  यह (1895-96 में) स्वामी विवेकानंद द्वारा न्यूयॉर्क शहर में भक्ति योग पर ली गई ग्यारह (11) कक्षाओं की श्रृंखला में यह दूसरी कक्षा है।]   

[Bhakti Yoga: Class-2 : 27.14 मिनट का प्रवचन ]

प्रथम कक्षा में हमने देखा कि भक्ति को "ईश्वर (अवतार वरिष्ठ) के प्रति गाढ़ी प्रीति या परम अनुराग" के रूप में परिभाषित किया गया है। किन्तु हमें ईश्वर से (अपने इष्टदेव से) प्रेम क्यों करना चाहिए ? जब तक हम इसका उत्तर नहीं पा लेते, हम इस विषय को बिल्कुल भी नहीं समझ पाएंगे। सभी धर्म के अनुयायी यह जानते हैं कि मनुष्य 'शरीर' (body) भी हैं और 'आत्मा' (spirit) भी। [हमारी दो पहचान है - एक शरीर (M/F) को लेकर-व्यावहारिक मनुष्य (Apparent man) और दूसरी आत्मा (spirit) को लेकर, वास्तविक मनुष्य (Real man)।] किन्तु मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ? इस बात को लेकर बड़ा मतभेद है।   

पाश्चात्य शिक्षा में मनुष्य के शारीरिक पहलु पर बहुत बल दिया जाता है , और भारत में भक्ति शास्त्र के आचार्य मनुष्य के आध्यात्मिक पहलु पर बल देते हैं। जो पक्ष यह मानता है कि मनुष्य शरीर है और उसकी आत्मा होती है। वो शरीर पर ही सारा बल देता है , उसे मरने के बाद भी सुरक्षित रखने के लिए जमीन में दबा देता है। और भारतीय पक्ष मनुष्य को आत्मा मानता है, जिसके देह -मन होते हैं।  

यदि तुम उन्हें बताओ की देह-मन से परे भी कोई अविनाशी वस्तु होती है - तो वह उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। भावी जीवन के सम्बन्ध में उनकी धारणा 'Idea of a future life   would be a continuation of this enjoyment. ' मृत्यु के परे जीवन - (Life beyond Death) यही होती है कि - इन्द्रिय सुख, धन-दौलत, और हूर -शराब सतत बना रहे।  उसके जीवन का लक्ष्य है - इन्द्रिय विषय-भोग, और ईश्वर की पूजा इसलिए करता है कि -ईश्वर उसके उद्देश्य पूर्ति का साधन है। 

आत्म ज्ञान ही जीवन का लक्ष्य है - ईश्वर से परे और कुछ नहीं है। अज्ञेय वादी स्वर्ग नहीं जाना चाहता , क्योंकि वह स्वर्ग को मानता ही नहीं है। किन्तु ठाकुरदेव का भक्त भी स्वर्ग [इन्द्रलोक] नहीं जाना चाहता, क्योंकि उसकी दृष्टि में स्वर्ग बच्चों का खिलौना मात्र है। आत्मा या ईश्वर 100 % निःस्वार्थपरता से बढ़कर साध्य क्या है- संसार का कुछ नहीं चाहिए इससे बढ़कर साध्य क्या है?  ईश्वर का वैकुण्ठ या ब्रह्मलोक -रामकृष्णधाम पूर्ण स्वरुप है , क्योंकि वह ईश्वर का धाम है। बारम्बार हमें अपनी गलती सूझती है , एक दिन ठाकुर के पास पहुँच जाते हैं। 

[Bhakti is a religion. (18.50 मिनट)] जब हम संसार की हर चीज को बच्चों का खेल समझकर , इससे तृप्त होकर ऊब जाते हैं-तब ईश्वर भक्ति-धर्म (इन्द्रियातीत सत्य की भक्ति धर्म) पर पहला कदम उठता है। 

[Have done with this child's play of the world as soon as you can, and then you will feel the necessity of something beyond the world, and the first step in religion will come. (20.26 मिनट)]

नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन।

यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम्‌ ॥

यह 'आत्मा' प्रवचन द्वारा लभ्य नहीं है, न मेधाशक्ति से, न बहुत शास्त्रों के श्रवण से 'यह' लभ्य है। यह आत्मा जिसका वरण करता है उसी के द्वारा 'यह' लभ्य है, उसी के प्रति यह 'आत्मा' अपने कलेवर को अनावृत करता है।"

तात्पर्य यह कि यहां आत्मा को पाने का अर्थ है आत्मा के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना । धार्मिक गुरुओं के प्रवचन सुनने से, शास्त्रों के विद्वत्तापूर्ण अध्ययन से, अथवा ढेर सारा शास्त्रीय वचनों को सुनने से यह ज्ञान नहीं मिल सकता है । इस ज्ञान का अधिकारी वह है जो मात्र उसे पाने की आकांक्षा रखता है । तात्पर्य यह है कि जिसने भौतिक इच्छाओं से मुक्ति पा ली हो और जिसके मन में केवल उस परमात्मा के स्वरूप को जानने की लालसा शेष रह गयी हो वही उस ज्ञान का हकदार है । जो एहिक सुख-दुःखों, नाते-रिश्तों, क्रियाकलापों, में उलझा हो उसे वह ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता है । जिस व्यक्ति का भौतिक संसार से मोह समाप्त हो चला हो वस्तुतः वही कर्मफलों से मुक्त हो जाता है और उसका ही परब्रह्म से साक्षात्कार होता है।

नाविरतो दुश्चरितान्नाशान्तो नासमाहितः।

नाशान्तमानसो वापि प्रज्ञानेनैनमाप्नुयात्‌ ॥ (कठोपनिषद्,अध्याय-1,वल्ली-2/23-24)  

जिसने शास्त्र-निषिद्ध कर्मों का परित्याग नहीं किया, जिसकी इन्द्रियाँ शान्त नहीं है, जो एकाग्रचित्त नहीं है तथा कामना से जिसका मन अशान्त है - ऐसा पुरुष केवल बुद्धि से या शास्त्रज्ञान द्वारा मुझे प्राप्त नहीं कर सकता ॥

==========

THE FIRST STEPS

The philosophers who wrote on Bhakti defined it as extreme love for God. Why a man should love God is the question to be solved; and until we understand that, we shall not be able to grasp the subject at all. There are two entirely different ideals of life. A man of any country who has any religion knows that he is a body and a spirit also. But there is a great deal of difference as to the goal of human life.

======

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें