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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

Bhakti Yoga: Class #3 / आध्यात्मिक गुरु और शिक्षक (नेता) : आध्यात्मिक नेतृत्व की अवधारणा ('3P') / The Teacher of Spirituality :Every soul is destined to be perfect, /

 भक्ति योग :Class-3 : आध्यात्मिक गुरु और शिक्षक (नेता)   

 (The Teacher of Spirituality)

🔱आध्यात्मिक नेतृत्व की अवधारणा🔱 

(The concept of Spiritual Leadership) 

[स्वामी विवेकानन्द द्वारा भक्ति योग के प्रारंभिक साधकों के लिए 23 दिसंबर 1895 को सोमवार को सुबह में , 228 West 39th Street, New York में तीसरा क्लास लिया गया था, उसे श्री जोशिया जे. गुडविन द्वारा रिकॉर्ड किया गया था। यहाँ श्री वरुण नारायण उस प्रवचन को अंग्रेजी में सुना रहे हैं।  यह (1895-96 में) स्वामी विवेकानंद द्वारा न्यूयॉर्क शहर में भक्ति योग पर ली गई ग्यारह (11) कक्षाओं की श्रृंखला में यह तीसरी कक्षा है।] 

[Bhakti Yoga: Class-3 : 34.53 मिनट का प्रवचन ]

>>Every soul is destined to be perfect :... हर आत्मा का पूर्ण होना (100 % निःस्वार्थी होना) तय है। एक आत्मा केवल दूसरी आत्मा से ही ऐसी प्रेरणा प्राप्त कर सकती है, किसी अन्य उपाय से नहीं। जिस आत्मा से यह प्रेरणा आती है, उन्हें सद्गुरु (नेता -विष्णुसहस्रनाम वाला) कहते हैं, तथा वह आत्मा जिस तक यह प्रेरणा पहुँचती है, शिष्य (भावी नेता) कहलाती है।(भक्ति ही धर्म है इसलिए) "धर्म का वक्ता अद्भुत (wonderful) होना चाहिए, और श्रोता भी अद्भुत होना चाहिए।" [3.28 मिनट] 

(4.15 m) "प्रकृति का यह रहस्यमय नियम है-"दी सीकिंग सीनर मिटेथ दी सीकिंग सेवियर। (It is a Mysterious Law of Nature that - "The seeking sinner meeteth the seeking Saviour  जैसे ही खेत तैयार होता है, बीज अवश्य आना चाहिए, जैसे ही आत्मा को धर्म की आवश्यकता होती है, धार्मिक शक्ति का संचारक (The Transmitter of Religious force-SV) अवश्य आना चाहिए। [स्वामीजी का प्रण है - "I will not cease to work ! वे आज भी काम कर रहे हैं। और विभिन्न महामण्डल केंद्र इसके प्रमाण हैं।] 

क्या हमें वास्तव में सत्य या धर्म की पिपासा है ? सद्गुरु (नेता) को पहचाने कैसे ? सत्य स्वयंप्रकाश होता है। गुरु विवेकानन्द जैसे नेता (मानवजाति के मार्गदर्शक नेता) स्वयं प्रकाश (self-effulgent) हैं ! (खण्ड ९/२४)

आध्यात्मिक नेतृत्व की अवधारणा ('3P' The concept of spiritual leadership) : महामण्डल के भावी आध्यात्मिक नेता के आवश्यक गुण -पवित्रता (purity दुष्चरित से विरत-शास्त्र-निषिद्ध कर्मों से विरत), ज्ञान की सच्ची पिपासा (अर्थात आत्मा, ईश्वर या इन्द्रियातीत सत्य को जानने की सच्ची पिपासा -अनंत धैर्य , a real thirst after knowledge) तथा अध्यवसाय यानि अमृत मिलने तक समुद्रमंथन; अर्थात जब तक मन पर विजय प्राप्त न हो जाये, तब तक मन से निरंतर कुश्ती लड़ते रहने का नाम धर्म (=आध्यात्मिक नेता का धर्म है भक्त के रूप में जीवन-गठन।) है। (खण्ड-९/२४-२५)   

धर्म (अध्यात्म) क्या है ? धर्म तो मन के साथ एक सतत संघर्ष है। पूर्णतः निःस्वार्थी मनुष्य बन जाने के लिए (तीनों ऐषणाओं : कामिनी,कंचन, नाम-यश में आसक्ति पर), विजय प्राप्त कर लेने तक अपने मन के साथ निरंतर कुश्ती लड़ते रहने का नाम है धर्म। यह (मल्ल्युद्ध यानि 5 अभ्यास कब तक करना है?) एक या दो दिन, महीनों; कुछ वर्षों या जन्मों का प्रश्न नहीं है, इसमें तो सैकड़ों जन्म बीत जायें, तो भी हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए। अँधा  यदि अँधे को राह दिखाये तो दोनों गड्ढे में गिरते हैं ! जब तक हमलोग स्वयं अपना जीवन सुंदर ढंग से गठित नहीं कर लेते (अर्थात दुष्चरित से विरत नहीं हुए हैं ?), तब तक लड़कियों (बहनों -माताओं) के प्रति दूर से ही सम्मान दिखाना अच्छा है। उनको प्रशिक्षित और सन्मार्ग पर संचालित करने की बात सोचना भी ठीक नहीं है। महामण्डल आंदोलन एकमात्र युवा चरित्र-निर्माण के प्रति समर्पित आंदोलन  है , इसलिए लड़के-लड़कियों को (युवक-युवतियों को) एक साथ रखकर इसके प्रशिक्षण का कार्यक्रम करना स्वामीजी नहीं चाहते थे। इसलिए जब उन्होंने बेलुड़मठ का निर्माण किया था, उसी समय कह दिया था कि स्त्रियों के लिए अलग से मठ बनाने की आवश्यकता है, किन्तु उनके मठ संचालन में पुरुषों का कोई अधिकार या सम्पर्क नहीं रहेगा। स्वामी विवेकानन्द के निर्देशानुसार ही बाद में गंगानदी के दूसरे तरफ -दक्षिणेश्वर में स्त्रियों के लिए श्री सारदा मठ की स्थापना हुई। उस मठ का संचालन वे स्वयं ही करती हैं। ठीक उसी प्रकार महामण्डल में रहे बिना, इसके बाहर रहते हुए, किन्तु एक ही उद्देश्य -'जीवन-गठन' को प्राप्त करने (प्रवृत्ति से निवृत्ति प्राप्त करने) के लिए लड़कियाँ भी संगठित होकर 'सारदा नारी संगठन ' के झण्डे तले अपने जीवन-गठन के कार्य को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं तथा क्रमशः उनका संगठन बहुत सुंदर रूप ले रहा है। 

(अर्थात मन के साथ मल्लयुद्ध करते हुए उसे पूर्णतया अपने वश में कर लेने तक (या मिथ्या अहं को ठाकुर-माँ-स्वामीजी का दास 'मैं' बना लेने तक अपने अंतःप्रकृति के साथ grappling-कुश्ती लड़ने यानि 5 अभ्यास, यम-नियम-आसन -प्रत्याहार-धारणा का अभ्यास करते रहने का नाम धर्म है। एक गृहस्थ को प्रवृत्ति से निवृत्ति में आने के लिए अपने मन के साथ यह कुश्ती कब तक लड़ना होगा ? प्रवृत्ति से होकर निवृत्ति में स्थित हो जाने तक लड़नाहोगा !!अर्थात मल्ल्युद्ध-या मनःसंयोग सहित पाँचो अभ्यास  कब तक करना होगा ? यह एक या दो दिन, महीनों; कुछ वर्षों या जन्मों का प्रश्न नहीं है, इसमें (प्रवृत्ति से निवृत्ति में आने में) तो सैकड़ों जन्म बीत जायें, तो भी धैर्य के साथ हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए। नारद की कथा -किस तपस्वी की मुक्ति कब होगी ? Religion is a continuous struggle, a grappling with our own nature, a continuous fight till the victory is achieved It is not a question of one or two days, of years, or of lives, but it may be hundreds of lifetimes, and we must be ready for that. It may come immediately, or it may not come in hundreds of lifetimes; and we must be ready for that. The student who sets out with such a spirit finds success.] जिसके पास अनंत धैर्य है -जिसको, दूसरों की मूर्खता (तीनों ऐषणाओं में आसक्ति को देखकर) पर क्रोध नहीं आता- और जो साधक उसकी सेवा करने को निरंतर प्रस्तुत रहे वह अभी मुक्त है ! जिस साधु में इमली के पेड़ में जितने पत्ते लगे हैं, उतने जन्मों तक का धैर्य था -वह उसी समय मुक्त हो गया !! मानव मात्र की स्वाभाविक दुर्बलता -राग-'ईर्ष्या'- द्वेष, पंचक्लेश में फंसना फिर विवेकदर्शन करके  करके उससे बाहर निकलना (विवेक-श्रोत का उद्घाटित होना) ठाकुर-माँ-स्वामीजी की कृपा पर निर्भर है। (9.13m) 

>>खंड ९/२६ /A vision of God, a glimpse of the beyond never comes until the soul is pure. नेता को महावाक्य के मर्म का अनुभव होना चाहिए। मंत्रदीक्षा देने वाले सद्गुरु का  व्यक्तित्व धारण करने के लिए उसका निष्पाप (sinless) होना अनिवार्य है। एवं चरित्र-निर्माण की शिक्षा देने वाले - अच्छी आदतों का निर्माण करने की शिक्षा देने वाले आध्यात्मिक नेता  लिए 'सच्चा होना' (अपनी दुर्बलता नहीं छिपाना) एक अनिवार्य आवश्यकता है। /  (Therefore the necessary condition is that the teacher must be true.) (15.34 m) नेता का उद्देश्य क्या है ? कोई ऐषणा या नाम-यश की इच्छा तो नहीं है ? केवल प्रेम के माध्यम से ही शिक्षा दी जाती है। पैसा से धर्म नहीं मिलता - निःस्वार्थ भाव से प्रेम -भगवान श्रीकृष्ण अपने ग्वालबाल मित्रों से वृक्ष को देखकर कहते हैं - 

एतावत जन्म साफल्यं देहिनामिह देहिषु।

प्राणेरर्थेर्द्धिया वाचा श्रेय आचरणं सदा।।

जिसने ईश्वर का साक्षात्कार कर लिया केवल वही सद्गुरु हो सकता है। (17 m) This eye-opener of religion is the teacher. केवल सद्गुरु ही धर्म की आँखों को खोल सकते हैं। 

अपने जूते उतार दो, क्योंकि जहाँ तुम खड़े हो वह स्थान पवित्र है। इस दुनिया में ऐसे शिक्षकों की संख्या कम है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन दुनिया कभी भी उनके बिना नहीं रहती। (21-m) ये गुरु / मानवजाति के मार्गदर्शक नेता-सद्गुरु ही संसार को चला रहे हैं।  पैगम्बर की पूजा मनुष्य रूप में ही करनी ही होगी।  

"Religion is realization (अर्थात 'सत्यानुभव' या किसी '1' महावाक्य का भी अनुभव होना धर्म है !) !"(24 m) - दादा कहते थे - Common Sense is Rare Sense. उभयनिष्ट ज्ञान अर्थात देह और आत्मा दोनों का विवेक होना, अर्थात व्यावहारिक निर्णय क्षमता, विवेक-प्रयोग की बात सोचना बड़ी दुर्लभ वस्तु है। स्वयं को जो सोचोगे नश्वर शरीर , या अविनाशी आत्मा -वही हो जाओगे !-Nothing is so uncommon as common sense ! ) जो व्यक्ति यह कहे कि ईश्वर की पूजा मैं मनुष्य (अवतार) के रूप में नहीं करता, तो उससे सावधान रहो - वह मूर्ख है, उच्च डिग्री होने से भी अविद्याग्रस्त है !  if anyone tells you he is not going to worship God as man, take care of him. He is an irresponsible talker, he is mistaken; (खंड-९/३१ /28 m) जब मनुष्य रूप में जन्में भगवान राम, श्री कृष्ण, बुद्ध,ईसा, मुहम्मद , नानक -या ठाकुर-माँ -स्वामीजी- नवनीदा  जैसे ईश्वर के महान अवतारों, आध्यात्मिक नेताओं, पैगम्बरों के बारे में चिंतन किया जाता है - अर्थात  उनके नाम,रूप , लीला ,धाम का चिंतन किया जाता है, तो वे हमारी आत्माओं में प्रकट होते हैं, और हमें उनके जैसा बनाते हैं। हमारा पूरा स्वभाव बदल जाता है, और हम उनके जैसे बन जाते हैं। ९/३३ लेकिन आपको ईसा मसीह या बुद्ध (जैसे नेता या पैगम्बर की शक्ति) को हवा में उड़ते भूत-प्रेतों और इस तरह की बकवास के साथ नहीं जोड़ना चाहिए। But you must not mix up Christ or Buddha with hobgoblins flying through the air and all that sort of nonsense. 31 m  "Blessed are the pure in heart",(धन्य हैं वे जो हृदय से शुद्ध हैं- अर्थात जिनके ह्रदय में ठाकुर-माँ -स्वामीजी रहते हैं !", The power of purity; it is a definite power. अवतारों / नेताओं /पैगम्बरों के जीवन में निहित -पवित्रता (दिव्यता-एकत्व- माँ काली) की शक्ति ही यथार्थ  शक्ति है, जो उनके अनुयायियों को ऐषणाओं में आसक्ति की गुलामी - से मुक्त करके उसे ईश्वर का दर्शन (विवेक-दर्शन) करा देती है ; और उसका विवेकश्रोत उद्घाटित हो जाता है। (34.13 m) (खंड ९/३४) 

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THE TEACHER OF SPIRITUALITY

Every soul is destined to be perfect, and every being, in the end, will attain to that state. Whatever we are now is the result of whatever we have been or thought in the past; and whatever we shall be in the future will be the result of what we do or think now. But this does not preclude our receiving help from outside; the possibilities of the soul are always quickened by some help from outside, so much so that in the vast majority of cases in the world, help from outside is almost absolutely necessary.....  

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